शनिवार, 20 अप्रैल 2013

जर्मनी के मैडीकल बीमे को कैसे कार्यशील रखा जाए?

Untransparent system of German medical insurance is not only becoming increasingly unaffordable, but also a symbol of passive attitude to individual health. What are its main drawbacks? Writes R.P. Sharma from Munich.

यदि निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाए तो जर्मनी के वैधानिक मैडीकल बीमे (Gesetzliche Krankenversicherung) को कार्यशील रखा जा सकता है।

जनसाधारण के जीवन की एक अंग बन चुका वैधानिक मैडीकल बीमा दिनो दिन महंगा हो रहा है। हर सरकार ने इस घाटे को पूरा करने के लिए तरीके अपनाए हैं, वे हैं मासिक किश्त बढ़ा देना, दवाईयों कीमत का एक भाग रोगी से लेना, त्रैमासिक शुल्क (Praxisgebühr) लेना, दान्तों, आंखों व अन्य कई मैडीकल सहायताओं में कटौती करना आदि।

घाटे की जड़ें कहीं और हैं, ढूंढी कहीं और जाती हैं। मैडीकल बीमे की इस सुविधा के आने से पहले लोग रोग से बचने के लिये अपनी सेहत के लिये सावधान रहा करते थे। घरेलू नुस्खों व प्राचीन चिकित्सा पद्धति से बहुत से रोगों को पैदा होते ही रोक दिया जाता रहा है। खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। इस सुविधा के मिलने से रोगियों को उनके ऊपर होने वाले मैडीकल बीमे के खर्चे के बारे में पता ही नहीं चलता। रोगी अपने रोग के उपचार के लिये स्वयं कोई उपाय किये बिना डाक्टर को मैडीकल बीमे का कार्ड देकर उससे बीमारी के अन्त की अपेक्षा रखता है। रोगियों को मैडीकल बिल मिलने चाहियें ताकि उन्हें उन पर हुए मैडीकल बीमे वालों के खर्चे का पता चल सके। जनता को शिक्षा के माध्यम से अपने स्वास्थ्य को, अपनी मूल्यवान धरोहर को समझने का आभास करवाया जाये। रोग बचाव एवं रोग प्रतिरोधक उपायों के बारे में लोगों को जागृत किया जाये।

प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों, जिन्हें फार्मा लॉबी वाले ऑल्टरनेटिव मैडीसिन कह कर तिरस्कृत्त करते आ रहे हैं, को यथायोग्य मान्यता प्रदान की जाये। ऐसा नहीं है कि ऐलोपैथिक मैडीकल सिस्टम कोई घटिया चिकित्सा पद्धति है। ऐसा बिलकुल नहीं है। समस्या यह है कि हर चिकित्सा पद्धति की अपनी अपनी सीमायें हैं। जैसे होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों वाले सर्जरी के क्षेत्र में शून्य के बराबर हैं, उसी तरह ऐलोपैथी वाले बहुत से क्रॉनिकल रोगों के ईलाज़ में अभी भी अन्धेरे में भटक रहे हैं। सभी चिकित्सा पद्धतियों को एक दूसरे के पूरक समझना चाहिये और उसी स्तर पर उन्हें मान्यता प्रदान की जानी चाहिये। उदाहरण के लिये ऐलोपैथी वाले माईग्रेन (आधाशीशी) के रोगी को बहुत महंगे डायगनोज़ज के बाद Bündel Schmerz या Spannungsschmerz आदि का नाम देकर रोगी को उम्र भर के लिये ईबुप्रोफेन आदि औषधियों और Krankengymnastik एवं मालिश के हवाले कर देते हैं। हैपाटीटिस सी (यकृत विध्वंसक रोग) के रोगी पर करोड़ों का खर्च करके भी नहीं के बराबर ही सफल होते हैं जबकि आयुर्वेदीय चिकित्सा में इसका बहुत सस्ता ईलाज सदियों से विद्यमान है। इस सन्दर्भ मे मुझे फिर से कहना
पड़ रहा है कि यहां भी ऐलोपैथिक चिकित्सा में इस मैडीसिन सिस्टम का दोष नहीं है, क्योंकि यह सिस्टम जिस आधार पर काम करता है, जिस उद्देश्य के लिये काम करता है, वहां सफल भी है और इस सिस्टम ने मानवता को बहुत राहत दी है। जरुरत इस बात की है कि दूसरी चिकित्सा पद्दतियों से सौतेला व्यवहार न करके उन्हे मैडीकल बीमे में मान्यता दी जाये। ऐलोपैथिक चिकित्सा के रास्ते जहां बन्द हो जाते हैं, वहां दूसरी पद्दतियों को अपना कर अब तक किये जा रहे अनावश्यक खर्चों को रोका जाये।

दवाईयों की कीमत फार्मा-कम्पनियों को स्वयं तय करने की सुविधा समाप्त की जाये। जिन दवाईयों को ये
फार्मा-कम्पनियों वाले अन्य देशों में बीस से पचास गुणा सस्ता बेच रहे हैं, उन्हें वहां से आयात करके उपलब्ध करवाया जाना चाहिए ताकि कानूनी मैडीकल बीमा इन फार्मा-कम्पनियों के आसमान छूने वाले बिलों से बच सके।

कानूनी मैडीकल बीमा, जिनमें करोड़ों लोगों को सुलभ मैडीकल सेवायें मिल रही हैं, के रहते एक विशेष-वर्ग के लिये प्राईवेट मैडीकल बीमा की उपस्थिति का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता। इस दो धारी प्रणाली ने रोगी-वर्ग को ऊंची और नीची श्रेणियों में बांट दिया है, जबकि सभी का लक्ष्य एक ही हैः रोग से मुक्ति पाना।

और साथ ही इस सर्वजन हितकारी अनुपम स्वास्थ्य योजना में आने वाले धन का बहुत बड़ा हिस्सा प्राईवेट मैडीकल बीमा कंपनियों के पास चला जाता है। जरूरत है इन दोनों को एक छत्र के नीचे लाकर सर्वजन हितकारी कानूनी मैडीकल बीमे को चिरस्थाई और आकर्षक बनाने की।

दिन प्रति दिन किश्तें बढ़ाने, नये नये शब्द ढूंढकर, लोगों में भय का वातावरण बनाकर, नये नये टैक्सों से जनता पर बोझ डालने से कोई समाधान मिलने वाला नहीं है। इसकी जीवित उदाहरणें हमारे सामने हैं। दस यूरो का त्रै-मासिक शुल्क, दवाईयों कीमत का एक भाग रोगी से लेकर, दान्तों, आंखों व अन्य कई मैडीकल सहायताओं में कटौती करके भी क्षणिक लाभ के अतिरिक्त और कुछ भी हाथ नहीं लगा।

समय की मांग है कि सरकार लोक-हित को आगे रखकर, सिर्फ धन कमाने वाली गिद्ध दृष्टि वाली लॉबी से मुक्त होकर, ऊपर लिखित कदम उठाकर संसार की इस जनप्रिय स्वास्थ्य-योजना को ऐसी चिरस्थाई और आकर्षक बनाये कि साधारण नागिरक भी इसकी किश्त दे सकने योग्य रह सके।

राम प्रहलाद शर्मा, डौलमेचर, म्युनिक। फोन 01727105507

Praxisgebühr: 2004 से लेकर मरीज़ को हर तिमाही में डॉक्टर के पास जाने पर एक बार दस यूरो का शुल्क देना पड़ता है जो बीमा कंपनी को जाता है।