ਇੱਕ ਜਰਮਨ ਲੇਖਿਕਾ ਹਿੰਦੀ ਫਿਲਮ 'ਮੁਹੱਬਤੇਂ' ਵਿੱਚ ਅਮਿਤਾਭ ਬੱਚਨ ਤੋਂ ਇੰਨੀ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਈ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਹਿੰਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਸਿੱਖਕੇ ਅਮਿਤਾਭ ਬੱਚਨ ਦੇ ਪਿਤਾ ਸ਼੍ਰੀ ਹਰਿਵੰਸ਼ ਰਾਏ ਬੱਚਨ ਦੀ ਪੁਸਤਲ 'ਮਧੂਸ਼ਾਲਾ' ਦਾ ਜਰਮਨ ਵਿੱਚ ਅਨੁਵਾਦ ਕਰ ਕੇ ਪੁਸਤਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ.
एक German लेखिका ने केवल पांच minute के लिए अमिताभ बच्चन को पहली बार film मुहब्बतें में देखा, और उन से इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने भारत के बारे में तमाम जानकारी जुटा डाली, हिन्दी सीखी, अमिताभ बच्चन से परिचय किया और उनके पिता श्री हरिवंश राय बच्चन जी की पुस्तक 'मधुशाला' का German भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित करवाया. पढ़िए पूरी कहानी उन्हीं की ज़ुबानी.
भारत के बारे में मुझे केवल इतना ही पता था कि इस नाम का कोई देश है. एक स्थानीय पत्र के लिए स्वतन्त्र लेखिका और कलाकार के तौर पर काम करने के कारण कभी कभी वहां होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बारे में जानना पड़ता था, पर उस के अलावा मेरी इस देश में कभी ख़ास रुचि नहीं रही.
पर 2005 में यह सब बदलने लगा जब Bollywood का तूफ़ान Germany में आने लगा. ARTE TV channel पर पहली बार हिन्दी film 'कभी ख़ुशी कभी गम' German उपशीर्षकों के साथ दिखाई गई. हालांकि मुझे उपशीर्षकों के साथ film देखना अच्छा नहीं लगता क्योंकि पूरा ध्यान तो पढ़ने में ही चला जाता है, पर फ़िर भी जिज्ञासा के चलते मैं film देखने बैठ गई. film में रंग, संगीत, नाच गाना और Europe की तरह दिखने वाले दृश्य मुझे भाए, मुझे आश्चर्य भी हुआ पर बाद में पता चला कि यह scotland की shooting थी. कलाकार तो मेरे लिए बिल्कुल नए थे.
एक महीने बाद गरमियों में एक अन्य channel को इस बाज़ार का आभास हुआ और उस ने इसी film को German में dubbing करके दोबारा प्रसारित किया. इस बार मैं पूरी film देखना चाहती थी. पर पता नहीं क्यों, वही तमाम चमक दमक के बावजूद मैं film को झेल नहीं पाई. मैं films की कोई ख़ास शौकीन भी नहीं हूं, German या Hollywood films की भी नहीं. पर उस channel पर तो जैसे भारतीय films का भूत चढ़ गया हो. एक के बाद एक वह उस सपनों की factory की films दिखाने लगा, वो भी शाम के समय, जब सब लोग TV के सामने जुटे बैठे होते हैं. शायद यह ज़रूरी भी था, क्योंकि ये films बहुत लम्बी होती थीं. ऊपर से ढेर सारे विज्ञापनों के साथ एक तिहाई समय और बढ़ जाता था. अगर ठीक समय पर न शुरू करते तो दर्शक को रात के तीन बजे ही सोने को मिलता. और आश्चर्यजनक बात, सभी films शाहरुख खान की होती थीं. शायद channel का मालिक शाहरुख का बहुत बड़ा प्रशंसक होगा. मैंने एक दो बार फ़िर से हिन्दी film देखने की कोशिश की, पर असफ़ल. Bollywood को झेलना मेरे बस की बात नहीं थी.
फ़िर शरद ऋतु आई, और अगली film थी मुहब्बतें. मेरा तो film न देखने का पक्का इरादा था, पर रात के ग्यारह बजे बोरियत के चलते remote से channel पलट रही थी तो पांच minute के लिए आंखें इस film पर टिक गईं. इस बार भी खान साहब ही थे पर कहानी बेहतर थी. और वहां एक नया चेहरा भी था, क्या नाम था?? हां, अमिताभ बच्चन. आकर्षक. दो पुरुषों के बीच लड़ाई, पर बहुत दबी दबी, रोमांचक और सूक्षम.
अगले दिन film को दोहराया गया. इस बार मैंने यह चार घण्टे की film record की. फ़िर से वही आकर्षण. मैंने नाम को गुगलाया. हां, भारत के एक महानायक. मैंने तो अभी उनके कई चेहरों में से केवल एक चेहरा देखा था. ये पांच minute मेरी ज़िन्दगी बदल देंगे, उस समय मुझे नहीं पता था, पर मैंने इस देश में रुचि लेनी शुरू कर दी. वहां की संस्कृति, धर्म, राजनीति. TV में भारत के बारे में कोई भी वृतचित्र नहीं छोड़ा. मैंने बच्चन को लिखा, पर कोई उत्तर नहीं. आख़िर वे megastar हैं, हर कोई उन से सम्पर्क साधना चाहता होगा. पर अफ़सोस था कि dubbing के चलते मैं film में उनकी असली आवाज़ नहीं सुन पाई. इस लिए मैंने ज़िन्दगी की पहली हिन्दी film की DVD ख़रीदी. जैसी उम्मीद थी, हिन्दी भाषा वैसी ही अद्भुत लगी. लगा जैसे मैं घर वापस आ गई हूं. मुझे शुरु से ही कलाकारों और कहानी की बजाए यह भाषा आकर्षित कर रही थी. तो क्या अब मुझे हिन्दी सीखनी होगी? मेरी उम्र में भी कई लोग नई भाषाएं सीखते हैं, हालांकि स्कूल में Latin, French और अंग्रेज़ी सीखने के बाद मैंने किसी और भाषा में पांव न फंसाने की कसम खाई थी. मेरी दिलचस्पी गणित में है और मैंने computer विज्ञान में degree पूरी की है. पर हिन्दी? चलो कोशिश करते हैं.
एक प्राथमिक पुस्तक ले कर मैंने तीन महीने तक देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा सीखी. उस के बाद मैं भारत और हिन्दी भाषियों के सम्पर्क में आना चाहती थी और बहुत कुछ जानना चाहती थी. पर यह कैसे सम्भव होता? स्कूल के बाद तो मेरा अंग्रेज़ी भाषा के साथ सम्पर्क भी टूट गया था. मैंने internet में कई forums पर कोई अच्छा सम्पर्क ढूंढने की बहुत कोशिश की. चार सप्ताह बाद मुम्बई से लगभग मेरी उम्र के श्याम चन्द्रगिरी के साथ परिचय हुआ. उनके साथ रोज़ चैट करते समय में कई शब्दकोष खोल कर बैठती थी. पहले पहले हम दार्शनिक या धार्मिक विषयों पर बात करते थे. पर धीरे धीरे यह मैत्री घनिष्ठ हो गई. इसी दौरान artwanted नामक site द्वारा भी कई भारतीय कलाकारों से मेरा परिचय हुआ. कई लोगों को मेरे site में मेरे बनाए गए अमिताभ बच्चन के sketch देख कर हैरानी हुई. फ़िर एक दिन एक photographer वीरेन्द्र विज ने अमिताभ बच्चन जी द्वारा उनके पिता श्री हरिवंश राय बच्चन के बारे में एक व्याख्यान के चित्र भेजे. इस तरह मेरा भारत के एक लोकप्रिय कवि से परिचय हुआ. मैं भी उस समय इतनी हिन्दी सीखने के बाद उस में कुछ करना चाहती थी. फ़िर ख्याल आया कि क्यों न उनकी प्रसिद्ध पुस्तक 'मधुशाला' में से कुछ छन्दों का अनुवाद किया जाए? कुछ छन्द जब मैंने अपने भारतीय दोस्तों को सुनाए तो वे पूरी पुस्तक का अनुवाद करने पर ज़ोर देने लगे. लेकिन उसे यहां पढ़ेगा कौन. मैंने ग्यारह प्रकाशनों से इस के बारे में बात की. उन में से सात प्रकाशनों को यह project रोचक लगा. मुझे भी कविताओं का अनुवाद करने और उनके पीछे की सोच जानने में मज़ा आने लगा. पर इस से पहले copyright के बारे में सोचना भी ज़रूरी था, ताकि Germany में कोई और इसे प्रकाशित न कर सके. तो एक बार फ़िर ज़रूरत पड़ी अमिताभ बच्चन से सम्पर्क साधने की. लेकिन इस बार उनके सचिवालय द्वारा सम्पर्क करने की सोची. कई बार लिखा, कोई उत्तर नहीं. फ़िर एक email आई कि अमिताभ जी व्यस्त हैं पर समय मिलने पर उन्हें आप के बारे में बताया जाएगा. कई सप्ताह गुज़र गए. मेरे मित्र श्याम ने भी मुम्बई में उनके दफ़्तर जा कर मुद्दे को आगे बढ़ाने की कोशिश की. पर फ़िर वही उत्तर.
तीन महीने बाद हम दोनों बहुत तंग आ गए. एक दिन मैं और श्याम दोनों ही उनकी secretary रोज़ी सिंह से सम्पर्क कर रहे थे. इधर मैं email द्वारा उन्हें यह काम छोड़ने और कोई और कवि ढूंढने की धमकी दे रही थी और उधर श्याम उनके पास जा कर कह रहे थे कि यह Germany को नीचा दिखाना है. डेढ घण्टे बाद रोज़ी सिंह की email आई कि मेरा पत्र और मेरे द्वारा बनाया हुआ हरिवंशराय बच्चन जी का चित्र उनके boss को दे दिया गया है. एक दिन बाद अमिताभ जी की email आई कि वे मेरे काम का कुछ अंश देखना चाहते हैं. मैंने तुरन्त यह कर दिया. फ़िर एक महीने बाद उनकी दूसरी email आई जिस में उन्होंने मुझे इसे प्रकाशित करने की अनुमति दी. साथ ही डाक द्वारा मुझे औपचारिक पत्र भेज दिए गए.
और यह मेरे काम की शुरूआत थी और अब मेरा अमिताभ बच्चन के साथ सच-मुच परिचय हो गया था. कुछ दिन उनकी माता की मृत्यु हो गई. मैंने उन्हे शोक-पत्र और एक कविता लिख कर भेजी. तब से मेरे पास उनका निजि email पता भी है.
अब असली काम शुरू करने का समय आ गया था. पहले पहले यह का आसान लगता था पर धीरे धीरे मुश्किलें बढ़ती गईं. तमाम शब्दकोषों के बावजूद मुझे शब्दों के अभिप्राय समझ में नहीं आते थे, क्योंकि लेखक उन्हें बिल्कुल अलग सन्दर्भ में उपयोग करते थे. पहले शब्दों को समझने के लिए Roman लिपि में बदलना, फ़िर उनके उत्तर ढूंढना, फ़िर उनका अनुवाद करना, फ़िर अनुवाद को ठीक तरह से कविता की तरह लिखना, वे 135 छन्द अब मुझे पहाड़ की तरह लगने लगे. अगर मैं कोई समस्या email द्वारा अपने परिचितों को भी लिखती, तो भी उत्तर आने में कई दिन लग जाते. मेरा धैर्य टूटने लगा. मैं सोचने लगी कि आख़िर इतनी मेहनत का फ़ायदा क्या है? क्या मैं यह सब किसी के कहने पर कर रही हूं? नहीं. पर जब भी मैं यह काम छोड़ने लगती, फ़िर से कुछ हो जाता और मैं पुन काम में लग जाती.
फ़िर IIT खड़गपुर के शाश्वत दूर्वर नामक एक chemical engineering के छात्र से मेरा परिचय हुआ. वह भी art wanted पर सक्रिय था. उसे इस पुस्तक का ज्ञान भी था और रुचि भी. एक बार वह कुछ समय की training के लिए Germany आया. हम ने मिल कर इस पुस्तक पर बहुत काम किया. पुस्तक में जीवन के बारे में लिखी बातें मेरे अपने ख्यालों से बहुत मिलती जुलती थीं. आख़िर वह समय आया जब अनुवाद पूरा हो गया. पर क्या यह अनुवाद कविता के हिसाब से बिल्कुल ठीक था? क्या पता. ख़ुश्किस्मती से एक परिचित द्वारा एक German विश्व-विद्यालय में कार्यरत 'वी श्रीनिवासन' नामक एक भारतीय भाषा-विज्ञानी के बारे में पता चला. उस ने बहुत सी गल्तियों को ठीक किया और कई नए उपयुक्त शब्द बताए. इसी बीच कभी कभी अमिताभ बच्चन को email द्वारा अपने काम के बारे में बताती थी. उनके उत्तर संक्षेप में होते थे पर आते ज़रूर थे. मैंने उनको बताया कि मैं कोई अच्छा प्रकाशक ढूंढ रही हूं. मैंने उन से पुस्तक की भूमिका लिखने का आग्रह किया. पहले पहल उन्होंने मना किया पर बाद में मान गए. इसी बीच Germany के द्रौपदी प्रकाशन ने मेरी कृति को प्रकाशित का फ़ैसला कर लिया. इस तरह मेरा भारत के साथ नाता जुड़ा.
55 वर्षीय Claudia Hüfner एक स्वतन्त्र लेखिका और कलाकार हैं।
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