रविवार, 21 अप्रैल 2013

दीपावली 2009 पर म्युनिक में तीन आयोजन

दीपावली के मौके पर म्युनिक शहर में मुख्य तौर पर तीन बड़े आयोजन हुए। Indien Institut, भारतीय छात्रों की संस्था समयोग और IGCA नामक संस्था की ओर से। तीनों आयोजनों में कुल मिलाकर लगभग आठ सौ लोगों ने हिस्सा लिया।

16 अक्तूबर 2009 को Indien Institut द्वारा आयोजित किए गए कार्यक्रम में भारतीय महाकोंसल के अलावा भारी मात्रा में भारतीय और जर्मन लोग शामिल हुए। वहां कायदे से लक्ष्मी पूजन हुआ और आंगतुकों को टीका भी लगाया गया। फिर सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत सितार और तबले पर शास्त्रीय संगीत का प्रदर्शन, अनेक शास्त्रीय, अर्ध-शास्त्रीय नृत्य और Bollywood नृत्यों का प्रदर्शन, भारतीय महिला के मुख्य परिधान यानि साड़ी पर एक विशेष और विस्तृत व्याख्यान पेश किए गए। बर्लिन से एक जर्मन छायाकार की भारत में खींचे गए चित्रों की प्रदर्शनी लगाई और उनके द्वारा भारत पर लिखी गई एक पुस्तक पेश की गई।

17 अक्तूबर 2009 को छात्रों की संस्था समयोग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बड़ी गिनती में अधिकतर भारतीय युवा लोग एकत्रित हुए। SAP कंपनी में कार्यरत सिद्धार्थ मुदगल द्वारा प्रबंधन के मुख्य कार्यभार तले यह सुव्यवस्थित कार्यक्रम संपन्न हुआ जिसमें भारतीय महाकोंसल के साथ साथ दो स्थानीय राजनैतिक parties के नेता, और जर्मनी में Tata कारें (फिलहाल Indica) बेचने वाली कंपनी के प्रतिनिधि भी मुख्य अतिथि के तौर पर सम्मिलित हुए। इस कार्यक्रम की रूपरेखा भी मुख्यत शास्त्रीय और लोकप्रिय संगीत पर आधारित थी, लक्ष्मी पूजा का कोई विशेष प्रावधान नहीं था।

18 अक्तूबर को 2009 IGCA e.V. द्वारा दीपावली कार्यक्रम में भी शास्त्रीय संगीत और अन्त में Karaoke पर कुछ हिन्दी फ़िल्मी गीतों का प्रदर्शन हुआ। इस में शामिल होने वाले अधिकतर लोग जर्मन थे। भारतीयों के नाम पर कुछ बंगाली लोग ही थे जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्यक्रम से जुड़े थे।

सभी आयोजनों में आठ से दस यूरो तक प्रवेश शुल्क था। तीनों कार्यक्रमों में पटाखों और थोड़ी मौज मस्ती की कमी सभी भारतीयों को खल रही थी।
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विस्तृत रिपोर्ट

Indien Institut की ओर से दीपावली कार्यक्रम 17 अक्तूबर को म्युनिक के एक बड़े संग्रहालय के परिसर में आयोजित हुआ। लगभग तीन सौ जर्मन और भारतीय अतिथियों के बीच हुये कार्यक्रम में पहले लक्ष्मी पूजा हुई, संकल्प लिया गया, लक्ष्मी जी का आह्वान किया गया और  उनके 108 नामों का उच्चारण किया गया। फिर लक्ष्मी गायत्री मन्त्र गाया गया।
ॐ महालाक्ष्मये विधमहे, विष्णु प्रियाय धीमहि तन्नो लक्ष्मी:प्रचोदयात।

उसके बाद आशा संघू और रेणु जोशी ने लक्ष्मी जी की आरती की और शान्ति-मन्त्र का जाप किया। फिर महाकोंसल श्री अनूप मुदगल ने दीप जलाये। पूजा के बाद ऊपर हॉल में जाने के लिये प्रवेश के दौरान छोटे बच्चों द्वारा अतिथियों को टीका लगाया गया और मिठाई खिलाई गई। हॉल में सबसे पहले Indien Institut के अध्यक्ष Herbert F. Kroll ने आंगतुकों का नमस्ते शब्द के साथ स्वागत किया और मज़ाक करते हुये कहा कि यह पर्व लक्षमी यानि संपन्नता की देवी का पर्व है जो आज के मन्दी के युग में और भी प्रासंगिक है। इसमें मन्दी को दूर भगाने के लिये खूब पटाखे छोड़े जाते हैं। फिर उन्होने कोंसल श्री आनन्त कृष्ण को अलविदा कही जो म्युनिक कोंसलावास में तीन वर्ष का कार्यकाल समाप्त करके वापस भारत जाने वाले थे। फिर संजय तांबे ने जर्मन भाषा में दीपावली पर्व के बारे में दर्शकों को बताया। उन्होंने कहा कि लक्षमी धन संपन्नता की देवी है जिसे घर में आमन्त्रित करने के लिये खूब सारे दीये जलाये जाते हैं, शंख नाद किया जाता है, और उनकी पूजा की जाती है। पर्व का नाम दीपावली भी दीयों यानि दीपों से बना है। देश के अलग अलग हिस्सों में यह अलग तरह और नाम से मनाई जाती है। इसके एक दिन बाद नया चान्द उगना शुरू होता है। इसी दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काट कर अयोध्या लौटे थे। इस दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर को हराया था। सिख लोग इस दिन गुरू गोबिन्द सिंह की, जैन लोग महावीर की और बंगाली लोग काली देवी की अराधना करते हैं। लेकिन आज तो घी वाले दीयों की जगह इलेक्ट्रिक दीयों का समय आ गया है जैसा आप यहां भी देख रहे हैं। इसके बाद श्री मुदगल ने श्रोताओं को संक्षेप में संबोधित करते हुये कहा कि दीपावली भारत का एक लोकप्रिय त्यौहार है। दीयों के रौशनी से अज्ञानता को दूर भगाया जाता है और ज्ञान, खुशी, उन्नति और संपन्नता के दरवाज़े खुलते हैं।

उसके बाद कुछ सांस्कृतिक संगीत और नृत्य आइटमें पेश की गईं। Eva Stehli Atiia द्वारा Bollywood dance जैसे राजस्थानी नृत्य (दिल लगा लिया मैंने तुम से प्यार करके (दिल है तुम्हारा)), जिया जले जां जले (दिल से), बिन तेरे क्या जीना (गुरू), सलाम, तुम्हारी महफ़िल में आ गए हैं (उमराव जान), Gudrun Märtens द्वारा ओडिसी डांस प्रमुख थे। सुनील बैनर्जी ने सितार पर राह भैरवी, राग दरबारी और झाल अलाप प्रस्तुत किये। तबले पर उनका साथ परवेज़ ने दिया।

फिर श्रीमती मुदगल ने साड़ियों पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि साड़ी का इतिहास करीब पांच हज़ार साल पुराना है। पारंपरिक परिधान होते हुये भी साड़ी ने आधुनिकता को भी उतनी ही सहजता से गले लगाया है। यह अति औपचारिक अवसरों पर भी पहनी जाती है, फिर भी इसने काम काज के अनुसार अपना रंग रूप ढाल लिया है। खेती, कताई बुनाई तकनीक में बदलाव के साथ साथ इसके प्रारूप में भी अन्तर आता गया। चौदहवीं शताब्दी में इसे महिलाओं द्वारा भी धोती के रूप में पहना जाता था। फिर श्रीमती मुदगल ने इसे विभिन्न क्षेत्रों में पहनने की शैलियों और विभिन्न डिज़ाइनों पर रौशनी डाली। करीब एक घंटे के व्याख्यान में उन्होंने साड़ी का पूर्ण ज्ञान कोष श्रोताओं के समक्ष उण्डेल डाला। उन्होंने बनारसी साड़ियों का खास उल्लेख करते हुये कहा कि सोने चान्दी से सजी हाथ से बनी इन साड़ियों की सुन्दरता का मुकाबला मशीन से बनी साड़ियां भी नहीं कर सकतीं। सान्दरा चैटर्जी ने उनके अंग्रेज़ी व्याख्यान को जर्मन भाषा में साथ साथ अनूदित किया। जिन्हें यह व्याख्यान बोझिल लग रहा था, वे नीचे जाकर एक भारतीय रेस्त्रां द्वारा परोसा गया शाकाहारी भोज कर रहे थे। अन्त में संजय तांबे ने टिप्पणी करते हुये कहा कि भारत में साड़ी खरीदना एक फ़ुरसत वाला काम है। दुकान में फर्श पर बैठ कर आराम से साड़ियां चुनी जाती हैं और मोल भाव किया जाता है।

कार्यक्रम के अन्त में बर्लिन निवासी फ़ोटोग्राफ़र Jenner Zimmermann ने उनके भारत में लंबे आवास के समय खींचे आकर्षक चित्रों की एक प्रदर्शनी दिखायी और भारत पर लिखी एक पुस्तक का परिचय दिया।

दर्शकों में Lisa Voilter (बायीं ओर) का कहना है कि नृत्य भारतीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किये जाने चाहिये थे क्योंकि जर्मन कलाकारों में वह मूलता देखने को नहीं मिलती। Franziska Schönenberger (दायीं ओर) को कार्यक्रम बहुत पसन्द आया।

Christina Barsocchi (मध्य में) का कहना है कि शुरू में पूजा और मन्त्रों के दौरान पीछे खड़े होने के कारण हम कुछ देख नहीं पाये। मन्त्रों का जाप बहुत रोचक सुनाई दे रहा था। अच्छा होता यदि एक पूजा थोड़े उंचे पोडियम पर की जाती जहां सभी लोग देख पाते।

भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करवाने के लिये बनी नयी संस्था 'कला-क्षेत्र' के संस्थापकों में से एक श्री राकेश मेहता का कहना है हमारी संस्था ने इस आयोजन में बहुत योगदान दिया। पूजा, भोजन आदि का प्रबंध, बहुत सारे भारतीय परिवारों को निमन्त्रण भेजना आदि हमारा दायित्व था। हमारी संस्था क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर सभी को साथ लेकर चलना चाहती है और बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करना चाहती है।
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17 अक्तूबर को एक चर्च हॉल में छात्रों की संस्था समयोग का कार्यक्रम लगभग छह बजे शुरू हुआ। सबसे पहले दीपावली के महत्व पर एक संक्षेप व्याख्यान हुआ और दीये जलाकर कार्यक्रम का उदघाटन हुआ। फिर मुख्य अतिथियों और प्रायोजकों ने संक्षेप में अतिथियों को संबोधित किया। इनमें विशेष थे भारतीय महाकोंसल श्री अनूप मुदगल, CSU पार्टी के एकता आयुक्त और बायरन संसद के सदस्य Martin Neumeyer और बायरन की ग्रीन पार्टी की अध्यक्षा और बायरन संसद की सदस्य Theresa Schopper. फिर पण्डित अजय बहुरूपिया ने पूजा की, कथक और भरतनाट्यम द्वारा गणेष वन्दना हुयी, बच्चों द्वारा Bollywood dance हुआ और Greenrent कंपनी से Gunter Benthaus द्वारा जर्मनी में टाटा कारें बेचने के उनके अभियान पर रौशनी डाली गई। उसके बाद ब्रेक हुआ। ब्रेक के बाद एक अन्य समूह ने कथक किया, कुछ बच्चों ने भरतनाट्यम किया और मुख्य आयोजक सिद्धार्थ मुदगल ने एक श्रोताओं को संबोधित किया। फिर नाट्य-नन्दा स्कूल से एक कलाकार ने Bollywood dance प्रस्तुत किया। अरविन्द ने हारमोनिका पर एक गीत बजाया। अन्त में होली रेस्त्रां द्वारा रात्रि भोजन परोसा गया था। भोजन का शुल्क प्रवेश शुल्क में ही सम्मिलित था।

तन्मय विश्वास (मध्य में) कहते हैं 'यह कार्यक्रम बहुत ही सुव्यवस्थित था। मंच, प्रकाश, रिकार्डिंग, टीवी वाले आदि, सब कुछ बहुत ही प्रोफेशनल था। CSU पार्टी के सदस्य ने नमस्ते के साथ श्रोताओं को संबोधित किया तो बहुत अच्छा लगा।

आयोजकों में से एक सतिन्दर पाल सिंह कहते हैं कि इस कार्यक्रम में हर समुदाय और धर्म के लोग आये हैं। यहां जर्मन भी हैं, भारतीय भी, ईसाई भी हैं, हिन्दू भी, सिख भी और मुसलमान भी। मुझे खुशी है कि मैं एक ऐसे अभियान का हिस्सा हूं।
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इसमें म्युनिक निवासी पौषाली पाल ने टैगोर गीत, स्टुटगार्ट से रॉबी रॉय ने बांसुरी वादन, कलकत्ता से प्रसन्नजीत सेनगुप्ता ने सरोद वादन, म्युनिक निवासी सुनील बैनर्जी ने सितार वादन प्रस्तुत किये। कलकत्ता सुब्राटो मन्ना ने सभी आइटमों में तबले पर साथ दिया। कलकत्ता से पण्डित अरुण कुमार चैटर्जी पूजा के लिये वहां थे। अन्त में म्युनिक निवासी सैकत भट्टाचार्य ने कैरियोकि पर कुछ हिन्दी फ़िल्मी गाकर माहौल हल्का किया जैसे ये दिल न होता बेचारा, देखा न हाय रे सोचा न, हर घड़ी बदल रही है रूप ज़िन्दगी आदि। कायर्क्रम के समानन्तर रात्रिभोज उपलब्ध था। इस कार्यक्रम में भी मुख्य अतिथि महाकोंसल श्री अनूप मुदगल और कोंसल श्री आनन्त कृष्ण थे।