शनिवार, 20 अप्रैल 2013

न्यायालयों की कार्य भाषा अपनी भाषाएं क्यों नहीं हैं?

A common man in india does not understand anything about the hearing about his case being carried out in a court, because it is in English. A strange judicial system. R.P.Sharma analyses.

न्यायालयों की कार्य भाषा अपनी भाषाएं क्यों नहीं हैं? और अंग्रेज़ों की बनाई 1876 वाली यातनाजनक पद्धतियों का अन्त हो।

  1. न्याय पद्धति में यह कैसी विडंबना है कि एक याचिक अपने वकील को अपना विषय बताता है, वकील न्यायमूर्ति को देने के लिए याचिक की ओर से याचिका तैयार करता है। क्या आप जानते हैं कि वह याचिका किस भाषा में लिखी होती है? अंग्रेज़ी में। याचिक के सामने न्यायमूर्ति के साथ वकील बात कर रहा होगा तो क्या आप जानते हैं कि वार्ता किस भाषा में होगी? अंग्रेज़ी में। याचिका की एक प्रति याचिक को मिलेगी, पर वह अंग्रेज़ी में है, इसलिए वह उसे पढ़ नहीं सकेगा। अपनी ही याचिका स्वयं ही न पढ़ सकना, अपने ही वकील और न्यायमूर्ति के बीच हो रही अपने ही विषय की बात न समझ पाना यदि कहीं सम्भव है तो केवल भारत में।

  2. एक और यातनाजनक पद्धति अंग्रेज़ों ने 1876 में शायद भारतीयों को ज़लील करने के लिए बनाई थी। उस समय टेलिफोन और पोस्ट आदि की सुविधाएं नहीं के बराबर थीं। न्यायालय से न्याय लेने से सम्बंधित सभी लोगों को न्यायालय द्वारा पूर्व निर्धारित तिथि पर हाज़िर होना होता था, यह बात समझ में आती है। पर यह बात समझ में नहीं आती कि ऐसे लोगों को भी दस बीस वर्षों तक न्यायालयों में घसीटा जाए जिनके केसों की सुनवाई उस दिन होनी ही नहीं है। उनको कोई प्रमाण या गवाही भी नहीं देनी होती, केवल अगली पेशी की तारीख ही दी जानी होती है। इसी का परिणाम है कि न्यायालय खचाखच भरे होते हैं। लोगों के बैठने की व्यवस्था तो दूर पीने के पानी का भी अकाल रहता है। यहां पर शौचालय की वयवस्था का वर्णन करने पर स्वयं ये शब्द भी शर्म से सिकुड़ जाएंगे।

  3. न्यायामूर्ति के काम से पहले दो घंटे तो आगे की पेशियां देने में ही व्यतीत हो जाते हैं। यदि न्यायमूर्ति को इसी बीच कोई घरेलू काम पड़ जाए तो वह महानुभाव अपने रीडर को पेशियां डालने के लिए कह कर चले जाते हैं। यदि न्यायमूर्ति जी काम पर नहीं आ रहे हों या वे अवकाश पर हों तो भी लोगों को बुला रखा होता है।


अन्य विकसित देशों की तरह यदि केवल उन्हीं लोगों को न्यायालय में बुलाया जाए जिनकी सुनवाई होनी हो तो इसके कई लाभ होंगे। सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि न्यायमूर्ति जी पहले से अधिक याचिकाओं का निपटारा करने में सक्षम बनेंगे और जनता को सुख का सांस आएगा। पेशी की तिथि देने का काम एक क्लर्क पोस्ट के माध्यम से हो सकता है, जो विकसित देशों में प्रचलित है।

हर किसी के पास अपना फोन है, हर किसी को किसी भी समय उसकी पेशी होने या न होने की सूचना कम समय रहते भी दी जा सकती है।

विदेश मे काम कर रहे भारतीयों की सुनवाई आधुनिक युग में वीडियो कान्फ्रेंस से हो सकती है। भारतीय राजदूतवासों के माध्यम से विदेशी भारतीय की पहचान को न्यायालय के काम आ सकने योग्य और विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

-राम प्रहलाद शर्मा, अनिवादक, म्युनिक