शनिवार, 20 अप्रैल 2013

संगीत उद्योग की रक्षा

विश्व भर में संगीत उद्योग की एक सांझी उल्झन है, संगीतकारों और गीतकारों को उनकी मेहनत का उचित फल मिलना। वे मेहनत करके संगीत रचते हैं और लोग मुफ़्त में उनके गाने आयोजनों, क्लबों, रेडियो अथवा रेस्तरां आदि में बजाकर व्यवसाय करते हैं। इसी लिये लगभग हर देश में एक ऐसी संस्था होती है जो इस प्रचलन पर शुल्क लागू करती है और संगीतकारों, गीतकारों को उनके उपयोग किये गये संगीत पर royalty देती है। भारत में ऐसी संस्था है IPRS (The Indian Performing Right Society, http://www.iprs.org/index.asp) और जर्मनी में GEMA (http://www.gema.de/)। इन संस्थाओं का अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर गठबन्धन होता है और वे अपने संग्रह की जानकारी एक दूसरे को देते रहते हैं। यानि अगर कोई एल्बम भारत में प्रकाशित हुयी है और उसके सर्वाधिकार IPRS के पास सुरक्षित हैं तो उसे जर्मनी में भी बिना GEMA को जानकारी दिये और भुगतान किये व्यवसाय के लिये उपयोग नहीं किया जा सकता। इसका उल्ट भी उतना ही प्रासंगिक है। ये बात अलग है कि भारत में ये कानून केवल रेडियो, टीवी तक ही सीमित हैं। स्थानीय तौर पर इनका सख़्ती से पालन नहीं किया जाता। जबकि जर्मनी में इनका सख्ती से पालन किया (या करवाया) जाता है। हर रेस्तरां तक को वहां सारा दिन बज रही सीडी आदि पर शुल्क अदा करना होता है। भारतीय रेस्तरां भी इस कानून से परे नहीं हैं, भले ही वे भारतीय संगीत बजाते हैं।22 अप्रैल को GEMA के Herr Riedl के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि Mozart जैसे पुराने महान संगीतकारों ने अद्वितीय संगीत रचा लेकिन वे गरीब ही मर गये। उन्हें अपने काम का अधिक आर्थिक फ़ल नहीं मिला। GEMA ये दायित्व निभाना चाहती है और व्यवसाय और कलाकारों बीच एक सेतु बांधना चाहती है ताकि कलाकारों को उनकी मेहनत की रॉयलटी मिले। GEMA पूरे देश में चल रहे कार्यकर्मों पर, इश्तिहारों पर नज़र रखती है। उनके लोग समय समय पर अलग अलग जगहों पर जाकर चेक करते हैं कि फ़लां रेस्तरा, क्लब या किसी भी आयोजन में कानून का पालन हो रहा है कि नहीं। कार्यक्रमों में फीस क्लब के क्षेत्रफ़ल और मांगे जा रहे प्रवेश शुल्क पर निर्भर करती है। GEMA के डाटा बैंक में लाखों एल्बमों का डाटा है। आप GEMA पर किसी खास एल्बम के बारे में जानकारी भी ले सकते हैं कि उसके सर्वाधिकार सुरक्षित या मुफ़्त हैं। आमतौर पर किसी कलाकार के मर जाने के बाद सत्तर वर्ष तक उसका काम सुरक्षित रहता है। उसके बाद मुफ़्त हो जाता है।अगर कोई डीजे या कलाकार यह दावा करता है कि जो संगीत वो बजा रहा है वो उसका अपना है और वह GEMA को पैसा नहीं देना चाहता, इसमें भी एक एक चीज़ को चेक किया जाता है। आजकल उच्च तकनीक के चलते लोकप्रिय गीतों में से छोटे छोटे टुकड़े काटकर नये गाने बनाये जा सकते हैं। लेकिन ये छोटे छोटे सेम्पल भी सुरक्षित संगीत के अन्तर्गत आते हैं। हाल ही में मैडोना ने एक गाने में ABBA के किसी गाने का सेम्पल का प्रयोग किया गया था तो उसे लाखों का हर्ज़ाना भरना पड़ा था। सीडी बनाने वाली कम्पनियों को भी बड़ी तादाद में कोई आडियो सीडी बनाने से पहले GEMA से निरीक्षण करवाना पड़ता है कि जो संगीत उस सीडी पर है, वो सुरक्षित है या नहीं। जो कलाकार अपना पञ्जीकरण GEMA के साथ नहीं करवाते, GEMA उनके लिये कुछ नहीं कर सकती। भले उनका संगीत रेडियो पर हज़ारों बार बजता रहे, उसे कोई पैसा नहीं मिलेगा। संगीतकार और प्रकाशक Matthias Köhler कई वर्षों से GEMA के सदस्य है और GEMA से सन्तुष्ट हैं। वे कहते हैं कि कलाकार को इसकी चिन्ता नहीं करनी पड़ती कि उनका संगीत कहां कहां उपयोग किया जा रहा है। उन्हें उनका हिस्सा अपने आप मिलता रहता है। लेकिन GEMA अभी online business में इतनी अच्छी नहीं है। बहुत सी ऑनलाईन सेवायें जैसे iTunes अपनी बिक्री का जायज़ हिस्सा GEMA को देती हैं। लेकिन ये हमेशा इतना आसान नहीं होता क्योंकि iTunes अमरीका में है और इसका हिसाब लगाना कठिन होता है कि कौन सा संगीत GEMA की सम्पत्ति है और उसे कितना हिस्सा दिया जाये।विदेशों में भी जब बड़े भारतीय समारोहों में भारतीय संगीत बजाया जाता है तो IPRS को इसका हिस्सा मिलता है। भारत में भी उनके कार्यकर्ता तरह तरह के पार्कों, समारोहों, डिस्को में जाकर चेक करते हैं कि कहीं कोई कॉपीराईट संगीत तो नहीं बजाया जा रहा। लेकिन से संस्थायें केवल उपयोग किये जा रहे संगीत से सम्बन्धित हैं, गैरकानूनी तरीके से कॉपी किये जा रहे संगीत से नहीं। piracy के लिये भारत में IMI (http://www.indianmi.org/) उत्तरदायी है और जर्मनी में Bundesverband Musikindustrie e.V.(http://www.musikindustrie.de/).