शनिवार, 20 अप्रैल 2013

डॉक्टर भी हो सकते हैं गलत

एक बार मैंने घर में चाय बना कर मेज़ पर रखी। पास में मेरी डेढ वर्षीय बेटी खेल रही थी। अचानक मेरी बेटी ने मेज़ पर रखी चाय की केतली खींच ली। गर्म गर्म चाय उस पर गिर गई और उसका हाथ बुरी तरह से जल गया। वह दर्द के मारे बुरी तरह से रो रही थी। हमने तुरन्त डॉक्टर को बुलाया। मरहम पट्टी के बाद भी मेरी बेटी को एक सप्ताह के लिए अस्पताल में रहना पड़ा। अस्पताल में दिन में एक नर्स आती थी और वह मेरी बेटी के हाथों को लोहे वाली स्पंज के साथ साफ़ करती थी। मेरी बेटी को इससे बहुत दर्द होता था। वह नर्स को देखते ही रोने लगती। हमें भी अटपटा लगता कि हाथ को आखिर इतना साफ़ करने की क्या ज़रूरत है, वो भी इस तीखी चीज़ से। पूछने पर नर्स केवल इतना बोल कर चुप हो जाती कि इससे हाथों पर निशान नहीं पड़ेंगे। हम इतना सोच कर चुप हो जाते कि डॉक्टर लोग, वो भी जर्मनी के, जो भी करते होंगे, ठीक ही करते होंगे। आज मेरी बेटी बड़ी हो गई है पर उसके हाथों पर वे निशान हमेशा के लिए पड़ गए हैं। इसलिए मेरा मानना है यह ज़रूरी नहीं, कि जर्मन डॉक्टर हमेशा ठीक हों। - कुसुम चौधरी, एर्लांगन