रविवार, 28 अप्रैल 2013

भारतीय कार्यक्रम करवाना नहीं इतना आसान

कुछ वर्षों से जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों में भारतीय संस्कृति को विशिष्ट पहचान मिलने लगी है जो यहां बढ़ते हुए प्रवासी भारतीय समुदाय को अपनी जड़ों से जुड़े रहने के लिए एक मौका प्रदान करती है। इसलिए हर बड़े छोटे शहर में कई तरह की भारतीय संस्थाएं उभरने लगी हैं। पर फिलहाल यह क्षेत्र इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि समूचे भारत की विविध संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करने वाली कोई बड़ी संस्था खड़ी हो सके। खासकर अभाव है स्थानीय प्रतिभा का। विदेश में रहने वाले अधिकतर प्रवासी भारतीय काम काजी लोग हैं। अगर किसी में कोई प्रतिभा है भी तो वह केवल शौकिया तौर पर कर पाता है। ऐसे में भारतीय संस्थाओं के लिए अच्छे कार्यक्रम करवा पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। हालांकि जर्मनी में भारत का शास्त्रीय नृत्य और शास्त्रीय संगीत ही भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता आ रहा है, पर यह खुद भारतीयों के लिए उतना आकर्षक नहीं। कुछ सालों से हिन्दी फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ने से bollywood dance की लोकप्रियता बढ़ी है। इसलिए हर बड़े शहर में पर्याप्त जर्मन नृत्य कलाकार उभर कर आए हैं, जो bollywood नृत्य में माहिर हैं। पर ये कलाकार व्यावसायिक होते हैं, खूब पैसा लेते हैं और अधिकतर बड़े या सरकारी कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। ऐसे में छोटी मोटी भारतीय संस्थाएं फिर से अकेले पड़ जाती हैं। इसलिए अभाव है प्रवासी भारतीय प्रतिभा का। Frankfurt के भारत संघ से अनिल कुमार कहते हैं 'प्रतिभा की इतनी कमी है कि आधे घण्टे का कार्यक्रम आयोजित करवाना भी मुश्किल हो जाता है। अगर थोड़ी बहुत भारतीय प्रतिभा है भी, वह भी बिना पैसे के बात नहीं करती। भारत संघ जैसी संस्थाएं प्रवासी भारतीय परिवारों में संस्कृति को बचाए के लिए होती हैं और मूलतः दान आदि पर चलती हैं। हमारा उद्देश्य है यहां रह रही भारतीय प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौका देना, उन्हें लोकप्रियता के लिए एक मंच देना। पर प्रवासी भारतीय कलाकारों को भी हमारी मजबूरी समझनी चाहिए।'

शुरू शुरू में विभिन्न भारतीय समुदायों की संस्थाएं बनीं। तमिलों की, पंजाबियों की, बंगालियों की, गुजरातियों की, तेलुगू लोगों की या मल्लूओं की। पर ये अलग अलग बड़े स्तर पर कार्यक्रम नहीं कर पाती हैं। इसलिए अब चलन आ रहा है मिलकर थोड़े बड़े स्तर पर कार्यक्रम करने का। विश्व हिन्दू परिषद, Frankfurt से सरबजीत सिंह सिद्धू- 'हमने कई बार केरला समाजम या बंगाली समूहों से कार्यक्रमों को उधार लेकर उन्हें अपने कार्यक्रमों में जगह दी है। इससे भारत का सच्चा प्रतिनिधित्व होता है, कार्यक्रम मनोरंजक और विविधतापूर्ण बनता है। हर तरह के कार्यक्रम का अपना महत्व और अपने दर्शक होते हैं। पंजाब का भांगड़ा, दक्षिण भारत के शास्त्रीय नृत्य के तो अब पर्याप्त कलाकार मिलने लगे हैं, पर अभी राजस्थान, उत्तरप्रदेश आदि कई प्रदेशों की नृत्य शैलियों की कमी है। अगर हम अपने देश के ही तमाम नृत्य और गायन शैलियों में प्रतिभा उभार सकें तो हमें केवल कार्यक्रम लम्बा करने के लिए अन्य देशों के कार्यक्रम नहीं डालने पड़ेंगे।'