शनिवार, 27 अप्रैल 2013

सम्मान के लिए हत्या

म्युनिक आपराधिक पुलिस के हत्या आयोग के उप निदेशक, श्री Richard Thiess फिर से बसेरा के लिए एक सच्ची कहानी लेकर आए हैं।एक सुबह साढे तीन बजे मेरा कार्यालय वाला मोबाइल बज उठा और एक कर्मचारी ने बताया कि दक्षिण म्युनिक के किनारे एक रिहायशी इमारत के आगे एक तुर्की व्यक्ति को गोलियां मार कर बुरी तरह जख़्मी कर दिया गया है। उसकी जान खतरे में है और उसे एक अस्पताल में आपातकालीन शल्य चिकित्सा के लिए दाखिल किया गया है। अपराधी लापता है (या हैं)। अपराध स्थल की घेराबन्दी कर दी गई है और अपराधी की खोज जारी है। अभी इस अपराध का कोई गवाह नहीं है। मेरे वहां पहुंचने पर वहां पहले से ही कई पुलिस गाड़ियां खड़ी थीं। एक पुलिस अधिकारी ने मुझे स्थिति से अवगत कराया। अब तक की जानकारी के अनुसार घायल व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चे के साथ उस इमारत में रहता था। यह इमारत एक बड़े से वृद्ध आश्रम का हिस्सा थी जिसमें अधिकतर वृद्ध आश्रम के कर्मचारी ही रहते थे। प्रवेश द्वार के सामने ही एक छोटा सा जंगल था जहां से गोलियां दागी गई थीं। घायल व्यक्ति सुबह सब्ज़ीमण्डी में काम पर जाने के लिए निकला था। उसकी पत्नी ने अपने फ्लैट से गोलियों की आवाज़ें सुनी और अपने पति को दरवाज़े पर घायल पड़े हुए पाया। होश खोने से पहले उसने पत्नी को बताया था कि उसने किसी को नहीं देखा।

उस खुले से और बड़े से क्षेत्र की ठीक तरह से छानबीन करने, और कोई हथियार या सुराग ढूंढने के लिए मैंने करीब साठ सत्तर पुलिस-कर्मियों के दस्ते को बुलाया। कुछ कर्मचारी इमारत में रह रहे लोगों से और वृद्ध आश्रम के लोगों से पूछताछ कर रहे थे। कुछ गवाहों ने गोलियां चलने की आवाज़ के बाद वहां पास ही एक बजरी वाली सड़क पर किसी के चलने की आवाज़ भी सुनी थी। एक गवाह ने तो इसके बाद दूर किसी गाड़ी के चालू होने और तेज़ी से टायरों के घूमने और घिसटने की आवाज़ें भी सुनी थीं। वृद्ध आश्रम के अधिकारियों ने हमारा पूरा साथ दिया, बल्कि कड़कती ठण्ड वाली सुबह में हम करीब सत्तर लोगों को नाश्ते के लिए कॉफी और ब्रेड भी दी। अपराध स्थल पर हमें कुछ कारतूसों के कवर मिले। आपराधिक विभाग के खास अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि अपराधी ने अपने शिकार से कुछ कदमों की दूरी पर खड़े होकर ही गोलियां चलाई होंगी।  इतने में अस्पताल से सूचना आई कि सभी गोलियां शरीर के निचले हिस्से में लगी हैं। शिकार हुए व्यक्ति की हालत गम्भीर थी पर डॉक्टरों को उम्मीद थी कि वह बच जाएगा। इससे हमें लगा कि अपराधी का उद्देश्य शिकार की मर्दानगी को छीनना रहा होगा। इससे हमें छानबीन के लिए दिशा मिली कि हमें उसके जानकारों में ही पता लगाना होगा। हो सकता है किसी औरत का उसके साथ सम्बन्ध हो या फिर कोई औरत किसी बात का बदला लेना चाहती हो। अगले दिनों की छानबीन से यह विश्वास होने लगा कि यह मामला बदला लेने का ही है, हालांकि शिकार व्यक्ति का परिवार इस सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर देने में बहुत हिचकिचा रहा था।

पर एक बार शाम को छुट्टी के बाद हम चार लोग कार्यालय में केस पर चर्चा कर रहे थे कि टेलीफ़ोन की घण्टी बज उठी। दूसरी ओर से एक व्यक्ति ऐसे बोल रहा था जैसे वह कोई महत्वपूर्ण सूचना देने जा रहा हो। उसने बताया कि वह उस सुबह गाड़ी में बैठकर शहर की ओर जा रहा था। करीब सुबह तीन बजे वह वृद्ध आश्रम के आगे से गुज़रा। कि अचानक दीवार के पीछे से कोई निकला और गाड़ी के तेज़ प्रकाश के आगे से होकर तेज़ी से सड़क पार कर गया। उसने आती हुई गाड़ी की ओर ध्यान भी नहीं दिया, न ही उसने टकराने की कोई परवाह की। बड़ी मुश्किल से उसने गाड़ी को घुमा कर टक्कर होने से बचाया। वह कोई अट्ठारह बीस साल का और कोई पौने दो मीटर लम्बा, काले बालों वाला लड़का था। बिना गाड़ी की ओर ध्यान दिए वह लड़का वहां पड़े कचरे के डिब्बों की ओर भाग गया। गवाह इससे बहुत चौंका, इसलिए उसने शीशे में से पीछे देखने के लिए गाड़ी धीमी कर दी। तभी उसने देखा कि पीछे से तेज़ प्रकाश के साथ एक गाड़ी चालू हुई और तेज़ी से उसे पीछे छोड़ती हुई शहर की ओर चली गई। हालांकि अन्धेरे के चलते वह देख नहीं सका कि गाड़ी में कितने लोग थे, पर गाड़ी का मॉडल और नम्बर वह नोट कर पाया। यह एक पुरानी नीली मर्सिडीस थी। उसका बयान हमारी अब तक की जानकारी के साथ पूरी तरह मिल रहा था। इस जानकारी से हमारा काम बहुत आसान हो गया। हमने गवाह को कार्यालय में बुलाकर उसका बयान नोट कर लिया।

हमने पता लगाया कि यह गाड़ी शिकार हुए व्यक्ति के अंकल 'ओरहान' की है जिसके दो पुत्र थे। दोनों युवा थे। एक पढ़ाई खत्म करने वाला था। उसका हूलिया हमारे बयानों में बताए गए व्यक्ति से एकदम मिल रहा था। अब क्योंकि उस गाड़ी के गुम होने की रिपोर्ट नहीं लिखवाई गई थी, इसलिए हमने ओरहान के विरुद्ध हत्या में साथ देने के सन्देह का वारण्ट जारी करवा कर उसे उसके घर जाकर गिरफ्तार कर लिया। उसने बताया कि उसके दोनों बेटे घर पर नहीं हैं। वे अपने मर्ज़ी से घर आते जाते हैं, कई बार तो किन्हीं लड़कियों के पास ही अपने दिन गुज़ारते हैं। उसके घर की तलाशी से भी कुछ खास हाथ नहीं लगा। ओरहान पूछताछ में काफी आनाकानी कर रहा था। पर उसे उस रात जेल में ही रहना पड़ा। अगली सुबह ही उसके बड़े बेटे 'ओरकान' ने फोन करके अपने चचेरे भाई पर हमला करने का अपराध स्वीकार कर लिया और कहने लगा कि उसके पिता को छोड़ दिया जाए। उनका इस अपराध से कोई लेना देना नहीं हैं। उनकी गाड़ी भी उसने बिना बताए उपयोग की और अपराध के बाद वापस रख दी। उसके बाद वह अपनी गर्लफ़्रेण्ड के घर जाकर छुप गया और तुर्की चला गया। पर ऑस्ट्रिया में से गुज़रते हुए उसे अपने पिता की गिरफ्तारी का पता चला, और अब वह वापस म्युनिक आ रहा है और वापस आते ही खुद को पुलिस के हवाले कर देगा। बिना किसी प्रश्न की प्रतीक्षा किए उसने फोन रख दिया। हमें आश्चर्य हुआ कि क्या वह सचमुच अकेला था या अपने पिता का अपराध छुपाने के लिए सारा दोष अपने सर पर ले रहा है?

हमें ज़्यादा इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। अगली सुबह वह हमारे सामने था। उसने बताया कि शिकार हुआ उसका चचेरा भाई उनकी रिश्तेदारी में एक लड़की के साथ अवैध सम्बन्ध बढ़ा रहा था। वह लड़की मानसिक रूप से थोड़ी कमज़ोर थी और थोड़ी देर बाद उसकी शादी तुर्की में उसके एक दूर के चचेरे भाई के साथ कर दी गई थी। इसके साथ मामला खत्म हो गया था। पर एक दिन लड़की के पति को उसके अतीत के बारे में पता चला और इसके बारे में पूछना शुरू कर दिया। लड़की ने स्वीकार कर लिया कि उसके एक चचेरे भाई के साथ सम्बन्ध थे। लड़की के पति को लगा कि उसके साथ धोखा हुआ है। उसने लड़की के माता पिता को इसके बारे में बताया। परिवार वालों ने लड़की के बयान की सच्चाई जानने का फैसला किया। लड़की के माता पिता की अनुमति के बाद लड़की के भाई और एक अंकल एक बहाना बनाकर उसे म्युनिक शहर के बाहर एक जंगल में ले गए और उससे पूछताछ शुरू कर दी। उसपर कई घण्टे तक अत्याचार किए गए और दुर्व्यवहार किया गया। उससे सच उगलवाने के लिए उसे मारने की धमकी भी दी गई। लहूलुहान करके उस लड़की को वापस उसके माता पिता के हवाले किया गया, जिन्होंने उसे अस्पताल में दाखिल करवाया। लड़की के पिता तो लड़की का सम्मान वापस दिलाने में मदद करने के लिए उनके आभारी थे। कई दिनों तक लड़की का उपचार जारी रहा।

पर अत्याचार के बावजूद लड़की अपने शब्दों पर दृढ़ रही। इसलिए परिवार वालों ने उसके आशिक की मर्दानगी छीनकर परिवार का सम्मान वापस लेने का निर्णय लिया। उसकी सम्भवत मृत्यु की किसी को परवाह नहीं थी। इस काम के लिए परिवार के बड़े बेटे को चुना गया, जो हालांकि यहां जर्मनी में पला बड़ा हुआ पर इस काम को मना करने की हिम्मत नहीं कर सका। उसके दादा ने तुर्की ने पिस्तौल मंगवाई। यह तो पता चल गया था कि अपराध के समय 'ओरकान' अकेला था, पर अपराध के लिए उसके पिता, दादा और अन्य परिवार वालों को उसे उकसाने और मदद करने के लिए किस हद तक दोषी ठहराया जा सकता था, काफी छानबीन से भी इसका निर्णय नहीं हो सका। अपराध के बाद उसने पिस्तौल वापस दादा को दे दी थी। वह पिस्तौल भी आखिर हमें उनके घर के पास की इमारत के कचरे में मिल गई। ओरकान को हत्या के प्रयास के मामले में आठ साल की सज़ा हुई। उसके पिता ने अपने बेटे को 'एक अच्छा बेटा' कहते हुए बड़े गर्व के साथ उसकी सज़ा को स्वीकार किया। उनके लिए परिवार का सम्मान लड़के की पढ़ाई और उसके भविष्य से अधिक महत्वपूर्ण था। यह एक ऐसी घटना थी जिसमें एक जर्मनी में पला बड़ा, बुद्धिमान, पढ़ाई में अग्रणी और सबका प्यारा लड़का अपने परिवार के मध्ययुगीन सिद्धान्तों से बाहर नहीं निकल सका।