रविवार, 21 अप्रैल 2013

बर्लिनाले 2010 में लिया भारत ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा



जहां इस वार्षिक बड़े फिल्म उत्सव में भारत की एक दो फिल्में ही हिस्सा ले पाती थीं, इस बार फरवरी में बर्लिन आयोजित हुए उत्सव में भारत की आठ फिल्मों ने विभिन्न श्रेणियों में हिस्सा लेकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। सर्वोच्च पुरस्कार प्रतियोगिता के लिए 'My name is Khan' नामांकित हुई थी, पर क्योंकि यह पहले ही भारत में रिलीज़ हो चुकी थी, इस लिए प्रतियोगिता से हटा दी गई। फोरम नामक श्रेणी में, जिसमें फिल्म दिखाने के साथ कई वार्ताओं का आयोजन भी किया जाता है, कोंकणी फिल्म 'Man beyond the bridge' प्रदर्शित की गई। इस फिल्म एक मानसिक रूप से बीमार महिला के प्रति समाज का रवैया दिखाया गया है जो यह सोचता है कि मानसिक रूप से बीमार लोग ठीक नहीं हो सकते और उन्हें परिवार बसाने का अधिकार नहीं है। इसी श्रेणी में भारतीय फिल्म निर्माता मधुश्री दत्ता द्वारा कई छोटी छोटी प्रायोगिक फिल्में, मल्टी मीडिया और एनीमेशन सामग्री पोस्टरों आदि की प्रदर्शनी भी लगाई गई। बर्लिन दूतावास के सूचना विभाग से श्री आशुतोष अग्रवाल से सूचना मिली है कि इस प्रदर्शनी को जर्मनी में लाना बहुत महंगा काम था। इस लिए भारतीय दूतावास ने भी लगभग साढे तीन लाख रुपए (€5000) का योगदान करके इसे बर्लिनाले में भाग लेने में मदद की। पैनोरामा श्रेणी, जिसमें स्थापित निर्देशकों द्वारा किए गए नए प्रयोगों को महत्व दिया जाता है, में बंगाली फिल्म 'Just another love story' प्रदर्शित की गई। एक नई श्रेणी 'जेनरेशन' जिसमें एक खास आयु वर्ग के दर्शकों के लिए फिल्में दिखाई जाती हैं (इस स्थिति में बच्चों और किशोरों के लिए), में उमेश कुलकर्णी की फिल्म 'विहीर' और देव बेनेगल द्वारा निर्देशित 'रोड' दिखाई गईं। कुलिनरी सिनेमा नामक श्रेणी, जिसमें फिल्म देखने के साथ साथ डिनर का भी प्रबंध किया जाता है, में श्याम बेनेगल की फिल्म मन्थन दिखाई गई। इसके अलावा उत्सव में बाज़ार भी आयोजित किया गया जिसमें निर्माता कंपनियां विदेसों में अपने लिए योग्य वितरक खोज सकती हैं। इसमें भी कई भारतीय कंपनियों ने हिस्सा लिया। आमिर खान द्वारा निर्मित 'पीपली लाईव' के अधिकार पोलैण्ड की एक कंपनी ने खरीद लिए हैं।श्री आशुतोष अग्रवाल का कहना है कि विदेश के सन्दर्भ में आज का भारतीय फिल्म उद्योग न केवल  सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी। बहुत सी भारतीय फिल्में भारत की बजाए विदेशों में अधिक कमाई करती हैं। इस लिए दूतावास भारतीय फिल्म कंपनियों और प्रदर्शकों को विदेशी वयापार मेलों में हिस्सा लेने के लिए हर ओर से मदद करता है।