शनिवार, 20 अप्रैल 2013

भारतीय संसद में अपनी भाषाएं क्यों नहीं बोली जाती?

In a country like India, where English is only understood by 2% population, English is the prime language for administration, judiciary, higher education, research and even parliament. R.P.Sharma analyses.

मुगल भारत के शासक बने तो उन्होंने अपनी मातृभाषा को हमारे देश पर थोपा। अंग्रेज़ आए तो उन्होंने अपनी मातृभाषा को शासकीय भाषा बनाया। वे शासक थे, हम गुलाम। यह बात समझ आ सकती है कि हम उस समय विवश थे। आक्रान्ताओं ने अपने अपने देशों से हज़ारों किलोमीटर की दूरी पर भी भारत में अपनी मातृभाषा में ही राजकाज के कार्य करने उचित समझे, हालांकि उस समय भारत में कोई भी उनकी भाषा समझने वाला नहीं रहा होगा।

आज इसके बिलकुल विपरीत है। अभी भी भारत में उन भाषाओं को समझने वालों की संख्या दो प्रतिशत से अधिक नहीं है। अन्तिम विदेशी शासन को समाप्त हुए 63 साल होने वाले हैं। करोड़ों देशवासियों की भाषा वह भाषा नहीं है जो कि भारत के सर्वोच्च स्तर पर यानि संसद में एवं शासक वर्ग में प्रयोग की जा रही है।

फिर आज आज़ाद भारत में आक्रान्ताओं की भाषा राजभाषा, प्रशासनिक, न्यायालयों की भाषा किस औचित्य से है? क्या यह लंबी पराधीनता की निशानी है? क्या शासक वर्ग भारत को गुलाम बनाने वालों की भाषा का प्रयोग कर अपने को उनके स्तर पर समझकर जनता को गुलामी की याद दिलाना चाहता है? क्या ये हमारे वही प्रतिनिधि हैं जो हर पांच वर्ष बाद जनता से वोट लेने के समय उन्हीं की भाषा में बात करते हैं पर दिल्ली जाकर भूल जाते हैं? क्या इसे नाटकबाज़ी कहना अनुचित होगा?

द्वितीय महायुद्ध के बाद जर्मनी को चार विजेता देशों ने आपस में बांटा। पर कोई भी विदेशी भाषा जर्मनी की राजभाषा नहीं बन सकी। पूर्वी जर्मनी, जो पूर्णतया रूस के अधीन था, वहां भी जर्मनी की अपनी भाषा ही राजभाषा बनी रही और है। हालांकि अमरीका ने मार्शल प्लान के अन्तर्गत पश्चिमी जर्मनी को पुनर्जीवित किया, फिर भी उस देश की भाषा बोलने के लिए जर्मन लोग लालायित नहीं हुए, और अभी भी नहीं हैं। यहां तक कि भारत की तरह केवल अंग्रेज़ी माध्यम के कॉलेज और विश्वविद्यालय भी नहीं हैं। लोग अंग्रेज़ी पढ़ते हैं, जानते हैं, पर किसी भी प्रशासनिक स्तर पर उसका नामो निशान नहीं है।

भारत छोड़ते समय इंगलैण्ड वाले भारतीय संसद भवन में ऐसा कौन सा अलादीन के चिराग जैसा कोई यन्त्र रख गए हैं कि वहां घुसते ही हमारी भाषा बोलने वाले हमारे ही प्रतिनिधि तोते की तरह विदेशी भाषा बोलने लग पड़ते हैं, जिसका भाषाई लय युक्त सही उच्चारण भी वे नहीं कर पाते?

क्या संसद इस शर्मनाक विषय पर विचार करेगी?

-राम प्रहलाद शर्मा, अनुवादक, म्युनिक