रविवार, 28 अप्रैल 2013

City libraries in Munich

भारतीय कार्यक्रम करवाना नहीं इतना आसान

कुछ वर्षों से जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों में भारतीय संस्कृति को विशिष्ट पहचान मिलने लगी है जो यहां बढ़ते हुए प्रवासी भारतीय समुदाय को अपनी जड़ों से जुड़े रहने के लिए एक मौका प्रदान करती है। इसलिए हर बड़े छोटे शहर में कई तरह की भारतीय संस्थाएं उभरने लगी हैं। पर फिलहाल यह क्षेत्र इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि समूचे भारत की विविध संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करने वाली कोई बड़ी संस्था खड़ी हो सके। खासकर अभाव है स्थानीय प्रतिभा का। विदेश में रहने वाले अधिकतर प्रवासी भारतीय काम काजी लोग हैं। अगर किसी में कोई प्रतिभा है भी तो वह केवल शौकिया तौर पर कर पाता है। ऐसे में भारतीय संस्थाओं के लिए अच्छे कार्यक्रम करवा पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। हालांकि जर्मनी में भारत का शास्त्रीय नृत्य और शास्त्रीय संगीत ही भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता आ रहा है, पर यह खुद भारतीयों के लिए उतना आकर्षक नहीं। कुछ सालों से हिन्दी फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ने से bollywood dance की लोकप्रियता बढ़ी है। इसलिए हर बड़े शहर में पर्याप्त जर्मन नृत्य कलाकार उभर कर आए हैं, जो bollywood नृत्य में माहिर हैं। पर ये कलाकार व्यावसायिक होते हैं, खूब पैसा लेते हैं और अधिकतर बड़े या सरकारी कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। ऐसे में छोटी मोटी भारतीय संस्थाएं फिर से अकेले पड़ जाती हैं। इसलिए अभाव है प्रवासी भारतीय प्रतिभा का। Frankfurt के भारत संघ से अनिल कुमार कहते हैं 'प्रतिभा की इतनी कमी है कि आधे घण्टे का कार्यक्रम आयोजित करवाना भी मुश्किल हो जाता है। अगर थोड़ी बहुत भारतीय प्रतिभा है भी, वह भी बिना पैसे के बात नहीं करती। भारत संघ जैसी संस्थाएं प्रवासी भारतीय परिवारों में संस्कृति को बचाए के लिए होती हैं और मूलतः दान आदि पर चलती हैं। हमारा उद्देश्य है यहां रह रही भारतीय प्रतिभा को आगे बढ़ने का मौका देना, उन्हें लोकप्रियता के लिए एक मंच देना। पर प्रवासी भारतीय कलाकारों को भी हमारी मजबूरी समझनी चाहिए।'

शुरू शुरू में विभिन्न भारतीय समुदायों की संस्थाएं बनीं। तमिलों की, पंजाबियों की, बंगालियों की, गुजरातियों की, तेलुगू लोगों की या मल्लूओं की। पर ये अलग अलग बड़े स्तर पर कार्यक्रम नहीं कर पाती हैं। इसलिए अब चलन आ रहा है मिलकर थोड़े बड़े स्तर पर कार्यक्रम करने का। विश्व हिन्दू परिषद, Frankfurt से सरबजीत सिंह सिद्धू- 'हमने कई बार केरला समाजम या बंगाली समूहों से कार्यक्रमों को उधार लेकर उन्हें अपने कार्यक्रमों में जगह दी है। इससे भारत का सच्चा प्रतिनिधित्व होता है, कार्यक्रम मनोरंजक और विविधतापूर्ण बनता है। हर तरह के कार्यक्रम का अपना महत्व और अपने दर्शक होते हैं। पंजाब का भांगड़ा, दक्षिण भारत के शास्त्रीय नृत्य के तो अब पर्याप्त कलाकार मिलने लगे हैं, पर अभी राजस्थान, उत्तरप्रदेश आदि कई प्रदेशों की नृत्य शैलियों की कमी है। अगर हम अपने देश के ही तमाम नृत्य और गायन शैलियों में प्रतिभा उभार सकें तो हमें केवल कार्यक्रम लम्बा करने के लिए अन्य देशों के कार्यक्रम नहीं डालने पड़ेंगे।'

Interesting Indians in Germany

http://www.hindiheute.de/images/10a.jpg
फ्रैंकफर्ट के पास Friedberg के निवासी विनोद कुमार पेशे से software engineer रहे हैं। पर सेवा-निवृत्त होने के बाद उन्होंने अपना जीवन हिन्दी को समर्पित कर दिया है। वे Vochshochschule में हिन्दी पढ़ाते हैं, निजी पाठ्यक्रम भी चलाते हैं। इसके अलावा उन्होंने स्व-प्रकाशन द्वारा हिन्दी सीखने के लिए कई अनोखी पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं जो उनके वेबसाइट द्वारा मंगाई जा सकती हैं। उनके वेबसाइट से आप जर्मन-हिन्दी शब्दावली, मुहावरे, शरीर के अंगों के नाम, रंगों के नाम, भजन आदि बहुत सी सामग्री डाउनलोड कर सकते हैं।
www.hindiheute.de
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बर्लिन निवासी मेकैनिकल इञ्जीनियर नबीनानन्दा घोष 1962 से जर्मनी में हैं। काम के साथ साथ अपनी भाषा बंगाली की सेवा भी खूब कर रहे हैं। उन्होंने भी स्व-प्रकाशन द्वारा लगभग चालीस हज़ार शब्दों वाले जर्मन-बंगाली और बंगाली-जर्मन शब्दकोष प्रकाशित किए हैं। इनके अलावा उन्होंने एक जर्मन-बंगाली-जर्मन भाषा गाइड प्रकाशित किया है जिनमें दोनों भाषाओं के आम जीवन में काम आने वाले वाक्य दोनों लिपियों में उच्चारण के साथ दिए हुए हैं। ये पश्चिम बंगाल या बंग्लादेश का भ्रमण करने वाले जर्मन लोगों के लिए भी उपयोगी है और जर्मनी का भ्रमण करने वाले बंगाली लोगों के लिए भी। इसके अलावा उन्होंने लोकप्रिय जर्मन परी कथा लेखक Brüder Grimm की लगभग पन्द्रह परी कथाओं को बंगाली भाषा में अनुवाद करके भी एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है।
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परिवार से खाली समय पाकर फ्रैंकफर्ट निवासी दीप्ति अग्रवाल गैर भारतीयों को भारतीय संस्कृति से अवगत करवाने के लिए महीने में दो बार 'Indian culture eveníng' का आयोजन करती हैं। इसमें वे लोगों के छोटे से समूह को भारतीय आभूषणों, भोजन, मसाले और वीडियो द्वारा पर्यटन स्थलों के बारे में बताती हैं। software engineer जतिन अग्रवाल के साथ विवाहित केवल तीन साल से जर्मनी में रह रही दीप्ति अग्रवाल ने जब देखा कि यहां लोगों को भारतीय भोजन और संस्कृति के बारे में जानने का बहुत शौक है पर भारतीय रेस्त्रां में भोजन इतालियन या मैक्सिकन भोजन की अपेक्षा बहुत मंहगा है तो उन्हें ऐसा कुछ आज़माने का विचार आया। सौभाग्य से उन्हें विभिन्न इण्टरनेट समूहों के द्वारा अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।
www.cookcurry.de

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

गरीबों के लिए कुन्दन - नारायण सेवा संस्थान (ट्रस्ट)



भारत में गरीबी अभी भी व्याप्त है। गम्भीर बीमारियों का इलाज करवा पाना गरीब लोगों के लिए अक्सर सम्भव नहीं हो पाता। यहां तक कि कई बार तो रोगों को असाध्य और प्रमात्मा का प्रकोप मान लिया जाता है। ऐसे में उदयपुर का नारायण सेवा संस्थान गरीब लोगों के लिए कुन्दन साबित हो रहा है जो हर वर्ष पोलियो और cerebral palsy जैसे गम्भीर रोगों से ग्रस्त हज़ारों गरीब लोगों का केवल मुफ्त इलाज ही नहीं करवाता बल्कि उन्हें रोजगार सिखा कर, कई बार तो शादी तक करवाकर पूर्ण रूप से उनका पुनर्वास सुनिश्चित करवाता है। नारायण सेवा संस्थान के संस्थापक महामण्डलेश्वर डाक्टर कैलाश मानव को भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल द्वारा पदमश्री सम्मान भी मिला।नारायण सेवा संस्थान से प्रेम प्रकाश माथुर का कहना है कि पोलियो का रोग आज तक पूरी तरह खत्म नहीं हो पाया है। भारत में अभी भी कोई दो करोड़ लोग पोलियो के ग्रस्त हैं। किसी समय तक यह रोग असाध्य माना जाता था। जन्म के दौरान ऑक्सीजन की कमी के कारण शिशु का कोई अंग काम करना बन्द कर देता है और वह पोलियो ग्रस्त हो जाता है। 1985 से चल रहे इस संस्थान के polio surgical hospital में भारत, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका से आने वाले लगभग 100000 गरीब बच्चों का शल्यक्रिया द्वारा पोलियो का इलाज किया जा चुका है। यहां प्रतिदिन 60-70 operations होते हैं। मरीज़ों की तादाद इतनी है कि 2013 तक waiting list चल रही है। पोलियो के अलावा यहां cerebral palsy (मस्तिष्क पक्षाघात) का भी इलाज होता है। इस रोग में बच्चे का दिमाग ठीक से काम नहीं करता, लार गिरती रहती है। अस्पताल में मरीज़ों का इलाज, रहना, खाना पीना, सब मुफ्त है। सम्पूर्ण भारत में इस संस्था की लगभग चार सौ शाखाएं हैं जहां समय समय पर पोलियो शिविर लगते हैं। शिविर के दौरान वहां डाक्टरों और attendents की टीम जाती है। जिन लोगों का इलाज शल्यक्रिया के द्वारा होना होता है उन्हें उदयपुर भेज कर इलाज किया जाता है। अन्य को वैसाखियां, त्रैपहिया आदि मुफ्त दी जाती हैं।

अस्पताल के अलावा यह संस्थान आवासीय विद्यालय और बाल गृह नामक दो अन्य योजनाएं भी चलाती है। निराश्रित बाल गृह में लगभग सौ अनाथ बच्चों के आवास और स्कूली पढाई का पूर्ण रूप से मुफ्त प्रबन्ध है। पुस्तकें, स्कूल का शुल्क, वर्दी आदि सब कुछ मुफ्त है। ये बच्चे अट्ठारह वर्ष की आयु तक यहां रहते हैं।  आवासीय विद्यालय में भी लगभग एक सौ गूंगे, बहरे और अन्धे बच्चों का रहने, खाने पीने और प्रशिक्षण का मुफ्त प्रबन्ध है।

नारायण सेवा संस्थान गरीब लड़के लड़कियों की शादी यानि wedlock भी करवाता हैं। अब तक 264 शादियां की जा चुकी हैं। एक परिचय सम्मेलन के द्वारा लड़के और लड़की को एक दूसरे से मिलने और पसन्द करने का मौका दिया जाता है।

इसके अलावा नारायण सेवा संस्थान का मुफ्त TV / VCR education center भी है जहां बच्चों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा बढ़ईगीरी आदि कई काम सिखा कर पोलियो ग्रस्त युवाओं को रोजगार के लायक बनाया जाता है। जहां तक हो सके, बाद में उन्हें वहीं काम पर रख लिया जाता है। इसके अलावा गरीब लोगों में मुफ्त अनाज, ऊनी कपड़े और कम्बल आदि बाण्टे जाते हैं।

यानि यह संस्थान लोगों की भौतिक, सामाजिक और आर्थिक पुनर्वास के लिए समर्पित है। और यह सम्भव है देश विदेश से लोगों के दान के कारण। एक मरीज़ की शल्यक्रिया और पुनर्वास पर लगभग पांच हज़ार रुपए का खर्च आता है। आप भी दान देकर इस पुण्य कार्य में भाग ले सकते हैं। एक बच्चे के इलाज और पुनर्वास के लिए पांच हज़ार रुपयों से लेकर एक हज़ार एक बच्चों के लिए इकत्तीस लाख रुपए तक दान दे सकते हैं। अगर यह दान भारत के भीतर से किया गया है तो यह राशि कर-मुक्त है। नारायण सेवा संस्थान सरकारी तौर पर पञ्जीकृत है और इसे FCRA प्रमाण पत्र के साथ विदेशों से दान स्वीकार करने की अनुमति प्राप्त है। संस्थान के बारे में तमाम जानकारी आप इस वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं- http://narayanseva.org/. आप दान इन बैंक खातों में दे सकते हैं- ICICI 00450100829, SBBJ 51004703443, PNB 2973000100029801, Union Bank 310102050000148.

फ्रैंकफर्ट निवासी श्री बृज मोहन अरोड़ा को उदयपुर के नारायण सेवा संस्थान की ओर से जर्मनी शाखाध्यक्ष के पद पर मनोनीत किया गया है। उन्होंने सितम्बर 2010 में संस्थान का दौरा किया। अगर आप नारायण सेवा संस्थान को दान भेजना चाहते हैं विस्तृत जानकारी श्री बृज मोहन अरोड़ा जी से भी ले सकते हैं। उनका सम्पर्क पताः

Brij Mohan Aurora
Sossenheimerweg 51
65843 Sulzbach (Taunus)
Germany
Email: bm.vhp81@gmail.com
Phone: +4969252691
Fax: +4969239547

चित्रों में फ्रैंकफर्ट निवासी श्री बृज मोहन अरोड़ा उदयपुर में नारायण सेवा संस्थान के पोलियो अस्पताल में पोलियोग्रस्त बच्चों को मिलते हुए।

 

सम्मान के लिए हत्या

म्युनिक आपराधिक पुलिस के हत्या आयोग के उप निदेशक, श्री Richard Thiess फिर से बसेरा के लिए एक सच्ची कहानी लेकर आए हैं।एक सुबह साढे तीन बजे मेरा कार्यालय वाला मोबाइल बज उठा और एक कर्मचारी ने बताया कि दक्षिण म्युनिक के किनारे एक रिहायशी इमारत के आगे एक तुर्की व्यक्ति को गोलियां मार कर बुरी तरह जख़्मी कर दिया गया है। उसकी जान खतरे में है और उसे एक अस्पताल में आपातकालीन शल्य चिकित्सा के लिए दाखिल किया गया है। अपराधी लापता है (या हैं)। अपराध स्थल की घेराबन्दी कर दी गई है और अपराधी की खोज जारी है। अभी इस अपराध का कोई गवाह नहीं है। मेरे वहां पहुंचने पर वहां पहले से ही कई पुलिस गाड़ियां खड़ी थीं। एक पुलिस अधिकारी ने मुझे स्थिति से अवगत कराया। अब तक की जानकारी के अनुसार घायल व्यक्ति अपनी पत्नी और बच्चे के साथ उस इमारत में रहता था। यह इमारत एक बड़े से वृद्ध आश्रम का हिस्सा थी जिसमें अधिकतर वृद्ध आश्रम के कर्मचारी ही रहते थे। प्रवेश द्वार के सामने ही एक छोटा सा जंगल था जहां से गोलियां दागी गई थीं। घायल व्यक्ति सुबह सब्ज़ीमण्डी में काम पर जाने के लिए निकला था। उसकी पत्नी ने अपने फ्लैट से गोलियों की आवाज़ें सुनी और अपने पति को दरवाज़े पर घायल पड़े हुए पाया। होश खोने से पहले उसने पत्नी को बताया था कि उसने किसी को नहीं देखा।

उस खुले से और बड़े से क्षेत्र की ठीक तरह से छानबीन करने, और कोई हथियार या सुराग ढूंढने के लिए मैंने करीब साठ सत्तर पुलिस-कर्मियों के दस्ते को बुलाया। कुछ कर्मचारी इमारत में रह रहे लोगों से और वृद्ध आश्रम के लोगों से पूछताछ कर रहे थे। कुछ गवाहों ने गोलियां चलने की आवाज़ के बाद वहां पास ही एक बजरी वाली सड़क पर किसी के चलने की आवाज़ भी सुनी थी। एक गवाह ने तो इसके बाद दूर किसी गाड़ी के चालू होने और तेज़ी से टायरों के घूमने और घिसटने की आवाज़ें भी सुनी थीं। वृद्ध आश्रम के अधिकारियों ने हमारा पूरा साथ दिया, बल्कि कड़कती ठण्ड वाली सुबह में हम करीब सत्तर लोगों को नाश्ते के लिए कॉफी और ब्रेड भी दी। अपराध स्थल पर हमें कुछ कारतूसों के कवर मिले। आपराधिक विभाग के खास अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि अपराधी ने अपने शिकार से कुछ कदमों की दूरी पर खड़े होकर ही गोलियां चलाई होंगी।  इतने में अस्पताल से सूचना आई कि सभी गोलियां शरीर के निचले हिस्से में लगी हैं। शिकार हुए व्यक्ति की हालत गम्भीर थी पर डॉक्टरों को उम्मीद थी कि वह बच जाएगा। इससे हमें लगा कि अपराधी का उद्देश्य शिकार की मर्दानगी को छीनना रहा होगा। इससे हमें छानबीन के लिए दिशा मिली कि हमें उसके जानकारों में ही पता लगाना होगा। हो सकता है किसी औरत का उसके साथ सम्बन्ध हो या फिर कोई औरत किसी बात का बदला लेना चाहती हो। अगले दिनों की छानबीन से यह विश्वास होने लगा कि यह मामला बदला लेने का ही है, हालांकि शिकार व्यक्ति का परिवार इस सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर देने में बहुत हिचकिचा रहा था।

पर एक बार शाम को छुट्टी के बाद हम चार लोग कार्यालय में केस पर चर्चा कर रहे थे कि टेलीफ़ोन की घण्टी बज उठी। दूसरी ओर से एक व्यक्ति ऐसे बोल रहा था जैसे वह कोई महत्वपूर्ण सूचना देने जा रहा हो। उसने बताया कि वह उस सुबह गाड़ी में बैठकर शहर की ओर जा रहा था। करीब सुबह तीन बजे वह वृद्ध आश्रम के आगे से गुज़रा। कि अचानक दीवार के पीछे से कोई निकला और गाड़ी के तेज़ प्रकाश के आगे से होकर तेज़ी से सड़क पार कर गया। उसने आती हुई गाड़ी की ओर ध्यान भी नहीं दिया, न ही उसने टकराने की कोई परवाह की। बड़ी मुश्किल से उसने गाड़ी को घुमा कर टक्कर होने से बचाया। वह कोई अट्ठारह बीस साल का और कोई पौने दो मीटर लम्बा, काले बालों वाला लड़का था। बिना गाड़ी की ओर ध्यान दिए वह लड़का वहां पड़े कचरे के डिब्बों की ओर भाग गया। गवाह इससे बहुत चौंका, इसलिए उसने शीशे में से पीछे देखने के लिए गाड़ी धीमी कर दी। तभी उसने देखा कि पीछे से तेज़ प्रकाश के साथ एक गाड़ी चालू हुई और तेज़ी से उसे पीछे छोड़ती हुई शहर की ओर चली गई। हालांकि अन्धेरे के चलते वह देख नहीं सका कि गाड़ी में कितने लोग थे, पर गाड़ी का मॉडल और नम्बर वह नोट कर पाया। यह एक पुरानी नीली मर्सिडीस थी। उसका बयान हमारी अब तक की जानकारी के साथ पूरी तरह मिल रहा था। इस जानकारी से हमारा काम बहुत आसान हो गया। हमने गवाह को कार्यालय में बुलाकर उसका बयान नोट कर लिया।

हमने पता लगाया कि यह गाड़ी शिकार हुए व्यक्ति के अंकल 'ओरहान' की है जिसके दो पुत्र थे। दोनों युवा थे। एक पढ़ाई खत्म करने वाला था। उसका हूलिया हमारे बयानों में बताए गए व्यक्ति से एकदम मिल रहा था। अब क्योंकि उस गाड़ी के गुम होने की रिपोर्ट नहीं लिखवाई गई थी, इसलिए हमने ओरहान के विरुद्ध हत्या में साथ देने के सन्देह का वारण्ट जारी करवा कर उसे उसके घर जाकर गिरफ्तार कर लिया। उसने बताया कि उसके दोनों बेटे घर पर नहीं हैं। वे अपने मर्ज़ी से घर आते जाते हैं, कई बार तो किन्हीं लड़कियों के पास ही अपने दिन गुज़ारते हैं। उसके घर की तलाशी से भी कुछ खास हाथ नहीं लगा। ओरहान पूछताछ में काफी आनाकानी कर रहा था। पर उसे उस रात जेल में ही रहना पड़ा। अगली सुबह ही उसके बड़े बेटे 'ओरकान' ने फोन करके अपने चचेरे भाई पर हमला करने का अपराध स्वीकार कर लिया और कहने लगा कि उसके पिता को छोड़ दिया जाए। उनका इस अपराध से कोई लेना देना नहीं हैं। उनकी गाड़ी भी उसने बिना बताए उपयोग की और अपराध के बाद वापस रख दी। उसके बाद वह अपनी गर्लफ़्रेण्ड के घर जाकर छुप गया और तुर्की चला गया। पर ऑस्ट्रिया में से गुज़रते हुए उसे अपने पिता की गिरफ्तारी का पता चला, और अब वह वापस म्युनिक आ रहा है और वापस आते ही खुद को पुलिस के हवाले कर देगा। बिना किसी प्रश्न की प्रतीक्षा किए उसने फोन रख दिया। हमें आश्चर्य हुआ कि क्या वह सचमुच अकेला था या अपने पिता का अपराध छुपाने के लिए सारा दोष अपने सर पर ले रहा है?

हमें ज़्यादा इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। अगली सुबह वह हमारे सामने था। उसने बताया कि शिकार हुआ उसका चचेरा भाई उनकी रिश्तेदारी में एक लड़की के साथ अवैध सम्बन्ध बढ़ा रहा था। वह लड़की मानसिक रूप से थोड़ी कमज़ोर थी और थोड़ी देर बाद उसकी शादी तुर्की में उसके एक दूर के चचेरे भाई के साथ कर दी गई थी। इसके साथ मामला खत्म हो गया था। पर एक दिन लड़की के पति को उसके अतीत के बारे में पता चला और इसके बारे में पूछना शुरू कर दिया। लड़की ने स्वीकार कर लिया कि उसके एक चचेरे भाई के साथ सम्बन्ध थे। लड़की के पति को लगा कि उसके साथ धोखा हुआ है। उसने लड़की के माता पिता को इसके बारे में बताया। परिवार वालों ने लड़की के बयान की सच्चाई जानने का फैसला किया। लड़की के माता पिता की अनुमति के बाद लड़की के भाई और एक अंकल एक बहाना बनाकर उसे म्युनिक शहर के बाहर एक जंगल में ले गए और उससे पूछताछ शुरू कर दी। उसपर कई घण्टे तक अत्याचार किए गए और दुर्व्यवहार किया गया। उससे सच उगलवाने के लिए उसे मारने की धमकी भी दी गई। लहूलुहान करके उस लड़की को वापस उसके माता पिता के हवाले किया गया, जिन्होंने उसे अस्पताल में दाखिल करवाया। लड़की के पिता तो लड़की का सम्मान वापस दिलाने में मदद करने के लिए उनके आभारी थे। कई दिनों तक लड़की का उपचार जारी रहा।

पर अत्याचार के बावजूद लड़की अपने शब्दों पर दृढ़ रही। इसलिए परिवार वालों ने उसके आशिक की मर्दानगी छीनकर परिवार का सम्मान वापस लेने का निर्णय लिया। उसकी सम्भवत मृत्यु की किसी को परवाह नहीं थी। इस काम के लिए परिवार के बड़े बेटे को चुना गया, जो हालांकि यहां जर्मनी में पला बड़ा हुआ पर इस काम को मना करने की हिम्मत नहीं कर सका। उसके दादा ने तुर्की ने पिस्तौल मंगवाई। यह तो पता चल गया था कि अपराध के समय 'ओरकान' अकेला था, पर अपराध के लिए उसके पिता, दादा और अन्य परिवार वालों को उसे उकसाने और मदद करने के लिए किस हद तक दोषी ठहराया जा सकता था, काफी छानबीन से भी इसका निर्णय नहीं हो सका। अपराध के बाद उसने पिस्तौल वापस दादा को दे दी थी। वह पिस्तौल भी आखिर हमें उनके घर के पास की इमारत के कचरे में मिल गई। ओरकान को हत्या के प्रयास के मामले में आठ साल की सज़ा हुई। उसके पिता ने अपने बेटे को 'एक अच्छा बेटा' कहते हुए बड़े गर्व के साथ उसकी सज़ा को स्वीकार किया। उनके लिए परिवार का सम्मान लड़के की पढ़ाई और उसके भविष्य से अधिक महत्वपूर्ण था। यह एक ऐसी घटना थी जिसमें एक जर्मनी में पला बड़ा, बुद्धिमान, पढ़ाई में अग्रणी और सबका प्यारा लड़का अपने परिवार के मध्ययुगीन सिद्धान्तों से बाहर नहीं निकल सका।

जर्मन लोगों द्वारा लिखी गई पुस्तकें

मार्च 1998 में ऑस्ट्रिया में दस वर्षीय Natascha Kampusch का स्कूल जाते हुए एक व्यक्ति अपहरण कर लिया था। उसने उसे आठ वर्ष तक अपने घर में बन्दी बना कर रखा। 2006 में अट्ठारह वर्ष की आयु होने के बाद वह भागने में सफल हुई। अब उसने अपने बन्दी जीवन पर पुस्तक लिखी है '3096 दिन'।




Robert Enke, एक राष्ट्रीय फुटबाल खिलाड़ी ने 10 नवम्बर 2009 को रेल के नीचे आकर जान दे दी थी। वह फुटबॉल में दबाव के कारण बहुत depression में था। उनकी पत्नी के साथ मिलकर एक जाने माने खेल पत्रकार ने उनकी जीवनी लिखी है।
http://www.piper-verlag.de/sachbuch/buch.php?id=16670




तुर्कियों के विरोध में पुस्तक लिखने की भारी कीमत

Deutsche Bundesbank के कार्यकारी बोर्ड के सदस्य Thilo Sarrazin ने जर्मन समाज में आत्मसात न होना चाहने वाले प्रवासी लोगों और उनपर की जाने वाली राजनीति पर चोट करते हुए एक पुस्तक लिखी है 'Deutschland schafft sich ab'. इस पुस्तक में उन्होंने खासकर तुर्की मुस्लिम लोगों को निशाना बनाया है। इसके कारण एक ओर उन्हें बहुत से जर्मन लोगों का गुपचुप समर्थन मिला है, दूसरी ओर बैंक और राजनेताओं द्वारा घोर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि उन्हें बैंक में अपना पद से इस्तीफा भी देना पड़ा। यही नहीं, उन्हें SPD पार्टी से निकाले जाने पर भी विचार हो रहा है। बहुत से लोग तो उनके द्वारा दिए गए तथ्यों को गलत और बेवकूफी भरा मानते हैं। पर उनकी पुस्तक की खूब बिक्री हुई है, थोड़े ही समय में कई संस्करण निकल चुके हैं और वे करोड़पति हो गए हैं।




Speed skating खिलाड़ी Claudia Pechstein ओलम्पिक खेलों में पांच बार स्वर्ण पदक, दो बार रजत पदक और दो बार कांस्य पदक जीत चुकी हैं। पर 2009 में उनके विरुद्ध doping का मामला सामने आने के बाद उनका career चौपट हो गया। इसके बाद उन्होंने आत्महत्या करने की भी सोची। अब उन्होंने सारी कहानी को एक पुस्तक का रूप दिया है 'Von Gold und Blut'
http://www.claudia-pechstein.de/




केन्द्रीय रक्षा मन्त्री की पत्नी Stephanie zu Guttenberg यौन शोषण के शिकार बच्चों के लिए प्रतिबद्धता से काम कर रही हैं। माता पिता के लिए बहुत सारी बातें लिए उन्होंने यह पुस्तक लिखी है 'Schaut nicht weg!', यानि आंख न चुराएं।

Stuttgart 21 - एक विवादास्पद परियोजना

Stuttgart में Deutsche Bahn द्वारा बनाए जा रहे नए भूमि-गत रेलवे स्टेशन को लेकर नागरिकों, कई संस्थाओं और राजनैतिक पार्टियों बहुत रोष है और रोज़ रेलवे स्टेशन के अन्दर बहुत विरोध हो रहा है। रोष के कई कारण बताए जा रहे हैं, जैसे अनुमान से कहीं अधिक खर्च, जो अधिक उपयोगी योजनाओं पर खर्च किया जा सकता है, रेलवे स्टेशन पर पड़ी 100 एकड़ ज़मीन जिसके ऊपर रेलवे स्टेशन को भूमि-गत बनाए जाने के बाद फ्लैट और shopping center आदि बनाए जाएंगे, जिनसे Stuttgart जैसे ऐतिहासिक और और सुन्दर शहर का पारम्परिक बाज़ार डूब जाएगा, इसके अलावा बहुत से पेड़ काटे जाएंगे और आस पास की प्रकृतिक सुन्दरता खराब हो जाएगी। फिलहाल बातचीत के का परिणाम निकलने तक निर्माण कार्य रोक दिया गया है। इक्कसवी शताब्दी को मद्देनज़र रखते हुए इस परियोजना का नाम Stuttgart 21 रखा गया है। फिलहाल शहर का मुख्य रेलवे एक ओर से बन्द है। यानि सारी रेलें वहां आकर खत्म हो जाती हैं और उसी ओर से वापस चली जाती हैं। इसलिए उन्हें आगे जाने के लिए एक लम्बा चक्कर लगाना पड़ता है। जैसे पेरिस से वियना जाने वाली रेलों को केवल इस शहर में से होकर जाने के लिए ही लम्बा रास्ता तय करना पड़ता है। इसलिए इसे भूमि-गत बनाने का प्रयत्न चल रहा है जिसमें रेलें एक ओर से जाकर सीधे दूसरी ओर से निकल जाएंगी। पर केवल इतनी सी बात के लिए खरबों का खर्च लोगों के गले नहीं उतर रहा है। दूसरी ओर अभी का स्टेशन यात्रियों के लिए सुविधाजनक है क्योंकि उन्हें एक प्लैटफार्म से दूसरे प्लैटफार्म पर जाने के लिए बार बार सीढ़ियां चढनी उतरनी नहीं पड़ती। और भी बहुत से बड़े शहरों के मुख्य रेलवे स्टेशन इसी तरह से बने हुए हैं, जैसे म्युनिक, फ्रैंकफर्ट, Wiesbaden आदि।

Feedback

  • बसेरा एक घरेलू पत्रिका है। इसमें इस तरह के लेख न डालें जैसे 'एक रात का साथी कैसे ढूंढें?'। सरबजीत सिंह सिद्धु, फ्रैंकफर्ट
  • यह वाला अंक (17) पहले वालें अंकों की अपेक्षा बहुत सुन्दर बना है। पृष्ठों के ऊपर शीर्षक काफी सुविधाजनक है। छोटी छोटी खबरें रोचक और पठनीय हैं। कवर सुन्दर बना है। अंक में पहले की तरह छोटी छोटी गल्तियां हैं, जैसे अंक का नंबर फिर से 16 लिखा हुआ है, अगले अंक की तिथि फिर से जुलाई 2010 लिखी हुई। एक पाठक, म्युनिक
  • पिछली पत्रिकाओं को भी पढ़ने लायक format में online रखें। भले ही login के साथ सही। प्रदीप सोनी, फ्रैंकफर्ट
  • नये आने वाले लोगों के लिए कुछ ऐसी महत्वपूर्ण सूचनायें होनी चाहिये जिससे लोग पैसा भी बचा सकें। जैसे मुझे पांच साल बाद पता चला कि कुवांरे लोगों को निजी मेडिकल बीमा सस्ता पड़ता है जिससे लगभग दो सौ यूरो हर महीने बचाये जा सकते हैं। एक पाठक, म्युनिक
  • थोड़ा धार्मिक matter भी डालें, लोग पसन्द करेंगे। यहां उन्हें इस चीज़ की ज़रूरत होती है। अविनाश लुगानी, बर्लिन
  • कुछ धार्मिक सामग्री और महान व्यक्तियों की वाणियां भी डाला करें। पुस्तक 'Vision of India' ('India council for cultural relations) में से कुछ सन्दर्भ लिए जा सकते हैं। जैसे गांधी जी ने कहा था कि मेरे लिए आज़ादी वो है जहां लड़कियां रात को भी बिना डर के बाहर गलियों में निकल सकें। नेहरू को आधा मुस्लमान माना जाता है लेकिन उन्होंने हिन्दू धर्म के लिए बहुत कुछ किया। उन्होंने कहा था कि भारत तब तक जीवित रहेगा जब तक महाभारत, रामायण जैसी कहानियां जीवित हैं। एक और पुस्तक उल्लेखनीय है 'The seven spiritual laws of success', दीपक चोपड़ा द्वारा। विजय शंकर लुगानी, म्युनिक
  • आयुर्वेद आदि पर लेख देने का कोई खास फायदा नहीं, क्योंकि भारतीय लोग तो इसे जानते ही हैं। पाक विधियों में कुछ जर्मन पाक विधियां भी होनी चाहिए। Christine Liedl, Munich
  • पत्रिका लगातार बेहतर हो रही है, लोग पढ़ने के लिए मांग कर भी ले जाते हैं। पत्रिका दिखने में भी बहुत अच्छी है और दाम भी उचित है। इस बार का कवर पेज बहुत अच्छा था। नॉन वेज जोक्स बच्चों के लिए अच्छे नहीं। कई लोगों का कहना है कि वे अन्तिम पृष्ठ फाड़ कर ही बच्चों को देंगे। इस बार का पाक विधि वाला पृष्ठ बहुत आकर्षक था। अपाहिज व्यक्तियों के लिए कानून वाला लेख पसन्द आया। लिज़्ज़त पापड़ वाला लेख भी बहुत अच्छा लगा। हमें तो पता ही नहीं था कि इन औरतों ने इतने छोटे से शुरूआत की थी। स्कूल के बारे में निर्णय वाला लेख बहुत उपयोगी था, हमारा बेटा भी अब स्कूल जायेगा।  उपयोगी सूचना वाले लेख तो हमेशा अच्छे ही लगते हैं। जर्मन और हिन्दी शब्दावली वाले पृष्ठ भी अच्छे हुआ करते थे। शर्मीला, म्युनिक
  • इस बार की तो सारी पत्रिका ही अच्छी थी। चुटकुले अच्छे नहीं लगे, low standard के लगे। एक दो जोक्स तो नहीं होने चाहिये थे। बाकी पत्रिका बहुत उपयोगी थी। मसालों की अजब कहानी, नेत्रहीन क्रिकेट, टैक्स बचाने की टिप्स बहुत अच्छी लगीं। स्कूल वाला लेख तो सबसे अच्छा था, मां बाप को इस बातों के बारे में बिल्कुल नहीं पता होता। कवर पेज अच्छा था। सत्य अपराध कथा अच्छी लगी। इस तरह की कहानियां और डाली जा सकती हैं। पहले जर्मन और हिन्दी अनुवाद डाला करते थे, वह उपयोगी था। सरबजीत कौर, म्युनिक
  • पिछले अंक (16) का हल्के रंगों वाला कवर अच्छा था। matter की quality अच्छी हो रही है, overall improvement है। कुछ और उपयोगी लेख डालें, जैसे अगर पत्नी जर्मनी आये तो उसके लिये नौकरी कैसे ढूंढें, driving license के लिये क्या करना पड़ता है, आदि। नए कानूनों के बारे में जानकारी अधिक होनी चाहिए। शेख इस्माइल, म्युनिक
  • सभी लेखों की अंग्रेज़ी में भूमिका बहुत उपयोगी है, interesting लगे तो पढ़ लो, नहीं तो छोड़ दो। इस बार का कवर पेज बहुत अच्छा लगा, बिल्कुल Indian, देखते ही Indian culture का पता चलता है। पाक विधियां अच्छी थीं। रेहाना, म्युनिक
  • 'एक रात का साथी' वाला लेख भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं। पर मैं मानता हूं कि अपनी संस्कृति अब कई संस्कृतियों का घालमेल हो गई है। पुराने ज़माने में लड़के लड़कियों को बहुत छूट हुआ करती थी। अजन्ता एलोरा की गुफायें इसका प्रमाण हैं। पर हिन्दी के बीच बीच में अंग्रेज़ी शब्दों का उपयोग मुझे अच्छा नहीं लगता। कई जर्मन इसपर हैरान होते हैं कि हमारी भाषा मं इसके लिए शब्द नहीं हैं। अनिल कुमार, फ्रैंकफर्ट।
  • बसेरा का concept अच्छा है। हमें सारा कुछ केवल अंग्रेज़ी में ही नहीं करना चाहिये, हिन्दी और अधिक काम होना चाहिये। अजीत कुमार, महाकोंसल, भारतीय कोंसलावास, फ्रैंकफर्ट
  • पत्रिका बहुत impressive है, बहुत अच्छा idea है। 45 साल पहले सिर्फ महाराजा, शेर या जानवरों की बातें होतीं थीं। अभी हिन्दुस्तानी का पता चलता है। मैं wish करता हूं कि यह चलता रहे, ऐसी चीज़ों की ज़रूरत है यहां पर। सत्यपाल चौधरी, Erlangen
  • अपाहिज लोगों के लिये कानून वाला लेख बहुत अच्छा लगा। इतनी विस्तृत जानकारी और कहां मिलती है? आम लोगों को तो इसके बारे में पता ही नहीं होता। ऐसी उपयोगी सूचनायें और होनी चाहिये। कुसुम चौधरी, Erlangen
  • बहुत अच्छी पत्रिका है। जर्मनी में बैठे बैठे यहां की और भारत की महत्वपूर्ण सूचनायें मिल जाती हैं, वे भी हिन्दी में, तो और क्या चाहिये? हम सचमुच प्रशंसा करते हैं। सतीश सेठी, म्युनिक
  • पत्रिका अच्छी है, पता चलता रहता है कि जर्मनी में क्या हो रहा है। रितेश अग्रवाल, Idar-Oberstein
  • सारे magazine में करीना कपूर की फोटो सबसे best है, वो भी कमर से नीचे नीचे। बाकी तो आप काट ही दो। अली, म्युनिक
  • आप बहुत अच्छी quality maintain कर रहे हैं। अब तो यह ऐसे ही लगती है जैसे भारत में India Today आदि पत्रिकाएं होती हैं। सुहास पटेल, फ्रैंकफर्ट
  • हमें तो अब पता चला है पत्रिका के बारे में। तीन साल से किसी ने बताया कि यह पत्रिका निकल रही है। पत्रिका की quality, छपाई आदि बहुत अच्छी है। हमने कई लेख पढ़े। राजेश वर्मा, Stuttgart
  • हमें यह जानकर बहुत खुशी हुई कि जर्मनी में हिन्दी पत्रिका बसेरा प्रकाशित की जा रही है। यहां रहने वाले भारतीय नागरिकों को यह अपनी संस्कृति और सुन्दर देवनागरी से संपर्क कराती रहेगी और इसके अलावा जो जर्मन नागरिक जो इण्डोलोजी पढ़ रहे हैं, उनके लिए भी उपयोगी हो सकती है। मोहिनी Heitel, फ्रैंकफर्ट
  • पत्रिका में भक्त सिंह जैसे लोकप्रिय देश भक्तों और गणतन्त्र दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिनों के बारे में भी लिखा जाना चाहिए। यहां रहने वाले बहुत से भारतीयों को इन चीज़ों का पता ही नहीं। उन्हें यह भी नहीं पता होता कि भारत के पहले राषट्रपति कौन थे। प्रकाश झा, सूर्य रेस्त्रां, म्युनिक।
  • 'बसेरा' हिंदी भाषा में छपने वाली जर्मनी की शायद पहली पत्रिका है। इस महान प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। इसकी छपाई और तस्वीरों का चुनाव उच्च श्रेणी का है। हिंदी भाषा की महारत भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। मुझे अब तक इसकी तीन प्रतियां उपलब्ध हुई हैं। भाषा और लेखों के स्तर में सुधार साफ़ दृष्टिगत होता है। जर्मन निवासी हिंदी भाषी होने के नाते इसकी दीर्घायु की मंगल कामना। Sushila Sharma-Haque, sushila1940@yahoo.de
  • 03.08.08, ॐ, मान्यवर श्री रजनीश जी, नमस्कार, आप की भेजी हुयी बसेरा की दोनों प्रतियां मिली, धन्यावद। जर्मनी की पहली हिन्दी पत्रिका के प्रकाशन पर मेरी शुभकामनाऐं। हिन्दी भाषा की सेवा के लिए आप बधाई के पात्र हैं। पत्रिका सुंदर बन पड़ी है। साज सज्जा तथा मुद्रण उत्तम है। भाषा मंझी हुई तथा सरल है। लेख विविधतापूर्ण, रोचक तथा मनोरंजक हैं। जर्मनी में रहने वालों के लिये यहां के नियमों की जानकारी जो अतिआवश्यक है, इसमें सुलभ है। प्रभु आपको सफ़लता दे, इसी प्रार्थना के साथ आपका शुभचिंतक, डा॰ अवनीश कुमार लुगानी, President, श्री गणेष हिन्दू मंदिर, बर्लिन, Heerstraße 7, 14052। Berlin, Tel: 030-3017353
  • 100608, प्रिय मंगला जी, मुझे बसेरा साईट देखने का मौका मिला, बड़ा अच्छा काम कर रहे हैं आप| मेरे बारे में आप इस लिंक पर काफी जानकारी प् सकते हैं. फ़िर भी कोई जानकारी आप चाहें तो मुझे मेल कर सकते हैं. आप ने जो वसूली पत्र का नमूना दिया है क्या ऐसे पत्र Germany के bankो द्वारा जरी किए जाते हैं? या आप ने इन्हें भारत में उपयोग की दृष्टि से दिया है? मैंने भी bank पत्राचार पर लिखा है. मैं एक जर्नlist हूं. आय की दृष्टि से क्या मेरे लिए लिखने का कोई काम है, आप की संस्था के पास. यदि हो तो मुझे सम्पर्क करें. उत्तर की आशा में. हरीश चन्द्र सन्सी, +919250309642, vividha.vidha@yahoo.com

Das Buch, das sich keiner von mir leihen wollte!



Karen Duve: Anständig essen - Das Buch, das sich keiner von mir leihen wollte!Bisher habe ich die Bücher, wenn sie gut waren und ich sie gelesen habe, weiter verliehen im Freundes- und Kollegenkreis. Normalerweise bin ich sie sofort "losgeworden", besonders, wenn es sich um aktuelle Bestseller handelt!

Von diesem Buch war ich begeistert, es ist interessant, informativ und trotzdem leicht zu lesen.  Karen Duve beschreibt ihren Selbstversuch als Vegetarierin, Veganerin und Frutarierin. Außerdem wird man mit Informationen zur Viehhaltung und Landwirtschaft in Deutschland versorgt. Und es ist teilweise witzig und nett geschrieben. Frau Duve wurde mir sehr symphatisch!

Am Ende des Buches wird klar, dass man sich nicht einfach ohne nachzudenken vom Supermarkt weiterernähren kann. Karen Duve schließt daher für sich einen Kompromiß, wie sie sich künftig ernähren will. Das Buch regt dazu an, sich auch zu entscheiden, was man in Zukunft essen will und was nicht.

Für mich war diese Entscheidung klar, ich bin bereits Vegetarierin. So wie auch Karen Duve, ist auch mir bewußt, dass man sich eigentlich vegan ernähren sollte. Aber mir ist es auch zu umständlich. Mittags esse ich in der Kantine und das wäre bei veganer Ernährung fast unmöglich. Also bleibe ich Vegetarier.

Da das Buch auffordert, seine Ernährung zu überdenken, verstehe ich, dass es keiner meiner Bekannten lesen wollte. Wenn man nichts weiß, muss man auch kein schlechtes Gewissen haben!

-Christine Liedl, München

भारतीय महाराजे हुए म्युनिक में जीवन्त

भारत के राजे महाराजे क्या थे, क्या पहनते खाते थे, उनका पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन कैसा था, उनके दोस्त दुश्मन कौन थे, समय के साथ उनका प्रभाव और प्रभाव क्षेत्र कैसे बदला? पिछली तीन सदियों के महाराजाओं की कहानी उस समय के असली चित्रों और वस्तुओं के साथ म्युनिक के Hypo Kunsthalle में देखने के लिए उपलब्ध है। इसमें लन्दन और भारत के कई संग्रहालयों से भारतीय राजाओं महाराजाओं के अमोल अद्भुत गहने, सिरपेच, वेशभूषाएं, चित्र, हथियार, सिंहासन, मुद्राएं आदि लाकर दिखाए गए हैं। यह प्रदर्शनी देख कर आपको सम्पूर्ण भारत में विभिन्न वंशों और जातियों के वैभव और समय के साथ उनकी  बदलती ताकत का पूर अन्दाज़ा हो जाएगा। पेशवा, अवधिए, मराठा, मुगल, राजपूत, सिख, सभी समुदाओं का धीरे धीरे अंग्रेज़ी राज में मिलन सचित्र दिखाया गया है। किस तरह राजे महाराजे केवल राजनैतिक हितों के लिए अनेक शादियां करते थे, एक ओर पारम्परिक वेषभषाएं पहन कर प्रत्यक्ष रूप से धार्मिक रसमें पूरी करते थे, अपने आप को भगवान का रूप बताते थे, दूसरी ओर वे पश्चिमी वस्तुओं, गहनों, वेशभूषाओं के शौकीन रहते थे। राजाओं रानियों के असली गहने, पदिकाएं, नवरत्न कड़े, हज़ारमुखी शैली में बने आभूषण, सरपटियां, कीमती पत्थरों से जड़े पगड़ी पर लगाने वाले सिरपेच (ऊपर चित्र), सोने के साथ तुलादान की रसमों के कई उदाहरण दिखाए गए हैं। हाथी पर बैठ कर शहर के भ्रमण को उतने ही आकार के धातु के हाथी घोड़ों के साथ, पूरी सजावट के साथ दिखाया गया है। जयपुर का शाही हौदा जिसे हाथी पर बैठने के लिए उपयोग किया जाता था, पीछे तीन चार लोगों द्वारा हिलाए जाने वाली मूर्छलें और चौरियां देखने के लिए उपलब्ध हैं। मेवार के राजा अमर सिंह, संग्राम सिंह, जवान सिंह से लेकर पटियाला के राजा भूपेन्द्र सिंह आदि अनेक राजाओं की शानो शौकत सचित्र दिखाई गई है। उन राजाओं और वंशों की आपस की लड़ाईयां, मुगलों और फिर अंग्रेज़ों का धीरे धीरे बढ़ता प्रभाव आपको पुस्तकें पढ़ने से इतना समझ नहीं आएगा जितना यह प्रदर्शनी देखकर। एक तरह से भारत का पूरा इतिहास आपकी आंखों के सामने जीवन्त हो जाएगा, असली चीज़ों, चित्रों, नक्शों, फिल्मों और व्याख्याओं के साथ। अकेले देखने के लिए भी कम से कम चार घण्टे चाहिए। अर चित्र और वस्तु की अंग्रेज़ी और जर्मन भाषा मे व्याख्या लिखी हुई है। सब कुछ आराम देखने और सारी व्याख्यायें पढ़ने के लिए आपको कम से कम चार घण्टे चाहिए। या फिर प्रतिदिन आयोजित होने वाले टूर में भी हिस्सा ले सकते हैं। पर यदि आप अधिक पढ़ना भी नहीं चाहते और टूर के साथ भी बात नहीं बन रही है तो आप वहां उपलब्ध एक वीडियो उपकरण को किराए पर लेकर भी प्रदर्शनी को अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस उपकरण पर लगे हेडफोन को कानों पर लगाकर आप प्रदर्शनी में घूम सकते हैं। इसमें अनेक मुख्य प्रदर्शित वस्तुओं और चित्रों के बारे में जर्मन और अंग्रेज़ी भाषा बोलकर समझाया गया है। इसमें कई अतिरिक्त वीडियो भी हैं। इस उपकरण का किराया है पांच यूरो। में यह प्रदर्शनी मई अन्त तक चलेगी। प्रदर्शनी में कैमरा ले जाना मना है।http://hypo-kunsthalle.de/newweb/maharaja.html

 

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

भारत में शादियों में क्या पहना जाता है?

कुछ समय पहले बसेरा बैठक में चर्चा हुई थी कि जर्मन पाठकों के लिए भारत सम्बंधी जर्मन भाषा में भी एक पृष्ठ रखा जाए। अब काफ़ी समय बाद किसी ने ऐसा कुछ लिखा है। बसेरा की सहायक Christine Liedl अभी भारत में अपने पति से मिलकर लौटी हैं। वहां उनका कई शादियों में जाना हुआ। वे शादी में लड़कियों द्वारा पहने जाने वाले परिधानों के बारे में लिखती हैं। वे लिखती हैं कि जहां जर्मनी में शादियों में जीन्स और टीशर्ट पहन कर जाना बेहूदा माना जाता है, वहीं भारत में लड़कियों के लिए जीन्स और टीशर्ट पहनना आज़ादी की निशानी है और वे शादियों में भी यह पहनने लगी हैं।

Was zieht man auf eine Hochzeit in Indien an?
Diese Frage hatten wir schon einmal lange auf dem Basera-Stammtisch diskutiert. Wir hatten uns dann auf einen Salwar Kameez geeinigt um uns anzupassen. Jetzt war ich gerade zwei Wochen in Haryana bei der Familie meines Mannes und hatte nicht bedacht, dass die Hochzeitssaison noch nicht zu Ende ist! Insgesamt wurde ich auf vier Hochzeiten mitgenommen und hatte nichts angemessenes zum Anziehen dabei. Durch die Fluggepäckbegrenzung auf zwanzig Kilos und die vielen Mitbringsel hatte ich nur Jeans und ein paar T-Shirts zur Auswahl. Also blieb mir nichts anderes übrig, als so zu Hochzeiten zu gehen. Ich fühlte mich natürlich sehr unwohl - in Deutschland wäre so eine Kleidung zu Hochzeiten undenkbar! Aber ich habe festgestellt, dass auch manche Inderinnen Jeans und T-Shirts trugen. Das war mir zuerst ziemlich unverständlich, inzwischen weis ich jedoch, dass eine Jeans nicht wie bei uns einfach ein bequemes und alltägliches Kleidungsstück ist, sondern ein Zeichen von Freiheit. 80 Prozent aller Inder leben in Dörfern, wo es den Frauen nicht erlaubt ist, etwas anderes als Salwar Kameez zu tragen. Wir werden daher um das Recht beneidet, Jeans tragen zu dürfen! Deshalb ist es auch völlig in Ordung, wenn wir das auch tun. Natürlich sollte die Kleidung jedoch ordentlich sein, sauber und gebügelt und die Schuhe geputzt sein.

Im Übrigen sind die Salwar Kameez, die auf Hocheiten getragen werden, sehr schön. Und es wird auch schöner Schmuck angezogen; es wäre also sehr schwer für uns in einem Salwar Kameez mitzuhalten. Außerdem habe ich bei meinen Beobachtungen auf den Hochzeiten noch gesehen, dass es derzeit modern ist, Anarkalis mit einem durchsichtigen Stoff an den Ärmeln anzuziehen. Dazu habe ich immer Moskitonetz gesagt, was stets für großes Gelächter sorgte. Aber ich halte das wirklich für eine sehr praktische Mode und es sieht auch noch hübsch aus.

 

द्विभाषीय बच्चों के लिए विशेष पुस्तकें

धीरे धीरे जर्मनी में इस तथ्य को समझा और स्वीकारा जा रहा है कि यहां दो से अधिक भाषाओं में पलने वाले बच्चों के लिए मातृ भाषा भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि जर्मन। पहले ऐसा नहीं था। अधिकतर इन बच्चों के एक या दोनों अभिभावक विदेशी होते हैं। इस विषय पर बहुत से seminar भी होने लगे हैं। इस दिशा में कदम रखते हुए Hueber प्रकाशन भी जल्द ही ऐसे बच्चों के लिए विशेष प्रकार की द्विभाषीय पुस्तकें बाज़ार में लाने जा रहा है। इस पुस्तकों का उद्देश्य बच्चों में स्कूल में प्रवेश करने से पहले जर्मन भाषा का पर्याप्त अभ्यास करवाना है। इन पुस्तकों में बहुत आकर्षक चित्रों और सीडी आदि के द्वारा दोनों भाषाओं में कहानियां, गीत आदि दिए गए हैं जो बच्चों की अपनी संस्कृति के क़रीब भी होते हैं। फिलहाल ये पुस्तकें जर्मन और अंग्रेज़ी, फ्रेंच, ग्रीकी, इतालवी, रूसी, स्पेनी या तुर्की भाषा के मेल से बनाई गई हैं। ये पुस्तकें धीरे धीरे kindergartens में भी प्रस्तावित की जाएंगी। Hueber प्रकाशन विश्व की बहुत भाषाएं सीखने के लिए पुस्तकें प्रकाशित करता है। एक विदेशी भाषा के तौर पर जर्मन भाषा सीखने के लिए भी अनेक पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं जो जर्मनी में रहने वाले विदेशियों के लिए उपयोगी हो सकती हैं। बसेरा द्वारा जर्मन लोगों के लिए Munich में माह में दो बार आयोजित हिन्दी कक्षा में भी Hueber प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'Einstieg Hindi' का अनुसरण किया जाता है।

http://www.hueber.de/bilibri

बोलने में है भाषा की शक्ति


Josef Oberbauer writes about the importance of spoken languages for the studies and growing tendency and need to save spoken languages.


ਆਮ ਬੋਲਚਾਲ ਦੀ ਬੋਲੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਅਭਿੰਨ ਅੰਗ ਹੁੰਦੀ ਹੈ. ਇਸਨੂੰ ਬਚਾਓਣਾ ਅਤੇ ਪੜਾਈ ਲਿਖਾਈ ਲਈ ਉਪਯੋਗ ਕਰਨਾ ਕਿੰਨਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਹੈ, ਲਿਖਦੇ ਹਨ ਮਉੰਸ਼ਨ ਤੋਂ ਜੋਸਫ ਓਬਰਬਾਵਰ.


पश्चिम को आज अगर प्राकृतिक विज्ञान और अविष्कारों का गढ़ माना जाता है, तो इसकी जड़ सदियों पुराने पुनर्जागरण (Renaissance) के समय में है जब लैटिन, ग्रीक और अरबी जैसी उच्च विकसित भाषाओं में लिखे गए प्रकृति के नियमों से सम्बंधित अनेक शोध कार्यों को सरल भाषाओं में उपलब्ध करवाने के प्रयास आरम्भ हुए। इटली के कवि दान्ते एलीगियरी (Dante Alighieri) ने अनेक महान कृतियों को 'दैवी हास्य' (The Divine Comedy, La Divina Commedia) नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ के रूप में न केवल सरल भाषा में अनुवाद किया बल्कि अपने ढंग से उन्हें दोबारा लिखा। मार्टिन लूथर (Martin Luther) ने बाईबल को जर्मन भाषा में अनूदित करके इसे सुलभ बनाया और जर्मन भाषा को एक नया जन्म दिया। हालांकि उस समय में बाईबल का अन्य भाषाओं में अनुवाद प्रतिबंधित था। पर उसने यह काम साक्सेन के राजा के संरक्षण में किया। विकसित भाषाओं के वर्चस्व को तोड़ने के इस युग को मानवतावाद का नाम दिया गया। अनेक मानवतावाद और पुनर्जागरण के लेखक आम बोले जानी भाषाओं के पक्के ज्ञानी थे और उन्होंने अपनी कृतियों में इनका भरपूर उपयोग किया, जैसे फ़्रांस के François Rabelais, स्पेन के Miguel de Cervantes और इंगलैण्ड के शेक्सपीयर। उनकी कृतियां उस समय के शब्दों, लोकोक्तियों और मुहावरों से भरपूर हैं। एक बोलचाल की भाषा अनेक उपभाषाओं, शब्दों और मुहावरों के द्वारा जीवन्त बनती है और इसमें सदियों तक जीवित रहने की ताकत होती है। और यह ताकत लोगों द्वारा बोले जाने से ही आती है। भाषा जीवन शक्ति और जीने की इच्छा की अभिव्यक्ति है। कभी न कभी मनुष्य को उसकी ओर ध्यान देना ही पड़ता है। जो भाषा की कद्र करता है, वह उसे बोलने वाले की भी कद्र करता है। कला और राजनीति तभी सफ़ल होते हैं जब वे लोगों की भाषा का आदर करें। हालांकि सरकारी नियम, नए विचार और विदेशी भाषाएं जैसे कई कारक बोलचाल की भाषा पर असर डालते हैं पर फिर भी इनका दमन या इन्हें खत्म करना असम्भव है। स्पेनी तानाशाह Francisco Franco ने दशकों तक स्पेन की Catalan, Basque कैसी कई छोटी भाषाओं को दबा कर रखा। उसके राज्य काल में स्पेनिश को छोड़ कर किसी और भाषा का उपयोग प्रतिबंधित था। लेकिन लोगों ने किसी तरह इन भाषाओं को छुपा कर जीवित रखा और उसके जाने के बाद फिर से जीवन्त किया। आज स्पेन के अन्दर ही कातालान भाषा के अपने टीवी चैनल, पुस्तकालय, समाचार पत्र पत्रिकाएं हैं। कातालान भाषा पूरी शिक्षा सम्भव है। इस भाषा को बोलने वाले 80 लाख लोग हैं। व्यवहारिक रूप में एक भाषा तभी मान्य है जब उस भाषा में स्कूलों में भूगोल, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, गणित, इतिहास आदि सभी विषय पढ़ाए जाते हों, प्रबंधन और बोल चाल में उसका उपयोग होता हो, टीवी, पत्र, पत्रिकाएं आदि संचार माध्यम उस भाषा में उपलब्ध हों। आज जैव विविधता के संरक्षण के युग में बहुत सी लुप्त हो रही भाषाओं को दोबारा खोजा जा रहा है, उन पर अनुसंधान किया जा रहा है और उन्हें संरक्षित किया जा रहा है जैसे मध्य अमरीका की कई भाषाएं। आइए उम्मीद करें कि ये भाषाएं केवल किसी संग्रहालय का हिस्सा बन कर नहीं रह जाएंगी बल्कि फिर से जीवन्त भाषाएं बन पाएंगी।

-Josef Oberbauer


Wenn der Westen als Ort der Naturwissenschaften und der Entdeckungen gilt, dann ist zu beachten, dass diese Denkweise und Lebensform viele Jahrhunderte vorher aus dem Respekt und der Neugier für die tatsächlich gesprochenen Sprachen entsteht. Der Erforschung der Naturgesetze geht im 15. Jahrhundert die Wiedergeburt (Renaissance) des pragmatischen Denkens der Antike voran. Die Voraussetzung dafür aber liegt in einer neuen Einschätzung der Sprache. Dante Alighieri (1265-1321) erreicht in Italien sein Publikum indem er sich der gesprochenen Sprache bedient, die er zur Kunstform entwickelt. Die Autoren des Humanismus und der Renaissance wie Rabelais in Frankreich (1494-1553), Cervantes in Spanien (1547-1616) und Shakespeare in England (1564-1616) besitzen umfassende Kenntnis der gesprochenen Sprache und nehmen diese in vollem Umfang in ihre Werke auf, so dass diese Enzyklopädien der Wörter und Sprichwörter ihrer Zeit darstellen. Eine gesprochene Sprache setzt sich aus Dialekten, Jargons und Redeweisen zusammen, die nebeneinander und miteinander bestehen.

Die gesprochenen Sprachen überdauern die Jahrhunderte, weil sie stark sind. Sie sind stark weil sie von Menschen gesprochen werden. Sprachen sind Ausdruck von Lebenskraft und Lebenswillen. Sie erzwingen über kurz oder lang dass man sie beachtet. Wer eine Sprache achtet, zeigt damit zugleich, dass er ihre Sprecher achtet. Kunst und Politik sind erfolgreich, wenn sie mit der gesprochenen Sprache rechnen. Während zahlreiche Faktoren wie staatliche Verordnungen, Neuerungen sowie Fremdsprachen auf die gesprochene Sprache einwirken, ist es unmöglich, eine gesprochene Sprache zu unterdrücken oder zu beseitigen. Heute, im Zeitalter des biologischen Artenschutzes, werden auch sehr selten gewordene Sprachen wie z.B. einige Sprachen Mittelamerikas, gesucht, erforscht und bewahrt. Bleibt zu hoffen, dass diese Sprachen nicht nur als Museumsstücke, sondern als lebendige Sprachen erhalten werden.

-Josef Oberbauer

म्युनिक में देखें पूरा जर्मनी

जर्मनी में हर तरह के landscapes पाए जाते हैं, दक्षिण में बवेरिया के बर्फीले पहाड़, उत्तरी तट पर उत्तरी सागर, पूरब में Bodensee जैसी बड़ी झील, Mainau जैसे गर्म टापू, मध्य में Rhein जैसे बड़े दरिया, Ruhrgebiet जैसे खानों और औद्योगीकरण के क्षेत्र, Lünenburg में गर्म और सुन्दर बड़े बड़े हरे भरे मैदान। लेकिन क्या आप इन सभी जगहों और वातावरणों का एक ही जगह मज़ा ले सकते हैं? हां, वह भी म्युनिक में।म्युनिक के पूरब में Miniland नामक एक जगह पर पूरे जर्मनी को एक 400 वर्गमीटर बड़े हॉल में छोटे से मॉडलों के रूप में देखा जा सकता है। बवेरिया में Walchensee नामक झील पर बना पनबिजली संयन्त्र, जर्मनी का सुन्दर और बड़ा दरिया Rhein और उसके किनारे बने हुए वाइन के अंगूरों के खेत, और किले जिनके द्वारा पुराने समय में वहां के राजा दरिया में से बहने वाले समुद्री जहाज़ों से चुंगी वसूल किया करते थे, एक चलता हुआ बिल्कुल असली दिखने वाला हवाई अड्डा जिसमें आप हवाई जहाज़ को सचमुच उड़ते और उतरते हुए देख सकते हैं, उत्तरी सागर किनारे बने सुन्दर beach और उनमें नहाते हुए लोग, उसी में बना हुआ समुद्र में से तेल निकालने वाला संयन्त्र, Ruhrgebiet में कोयले की खानें, लोहे को साफ करने के कारखाने और वहां कर्मचारियों के रहने वाले घर, बाग, बवेरिया प्रान्त के Lindau शहर में Bodensee नामक झील में शेर के बुत और lighthouse के साथ बनी हुई बन्दरगाह, इसी झील में उष्णकटिबंधीय वातावरण वाला Mainau नामक टापू जहां मौसम गर्म होने के कारण ऐसे पेड़ पौधे उगते हैं जो बाकी जर्मनी में नहीं पाए जाते, फुटबॉल स्टेडियम, घुड़सवारी का स्टेडियम, सैनिकों की बैरक, मेले, बाज़ार, घनी आबादी वाले शहर, रेलवे स्टेशन, बवेरिया की पहाड़ियों के बीच बना हुआ Neuschwanstein नामक मशहूर महल, Garmisch Partenkirchen नामक जर्मनी की सबसे ऊंची और बर्फीली चोटी और वहां तक जाने वाली रेल। इनके अलावा सबसे बड़ा आकर्षण है रेलों के चलते हुए मॉडल। पूरे हॉल में कंप्यूटर द्वारा संचालित तरह तरह की यात्री और माल गाड़ियां हैं जो शहरों, पहाड़ों, पुलों और दरियाओं में से गुज़रती हुई बहुत सुन्दर लगती हैं। इस हॉल में हूबहू दिखने वाली सौ से अधिक रेलें, तीन सौ से अधिक पटरियों को बदलने वाले यन्त्र, 1700 कार ट्रक आदि, 1400 इमारतें, 11000 लोग, 47500 तरह तरह के पेड़, झाड़ियां और 6600 सड़कों पर चमकने वाले रौशनी वाले खम्भे हैं। नीले रंग के शीशे द्वारा दिखाई गई झीलें और समुद्र, उनके नीचे प्रकाश के द्वारा दिखाई गईं लहरें, पानी में बहते हुए समुद्री जहाज़, पीछे दीवारों पर रंगे हुए बर्फीले पहाड़ सचमुच असली प्रतीत होते हैं। हर दस मिनट बाद प्रकाश के द्वारा दिन और रात बदलते हैं, रात्रि में पहाड़ों में बादल गरजने लगते हैं, बिजली चमकने लगती है। हर पूरे घंटे बाद हवाई जहाज़ के उड़ने और उतरने का शो होता है।

वैसे तो Miniland तीस साल पुराना है, पर म्युनिक में यह केवल दो साल पहले आया। तीस साल पहले बवेरिया के एक छोटे से एक गांव में एक रेस्त्रां मालिक ने सर्दी और बारिश के मौसम में अतिथियों का दिल बहलाने के लिए एक पास वाले हॉल में इसकी शुरूआत की। धीरे धीरे यह काफी बड़ा और लोकप्रिय होता चला गया। दो साल पहले उन्हें यह हॉल किसी अन्य काम के लिए चाहिए था तो सारी परियोजना को लोगों के लिए उपलब्ध करवाए रखने के उपाय सोचे जाने लगे। क्योंकि अन्य बड़े शहरों में ऐसी परियोजनाएं पहले से थीं, पर म्युनिक में ऐसी परियोजना का अभाव था। इसलिए म्युनिक शहर को चुना गया। S2 Heimstetten पर उतर कर यह बिल्कुल पास है। इसकी टिकट बड़ों के लिए नौ यूरो और बच्चों के लिए साढे चार यूरो है। साढे तीन यूरो में बीस मिनट का टूर भी होता है जिसमें पीछे की तकनीक, कंप्यूटर, छुपे हुए रेलवे स्टेशन आदि दिखाए जाते हैं जो सामान्य दर्शकों को नज़र नहीं आते। बच्चों के लिए एक खास कोना है जहां Lego के रेल बनाने वाले blocks रखे हुए हैं। और छोटे बच्चों के लिए लकड़ी की रेल और पटरियां भी हैं।
http://www.miniland.de/




Box
मॉडल बनाने का शौक लगभग डेढ सौ साल पुराना है। औद्योगिकरण के आरम्भ में बच्चे रेलों के मॉडलों के साथ खेलने लगे। धीरे धीरे आस पास के खेत, पहाड़ आदि सजाने का चलन आया। धीरे धीरे यह शौक बहुत फैल गया। अब हर तरह के रेल इंजन, डिब्बे, इमारतों, पेड़ पौधों, यहां तक कि तरह तरह के लोगों के भी हूबहू मॉडल मिलते हैं। तकनीक ने इस दिशा में बहुत तरक्की की है। यह काफ़ी महंगा शौक है। समय के साथ चार मॉडल बनाने वाली कंपनियों ने रेल के लिए कई आकारों की पटरियां विकसित की हैं। उनमें चार सबसे अधिक प्रचलित हैं  Z (6.5mm), N (9mm), TT (12mm), H0 (16.5mm), इनमें से भी सबसे अन्तिम तरह की पटरी सबसे अधिक प्रचलन में है। Miniland भी इसी मानक पर बना हुआ है। मॉडल रेलें और पटरियां बनाने वाली कंपनियों में Märklin और Fleischmann सबसे अधिक लोकप्रिय हैं।




http://produktadmin.maerklin.de/presse-upload/0001-101221-Pressemitteilung-final.pdf
http://www.maerklin.de/de/service/veroeffentlichungen/presse.html

 

 

डाक टिकटों और लिफाफों के संग्रहक

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बचपन में डाक टिकटें इकट्ठी करने का शौक तो हम में से बहुत लोगों को रहा होगा पर इस शौक को आगे बढ़ाने का रास्ता हममें से बहुत कम लोगों को मिला होगा। आज दुनिया की बहुत सी पुरानी और दुर्लभ डाक टिकटें और लिफाफे पेशेवर संग्रहकों द्वारा बहुत ऊंची कीमत पर खरीदी और बेची जा रही हैं। भारत भी इस विषय में पीछे नहीं है। हाल ही में जीनेवा की एक नीलामी में 1948 में भारत में गांधी जी पर जारी की गई एक डेढ आने की टिकट के साथ भेजा गया एक लिफाफा लगभग साढे पांच हज़ार यूरो में बिका जबकि इसका अनुमान दो हज़ार यूरो लगाया गया था। इस नीलामी में साढे तीन हज़ार यूरो तक बोली लगाई जर्मनी में रह रहे एक भारतीय डाक टिकट संग्रहक, राजेश वर्मा ने। स्टुट्टगार्ट निवासी राजेश वर्मा को हालांकि बचपन से डाक टिकटें इकट्ठी करने का शौक रहा है, पर 1981 में पटना में पढ़ाई खत्म करने के बाद जर्मनी आने के बाद यह शौक दोबारा पालने में उन्हें दो तीन साल लग गए। यहां उन्होंने देखा कि इस क्षेत्र में अनेक संस्थाएं सक्रिय हैं, जिनकी नियमित रूप से बैठकें आयोजित होती हैं, बहुत सारे व्यापार मेले आयोजित होते हैं जिनमें टिकटों, लिफाफों की अदला बदली, ख़रीद बेच और नीलामी होती है। एक मित्र ने उन्हें गांधी जी पर आधारित डाक टिकटें और लिफाफे संग्रहित करने की सलाह दी। आज उनके पास दुनिया भर के देशों द्वारा गांधी जी पर जारी की गई सैंकड़ों डाक टिकटों और उनके साथ भेजे गए लिफाफों का संग्रह है, जैसे बेल्जियम, भूटान, कैमरून, माल्टा, सीरिया, यमन, साइप्रस, ब्राजील, मॉरीशस, उरुग्वे, सोमालिया, पनामा, वेनेजुएला, माली, एंटीगुआ और बारबुडा, त्रिनिदाद और टोबैगो, ग्रेनेडा, आयरलैण्ड, इंग्लैण्ड, यूनान, हंगरी, कज़ाकस्तान, मेसेडोनिया, टोगो, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम, संयुक्त अरब गणराज्य, जर्मनी, कांगो, सेनेगल, मैक्सिको, चाड, मॉरिटानिया, नाइजीरिया, गैबॉन निकारागुआ, जिब्राल्टर, सैन मैरिनो आदि। इन डाक टिकटों के अलावा वर्मा जी के पास गांधी जी की टिकटों के साथ उपयोग किए गए लिफाफों का भी अद्भुत संग्रह है। कुछ दुर्लभ लिफाफे तो सचमुच आम व्यक्तियों द्वारा दूसरे देशों में डाक द्वारा भेजे जाने पर दुनिया की सैर करने के बाद उनके हाथ में आए हैं। राजेश वर्मा जी का कहना है कि यहां डाक टिकटों के संग्रह के लिए अच्छी एल्बमें और बहुत सारा सामान भी मिलता है। कम नमी के कारण यहां वर्षों तक भी टिकटें नई लगती हैं, जबकि भारत में नमी अधिक होने के कारण कुछ वर्षों बाद टिकटें पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं। उन्होंने डाक टिकटों और लिफाफों के अपने संग्रह को कई देशों में प्रदर्शित किया है। वे फरवरी 2011 में भारतीय एयर-मेल की सौ वीं सालगिरह के मौके पर दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित की जा रही विश्व डाक टिकट प्रदर्शनी में हिस्सा लेने भी जा रहे हैं।box:
15 अगस्त 1948 को पहले स्वतन्त्र दिवस के मौके पर महात्मा गांधी जी के चित्र के साथ डेढ आना, साढे तीन आना, बारह आना और दस रुपए की चार डाक टिकटों के चार सेट जारी किए गए थे। हालांकि इन डाक टिकटों को जारी करने की योजना जनवरी से ही चल रही थी जब गांधी जी जीवित थे। पर इससे पहले कि टिकटें जारी हो पातीं, गांधी जी की हत्या कर दी गई। ये डाक टिकटें स्विट्ज़ेलैण्ड में मुद्रित की गईं थी। यह भाग्य की विडंबना ही है कि गांधी जी, जिन्होंने जीवन भर स्वदेशी के आदर्श तले काम किया, उन पर आधारित पहली डाल टिकट विदेश में मुद्रित की गई। इनमें से दस रुपए वाली टिकट आम व्यक्ति की पहुंच से बाहर थी। ये पहली और आख़िरी डाक टिकटें हैं जिन पर उर्दू में बापू लिखा हुआ है। यह नेहरू जी की सलाह पर किया गया था। उस समय के गवर्नर जनरल के आदेश पर केवल सरकारी उपयोग के लिए इनमें से दस रुपए वाली टिकटों की सौ अतिरिक्त प्रतियां छापी गईं थी जिन पर 'service' लिखा होता है। यह विश्व की बहुत दुर्लभ टिकटें हैं। इनमें से कुछ टिकटें कुछ गणमान्य व्यक्तियों को उपहार के रूप में दे दी गईं, और कुछ दिल्ली के राष्ट्रीय डाक टिकट संग्रहालय को दे दी गईं। इनमें से अधिकतम आठ प्रतियां निजी हाथों हैं, जिनके कारण वे बहुत दुर्लभ और कीमती हो गईं। इनमें से एक टिकट 5 अक्तूबर 2007 को स्विट्ज़रलैण्ड में डेविड फेल्डमैन कंपनी द्वारा की नीलामी में 38,000 यूरो में बिकी।http://www.davidfeldman.com/cgi-bin/lotbrowse.pl?lotid=131337

 

मां और बच्चा बचे आत्महत्या करने से

दिसम्बर के कड़क सर्द महीने में एक मां अपने पांच वर्षीय बेटे के साथ हैम्बर्ग में एक पुल से नीचे पानी में कूद कर आत्महत्या करने की कोशिश कर रही थी। वहां से गुज़र रहे कार चालकों ने उन्हें पुल के किनारे बैठा देख कर पुलिस को सूचित किया। दो पुलिस कर्मियों ने बहुत सावधानी से उन दोनों के साथ बात करते हुए उन्हें पानी में कूदने से बचाया। मां की मानसिक हालत ठीक नहीं थी। गर्भ के समय उसका पति ने भी इसी पुल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। मां की हालत ठीक न होने के कारण युवा कार्यालय द्वारा बच्चे को उसके साथ रहने की अनुमति भी नहीं मिल रही थी। वह अपने बच्चे को यह कह कर बहका रही थी कि हमारे पास जूते नहीं है, इसलिए हम प्यारे भगवान के पास जा रहे हैं। वहां ठण्ड नहीं लगेगी। वह बच्चे को तीन तक गिनने के लिए कह रही थी। पर बच्चा डरा हुआ था और गिनने की बजाय लगातार पुलिस-कर्मियों की ओर देख रहा था। मां को मनोरोग अस्पताल में भेज दिया गया है और बच्चा अपनी चाची के पास है।
http://www.tagesspiegel.de/weltspiegel/die-engel-von-peterwagen-2-31/3684558.html

कोंसलावास से लोगों को शिकायत

कई भारतीय लोगों को जर्मनी में स्थित विभिन्न भारतीय कोंसलावासों के प्रति शिकायत है। उनका कहना है कि उनका काम होने में महीनों लग जाते हैं, फार्म आदि में ग़लती समय पर या ठीक से बताई नहीं जाती। जब वे खास कर काम से छुट्टी लेकर अपने कागज़ात लेने के लिए लंबा सफर करके कोंसलावास जाते हैं तो उन्हें छोटी मोटी ग़लती बता कर वापस भेज दिया जाता है। ये बातें पहले पूछने के लिए अगर वे फोन करें तो कोई फोन नहीं उठाता है। इन बातों को म्युनिक के भारतीय महाकोंसल अनूप मुदगल सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि उनके कर्मचारी ईमानदारी से काम करते हैं। फोन पर समय गंवाने से लोगों का ही नुक्सान होता है क्योंकि जिसने काम करना है उसका समय फोन पर चला जाता है। पासपोर्ट आदि अब दिल्ली से बनकर आते हैं। इसमें सामान्यत तीन महीने का समय जाता है। पासपोर्ट आने पर बाक़ायदा फोन करके सूचना दी जाती है कि आप अपना नया पासपोर्ट ले जाएं। इसलिए उन्होंने कोंसलावास पर विश्वास रखने का आह्वान किया है। ज़रूरत पड़ने पर वे भारतीयों के साथ नियमित बैठक करने को भी तैयार हैं। यही नहीं, उन्होंने PIO और OCI सम्बंधी मसलों पर आम तौर पर पूछे वाले प्रश्नों और उनके उत्तरों की सूचियां भी तैयार की हैं जो वेबसाइट पर इस पते पर उपलब्ध हैं-
http://www.cgimunich.de/download/oci-faq.pdf
http://www.cgimunich.de/download/attestation-faq.pdf

जर्मनों के पास सात करोड़ पुराने मोबाईल

एक सर्वेक्षण के अनुसार जर्मनी में लोगों के पास सात करोड़ पुराने मोबाईल फोन हैं जो वे उपयोग नहीं करते हैं। मोबाईल फोन में उपयोग हुई 80% सामग्री का पुनर्नवीनीकरण (recycling) किया जा सकता है। इनमें बहुत कम ही सही पर सोने, चान्दी, तांबा और अन्य कई दुर्लभ और कीमती धातुएं लगी होती हैं। 47 प्रतिशत लोगों के पास घर में एक मोबाईल फोन है जो वे उपयोग नहीं करते हैं, वे भले खराब है या नहीं। 12 प्रतिशत लोगों के पास दो ऐसे मोबाईल फोन हैं। 78 प्रतिशत लोगों मोबाईल का उपयोग करते हैं, 14 प्रतिशत लोगों के पास दो मोबाईल हैं और चार प्रतिशत लोगों के पास तीन मोबाईल हैं।
http://www.bitkom.org/66026_66022.aspx

घड़े गए नए जर्मन शब्द

भाषा प्रकाशन Langenscheidt ने इस वर्ष में युवा जीवन पर आधारित पांच नए जर्मन शब्दों को घड़ा है। पहले स्थान पर शब्द है Niveaulimbo, जिसका अर्थ है युवाओं के लिए विभिन्न टीवी कार्यक्रमों या इंटरनेट साइटों के स्तर का लगातार गिरते जाना। दूसरे स्थान पर शब्द है Arschfax (Arsch=ass), जिसका अर्थ है जांघिए में लगा हुआ लेबल जो पतलून के बाहर दिखता रहता है। तीसरे स्थान पर है शब्द Egosurfen, जिसका अर्थ है खुद के नाम को इंटरनेट में ढूंढना।
http://www.jugendwort.de/pr_meldung_11.cfm

Vinay Sarita

फ्रैंकफर्ट में मोहिनी हाइटल ने अपनी आध्यात्मिक कविताएं जिनकी संख्या तीस साल के अन्दर 128 तक पहुंच चुकी थी, एक सुन्दर पुस्तक 'विनय सरिता' (Vinay Sarita) के रूप में नई प्रकाशित की हैं। पुस्तक में छपे हिन्दी भजनों का अनुवाद अंग्रेज़ी और जर्मन भाषा में भी किया गया है। पुस्तक के साथ दस घंटे की एक mp3 CD भी है जिसमें सभी 128 भजन उन्होंने स्वयं गाए हैं। मूल्य तीस यूरो। यह पुस्तक Google Books और Amazon पर भी उपलब्ध है।
http://www.smirti.de/

रविवार, 21 अप्रैल 2013

म्युनिक गुरुद्वारा में नई कमेटी

6 जनवरी को म्युनिक गुरुद्वारे के कमेटी चुनावों में दो नए सदस्यों के साथ नई कमेटी चुनी गई। पिछले चौदह सालों से लगातार चुने जा रहे प्रधान तरसेम सिंह बहुमत के साथ दोबारा प्रधान चुन लिए गए हैं। म्युनिक गुरुद्वारा एक दुर्लभ सफलता की कहानी है। 1997 में Domagkstraße में एक container से शुरू होकर 2003 में बैंक से कर्ज़ लेकर अपनी ज़मीन खरीदकर नया गुरुद्वारा बनाने तक यह संगत की असीम श्रद्धा का प्रतीक है। इस जगह की कीमत आज दस लाख यूरो के लगभग है। तरसेम सिंह 1997 से ही लगातार गुरुद्वारे के प्रधान चुने जा रहे हैं। गु

अभिनव बिन्दरा के पिता यूरोप में business partner की तलाश में

बीजिंग ओलम्पिक 2008 के इकलौते भारतीय स्वर्णपदक विजेता निशानेवाज अभिनव बिन्दरा के पिता अपजीत बिन्दरा चण्डीगढ़ में लज़ीज़ भारतीय readymade food का कारोबार करते हैं। film pouches में pack विभिन्न सब्ज़ियों, दालों को microwave या गर्म पानी में थोड़ा गर्म करने के बाद सीधे खाया जा सकता है। वे अपने उत्पादों का यूरोप में खासकर जर्मनी और इटली में निर्यात करना चाहते हैं और किसी उपयुक्त business partner की तलाश में हैं। उनके उत्पयदों में शाकाहारी सब्ज़ियां जैसे दाल, आलू मेथी, काले चने, आलू पालक, लोबिया, आलू वड़ियां, मटर पनीर, बैंगन का भर्ता, पालक पनीर, चटपटे चने, राजमा, दाल मखनी, सरसों का साग, कढ़ी, दाल तड़का आदि शामिल हैं। मांसाहारी भोजन जैसे Butter Chicken, Chicken बिरयानी, Chicken Curry, Mutton बिरयानी, रोगन जोश, कीमा Curry और ढेर सारे आचार, नमकीन और मिठाईयां भी उनके संग्रह में हैं। cans की बजाय  film pouches में packing करने से वज़न बहुत कम हो जाता है।
http://www.drbindracurries.com/

फ्रैंकफर्ट मन्दिर का भव्य लोहड़ी कार्यक्रम



चित्र में सबसे बाईं ओर बैठी हुई स्वर्ण कौर और उनकी सहेलियां, भोजन तैयार करते हुए।फ्रैंकफर्ट मन्दिर को शुरू करने के लिए लोगों को इकटठा करने के लिए जनवरी में Nordwestzentrum में भव्य लोहड़ी कार्यक्रम किया गया जिसमें कोई चार सौ लोगों ने शरीक होकर खूब मौज मस्ती की। सरबजीत सिंह सिद्धु, ब्रिज मोहन अरोड़ा, वसन्त भाटिया, सीमा खेर, बलराम जी, सुभाष पटेल और रमेश शर्मा की पहल के कारण मन्दिर शुरू करने के लिए इतने सारे लोगों को इकट्ठा करना सम्भव हुआ। लोहड़ी कार्यक्रम में न तो प्रवेश शुल्क लिया गया और न ही रात्र भोजन के लिए कोई शुल्क लिया गया। मन्दिर के अधिकतर लोग निशुल्क प्रवेश के विरुद्ध थे पर सरबजीत सिंह सिद्धू ने प्रवेश निशुल्क रखने पर ज़ोर दिया। रात्रि भोज के लिए Morsestraße में मन्दिर परिसर में भोजन तैयार किया गया जिसमें सरबजीत सिंह सिद्धु के हाथों का बना सरसों का साग, स्वर्ण कौर और उनकी सहेलियों के हाथों की बनी दो सौ से अधिक मक्की की रोटियां शामिल थीं। यही नहीं, बाद में कार्यक्रम शुरू होने पर भी कई लोग ढेर सारी मिठाइयां, रेवड़ियां लेकर आए। गुरदीप सिंह चीमा भारत से खास इस कार्यक्रम के लिए दस किलो रेवड़ियां लेकर आए, स्वर्ण कौर ने अपनी पोती की पहली लोहड़ी भी इस कार्यक्रम में मनाई और करीब पन्द्रह किलो मिठाईयां बांटीं। रत्ती परिवार ने भी पन्द्रह किलो मिठाईयों का योगदान दिया। मनोज टण्डन ने भी अपने बेटे की पहली लोहड़ी यहीं पर मनाई और खूब सारी मिठाईयां लेकर वहां पहुंचे।

हालांकि इसमें कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया था, पर लोगों ने खूब नाच कर आनन्द लिया। गिद्धे, भांगड़े और डीजे स्टीफन लोबो ने संगीत पर लोग खूब नाचे। वहां इतने लोग एकत्रित हो गए कि हॉल छोटा पड़ने लगा और आधी रात होने के बाद लोगों को निवेदन कर करके कार्यक्रम का समापन करना पड़ा।

इस कार्यक्रम से मन्दिर में लोगों का आनाजाना बढ़ा है। एक भक्त ने अष्टधातुओं की बनी पंच मूर्तियां मन्दिर को दान में दी हैं। इनमें से दुर्गा मां की मूर्ति सबसे बड़ी है जिसका भार करीब अस्सी किलो है। इसके अलावा नवग्रह, राम, सीता और लक्षमण और शिवलिंग की मूर्तियां भी साथ हें। मन्दिर हर रविवार सुबह ग्यारह बजे से तीन बजे तक खुलता है। 6 फरवरी को सुबह बजा ग्यारह बजे मन्दिर में मूर्ति स्थापना होगी। सभी श्रद्धालुओं से वहां पहुंचने के लिए निवेदन है।

बरसों से CDU पार्टी की सेवा कर रहे गुरदयाल सिंह

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चित्र में जनवरी 2011 में एक सर्किट पार्टी में CDU पार्टी के जिला अध्यक्ष Boris Rhein के साथ गुरदयाल सिंह27 मार्च को हैस्सन राज्य में चुनाव होने वाले हैं और फ्रैंकफर्ट निवासी गुरदयाल सिंह CDU पार्टी के लिए बरसों से अवैतनिक तौर पर काम कर रहे हैं। वे पार्टी के चुनाव अभियानों में मदद करते हैं, विभिन्न आयोजनों के प्रबंधन में मदद करते हैं।   integration के मुद्दे पर सिख समुदाय के साथ वार्तालाप में मदद करते हैं। पार्टी के प्रेसवक्ता Wolfram Roos का कहना है कि integration बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसमें यह ज़रूरी है कि प्रवासियों के बच्चे यहां अच्छी शिक्षा ग्रहण करें और सफल जीवन जीएं। इरान के लोग बहुत जल्दी integrate हो जाते हैं, पर भारत पाकिस्तान आदि देशों के लोग आसानी से integrate नहीं हो पाते।

बर्लिनाले 2010 में लिया भारत ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा



जहां इस वार्षिक बड़े फिल्म उत्सव में भारत की एक दो फिल्में ही हिस्सा ले पाती थीं, इस बार फरवरी में बर्लिन आयोजित हुए उत्सव में भारत की आठ फिल्मों ने विभिन्न श्रेणियों में हिस्सा लेकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है। सर्वोच्च पुरस्कार प्रतियोगिता के लिए 'My name is Khan' नामांकित हुई थी, पर क्योंकि यह पहले ही भारत में रिलीज़ हो चुकी थी, इस लिए प्रतियोगिता से हटा दी गई। फोरम नामक श्रेणी में, जिसमें फिल्म दिखाने के साथ कई वार्ताओं का आयोजन भी किया जाता है, कोंकणी फिल्म 'Man beyond the bridge' प्रदर्शित की गई। इस फिल्म एक मानसिक रूप से बीमार महिला के प्रति समाज का रवैया दिखाया गया है जो यह सोचता है कि मानसिक रूप से बीमार लोग ठीक नहीं हो सकते और उन्हें परिवार बसाने का अधिकार नहीं है। इसी श्रेणी में भारतीय फिल्म निर्माता मधुश्री दत्ता द्वारा कई छोटी छोटी प्रायोगिक फिल्में, मल्टी मीडिया और एनीमेशन सामग्री पोस्टरों आदि की प्रदर्शनी भी लगाई गई। बर्लिन दूतावास के सूचना विभाग से श्री आशुतोष अग्रवाल से सूचना मिली है कि इस प्रदर्शनी को जर्मनी में लाना बहुत महंगा काम था। इस लिए भारतीय दूतावास ने भी लगभग साढे तीन लाख रुपए (€5000) का योगदान करके इसे बर्लिनाले में भाग लेने में मदद की। पैनोरामा श्रेणी, जिसमें स्थापित निर्देशकों द्वारा किए गए नए प्रयोगों को महत्व दिया जाता है, में बंगाली फिल्म 'Just another love story' प्रदर्शित की गई। एक नई श्रेणी 'जेनरेशन' जिसमें एक खास आयु वर्ग के दर्शकों के लिए फिल्में दिखाई जाती हैं (इस स्थिति में बच्चों और किशोरों के लिए), में उमेश कुलकर्णी की फिल्म 'विहीर' और देव बेनेगल द्वारा निर्देशित 'रोड' दिखाई गईं। कुलिनरी सिनेमा नामक श्रेणी, जिसमें फिल्म देखने के साथ साथ डिनर का भी प्रबंध किया जाता है, में श्याम बेनेगल की फिल्म मन्थन दिखाई गई। इसके अलावा उत्सव में बाज़ार भी आयोजित किया गया जिसमें निर्माता कंपनियां विदेसों में अपने लिए योग्य वितरक खोज सकती हैं। इसमें भी कई भारतीय कंपनियों ने हिस्सा लिया। आमिर खान द्वारा निर्मित 'पीपली लाईव' के अधिकार पोलैण्ड की एक कंपनी ने खरीद लिए हैं।श्री आशुतोष अग्रवाल का कहना है कि विदेश के सन्दर्भ में आज का भारतीय फिल्म उद्योग न केवल  सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी। बहुत सी भारतीय फिल्में भारत की बजाए विदेशों में अधिक कमाई करती हैं। इस लिए दूतावास भारतीय फिल्म कंपनियों और प्रदर्शकों को विदेशी वयापार मेलों में हिस्सा लेने के लिए हर ओर से मदद करता है।

तब से छोड़ दिया गाड़ी चलाना

1991 में मैं म्युनिक शहर से थोड़ा बाहर मोती महल नामक एक रेस्त्रां में बतौर मैंनज़र कार्यरत था। सर्दियों की एक रात करीब ढाई बजे मैं रेस्त्रां बन्द कर के गाड़ी के द्वारा शहर की ओर वापस आ रहा था। एक मोड़ के बाद आगे जाने के दो रास्ते थे, एक सामान्य रास्ता और एक जंगलों में से होता हुआ। मेरा मन जंगल वाला रास्ता आज़माने का हुआ, सो मैं उस रास्ते आगे बढ़ गया। पर वहां सड़क पर खूब बर्फ जमी हुई थी जिस पर गाड़ी बहुत फिसल रही थी। खास कर मेरी उस समय की महंगी मर्सिडीज़ 320 गाड़ी आगे वाले पहिए से चलने के कारण सम्भालनी बहुत मुश्किल हो रही थी। अचानक मेरी आखों के आगे अंधेरा छा गया और मेरा नियन्त्रण खो गया। गाड़ी फिसल कर उल्टी हो गई और मैं बुरी तरह ज़ख्मी होकर सर के भार गाड़ी में दब गया। मेरी रीढ की हड़्डियां टूट चुकीं थीं। वहां तो उस समय किसी व्यक्ति का नामो निशान भी नहीं था। मेरी गाड़ी की लाईटें जल रहीं थी। भगवान की दया से उधर से एक गाड़ी गुज़री। उसे चला रही औरत यह नज़ारा देख दंग रह गई, उसने मुझसे केवल इतना पूछा कि मैं ज़िन्दा हूं या नहीं। मैंने दर्द से कराहते हुए कहा कि मैं जीवित हूं, कृपया वह मुझे बाहर निकाल ले। उसने बिना समय गंवाए तुरन्त पास के पुलिस स्टेशन में जाकर सूचित किया। फिर पुलिस ने मुझे गाड़ी से बाहर निकाला। मैं नौ सप्ताह तक अस्पताल में रहा। उन्होंने मेरे गले को चीरकर रीढ की हड्डियों को दोबारा स्थित किया और एक प्लेट डाल दी। अब मैं ठीक हूं, पर गाड़ी चलाने से मुझे बहुत डर लगता है।
-अमराजीत सिंह शौकीन

ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਜਰਮਨ ਚ ਬੀਮਾਰ ਹੋਣ ਦਾ ਫਰਕ



ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਚ ਹੁਣ ਤਕ ਵੀ ਸਦੀਆਂਤੋਂ ਚੱਲ ਰਹੀ ਸੇਹਤ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਅਤੇ ਬੀਮਾਰੀਆਂਦੇ ਇਲਾਜ ਦੀ ਦੇਸੀ ਪਰਂਪਰਾ ਜਣੇ ਜਣੇ ਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਸ਼ਰੀਰ ਅਤੇ ਸੇਹਤ ਦੀ ਸੰਭਾਲ ਲਈ ਬਣੇ ਨਿਤ ਨੇਮ ਅਜੇ ਵੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵੱਡੇ ਤਬਕੇ ਚ ਵੇਖੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ. ਸੇਹਤ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਕਈਆਂ ਵਿਗਿਆਨਕ ਤੱਤਾਂ ਨੇ ਧਾਰਮਿਕ ਚੋਲਾ ਪਹਿਨਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ. ਗਉ ਨੂੰ ਦੁੱਧ ਲਈ, ਤੁਲਸੀ ਦੇ ਪੌਦੇ ਨੂੰ ਮਲੇਰਿਆ ਤੇ ਟਾਯਫ਼ਾਇਡ ਤੋਂ ਬਚਾਣ ਲਈ, ਨੀਮ ਦੇ ਦਰਖਤ ਨੂੰ ਕੀਟਨਾਸ਼ਕ ਗੁਣ ਲਈ, ਪੀਪਲ ਦੇ ਪੇੜ ਨੂੰ ਦਿਨ ਰਾਤ ਆਕਸੀਜਨ ਦੇਣ ਦੇ ਗੁਣ ਲਈ ਪੂਜਨੀਕ ਬਣਾੳਣ ਦੇ ਪੱਿਛੇ ਸੇਹਤ ਤੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਹੀ ਮੁੱਖ ਕਾਰਣ ਹਨ. ਸ਼ਵੇਰੇ ਚਾਰ ਵਜੇ ੳਠਕੇ ਪੂਜਾਪਾਠ, ਯੋਗ, ਮੈਡੀਟੇਸ਼ਨ ਕਰਨਾ ਕੋਈ ਧਾਰਮਿਕ ਕਿਰਤ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਮਾਨiਸਕ ਰੋਗਾਂ ਤੋਂ ਬਚਣਾ ਹੈ. ਤਾੰਬੇ ਦੇ ਬਰਤਨ ਚ ਪਾਣੀ ਭਰਕੇ ੳਸ ਵਿੱਚ ਸੂਰਜ ਜਾਂ ਚੰਦਰਮਾ ਨੂੰ ਵੇਖਣਾ ਨਜਰ ਲਈ, ਪੂਰਨਮਾਸ਼ੀ ਦੀ ਰਾਤ ਨੂੰ ਪਰਾਤ ਚ ਖੀਰ ਪਰੋਸਕੇ ਚੰਦਰਮਾ ਦੀਆਂ ਰਸ਼ਮੀਆਾਂ ਚ ਰੱਖਣਾ ਤੇ ਸਵੇਰੇ ਹੋਣ ਤੇ ਖਾਣ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਕਿਸੇ ਧਰਮ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਦਮੇ ਦੀ ਬੀਮਾਰੀ ਤੋਂ ਬਚਣ ਨਾਲ ਹੈ. ਸੇਹਤ ਚ ਢਿੱਲਾਪਣ ਮਹੁਸੂਸ ਕਰਦੇ ਸਾਰ ਹੀ ਆਮ ਆਦਮੀ ਸੋਚਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਪਿਛੋਕੜ ਚ ਕਿਹੜੀ ਗਲਤੀ ਹੋਈ ਕਿ ਇਹ ਨੌਬਤ ਆਈ ਹੈ. ਕੁਝ ਇਕ ਸ਼ਰੀਰਕ ਔਕੜਾਂ ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਾਲ ਅਪਣੇ ਆਪ ਹੀ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ. ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਭਾਰੀ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਵਜੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਦਰਦਾਂ ਆਦ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਅਪਣੇ ਆਮ ਹੀ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ. ਜੁਕਾਮ ਵਗੈਰਹ ਦੋ ਚਾਰ ਦਿਨਾਂ ਚ ਖੁਦ ਹੀ ਪਿੱਛੇ ਹੱਟ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਕੁਝ ਇਕ ਸ਼ਰੀਰਕ ਔਕੜਾਂ ਘਰੇਲੂ ਨੁਸਖੇ ਮਸਾਲੇ ਵਗੈਰਹ ਖਾਣ ਨਾਲ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ. ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਗਲੇ ਦੀ ਦਰਦ ਨਮਕ ਦੇ ਗਰਾਰੇ ਕਰਨ ਨਾਲ, ਕਾਲੀ ਮਿਰਚ ਜਾਂ ਲੌਂਗ ਚੂਸਣ ਨਾਲ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਦੰਦਾਂ ਦੀ ਖਰਾਬੀ ਨੀਮ ਦੀ ਦਾਤੁਣ ਕਰਨ ਨਾਲ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਜੇਕਰ ਫਿਰ ਵੀ ਅਰਾਮ ਨਾ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਵੇ ਤਦ ਆਂਢ ਗੁਆਂਢ ਚ ਮਦਦਗਾਰ ਨੁਸਖੇ ਲਈ ਪੁਛਗਿਛ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਇਥੇ ਵੀ ਕੰਮ ਲੋਟ ਨ ਆਵੇ ਤੇ  ਵੈਦ ਹਕੀਮ ਕੋਲ ਜਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਇਥੇ ਵੀ ਅੱਡਾ ਨ ਜੰਮੇ ਤਦ ਕਿਸੇ ਚੇਲੇ ਜਾਂ ਸਾਧ ਸੰਤ ਦੀ ਸੰਗਤ ਚ ਜਾਕੇ ਰੋਗ ਨਿਵਾਰਣ ਦੀ ਯੁਕਤੀ ਲੱਭੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਇੱਥੇ ਵੀ ਮਨੋਕਾਮਨਾ ਪੂਰੀ ਨ ਹੋਵੇ ਤੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਜਾਂ ਸਰਕਾਰੀ ਡਿਸਪੈੰਸਰੀ ਦੇ ਡਾਕਟਰ ਤਕ ਪਹੁੰਚ ਕੀਤੀ ਜਂਦੀ ਹੈ. ਇਸ ਸਟੇਜ ਤਕ ਲਗਭਗ ਅੱਸੀ ਪਰਸੈੰਟ ਲੋਕੀਂ ਜਾਂ ਤੇ ਠੀਕ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਬੀਮਾਰੀ ਨੂੰ ੳੱਪਰ ਵਾਲੇ ਦੀ ਪ੍ਰਕੋਪੀ ਸਮਝਕੇ ਬੀਮਾਰੀ ਨਾਲ ਸਮਝੌਤਾ ਕਰ ਲੈੰਦੇ ਹਨ. ਬਾਕੀ ਦੇ ਬੀਮਾਰ ਸ਼ਹਰੀ ਡਾਕਟਰ ਜਾਂ ਹਸਪਤਾਲ ਦੀ ਸ਼ਰਣ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਜਿੱਥੋਂ ਕਿ ਦੋ ਤਿੰਨ ਪਰਸੈੰਟ ਬੀਮਾਰਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਪੋਸਟ ਗਰੈਜੂਯੇਟ ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਚ ਜਾਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਹਸਪਤਾਲ ਚ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਲੋਕੀਂ ਹੀ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ. ਪੈਸੇ ਦੀ ਕਮੀ ਕਾਰਣ ਬਹੁਤ ਲੋਕੀਂ ਇਧਰ ੳਧਰ ਦੀ ਦਵਾਦਾਰੂ ਨਾਲ ਹੀ ਵਕਤ ਗੁਜਾਰਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ. ਕੁਲ ਮਿਲਾ ਕੇ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ  ਭਾਰਤ ਦੇ ਪਰਂਪਰਾਵਾਦੀ ਸੇਹਤ ਸਿਸਟਮ ਦੀ ਵਜੋਂ ਜਨਤਾ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਹਿੱਸਾ ਅਪਣੀ ਸੇਹਤ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਚ ਆਤਮ ਨਿਰਭਰ ਹੈ.   ਜੇਕਰ ਐਸਾ ਨ ਹੁੰਦਾ ਤੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਚ ਜਿੱਥੇ ਕਿ ਅੱਜ ਇੰਨੇ ਘੱਟ ਲੋਕੀਂ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਖੜੋਣ ਨੂੰ ਜਗਾ ਵੀ ਨ ਮਿਲਦੀ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਖਜਾਨੇ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਹਿੱਸਾ ਸੇਹਤ ਵਿਭਾਗ ਦੀ ਭੇਟਾਂ ਚੜਿਆ ਹੁੰਦਾ.ਜਰਮਨ ਚ ਵੀ ਕਿਸੇ ਵੇਲੇ ਲੋਕੀਂ ਅੱਜ ਨਾਲੋਂ ਬਹਤੁ ਜਿਆਦਾ ਘਰੇਲੂ ਨੁਸਖਿਆਾਂ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਸਨ. ਸਭਿਯਤਾ ਅਤੇ ਇੰਡਸਟਰੀਅਲ ਜੀਵਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਜੋਂ ਸਮੇਂ, ਸੇਹਤ ਲਈ ਅਪਣੀ ਜਿੰਮੇਵਾਰੀ ਵਾਰੇ ਗਿਆਨ ਦੀ ਘਾਟ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅੰਗ ਬਣਦੀ ਗਈ. ਐਲੋਪੈਥਿਕ ਦਵਾਈ ਦੇ ਚਮਤਕਾਰੀ ਅਸਰ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅਪਣੀ ਸੇਹਤ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਵਾਰੇ ਖੁਦ ਸੋਚਣ ਨੂੰ ਜਾਂ ਘਰੇਲੂ ਨੁਸਖਿਆਂ ਨਾਲ ਕਈ ਕਈ ਦਿਨ ਬੀਮਾਰੀ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਤੋਂ ਦੂਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ. ਕਰਾਂਕਨ ਫਰਜਿਸ਼ਰੁੰਗ ਦੇ ਆੳਣ ਨਾਲ ਇਸ ਸੋਚ ਨੂੰ ਹੋਰ ਵੀ ਤੇਜ ਹਵਾ ਮਿਲੀ. ਸਿਰ ਦਰਦ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਜੁਕਾਮ, ਕਰਾਂਕਨ ਫਰਜਿਸ਼ਰੁੰਗ ਵਾਲੇ ਕਾਰਡ ਨੂੰ ਲੈਕੇ ਡਾਕਟਰ ਕੋਲ ਜਾਣਾ ਆਮ ਰਿਵਾਜ ਬਣ ਗਿਆ. ਔਕੜ ਸਮੇਂ ਸਰਬੱਤ ਦੇ ਭਲੇ ਲਈ ਬਣੀ ਕਰਾਂਕਨ ਫਰiਜਸ਼ਰੁੰਗ ਆਰਥਿਕ ਭਾਰ ਥੱਲੇ ਦਬਣ ਲੱਗ ਪਈ.

ਦਵਾਈਆਂ ਦੀ ਕੀਮਤ ਜਰਮਨ ਚ ਬਹੁਤ ਜਿਆਦਾ ਹੈ ਕਿੳਂ ਕਿ ਦਵਾਈਆਂ ਬਣਾੳਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਨੂੰ ਦਵਾਈਆਂ ਦੇ ਰੇਟ ਆਪ ਹੀ ਤਹ ਕਰਨ ਦੀ ਖੁਲੀ ਛੁੱਟੀ ਹੈ. ਨਿਤ ਨਵੇਂ ਮੈਡੀਕਲ ੳਪਕਰਣਾਂ, ਬਹੁਤ ਜਿਆਦਾ ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਅਤੇ ਕਰਾਂਕਨਕਾਸੇਆਂ ਦੇ ਖਰਚੇ ਕਰਾਂਕਨ ਫਰਜਿਸ਼ਰੁੰਗ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਖਤਰੇ ਵਲ ਧਕੇਲ ਰਹੇ ਹਨ. ਸਰਕਾਰ ਇਸ ਸਿਸਟਮ ਨੂੰ ਬਰਕਰਾਰ ਰੱਖਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਜਿਆਦਾ ਪਬਲਿਕ ਫ਼ੰਡਜ ਖੁਦ ਖਰਚ ਕਰਦੀ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਭਵਿੱਖ ਲਈ ਇਕ ਆਰਥਿਕ ਸੰਕਟ ਬਣਦਾ ਜਾ ਰਹਿਆ ਹੈ.

ਰਾਮ ਪ੍ਰਹਲਾਦ ਸ਼ਰਮਾ, ਡੋਲਮੇਚਰ, 01727105507

दीपावली 2009 पर म्युनिक में तीन आयोजन

दीपावली के मौके पर म्युनिक शहर में मुख्य तौर पर तीन बड़े आयोजन हुए। Indien Institut, भारतीय छात्रों की संस्था समयोग और IGCA नामक संस्था की ओर से। तीनों आयोजनों में कुल मिलाकर लगभग आठ सौ लोगों ने हिस्सा लिया।

16 अक्तूबर 2009 को Indien Institut द्वारा आयोजित किए गए कार्यक्रम में भारतीय महाकोंसल के अलावा भारी मात्रा में भारतीय और जर्मन लोग शामिल हुए। वहां कायदे से लक्ष्मी पूजन हुआ और आंगतुकों को टीका भी लगाया गया। फिर सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत सितार और तबले पर शास्त्रीय संगीत का प्रदर्शन, अनेक शास्त्रीय, अर्ध-शास्त्रीय नृत्य और Bollywood नृत्यों का प्रदर्शन, भारतीय महिला के मुख्य परिधान यानि साड़ी पर एक विशेष और विस्तृत व्याख्यान पेश किए गए। बर्लिन से एक जर्मन छायाकार की भारत में खींचे गए चित्रों की प्रदर्शनी लगाई और उनके द्वारा भारत पर लिखी गई एक पुस्तक पेश की गई।

17 अक्तूबर 2009 को छात्रों की संस्था समयोग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बड़ी गिनती में अधिकतर भारतीय युवा लोग एकत्रित हुए। SAP कंपनी में कार्यरत सिद्धार्थ मुदगल द्वारा प्रबंधन के मुख्य कार्यभार तले यह सुव्यवस्थित कार्यक्रम संपन्न हुआ जिसमें भारतीय महाकोंसल के साथ साथ दो स्थानीय राजनैतिक parties के नेता, और जर्मनी में Tata कारें (फिलहाल Indica) बेचने वाली कंपनी के प्रतिनिधि भी मुख्य अतिथि के तौर पर सम्मिलित हुए। इस कार्यक्रम की रूपरेखा भी मुख्यत शास्त्रीय और लोकप्रिय संगीत पर आधारित थी, लक्ष्मी पूजा का कोई विशेष प्रावधान नहीं था।

18 अक्तूबर को 2009 IGCA e.V. द्वारा दीपावली कार्यक्रम में भी शास्त्रीय संगीत और अन्त में Karaoke पर कुछ हिन्दी फ़िल्मी गीतों का प्रदर्शन हुआ। इस में शामिल होने वाले अधिकतर लोग जर्मन थे। भारतीयों के नाम पर कुछ बंगाली लोग ही थे जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्यक्रम से जुड़े थे।

सभी आयोजनों में आठ से दस यूरो तक प्रवेश शुल्क था। तीनों कार्यक्रमों में पटाखों और थोड़ी मौज मस्ती की कमी सभी भारतीयों को खल रही थी।
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विस्तृत रिपोर्ट

Indien Institut की ओर से दीपावली कार्यक्रम 17 अक्तूबर को म्युनिक के एक बड़े संग्रहालय के परिसर में आयोजित हुआ। लगभग तीन सौ जर्मन और भारतीय अतिथियों के बीच हुये कार्यक्रम में पहले लक्ष्मी पूजा हुई, संकल्प लिया गया, लक्ष्मी जी का आह्वान किया गया और  उनके 108 नामों का उच्चारण किया गया। फिर लक्ष्मी गायत्री मन्त्र गाया गया।
ॐ महालाक्ष्मये विधमहे, विष्णु प्रियाय धीमहि तन्नो लक्ष्मी:प्रचोदयात।

उसके बाद आशा संघू और रेणु जोशी ने लक्ष्मी जी की आरती की और शान्ति-मन्त्र का जाप किया। फिर महाकोंसल श्री अनूप मुदगल ने दीप जलाये। पूजा के बाद ऊपर हॉल में जाने के लिये प्रवेश के दौरान छोटे बच्चों द्वारा अतिथियों को टीका लगाया गया और मिठाई खिलाई गई। हॉल में सबसे पहले Indien Institut के अध्यक्ष Herbert F. Kroll ने आंगतुकों का नमस्ते शब्द के साथ स्वागत किया और मज़ाक करते हुये कहा कि यह पर्व लक्षमी यानि संपन्नता की देवी का पर्व है जो आज के मन्दी के युग में और भी प्रासंगिक है। इसमें मन्दी को दूर भगाने के लिये खूब पटाखे छोड़े जाते हैं। फिर उन्होने कोंसल श्री आनन्त कृष्ण को अलविदा कही जो म्युनिक कोंसलावास में तीन वर्ष का कार्यकाल समाप्त करके वापस भारत जाने वाले थे। फिर संजय तांबे ने जर्मन भाषा में दीपावली पर्व के बारे में दर्शकों को बताया। उन्होंने कहा कि लक्षमी धन संपन्नता की देवी है जिसे घर में आमन्त्रित करने के लिये खूब सारे दीये जलाये जाते हैं, शंख नाद किया जाता है, और उनकी पूजा की जाती है। पर्व का नाम दीपावली भी दीयों यानि दीपों से बना है। देश के अलग अलग हिस्सों में यह अलग तरह और नाम से मनाई जाती है। इसके एक दिन बाद नया चान्द उगना शुरू होता है। इसी दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काट कर अयोध्या लौटे थे। इस दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर को हराया था। सिख लोग इस दिन गुरू गोबिन्द सिंह की, जैन लोग महावीर की और बंगाली लोग काली देवी की अराधना करते हैं। लेकिन आज तो घी वाले दीयों की जगह इलेक्ट्रिक दीयों का समय आ गया है जैसा आप यहां भी देख रहे हैं। इसके बाद श्री मुदगल ने श्रोताओं को संक्षेप में संबोधित करते हुये कहा कि दीपावली भारत का एक लोकप्रिय त्यौहार है। दीयों के रौशनी से अज्ञानता को दूर भगाया जाता है और ज्ञान, खुशी, उन्नति और संपन्नता के दरवाज़े खुलते हैं।

उसके बाद कुछ सांस्कृतिक संगीत और नृत्य आइटमें पेश की गईं। Eva Stehli Atiia द्वारा Bollywood dance जैसे राजस्थानी नृत्य (दिल लगा लिया मैंने तुम से प्यार करके (दिल है तुम्हारा)), जिया जले जां जले (दिल से), बिन तेरे क्या जीना (गुरू), सलाम, तुम्हारी महफ़िल में आ गए हैं (उमराव जान), Gudrun Märtens द्वारा ओडिसी डांस प्रमुख थे। सुनील बैनर्जी ने सितार पर राह भैरवी, राग दरबारी और झाल अलाप प्रस्तुत किये। तबले पर उनका साथ परवेज़ ने दिया।

फिर श्रीमती मुदगल ने साड़ियों पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि साड़ी का इतिहास करीब पांच हज़ार साल पुराना है। पारंपरिक परिधान होते हुये भी साड़ी ने आधुनिकता को भी उतनी ही सहजता से गले लगाया है। यह अति औपचारिक अवसरों पर भी पहनी जाती है, फिर भी इसने काम काज के अनुसार अपना रंग रूप ढाल लिया है। खेती, कताई बुनाई तकनीक में बदलाव के साथ साथ इसके प्रारूप में भी अन्तर आता गया। चौदहवीं शताब्दी में इसे महिलाओं द्वारा भी धोती के रूप में पहना जाता था। फिर श्रीमती मुदगल ने इसे विभिन्न क्षेत्रों में पहनने की शैलियों और विभिन्न डिज़ाइनों पर रौशनी डाली। करीब एक घंटे के व्याख्यान में उन्होंने साड़ी का पूर्ण ज्ञान कोष श्रोताओं के समक्ष उण्डेल डाला। उन्होंने बनारसी साड़ियों का खास उल्लेख करते हुये कहा कि सोने चान्दी से सजी हाथ से बनी इन साड़ियों की सुन्दरता का मुकाबला मशीन से बनी साड़ियां भी नहीं कर सकतीं। सान्दरा चैटर्जी ने उनके अंग्रेज़ी व्याख्यान को जर्मन भाषा में साथ साथ अनूदित किया। जिन्हें यह व्याख्यान बोझिल लग रहा था, वे नीचे जाकर एक भारतीय रेस्त्रां द्वारा परोसा गया शाकाहारी भोज कर रहे थे। अन्त में संजय तांबे ने टिप्पणी करते हुये कहा कि भारत में साड़ी खरीदना एक फ़ुरसत वाला काम है। दुकान में फर्श पर बैठ कर आराम से साड़ियां चुनी जाती हैं और मोल भाव किया जाता है।

कार्यक्रम के अन्त में बर्लिन निवासी फ़ोटोग्राफ़र Jenner Zimmermann ने उनके भारत में लंबे आवास के समय खींचे आकर्षक चित्रों की एक प्रदर्शनी दिखायी और भारत पर लिखी एक पुस्तक का परिचय दिया।

दर्शकों में Lisa Voilter (बायीं ओर) का कहना है कि नृत्य भारतीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किये जाने चाहिये थे क्योंकि जर्मन कलाकारों में वह मूलता देखने को नहीं मिलती। Franziska Schönenberger (दायीं ओर) को कार्यक्रम बहुत पसन्द आया।

Christina Barsocchi (मध्य में) का कहना है कि शुरू में पूजा और मन्त्रों के दौरान पीछे खड़े होने के कारण हम कुछ देख नहीं पाये। मन्त्रों का जाप बहुत रोचक सुनाई दे रहा था। अच्छा होता यदि एक पूजा थोड़े उंचे पोडियम पर की जाती जहां सभी लोग देख पाते।

भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करवाने के लिये बनी नयी संस्था 'कला-क्षेत्र' के संस्थापकों में से एक श्री राकेश मेहता का कहना है हमारी संस्था ने इस आयोजन में बहुत योगदान दिया। पूजा, भोजन आदि का प्रबंध, बहुत सारे भारतीय परिवारों को निमन्त्रण भेजना आदि हमारा दायित्व था। हमारी संस्था क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर सभी को साथ लेकर चलना चाहती है और बड़े स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करना चाहती है।
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17 अक्तूबर को एक चर्च हॉल में छात्रों की संस्था समयोग का कार्यक्रम लगभग छह बजे शुरू हुआ। सबसे पहले दीपावली के महत्व पर एक संक्षेप व्याख्यान हुआ और दीये जलाकर कार्यक्रम का उदघाटन हुआ। फिर मुख्य अतिथियों और प्रायोजकों ने संक्षेप में अतिथियों को संबोधित किया। इनमें विशेष थे भारतीय महाकोंसल श्री अनूप मुदगल, CSU पार्टी के एकता आयुक्त और बायरन संसद के सदस्य Martin Neumeyer और बायरन की ग्रीन पार्टी की अध्यक्षा और बायरन संसद की सदस्य Theresa Schopper. फिर पण्डित अजय बहुरूपिया ने पूजा की, कथक और भरतनाट्यम द्वारा गणेष वन्दना हुयी, बच्चों द्वारा Bollywood dance हुआ और Greenrent कंपनी से Gunter Benthaus द्वारा जर्मनी में टाटा कारें बेचने के उनके अभियान पर रौशनी डाली गई। उसके बाद ब्रेक हुआ। ब्रेक के बाद एक अन्य समूह ने कथक किया, कुछ बच्चों ने भरतनाट्यम किया और मुख्य आयोजक सिद्धार्थ मुदगल ने एक श्रोताओं को संबोधित किया। फिर नाट्य-नन्दा स्कूल से एक कलाकार ने Bollywood dance प्रस्तुत किया। अरविन्द ने हारमोनिका पर एक गीत बजाया। अन्त में होली रेस्त्रां द्वारा रात्रि भोजन परोसा गया था। भोजन का शुल्क प्रवेश शुल्क में ही सम्मिलित था।

तन्मय विश्वास (मध्य में) कहते हैं 'यह कार्यक्रम बहुत ही सुव्यवस्थित था। मंच, प्रकाश, रिकार्डिंग, टीवी वाले आदि, सब कुछ बहुत ही प्रोफेशनल था। CSU पार्टी के सदस्य ने नमस्ते के साथ श्रोताओं को संबोधित किया तो बहुत अच्छा लगा।

आयोजकों में से एक सतिन्दर पाल सिंह कहते हैं कि इस कार्यक्रम में हर समुदाय और धर्म के लोग आये हैं। यहां जर्मन भी हैं, भारतीय भी, ईसाई भी हैं, हिन्दू भी, सिख भी और मुसलमान भी। मुझे खुशी है कि मैं एक ऐसे अभियान का हिस्सा हूं।
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इसमें म्युनिक निवासी पौषाली पाल ने टैगोर गीत, स्टुटगार्ट से रॉबी रॉय ने बांसुरी वादन, कलकत्ता से प्रसन्नजीत सेनगुप्ता ने सरोद वादन, म्युनिक निवासी सुनील बैनर्जी ने सितार वादन प्रस्तुत किये। कलकत्ता सुब्राटो मन्ना ने सभी आइटमों में तबले पर साथ दिया। कलकत्ता से पण्डित अरुण कुमार चैटर्जी पूजा के लिये वहां थे। अन्त में म्युनिक निवासी सैकत भट्टाचार्य ने कैरियोकि पर कुछ हिन्दी फ़िल्मी गाकर माहौल हल्का किया जैसे ये दिल न होता बेचारा, देखा न हाय रे सोचा न, हर घड़ी बदल रही है रूप ज़िन्दगी आदि। कायर्क्रम के समानन्तर रात्रिभोज उपलब्ध था। इस कार्यक्रम में भी मुख्य अतिथि महाकोंसल श्री अनूप मुदगल और कोंसल श्री आनन्त कृष्ण थे।

भारतीय दूतावास - मासिक रिपोर्ट - नवंबर 2009

Monthly report of cultural department of Indian Embassy, Berlin, for the month of November 2009, including highlight of the month.

माह का विशिष्ट कार्यक्रम - 13 नवंबर 2009 - बाल दिवस समारोह
भारतीय दूतावास बर्लिन के सांस्कृतिक विभाग यानि टैगोर केन्द्र ने बाल दिवस मनाने के लिये चौदह वर्ष तक की आयु के बच्चों को आमन्त्रित किया। यह दिन भारत के पहले प्रधान मन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन है। सबसे पहले सलाहकार श्री राकेश रंजन ने विशेष अतिथि श्रीमती वसुंधरा व्यास और अन्य अतिथियों का स्वागत किया और बाल दिवस के महत्व के बारे में बताया। सबसे पहले श्रीमती राजदूत वसुंधरा व्यास ने बच्चों को एक भारतीय परी कथा पढ़कर सुनायी जिसे श्री गुन्तर बेंन्नुंग ने जर्मन में अनूदित किया। फिर श्री गुन्तर बेंन्नुंग ने बच्चों को उनकी अप्रकाशित पुस्तक 'Die Geschichte von den Heilgeheuern’ (पवित्र जीवों की कहानी) में से कुछ अंश पढ़ कर सुनाये। यह पुस्तक बच्चों और बड़ों के लिये लिखी गई है जिसमें सभी बीमारियों के मूल के बारे में बताया गया है। रोचक स्लाइड्स और वार्तालाप के द्वारा श्री बेंन्नुंग ने बीमारियों और विभिन्न जीवों के बीच सम्बंधों के बरे में बताया। जब हम अस्वच्छ रहन सहन के कारण इन जीवों से बीमारियां उधार ले लेते हैं तो हम बीमार हो जाते हैं। लेकिन इन जीवों को ये बीमारियां वापस चाहिये होती हैं। इस लिये हमें चाहिये कि हम स्वच्छता से जियें और स्वस्थ दिनचर्या अपनायें। स्वस्थ रहनसहन के सन्देश के साथ साथ बच्चों को यह कहानी बहुत रोचक भी लगी। पारंपरिक तौर पर टैगोर केन्द्र इस अवसर पर चित्र प्रतियोगिता भी आयोजित करता है। पिछले दो वर्षों में विषय थे हाथी और ताज महल। इस वर्ष विषय था 'चीता'। आयोजन का एक अन्य आकर्षण था विश्व-प्रसिद्ध जोकर 'शिवन' का शो (श्री गुन्तर बेंन्नुंग का दूसरा नाम)। जोकर शिवन ने सारे शो के दौरान अतिथियों को हंसाये रखा और एक खुश-नुमा माहौल बनाये रखा। चित्र प्रतियोगिता में भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देने के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ। श्रीमती राजदूत व्यास ने 2008 में शंकर के अन्तरराष्ट्रीय बाल प्रतियोगिता में भाग लेने वाले छात्रों को दो रजत पदक और एक मान्यता पदक भी प्रदान किया। कार्यक्रम में लगभग 200 बच्चे और अतिथि शामिल हुये जिन्होंने टैगोर केन्द्र में तीन यादगार घंटे गुज़ारे और भारत और पण्डित जवाहरलाल नेहरू के बारे में जाना।

माह नवंबर के दौरान टैगोर केन्द्र में आयोजित हुये अन्य कार्यक्रम

4 नवंबर तक चार सप्ताह के लिये केरल के श्री शिहाब वैप्पिपादाथ द्वारा 'Stains and Shadows of the Strokes' नामक चित्र प्रदर्शनी का आयोजन हुआ जिसे अनेक लोग देखने आये।

4 नवंबर। माधुरी चट्टोपाध्याय (वायलिन), रवि श्रीनिवासन (तबला और गायन), हनन एक शिमाओटी (कानुन और प्रकशन), आइओन्ना श्रीनिवासन (भारतीय नृत्य) और मलिका (ओरिएंटल नृत्य) के साथ 'राग मकौम तलम' नामक समूह द्वारा फ़्यूज़न संगीत और नृत्य आयोजन। इन पांच कलाकारों ने भारतीय और अरबी संगीत परंपराओं को पेश किया। गायन के साथ साथ भारतीय और अरबी संगीत वाद्यों पर संगीत बजाया गया, जैसे तबला, वायलिन, कानुन (पारसी सन्तूर), डाराबुका (अरबी ड्रम)। उत्तर भारत के कथक से लेकर Bollywood dance, बंगाल के लोक नृत्य से लेकर अरब के रंगीन ओरिएंटल डांस तक प्रस्तुत किये गये। लगभग 15 अतिथियों ने शो को देखा। जानदार और रंगदार शो के बाद अतिथियों ने खड़े होकर तालियां बजाते हुये कलाकारों को सराहा।

11 नवंबर। कैरोलीन गोडेके द्वारा अर्ध शास्त्रीय भरतनाट्यम नृत्य, फोटो और चित्र। भारतीय नृत्य और ललित कलाओं पर आधारित कैलीडोस्कोप इस कार्यक्रम में जर्मन और भारतीय संस्कृति का अनोखा मिलन दिखाई दिया। गुरू पद्मिनी राव द्वारा नृत्य निर्देशित शास्त्रीय भरतनाट्यम से शुरू होकर कैरोलीन द्वारा निर्देशित अर्ध शास्त्रीय फ़्यूजन नृत्य प्रस्तुत किये गये। कैरोलीन ने नृत्य, इशारों और मुद्राओं द्वारा विभिन्न हिन्दू देवों और देवियों की कहानियां सुनाईं। कर्नाटक संगीत से लेकर जैज़ फ़्यूज़न और भारतीय फ़िल्मी गीत तक भी कार्यक्रम में प्रस्तुत किये गये। कैरोलीन गोडेके ने म्युनिक की ललित कला अकादमी से डिप्लोमा किया है और वे एक नर्तकी और पेंटर हैं। उन्होंने बर्लिन में राज्य-श्री और चेन्नई में सावित्रि जगन्नाथ राव से भरतनाट्यम सीखा। 2004‐05 में उन्हें भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद की ओर से बंगलोर में गुरू पद्मिनी राव से भरतनाट्यम सीखने के लिये छात्रवृत्ति भी मिली। कैरोलीन के उत्कृष्ट नृत्य प्रदर्शन के बाद दर्शकों को कलाकार और पेंटर सुश्री इवा माक्कोस के साथ परिचित करवाया गया। वे एक पहुंची हुयी तेल चित्र कलाकार और एक प्रमाणित कला चिकित्सिक हैं। उन्होंने भारत के साथ अपने सम्बंधों के बारे में बताया। उसके बाद उनकी चित्र प्रदर्शनी 'Destination of Creation' का उदघाटन हुआ। इस समारोह में लगभग 130 अतिथियों ने भाग लिया।

16 नवंबर. विश्व संगीत कॉन्सर्ट - अनुराग. अनुराग नामक यह कॉन्सर्ट दो ऐसे संगीतकारों के मध्य प्रेम और आदर का प्रतीक था जो बिल्कुल अलग सांस्कृतिक और भूगोलीय पृष्ठभूमि से हैं। मिगुएल गुल्डीमान (आठ तारों वाली गिटार) और रणजीत सेन-गुप्ता (सरोद) 2005 में जर्मनी में उनके प्रदर्शन के दौरान पहली बार मिले और तब से वे भारत और यूरोप में अपनी रचनाओं पर मिलकर काम कर रहे हैं। रणजीत सेन-गुप्ता आकाशवाणी के ए ग्रेड कलाकार रहे हैं और कई पुरस्कार जीत चुके हैं। अब तक वे विश्व-भर में शास्त्रीय संगीत और अपनी रचनाओं सहित 15 सीडी और डीवीडी प्रकाशित कर चुके हैं। 1994 से लेकर वे लगातार विश्व भर में भ्रमण कर रहे हैं और 20 से अधिक देशों में प्रदर्शन कर चुके हैं। पर अब पहली बार उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत और पश्चिमी संगीत के फ़्यूज़न में भाग लिया। मिगुएल गुल्डीमान ने पैरिस से शास्त्रीय गिटार सीखी और 2003 से वे भारतीय शास्त्रीय कलाकारों के साथ काम कर रहे हैं। शुभाज्योति गुहा, जिन्होंने तबले पर दोनों कलाकारों का साथ दिया, एक निपुण कलाकार हैं। अलाप जैसे धीमे संगीत से शुरू होकर उन्होंने तीव्र गति की युगल-बन्दी पेश की। करीब डेढ सौ उपस्थित अतिथियों ने खूब तालियों के साथ उन्हें सराहा।

20 नवंबर. शोक सभा - डोरा सेमुएल. अभिनेत्री, गायिका और डीआईजी की बर्लिन शाखा की संस्थापक श्रीमती डोरा सेमुएल का 23 अक्तूबर को स्वर्ग-वास हो गया। वे बर्लिन में पहली पीढ़ी के भारतीयों में से एक थीं और डीआईजी या लेडीज़ क्लब जैसे भारतीय क्लबों और संगठनों में बहुत सक्रिय थीं। डीआईजी ने उन्हें श्रधांजली देने के लिये भारतीय दूतावास बर्लिन में एक शोक सभा आयोजित की। इसमें श्री धीरज रॉय ने कुछ श्लोक पढ़े। इसके बाद श्रीमती डोरा सेमुएल पर एक वृत्तचित्र दिखाया गया। फिर उनके निकट रहे कुछ मित्रों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। डीआईजी द्वारा आयोजित नाश्ते के साथ शोक सभा का समापन हुआ।

17 नवंबर. भारत पर एक व्याख्यान. भारतीय दूतावास के कार्य और भारत के बारे में जानने के लिये बर्लिन के एक प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र (Volkshochschule) के 20 सदस्यों के समूह ने भारतीय दूतावास का भ्रमण किया। सूचना विभाग से श्री आशुतोष अग्रवाल ने उनके प्रश्नों के उत्तर दिये। इसके साथ अतुल्य भारत की एक फ़िल्म भी दिखायी गई। ऐसा ही कार्यक्रम 19 नवंबर को भी 15 सदस्यों के एक समूह के साथ दोहराया गया।

18 नवंबर। बर्लिन में राजनयिकों की पत्नियों की अपने देश के बारे में व्याख्यान देने के लिये अन्य राजनयिकों की पत्नियों को आमन्त्रित करने की परंपरा है। इस बार राजदूत श्री सुधीर व्यास की पत्नी श्रीमती वसुंधरा व्यास ने आयोजित किया। इस अवसर पर टैगोर केन्द्र ने बर्लिन निवासी भरतनाट्यम नृत्यांगनायें सुश्री तपती विश्वास और सुश्री विनोधा तनबीपिल्लै द्वारा नृत्य पर व्याख्यान आयोजित किये। व्याख्यान बहुत अच्छे रहे और दोनों कलाकारों को खूब सराहना मिली।

हैम्बर्ग स्थित भारतीय कोंसलावास द्वारा आयोजित कार्यक्रमः
9 से 17 नवंबर तक हैम्बर्ग नगरपालिका के संस्कृति, खेल और मीडिया मन्त्रालय के अध्यक्ष डा निकोलस हिल ने एक प्रतिनिधि मण्डल के साथ सांस्कृतिक और मीडिया सम्बंध प्रगाढ़ करने के लिये दिल्ली, हैदराबाद, कलकत्ता और मुम्बई का दौरा किया। प्रतिनिधि मण्डल ने कलकत्ता के 'रूप कला केन्द्र' के साथ छात्रों, अध्यापकों और फ़िल्मों के आदान प्रदान के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। 'रूप कला केन्द्र' कलकत्ता के सूचना और सांस्कृतिक मन्त्रालय के अधीन फिल्मों और सामाजिक संचार के लिये एक स्वायत्त पंजीकृत संस्था है। हैम्बर्ग मीडिया स्कूल के अध्यक्ष श्री हुबर्टस मेयर बुर्कहार्ड्ट ने कहा कि पांच छात्रों का पहला समूह फरवरी से जून तक उनके मीडिया स्कूल का मुआयना करने आयेगा। ऐसा ही हैम्बर्ग के स्कूल द्वारा भी जल्द ही किया जायेगा।

7 नवंबर को महाकोंसल डा. विनोद कुमार ने हैम्बर्ग के एक स्कूल में (Hanaa Gymnasium) छात्रों को 'एक राजनयिक का जीवन और कैरियर' पर एक व्याख्यान दिया। यह कार्यक्रम हैम्बर्ग के राजनीति और अर्थव्यवस्था संस्थान द्वारा आयोजित किया गया था। व्याख्यान के बाद प्रश्नोत्तर हुआ।

14 नवंबर को हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में सातवां दक्षिण भारतीय दिवस मनाया गया। इसका मुख्य विषय था 'दक्षिण एशिया में मध्य वर्ग की भूमिका'। कोंसल श्री एस आर पटनायक ने इस विषय पर एक व्याख्यान दिया और पोडियम वार्तालाप में भाग लिया। इस समारोह में आयोजित हुये सांस्कृतिक कार्यक्रम को बहुत संख्या में लोग देखने आये।

25 नवंबर को हैम्बर्ग के तकनीकी विश्वविद्यालय के छात्रों ने 'इण्डिया डे' आयोजित किया। इसमें भारत की संस्कृति, अर्थ-व्यवस्था और वैज्ञानिक प्रगति पर ऑडियो विजुअल व्याख्यान दिये गये। छात्रों ने भारतीय नृत्य भी प्रस्तुत किया। एक रंगोली प्रतियोगिता भी आयोजित की गई थी। महाकोंसल डा. विनोद कुमार ने कार्यक्रम में भाग लिया और सभा को संबोधित किया। कार्यक्रम के अन्त में छात्रों द्वारा बनाया गया नाश्ता परोसा गया।

28 नवंबर को डीआईजी विन्सन (Winsen) ने दीपावली मनाई। श्री गुन्थर पॉस्ट ने कथक और फ़्लेमेंको नृत्य का फ़्यूजन प्रस्तुत किया। इसके बाद एक जोड़ी ने Bollywood नृत्य पेश किया। डीआईजी विन्सन के अध्यक्ष श्री मार्टिन शेरियन ने केरल में वंचित लोगों के लिये बनवाये गये घरों पर और बच्चों की स्कूली शिक्षा के लिये डीआईजी विन्सन के सदस्यों द्वारा दिये दान पर एक ऑडियो विजुअल व्याख्यान दिया। महाकोंसल डा. विनोद कुमार ने भी इस अवसर पर एक भाषण दिया।

बंगाली प्रवासी समुदाय को खली दुर्गा पूजा की कमी

यह स्वभाविक है कि विदेश में लंबे समय तक रहने से अपने देश, अपने क्षेत्र के रीति रिवाज़, त्यौहार आदि बहुत अधिक खलने लगते हैं। ऐसा यहां रह रहे बंगाली समुदाय के साथ भी है। म्युनिक निवासी अमिताव दास का कहना है कि दुर्गा पूजा बंगाल का सबसे बड़ा त्यौहार है। इसमें लोग आपस में मिलते हैं, मिठाईयां और कपड़े बांटते हैं, बड़े लोगों का बच्चों को उपहार देते हैं आदि। केले के वृक्ष को गंगा में ले जाकर धोते हैं, फिर उसे लाईटों से सजाते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान पंचमी से लेकर दश्मी तक हर दिन उत्साह के साथ मनाया जाता है। अष्टमी और नवमीं तो बहुत महत्वपूर्ण होता है, लोग जैसे पागल हो जाते हैं। हर गली में पण्डाल लगे होते हैं। लोग हर पण्डाल में जाकर अवलोकन करते हैं कि वह पण्डाल कैसा बना है। उनमें आपस में बहुत प्रतिस्पर्धा होती है।इसके अलावा लक्षमी पूजा, जिसे बंगाल में लक्खी पूजा कहा जाता है और सरस्वति पूजा भी बंगाल में खूब ज़ोर शोर से मनाई जाती है। दूसरा बड़ त्यौहार है 'भाई दूज', जिसमें बहनें भाईयों के माथे पर टीका लगाती हैं। यहां भी बहुत लोग आपस में मिलते हैं। इन सब आयोजनों की कमी यहां रहने वाले बंगाली समुदाय को काफ़ी खलती है। वे आगे कहते हैं कि स्टुटगार्ट में लोग बड़े स्तर पर पूजा करते हैं। हम वहां जाते हैं, पैसा दान करते हैं, तीन चार दिन रहते हैं। इन दिनों मांस बिल्कुल नहीं खाया जाता और केवल पुरोहित ही सब पूजा पाठ करता है, मन्त्र आदि पढ़ता है। उन्होंने भी दो बार दुर्गा पूजा आयोजित करने का प्रयत्न किया लेकिन असफ़ल रहे।

दीवाली यानि काली पूजा भी बड़ा त्यौहार है। इसमें तो दुर्गा पूजा से भी दस गुना अधिक खर्च किया जाता है। इसमें तो मांस भी खाया जाता है। नगरपालिका, फ़ायर ब्रिगेड एक दिन से अधिक पण्डाल को रहने नहीं देते क्योंकि पण्डाल सड़क रोक कर बीच में लगाया जाता है, इसलिये पण्डाल को दस दिन तक रखने के लिये दूसरे तरीके निकालने पड़ते हैं। बहुत हल्ला गुल्ला होता है। दस बजे के लाउडस्पीकर का उपयोग वर्जित होता है लेकिन फिर भी गाने चलते हैं, फ़िल्में दिखाई जाती हैं, नाटक आदि भी किये जाते हैं। बहुत से छोटे छोटे क्लब इस तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

और एक चीज़ की कमी खलती है, बंगाली कहानियों की किताबें। बंगाल में बड़े बड़े साहित्यकार पैदा हुये हैं जैसे रवीन्द्रनाथ टैगोर, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, मधुसुदन दत्त आदि। बंगाली जहां भी जाते हैं, बंगाली पुस्तकों का पुस्तकालय अवश्य बनाते हैं। म्युनिक में ऐसा एक पुस्तकालय बनाने पर विचार चल रहा है।

म्युनिक में काफ़ी अरसे से रहने वाले मूलतः बंगाल निवासी Edward gomes बंगाल के रस भरे रसगुल्लों को याद करते हुये कहते हैं कि कोलोन, बर्लिन जैसे शहरों में भी बंगाली समुदाय काफ़ी बड़ा है और वे लोग मिलजुल कर पूजा का आयोजन करते हैं। लेकिन म्युनिक में लोग कम हैं। उनमें भी एकता की कमी है और पैसा लगाने में हिचकिचाते हैं। कुछ वर्ष पहले म्युनिक में कुछ बंगाली लोगों ने 'भारतीय संघ' नामक एक संस्था बनायी थी लेकिन अब वह संस्था लगभग निष्क्रीय है। उन्होंने पंकज उधास, मन्ना डे आदि जैसे कलाकारों को म्युनिक बुलाया था। यहां बंगालियों की अपेक्षा बंगलादेश के लोग बहुत अधिक हैं। धर्म को छोड़कर भाषा, सांस्कृति, बोलचाल, खाना पीना, पहनावा सबकुछ एक सा है।

म्युनिक में भारतीय शास्त्रीय गायन कार्यक्रम

6 अप्रैल 2008 को म्युनिक में भारत के जाने माने शास्त्रीय गायन कलाकार 'शुभांकर चैटर्जी' ने अपनी मधुर आवाज़ का जादू म्युनिक के दर्शकों पर बिखेरा।करीब एक सौ भारतीय, अफ़्गानी और जर्मन दर्शकों से हॉल खचाखच भरा था। ठीक साढ़े पांच बजे कार्यक्रम की शुरूआत हुयी शुभांकर चैटर्जी जी के म्युनिक निवासी शिष्य 'सोम प्रकाश' के सितार वादन से। तबले पर उनका साथ दिया प्रबीर मित्र के म्युनिक निवासी शागिर्द 'परवेज़' ने। सोमप्रकाश ने सितार पर यमन राग बजाकर दर्शकों को आनन्दित कर दिया। इस तरह शिष्यों को गुरुओं से पहले कला पर्दर्शन का अवसर दिया गया। उसके बाद करीब सवा छह बजे इंटरवल हुआ। दूसरे भाग में शुभांकर चैटर्जी ने अपनी मधुर आवाज़ में शास्त्रीय गायन गाकर सबका मन मोह लिया। तबले पर उनका साथ दिया प्रबीर मित्र ने। शुभांकर चैटर्जी जी ने यमन राग में तराना गाया, उसके बाद कौशी ध्वनी और बनारस की लोकप्रिय विधा में कजरी, होली और गज़ल गायी। करीब साढ़े आठ बजे कार्यक्रम का समापन हुआ।

शुभांकर चैटर्जी जी बनारस घराने के हैं और उन्होंने भीमसेन जोशी, कुमार मुखर्जी और गिरिजा देवी से शिक्षा पायी है। शुभांकर चैटर्जी और प्रबीर मित्र दोनों इस समय युरोप के टूर पर हैं और अक्सर युरोप आते रहते हैं। शुभांकर चैटर्जी तो वीन में स्थित एफ़्रो एशियन संस्थान (http://aai-wien.at/) में भी संगीत सिखाते हैं। वे अपने शिष्य सोमप्रकाश के कला पर्दर्शन से सन्तुष्ट दिखे। हालांकि बसेरा के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि भारत में कार्यक्रम करने का अधिक मज़ा आता है। युरोप का ये टूर उनके लिये काफ़ी तनाव भरा रहा। इस कार्यक्रम से ठीक पहले उन्होंने म्युनिक के हरि ओम मन्दिर में कई सारे भजन गाकर श्रद्धालुओं को आनन्दित किया था और उसी दिन सुबह वे स्पेन में कार्यक्रम करने के पश्चात वापस पधारे थे।

अन्तरराष्ट्रीय गीतों की शाम

A regularly organised evening of singing folk songs of other european languages.1949 में Josef Gregor नामक एक व्यक्ति ने एस्सन शहर में एक संस्था शुरू की जिसमें कुछ लोग मिलकर गिटार के साथ यूरोप की कई भाषाओं के लोक-गीत गाते थे। यह संस्था आज जर्मनी के 25 शहरों में फैल चुकी है। म्युनिक में भी हर महीने चार बार ये लोग मिलकर बहुत सारी यूरोपीय भाषाओं के लोक गीत गाते हैं, वे भी मूल भाषा में। सुविधा के लिए गीतों के बोलों को रोमन लिपि में और जर्मन भाषा में उनके अनुवाद को स्टाफ़ नोटेशन (staff notation) के साथ प्रिंट करके प्रतिभागियों को दे दिए जाते हैं। फिर लोग मिलकर इस गीत को गाने का प्रयत्न करते हैं।  इसमें भाग लेने के लिए न किसी प्रकार के पंजीकरण की आवश्यकता है और न ही कोई शुल्क देने की। हां, हर बार आयोजन स्थल के किराए की पूर्ति के लिए थोड़े दान का आह्वान ज़रूर किया जाता है। लोग खुद भी उनकी भाषा में कोई गीत प्रस्तावित कर सकते हैं। म्युनिक में Margarete Löwensprung नामक महिला अपने पति के साथ बहुत वर्षों से यह संस्था चला रही हैं। वे तमाम भाषाओं की बारीकियों और शैलियों से भली भान्ति परिचित हैं। हर गीत शुरू करने से पहले वे गीत, उसकी भाषा और उस देश की संस्कृति के बारे में थोड़ा समझाती हैं। फिर वे गिटार पर वह गीत बजा के दिखाती हैं। फिर लोग भी उनके साथ वह गीत गाने का प्रयत्न करते हैं।

भाषाओं को सात श्रेणियों में बांटा गया है। जैसे लैटिन और रोमन भाषाएं (लैटिन, पुर्तगाली, यहूदियों की स्पेनिश, कातालान, ओसीटान, फ्रांसीसी, इतालवी, कोर्सीकन, रोमानियाई), जर्मन भाषाएं (अंग्रेजी, फ्रिसियन, डच, अफ्रीकी, जर्मन, लक्जमबर्गिश, स्वीडिश, डेनमार्क, नार्वे, आइसलैण्ड की भाषाएं), बाल्टिक भाषाएं (लिथुआनियाई, लातवियाई), स्लाव भाषाएं (बेलोरूसी, उक्रेनी, चेक, स्लोवाक, स्लोवेनियाई, क्रोएशियाई, बोस्नियाई, सर्बियाई, बल्गारिश, पोलिश, रूसी), सेल्टिक भाषाएं (ब्रेटन, वेल्श, स्कॉटिश, आयरिश, गेलिक), छिटपुट इण्डो-जर्मन भाषाएं (ग्रीक, अल्बेनियन), और अन्य भाषाएं जैसे फिनिश, एस्टोनियन, हंगरी, तुर्की, बास्क माल्टीज़ आदि। सुविधा के लिए हर श्रेणी के गीतों को अलग रंग के कागज़ पर छापा जाता है।

http://www.klingende-bruecke.de/
http://www.klingende-bruecke-muenchen.de/
http://www.loewensprung.net/bruecke_termine.html

भारतीय कंपनियों को आकर्षित कर रहा जर्मनी

जर्मनी में भारतीय उद्धमियों को निवेश के लिए आकर्षित करने की होड़ लगी है। ये देखने को मिला Hannover में कंप्यूटर प्रौद्योगिकी पर आधारित विश्व के सबसे बड़े वार्षिक व्यापार मेले CeBit में।3 से 8 मार्च तक चले इस मेले में हैस्सन (Hessen) राज्य की ओर से भारतीय सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए एक सेमिनार का आयोजन हुआ 'Business Opportunities for Indian IT companies in Europe'. इसमें भारतीय कंपनियों के लिए इस राज्य और फ़्रैंकफ़र्ट शहर में निवेश करने के फायदे गिनाए गए। इस सेमिनार में राज्य सरकार के कुछ प्रतिनिधि और कुछ भारतीय सॉफ़्टवेयर कंपनियों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

सेमिनार में Ms. Nicol Wolf (Project Manager India, Economic Development, Hessen) ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि यूरोप के 'सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उद्योग' (ICT, Information and Telecommunication) में जर्मनी 20.8% अंश के साथ सबसे आगे है। यूरोप में निवेश के लिए सबसे अच्छा देश इंगलैण्ड के बाद जर्मनी को माना जा रहा है। हैस्सन राज्य में स्थित भारतीय कंपनियों में 6000 लोग कार्यरत हैं। 2007 में भारतीय कंपनियों ने 344 करोड़ यूरो की बिक्री की। ये आंकड़े जर्मनी के बाकी सभी राज्यों से कहीं अधिक हैं।

उसके बाद Mr. Olaf Jüptner (Hessen IT) ने प्रस्तुति-करण देते हुए कहा कि हैस्सन राज्य यूरोपीय महाद्वीप के बीचोंबीच स्थित है। फ़्रैंकफ़र्ट शहर से 150 मील के अर्द्ध व्यास के अन्दर आप साढे चार करोड़ उपभोक्ताओं तक पहुंच सकते हैं। ये रेल, हवाई, पानी और सड़क के रास्तों से पूरे विश्व के साथ अच्छी तरह जुड़ा है। फ़्रैंकफ़र्ट का हवाई अड्डा माल के लिए यूरोप में प्रथम स्थान पर और यात्रियों के लिए तीसरे स्थान पर है। और ये यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी इंटरनेट हब है। ICT सेक्टर में हैस्सन की दस हज़ार से अधिक कंपनियों में लगभग 95 हज़ार लोग कार्यरत हैं और 31 खरब यूरो की टर्नओवर उत्पन्न कर रहे हैं। शोध और पेटेंट के मामले में भी हैस्सन पूरो यूरोप में अग्रणी है। e-governance में भी हैस्सन राज्य का कामधाम पांच हज़ार से अधिक नेटवर्क द्वारा जुड़े कंप्यूटरों से होता है। इनमें से 150 कंप्यूटर खास इस व्यापार मेले के लिए तैयार किए गए हैं जो सीधे नेटवर्क से जुड़े हुए हैं और जिनसे आंगतुकों को हैस्सन राज्य की e-governance के बारे में प्रदर्शन दिया जा सकता है।

चण्डीगढ़ की कंपनी Drish Infotech Limited के प्रबंध निर्देशक 'हर्ष-वीर सिंह जसपाल' जो इसे सेमिनार में भाग ले रहे थे, खास कंप्यूटर गेम्स के विकास में रुचि ले रहे थे। उनकी कंपनी वेब उपकरण, डिवाइस ड्राइवर बनाने और टैलिकॉम सेवाएं प्रदान करने में अग्रणी है। वे भी यूरोप में व्यवसाय फ़ैलाना चाहते हैं।
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from left Marion Link (Project Manager ICT, Economic Development Frankfurt), Harshvir Singh Jaspal (Drish Infotech Limited), in the last Marita Mecke (Frankfurt Rhein Main GmbH)
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उसके बाद Ms. Marion Link (Project Manager ICT, Economic Development Frankfurt) ने फ़्रैंकफ़र्ट शहर में निवेश के फ़ायदों को गिनाते हुए कहा कि फ़्रैंकफ़र्ट एक अन्तरराष्ट्रीय शहर है जिसकी एक चौथाई जनसंख्या विदेशी है। यहां 180 देशों के लोग रहते हैं। 2600 की जनसंख्या के साथ यहां भारतीय समुदाय भी काफ़ी बड़ा है, जिसमें भारतीय डॉक्टर, वकील, लेखा-कार, टैक्स सलाहकार आदि भी हैं। फ़्रैंकफ़र्ट में भारतीय उप-दूतावास, पर्यटन कार्यालय, इण्डियन ट्रेड प्रोमोशन ऑर्गेनाइजेशन (ITPO) भी स्थित हैं। फ़्रैंकफ़र्ट से भारत को प्रति सप्ताह 50 उड़ानें जाती हैं। इसके अलावा यहां अनेक भारतीय क्लब, संगठन, मन्दिर, रेस्त्रां आदि हैं। यहां अनेक अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल भी हैं जिसमें पढ़ने के बाद आपके बच्चों को भारत वापस जाने के बाद भाषा की समस्या नहीं आती।

उसके बाद दो भारतीय कंपनियों ने जर्मनी में अपनी सफलता के बारे में प्रस्तुति-करण दिया। पहली कंपनी थी B2B Sofware जो 2001 में भारत से ग्रीन कार्ड पर आए Toney Jones और एक जर्मन ग्रैजुएट लड़की द्वारा संस्थापित की गई थी। उन्होंने कहा कि जर्मनी में बाज़ार है लेकिन ये आसानी से प्राप्त नहीं होता। सही संपर्क होने से ही बाज़ार में प्रवेश कर पाना सम्भव होता है। इसके लिए बहुत धैर्य और पैसे की आवश्यकता होती है। लेकिन जर्मनी की ग्राहक कंपनियां अमरीका की कंपनियों की अपेक्षा अधिक सुसंगत होती हैं। एक बार सम्बंध बन जाने पर वे आपको आसानी से नहीं छोड़तीं। लेकिन आपको अपने उत्पादों और सेवाओं में लगातार बदलाव करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अब हम यहां पर उत्पाद बनाकर 'Made in Germany' ब्राण्ड को आगे अरब देशों में भी ले जा रहे हैं।

इसके बाद भारतीय कंपनी Polaris Software, जो 2001 से फ़्रैंकफ़र्ट में उपस्थित है, से Mr. Marcel Nebel ने बताया कि फ़्रैंकफ़र्ट दूतावास ने हाल ही में भारत से उच्च शिक्षित कर्मियों को शीघ्र वीज़ा देने की नीतियों में बदलाव किए हैं। जहां अन्य राज्यों में वीज़ा मिलने में छह सात सप्ताह लग जाते हैं, वहीं फ़्रैंकफ़र्ट से दो तीन सप्ताह में वीज़ा मिल जाता है। गोपनीयता के कारण जर्मनी की कंपनियां चीन की बजाय भारतीय कंपनियों को काम देने में अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं। लेकिन अगर आप कोई काम नहीं कर सकते तो आप में न कहने की हिम्मत होनी चाहिए। हां भाषा और ठण्डा मौसम की समस्या यहां अधिक है। हालांकि जर्मन भाषा एक इण्डो-जर्मन भाषा है, फिर भी यह भारतीय भाषाओं से काफ़ी अलग है और मुश्किल भी। लेकिन सरकार न्यूनतम शुल्क पर भाषा सीखने में मदद करती है। इस उद्योग में भारतीय होने का एक फ़ायदा ये भी है कि वे कभी किसी तकनीक को न नहीं कहते। वे शीघ्र ही नई तकनीक सीख लेते हैं और उसमें काम करना आरम्भ कर देते हैं। Drish Infotech Limited से हर्ष-वीर सिंह जसपाल के पूछने पर, कि क्या सत्यम घोटाले का जर्मनी में भारतीय कंपनियों की छवि पर कोई अन्तर आया है, उन्होंने कहा कि नहीं। इंगलैण्ड की अपेक्षा जर्मन कंपनियों को इससे बहुत कम फ़र्क पड़ता है कि किसी अन्य कंपनी में क्या हुआ।

उसके बाद भारतीय उद्धिमियों को हैस्सन सरकार के बड़े से पवेलियन की सैर कराई गई और प्रबंधन में उपयोग की जा रही प्रौद्योगिकी के बारे में अवगत करवाया गया।

बवेरिया के कुछ पारंपरिक खेल

Short description of some bayerish traditional sports.यह कहना गलत होगा कि पश्चिमी या यूरोपीय देशों में संस्कृति तथा परंपरायें नहीं हैं, या फिर खराब हैं। यहां भी सदियों से धीरे धीरे बन रहीं और विकसित हो रही परंपराओं को न केवल जीवित रखा जा रहा है बल्कि बहुत औपचारिक रूप से उन्हें एक संगठित रूप दिया जा रहा है। केवल परंपरायें ही नहीं बल्कि पारंपरिक संगीत ने भी अब एक औपचारिक रूप धारण कर लिया है। इन सभी में बहुत कड़े नियमों का पालन किया जाता है। गांव गांव शहर शहर ऐसी संस्थायें बनी हैं जो नियमित तौर पर प्रशिक्षण, कार्यशालायें और कार्यक्रम आयोजित करती हैं। बहुत से समूह तो शादियों या पार्टियों में इन्हें सेवाओं के रूप में या कार्यशालाओं के रूप में प्रदान करते हैं और अतिथियों का मनोरंजन करते हैं। और बहुत सी परंपरायें भारत से भी मिलती हैं। जैसे नसवार का सेवन। जर्मनी, खासकर बवेरिया में अभी भी गांवों में नसवार (Schnupftabak, तंबाकू का पाउडर) का सेवन किया जाता है। इसे हथेली के पीछे रख कर नाक द्वारा अन्दर खींचा जाता है। कई जगह तो नसवार सेवन की प्रतियोगितायें भी आयोजित होती हैं। महफ़िलों में जो लोग पहली बार नसवार को आज़माना चाहते हैं, उनके लिये एक लकड़ी की मशीन (Schnupftabakmaschine) का उपयोग किया जाता है। इसमें एक पतली सी पत्ती के एक सिरे पर थोड़ी सी नसवार रख कर एक झटके से नसवार को नाक के अन्दर फेंका जाता है।

मर्दों को तो भारत में भी पंजे मिलाकर यह दिखाने का शौक रहता है कि कौन अधिक ताक़तवर है। इसी का जर्मन संस्करण है एक चमड़े के रिंग में बीच वाली उंगली फंसा कर खींचना (Fingerhackeln). जो अपने प्रतिद्वधी को अपनी ओर खींच लेता है, वह जीत जाता है।

एक अन्य खेल भारत में बच्चों को खिलाये जाने वाले लोकप्रिय खेल musical chair से मिलता जुलता है। पर इसमें सीडी कि बजाय लाईव बवेरियन संगीत बजाया जाता है और कुर्सियों के इर्द गिर्द भागने की बजाय सभी को बवेरियन टोपी पहनाई जाती है और पीछे वाले व्यक्ति को आगे वाले की टोपी खींच कर पहननी होती है। संगीत रुकने पर जिसके सर पर टोपी नहीं है उसे खेल से निकलना पड़ता है। रोमांच तब बढ़ जाता है जब प्रतिभागी एक हाथ से अपनी टोपी तब तक पकड़े रहना चाहते हैं जब तक आगे वाले की टोपी उनके दूसरे हाथ में नहीं आ जाती। आखिरी चरण तक पहुंचते पहुंचते तो ज़बरदस्ती उठा पटक करके किसी तरह टोपी छीनने की नौबत आ जाती है।

एक अन्य परंपरा है बवेरियन मर्दों का लोकनृत्य Schuhplattler, यानि जूतों के साथ खास तरह का नृत्य। इसमें मर्द लोग संगीत के साथ (अधिकतर तीन ताल वाला संगीत, सीडी पर या लाईव) जूते फ़र्श पर पटकते और फिर हाथों से टकराते हैं।

इण्डो-जर्मन समिति कार्ल्सरूहे ने करवाए तीन कार्यक्रम

चित्र में गणतन्त्र दिवस पर इण्डो जर्मन समिति से बलबीर गोयल (मध्य में), संगीत मण्डली इण्डिगो मसाला और अन्य सदस्य,© Jodo Fotoइण्डो-जर्मन समिति कार्ल्सरूहे ने इस वर्ष की पहली तिमाही में तीन कार्यक्म आयोजित किए। 29 जनवरी 2010 को साठवें भारतीय गणतन्त्र दिवस के साथ साथ इण्डो-जर्मन समिति की पचासवीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई गई जिसमें म्युनिक से भारतीय कोंसल श्री अनूप कुमार मुदगल और कार्ल्सरूहे की प्रथम मेयर श्रीमती मार्ग्रेट मेर्गन मुख्य अतिथि थे। श्री मुदगल ने इस उपलक्षय पर इण्डो-जर्मन समिति द्वारा प्रकाशित द्वि-भाषी मुस्तक Karlsruhe Meets India का उद्घाटन भी किया। इस पुस्तक में दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर नज़र डाली गई है। कार्यक्रम में लगभग दो सौ लोगों ने भाग लिया। इण्डिगो मसाला नामक संगीत मण्डली ने मनोरंजन की ज़रूरत पूरी की।

6 मार्च 2010 को अनौपचारिक वातावरण में आयोजित होली कार्यक्रम में लगभग सौ लोगों ने भाग लिया। खराब मौसम के कारण थोड़े कम लोग जमा हुए।

13 मार्च 2010 को आयोजित एक शास्त्रीय संगीत कॉन्सर्ट में राणाजीत सेनगुप्ता का सरोद वादन और समीर नन्दी का तबला वादन सुनने भी करीब चालीस लोग आए।

म्युनिक कोंसलावास ने मनाया 61वां गणतन्त्र दिवस

Indian Flag was hoisted at indian consulate in Munich on the eve of 61th Republic Day. It was follwed by singing the national anthem, reading the message of President of India and then light breakfast. Despite working day and snowy weather, many indians turned up.




ਕੰਮਕਾਜ ਦਾ ਦਿਨ ਹੋਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ 26 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਗਣਤੰਤਰ ਦਿਵਸ ਦੇ ਮੌਕੇ ਤੇ ਕਈ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕ ਮਉੰਸ਼ਨ ਵਿਖੇ ਭਾਰਤੀ ਕੋਂਸਲਾਵਾਸ ਵਿੱਚ ਹਾਜਰ ਹੋਏ. ਉੱਥੇ ਭਾਰਤੀ ਝੰਡਾ ਫਹਰਾਇਆ ਗਿਆ, ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਪੜਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਨਾਸ਼ਤਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ.




26 जनवरी 2010 को म्युनिक स्थित भारतीय कोंसलावास में 61वां गणतन्त्र दिवस धूमधाम से मनाया गया। कोंसल जनरल श्री अनूप मुदगल के भारतीय झण्डा फहराने के बाद राष्ट्रीय गीत गाया गया। फिर उन्होंने अंग्रेज़ी में राष्ट्रपति का सन्देश पढ़ा। सन्देश में भारतीय किसानों को अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने के लिये रचनात्मक तरीके खोजने का आह्वान किया गया था, सड़कों रेलों जैसी आधारभूत संरचनाओं में वृद्धि, महिलाओं के सशक्तिकरण, मीडियां द्वारा सकारात्मक जागरुकता फैलाने, आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने और प्रगति का मार्ग अपनाने पर बल दिया गया था। सन्देश पढ़ने के बाद वीज़ा हॉल में चाय नाश्ते और गपशप के लिये उपस्थित लोगों को आमन्त्रित किया गया। राष्ट्रपति के अंग्रेज़ी और हिन्दी भाषा में मुद्रित सन्देश की कॉपियां आंगतुकों के लिये रखी हुयीं थीं। इसके अलावा भारत के सन शाईन प्रकाशन द्वारा हिन्दी की ढेर सारी व्याकरण और अभ्यास पुस्तिकायें भी ले जाने के लिये उपलब्ध थीं। काम काज का दिन और बर्फ़ पड़ने के बावजूद करीब पचास लोगों ने समारोह में अपनी उपस्थित जताई।

जर्मनी की स्वास्थय बीमा योजना कठिनाइयों की कगार पर

लंबी आयु और बेरोजगारी से जर्मनी की स्वास्थय बीमा योजना कठिनाइयों की कगार परजर्मनी की स्वास्थय बीमा योजना संसार भर में प्रशंसनीय रही है। समाज के हर वर्ग को, मजदूर से लेकर मालिक तक को इसका समान लाभ मिलता रहा है। आधुनिक दवाओं और उपकरणों का लाभ भी सभी वर्ग समान रूप से ले रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह मानवता उपकारी योजना आर्थिक संकट से ग्रस्त है। इसके विभिन्न कारण हैं। मुख्य कारण आधुनिक दवाइयों और उपकरणों पर अधिक खर्च का होना है। दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को अपनी नई अविष्कृत दवाओ का मूल्य कुछ सालों तक स्वयं ही निर्धारित करने की अनुमति है, जो कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत मंहगी होती है। आधुनिक उपकरणों की कीमतें भी आसमान से छूने वाली होती हैं। हर रोगी चाहेगा ही कि उसे उच्च कोटी की चिकित्सा मिले। हर चिकित्सिक चाहेगा कि वह रोग निदान एवं निवारण में अति योग्य बने और अधिक से अधिक रोगियों को कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा सहायता करके नाम कमाए। दूसरी ओर दवाइयां बनाने वाली कंपनियों के विशेषज्ञ हर सम्बंधित सरकारी विभाग एवं मन्त्रालय में महत्वपूर्ण पोस्टों पर सरकार के परामर्शदाता के तौर पर अवैतनिक सेवारत हैं। यह परामर्शदाता सिर्फ अपनी कंपनियों के हितों की ही रक्षा करते हैं। इसके अतिरिक्त ये लोग अपने लोगों को राजनीतिक पार्टियों के प्रभावशाली स्थानों पर नियुक्त करवाकर एवं प्रभावशाली राजनीनिज्ञों को कंपनी में लेकर अपने हितों की रक्षा हेतु अनुकूल वातावरण बना लेने में सफ़ल रहते हैं।

स्वास्थय बीमा कंपनियां एक ओर तो आधुनिक दवाईयों और उपकरणों पर होने वाले खर्च से दबे रहते हैं, दूसरी ओर इनके प्रधान आदि जनता के बीमा के पैसे में से अपनी मनमानी के वेतन लेते हैं, वार्षिक लांभांश को किसी लाभप्रद जगह पर लगा देते हैं। जब कभी बीमे की राशि की आय कम हो जाए, तो घाटे में जाने का शोर मचाते हैं। पिछले लाभांश को घाटापूर्ति में लगाने की बजाय लोगों के बीमे की किश्त बढ़ा देते हैं। मुख्य तर्क यह दिया जाता है कि लोग लंबी आयु के हो रहे हैं, एवं बेरोजगारी की वजह से बीमा किशत देने वालों की संख्या कम होती जा रही है, जिसकी वजह से कंपनियों का खर्च ज्यादा और आय कम होती जा रही है इत्यादि।

उपरोक्त कारणों के साथ साथ आम जनता में स्वास्थय बीमा के सदुपयोग और स्वास्थय सम्बंधी प्राथमिक रोग निदान और रोग निवारण के बारे में अज्ञानता और लाप्रवाही का होना भी है। भारतीय समाज में आयुर्वेदीय एवं परंपरागत स्वास्थय ज्ञान जन जन में विद्यमान है। उदाहरण के तौर पर पेट में गड़बड़ हो, तो मीठी सौंफ या अजवाइन आदि लेना हर कोई जानता है। लेकिन जर्मन समाज में ऐसी अवस्था में तुरन्त डॉक्टर के पास जाने की प्रथा बन चुकी है। अपने ही सुख के लिए बहुत से लोग अपने ही स्वास्थय की देखभाल नहीं करते। बहुत से लोगों की ऐसी धारणा बन चुकी है कि स्वास्थय बीमा के कार्ड द्वारा डाक्टर से स्वास्थय खरीदना है। इससे बीमा कंपनियों का खर्च अनावश्यक बढ़ जाना स्वाभाविक ही है। निष्कर्ष यह निकलता है कि जब तक जन मानस में 'मेरा जीवन, मेरा स्वास्थय' की भावना पैदा नहीं की जाती, जब तक दवाइयां बनाने वाली कंपनियां सामाजिक ज़रूरतों के अनुसार नहीं चलतीं, जब तक बीमा कंपनियां टेढे मेढे ढंगों से सार्वजनिक खजाने से आर्थिक सन्तुलन बनाने की मनोवृति नहीं रोकेंगी, तब तक इस बनावटी टायफून से निकलना सम्भव नहीं हो सकेगा। इस समस्या के समाधान हेतु सभी ओर से सम्मिलित प्रयास से अभियान चला कर सभी को ही इस योजना के हित में जागृत करने की परम आवश्यक्ता है।

राम प्रहलाद शर्मा, म्युनिक