शुक्रवार, 27 मार्च 2020

जर्मन प्रकाशन की नई हिंदी course book

the new book 'hindi ohne mühe' from assimil verlag is a complete course for self learning with texts in original script, phonetic script, German translation and word to word translation. the book is divided into passive and active phases so that you slowly learn to do without the phonetic script. it comes with four audio and one mp3 cd. price tag: €100 with CDs and €25 without CDs.
एक जर्मन प्रकाशन द्वारा हिंदी सीखने के लिए पूर्ण पाठ्यक्रम के रूप में एक नई पुस्तक प्रकाशित की गई है, जिसमें देवनागरी लिपि का भी भरपूर उपयोग किया गया है। 576 पृष्ठों की 55 अध्यायों वाली यह पुस्तक चार ऑडियो सीडी, एक mp3 सीडी के साथ उपलब्ध है। यह उन लोगों के लिए बहुत अच्छी है जो भाषा के साथ साथ देवनागरी लिपि भी अच्छी तरह सीखना चाहते हैं। हरेक अध्याय में बाएं पन्ने पर साधारण वाक्य देवनागरी में और फिर IAST (international alphabet of Sanskrit transliteration) नामक लिपि में दिए गए हैं। दाएं पन्ने पर वही वाक्य पहले जर्मन भाषा में साहित्यिक और शाब्दिक अनुवाद में लिखे गए हैं। इससे हर वाक्य और शब्दों को समझना, उनके देवनागरी रूप को समझना आसान हो जाता है। पन्नों के नीचे जर्मन भाषा में उन वाक्यों और शब्दों संबंधी अतिरिक्त जानकारी दी गई है। अभ्यास भी देवनागरी और IAST लिपि में दिए गए हैं और उन्हें जर्मन भाषा में अर्थ बताना होता है। अभ्यासों के उत्तर अगले ही पन्ने पर दिए गए हैं। सारे अध्याय और अभ्यास ऑडियो के रूप में सीडी पर भी उपलब्ध हैं। यही नहीं, mp3 सीडी में तो हर अध्याय और अभ्यास युनिकोड हिंदी में लिखी हुई टेक्सट फाईल के रूप में भी उपलब्ध है। अध्यायों में देवनागरी के अक्षर लिखने की विधि और अभ्यास भी दिए गए हैं। और एक ख़ास बात यह है कि यह पुस्तक युनिकोड में डिज़ाइन की गई है। जैसे मात्राओं के चिन्ह युनिकोड में दिखने वाले गोल चक्कर के साथ प्रदर्शित किए गए हैं ताकि यह पता रहे कि वे चिन्ह केवल एक व्यंजन के साथ ही उपयोग होते हैं। भाषा की शुद्धि सुनिश्चित करने के लिए यह पुस्तक भारत में ही डिज़ाइन की गई है। सारे packet का मूल्य काफ़ी ऊंचा है, यानि 99.80 यूरो। बिना सीडी के भी पुस्तक उपलब्ध है, केवल पच्चीस यूरो में। जर्मन लोगों के लिए हिंदी और देवनागरी सीखने का यह उत्तम ज़रिया है। वेबसाइट पर पहला अध्याय और उससे संबंधित एमपीथ्री फाइलें मुफ्त डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं।

यह पुस्तक पहले फ्रांस में प्रकाशित हुई थी। इसे जर्मनी में प्रकाशित करने के लिए 34 वर्षीय Daniel Krasa ने जर्मन अनुवाद पर काम किया। इसके अतिरिक्त वे पहले ही hüber verlag के लिए 'einstieg hindi' नामक पुस्तक और 'reise know how' प्रकाशन के लिए 'hindi for bollywood fans' नामक पुस्तक लिख चुके हैं। इसके अतिरिक्त मराठी, गुजराती और पंजाबी पुस्तकों पर भी काम कर रहे हैं। वे ऑस्ट्रिया से हैं और भारत में कई विश्विद्यालयों में अध्धय्यन कर चुके हैं। उनका कहना है कि 2006 में एकदम से जर्मनी में हिंदी पुस्तकों की बिक्री में उछाल आया था। इसका कारण था जर्मन टीवी पर कई सारी बॉलीवुड फिल्मों का जर्मन भाषा में दिखाए जाना। युवा वर्ग इससे बहुत आकर्षित हुआ था और वह इन फिल्मों को मूल भाषा में देखने के लिए हिंदी सीखना चाहता था और भारत को करीब से देखना चाहता था। पर अब यह उछाल टल गया है क्योंकि लोगों को समझ आ रहा है कि भारत वह नहीं जो इन फिल्मों में दिखाया जाता है। डानial क्रासा का कहना है कि कई हिंदी फिल्में यूरोपियनों को हास्यास्पद लगती हैं पर भारतीय समाज में इन फिल्मों की इतनी भूमिका है कि इन भारत को जाने बिना इन फिल्मों को समझना और ये फिल्में देखे बिना भारत को समझना असंभव है।
Daniel Krasa द्वारा लिखी गई अन्य हिंदी पुस्तकें।
यह पुस्तक बॉलीवुड लहर के आने पर प्रकाशित करने की सोची गई। इसमें हिंदी फिल्म उद्योग को आधार बनाकर फिल्मों में उपयोग कि गई भाषा सिखाने की कोशिश की गई है।
इसमें मुंबईया भाषा या अन्य कठबोलियों के बारे में बताया गया है। इसमें गाली गलोच पर भी नज़र डाली गई है। यह पुस्तक उन्होंने एक अन्य लेखक के साथ मिलकर लिखी है।
इस पुस्तक में बिना देवनागरी लिपि में एक कहानी के रूप में आम बोलचाल की हिंदी को क्रमवार सिखाया गया है।
Daniel Krasa, जो बहुत अच्छी हिंदी और थोड़ी पंजाबी भी बोलते हैं, असल में अमरीका में एमबीए करने की राह पर थे। सारी औपचारिकताएं पूर्ण हो चुकी थीं और उनके प्रस्थान में केवल तीन चार दिन बाकी थे। इस मौके पर उन्होंने सोचा कि यह वह नहीं जो वे करना चाहते हैं। उन्होंने अपना अमरीका का कार्यक्रम छोड़कर भारत की राह पकड़ ली। आज वे अपने इस बरसों पुराने निर्णय पर खुश हैं और उन्हें इस बात पर अफ़सोस नहीं कि वे manager नहीं बने। उन्हें लगता है कि manager बनकर वे मानवता के लिए उतना योगदान नहीं दे पाते जितना ये पुस्तकें लिखकर दिया है।