शुक्रवार, 27 मार्च 2020

समय, एक मुद्रा के रूप में


Importance of alternative economic systems is growing with the debacle of banking systems. One such system is time sharing, a kind of barter system with time as the main currency, more popularly known as helping the neighbours. Hundreds of organisations in German cities and villages practice such system. How does it work? Read.


ਪਹਿਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਆਦਮੀ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਜਰੂਰਤਾਂ ਤਾਂ ਗਵਾਂਢ ਤੋਂ ਹੀ ਪੂਰੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ. ਇਸਦੇ ਨਾਮ ਕੰਮ ਵੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਰਿਸ਼ਤੇ ਵੀ ਮਧੁਰ ਬਣੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ. ਪਰ ਵੱਧਦੇ ਵੈਸ਼ਵੀਕਰਣ ਨਾਲ ਲੋਕਾਂ ਦਾਂ ਝੁਕਾਅ ਹਰ ਚੀੜ ਖਰੀਦਣ ਵੱਲ ਚਲਿਆ ਗਿਆ. ਇਸ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਕੀ ਖੋ ਅਤੇ ਕੀ ਪਾ ਰਹੇ ਹਾਂ, ਪੜੋ.


कहते हैं कि बाज़ार में घूम रहा 95% पैसा बेमानी है। यानि देश में उतनी कीमत की ज़मीन, सोना या अन्य प्राकृतिक संसाधन नहीं है जितना कागज़ों पर पैसा है। यह पैसा केवल एक भ्रम है। ऐसे में अगर यह पैसा डूब जाये तो हमारे पास क्या बचता है? धन का उद्देशय है लोगों में वस्तुओं या सेवाओं के आदान प्रदान को सहज बनाना। तो क्या धन के बिना लोगों में आपसी आदान रुक जायेगा? यह सामान्यत केवल दोस्तों, रिश्तेदारों या पड़ोसियों तक सीमित रहता है। इसे व्यवस्थित तरीके से अन्य लोगों के बीच बढ़ाने का प्रयास नहीं किया जाता। ठीक इसी मुद्दे पर काम करने वाली भी अनेक देशों में बहुत सी संस्थायें होती हैं जो धन के बिना पड़ोसियों की मदद पर ज़ोर देती हैं। जैसे आप के पास पड़ी फाल्तू चीज़ों के बदले में आप को अपनी ज़रूरत की कोई चीज़ मिल सकती है। आप अपने अतिरिक्त समय में किसी का कंप्यूटर ठीक कर सकते हैं और बदले में वह आपके घर की मरम्मत कर सकता है। इन संस्थाओं द्वारा एक क्षेत्र में रहने वाले अनजान लोगों को जानने का, उनकी और अपनी विशेषतायैं जानने का मौका मिलता है और धन के बिना जीवन को सुखद बनाने का एक नया दृष्टिकोण मिलता है। जर्मनी में ऐसी अनेक संस्थायें हैं जो अर्थ व्यवस्था के इस पहलू पर काम करती हैं। इनमें पैसों की मुद्रा नहीं चलती बल्कि समय की मुद्रा चलती है। यानि अतिरिक्त समय में एक दूसरे की मदद करना। ये संस्थायें माह में एक या दो बार किसी जगह पर बैठक आयोजित करती हैं जिसमें उस क्षेत्र में रहने वाले सदस्य आकर एक गोल घेरे में बैठ जाते हैं। वे अपने साथ एक सूची लेकर आते हैं, जिस पर लिखा होता है कि उनके पास देने के लिये क्या क्या वस्तुयें या सेवायें हैं, और उन्हें किन किन वस्तुओं या सेवाओं की ज़रूरत है। फिर वे एक एक करके अपना परिचय देते हैं और एक दूसरे के साथ आदान प्रदान करते हैं। ये संस्थायें समय समय पर एक पत्रिका भी प्रकाशित करती हैं, जिनमें सदस्य अपने प्रस्ताव और ज़रूरतें लिखित रूप से दर्ज करवा सकते हैं। सदस्य बनने के लिये आपको कम से कम एक बार नियमित तौर पर आयोजित होने वाली एक अन्य बैठक में भाग लेना होता है जिसमें संस्था और इसके नियमों के बारे में बताया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण होता है कि आप इसे धंधे के तौर पर न लें, केवल अपने फाल्तू समय और वस्तुओं का प्रयोग करें। अन्यथा आयकर विभाग आपके और संस्था के लिये समस्या भी पैदा कर सकता है। विश्व में ऐसी हज़ारों, जर्मनी में लगभग तीन चार सौ और म्युनिक और उसके आस पास के क्षेत्र में ऐसी करीब चालीस बैठकें आयोजित होती हैं। इनमें से कई बैठकें एक ही संस्था द्वारा आयोजित की जाती हैं। आमतौर पर ये बैठकें केवल उसी क्षेत्र पर केन्द्रित होती हैं ताकि आस पास के लोग एक दूसरे की मदद कर सकें। पर सदस्य दूसरों क्षेत्रों की बैठकों में भी भाग ले सकते हैं। इनमें हर तरह की चीज़ें और सेवायें देखने को मिलती हैं, जैसे घर में रंग रोगन करना, संगीत बजाना सिखाना, भाषा या गणित सिखाना, विभिन्न प्रकार का खाना या पकवान बनाना, कंप्यूटर आदि सिखाना या ठीक करना, ज़रूरत पड़ने पर अपनी गाड़ी देना आदि। सदस्य बनने पर एक पुस्तिका दी जाती है जिसमें आप अन्य सदस्यों के साथ आदान प्रदान का लेखा जोखा रखते हैं। अक्सर इनमें मुद्रा का नाम 'प्रतिभा' रखा जाता है जिसकी तुल्ना समय के साथ की जाती है, जैसे पांच प्रतिभायें प्रति घंटा। यानि अगर आप चार घंटे के लिये किसी की मदद करते हैं तो दोनों सदस्य अपनी पुस्तिका में बीस प्रतिभाओं का आदान प्रदान दर्ज करते हैं। एक सदस्य से ली या दी गई प्रतिभाओं की आपूर्ति किसी अन्य सदस्य के द्वारा भी की जा सकती है, यानि यह ठीक एक मुद्रा की तरह काम करती है। इसमें समय समय होता है, उसकी कीमत बराबर रहती है, भले आप चार घंटों के लिये दूध दोह रहे हों या हीरों की देखभाल कर रहे हों। संस्था के लिये मासिक सदस्यता शुल्क भी इन्हीं प्रतिभाओं द्वारा दिया जाता है, जैसे बीस प्रतिभायें प्रति माह। इस शुल्क से संस्था का कागज़ पत्री, इंटरनेट, कार्यालय आदि का खर्च निकलता है। हालांकि आरम्भिक दौर में सदस्यों के पास देने के लिये कम और लेने के अधिक होता है। इसलिये वे एक हद तक माइनस में भी जा सकते हैं। जैसे माइनस दो सौ। ऐसे ही अधिकतम प्रतिभायें एकत्रित करने की भी एक सीमा निर्धारित होती है, जैसे प्लस पांच सौ। मुख्य मुद्दा है कि सदस्य केवल एक तरफ़ा काम न करें, वे नियमित तौर पर दें भी और लें भी वर्ना यह कान्सेप्ट काम करना बन्द कर देता है। अनुभवी सदस्य होने पर सीमायें बढ़ा दी जाती हैं जैसे प्लस दो हज़ार और माइनस एक हज़ार। पर बिना सीमाओं के काम नहीं चलता। साल दर साल ये संस्थायें एक परिवार की तरह विकसित होती जाती हैं जिनमें लोग आपस में एक दूसरे की मदद करते हैं, मिलकर त्यौहार मनाते हैं, खाना बनाते हैं, गाने गाते हैं, बाज़ार आयोजित करते हैं आदि आदि। विभिन्न शहरों की बहुत सी संस्थायें भी आपस में भी काम करती हैं। जैसे म्युनिक की एक संस्था का सदस्य अगर किसी काम से हैम्बर्ग जाता है तो रात रुकने के लिये उसे वहां की संस्था के किसी सदस्य के घर पर जगह मिल जाती है। इस स्थिति में सोने का समय नहीं बल्कि केवल नहाने धोने का और नाश्ते आदि का समय गिना जाता है। यानि केवल वह समय गिना जाता है जिसमें आप वाकई हिल डुल रहे हों। म्युनिक के अन्दर के क्षेत्र में फिलहाल दो ऐसेी संस्थायें हैं जिनके वेब पते निम्न प्रकार हैं।
http://lets-muenchen.de/
http://tauschringmuenchen.de/
इनमें से पहली संस्था 1993 से चल रही है। दूसरी संस्था भी पहली संस्था से कुछ वर्ष पहले अलग होकर बनी है। पहली संस्था में किसी समय पर ग्यारह बारह सौ सदस्य रहे हैं पर आज कल कोई छह सौ सदस्य हैं। म्युनिक के अलग अलग क्षेत्रों में यह संस्था सात बैठकें आयोजित करती है। कोई भी सदस्य किसी क्षेत्र में अलग बैठक भी शुरू कर सकता है। पर अक्सर अगर किसी बैठक में पांच से कम लोग नियमित तौर पर आयें तो वह बन्द कर दी जाती है। सदस्यों की औसत आयु चालीस से ऊपर हैं। यानि इसमें अधिकतर लोग वृद्ध हैं क्योंकि युवाओं को ऐसे कॉन्सेप्ट में रुचि नहीं होती, और न ही ज़रूरत। ये संस्थायें अक्सर पंजीकृत नहीं होतीं लेकिन फिर भी सुव्यवस्थित तरीके से चलती हैं।

कहते हैं ऐसी सबसे बड़ी संस्था अर्जेंटीना में है। वहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह समाप्त हो जाने के बाद वहां के लोगों ने ऐसी संस्थायें बनाने के बाद इसे पुनः खड़ा किया था। आज के समय में वहां करीब सवा लाख लोग सदस्य हैं।