शुक्रवार, 27 मार्च 2020

भारतीय नेत्रहीन क्रिकेट को भी मिलेगी लाइमलाइट

Berlin based indian cinematographer 'Sudhir Aggarwal' and american advertisement professional 'Gregory French' are working jointly on a 30 minutes documentary film on indian blind cricket. Indian ministry of external affairs might fund this project and help to bring the indian blind cricket to limelight. Indian blind cricket was initiated many years back in India by George Abraham to instill self-confidence in visually impaired and repressed but talented players. A major part of the film will be shot in the blind cricket series taking place in England in August 2010.बर्लिन वासी भारतीय कैमरामैन और निर्देशक सुधीर अग्रवाल एक विज्ञापन पेशेवर ग्रेगरी फ्रेंच के साथ मिलकर 'भारतीय नेत्रहीन क्रिकेट' पर आधे घण्टे का एक वृतचित्र बना रहे हैं जिसे अगले साल फरवरी में भारत में होने वाले क्रिकेट विश्व कप के समय दिखाए जाने की आशा है। इस फिल्म को बनाने का विचार ग्रेगरी फ्रेंच को कुछ शोध के बाद आया। उन्होंने देखा कि भारत में नेत्रहीन क्रिकेट को बहुत नज़रअन्दाज़ किया जाता है। जहां सभी क्रिकेट खेलने वाले देशों के बोर्ड ने नेत्रहीन क्रिकेट को मान्यता दी है, पाकिस्तान बोर्ड तो नेत्रहीन खिलाड़ियों को मासिक वेतन तक देता है, वहीं भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने अभी तक भारतीय नेत्रहीन क्रिकेट को मान्यता नहीं दी है। ग्रेगरी कहते हैं 'जहां आमतौर पर विकलांगों को जन्म से हीन भावना का आभास करवाया जाता है, इस तरह की खेलों से उनमें आत्मविश्वास जागता है। इन खिलाड़ियों को सहानुभूति नहीं प्रोत्साहन चाहिए।' जॉर्ज अब्राहम नामक एक भारतीय नेत्रहीन क्रिकेट खिलाड़ी ने भारत में नेत्रहीन क्रिकेट की शुरूआत की। अब उन्होंने इसे आगे बढ़ाने का काम बेंगलोर स्थित 'समर्थनम' नामक संस्था को दे दिया है। अगस्त 2010 में इंगलैण्ड में आयोजित होने वाली एक नेत्रहीन क्रिकेट सीरीज़ में इंगलैण्ड और भारत के नेत्रहीन खिलाड़ी खेलेंगे। इसके लिए भारतीय टीम में पूरे देश से 18 से 30 वर्ष की आयु तक के 17 पूर्ण और आंशिक रूप से अन्धे खिलाड़ी चुने गए हैं। इस फिल्म का काफी हिस्सा इस लीग में शूट होगा। नेत्रहीन क्रिकेट में धातु के छर्रों से भरी एक सफेद प्लास्टिक की गेन्द उपयोग की जाती है। इसलिए इसके उछलने और टपकने से खनकने की आवाज़ आती है जो नेत्रहीन खिलाड़ी के लिए काफी सहायक होती है। बल्ला सामान्य क्रिकेट वाला ही होता है और विकेट धातु के बने होते हैं ताकि गेन्द के टकराने की आवाज़ ज़्यादा साफ सुनाई दे। इस क्रिकेट में गेन्द को बाजू घुमाकर फेंकने की बजाय सीधे फेंका जाता है। और इस तरह फेंका जाता है कि गेन्द बल्लेबाज तक पहुंने से पहले कई बार टप्पे खाए। इससे बल्लेबाज को गेन्द के आने का पता चलता है। पर इससे खेल की गति पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता और खिलाड़ियों की तीव्रता और कौशल सामान्य खिलाड़ियों के समान ही रहता है। आंशिक रूप से नेत्रहीन खिलाड़ी द्वारा भाग कर लिया हुआ रन एक ही रन माना जाता है पर पूर्ण रूप से नेत्रहीन खिलाड़ी द्वारा भागकर लिए गए रन की बजाय दो रन मिलते हैं। इसलिए कई आंशिक रूप से नेत्रहीन खिलाड़ी खुद को पूर्ण रूप से अन्धा बताकर चकमा देने की कोशिश करते हैं। इसलिए राष्ट्रीय लीग खेलों में पूर्ण रूप से नेत्रहीन खिलाड़ी की आंखों पर पट्टी बान्ध दी जाती है ताकि धोखे की कोई सम्भावना न रहे (जैसा कि चित्र में दिखाया गया है)। पर अन्तर्राष्ट्रीय लीगों में आंखों पर पट्टी नहीं बान्धी जाती। उनमें खिलाड़ी का दृष्टि परीक्षण पहले से किया जाता है। सुधीर अग्रवाल तो भारत के सामान्य और नामी क्रिकेट खिलाड़ियों की आंखों पर पट्टी बान्धकर इन नेत्रहीन खिलाड़ियों के साथ खिलाने पर भी बातचीत चला रहे हैं। यह फिल्म विभिन्न फिल्मोत्सवों में दिखाई जाएगी। डिस्कवरी चैनल इण्डिया के साथ मिलकर यह फिल्म बनाने की भी बात चल रही है। हो सकता कि इस पर एक वीडियो गेम भी बनाई जाए।

update: 110220
आधे घण्टे की यह फिल्म बनकर तैयार हो चुकी है। फरवरी 2010 में दिल्ली में एक film festival में इसे पहली बार दिखाया गया।