शुक्रवार, 27 मार्च 2020

Bayerish TV Studio की सैर

जर्मनी में टीवी और रेडियो रखने पर लगभग 18 यूरो का मासिक शुल्क देना होता है। भले आप इन्हें उपयोग करें न करें, भले आप इन पर सरकारी चैनलों को देखें/ सुनें या नहीं। यह शुल्क Rundfunkgebühr यानि 'दूर-प्रसारण शुल्क' कहलाता है। सरकारी रेडियो और टीवी चैनलों का वित्तपोषण मुख्यत इसी शुल्क से होता है, केवल 3% हिस्सा विज्ञापनों से आता है। 'बायरिश दूरसंचार सेवा' यानि 'Bayerischer Rundfunk' भी इसी संघीय संगठन का एक हिस्सा है। 'दूर-प्रसारण शुल्क' द्वारा केवल 'बायरिश दूर-प्रसारण सेवा' को ही लगभग 80 करोड़ यूरो की वार्षिक आय होती है। इसका साठ प्रतिशत हिस्सा कार्यक्रमों के निर्माण में जाता है। बाकी अधिकांश तकनीक में। यह सेवा वैसे तो 1924 में आरम्भ हुई थी पर बाद में नाज़ियों के हाथ चली गई, और फिर अमरीकियों के हाथ में आ गई। 1949 से यह वापस जर्मन सरकार के हाथ में आई।

म्युनिक शहर में 'बायरिश दूर-प्रसारण सेवा' तीन जगह पर स्टूडियो हैं, एक मुख्य रेलवे स्टेशन के पास, एक Unterföhring और एक Freimann में। इन तीन जगहों पर कई रेडियो और टीवी चैनलों के लिए कार्यक्रमों का निर्माण किया जाता है। इन स्टूडियो को देखने के लिए आप किसी टूर में हिस्सा ले सकते हैं। पर इस तरह के टूर अधिकतर जर्मन भाषा में होते हैं। इन्हें समझने के लिए ठीक प्रकार से जर्मन भाषा की समझ ज़रूरी है।

Unterföhring में स्थित टीवी स्टूडियो पुराना और सबसे बड़ा है, हालांकि वहां डाटा भण्डारन अभी भी टेपों पर होता है, डिजिटल रूप में नहीं। वहां चार बड़े बड़े स्टूडियो बने हुए हैं जहां अनेक लोकप्रिय धारावाहिक जैसे 'Blickpunkt Sport', 'Tagesschau' और कई वार्ताओं आदि की शूटिंग होती है। हर स्टूडियो में ऊपर छत पर सैंकड़ों की संख्या में बड़े छोटे बल्ब लगे हैं जिनकी शक्ति पांच हज़ार वाट तक की भी हो सकती है। किसी वार्ता की शूटिंग के लिए स्टूडियो के ठीक बीच मॉडरेटर और अतिथियों के बैठने की जगह होती है और दो या तीन ओर सीढ़ियों पर दर्शकों के बैठने की जगह होती है। दर्शकों की हिलडुल और आवाज़ें बहुत सख़्ती से नियन्त्रित की जाती हैं। कई बार तो उन्हें तालियां बजाने या हंसने के लिए इशारे किए जाते हैं। एक अलग टीवी कण्ट्रोल रूम में ढेर सारी सक्रीनों पर अलग अलग कैमरों द्वारा आ रहे वीडियो सन्देशों को देखा जाता है उनमें से सबसे महत्वपूर्ण क्लिप को एक बड़ी सी स्क्रीन पर दिखाया जाता है। इस स्क्रीन पर नज़र आने वाली सामग्री ही दर्शकों के लिए प्रसारित की जाती है। शूटिंग के दौरान कैमरा-मैन के साथ माइक्रोफोन और हेडफ़ोन द्वारा लगातार सम्पर्क रखा जाता है, कैमरा को घुमाने या ज़ूम करने के निर्देश दिए जाते हैं। जो कैमरा एक्टिव हो उस कैमरे के आगे लगी लाल बत्ती को कैमरा-मैन को खुद हाथ से जलानी होती है जिससे मॉडरेटर और अन्य लोगों को पता चले कि किस कैमरे की ओर देखना है। एक ओर कम्प्यूटर पर बैठा व्यक्ति रियल टाइम में उपयुक्त सब्टाइटल वगैरह देने का उत्तरदायी होता है, जैसे स्क्रीन पर दिखाई देने वाले का नाम। यह काम बहुत छोटा प्रतीत होता है, पर है बहुत महत्वपूर्ण, क्योंकि नाम बिल्कुल ठीक होना चाहिए, उसकी वर्तनी में कोई ग़लती नहीं होनी चाहिए। एक अन्य व्यक्ति उपयुक्त ग्राफ़िक या पृष्ठभूमि दिखाने के लिए ज़िम्मेदार होता है। जैसे मौसम की जानकारी के दौरान हमें लगता है कि समाचार वाचक के पीछे सचमुच कोई स्क्रीन है जिसपर देश का मानचित्र है और अलग अलग शहरों पर बारिश और बादल दिखाई दे रहे हैं। पर असल में वाचक के पीछे कुछ भी नहीं होता। वह केवल अन्दाज़े से, या फिर शीशे में से देखकर अपने हाथ हिलाता है। बाकी सब कृत्रिम रूप से बनाया जाता है। स्टूडियो में उपयोग होने वाले कैमरे एक बड़ी सी हाईड्रालिक ट्राली के ऊपर लगे होते हैं जिसे आसानी से इधर उधर ले जा सकता है और उस पर लगे कैमरे को आसानी से ऊपर नीचे किया जा सकता है।

एक ऑडियो हॉल में तरह तरह की आवाज़ों का संग्रह रखा जाता है और समय आने पर उपयोग किया जाता है। बड़े बड़े मिक्सरों पर अलग अलग माइक्रोफ़ोनों से आने वाली आवाज़ों को बैलेंस किया जाता है। यह सेटिंग्स मिक्सर के अन्दर स्टोर भी हो जाती हैं ताकि अलग अलग धारावाहिकों कि शूटिंग के लिए हर बार दोबारा सेटिंग न करनी पड़े।

किसी धारावाहिक के लिए विशेष प्रकार का सेट बनाने के लिए पहले एक छोटा सा मॉडल तैयार किया जाता है, फिर एक एक करके उसे बड़े आकार में तैयार किया जाता है। अगर सेट के साथ कोई छेड़-छाड़ की ज़रूरत न हो तो ये बहुत ही सस्ते और नाज़ुक तरीके से तैयार किए जाते हैं, जैसे गली की दीवारें आदि। पर अगर इनके साथ छेड़ छाड़ कि ज़रूरत हो, जैसे घर की चारदीवारी, दरवाज़े आदि, तो ये सेट ठोस प्रकार से तैयार किए जाते हैं। कई धारावाहिकों में तो ये सेट लम्बे समय तक काम आते हैं। धारावाहिक समाप्त होने पर ये सेट बेच दिए जाते हैं। दूर से देखने से ये सेट बिल्कुल असली लगते हैं जैसे चट्टानों के ऊपर जमी हुई हरी काई, घास, पत्थर, पहाड़ आदि। कैमरा और प्रकाश नियन्त्रण के द्वारा भी बहुत तरह के इफ़ेक्ट दिए जाते हैं।
http://www.br-online.de/