शुक्रवार, 27 मार्च 2020

फर्श से अर्स तक का सफर


बिना किसी सहारे अथवा उच्च शिक्षा प्राप्त किये परदेस जाना, संघर्ष करना और फिर अपने पैरों पर खड़े होना। इसकी एक मिसाल हैं हरजिन्दर सिंह धालीवाल।

भारत में दसवीं तक पढ़ने के बाद हरजिन्दर सिंह धालीवाल पिता जी के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटाने लगे। फिर सन 1990 में अचानक वे प्राग (चेक रिपब्लिक) का वीज़ा लगवाकर युरोप आ गये और फिर वहां से जर्मनी। जर्मनी आकर उन्होंने काफ़ी संघर्ष किया, रेस्तारां वगैरह में काम किया। यानि जो काम भारत में नहीं किये थे, वो यहां आकर किये। उस समय जर्मनी में स्थायी तौर पर रहने का केवल एक तरीका था, किसी जर्मन के साथ शादी। इस मामले में वे कुछ भाग्यशाली रहे। जर्मनि आने के केवल डेढ़ वर्ष में ही उनकी एक जर्मन महिला के साथ शादी हो गई। कुछ वर्ष के बाद जर्मन पासपोर्ट मिलने के बाद उन्होंने तलाक लिया और भारत जाकर भारतीय कन्या के साथ पारंपरिक तरीके से शादी की और फिर जर्मनी में परिवार सहित खुशी से रहने लगे।

1 जुलाई 2004 से उन्होंने अपना कारोबार आरम्भ किया। शहर के बीचों बीच उन्होंने एक दुकान किराये पर ली और तोहफ़े (gift items) आदि बेचने शुरू किये। समय के साथ साथ काम बढ़ता गया और उन्होंने साथ में इंटरनेट कैफ़े और टेलिफ़ोन बूथ का भी काम शुरू कर दिया। फिर धीरे धीरे भारतीय मसाले, बीयर, व्हीस्की, आइसक्रीम आदि सब कुछ बेचना शुरू कर दिया। आज वे अपने पैरों पर खड़े हैं और अपने परिवार सहित खुशी से रह रहे हैं।

लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी वे अपनी भाषा, अपनी सांस्कृति को नहीं भूले हैं। आज भी वे पंजाबी सांस्कृति को आगे बढ़ाने में भी तत्पर रहते हें और प्रत्येक कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा वे जर्मनी से प्रकाशित होने वाली पंजाबी पत्रिका 'मीडिया पंजाब' के लिए भी रिपोर्टिंग करते हैं। उनका मनपसन्द गायक गुरदास मान, पसन्दीदा अभिनेता धरमेन्द्र, मनपसन्द फ़िल्म कर्मा और शोले है।

एक घटना को याद कर के बताते हैं कि एक बार Leipzig से अपनी दुकान के लिये खरीदारी करके वापस आते हुए हाईवे पर अचानक उनकी गाड़ी का बोनट खुल कर शीशे से टकरा गया। गाड़ी 160 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चल रही थी कि अचानक उन्हें सामने नज़ार आना बन्द हो गया। शीशा चकनाचूर हो गया। वे ब्रेक नहीं लगा सकते थे क्योंकि पीछे उतनी ही रफ़्तार से गाड़ियां आ रही थीं और सामने उन्हें नज़र नहीं आ रहा था। उनकी गाड़ी तीसरे लेन में थी तो उनके लिये अचानक किनारे पर आना भी मुश्किल था। वे बहुत डर गये थे। उन्होंने एमरजैंसी इण्डिकेटर चलाये और किसी तरह दाहिनी साइड वाली रेलिंग के पास गाड़ी लेकर आये, दाड़ी से उतरे, बोनट बन्द किया और फिर गाड़ी चलाने लगे। इस घटना को वे भूल नहीं सकते।

वे भारतीयों को सन्देश देना चाहते हैं कि उन्हें परदेस में आकर अपनी सांस्कृति और भाषा नहीं भूलनी चाहिये।