शुक्रवार, 27 मार्च 2020

म्युनिक में हुआ सिखों का नगर कीर्तन

10 अक्तूबर को म्युनिक शहर में सिख समुदाय द्वारा एक विशाल नगर कीर्तन का आयोजन किया गया जिसमें जर्मनी और इटली से लगभग पाँच हज़ार श्रद्धालु परिवार सहित सम्मिलित हुए।

जर्मन समाज में 'सिख धर्म' के बारे में जानकारी फैलाने के भाव से म्युनिक में पहली बार सार्वजनिक तौर पर आयोजित किए गए 'नगर कीर्तन' में 'पाँच निशानचियों' और 'पालकी साहिब' की अगुवाई में हज़ारों श्रद्धालुओं ने Marienplatz से शुरू होकर Tal, Frauenstraße, Blumenstraße और Sonnenstraße से होते हुए Stachus तक मद्धम गति से चलते हुए और भजन कीर्तन करते हुए एक शांतिपूर्वक जुलूस के रूप में करीब दो किलोमीटर का फ़ासला तय किया।

शहर के मध्य में सिटी हॉल (Rathaus) के सामने Marienpatz पर सुबह से ही सिख धर्म का प्रतीक रंग यानि केसरी रंग की पगड़ियां और चुन्नियां पहने सिख पुरूषों और महिलाओं का जमावड़ा हो रहा था। दूर दराज़ इलाकों से बसों और कारों में भर भर के पुरुष, महिलाएं और बच्चे वहां पहुँच रहे थे। केवल इटली के Reggio Emilia नामक क्षेत्र में स्थित एक सिख गुरुद्वारे से एकत्रित होकर आठ बसों और कई निजी गाड़ियों द्वारा लगभग पाँच सौ श्रद्धालु पहुँचे हुए थे। इसके अलावा फ़्रैंकफ़र्ट, स्टुटगार्ट और कई अन्य जर्मन शहरों से भी श्रद्धालुओं के आने के लिए कई बसों का इंतज़ाम किया गया था। केसरी रंग में डूबी इतनी बड़ी भीड़ को देखकर वहां घूम रहे सामान्य पर्यटक यह जानने के लिए उत्सुक हो रहे थे कि यह क्या हो रहा है, ये लोग कौन हैं। बहुत से लोग पहले गुरुद्वारे में चाय नाश्ता करके भी वहां पहुँच रहे थे। ग्यारह बजे समागम शुरू होना था। एक ओर इटली से एक ट्राले में लाई गई 'गुरू ग्रंथ साहिब' की पालकी में 'गुरू ग्रंथ साहिब' को सजाया जा रहा था। 'पालकी साहिब' के इर्द गिर्द जूते पहन कर घूमने की सख्त मनाही थी। लोग पालकी साहिब पर माथा टेक कर प्रसाद ले रहे थे। एक ओर मेज़ लगाकर जर्मन भाषा में सिख धर्म के बारे में आकर्षक रूप से तैयार किए सूचना पत्र बांटे जा रहे थे। साथ ही जर्मन भाषा में सिख धर्म के बारे में एक संक्षेप व्याख्यान देने के लिए एक पोडियम तैयार किया गया था। आयोजन को कवर करने के लिए इंगलैंड से 'पंजाब रेडियो' और 'सिख टाइम्स टीवी चैनल' के पत्रकार और कैमरा-मैन आए हुए थे। 'पंजाब रेडियो' के पत्रकार तो मोबाइल फ़ोन द्वारा लोगों के साक्षात्कार सीधे इंगलैंड कार्यालय में पहुँचा रहे थे।

लगभग बारह बजे पोडियम पर खड़े होकर फ़्रैंकफ़र्ट से प्रोफ़ेसर ख़ुशवंत सिंह ने जर्मन भाषा में सिख धर्म के बारे में व्याख्यान देना शुरु किया। मज़े की बात यह थी कि ठीक इसी समय अनेक पर्यटक वहां म्युनिक का महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण 'Glockenspiel' का पंद्रह मिनट का शो देखने पहुँचे हुए थे जिसके नीचे यह व्याख्यान हो रहा था। उन्होंने धारा-प्रवाह जर्मन भाषा में व्याख्यान दियाः 'हमें इस तरह के 'सूचना आयोजन' (Informationsveranstaltung) इस लिए करने की आवश्यकता महसूस हुई क्योंकि पश्चिमी विश्व अभी सिख धर्म के बारे में बहुत कम जानता है। पगड़ी और दाढ़ी रखने के कारण हमें अक्सर कट्टरपंथी, मुस्लिम या तालेबान समझा जाता है। कई बार उंगली उठाकर 'ओसामा बिन लादेन' तक कहा जाता है। जबकि हमारा इन सबसे कोई संबंध नहीं। हमारा अलग धर्म है, इस्लाम के साथ इसका कोई वास्ता नहीं है। परीक्षाओं में बहुत अच्छे नंबर लेने के बावजूद पगड़ी वाली फ़ोटो देखकर हमें नौकरी के साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया जाता। अब हमारा घर जर्मनी ही हैं। हम यहां के समाज में पूरी तरह रच बस गए हैं। हमें यहां समानाधिकार मिलने चाहिए। सिख का अर्थ होता है 'शिष्य', हमारे धर्मग्रंथ 'गुरू ग्रंथ साहिब' का शिष्य जो आजीवन हमारा मार्ग दर्शन करती है। सिख एक युवा धर्म है जो पंद्रहवीं शताब्दी में उत्तरी भारत के पंजाब नामक प्रांत में शुरू हुआ। इस धर्म को शुरू करने वाले गुरु नानक (जिन्हें आदर से 'गुरू नानक देव जी' कहा जाता है) थे। वे एकेश्वर और एक समतावादी समाज में विश्वास करते थे जिसमें जातिवाद और किसी तरह के भेद भाव के लिए जगह नहीं थी। वे पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकारों को महत्व देते थे। सती प्रथा के वे विरोधी थे। सिख धर्म और विचारधारा के प्रचार के लिए उन्होंने कई रचनात्मक तरीकों का सहारा लिया जैसे कीर्तन करना, हर जाति और लिंग के लोगों एक साथ बिठा कर 'गुरू का लंगर' छकाना आदि। इस तरह की भेद भाव रहित समानता उस समय के भारत में अकल्पनीय थी। इस तरह एक छोटे से पंथ से शुरू होकर सिख एक बड़े धर्म में फैल गया। आज सिख धर्म विश्व का पाँचवा सबसे बड़ा धर्म है जिसकी अपनी भाषा, लिपि और मान्यताएं हैं। यह गौरव की बात है कि 'गुरू ग्रंथ साहिब' की मूल पांडुलिपियां आज भी उपलब्ध हैं जिसका अमूल्य साहित्य आज भी प्रासंगिक है। पूजा पाठ के लिए सिख लोग गुरूद्वारा नामक पूजा स्थल का उपयोग करते हें। सिख धर्म सृष्टि सृजन के संरक्षण को महत्व देता है। इस लिए बाल काटने और दाढ़ी मूँछ बनाने को मनाही की गई है क्योंकि बाल प्रकृति की देन माने जाते हैं। गुरू गोबिंद सिंह जी द्वारा समुदाय के मार्ग दर्शन, सलाह मशविरे आदि के लिए चुने गए 'पाँच प्यारों' को 'पाँच निशानचियों' के रूप में आज भी चिन्हित किया जाता है। ये पाँच निशानची महिलाएं भी हो सकती हैं। विश्व में सिख धर्म के लगभग दो करोड़ अनुयायी हैं। अधिकतर भारत के पंजाब प्रांत में हैं, अब बहुत सारे अमरीका और इंगलैंड में भी हैं। कोई दस से पंद्रह हज़ार सिख जर्मनी में भी रहते हैं। इनमें से अधिकतर सत्तर के दशक में आए थे जब भारत में राजनैतिक उथल पुथल चल रही थी। लेकिन अब तो बहुत से सिख जर्मनी में पैदा भी हुए हैं। बहुत से युवा सिख भी अब जर्मनी आए हैं, जैसे मैं।'

व्याख्यान के बाद पालकी को एक गाड़ी द्वारा ले जाना आरंभ किया गया जिसके पीछे पीछे हज़ारों भक्त पुरुष और महिलाएं 'जो जन तुमरी भकत करे, उनके काज संवारता', 'सतनाम वाहेगुरू' का नाद करते जा रहे थे। पालकी के आगे 'पाँच निशानची' 'निशान साहिब' (एक त्रिकोणी झंडा जिसपर सिख धर्म का प्रतीक खंडा और कृपान बने होते हैं) लिए नंगे पैर चल रहे थे। उनके आगे सड़क पर पानी छिड़कता हुआ ट्रक जा रहा था और उसके आगे भक्त लोग बारी बारी से झाड़ू लेकर सड़क को साफ़ कर रहे थे। बहुत से श्रद्धालु मददगारों वाली जैकेट पहने पानी की बोतलें बांटने, सूचना पत्र बांटने या फिर कूड़ा करकट न फैलने देने के लिए व्यस्त थे।

करीब दो घंटे के बाद जुलूस अपने गंतव्य, यानि Stachus पर पहुँचा। वहां पर म्युनिक गुरूद्वारा के प्रधान श्री तरसेम सिंह जी ने दूर दूर से आए श्रद्धालुओं को धन्यवाद कहा और गुरुद्वारे में लंगर खाकर वापस जाने का आह्वान किया। प्रोफेसर ख़ुशवंत सिंह ने अपना व्याख्यान फिर से दोहराया। लेकिन सुनने वालों में जर्मन लोग बहुत नहीं थे। मौसम भी खराब हो चला था। व्याख्यान के समाप्त होते ही तेज़ बारिश शुरू हो गई जिसने भीड़ को तितर बितर कर दिया। एक जर्मन दर्शक का कहना था 'मुझे नहीं लगता कि सिखों को मुस्लिम या तालेबान समझा जाता है। यहां लोगों को दोनों में अंतर पता है।'

इस आयोजन का एक उद्देश्य सिखों के धर्मग्रंथ 'गुरू ग्रंथ साहिब' की 300वीं वर्षगांठ के उपलक्षय में पिछले साल से शुरू की एक श्रंखला को जारी रखना भी था। इस श्रंखला की शुरूआत पिछले साल फ़्रैंकफ़र्ट शहर से हुई। उसके बाद कोलोन, हैम्बर्ग आदि शहरों में 'नगर कीर्तन' का आयोजन हुआ। म्युनिक का नगर कीर्तन इस दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था क्योंकि यहां भारतीय समुदाय अन्य बड़े जर्मन शहरों की अपेक्षा बहुत छोटा है, इसलिए बड़े स्तर पर कोई आयोजन करना आसान नहीं है।

म्युनिक से 'परम-जीत सिंह ढांडा' कहते हैं 'मुझे बहुत खुशी है कि सिख धर्म का इतना बड़ा और पवित्र समागम म्युनिक में सार्वजनिक तौर पर हो रहा है। इससे हम लोगों में भी एक पहचान और आत्मविश्वास की भावना आती है। मैं एक निश्चित सीमा में रहकर अपने धर्म के प्रचार का समर्थन करता हूँ। किसी दूसरे धर्म को नीचा दिखा कर या किसी सीमा का उल्लंघन करके अपने धर्म को महिमामंडित करने को मैं गलत मानता हूँ।'

म्युनिक से ही 'कुलविंदर सिंह' कहते हैं 'ये सच है कि पगड़ी और दाढ़ी के कारण हमें अक्सर कट्टरपंथी या तालेबान समझ लिया जाता है। कई बार तो ट्रैम, ट्रेन आदि में लोग इशारा करके हमारे बारे में अपनी भाषा में खुसर फुसर करते हैं। मुझे भी आखिर यहां सत्रह वर्ष हो गए हैं और मैं उनकी भाषा समझता हूँ। हालांकि अफ़गानिस्तान आदि के लोग सिखों से बहुत अलग शैली में पगड़ी बांधते हैं, और दाढ़ी भी रखते हैं, फिर भी कई लोग हम में और उनमें भेद नहीं कर पाते। इसलिए ऐसे सार्वजनिक घटनाक्रमों की आवश्यकता है जिनमें हम दूसरों को अपने बारे में बता सकें कि हम कौन हैं।'

म्युनिक से 'जगमेल सिंह संधु' कहते खुश होकर कहते हैं 'सामान्यतः आज बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी। पर हम गुरु जी से यही प्राथना कर रहे थे कि आज बारिश न हो ताकि 'नगर कीर्तन' सुविधापूर्वक संपन्न हो सके। लगता है गुरू जी ने हमारी सुन ली'।

म्युनिक से ही प्रगट सिंह (दाईं ओर) और रविंदर सिंह (बीच में) कहते हैं 'यह सत्य है कि हमें पगड़ी आदि के कारण अक्सर समझ जाता है। खासकर पुलिस द्वारा इस तरह के व्यवहार का सामना हमें अक्सर करना पड़ता है।'

फ़्रैंकफ़र्ट से अजीत सिंह सिकंद कहते हैं- 'वहां उपस्थित पुलिस अधिकारी इस सुव्यवस्थित और बिना किसी लड़ाई झगड़े और गंदगी से संपन्न हुए आयोजन से बहुत खुश थे। उनका कहना था कि अगर उन्हें पहले पता होता तो वे सार्वजनिक लंगर की अनुमति भी दे देते। फ़्रैंकफ़र्ट में सार्वजनिक लंगर आयोजित करना कोई नई बात नहीं।'