गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

भारतीय महिला की चुनावी जीत

19 march 2023 को Munich शहर के 'प्रवासी सलाहकार board' (Foreigners Advisory Board, Migrationsbeirat) के चुनावों में भारतीय मूल की 31 वर्षीय अंशिका (राठी) सिंह ने लगभग चार हज़ार (3967) मत प्राप्त कर के तीसरा स्थान प्राप्त किया. इस चुनाव के लिए पात्र करीब चार लाख मतदाताओं में से लगभग साढे बारह हज़ार मतदाताओं ने मतदान किया (लगभग 3%). इन चुनावों में हर वह व्यक्ति मतदान कर सकता था जिस की उम्र 19 march 2023 को 18 साल से अधिक हो, जो कम से कम छह महीने से Munich में रह रहा हो, जो German नागरिक ना हो या जिस ने 18 march 2011 के बाद German नागरिकता प्राप्त की हो. लगभग यही पूर्वापेक्षाएं इस चुनाव का उम्मीदवार बनने के लिए भी लागू होती हैं.

Migrationsbeirat के पचास सदस्यों में से चालीस सदस्य चुनाव द्वारा चुने जाते हैं और दस सदस्य नगर परिषद (city council, Stadtrat) द्वारा नामजद (nominate) किए जाते हैं. इन चालीस seats के लिए विभिन्न राजनीतिक parties से कुल 268 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा. पहले दोनों स्थानों पर Ukraine के नागरिक रहे. Ukraine युद्ध के शुरू होने के बाद Munich शहर में बड़ी तादाद में Ukrainian शरणार्थी रह रहे हैं. Migrationsbeirat में और भी अनेक देशों के उम्मीदवार चुने गए हैं, जैसे Spain, Hungary, तुर्की, Poland, Croatia, ईरान आदि. अंशिका सिंह को पहली बार में इतनी सफ़लता की उम्मीद नहीं थी. वे अपनी सफ़लता का श्रेय अपने पति के असीम प्रेम, परिश्रम, समर्थन और प्रोत्साहन के अलावा भगवान की कृपा, लोगों के प्यार, और अपने द्वारा किए गए अनेक जागरुकता अभियानों को देती हैं. वे इस जीत को भारत की जीत मानती हैं. हालांकि उनका नाम सूचि क्रम 06 (AMM, Allianz Münchner Migranten) में छठे स्थान पर था पर उन्होंने अपने से पहले वाले उ्म्मीदवारों को भी पछाड़ दिया. हालांकि Migrationsbeirat के चुनाव और Stadtrat के चुनाव (Kommunalwahl), दोनों छह साल के बाद होते हैं, पर फिलहाल इनका आपस में तीन साल का अन्तर है. Bayern सरकार भविष्य में दोनों चुनावों को एक-साथ क्रियांवित करना चाहती है. इस लिए 2026 में दोनों चुनाव एक साथ होंगे, और उस के बाद हर छह साल बाद.

Migrationsbeirat की सदस्यता स्वैच्छिक है, यानि इस के लिए सदस्यों को पारिश्रमिक नहीं मिलता. Migrationsbeirat के पास कानून बनाने की शक्ति नहीं है, वह नगर परिषद को प्रवासी समुदाय के मुद्दों पर कानून बनाने के लिए सलाह देती है. इस के अलावा Migrationsbeirat के पास विभिन्न एकीकरण कार्यक्रमों पर अनुदान करने के लिए सालाना लगभग डेढ लाख Euro का fund भी उपलब्ध है. चालीस साल से भी अधिक वर्षों पहले अस्तित्व में आया Migrationsbeirat Munich शहर में रह रहे प्रवासियों की राजनीतिक, कानूनी, सामाजिक और सांस्कृतिक समानता और हितों का प्रतिनिधित्व करता है. इस के द्वारा अन्तर-सांस्कृतिक रूप से उन्मुख संघ (Vereine) और समूह एकीकरण कार्यक्रमों के लिए अनुदान के लिए आवेदन कर सकते हैं. अंशिका सिंह भी Munich शहर में मौजूद अनेक भारतीय संघों (Vereine) को उनके एकीकरण कार्यक्रमों (जैसे संगीत और नृत्य कार्यक्रम, food festivals आदि) के लिए अनुदान प्राप्त करने में मदद करना चाहती हैं. यहां तक कि वे इन कार्यक्रमों का विज्ञापन Migrationsbeirat के website (migrationsbeirat-muenchen.de) पर भी प्रकाशित करवा सकती हैं ताकि अधिक से अधिक German और अन्तर राष्ट्रीय लोग इन कार्यक्रमों में शामिल हों.

अंशिका सिंह Migrationsbeirat की सदस्य बनने के बाद इत्मीनान से बैठने और अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने की बजाए और भी सक्रिय हो गई हैं. चुनाव के बाद भारतीय समुदाय का धन्यवाद करने के लिए उन्होंने एक 'meet and greet' बैठक आयोजित की, जिस में अनेक भारतीय लोगों, भारतीय संघों के अध्यक्षों और कई स्थानीय नेताओं ने भाग लिया. भारतीयों ने उन नेताओं से स्थाई visa के लिए अनिवार्य B1 स्तर के German भाषा प्रशिक्षण को निशुल्क उपलब्ध करवाने, निवास-स्थान के पञ्जी करण में आसानी, visa extension आदि के लिए घंटों तक पंक्तियों में खड़े रहने की समस्या, माता-पिता को तीन महीने से अधिक समय तक ठहरने की अनुमति, मकान के किराया अनुबन्धों में गड़बड़ियों, हद से अधिक किराए बढ़ने की समस्या, बच्चों की स्कूल के बाद tuition (Nachhilfe) में मदद आदि अनेक मुद्दों के बारे में प्रश्न पूछे. पहली बार भारतीयों को लगा कि राजनीतिक स्तर पर उन्हें सुनने वाला कोई है. पर अपनी पूर्ण-कालिक नौकरी और अपने ढाई साल के बेटे की देख-भाल के साथ इस तरह की सामाजिक और राजनीतिक जद्द-ओ-जहद पारिवारिक मदद के बिना सम्भव नहीं है. पारिवारिक मूल्यों का सम्मान करने वाली अंशिका सिंह का कहना है कि भारत में तो माता-पिता या सास-ससुर की भरपूर मदद मिल जाती है. पर यहां office, बच्चों, घर की सफ़ाई और भोजन तैयार करने के बाद सामाजिक सेवा के लिए समय केवल नींद का त्याग कर के ही मिल सकता है. इस लिए वे भाग्यशाली हैं कि उनके पति सौरभ (खरब) सिंह उनकी हर तरफ़ से मदद करते हैं और घर की अनेक ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करते हैं.

हरियाणा के बहादुरगढ़ शहर में जन्मीं और दिल्ली में बड़ी हुई आंशिका सिंह पेशे से Mechanical Engineer हैं. 2015 में अपने पति के साथ Germany आने के बाद उन्होंने masters degree हासिल की और साथ ही German भाषा के C1 स्तर तक का प्रशिक्षण प्राप्त किया. 2019 में German नागरिकता प्राप्त करने के बाद उनका राजनीति में आने का मन हुआ. उन्होंने Munich शहर में स्थित सभी बड़ी राजनीतिक parties के कार्यालयों से सम्पर्क किया और और उनकी बैठकों में हिस्सा लिया. हर party ने उनका तह-ए-दिल से स्वागत किया और उन्हें प्रोत्साहित किया. अन्त में उन्होंने CSU party में शामिल होने का मन बनाया. हालांकि यह party रूढ़िवादी और ईसाई मूल्यों को मानने वाली party मानी जाती है, पर अंशिका सिंह का मानना है कि CSU party Bayern राज्य पर पिछले दो से भी अधिक दशकों से राज कर रही है. आज Bayern राज्य की सुन्दरता, समृद्धि और सुरक्षा को ले कर जो छवि है, वह CSU party के कारण ही है. उन्होंने 2020 के नगर परिषद के चुनावों (Kommunalwahl) और 2021 के संघीय चुनावों (Bundestag Wahl) के दौरान अपने क्षेत्र (Neuhausen) में घर घर जा कर और जगह जगह Info stands लगा कर CSU party का खूब प्रचार किया. वे अच्छी German बोल लेती हैं. अनेक German लोगों को एक भारतीय को, वह भी एक भारतीय महिला को German चुनावों में रुचि लेते हुए बहुत उत्सुकता भी हुई और अच्छा भी लगा. वे उनसे अनेक प्रश्न पूछते, जैसे वह एक भारतीय होते हुए CSU जैसी रूढ़िवादी party के लिए प्रचार क्यों कर रही है. वे ये भी पूछते कि CSU party उनके लिए क्या करेगी. ज़ाहिर है कि इस तरह के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए के लिए उन्हें ज़रूरी प्रशिक्षण मिलता था और उन्हें party का घोषणा पत्र (manifesto) कण्ठस्थ करना था. वह लोगों को बताती कि जहां अन्य parties घर के किरायों की अधिकतम सीमा तय करने की कोशिश कर रही हैं, वहीं CSU party अधिक से अधिक apartments के निर्माण के हक में है जिस से किराए अपने आप कम हो जाएंगे. Neuhausen में Landshuter Allee और Nymphenburger Straße के मोड़ पर अत्यधिक यातायात होने के कारण वहां के निवासियों को शोर के कारण बहुत समस्या होती है. CSU party वहां एक भूमिगत सुरंग बनाने चाहती है. अंशिका सिंह के अनुसार Germany में राजनीति में प्रवेश करने के लिए ढेर सारी निशुल्क सेवा और खूब समय समर्पित करने के लिए तैयार रहना चाहिए जिस के लिए परिवार का पर्याप्त समर्थन और मदद ज़रूरी है.

Migrationsbeirat के चुनावों के लिए उन्होंने अनेक भारतीय आयोजनों में जा कर प्रचार किया और भारतीयों को उनके vote देने के हक और मतदान प्रक्रिया के बारे में समझाया. जहां भारत में केवल एक voter card से आप हर चुनाव में मतदान कर सकते हैं, वहीं Germany में हर व्यक्ति के निवास स्थान और उस की कानूनी स्थिति के आधार पर उसे हर सम्बन्धित चुनाव से पहले डाक द्वारा अधिसूचित किया जाता है. जो लोग किसी खास चुनाव में मतदान करने के पात्र नहीं है, उन्हें अधिसूचित नहीं किया जाता. साथ ही Germany में चुनाव स्थान पर जाने की बजाए केवल डाक द्वारा मतदान करने की भी सुविधा है ताकि लोग समय ले कर इत्मीनान से अपने प्रिय उम्मीदवारों को vote दे सकें. क्योंकि उदाहरण के लिए इन Migrationsbeirat के चुनावों में आप अपने चालीस vote विभिन्न parties और उम्मीदवारों में विभाजित कर सकते हैं. यहां तक कि आप अपने प्रिय उम्मीदवार को अधिकतम तीन vote दे सकते हैं. अंशिका सिंह के अनुसार बहुत से भारतीयों को पता ही नहीं था कि भारतीय या अन्तर राष्ट्रीय passport के साथ भी इस चुनाव में मतदान किया जा सकता है. अनेक भारतीयों को तो बीस बीस साल Germany में रहने के बाद भी vote देने के अपने अधिकारों का नहीं पता था. कईयों ने तो ये German भाषा समझ ना आने के कारण ये पत्र कूड़ेदान में फेंक दिए थे. अनेक भारतीयों ने चुनाव स्थान पर vote देने के बाद अंशिका सिंह को phone पर बता कर उनका धन्यवाद किया.

Migrationsbeirat के कई विभाग (Ausschuss) हैं जैसे संस्कृति, समाज, शिक्षा, नस्लवाद. हर सदस्य को अपना मनपसन्द क्षेत्र चुनना होता है. सदस्यों के मतदान द्वारा Migrationsbeirat के अधयक्ष और उप-अधयक्ष चुने जाते हैं. हर विभाग की माह में एक बार सामान्य बैठक होती है जिस में सदस्य अपने अपने समुदाय की तकलीफों के बारे में विचार-विमर्श कर सकते हैं. फिर वाञ्छित समाधानों के लिए नगर परिषद को आवेदन करने के लिए मतदान होता है. पचास प्रतिशत से अधिक vote मिलने पर यह आवेदन नगर परिषद को भेज दिया जाता है. वहां भी उस पर मतदान होने के बाद उस पर कार्यवाही का निर्णय लिया जाता है. इन मासिक बैठकों में Migrationsbeirat के सदस्य अपने मित्रों और जानकारों को भी अतिथि के तौर पर आमन्त्रित कर सकते हैं. बहुत बार इन बैठकों में इतनी बहस होती है कि आधी रात तक भी खत्म नहीं होती. Migrationsbeirat की पहली बैठक मई महीने के अन्त में है पर अंशिका सिंह के पास अभी से अपने कार्यक्रमों के लिए अनुदान प्राप्त करने, मुख्य अतिथियों में आमन्त्रित करने और अन्तरराष्ट्रीय अतिथियों में विज्ञापन करने के लिए अनेक संघों के आवेदन आ चुके हैं. वे जी जान से इन अपेक्षाओं को पूरा करने में लगी हैं.