बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

कैसे बनीं कोयले की खानें सुन्दर पर्यटक स्थल

Bayern प्रांत के पूरबी क्षेत्र में Wackersdorf नामक छोटे से गांव के आस पास कई छोटी बड़ी सुन्दर झीलें हैं जहां हर साल बहुत प्रयटक घूमने आते हैं. स्थानीय लोगों में भी गर्मियों में ये झीलें मौज मस्ती का बड़ा स्त्रोत हैं. लेकिन ये झीलें पहले कोयले की खानें हुआकरती थी. यहां उपलब्ध होने वाला कोयला, काला कोयला नहीं बल्कि भूरा कोयला था, जिस का ऊष्मीय मान काले कोयले से कम होता है. इसे अंग्रेज़ी में lignite कहते हैं. lignite को बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाता था. lignite की उत्पत्ति लगभग दो करोड़ वर्ष पहले तृतीयक में हुई थी. इस क्षेत्र में पहली खोज 1800 के आस-पास की गई थी, और परम्परागत तरीके से सुरंगें खोद कर इसका खनन करने की कोशिश की गई. पर 1845 में लाभहीनता के कारण भूमिगत खनन बन्द कर दिया गया. 1900 के बाद केवल ऊपर से करीब 50 meter गहरे करीब 36 छोटे बड़े खड्डे खोद कर फिर से खनन शुरू किया गया. lignite का खनन लगभग 1906 से ले कर 1982 तक हुआ. इन 76 सालों में करीब 18.5 करोड़ टन कोयले का खनन हुआ, जिस से करीब 88 खरब kWh बिजली पैदा की गई. इस दौरान Wackersdorf गांव जो पहले बहुत ग़रीब लोगों का गांव होता था, बहुत अमीर हो गया. लगभग सभी लोग खनन company BBI में काम करते थे. 1950 के आस-पास company को लगा कि गांव के नीचे भी बहुत सारा कोयला मिल सकता है, तो उसने पूरे का पूरा गांव भी थोड़ी दूर स्थानन्त्रित करने का फ़ैसला कर लिया. करीब 1200 निवासियों ने इसका विरोध भी नहीं किया क्योंकि उन्हें रोज़गार और बेहतर और शौचालय-युक्त घर चाहिए थे. पर बाद में यह गांव फिर से वहीं मूल जगह पर स्थापित कर दिया गया, और आज भी वहीं है. 1982 के बाद जब कोयला मिलना बन्द हो गया तो छोटे गड्ढे तो मिट्टी से भर दिए गए और छह बड़े गड्डों में पानी भर कर लगभग 650km क्षेत्रफल की झीलें बना दी गईं जो आज एक बहुत बड़ा पर्यटक स्थल हैं.

खानें बन्द होने के बाद लोगों को आमदनी खत्म होते का भय सताने लगा और वे रोज़गार की मांग करने लगे. Bayern प्रांत की सरकार करीब 1979 से ही परमाणु बिजली घरों के कचरे को दोबारा इस्तेमाल करने के लिए तैयार करने के लिए Bayern में एक सयन्त्र (Wiederaufbereitungsanlage Wackersdorf (WAA)) लगाने के लिए कोई जगह ढूंढ रही थी. अन्त 1985 में खनन company BBI और Bayern सरकार ने मिल कर फ़ैसला किया कि Schwandorf के पास एक औद्योगिक गांव Wackersdorf के पास एक जंगल को काट कर यह सयन्त्र तैयार किया जाए, ताकि वहां के निवासियों को दोबारा रोज़गार मिल सके. जब लोगों में यह समाचार फैला, उस समय लोगों में परमाणु संयन्त्रों के बारे में जानकारी बहुत कम थी कि ये कितने खतरनाक हो सकते हैं. Chernobyl काण्ड भी इस के बाद 1986 में हुआ. पर धीरे धीरे जागृति आने लगी तो लोगों ने इसका विरोध करना शुरू किया. तो सरकार ने लोगों को कहना शुरू किया कि कचरा फेंकने के साथ साथ Uranium की जली हुई छड़ों को दोबारा इस्तेमाल के लिए भी तैयार किया जाएगा, जिस से करीब एक हज़ार रोज़गार पैदा होंगे. पर अब तक लोग परमाणु संयन्त्रों के खतरों के बारे में पूरी तरह जागृत हो चुके थे. वे बर्फ़ीली सर्दियों में हज़ारों की संख्या में जगह जगह जमा हो कर विरोध करने लगे. उनकी police के साथ कई बार हिंसात्मक मुठभेड़ भी हुई. construction machines को बचाने के लिए चारों ओर करीब सात kilometre लम्बी और ढाई meter ऊंची लोहे की छड़ों वाली दीवार खड़ी कर दी गई. लेकिन लोग उसे भी आरियों के साथ काटने लगे. फिर दीवार के इर्द गिर्द डेढ meter की गहरी और पांच meter चौड़ी खाई खोद दी गई. लेकिन लोगों ने आस पास लकड़ी के घर और tower बना कर और जमे रह कर विरोध जारी रखा. 1986 में Chernobyl काण्ड के बाद तो ये विरोध और भी हिंसात्मक हो गए. अन्त 1989 में इस सयन्त्र को France ले जाने का फ़ैसला हुआ. लेकिन तब तक एक अरब D-Mark का निवेष हो चुका था. पर फिर भी यह लोगों की बड़ी जीत थी. बाद में उसी क्षेत्र में BMW, Senebogen के साथ और कई companies आईं और उस से कहीं अधिक रोज़गार पैदा हुआ जिस का शुरू में वादा किया जा रहा था. आज यह क्षेत्र पर्यटन और ख़ुशहाली का प्रतीक है.