पंद्रहवीं सदी में जब से पुस्तकों का चलन शुरू हुआ है, तब से कलात्मक स्वतंत्रता और सख्त नैतिक, राजनीतिक या धार्मिक विचारों के बीच एक कड़वा संघर्ष होता रहा है। चाहे निरंकुश शासक हों, चिंतित माता-पिता या नैतिकता के संरक्षक, उन्होंने पठन सामग्री पर नियंत्रण रखने का प्रयास किया है। राजनीतिक रूप से अवांछनीय लोगों, महिलाओं, सामाजिक रूप से वंचितों लोगों को शिक्षा से दूर रख कर उन्हें स्वतंत्र रूप से सोचने और खुद को सशक्त बनाने से रोका जाता रहा है। मुद्रण के आविष्कार के बाद से ही सेंसरशिप अस्तित्व में है और अब यह दुनिया के कई क्षेत्रों में नए आयामों तक पहुँच रही है। अनेक लोकतंत्रों में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाई जाती रही है।
"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही जीवन है।" - सलमान रुश्दी
रोमन साम्राज्य के 'librorum prohibitorum' नामक सूचकांक से लेकर 1933 में राष्ट्रीय समाजवादियों द्वारा पुस्तकों को जलाए जाने से होते हुए 2022 में 'The Satanic Verses' के लेखक सलमान रुश्दी की हत्या के प्रयास तक, जिसमें वह मुश्किल से बच पाए थे, यह प्रदर्शनी बदलते समाजों की समझ और प्रतिबंध के बीच अंतर की पड़ताल करती है।
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