बुधवार, 8 नवंबर 2023

Flossenbürg का यातना शिविर

1938 में यातना शिविर के स्थापित होने तक Flossenbürg ऊपरी palatinate वन में एक छोटा सा गांव था. इस के granite भण्डार के कारण 19वीं सदी के अन्त से वहां कई खदानें चालू हो गई थीं. इस लिए यह एक श्रमिकों के गांव के रूप में विकसित हो रहा था. साथ ही यह एक पर्यटन स्थल के रूप में भी लोकप्रिय हो रहा था. मध्यकालीन किले के खण्डहरों के कारण दिन में पर्यटक Flossenbürg घूमने आते थे. राष्ट्रीय समाजवादियों के राज्य निर्माण कार्यक्रमों के साथ granite की मांग में भारी वृद्धि हुई. इस लिए national socialists द्वारा सत्ता पर कब्जा करने का खदान मालिकों और श्रमिकों ने समान रूप से स्वागत किया.

मई 1938 में Flossenbürg शिविर की स्थापना SS (SchutzStaffel) द्वारा सम्पूर्ण शिविर प्रणाली के कार्यों के विस्तार का हिस्सा थी. शिविरों का उद्देश्य अब केवल राष्ट्रीय समाजवाद के राजनीतिक विरोधियों को नज़रबन्द और आतंकित करना नहीं था. SS अब कैदियों के श्रम से भी आर्थिक लाभ कमाना चाहता था. निर्माण सामग्री के उत्पादन में SS के स्वामित्व वाले व्यवसायों में कैदियों का विशेष रूप से शोषण किया जाना था. इस उद्देश्य के लिए SS ने नए शिविरों की स्थापना की और उन में अधिक से अधिक लोगों को नज़रबन्द किया. 1936/37 में नए यातना शिविरों का निर्माण शुरू हुआ. Sachsenhausen और Buchenwald में भी शिविर बनाए गए. नए स्थानों के चुनाव में SS के आर्थिक हित एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. Flossenbürg शहर अपने विशाल granite भण्डार के कारण उनके लिए दिलचस्प था. इस नए स्थान का निर्णय march 1938 में किया गया था. पहला SS guard April के अन्त में आया था. 3 मई को, Dachau यातना शिविर से 100 कैदियों को लाया गया. वर्ष के अन्त तक शिविर में 1,500 कैदी थे.

Flossenbürg शिविर में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ रही थी. एक SS company, Deutschen Erd- und Steinwerke (DESt) ने कैदियों का बेरहमी से शोषण कर के granite का खनन किया. शिविर की स्थापना के दो साल के भीतर 300 से अधिक कैदियों की मौत हो चुकी थी. शिविर में पहले कैदी German थे जो तथा-कथित "अपराधियों" और "असामाजिक लोगों" के खिलाफ़ अभियान के पीड़ित थे. पहले राजनीतिक कैदी 1938 के अन्त में पहुंचे. द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद Flossenbürg सभी कब्जे वाले European देशों के लोगों के लिए एक यातना शिविर के रूप में विकसित हुआ. 1940 में पहला यहूदी कैदी पञ्जीकृत किया गया. अब तक शिविर के निर्माण का पहला चरण काफ़ी हद तक पूरा हो चुका था और खदान का संचालन शुरू हो गया था. शिविर में 2,600 से अधिक कैदी थे और मृत्यु दर बढ़ रही थी. SS ने लाशों के निपटान के लिए एक श्मशान घर बनाया.

शिविर में कैदियों की रोजमर्रा ज़िन्दगी बहुत खतरनाक और अमानवीय थी. कैदियों को अपमानित और प्रताड़ित किया जाता था और उन्हें पूरी तरह थकने तक काम करना पड़ता था. बहुतों को यातना दे कर मार डाला जाता था. शिविर में आतंक और हिंसा का राज था. SS कैदियों के बीच राजनीतिक, राष्ट्रीय, सामाजिक और सांस्कृतिक मतभेदों का फ़ायदा उठाने की कोशिश करती थी. 1938 और 1945 के बीच 30 से अधिक देशों के लगभग 84,000 पुरुषों और 16,000 महिलाओं को Flossenbürg शिविर और उस के उप शिविरों में कैद किया गया. प्रत्येक कैदी को एक number वाली वर्दी और एक रंगीन तमगा पहनना होता था जो उस की श्रेणी को परिभाषित करता था. युद्ध के दौरान कैदियों की रहने की स्थिति काफ़ी ख़राब हो गई. दुर्घटनाओं, बीमारियों और मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है. कैदी की काम करने की क्षमता उस के जीवित रहने की सम्भावना निर्धारित करती थी. 1943 के अन्त से बहुत बड़ी संख्या में कैदी Flossenbürg पहुंचने लगे. मुख्य शिविर खचाखच भरा हुआ था. कई कैदियों को उपग्रह शिविरों में ले जाया गया. अधिकांश कैदियों के लिए निर्णायक प्रश्न यह था कि वह अगले दिन तक कैसे जीवित रहेगा.

हज़ारों कैदियों को DESt की Flossenbürger खदान में काम करने के लिए मजबूर किया जाता था. सुरक्षा सावधानियों के बिना, ख़राब कपड़े पहने हुए और हर मौसम में उन्हें मिट्टी हटानी पड़ती थी, granite blocks को हटाना पड़ता था, गाड़ियां धकेलनी पड़ती थीं और पत्थर ढोने पड़ते थे. दुर्घटनाएं आम बात थी. ठण्ड, कड़ी मेहनत, पूरी तरह से अपर्याप्त पोषण और SS officers की मनमानी हिंसा के कारण कई कैदियों की मौत हो गई. खदान में एक कार्य दिवस बारह घंटे तक चलता था. केवल एक छोटे break में पतला सूप परोसा जाता था. SS कैदियों को घंटों तक पत्थर ले जाने के लिए मजबूर करते थे. काम खत्म होने के बाद कैदियों को मृतकों को वापस शिविर में ले जाना पड़ता था. इस शिविर की खदान Flossenbürg शहर का सब से बड़ा व्यवसाय था. 1939 के मध्य में लगभग 850 शिविर कैदी हर दिन वहां काम करते थे और 1942 तक यह संख्या लगभग 2,000 हो गई. DESt में 60 नागरिक कर्मचारी, प्रशासनिक कर्मचारी, मिस्त्री, driver और प्रशिक्षु कार्यरत थे. उन में से कईयों का कैदियों से नियमित सम्पर्क रहता था.

शिविरों का प्रशासन और सुरक्षा SS का एक केन्द्रीय कार्य था. इस उद्देश्य के लिए SS death head association के सदस्यों का उपयोग किया जाता था. SS खुद को एक वैचारिक व्यवस्था और नस्लीय अभिजात्य वर्ग के रूप में देखता था. Reichsführer SS Heinrich Himmler ने SS को एक जटिल संगठन के रूप में विकसित किया. निपटान नीति से ले कर "दुश्मनों से लड़ना" और तथा-कथित "हीन जातियों" की व्यवस्थित हत्या तक उस के कार्यों में शामिल था. SS के अपने वाणिज्यिक उद्यम भी थे. SS teams कैदियों की निगरानी के लिए ज़िम्मेदार थीं. शिविर में SS officers को command staff और guard tower में विभाजित किया गया. SS का मुखिया अपने अधीनस्थ विभागों के साथ मिल कर कैदियों के भाग्य का निर्णय लेता था. Flossenbürg शिविर के SS command staff में लगभग 90 guard थे . 1940 के वसन्त तक guards की संख्या लगभग 300 तक पहुंच गई. उपशिविरों के विस्तार के साथ, 1945 में यह संख्या बढ़कर लगभग 2,500 पुरुषों और 500 महिलाओं तक पहुंच गई. युद्ध शुरू होने के बाद, कई युवा SS guards को मोर्चे पर भेजा गया. इस लिए शिविर में निगरानी के लिए अब वृद्ध पुरुषों, Luftwaffe सैनिकों, अन्य देशों के सदस्यों और महिलाओं को बाध्य किया जाने लगा. युद्ध के बाद, Flossenbürg शिविर के अधिकांश SS सदस्यों को उनके अपराधों के लिए केवल मामूली सजा मिली.

Flossenbürg शिविर में कैदी भूख से या ठिठुर कर मर जाते थे, या फिर उनकी मनमाने ढंग से हत्या कर दी जाती थी। भागने का प्रयास या कथित तोड़-फोड़ करने वाले कैदियों को बाकी कैदियों को डराने के लिए roll call क्षेत्र में फ़ांसी दी जाती थी। February 1941 से SS ने कुछ लक्षित कार्यवाहियों में कुछ खास समूहों की बड़े पैमाने में हत्या की, जैसे Polish कैदी, विदेशी बंधक मजदूर, युद्ध के Soviet कैदी, प्रतिरोध सेनानी, बीमार, बूढ़े या विकलांग कैदी। Flossenbürg शिविर में कम से कम 2,500 व्यवस्थित हत्याएं हुईं। सामूहिक हत्याएं गुप्त रूप से की जाती थी पर फिर भी अन्य कैदियों को इसकी भनक लगती थी। वे शिविर में SS के firing दस्तों को आते जाते देखते थे और उनके कई साथी बिना किसी सुराग के गायब हो जाते थे। शव वाहक और श्मशान दस्तों के लोग मारे गए लोगों के अवशेषों का निपटान करते थे और clerk उनका नाम सूची से हटा देते थे।

अन्य मुख्य शिविरों की तरह Flossenbürg शिविर भी 1942 के बाद से एक व्यापक शिविर प्रणाली का मुख्यालय बन गया. इस के लगभग 80 उप-शिविर Würzburg से Prague तक और उत्तरी Saxony से lower Bavaria तक फैले हुए थे. 27 उप-शिविरों में महिला कैदी थीं. कैदियों की काम करने की स्थितियां और जीवित रहने की सम्भावनाएं बहुत भिन्न होती थीं, जो मुख्य तौर पर उनके पेशे पर निर्भर करती थीं. Flossenbürger commandant का कार्यालय कैदियों को companies और SS सुविधाओं में स्थानांतरित करता था और उनकी निगरानी के लिए ज़िम्मेदार था. वह कैदियों के जबरन श्रम के लिए मासिक भुगतान भी लेता था. युद्ध के अन्त में SS ने मनमाने ढंग से कैदियों को मुख्य शिविर और उप शिविरों के बीच आगे-पीछे किया. अधिकांश उप-शिविर स्थापित करने में नागरिक अधिकारी और companies शामिल थीं. इन स्थानों की आबादी का अक्सर पहली बार शिविर के कैदियों से सामना होता था. कभी-कभी आम German लोग, कैदियों को भोजन उपलब्ध कराते थे या उनके रिश्तेदारों को गुप्त रूप से पत्र भेजते थे. कड़ी मेहनत और ख़राब देख-भाल रोजमर्रा की ज़िन्दगी की विशेषता थी. कई कैदी भागने की कोशिश करते थे लेकिन ज़्यादातर असफ़ल रहते थे.

https://www.gedenkstaette-flossenbuerg.de/