शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

सवाद का विज्ञान

कोई भी व्यंजन खाते समय हम कुछ ही seconds में तय कर लेते हैं कि यह व्यंजन मीठा है या नमकीन, कड़वा है या खट्टा या एक मांसल-दिल-कश स्वाद जिसे Umami कहते हैं. हम यह भी तय कर लेते हैं कि यह स्वादिष्ट है या नहीं. इस अल्प समय में इतना कुछ तय कर लेने के पीछे एक काफ़ी जटिल प्रक्रिया है जो विभिन्न कारकों से प्रभावित होती है. इस लेख में हम जानेंगे कि हम पांच स्वादों में अन्तर कैसे करते हैं, 'स्वाद क्षमता' कहां से उत्पन्न होती है.

'स्वाद क्षमता' हमारे जन्म से पहले आकार ले लेती है और जन्म के बाद भी विकसित होती रहती है. एक ओर यह बहुत व्यक्तिगत होती है लेकिन दूसरी ओर सारी पीढ़ी का स्वाद समान रूप से विकसित होता है. 1970 के दशक में शिशु आहार में Vanillin मिलाना आम बात थी. इसने बच्चों की 'स्वाद क्षमता' को इतना प्रभावित किया कि यह पीढ़ी आज भी विशेष रूप से vanilla का स्वाद पसन्द करती है और इसे बचपन की यादों और सुरक्षा की भावना से जोड़ती है. आज शिशु आहार में Vanillin मिलाना वर्जित है.

लेकन हम स्वाद को यादों और भावनाओं के साथ क्यों जोड़ते हैं? यह हमारे दिमाग की उपज है. हमारा limbic system खाने में अहम भूमिका निभाता है. यह हमारे मस्तिष्क के तने में वह स्थान है जहां हमारे खाने का अनुभव दर्ज होता है. साथ ही यहां भावनाएं और यादें भी संग्रहित होती हैं. परिणाम: मस्तिष्क खाने के अनुभव को स्मृति और सम्बन्धित भावना से जोड़ता है और इस संयोजन को संग्रहीत करता है. उदाहरण के लिए, आप गर्मियों के बीच में अपनी मां के हाथ की बनी हुई Christmas cookies खाते समय महसूस करते हैं कि अब Christmas आ गया है. यही कारण है कि केवल Christmas cookies ही नहीं, बल्कि मां के अन्य सभी व्यंजनों का स्वाद हमेशा सब से अच्छा होता है: वे हमें बचपन के लापरवाह और खूबसूरत पलों की याद दिलाते हैं. लेकिन हमारी 'स्वाद क्षमता' यादें जगाने के अलावा और भी बहुत कुछ कर सकती है.

'स्वाद क्षमता' का मूल काम वास्तव में उपभोग से पहले भोजन का परीक्षण करना है. स्वाद, गन्ध और दिखावट जैसी संवेदी धारणाओं के साथ हम यह निर्धारित कर सकते हैं कि यह भोजन कच्चा है, ताज़ा है, ख़राब है या अखाद्य है. इस तरह हम खुद को हानिकारक तत्वों से बचाते हैं. मनुष्य के शरीर में स्वाद के लिए ज़िम्मेदार कोशिकाएं मुख्य रूप से जीभ पर स्थित होती हैं. जीव्हा पर स्थित असंख्य papillae, जिन्हें हम दर्पण में नंगी आंखों से देख सकते हैं जीभ के क्षेत्र-फल को बढ़ाती हैं और स्वाद की गहन अनूभूति को सुनिश्चित करती हैं. इन papillae में हज़ारों स्वाद कलिकाएं होती हैं. इन स्वाद कलिकाओं में 50 से 150 संवेदी कोशिकाएं होती हैं. और इन संवेदी कोशिकाओं में receptors होते हैं जो अन्तत: उत्तेजनाओं को मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं. भोजन में घुला हुआ स्वाद के लिए ज़िम्मेदार रसायन संवेदी कोशिका की भित्ति में protein को बदल देता है. इससे संवेदी कोशिका neurotransmitter जारी करती है, जो फिर मस्तिष्क तक जानकारी पहुंचाती है. यह हमें कथित स्वाद के बारे में एक अपेक्षाकृत तटस्थ बयान देती है. हम अन्तत: इसे पसन्द करते हैं या नहीं, यह कई अन्य कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि अन्य इन्द्रियां, अनुभव, अपेक्षाएं और बहुत कुछ. सामान्य धारणा कि आप जीभ के विभिन्न क्षेत्रों में कुछ स्वादों को अधिक तीव्रता से महसूस करते हैं, गलत है. वास्तव में, सभी स्वादों को जीभ के सभी क्षेत्रों से महसूस किया जा सकता है. एकमात्र अपवाद जीभ के पार्श्व और पिछले क्षेत्र हैं, जो मध्य वाले भाग की तुलना में थोड़ा अधिक संवेदनशील होते हैं. ये भाग अखाद्य चीज़ों के प्रति चेतावनी देने के लिए अन्तिम बाधा के रूप में कड़वे पदार्थों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते है. अन्यथा स्वाद कलिकाएं हमारी जीभ पर अपेक्षाकृत समान रूप से वितरित होती हैं. यद्यपि अनन्त संयोजनों के कारण अनगिनत स्वाद सम्भव हैं, लेकिन विज्ञान मूल रूप से पांच स्वादों को मानता है. प्रत्येक स्वाद की अलग-अलग विशेषताएं और सूक्ष्म उन्नयन होते हैं; विभिन्न संयोजनों के कारण कई मिश्रित स्वाद भी सम्भव हैं जैसे कड़वा-मीठा या खट्टा-मीठा.

मीठा स्वाद fructose, दूध का शक्कर, शहद जैसे प्राकृतिक उत्पाद, agave syrup, maple syrup या रसायन आदि अनेक रूप में उपलब्ध होता है. इन के अलावा कुछ amino acid या alcohol भी मिठास के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. क्योंकि हमें ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए चीनी में मौजूद calorie की आवश्यकता होती है, इस लिए मीठी चीज़ें अक्सर हमें सहज रूप से अच्छी लगती हैं. नमकीन स्वाद हमें घरेलू नमक (sodium chloride) के अलावा potassium और magnesium से भी मिलता है. रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण, हम ठण्डे, कच्चे खाद्य पदार्थों को पके या गर्म खाद्य पदार्थों की तुलना में कम नमकीन समझते हैं. वसा-युक्त खाद्य पदार्थ अक्सर हमें बहुत अधिक नमकीन लगते हैं क्योंकि नमक को वसा में घुलना मुश्किल होता है. नमक जीवन का आधार भी है, जिस के कारण इसका स्वाद अक्सर हमें सुखद लगता है. अधिकांश अखाद्य खाद्य पदार्थों का स्वाद कड़वा होता है. इस लिए लगभग 35 विभिन्न receptors सुरक्षात्मक कारणों से कड़वे स्वाद पर प्रतिक्रिया करते हैं. खट्टा स्वाद नींबू के रस या अन्य carbonic घोलों से बनता है. पहले यह किसी कच्ची या अखाद्य चीज़ का संकेत भी देता था. लेकिन आज विभिन्न फलों, पेय या dairy उत्पादों की अम्लता के कारण खट्टा स्वाद भी स्वीकार्य है. Umami स्वाद में सब कुछ है. Umami जापानी शब्द "umai" से लिया गया है और इसका अर्थ है "स्वादिष्ट". जापानी रसायनज्ञ Kikunae Ikeda ने इस स्वाद की खोज 1908 में की थी जब वह लोकप्रिय समुद्री शैवाल Kombu का अध्ययन कर रहे थे, जिस का उपयोग अक्सर जापान में soup को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है. लेकिन Umami को केवल 2000 में पांचवां स्वाद घोषित किया गया जब अमेरिकी शोध-कर्ताओं ने जीभ पर Umami से सम्बन्धित receptors की खोज की थी. Umami मुख्य रूप से गले के क्षेत्र में महसूस की जाती है और इसे मांसल, स्वादिष्ट और तीव्र माना जाता है. इसका स्वाद L-Glutamic acid नामक amino acid के लवण से आता है, जो protein युक्त खाद्य पदार्थों में उच्च सांद्रता में पाया जाता है. कई खाद्य पदार्थों का स्वाद बढ़ाने के लिए Glutamic acid और इस के लवण Glutamate का उपयोग किया जाता है, जैसे टमाटर का paste, chicken शोरबा, mushroom, दूध और पनीर. ऐसा माना जाता है कि इन पांच बुनियादी स्वादों के अलावा अन्य स्वाद भी हैं: वसा-युक्त, क्षारीय, धात्विक और पानी जैसे स्वादों पर वर्तमान में शोध किया जा रहा है.

Glutamate क्या है? औद्योगिक खाद्य उत्पादन में बड़ी मात्रा में Glutamic acid कृत्रिम रूप से मिलाया जाता है, विशेष रूप से मसालों और sauce के साथ तैयार भोजन में. monosodium Glutamate सब से प्रसिद्ध संस्करण है और सामग्री की सूची में इसका पदनाम E621 है. कम मूल्य में उत्पाद उपलब्ध करवाने की प्रतिस्पर्धा में इसे भोजन के अन्तर्निहित स्वाद को बढ़ाने के लिए वास्तविक अवयवों की जगह इस्तेमाल किया जाता रहा है. अधिक तीव्र स्वाद के कारण यह उपभोक्ता को बेहतर गुणवत्ता का आभास देता है. लेकिन स्वाद के प्रति अतिसंवेदनशीलता पैदा करने और पाचन क्रिया को बिगाड़ने के सन्देह के कारण Glutamic acid की प्रतिष्ठा ख़राब है. सामग्री सूची को सुशोभित करने के लिए निर्माता तेज़ी से खमीर, मसाले या टमाटर serum की ओर रुख कर रहे हैं और Glutamic acid को केवल एक सुगन्ध के रूप में घोषित कर रहे हैं. लेकिन ऐसे निर्माता भी हैं जो Glutamic acid इस्तेमाल नहीं करते हैं और वास्तविक खाद्य पदार्थ या सांद्रण का उपयोग कर के मसाले और भोजन तैयार करते हैं.

स्वाद के अलावा खाद्य पदार्थ की बनावट और गन्ध भी हमारी पसन्द को प्रभावित करती है. हमार नाक कई अलग-अलग सुगन्धों को गहनता से महसूस कर सकती है. जब सर्दियों में नाक बन्द हो जाती है तो भोजन का स्वाद अचानक फीका हो जाता है. उम्र के साथ, सूंघने और स्वाद चखने की क्षमता कम हो जाती है, जिस से वृद्ध लोगों को भूख कम लगने लगती है और वे कुपोषण का शिकार हो सकते हैं. जो चीज़ दिखने में चीज़ अरुचिकर लगती है हम उसे तुरन्त अखाद्य मान लेते हैं. रंग भी महत्वपूर्ण है. अध्ययनों से पता चला है कि अगर दही का रंग गुलाबी हो तो वह हमें strawberry जैसा स्वाद देता है. glass का रंग नीला होने से एक पेय हमें विशेष रूप से ताज़ा लगता है. अपनी आंखें बन्द कर के विभिन्न स्वादों की पहचान करना कठिन है.

दुनिया के कई क्षेत्रों में रोज मसालेदार भोजन खाया जाता है. मिर्च, अदरक, लाल मिर्च और सहिजन आदि परिसंचरण और पाचन को उत्तेजित करती हैं. ऐसा कहा जाता है कि कुछ सामग्रियां हृदय प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं और यहां तक कि ख़ुशी की भावना भी पैदा करती हैं. लेकिन कई लोगों को अधिक खुराक में तीखापन बेहद अप्रिय लगता है क्योंकि इससे खांसी या हिचकी आती है, आंखों में आंसू आते हैं या माथे पर पसीना आता है. हालांकि बार-बार मसालेदार भोजन खाने पर इन्द्रियां इसकी आदी हो जाती हैं और शारीरिक प्रतिक्रियाएं कम हो जाती हैं. लेकिन तीखापन कोई अलग स्वाद नहीं है क्योंकि इसे जीभ पर receptors द्वारा नहीं, बल्कि संवेदी कोशिकाओं द्वारा पहचाना जाता है. तीखे के लिए अंग्रेज़ी शब्द "hot" दर्शाता है कि हमारी इन्द्रियां तीखेपन को कैसे महसूस करती हैं, यानी गर्म और दर्द के रूप में.

शिशु जन्म से बहुत पहले ही विभिन्न स्वादों को पहचानने लगते हैं. गर्भावस्था के 14वें सप्ताह से शिशु के receptors पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं. मीठे amniotic द्रव से वह सीखता है कि मीठे स्वाद का मतलब सुरक्षा और सुरक्षित खाद्य पदार्थ है. स्तनपान के दौरान शिशु को मां के दूध के ज़रिए अन्य कई स्वादों का पता चलता है. यह मां के आहार पर भी निर्भर करता है. लेकिन दूध पर आधारित आहार भी आम-तौर पर शिशुओं के लिए उतना ही अच्छा होता है और सुरक्षा का अहसास देता है जितना मां का दूध. ठोस आहार के पहले प्रयास के साथ ही बच्चे की पसन्दें और नापसन्दें नज़र आने लगती हैं. कड़वे पदार्थ सम्भावित खतरे का संकेत देते हैं, इस लिए इन्हें अस्वीकार कर दिया जाता है. आम-तौर पर, बच्चे ऐसे खाद्य पदार्थ पसन्द करते हैं जिन का स्वाद वे पहले से जानते हैं. बचपन के दौरान प्राथमिकताएं कम ही बदलती हैं.

लेकिन पोषण पर आनुवंशिकी की तुलना में अनुभवों का कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है. माता-पिता अपने बच्चों के लिए आदर्श होते हैं. भोजन सेवन के सकारात्मक प्रभाव के लिए भोजन को सुखद वातावरण से जोड़ा जाना चाहिए. पहले से प्रचलित "plate खाली करना" या "समय के अनुसार खाना" जैसे कठोर नियमों का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. क्योंकि वे केवल घृणा को बढ़ावा देते हैं और बच्चों की प्रवृत्ति और भूख की भावनाओं के खिलाफ़ जाते हैं. कई माता-पिता चिन्तित होते हैं कि उनके बच्चे pasta को बिना sauce के खाना पसन्द करते हैं. इस में कोई बुराई नहीं है. अज्ञात पकवानों या खाद्य सामग्रियों के स्वाभाविक भय को कम करने के लिए अनौपचारिक तरीके से उन्हें बार-बार दिखाया जाना चाहिए. बच्चों के लिए यह सामान्य बात है कि कुछ खाद्य पदार्थ दस या बीस बार दिए जाने के बाद ही चखे जाते हैं और फिर सम्भवत: उन्हें अपनी मनपसन्द पकवानों की सूची में शामिल किया जाता है. इस लिए निरन्तर तनाव-मुक्त हो कर विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ परोसते रहें. कभी कच्चा, कभी पका हुआ या तला हुआ. यह अच्छा है जब बच्चे अलग-अलग पेशकशों के बीच चयन कर सकें.

लेकिन हम यह कैसे तय करें कि हमें क्या पसन्द है? उदाहरण के लिए जैतून, धनिया, मुलेठी आदि कई ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिन के बारे में सब की राय अलग-अलग है. कुछ इन्हें पसन्द करते हैं, अन्य इन से दूर भागते हैं.

हमारे स्वाद को कई कारक प्रभावित करते हैं. कुछ प्राथमिकताएं हमारे DNA में पहले से ही स्थापित हैं. हमारी आनुवंशिक संरचना यह भी निर्धारित करती है कि हमारी जीभ पर कितनी स्वाद कलिकाएं हैं. ये जितनी अधिक होंगी, स्वाद चखने की हमारी क्षमता उतनी ही अधिक होगी. उम्र भी महत्वपूर्ण है. शिशुओं में लगभग 9,000 से 12,000 के साथ वयस्कों की तुलना में दोगुनी से अधिक स्वाद कलिकाएं होती हैं. इस लिए उनकी स्वाद क्षमता कहीं अधिक तीव्र होती है. उम्र बढ़ने के साथ स्वाद क्षमता कम होती जाती है. उदाहरण के लिए बढ़ती उम्र के साथ हम कड़वे पदार्थों को कम महसूस करते हैं और dark chocolate, coffee या जैतून को पसन्द करने लगते हैं. लेकिन खट्टे और कड़वे खाद्य पदार्थों के प्रति हमारी नापसन्दगी जन्म-जात है. कड़वा और खट्टा स्वाद उस समय महत्वपूर्ण थे जब लोग शिकार कर के अपना पेट भरते थे. ये उन्हें ज़हरीले पौधों, कच्चे फलों या ख़राब भोजन का संकेत देते थे.

स्वाद का मूल्यांकन सिर्फ़ जीभ पर ही नहीं, बल्कि हमारे दिमाग में भी होता है. यदि हम चाहें तो हमें हर चीज़ स्वादिष्ट लग सकती है क्योंकि यह केवल आदत डालने की बात है. जितनी अधिक बार हम किसी पेय या भोजन का सेवन करेंगे, उतना ही जल्द हम उस स्वाद के आदी हो जाएंगे. जीवन के दौरान हमारा स्वाद लगातार बदलता रहता है. व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अलावा, सांस्कृतिक प्रभाव भी हमारे स्वाद को महत्वपूर्ण रूप से आकार देते हैं. प्रत्येक देश और प्रत्येक क्षेत्र की सभी प्रकार की विशिष्टताओं और आदतों के साथ अपनी खाद्य संस्कृति होती है. अब हम उन व्यंजनों को अपने दिमाग से नहीं निकाल सकते जिन्हें हम बचपन में बार-बार खाते थे, चाहे वे सकारात्मक हों या नकारात्मक. कुछ स्वाद घर और सुरक्षा की भावना व्यक्त करते हैं. उत्पाद developer और खाद्य designer लगातार उत्तम स्वाद की खोज कर रहे हैं. कई star chef लगातार अपनी रचनाओं में स्वाद की अनेक बारीकियों के साथ प्रयोग करते रहते हैं. जब सब कुछ सही होता है तो एक नया स्वाद एक अच्छा अनुभव बन जाता है. सही तैयारी, गन्ध, तापमान और दिखावट और हमारी व्यक्तिगत भावनाएं का परस्पर सम्बन्ध यह निर्धारित करते है कि हमें कोई व्यंजन अन्तत: कितना स्वादिष्ट लगता है. किसी व्यंजन में उपयुक्त खाद्य पदार्थों का संयोजन जितना सन्तुलित होगा, व्यंजन उतना ही स्वादिष्ट होगा. 

अधिक आनन्द के लिए 5 युक्तियां. 1. जागरुकता बढ़ाएं. जान-बूझ-कर असंसाधित खाद्य पदार्थों को चखने का प्रयास करें. जैसे कच्ची गाजर का मीठापन, सेब की हल्की अम्लता या कच्चे पालक का सूक्ष्म कड़वापन. 2. स्वाद की तीव्रता कम करें. कुछ समय के लिए चीनी से परहेज़ करने से आप भोजन की मिठास को और अधिक तीव्रता से महसूस करेंगे. यही बात नमक, वसा और अम्ल पर भी लागू होती है. 3. आराम से खाएं. समय निकालकर सचेत रूप से भोजन का आनन्द लें. काम करने के साथ साथ ना खाएं, और ना ही गटक कर खाएं. इससे स्वाद के साथ-साथ पोषक तत्वों का अवशोषण भी बेहतर होता है. 4. दिखावट पर काम करें. dining table set करें और अपने भोजन को खूबसूरती से सजाएं. भोजन देखने में जितना अधिक आकर्षक होगा, खाने में उतना ही अधिक आनन्ददायक होगा. 5. सभी इन्द्रियों को इस्तेमाल करें. अपने भोजन को चखें, देखें, सूंघें और छुएं. भोजन की स्थिरता, तापमान और रंग क्या है? इससे कौन सी सुगन्ध आती है? ख़रीदारी करते समय और खाना बनाते समय भी इन चीज़ों पर ध्यान देना फ़ायदेमन्द है.