शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

मुंबई हमलों पर जर्मनी से एक नज़र

मुंबई हमलों में कुछ जर्मन नागरिकों की मृत्यु पर समाचार छापने के बाद जर्मन मीडिया ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है जैसे कुछ हुआ ही न हो। खास कर पाकिस्तान पर उँगली उठाने से बचा जा रहा है। इस मुद्दे से यह कहकर पल्ला झाड़ा जा रहा है कि भारत के मुसलमान जागृत हो रहे हैं, इस लिए ऐसी घटनाओं को हवा दे रहे हैं, या फिर भारतीय पुलिस के पास लड़ने के लिए पर्याप्त अस्त्र नहीं थे, या फिर भारत और पाकिस्तान को अपने झगड़े जल्द निपटाने चाहिए। Frankfurter Rundschau ने खुलासा किया है कि जर्मनी की असला बनाने वाली कंपनियों से पिछले वर्षों में भारत पाकिस्तान आदि देशों में भारी निर्यात हुआ है।

हैरत की बात ये है कि जर्मनी में रहने वाला भारतीय समुदाय इन घटनाओं से क्षुब्ध तो है परंतु सार्वजनिक स्तर पर विरोध करने से डर रहा है। जहां कोलंबिया, कोसोवो, तिब्बत आदि कितने ही देशों के लोग अपने राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर झंडे और बैनर लेकर सड़कों पर उतर आते हैं, मीडिया की नज़र में आते हैं, वहीं भारतीय समुदाय इतना कुछ होने पर भी घर में बैठा टीवी देख रहा है। भारतीय लोग सार्वजनिक विरोध करना चाहते हैं लेकिन अपना नाम मीडिया अथवा भारतीय सरकार की नज़र में आने से डर रहे हैं। ज़ाहिर है, अधिकतर भारतीय लोगों की दौड़ नौकरी, परिवार, वीज़ा और घर तक ही होती है। लेकिन कम से कम इस मुद्दे में भारतीय लोगों में एकता नज़र आयी। लोग यह भूल कर कि वे बंगाली हैं, पंजाबी हैं, या फिर हिन्दु हैं, मुस्लिम हैं या सिक्ख हैं, पाकिस्तान की भर्तस्ना कर रहे हैं। अधिकतर लोगों का यह मानना है कि अब बहुत हो गया, भारत इतना बड़ा देश होकर इतने छोटे से देश से डर रहा है। उसपर चढ़ाई कर देनी चाहिए। आज इंदिरा गाँधी होती तो इन सब का अच्छा उत्तर देती। लेकिन कईयों का यह भी मानना है कि बिना भारतीय लोगों की मदद के बिना इतना बड़ा आतंकी हमला संभव नहीं है। ज़रूर हमारे भी लोग मिले हुए हैं। हमारा सुरक्षा तंत्र भी जर्मनी जैसा मजबूत क्यों नहीं है। यहां पुलिस छोटी छोटी बात पर गाड़ियां खड़ी करवा कर चेकिंग शुरू कर देती है और वहां आतंकी शहर के बीचों बीच इतना असला ले आए, किसी को पता नहीं चला। आमची मुंबई वाले 'ठाकरे' अब किधर गुम हो गए हैं।

कुछ भारतीय लोगों ने पाकिस्तान से आयात होने वाले किराने के सामान, खासकर बासमति चावल आदि का बहिष्कार करने की सोची। लेकिन यहां अधिकतर भारतीय किराने के दुकानदारों का कहना है नब्बे प्रतिशत किराने का सामान पाकिस्तान या चीन से आता है। बहिष्कार करेंगे तो लोग खाएंगे क्या। उनका यह भी कहना है कि वे भी इन घटनाओं से दुखी हैं लेकिन पाकिस्तानी लोग भी उनके ग्राहक हैं, इसलिए वे खुलकर इस मुद्दे पर अपनी सोच प्रकट नहीं कर सकते। उनका कहना है कि पाकिस्तानी लोग भी ऊपर से दुख प्रकट करते हैं लेकिन अंदर से खुश हैं और कहते हैं कि भारतीय तो ठंडे लोग हैं, इनसे कुछ नहीं होता।

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

ट्रेन में फ़साद करने वाले ने आत्मसमर्पण किया

9 अक्तूबर, म्युनिक। पिछले रविवार U-Bahn में आक्रमण करने वाले 23 वर्षीय व्यक्ति ने आत्मसमर्पण कर दिया।

5 अक्तूबर रात ग्यारह बजे वह व्यक्ति अक्तूबरफ़ेस्ट से U-Bahn में बैठकर वापस आ रहा था। U-Bahn में उसने सिगरेट पीनी आरंभ कर दी। कुछ यात्रियों ने उसे आपत्ती जताई जिनमें एक 43 वर्षीय कारीगर भी था। संयोग से वे दोनों Giselastraße पर उतरे और वहां उनमें भिड़ंत हो गई। लड़के के वृद्ध के चेहरे में थूक दिया और घूँसे मारकर पीटना शुरू कर दिया। वृद्ध व्यक्ति को फ़र्श पर गिराने के बाद उसने पैर के साथ उसके सर पर वार करने शुरू कर दिए। जब आसपास खड़े अन्य यात्रियों ने यह देखकर मदद करने का प्रयत्न किया तो वह भाग खड़ा हुआ। वृद्ध कारीगर को गंभीर चोटें आईं। उसके कन्धों और कूल्हों की हड्डियां टूट गई हैं और गहरा मस्तिष्काघात लगा है। वह अस्पताल में दाखिल है। पुलिस ने शासकीय अभियोक्ता से अनुमति लेकर U-Bahnhof में लगे वीडियों कैमरों द्वारा की रिकार्डिंग में से फ़ोटो निकालकर अपराधी की खोज करने का निर्णय लिया। सभी समाचार पत्रों में भागते हुए अपराधी के साफ़ चित्र छप गए। इससे घबराकर अपराधी ने आज अपने वकील को साथ लेकर आत्मसमर्पण कर दिया। उसने बाद में बताया कि वैसे वह अधिक शराब नहीं पीता लेकिन उस दिन उसने अक्तूबरफ़ेस्ट में पाँच छह लीटर बीयर पी ली थी।

शनिवार, 27 सितंबर 2008

दिन दहाड़े घर में चोरी, पाँच हज़ार यूरो गायब

26 सितंबर, Oelde. दिन के समय कुछ चोर छत का दरवाज़ा खोल एक घर में घुस आए। सारी अलमारियां दरवाज़े आदि खोलकर वे कम से कम पाँच हज़ार यूरो के ज़ेवर और कैश चुरा ले गए।

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा - एक दुविधा

म्युनिक में Linde AG में कार्यरत मागेश गम्तावर प्रताप और विजय सिंह कहते हैं कि उन्हें बसेरा के अप्रैल अँक में छपा लेख 'आ अब लौट चलें' बहुत पसंद आया जिसमें एक युवा परिवार की कहानी थी जो कई वर्ष जर्मनी में रहने के बाद बच्ची की शिक्षा के कारण भारत वापस चला गया। वे कहते हैं कि उनकी भी यही दुविधा है कि यहां रहकर बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा कैसे दिलाएं। जर्मन भाषा से उन्हें कोई समस्या नहीं लेकिन अगर वे कुछ वर्ष बाद वापस भारत चले गए तो उनके बच्चों को वहां बहुत तकलीफ़ होगी। वे इस बात से बहुत हैरान और परेशान हैं कि यहां पर्याप्त अंग्रेज़ी स्कूल नहीं हैं। जो इक्का दुक्का स्कूल हैं, वे मनचाही फ़ीस वसूल रहे हैं। उनकी फ़ीसें सामान्य जर्मन स्कूल से तीस चालीस गुणा है। इतनी फ़ीस देना उनके बस की बात नहीं। वे पूछना चाहते हैं कि क्या यहां की सरकार को अंग्रेज़ी से खास दुश्मनी है? क्या वह अंग्रेज़ी स्कूल बनने नहीं देना चाहती? वे हताश होकर कहते हैं कि ताज्जुब है कि भारतीय सरकार या यहां का भारतीय दूतावास भी इस दिशा में कोई मदद नहीं कर रहा। मागेश गम्तावर पहले मलेशिया रह चुके हैं और वहां स्थित भारतीय दूतावास के बारे में बताते हैं कि उन्होंने स्थानीय माता पिताओं की मदद से एक छोटा सा अंग्रेज़ी स्कूल खोल दिया था जिससे यह समस्या काफ़ी हद तक हल हो गई थी। उनका सुझाव है कि निजि कंपनियों को यहां अंग्रेज़ी स्कूल खोलने के प्रयास करने चाहिए। अगर भारत का DPS समूह यहां स्कूल खोल ले तो कोई भी अपने बच्चों को यहां के महंगे अंग्रेज़ी स्कूल में नहीं भेजेगा। उनका सुझाव ये भी है कि Siemens, Infineon, Linde जैसी बड़ी कंपनियां भी मिलकर एक अंग्रेज़ी स्कूल खोल सकती हैं। इससे उनका ही पैसा बचेगा जो वे विदेशी कर्मचारियों को अपने बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाने के लिए देती हैं।

पति से मिलने के लिए रिश्ता बदला

 म्युनिक निवासी कंवलजीत कौर ने पंजाब के अपने गाँव जमशेद गाँव में रहने वाली अपनी 26 वर्षीय सगी बहन गुरमीत कौर को उनके पाँच वर्षीय बेटे गुरबख्श सिंह के साथ म्युनिक घूमने के लिए आने का न्यौता भेजा। सामान्यतः इस न्यौते पर तीन महीने का वीज़ा मिलता है लेकिन गुरमीत कौर को केवल सात दिन का वीज़ा मिला, और उनके बेटे को वीज़ा नहीं मिला। यानि उन्हें अपना बच्चा भारत छोड़ कर ही जर्मनी घूमने आना पड़ा।

इसका कारण था उनके पति का उपलब्ध न होना। दरअसल बच्चे का वीज़ा लगने के लिए उसके पिता का उपस्थित होना आवश्यक था। लेकिन किसी कारणवश वे वहां नहीं आ सके और बच्चे को वीज़ा नहीं मिला।

लेकिन गुरमीत कौर म्युनिक पहुँचते ही इटली घूमने जाने की तैयारी करने लगीं। दरअसल वे जर्मनी अपनी बहन को मिलने नहीं बल्कि इटली में पिछले साढ़े चार वर्ष से अवैध रूप से रह रहे अपने पति को मिलने आईं थी। उनके पति जसपाल सिंह कई वर्ष पहले भारत से भाग कर इटली आ गये थे। हालांकि इटली में नागरिकता पाना जर्मनी जितना मुश्किल नहीं, न ही वहां जर्मनी की तरह स्थानीय औरत से शादी करना ही नागरिकता पाने का एकमात्र उपाय है, फिर भी उन्हें अभी तक वहां की नागरिकता प्राप्त नहीं हुई। पिछले साढ़े चार वर्षों बाद पहली बार गुरमीत कौर ने अपने पति को देखना था। वे बहुत उत्साहित थीं। वे ट्रेन द्वारा सफ़र करके इटली गईं और अपने पति से मिलीं। भारत को वापसी की उड़ान से केवल एक दिन पहले वे ट्रेन द्वारा वापस म्युनिक आईं। इन सात दिनों में उनका अधिकतर समय ट्रेनों में गुज़रा। लेकिन उनकी समस्या का कोई हल अभी नज़र नहीं आ रहा है। वे बताती हैं कि उनके गाँव में हर चौथे घर की यही कहानी है। अच्छे जीवन की तलाश में सब कुछ छोड़कर, कई खतरे मोल लेकर अवैध रूप से विदेश जाना पंजाब के नौजवानों में अभी भी प्रचलित है। (सब नाम बदले हुए हैं)

रूस से जर्मनी तक का पैदल सफर

हरियाणा में शाहबाद के निवासी सतविंदर सिंह 1996 में जर्मनी जाने का सपना लेकर एक एजेंट के द्वारा मास्को पहुँचे। वहाँ एक वर्ष प्रतीक्षा करने के बाद जर्मनी जाने का मौका मिला लेकिन वे रूस की सीमा पर पकड़े गए और उनकी बहुत पिटाई हुई। एजेंटों ने उन्हें किसी तरह छुड़ाया। और फिर रूस से छुपते छुपाते वे पैदल रास्ते से जर्मनी पहुँचे। जर्मनी पहुँच कर उन्होंने खर्च वहन करने के लिए किसी तरह काम ढूँढा और बहुत मेहनत की। नागरिकता पाने के लिए एक जर्मन महिला से शादी की। भारत से अपनी बहन और जीजा जी को भी स्पेन बुला कर सेट किया। फिर तीन वर्ष पहले म्युनिक में काफ़ी मेहनत और पैसा लगाकर खुद का 'आयुर्वेद' नामक रेस्तरां खोला और फिर भारत जाकर शादी की। वे अपनी भारतीय पत्नी को नवंबर 2007 में जर्मनी लेकर आये और दोनों मिलकर रेस्तरां चलाने लगे। वे कहते हैं कि अब रेस्तरां ठीक ठाक चलने लगा है। उनके मनपसंद अभिनेता सन्नी देओल और धर्मेन्द्र हैं और मनपसंद फ़िल्म गदर है, जिसमें सिक्ख सन्नी देओल पाकिस्तान से अपनी मुस्लिम पत्नी को वापिस लेकर आने के लिये अपना धर्म बदलने तक को तैयार हो जाता है। लेकिन जब उसे भारत मुर्दाबाद का नारा लगाने के लिये कहा जाता है तो वह गदर मचा देता है।
http://www.restaurantayurveda.de/

रविवार, 17 अगस्त 2008

तीज की उमंग म्युनिक में भी

3 अगस्त म्युनिक। श्रावण मास में जब नीरस ग्रीष्म ऋतु के बाद सावन की फुहारों से धरती की तपन दूर हो चुकी होती है और नए अंकुरण से धरती हरियाली की चादर ओढ़ लेती है, तब शुरू होती है त्यौहारों की एक कड़ी। इस कड़ी का पहला त्यौहार होता है श्रृंगार और झूलों की भावनाएं लिए तीज का त्यौहार, जो श्रावण मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को पड़ता है। इसलिए कहावत बनी है-
आई होली भर लेगी झोली, आई तीज बिखेरेगी बीज

लेकिन विदेश में भी जब तीज का त्यौहार वैसी ही उमंगों के साथ मनाया जाये जो बात ही कुछ और है। Garching में रह रहे तरुण गुप्ता, उनकी पत्नी अर्चना बजाज और कुछ समय के लिए मुंबई से घूमने आये माता पिता ने मिलकर तीज के त्यौहार का आयोजन किया जिसमें अनेक महिलाओं ने एकत्रित होकर मेहंदी लगाई, तीज के चुलबुले गीत गाये, कुछ खेल खेले। साथ ही स्वादिष्ट खाना भी परोसा गया। खासकर तरुण गुप्ता की माता श्रीमति हेमलता गुप्ता तयौहारों, गीतों और परंपराओं की खास जानकारी रखती हैं और भारत में सांस्कृतिक आयोजनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं।

शुक्रवार, 8 अगस्त 2008

तालाब से निकाली गयी लाश

6 अगस्त, Rheda-Wiedenbrück. शाम साढ़े चार बजे Gütersloher Straße के पास स्थित एक कृत्रिम तालाब से दो नौजवानों ने पुलिस को फ़ोन करके तालाब के किनारे पर पड़े कुछ कपड़ों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि वहां किसी की पेंट, स्वेटर, जूते और जुराबें आदि पड़े हैं लेकिन आसपास किसी का नामोनिशान नहीं है। तुरंत एक पुलिस की गाड़ी, एमरजेंसी गाड़ी और एक डॉक्टर को वहां भेजा गया। करीब पाँच बजे पास की एक संस्था से कुछ स्कूबा डाईवरों को बुलाया गया। उन्होंने पानी में पाँच मीटर नीचे पड़ी एक व्यक्ति की लाश को बाहर निकाला। प्रारंभिक पड़ताल में इस घटना में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ नज़र नहीं आया। पड़ताल चल रही है।

ड्रग्स के नशेड़ी ने कार चुराई

6 अगस्त, Hannover. दोपहर करीब पौने बारह बजे B217 सड़क पर Tresckowstraße के मोड़ के पास एक कार चोर पकड़ा गया। सड़क के पास गुज़र रही गाड़ियों की जाँच कर रही पुलिस की नज़र एक नीली गोल्फ़ कार पर पड़ी। छानबीन से पता चला कि ये गाड़ी 25 जुलाई को Lehrte में चुराई गयी थी। पुलिस ने पीछा करके इस मोड़ की लाल बत्ती पर कार के आगे अपनी गाड़ी रोक दी और 34 वर्षीय ड्राईवर को गिरफ़्तार कर लिया। वह व्यक्ति ड्रग्स के नशे में था, और नशे का स्तर 0.27 Promille (प्रति एक हज़ार) था। उसके पास उस समय ड्राईविंग लाईसेंस भी नहीं था। गोल्फ़ गाड़ी पुलिस ने जब्त कर ली। वह व्यक्ति कई वर्ष तक ड्रग्स का नशेड़ी रहा है। अभी ड्रग्स के साथ कार चुराने का भी अपराध उसके साथ जुड़ गया है। अभी उसे उचित कारवाई के बाद छोड़ दिया गया है।

बुधवार, 6 अगस्त 2008

नशीली दवाओं के व्यापारी ने किया आत्मसमर्पण

5 अगस्त, Darmstadt. पुलिस द्वारा लगातार जाँच पड़ताल किये जाने से घबरा कर एक 24 वर्षीय आरोपित नशीली दवाओं के व्यापारी ने अपने वकील के साथ Darmstadt की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया। वहां उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उसपर नशीली दवाओं के व्यापार और कई डकैतियों के आरोप थे। Frankfurt में रहने वाले इस व्यापारी को अभी सुनवाई होने तक अभिरक्षा में रखने का फ़ैसला किया गया है।

Darmstadt की ड्रग पुलिस इस साल के शुरू से ही कई नशीली दवाओं के व्यापारियों की पीछा कर रही है। ये व्यापारी आपस में भी नशीली दवायें खरीदते बेचते थे। कई बार तो उन्होंने आपस में ही दवाओं के लिये डकैती की। ये सब व्यापारी Darmstadt और Frankfurt में रहने वाले हैं। वे व्यापार करने के साथ साथ दवाओं का उपभोग भी करते हैं। इस अभियान में कुल मिलकार करीब चालीस किलो हशीश, एक हज़ार Exstacy की गोलियां और करीब इतनी ही कोकेन सबंधित है।

18 जुलाई को पुलिस ने एक 22 वर्षीय नौजवान को नशीली दवाओं बेचने के शक पर गिरफ़्तार किया था। अधिक जाँच करने से पता चला कि एक 25 वर्षीय नौजवान के एक 27 वर्षीय नौजवान के अपार्टमेंट पर हमला किया और दो तीन किलो चरस और कुछ हज़ार यूरो लूटकर ले गया। उसके उसका यह 24 वर्षीय साथी भी था जिसने मंगलवार को बहुत पीछा किया जाने के बाद आत्मसमर्पण कर दिया।

मंगलवार, 22 जुलाई 2008

एक व्यक्ति ने किये तीन यौन हमले

26 जनवरी 2008 को Stockstadt के पास Hübnerwald नामक जंगल में करीब शाम चार बजे एक युवती जॉगिंग कर रही थी कि पीछे से एक सफ़ेद रंग के साइकल पर सवार एक व्यक्ति आया और युवती पर टूट पड़ा। उसने युवती को नीचे गिरा कर झाड़ियों में धकेल दिया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार करने लगा। कुछ देर बाद वह अपने साइकल पर सवार होकर भाग गया। उसने अपने बाल बीच में से संतरी रंग से रंगे हुये थे। युवती के बताये हुये विवरण के अनुसार पुलिस ने उसका यह चित्र तैयार किया है (Phantombild, Facial composite)-

केवल दस दिन बाद 5 फरवरी 2008 को Bamberg के पास Zapfendorf और Unterleiterbach के बीच Main दरिया के किनारे सड़क पर एक लड़की सुबह साढ़े नौ बजे सैर कर रही थी। अचानक एक अजनबी ने झाड़ियों से निकलकर उस युवती को दबोच कर गिरा दिया और उसके साथ छेड़छाड़ करने लगा। लेकिन उसके बाल रंगे नहीं हुये थे। उसके बाल छोटे छोटे थे और थोड़ी सी दाढ़ी भी थी। उसने गहरे रंग की पेंट पहनी थी। युवती के ब्यान अनुसार वह लगभग 175 सेंटीमीटर ऊँचे कद वाला, पतला व्यक्ति था। उसकी आयु 40 और 45 वर्ष के बीच होगी और बाल काले थे। वह टूटी फ़ूटी जर्मन बोलता था, बोलने का लहज़ा पूर्वी या दक्षिणी युरोपीय था। उसने कोई चश्मा अथवा अन्य गहना आदि नहीं पहना था। यहां उसने Jack Wolfskin कंपनी की काली टोपी पहनी थी और उसके पास गहरे नीले रंग का साईकल था। पुलिस ने विवरण के अनुसार उसके टोपी के साथ और टोपी के बिना दो चित्र तैयार किये हैं।

10 फरवरी को दोपहर डेढ और सवा दो के बीच Kiedrich में Erbacher Wald के पास एक सैर कर रही 41 वर्षीय महिला पर भी एक व्यक्ति ने हमला बोल दिया। महिला के मुकाबला करने से वह उसे छोड़ कर भाग गया। महिला के बताये अनुसार यह चित्र तैयार किया गया है।

पुलिस ने इन तीनों घटनाओं से मिले सुरागों से DNA विश्लेषण से निष्कर्ष निकाला है कि तीनों घटनाओं के पीछे एक ही व्यक्ति का हाथ है। उस तक पहुँचवाने पर 2000 यूरो का ईनाम घोषित किया गया है। बहुत छानबीन करने और सुराग मिलने के बावजूद उसका अभी तक पता नहीं चला है।

शनिवार, 5 जुलाई 2008

म्युनिक में हुयी अर्जुन फ़िल्म की शूटिंग

 2 जून को Marienplatz पर Rathaus के आगे कुछ ही महीनों में कर्नाटक मेम रिलीज़ होने वाली कन्नड़ फ़िल्म 'अर्जुन' के एक गाने की शूटिंग चल रही थी। सुबह साढ़े छह बजे ही 18 सदस्यीय टीम के लोगों ने आकर वहां कैमरे, रिफ़्लेक्टर आदि लगाना आरम्भ कर दिया था। टीम में निर्माता 'नरेन्द्र नाथ', निर्देशक 'शाहूराह शिंडे', हीरो 'दर्शन श्रीनिवास', हीरोइन 'मीरा चोपड़ा' और अन्य सदस्य उपस्थित थे।

निर्माता नरेन्द्र नाथ ने बसेरा से कहा कि यहां की भव्य इमारतें भारतीय दर्शकों के लिये नयी हैं, इसलिये उन्होंने यहां शूटिंग करने का निर्णय लिया। हो सकता है कि किसी हिन्दी फ़िल्म की यहां शूटिंग हुयी हो लेकिन किसी कन्नड़ फ़िल्म की शूटिंग अभी यहां नहीं हुयी। इससे पहले वे ऑस्ट्रिया में एक गाने की शूटिंग कर चुके हैं और अब तीन दिन से म्युनिक में शूटिंग कर रहे हैं। उनके ऑस्ट्रिया निवासी प्रबंधक 'Eckerl Kurt' ने बाकी का इंतज़ाम किया है जैसे शूटिंग करने की अनुमति लेना, पुलिस के साथ तालमेल, होटल, यातायात आदि। यहां परदेस में शूटिंग करने में लगभग 30 लाख रुपये खर्च हो गये हैं और फ़िल्म का कुल खर्च करीब पाँच करोड़ रुपये है। उनकी फ़िल्म का हीरो 'दर्शन श्रीनिवास' कर्नाटक में बहुत लोकप्रिय है, इसलिये वे ये दाँव खेल रहे हैं। उन्होंने 'मीरा चोपड़ा' को हीरोइन के तौर पर इस फ़िल्म में लिया क्योंकि वह तमिल और तेलगू भाषा में पहले कई फ़िल्में कर चुकी है। उन्हें भारत से इतने लोगों के लिये वीज़ा लेने में कोई दिक्कत नहीं आती क्योंकि 'फ़िल्म चेम्बर' के द्वारा सरकार उनका साथ देती है।

हीरो 'दर्शन' ने कहा कि भारत में शूटिंग करना अधिक महंगा पड़ता है क्योंकि वहां प्रसिद्ध इमारतों के आगे शूटिंग करने के लिये अनुमति लेने में बहुत झंझट रहता है और शूटिंग में सैंकड़ों लोग साथ में आते हैं, जबकि परदेस में हम केवल गिने चुने लोग ही आते हैं, जैसे निर्माता, निर्देशक, कैमरामैन, कोरियोग्राफ़्रर आदि। क्योंकि यहां हम सीमित समय के लिये आते हैं इस लिये जल्द ही सारा काम निबटाने का दबाव रहता है। इसी दबाव में दिन चौदह चौदह घंटे काम करते हैं, जबकि भारत में केवल आठ घंटे काम करते हैं। क्योंकि यहां हम गिने चुने लोग होते हैं, इसलिये काफ़ी काम खुद करना पड़ता है जबकि भारत में बीसियों लोग पीछे काम करने के लिये होते हैं।

नाटे कद की दिल्ली निवासी हीरोइन 'मीरा चोपड़ा' ने कहा कि ये उनकी पहली कन्नड़ फ़िल्म है और वे इस फ़िल्म से खुश नहीं हैं। जहां हिन्दी फ़िल्मों वाले काफ़ी आगे निकल चुके हैं वहां ये लोग अभी भी लटकों झटकों में अटके हुये हैं। उन्हें कन्नड़ नहीं आती लेकिन वे मिलती जुलती lip movement कर लेती हैं।

फ़िल्म के निर्देशक 'शाहूराह शिंडे' ने कहा कि ये एक कॉप स्टोरी है (cop story).

उनके प्रबंधक 'Eckerl Kurt' ने कहा कि म्युनिक में शूटिंग का प्रबंध उन्होंने पहली बार किया है। उन्हें खुशी है कि सब कुछ बिना विलम्ब और अटकन के हो गया। उन्हें फ़िल्म टीम के साथ साथ घूमना अच्छा लगता है क्योंकि भारतीय फ़िल्म वालों का कोई पक्का स्क्रिप्ट तो होता नहीं। जहां कोई अच्छा दृश्य मिला, वहीं शूटिंग करने लगते हैं। एक दिन पहले भी उन्हें पता नहीं होता कि वे अगले दिन क्या करेंगे। इस लिये प्रबंधन करते हुये उन्हें उनकी आँखों में झाँक कर बहुत पहले से अंदाज़ा लगाना पड़ता है कि वो क्या चाहते हैं ताकि सारा इंतज़ाम समय पर हो सके। ये फ़िल्म युनिट वाले सामान भी बहुत अधिक नहीं लाये, केवल दो कैमरे और तीन रिफ़्लेक्टर। इसलिये उन्हें कोई खास समस्या नहीं हुयी।

मंगलवार, 1 जुलाई 2008

लघु फ़िल्म मेला

12-18 जून 2008, Munich. Stachus के पास Gloria Palast में आयोजित हुए छह दिन के अन्तरराष्ट्रीय लघु फिल्म मेले में (Munich International short film festival, http://www.muc-intl.de) 17 देशों की 40 लघु फिल्मों को दर्शाया गया. यह फिल्में अधिकांश उन लोगों द्वारा बनाई गईं जो अभी फिल्म निर्माण में अध्धय्यन कर रहे हैं. फिल्मों की अवधि दो minute से ले कर लगभग आधे घंटे तक थी. यह सभी फिल्में Bayern में पहली बार दिखाई गईं थीं और लगभग 1200 फिल्मों में से इन्हें चुना गया था. इन में काल्पनिक (fiction), अनुप्राणित (animated), प्रायोगिक (experimental), दस्तावेज़ी (documentary) एवं अन्य प्रकार की फिल्में शामिल थीं. इन में से अधिकांश फिल्में पहले से ही कई राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी थीं.फिल्मों को पांच स्वादों के आधार पर बांटा गया था, Sweet यानि 'मीठी', 'Sour' यानि 'खट्टी', Bitter यानि 'कड़वी', Salty यानि 'नमकीन' और Umami. Umami जापान में अविष्कारित एक स्वाद है जो अन्य सभी स्वादों से थोड़ा अलग है.

Sweet श्रेणी में ऐसी फिल्मों को रखा गया था जिन में प्रेम अथवा अन्य भावनाएं केन्द्र में थीं. 'The sad story of Knave', 'The Dinner', और 'Tanghi Argentini' फिल्में इन में प्रमुख थीं. 'The Dinner' में एक निहायत खूबसूरत लड़की एक लड़के के साथ डेट के लिए एक restaurant में dinner पर जाती है. लेकिन वहां वह पाती है वह लड़का अपनी एक अन्य प्रेमिका के साथ mobile पर बात करने के लिए बार बार बात-चीत और खाना बीच में अचानक छोड़ कर बाहर जा रहा है. वह बहुत नाराज़ हो जाती है और अन्त उसे बहुत बुरा भला कह कर और थप्पड़ मार कर थके मन से घर वापस आ जाती है. घर आ कर जब वह phone पर अपने message सुनती है तो पता चलता है कि वह लड़का उसे ही phone कर रहा था और वह बातें कह रहा था जो वह प्रत्यक्ष रूप से नहीं कह पा रहा था. 'Tanghi Argentini' में एक अधेड office कर्मचारी दिन-भर internet पर डेट के लिए लड़कियां ढूंढता रहता है, लेकिन अपने लिए नहीं, अपने सह-कर्मियों को उनकी उबाऊ दिन-चर्या से उबारने के लिए. Belgium में बनी इस 13-minute की फिल्म इस विषय को Tango नामक नृत्य की उदाहरण के द्वारा बहुत ही comedy अन्दाज़ में दर्शाया गया. वह Tango नृत्य में माहिर एक सह-कर्मी से Tango सिखाने के लिए अनुरोध करता है ताकि वह internet में मिली एक Tango की शौकीन महिला को पटा सके. पहले तो उस का सख्त सह-कर्मी उसे यह कह कर बुरी तरह झाड देता है कि ये दफ़्तर है, प्रेम का मैदान नहीं. लेकिन वह पीछे पड़ा रहता है और अन्त में मना लेता है. कई दिन साथ साथ अभ्यास करने बाद अन्त में वह एक Tango club में जाते हैं जहां उस महिला से मिलना होता है. वह उस महिला के साथ dance करना शुरू करता है, थोड़ी देर तो वह ठीक dance करता है लेकिन फिर उस का सन्तुलन खो जाता है वह उस महिला को बुरी तरह से नीचे गिरा देता है. महिला बहुत बुरी तरह से मायूस और उदास हो जाती है और बेइज़्ज़ती महसूस करती है. अन्त में वह व्यक्ति अपने सह-कर्मी से उस महिला के साथ dance करने के लिए कहता है. वे दोनों बहुत अच्छा dance करते हैं और प्रेमी बन जाते हैं. अगले दिन office में सह-कर्मी उस का बहुत सारा धन्यवाद करता है. फिर वह व्यक्ति एक अन्य सह-कर्मी के लिए लड़की ढूंढना शुरू करता है जो कविताएं बहुत अच्छी लिखता है. इस मेले में इसी फिल्म की जीत हुई और इस के निर्देशक Guido Thys को Kodak company द्वारा महंगी फिल्म रीलें दी गई जो वे अपनी अगली फिल्म के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. 'Ruin' में इटली के एक hotel में लगे camera से पता चलता है कि hotel के एक कर्मचारी का एक जापानी मेहमान लड़की के साथ सम्बन्ध है. उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है. लड़की उस का पीछा करती है. वह उसे एक सुनसान इमारत में ले जाता है और उस का कौमार्य भंग कर देता है. इस तरह उनके सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं और वह वापस अपने पिता के पास चली जाती है. 'Son' में एक theatre निर्देशक का अपने सह-कर्मियों, खास कर एक महिला कर्मचारी के ऊपर तानाशाही स्वभाव दिखाया गया है. theatre में अभ्यास और शो के वक्त महिला का छोटा बेटा यह सब होते हुए देखता है जहां कल्पना और असलियत के बीच दूरी मिटती दिखती है.

Salty श्रेणी में थोड़े गम्भीर मुद्दों वाली फिल्मों को रखा गया था जैसे America में प्रवास और जातिवाद की समस्याएं, Spain में आतंकवाद, कोंगो में तस्करी आदि. 'One day Trip' और 'Look sharp' इन में प्रमुख थीं.

Bitter श्रेणी थोड़ी भारी किस्म की फिल्में थीं. 'Looking Glass' एक अनुप्राणित फिल्म थी जिस में एक छोटी लड़की एक अकेले घर में रात को TV देख रही है. लेकिन दरअसल वह अकेली नहीं है. TV में अचानक सीन बदल जाता है और उसमें उस की छवि दिखने लगती है, लेकिन वह छवि अलग तरह से हिलडुल रही होती है. फिल्म में इस तरह के अनेक ट्रिक दिखा कर डरावना बनाया गया था. 'A Good Day For A Swim' में एक सुबह एक सड़क पर एक वेश्या ग्राहक का इंतज़ार कर रही है. एक truck आ कर रुकता है. वह अन्दर झांकती है तो डर जाती है और भागने का प्रयत्न करती है. लेकिन truck पीछा करता है और उसे अन्दर खींच लिया जाता है. उस के बाद वह truck एक सुनसान समुद्री तट पर पहुंचता है जिस में से jail से भागे हुए किशोर आयु के तीन लड़के निकलते हैं. truck के driver को भी उन्होंने बन्दी बनाया होता है. वह उस महिला को समुद्र में ले जाते हैं और छेड़छाड़ करते हैं.

Sour श्रेणी में भी थोड़ी भारी फिल्में थी लेकिन फिर भी उन में एक आस थी. 'No. 6' में एक अधेड व्यक्ति एक वेश्यागृह के छह number कमरे में एक खूबसूरत Ukranian वैश्या से मिलता है और उसे वहां से छुड़ाने का प्रयत्न करता है जिस में उस की जान चली जाती है. उस लड़की को बाद में पता चलता है कि वह उस का बाप था जो बचपन में उस की मां को छोड़ कर चला गया था. उसने प्रायश्चित करने के लिए उसे ढूंढा और छुड़ाया. 'Lightborne' में एक doctor की बूढी मां बहुत बीमार है और बहुत तकलीफ में है. वह बहुत प्रयत्न कर के, दवाएं दे कर उसे शांत करने की कोशिश करता है लेकिन तकलीफ बढ़ती जाती है. फिर अचानक उस की पत्नी अपनी सास का हाथ पकड़ कर कहती है कि वो मर रही है. उसे अब तमाम चिंताएं छोड़ अपने सुहावने पलों को याद करना चाहिए कि कैसे नन्हे मुन्ने बच्चे उस की गोद में खेलते खेलते बड़े हुए और अपने परिवार बसाए. बूढी मां शांत होने लगती है, उस के चेहरे पर हल्की मुस्कान छाने लगती है और वह बातें सुनती सुनती चिरनिद्रा में चली जाती है. 'Sky' में एक महिला अपने घर लौटती है तो पाती है कि उस के घर में एक गुण्डा घुस आया है. लेकिन वह महिला भी पिस्तोल धारी है. गुण्डे से लड़ते लड़ते उस की पिस्तोल छूट जाती है. कीमती सामान ढूंढते हुए गुण्डे को पता चलता है वह औरत police-कर्मी है. लेकिन तब तक वह अपनी पिस्तोल वापस उठा चुकी होती है और उसे मार देती है. 'Retreating' में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इटली के सुनसान गांव में एक लड़की एक युवा German सैनिक को एक सुनसान घर में छिपा कर रखती है और उससे प्रेम करने लगती है. लेकिन गांव का एक काईयां व्यक्ति उसपर जासूसी कर रहा होता है और फौजियों को बता देता है. वह युवा फौजी मारा जाता है. 18 minute की फिल्म में ये सारा विषय बहुत अच्छी तरह दिखाया गया. 'Personal Spectator' में दोपहर को एक canteen में एक आम दिखने वाली लड़की अकेली बैठी कुछ पढ़ रही है कि एक लड़का आता है और खड़ा होकर उसे घूरने लगता है. वह इसका कारण पूछती है तो वह कहता है कि वह बहुत खूबसूरत है. वह विश्वास नहीं करती लेकिन वह उसे लगातार पांच minute के लिए घूरने के लिए अनुमति मांगता है. वह हिचकिचाती है लेकिन अधिक जोर देने पर मान जाती है. वह अपने बाल, कपड़े आदि ठीक करने लगती है तो वह कहता है कि वह कुछ न करे. वह जैसी है, बहुत सुन्दर है. वह पढ़ने की कोशिश करती है लेकिन पढ़ नहीं पाती. वह थोड़ी परेशान होने लगती है. वह पूछती है कि इन पांच minutes में वह क्या करे, लड़का कहता है कि वह जो मर्ज़ी कर सकती, जैसे आम जनजीवन में रहती हो. वह परेशान होकर उठ कर खाना लेने जाती है तो वह लड़का भी पीछे पीछे चलने लगता है और लगातार उसे देखता रहता है. लड़की अधिक देर तक इसे नहीं सहार पाती गुस्से में बुरा भला कह कर वहां से चली जाती है. लेकिन घर आने के बाद शीशे के सामने खड़े होती है तो उसे उस लड़के की बातें याद आती हैं. उसे वाकई लगने लगता है कि आम बोरियत वाले जीवन में भी उस का कोई खास अस्तित्व है. वह अन्दर से बुरी तरह हिल चुकी होती है.

यह मेला Münchner Filmwerkstatt (http://www.muenchner-filmwerkstatt.de/) और local cinema Mathaeser (http://www.mathaeser.de/filmpalast/) द्वारा मिल कर आयोजित किया गया था. Münchner Filmwerkstatt का मतलब है Munich की फिल्म बनाने की कार्य-शाला. इस में उभरते हुए युवा नर्देशक, निर्माता और अन्य लोग इस उद्योग में पैर जमाने के लिए एक दूसरे की मदद करते हैं. मेले के अध्यक्ष Martin Blankemeyer इस बार के मेले से काफ़ी सन्तुष्ट हैं क्योंकि इसबार उन्हें भरपूर प्रायोजक मिले, Abendzeitung समाचार पत्र ने खूब लोकप्रियता दी और दर्शकों की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी रही. Munich की Interkep ने 35mm फिल्मों को मुफ्त भेजने, मंगवाने का ज़िम्मा लिया.

मंगलवार, 20 मई 2008

Indian Mango Evening

19 मई की शाम को म्युनिक के हिल्टन होटल में भारतीय कृषि प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA, Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority of India, http://www.apeda.com/) और भारतीय दूतावास के द्वारा Indian Mango Evening आयोजित की गई जिसमें भारत की आम की कुछ मुख्य व्यवसायिक नसलें पेश की गईं जैसे अल्फ़ोंसो, बैंगनपल्ली, केसर और तोतापुरी। यहां APEDA से श्री प्रवीन गुप्ता (महाप्रबंधक), श्री यू.के. वत्स (उप महाप्रबंधक), म्युनिक के भारतीय दूतावास से श्री जे. एस. मुकुल (महावाणिज्यदूत), श्री आनंत कृष्ण (वाणिज्यदूत, परिवार सहित), दूतावास के अन्य तमाम कर्मचारी, म्युनिक के कुछ भारतीय व्यपारी और म्युनिक और आसपास के कुछ प्रमुख लोग उपस्थित थे।

कार्यक्रम की शुरूआत में सबसे पहले भारतीय दूतावास के वाणिज्यदूत श्री आनंत कृष्ण ने सब अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया कि महावाणिज्यदूत श्री जे. एस. मुकुल म्युनिक दूतावास में अपना के कार्यकाल समाप्त करके जून में वापस भारत जा रहे हैं। फिर महावाणिज्यदूत श्री जे. एस. मुकुल ने अपने मनपसंद आम बैंगनपल्ली के साथ साथ अन्य भारतीय आम की नस्लों के बारे में कुछ जानकारी दी और अतिथियों को अलविदा कही। उसके बाद APEDA के महाप्रबंधक श्री प्रवीन गुप्ता ने APEDA के बारे में कुछ अतिरिक्त जानकारी दी और आम पर एक छोटी सी फ़िल्म दिखाई।

फिर शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम हुआ जिसमें श्री सुनील बैनर्जी जी ने सितार वादन पेश किया। तबले पर उनका साथ दिया इद्रानिल मल्लिक ने। उसके बाद शीला और सुनीता कानुकडन ने शास्त्रीय नृत्य पेश किया। इसके बाद श्री जे. एस. मुकुल जी की बेटी अदिति मुकुल और म्युनिक दूतावास में कार्यरत श्री अनिल बतरा जी की बेटी अनु बतरा ने बॉलिवुड नृत्य पेश किया। इसी बीच पेयजल और पकौड़े आदि परोसे जा रहे थे। आमों को सजाने, काटकर परोसने और अतिथियों को स्वाद चखाने की ज़िम्मेदारी स्वागत रेस्तरां की थी। फिर बारी आयी लज़ीज़ खाने की। लोगों को खाना बहुत पसंद आया और आम भी। कई लोगों का कहना था कि ऐसे आम उन्होंने कभी नहीं खाये, न ही ऐसे आम सामान्य सुपरमार्किटों में मिलते हैं।

APEDA के यू.के. वत्स का कहना है कि यहां के लोग ब्राज़ील आदि से आये हुये लाल रंग के आम खाने के आदि हैं। उनकि झीली बहुत मोटी होती है और वे भारतीय स्वाद के अनुसार इतने स्वादिष्ट नहीं होते लेकिन उनकी Shelf Life भारतीय आमों से अधिक होती है। यातायात में कई दिनों तक रहने के बावजूद वे खराब नहीं होते जबकि भारतीय आमों में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है। APEDA द्वारा म्युनिक में ऐसा अभियान लगातार चौथी बार आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय आम के बारे में जानकारी फैलाने की कोशिश की गई। उनका उद्देश्य था कि अधिक से अधिक जर्मन लोग आयें ताकि उनके बारे में जानकारी बढ़े। इस कार्यक्रम में अधिकतर लोग जर्मन थे और वे इससे संतुष्ट हैं। आयातकों की उपस्थिति कम थी क्योंकि आयातक सुबह चार बजे मंडी में जाते हैं, और शाम तक अपना माल बेचकर अपना दिन समाप्त कर देते हैं। इसलिये उन्होंने अलग से अगले दो दिन 20 और 21 मई को म्युनिक की बड़ी सब्ज़ी मंडी Großmarkthalle में भी आयातकों के लिये स्टाल लगाया जहां सबको आमों की विभिन्न प्रजातियों का स्वाद चखने की सुविधा थी।

श्री प्रवीन गुप्ता ने बसेरा को बताया कि 2006-2007 के वित्तीय वर्ष में APEDA का 24000 करोड़ रुपये का निर्यात रहा (लगभग 4700 मिलियन अमरीकी डॉलर)। उन्होंने कहा कि अमरीका की मार्केट भारतीय आमों के लिये 18 वर्ष से बंद थी। उनके लगातार यत्नों के बाद ये मार्केट खुली और उन्होंने भारत के बढ़िया आम अमरीका में बेचे। अब वे चीन और जापान के बाज़ार में भी घुस गये हैं। लेकिन उनका मुख्य निर्यात मध्य और सुदूर पूर्वी देशों में होता है। तोतापुरी आम खासकर आंध्रप्रदेश से, अल्फ़ोंसो आम महाराष्ट्र से और केसर आम गुजरात से आता है। केवल आम ही नहीं, आमों के उत्पाद भी निर्यात किये जाते हैं जैसे आचार, चटनी, पापड़, सूखे आम, रस, गूदा (pulp), लस्सी आदि। सरकार की नीतियां काफ़ी सहायक हैं, लेकिन उनमें आत्म निर्भरता का सिद्धांत चलता है। यानि निर्यात किये जाने वाली चीज़ों की पहले अपने देश मी कमी पूरी होनी चाहिये। लेकिन युरोप के आयातक अभी इतनी तादाद में माल नहीं मंगवाते कि माल को समुद्री रास्ते से भेजा जा सके। उन्हें अधिकतर माल हवाई रास्ते से भेजना पड़ता है जो बहुत महंगा पड़ता है।

गुरुवार, 15 मई 2008

कॉमेडी अंग्रेज़ी नाटक

English comedy play 'Goodnight Desdemona (Good Morning Juliet)' was performed in Amerika Haus for few days in May. With excellent script, actors, stage and sound design, this play held the audience for three hours together.

10 मई को Amerika Haus में एक अंग्रेज़ी नाटक Goodnight Desdemona (Good Morning Juliet) का पर्दर्शन हुआ। इसे देखने बहुत सारे अमरीकी, इंगलैंड वासी और यहां तक कि जर्मन लोग भी आये। यह बहुत कॉमेडी, मज़ेदार और रोचक नाटक था। इसके पाँचों कलाकार अमरीकी अथवा कैनेडा वासी ही थे, इसलिये जर्मन लोगों के लिये अमरीकी अंग्रेज़ी समझनी थोड़ी मुश्किल हो रही थी। ऊपर से बीच बीच में शेक्सपीयर के नाटकों के संवाद भी थे। नाटक बहुत लंबा था लेकिन लोग अंत तक इससे बंधे रहे क्योंकि इसका अंत बहुत रोमांचक था। इस नाटक की मुख्य भूमिका निभायी कनेडा की जानी मानी कलाकार Elisa Moolecherry ने, जो संयोग से BeMe Theatre की संस्थापक भी हैं। वे बहुत प्रतिभाशाली कलाकार हैं। कुछ ही महीने पहले उन्होंने एक अन्य नाटक I, Claudia में चार बिल्कुल अलग अलग पात्रों की भूमिका निभायी थी, भेस बदल बदल कर।

ये नाटक BeMe Theatre द्वारा निर्मित किया गया था और इसे लिखा है कैनेडा वासी लेखिका Ann-Marie MacDonald ने।

इस नाटक में साहित्य की एक डरपोक किस्म की प्रोफ़ेसर को अपने शोध कार्य के दौरान लगता है कि शेक्सपीयर के दो नाटक 'Romeo and Juliet' और Othello दुखांत नहीं बल्कि हास्य नाटक थे। और वे दोनों उसने खुद नहीं लिखे थे, बल्कि चुराये थे। उसे लगता है कि इस तरह के किरदारों का अंत मौत नहीं होना चाहिये था। लेकिन वह इतनी डरपोक है कि वह ये सब अपने काईयां प्रोफ़ेसर के सामने बोलने की हिम्मत नहीं रखती। तभी वह कम चेतना की अवस्था में भूत काल में चली जाती है और दोनों नाटकों की नायिकाओं Desdemona और Juliet को मिलती है। फिर शुरु होती है दोनों कहानियों में उथल पुथल। रोमियो और जुलियट दोनों उसी से प्यार करने लगते हैं (क्योंकि वह लड़के और लड़की का भेस बदलती रहती है)। उधर Othello की नायिका डेस्डेमोना उसकी जान के पीछे पड़ जाती है। इस समय के दौरान वह साहस करना सीखती है, प्यार करना सीखती है, अपना बचाव करना सीखती है।

Othello पर हाल ही में हिन्दी फ़िल्म ओंकारा भी बनी थी जिसका अंत भी दुखदायक था।
http://www.bemetheatre.com/current_prod.html

रविवार, 4 मई 2008

सगी बेटी का 24 साल तक यौन शोषण

ऑस्ट्रिया में एक 73 वर्षीय बूढ़े ने अपनी सगी बेटी को अपने घर के तलघर (Keller) में 24 वर्षों तक बंद रखा, उससे यौन सम्पर्क बनाये और उसके साथ 7 बच्चों को जन्म दिया। उसकी पत्नी और पड़ोसियों को भी पता नहीं चला।

19 अप्रैल को ऑस्ट्रिया के Amstetten गाँव में एक मिरगी की बीमार 19 वर्षीय लड़की Kerstin को उसके 73 वर्षीय नाना Josef Fritzl द्वारा अस्पताल पहुँचाया गया। लड़की की हालत गंभीर थी, उसे तुरन्त ICU में दाखिल करवाया गया। अस्पताल के स्टाफ़ ने लड़की का इतिहास जानने के लिये अपना रजिस्टर खोला तो पता चला कि उनके मुताबिक तो ये लड़की कभी पैदा ही नहीं हुयी। पूछने पर नाना ने बताया ये लड़की अचानक उनके घर के दरवाज़े पर खड़ी पायी गयी थी। उसके हाथ में उनकी 24 वर्ष से लापता बेटी Elisabeth के हाथ की लिखी चिट्ठी थी। उन्होंने 24 वर्ष से जब अपनी बेटी को ही नहीं देखा तो दोहती का पता कैसे चलता? अस्पताल वाले हैरान परेशान हो रहे थे। बात पुलिस तक पहुँची। पुलिस छानबीन कर ही रही थी कि अचानक Josef Fritzl अपनी खोयी हुयी 42 वर्षीय बेटी Elisabeth को लेकर अस्पताल आ गया। Elisabeth की शारीरिक और मानसिक हालत बहुत खराब थी, बाल बिल्कुल सफ़ेद थे और वह बहुत डरी हुयी थी। उसके साथ उसके और दो बच्चे 18 वर्षीय बेटा Stefan और 5 वर्षीय बेटा Felix भी थे। उनकी हालत भी कुछ ठीक नज़र नहीं आ रही थी। पुलिस रिकार्ड के अनुसार तो वे दोनों भी कभी पैदा नहीं हुये थे। पुलिस ने Elisabeth से पूछताछ करने की कोशिश की लेकिन वह डर के मारे कुछ बोलने को तैयार नहीं हो रही थी। पुलिस को दाल में कुछ काला नज़र आया। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि अगर वह अपने पिता से डर रही है तो डरने की कोई बात नहीं, उसे दोबारा अपने पिता का सामना नहीं करना पड़ेगा, उसके बच्चों का भी उचित ध्यान रखा जायेगा। तब वो जाकर कुछ बोलने को तैयार हुयी। फिर खुलने लगी एक अंधकारमय कहानी।

Elisabeth ने पुलिस और मनोविज्ञानिकों को बताया कि वह अपने मातापिता के साथ उस गाँव के Ybbstraße 40 में स्थित घर में रहती थी। उसके पिता तबसे ही उसे तंग करने लगे थे जब वह मात्र 11 वर्ष की थी। उसने दो बार घर से भागने की कोशिश भी की थी। फिर एक दिन अगस्त 1984 में उसके पिता ने उसे बाँध कर घर के नीचे तलघर में बंद कर दिया। तब वह 18 वर्ष की थी। तलघर का दरवाज़ा भारी लोहे का बना हुआ था जिसपर एक इलेक्ट्रॉनिक ताला लगा हुआ था। उसके पिता इलेक्ट्रॉनिक तक्नीशियन का काम करते थे। वह उस तलघर से बाहर नहीं निकल सकती थी। उसके पिता ने उससे कई बार ज़बरदस्ती चिट्टठियां लिखावायी कि वह किसी सम्प्रदाय की अनुयायी हो गयी है और वह घर वापस नहीं आयेगी और उसे ढूँढने की कोशिश न की जाये। उसके पिता ने यह चिट्ठियां खुद किसी दूसरे शहर में जाकर अपने ही पते पर डाक द्वारा भेजीं। इस तलघर में ही उसने 24 वर्ष गुज़ार दिये। यहां उसके अपने पिता ने उसके साथ यौन संबंध स्थापित किये और सात बच्चों को जन्म दिया। तीन बच्चों को (15 वर्षीय Monika, 14 वर्षीय Lisa और 12 वर्षीय Alexander) उसके पिता ने पुलिस के साथ ये कहकर रजिस्टर करवाया कि मैंने उन्हें पालन पोषण के लिये अपने मातापिता के पास भेजा है। ये तीन बच्चे अपनी नानी Rosemarie के पास रहे, आम बच्चों की तरह स्कूल गये। लेकिन दूसरे तीन बच्चों ने कभी दिन की रौशनी नहीं देखी (19 वर्षीय बेटी Kerstin, 18 वर्षीय बेटा Stefan और 5 वर्षीय बेटा Felix). वे हमेशा इस तलघर में बंद रहे। एक बच्चे की जन्म के कुछ दिन बाद ही मौत हो गयी। उसकी लाश उसके पिता Josef Fritzl ने जला दी। अब अपने साथ रह रही उनकी सबसे बड़ी बेटी Kerstin की तबीयत बहुत अधिक खराब हो गयी थी और अपने पिता के मना करने के बावजूद वह उसे अस्पताल में दाखिल करवाने के लिये ज़िद पर अटकी रही। अंत में उसके पिता उसे अस्पताल ले जाने के लिये राज़ी हो गये।


राज़ खुलने के बाद पुलिस द्वारा ली गयी Josef Fritzl की फ़ोटो


निचले ऑस्ट्रिया के प्रांतीय अपराध विभाग के अध्यक्ष Franz Polzer, प्रेस वार्ता में

निचले ऑस्ट्रिया के प्रांतीय अपराध विभाग के अध्यक्ष Franz Polzer कहते हैं कि Josef Fritzl हमेशा सुपरमार्केट से बड़ी मात्रा में किराने का सामान खरीदता था। और ये भी सुनने में आया है कि वह कभी कभी कोठरी में सोता था। पुलिस ने उस घर में पहले रह चुके कई लोगों से भी पूछताछ की। उस बहु-परिवार वाले घर में इतने वर्षों में सैंकड़ों किरायेदार रह चुके थे। पड़ोसियों का कहना है कि वे उन्हें बहुत अच्छे लोग समझते थे।

अस्पताल, जहां Elisabeth और उसके तीन बच्चों को दाखिल करवाया गया है, ने अपनी सुरक्षा बढ़ा दी है। पहले टीवी चैनलों की टीमें और फ़ोटोग्राफ़र ने परिवार तक पहुँचने की कोशिश की है। उनकी पहली फ़ोटो के लिये बड़ी उँची रकम पायी जा सकती है। अस्पताल ने उष्ण कैमरों द्वारा रात को झाड़ियों, वृक्षों में छुपे हुये सनसनीखेज खबरों के भूखे फ़ोटोग्राफ़रों, रिपोर्टरों का पता लगाने की कोशिश की है। उष्ण कैमरे वे कैमरे होते हैं जो प्रकाश की बजाय बदन की गर्मी समेटते हैं, जिनसे अंधेरे में भी दूर छुपे मनुष्यों का पता चल जाता है।


केवल पौने दो मीटर उँची इस कोठरी में सब कुछ था, रसोई, गुसलखाना, टीवी, रेडियो आदि।


कोठरी की मोटी दीवारों से बाहर कोई आवाज़ नहीं जा सकती थी।


कोठरी का दरवाज़ा एक इलेक्ट्रॉनिक ताले के साथ बंद होता था जो किसी खास नंबर के साथ खुलता था। ये नंबर केवल Josef Fritzl को पता था।


29 अप्रैल को Amstetten में हुयी पत्रकार वार्ता में बताया गया कि DNA टेस्ट ने पुष्टि की है कि सभी छह बच्चे Josef Fritzl के ही हैं।


घर के सामने का दृश्य


Josef Fritzl के घर के चारों ओर कई दिनों तक दुनिया भर के पत्रकारों का तांता लगा रहा

ऐसा ही एक केस जर्मनी में Natascha Kampusch के साथ हुआ था जिसे 1998 में एक आदमी ने अगवा करके अपने घर के कारागार में बंद कर दिया था। उस समय उसकी आयु दस वर्ष थी। उसे साढ़ आठ वर्षों बाद 2006 की गर्मियों में छुड़ाया गया था।
Natascha Kampusch

शुक्रवार, 2 मई 2008

भेड़ों से टकराने से रेल पटरी से उतरी

26 अप्रैल रात नौ बज कर पाँच मिनट पर हैम्बर्ग से म्युनिक जा रही ICE 885 ट्रेन पटरी पर खड़े एक भेड़ों के झुंड से टकराने के कारण पटरी से उतर गयी। ये दुर्घटना Mittelkalbach के पास जर्मनी की सबसे लंबी (10779 मीटर) एक सुरंग में हुयी। ट्रेन में 170 यात्री थे जिनमें से 20 को हल्की चोट लगी है और तीन को थोड़ी गहरी चोट लगी है। उन्हें पास के अस्पताल में दाखिल करवाया गया। कोई मौत नहीं हुयी। ट्रेन में 12 डिब्बे और दो इंजन थे (आगे और पीछे)। दो डिब्बों को छोड़कर सारे डिब्बे पटरी से उतर गये थे। टकराने के करीब एक किलोमीटर बाद सुरंग में ही ट्रेन रुक गयी। टकराने के समय ट्रेन की गति करीब 220 किलोमीटर प्रति घंटा थी। टकराने से 20 भेड़े मर गयी हैं। भेड़ों के चरवाहे पर भेड़ों का ध्यान न रखने के लिये दोषी ठहराया गया है। पटरी के रुकने की वजह से बाकी रेल यातायात पर भी भारी असर पड़ा।


चरवाहा Norbert Werner मीडिया वालों को उत्तर देते हुये।

आमतौर पर किसी जानवर के टकराने से रेल को फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन कयास लगाये जा रहे हैं कि इस बार बहुत अधिक भेड़ें एक-साथ रास्ते में आ गयी थी, और शायद कोई बड़ी हड्डी पहिये और पटरी के बीच फ़ंसी रह गयी होगी जिससे अंत में पहिया नीचे उतर गया। इस बात का शुक्र मनाया गया कि पटरी से उतरने के बाद रेल दूसरी पटरी पर नहीं चढ़ी, वर्ना दूसरी ओर से आती हुयी रेल के साथ इससे भी भयानक हादसा हो सकता था।

इस हादसे ने बहुत तेज़ चलने वाली रेलगाड़ियों की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिये हैं। 3 जून 1998 को भी Eschede के स्टेशन के पास एक ICE 884 दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी जिसमें 101 लोगों की मृत्यु हो गयी थी और 88 लोगों को गंभीर चोटें आयी थीं। ICE रेलों की गति 300 किलोमीटर प्रति घंटा तक भी पहुँच जाती है। कहा जाता है कि 140 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक गति से चलने वाली रेलगाड़ियाँ अचानक ब्रेक लगने की स्थिति में मानव के लिये घातक हो सकती हैं।

म्युनिक में बसंत मेला

11 अप्रैल से 27 अप्रैल तक म्युनिक के Theresienwiese में 44वें बसंत मेले यानि Frühlingsfest का आयोजन हुआ। इसमें 100 से ऊपर झूले, एक Augustiner का लाईव संगीत के साथ बीयर टेंट, एक बीयर गार्डन और खाने पीने की बहुत सी दुकानें थी। इन तीन हफ़्तों में दो दिन परिवारों के लिये खास थे जब सभी झूलों की सवारी कम कीमतों में उपलब्ध थी। दो दिन ऐसे भी थे जिनमें आप बचे खुचे D-Mark (जर्मनी की यूरो के आने से पहले वाली करंसी) के सिक्कों में भी भुगतान कर सकते थे। दो दिन रात को दस बजे खूब आतिशबाजियां भी छोड़ी गयीं। रविवार 27 अप्रैल को धूप भरे दिन में साईकल टूर भी आयोजित किया गया और साथ ही म्युनिक शहर के 850वें जन्मदिवस पर दोपहर बारह बजे 850 छोटी छोटी तोपें दागी गयीं (Böllerschützen). इस मेले को अक्तूबरफ़ेस्ट की छोटी बहन भी कहा जाता है। ये मेला Münchner Schausteller-Verein e.V. (http://www.muenchner-schausteller-verein.de/) द्वारा आयोजित करवाया गया था।
http://www.muenchner-volksfeste.de/FF.htm

गुरुवार, 1 मई 2008

36 लाख यूरो का चोर पकड़ा गया

36 लाख यूरो की चोरी के साथ सवा साल से गायब चोर को एक ट्रेन में पकड़ लिया गया।

बुधवार, 23 अप्रैल को सुबह करीब सवा ग्यारह बजे न्यूनबर्ग से ड्रेस्डन जाने वाली एक ट्रेन में दो पुलिसकर्मी आम चेकिंग कर रहे थे (Interregio 3087 Nürnberg – Dresden). Pegnitz के पास उन्होंने एक व्यक्ति को आईडेंटिटी कार्ड दिखाने के लिये कहा। उसपर लिखा हुआ था 'Kittelmann, Sven'. पुलिसकर्मियों ने कंप्यूटर में देखा तो पता चला कि वह व्यक्ति लाखों यूरो की चोरी के बाद 15 महीनों से गायब है। उन्होंने उसे उसी वक्त हथकड़ियां लगा दीं। लाल टी-शर्ट और बास्केटबॉल टोपी पहने, लम्बे भूरे बालों वाले उस व्यक्ति ने कोई विरोध नहीं किया। उसके पास कोई हथियार भी नहीं था। पूछताछ करने पर उसने बताया कि वह चेक-स्लोवाकिया के एक शहर में जा रहा था जहां वह एक वर्ष से छुपा हुआ था। वह Baden-Württemberg में किसी डॉक्टरी जाँच के लिये आया था। पकड़ के दौरान उससे टेप में लिपटे 20000 यूरो पाये गये। बाकी पैसों का ठिकाना उसने नहीं बताया।
पकड़े जाने के बाद पुलिस द्वारा खींची गयी फ़ोटो
उसके पास से पैकेजिंग टेप में लिपटा 20000 यूरो पाया गया।

32 वर्षीय Sven Kittelmann 20 जनवरी 2007 को A8 हाईवे पर एक साथी के साथ एक बैंक की ट्रांसपोर्टर गाड़ी चलाकर म्युनिक की ओर आ रहा था। गाड़ी के अंदर करीब 36 यूरो का कैश धन था। Sulzemoos के पास एक पार्किंग में उसने कुछ देर विराम करने के लिये गाड़ी रोकी। फिर उसने मोबाईल फ़ोन पर निर्विघ्न बात करने के बहाने अपने साथी को गाड़ी से उतार दिया। साथी के उतरते ही वह गाड़ी लेकर भाग गया।

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यहां से वह अपने साथी को उतार कर गाड़ी लेकर भागा।

इस गाड़ी में धन ले जाया जा रहा था।

फिर कुछ ही किलोमीटर दूर Dachau-Fürstenfeldbruck की क्रासिंग के पास उसने धन एक किराये पर ली हुयी Ford Focus Combi कार में लाद दिया और फ़्रांस की ओर फ़रार हो गया। ये गाड़ी बाद में फ़्रांस में Marseilles के समुद्री पोर्ट पर खाली पायी गयी। वहां से वह एक समुद्री जहाज़ से यात्रा करके अलजीरिया गया। लेकिन उसके पास वीज़ा न होने की वजह से उसे वहां ठहरने नहीं दिया गया और उसे उसी जहाज़ से वापस आना पड़ा। उसके बाद उसका कुछ पता नहीं चला था। कयास लगाये जा रहे थे कि जर्मनी वापस ज़रूर आयेगा। अब तलाश खत्म हुयी।
पुलिस उसे इस फ़ोटो के साथ ढूँढ रही थी।

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यहां उसने धन दूसरी गाड़ी में लादा।

बुधवार, 30 अप्रैल 2008

धूम्रपान-निषेध पर ध्यान दिलाने पर पीटा गया

26 अप्रैल को शाम साढ़े सात बजे एक 35 वर्षीय बैरा Partnachplatz पर Großhadern जाने वाली U6 में चढ़ा। Westpark आने पर चार अंदाज़न अर्मीनिया के लोग ट्रेन में चढ़े। उनमें से एक लगभग 30 वर्षीय व्यक्ति सिगरेट पी रहा था। वह ट्रेन के अंदर भी निर्लज्जता से सिगरेट पीता रहा। जैसे ही बैरे ने अगले स्टेशन Holzapfelkreuth पर उतरते हुये सिगरेट पीने वाले को इसका विरोध जताना चाहा तो उसके एक साथी ने खड़े होकर बैरे को थप्पड़ मार दिया, और दूसरे साथी ने बैरे को जैकेट से पकड़ा और उसे गालियां दी। वे चारों भी उसी स्टेशन पर उतर गये। बैरे ने उन लोगों से पंगा और बढ़ाने की बजाये अपना निर्णय बदला और यात्रा जारी रखी। वह अगले स्टेशन पर उतरा। ट्रेन के उस डिब्बे में एक और बूढ़ा व्यक्ति और दो युवतियां भी थीं।

बुधवार, 16 अप्रैल 2008

पुल पर दो लड़कों की पुलिस द्वारा छानबीन

रविवार, 30.03.2008 को दोपहर डेढ़ बजे पुलिस ने Unterföhring में हाईवे के ऊपर बने एक पुल पर खड़े दो लड़कों को नीचे जा रही गाड़ियों के साथ कुछ शरारत करते हुए देखा। पुलिस के नज़दीक जाने से वह 15 वर्षीय इराकी छात्र और 20 वर्षीय जर्मन बेरोजगार लड़का एयरगन (soft airgun) की गोलियों और मैगज़ीन से भरा एक डिब्बा छुपाने की कोशिश करने लगे। और जाँच पड़ताल करने से पुलिस ने पास की झाड़ियों में छुपायी गयी एक एयरगन भी ढूँढ ली। फिर पुलिस ने नीचे सड़क पर पड़ी हुयी कुछ गोलियां देखीं। शायद वे दोनों युवक पुल पर खड़े होकर नीचे से गुज़र रही गाड़ियों पर गोलियां चला रहे थे। और पूछताछ करने पर युवकों ने माना कि उन्होंने एक मार्गपट्ट पर गोलियां चलायी हैं। लेकिन उनके पास इसका उत्तर नहीं था गोलियां सड़क पर कैसे आयीं। उनमें से एक ने कहा कि उसने सॉफ़्टएयरगन एक दिन पहले इटली में खरीदी थी। उन दोनों के खिलाफ़ यातयात में खतरनाक दखल की रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। अभी तक पुलिस के पास इस तरह के किसी नुक्सान का केस नहीं आया है।

गुरुवार, 10 अप्रैल 2008

ऐसे सजाती हैं लड़कियां नाखून

लड़कियों और महिलाओं में आज कल स्टुडियो में बहुत सारा पैसा और समय खर्च करके तरह तरह से नाखून सजाने का रिवाज़ है। इसमें नाखूनों पर कृत्रिम नाखून चिपका कर ऊपर तरह तरह के डिज़ाइन बनाये जाते हैं। इसे जर्मन भाषा में Neumodellage कहते हैं। कई बार उन पर छोटे छोटे पत्थर और मोती भी जोड़े जाते हैं। Mira शॉपिंग कंप्लेक्स में 'New York Nails' नामक स्टुडियो (http://www.mira-nails.de/) इस काम के लिये आजकल बहुत मशहूर है।

आजकल नाखून सजाने की दो विधायें प्रचलित हैं, अमरीकन और फ़्रेंच। फ़्रेंच विधा में नाखूनों पर केवल सफ़ेद पेंट लगाया जाता है जबकि अमरीकन विधा में बहुत बारीक ब्रश के साथ डिज़ाईन बनाने पर अधिक ज़ोर दिया जाता है। 'New York Nails' अमरीकन विधा से नाखून सजाते हैं। ये स्टूडियो भारतीय महिलाओं के लिये काफ़ी रोचक है क्योंकि वे कपडों पर हुयी कढ़ाई पर फ़बते डिज़ाईन भी बनाते हैं। 18 वर्षीय अनुप्रिया कहती हैं कि म्युनिक में और भी अमरीकन विधा के स्टुडियो हैं लेकिन वे प्लास्टिक के नाखून को बिल्कुल जड़ में चिपका देते हैं जिससे वह माँस से चिपक जाता है। जब नाखून बढ़ते हैं तो माँस खिंचने लगता है जिससे बहुत दर्द होता है और कई बार खून भि निकलने लगता है। New York Nails वाले प्लास्टिक के नाखून को बिल्कुल टिप पर चिपकाते हैं। इससे कोई दर्द नहीं होता।

वैसे ये सफ़ेद हाथी पालने वाला शौक है, क्योंकि नाखून पर प्लास्टिक नाखून चिपकाने के बाद सहके ऊपर Gel की एक मोटी कठोर परत जमायी जाती है, और उसके बाद उसके ऊपर पेंट किया जाता है। दो तीन हफ़्ते बाद जब नाखून बढ़ जाते हैं तो नीचे से उन्हें दोबारा Gel से भरवाना पड़ता है। इसे Gel Auffüllen कहते हैं। इसमें लगभग तीन यूरो प्रति नाखून का खर्च आता है। यानि हर दो तीन हफ़्ते बाद तीस यूरो का चूना।

बुधवार, 9 अप्रैल 2008

बहुत कठिन है डगर पनधट की

दुनिया भर में इंजनियरिंग कंसलटेंसी में अपने नाम का सिक्का जमाने वाली हैदराबाद की कंपनी Satyam Venture (http://www.satyamventure.com/) जर्मनी में भी काफ़ी सक्रिय है। म्युनिक और आस पास के क्षेत्रों में इस कंपनी के लगभग 30 लोग विभिन्न ऑटोमोबाईल कंपनियों में काम कर रहे हैं। लेकिन इन लोगों को जर्मनी आने और रहने में क्या कठिनाईयां आती हैं, उसका उल्लेख हम कर रहे हैं।

Satyam Venture की ओर से Eching में स्थित जापानी कंपनी Denso में कार्यरत 'दिगंबर कुमार' का कहना है कि वीज़ा के मामले में जर्मन दूतावास के नियम बहुत कड़े हो गये हैं। खासकर परिवार को साथ में लाने के लिये। पत्नी का वीज़ा लगवाने के लिये marriage certificate और और बच्चों का वीज़े के लिये हर बच्चे का birth certificate दिखाना पड़ता है। हर certificate पर काम करने के लिये 8000 रुपये फीस देनी पड़ती है। इसके अलावा शादी की दस फ़ोटो देनी होती हैं और हर फ़ोटो के पीछे उस फ़ोटो में मौजूद सब लोगों के नाम लिखने होते हैं। और फिर पत्नी को जर्मन भाषा आना अनिवार्य है। अक्सर होता है कि मियाँ बीवी एकसाथ वीज़े का आवेदन पत्र भरते हैं। दो तीन महीने के इंतज़ार के बाद पति का वीज़ा आ जाता है लेकिन पत्नी का वीज़ा ये कहकर ठुकरा दिया जाता है कि उसे पहले थोड़ी जर्मन भाषा सीखनी होगी। ताज्जुब ये है कि ये सब पहले क्यों नहीं बताया जाता ताकि इस बीच पत्नी जर्मन भाषा सीख सके। अधिक से अधिक ये हो सकता है कि पत्नी को कुछ दिन का वीज़ा मिल जाये जिससे वो जर्मनी आकर कोई जर्मन कोर्स में शामिल हो सके। उसके बाद वो अपना वीज़ा extend करवा सकती है।

इन प्रश्नों का उत्तर ढूँढने के लिये बसेरा ने Kreisverwaltungsreferat की ओर से Gabriele Ponnath के साथ खास बातचीत की। Gabriele Ponnath ने बताया कि जर्मनी में लंबे समय तक रहने वाले विदेशियों को यहाँ के समाज में आत्मसात करने पर चर्चा बहुत देर से जारी है। सरकार चाहती है कि दीर्घकाल में यहाँ समाज का बँटवारा न हो। सब लोग एक दूसरे से एक ही भाषा में बात कर सकें, घुलमिल सकें। इस लिये 1 जनवरी 2005 से zuwanderungsgesetz नामक एक कानून लागू हुआ जिसके तहत दीर्घकाल के लिये जर्मनी में काम पर आने वालों के लिये 630 घंटों का जर्मन भाषा का कोर्स पूरा करना अनिवार्य हो गया। लेकिन अगस्त 2007 में इसमें एक संशोधन हुआ जिसके तहत परिवार के अन्य सदस्य, जो मुख्य आवेदक के साथ जर्मनी आना चाहते हैं, उन्हें भी जर्मन सीखना अनिवार्य हो गया। हालाँकि जर्मन भाषा सीखने की ज़रूरत का निर्णय विदेशों में स्थित वीज़ा ऑफ़िस वाले ही लेते हैं। इसमें आवेदकों द्वारा प्राप्त की गयी शिक्षा का आकलन किया जाता है। अगर आवेदकों ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की हुयी है तो उन्हें छोड़ दिया जाता है। इस लिये इस तरह के निर्णय लेने में समय लगता है जिस वजह से आवेदकों को अलग अलग समय पर वीज़ा मिलता है या फिर बाद में जर्मन भाषा सीखने के लिये कहा जाता है।

Gabriele Ponnath ने आगे बताया कि मार्च 2008 तक के आँकड़ों के अनुसार म्युनिक में 2417 भारतीय नागरिक रहते हैं। यानि वे लोग जिनके पास भारतीय पासपोर्ट है। इनमें से 1695 के पास Aufenthaltserlaubnis है और 494 के पास Niederlassungserlaubnis है।

दिगंबर कुमार नवंबर 2007 में अपनी पत्नी और बच्चे के साथ जर्मनी आये। उनके लिये पत्नी को जर्मन भाषा सीखने के लिये स्कूल भेजना काफ़ी बड़ी समस्या है। वे म्युनिक से थोड़ा बाहर रहते हैं और उनकी पत्नी बच्चे को अकेला छोड़ कर जर्मन भाषा सीखने शहर नहीं जा सकती। कोर्स के अलावा आने जाने में समय और पैसा व्यर्थ। वे कहते हैं कि आखिर बीवी को जर्मन भाषा सीखना क्यों अनिवार्य है, काम करने वाले को क्यों नहीं?

Gabriele Ponnath कहती हैं कि आमतौर पर उच्च शिक्षित मुख्य आवेदक के लिये जर्मन भाषा सीखना अनिवार्य नहीं माना जाता। लेकिन घर के अन्य सदस्यों के घर पर बैठे रहने और भाषा न सीखने से वे समाज की मुख्य धारा से अलग थलग पड़ जायेंगे और उसका प्रभाव बच्चों पर पड़ेगा। वे जर्मनी में समाज का बँटवारा नहीं चाहते। सरकार ने इसके लिये एक खास विभाग बनाया है Das Bundesamt für Migration und Flüchtlinge (BAMF, http://www.bamf.de/) । ये विभाग सस्ते रेट पर कोर्स उपलब्ध करवाता है। एक खास तरह के आवेदन से आप एक यूरो प्रति घंटा तक की फ़ीस के साथ भी जर्मन भाषा के कोर्स में (तथाकथित Integrationskurs) प्रवेश पा सकते हैं। कई संस्थान ऐसे हैं जिनमें कोर्स के दौरान बच्चों की देखभाल भी की जाती है। ऐसी एक संस्था है München Hauptbahnhof के पास Initiativgruppe München (http://www.initiativgruppe.de/). अथवा आप KVR में स्थित BAMF के कार्यलय में सीधे जाकर अपनी समस्या बता सकते हैं। वे आपके लिये ज़रूर कोई न कोई हल निकालेंगे। कई बार तो आने जाने का खर्च भी दिया जाता है।

Münchner Volkshochschule भी बहुत सारे Integrationskurs आयोजित करता है। इस विभाग की मुख्य अध्यक्षिका Heike Richter का भी कहना है कि यहाँ दुनिया के हर कोने, हर भाषा के लोग लंबे समय तक रहने के लिये आते हैं। कई तरह के समानंतर समाज देश के लिये अच्छे नहीं हैं। इस लिये जहाँ तक हो सके, सबकी कम से कम एक सांझी भाषा होनी चाहिये। हालाँकि वे इस बात को स्वीकार करती हैं कि व्यक्ति की अन्य खूबियों को नज़रअंदाज़ करके केवल भाषा सीखने पर ज़ोर देना अच्छा नहीं है। अगर वे भी भारत जायें और उनकी अन्य प्रतिभाओं को नज़रअंदाज़ करके केवल हिन्दी सीखने को मजबूर किया जाये तो वे इसे अच्छा नहीं मानेंगी।

दिगंबर कुमार आगे कहते हैं कि dependent visa पर आने वाले परिवार के सदस्यों को वीज़ा का आवेदन करने से पहले भारत में ही थोड़ी जर्मन सीख लेनी चाहिये। क्योंकि भारत में सीखना सस्ता भी है और आसान भी। भारत के सभी बड़े शहरों में Goethe Institut के कार्यलय हैं लेकिन वे अक्सर महँगे होते हैं। जर्मन सरकार Goethe Institut द्वारा पास की गयी परीक्षा को ही प्रमाणित मानती है लेकिन Goethe Institut से जर्मन सीखना आवश्यक नहीं है।

इसीलिये दिगंबर एक साल के बाद ये सब टेंशन लेने की बजाये वापस भारत जाना चाहते हैं। वैसे भी आजकल के वैश्वीकरण के ज़माने में अंग्रेज़ी अंतरराष्ट्रीय भाषा बन चुकी है, ऐसे में जर्मन भाषा के चक्कर में कौन पड़े। सत्यम कंप्यूटर्स के ही दूसरे कर्मचारी विनोद वर्मा अपनी पत्नी नीतू और डेढ़ वर्षीय लड़के 'श्रे' के अकेलेपन के बारे में सोचते हुये कहते हैं कि हम बच्चों के भविष्य के लिए आए थे, लेकिन हमने उनका वर्तमान ही बिगाड़ दिया। वे दिन भर घर पर पड़े रहते हैं और कोई मिलने जुलने को नहीं।

Satyam Venture के ही एक और कर्मचारी 'कादर वली' ने भारत में अपनी पत्नी के साथ work permit लिये आवेदन पत्र दिया। तीन महीने बाद उनका वीज़ा आ गया लेकिन उनकी पत्नी का वीज़ा ये कहकर ठुकरा दिया गया कि उन्हें पहले जर्मन सीखनी पड़ेगी। कादर वली अक्तूबर 2007 में अकेले जर्मनी आये और उनकी पत्नी को छह महीने बीतने के बाद वीज़ा मिला।

Satyam Venture की म्युनिक शाखा के BDM (Business Development Manager) Jose Xavier कहते हैं कि ये सब समस्यायें कंपनी के लिये बड़ा सरदर्द हैं क्योंकि वे एक कर्मचारी को जर्मनी लाने के लिये इतना खर्च करती हैं, वीज़ा के लिये महीनों इंतज़ार करती हैं, जबकि उनकी ग्राहक कंपनी आमतौर पर इतना इंतज़ार नहीं कर सकती। कई बार सब कुछ होने के बाद कर्मचारी कंपनी को ब्लैकमेल करने लगते हैं। वे परिवार को साथ ले जाने की ज़िद में जर्मनी जाने में आनाकानी करने लगते हैं। उन्हें ज्ञात होता है कि उनके बारे में जर्मनी की ग्राहक कंपनी के साथ भी बात हो चुकी है, वीज़ा, टिकेट आदि भी बन चुका है, अब उनका कोई विकल्प नहीं। इस दशा में कंपनी लाचार होती है और उसे परिवार का खर्च भी उठाना पड़ता है। कुछ हज़ार यूरो कमाने के लिये कंपनी इतने सरदर्द मोल लेती है।

आने के बाद भी कर्मचारियों को हर तरह की मदद चाहिये होती है। पहले कुछ दिनों के लिये रहने सहने का इंतज़ाम कंपनी करती है। इस दौरान कर्मचारी को अपना स्थायी ठिकाना सहूलियत के हिसाब से ढूँढना होता है। इतना होने के बाद भी जर्मन भाषा की समस्या कर्मचारियों को अधिक देर तक यहाँ टिकने नहीं देती और कंपनी का नुक्सान और बढ़ जाता है। कई बार संस्कृतिक विषमतायें भी समस्यायें खड़ी कर देती हैं। जैसे कई बार जर्मन लोगों को लंच में भारतीय लोगों के खाने पीने की आदतों से शिकायत रहती है। इस लिये सत्यम कंप्यूटर्स दीर्घकाल में सारा विकास कार्य विदेश में लोगों को भेजने की बजाये भारत में ही करना चाहती है।

बुधवार, 12 मार्च 2008

म्युनिक की LiMux परियोजना

म्युनिक शहर की सरकार अपने प्रबंधन में उपयोग हो रहे करीब 14000 कंप्यूटरों को विंडोज़ की बजाए ओपन सोर्स सॉफ़्टवेयर पर स्थानांत्रित कर रही है। 2008 के अंत तक 80% कंप्यूटरों पर windows NT 4 की बजाए Linux संस्थापित होगा। उन पर ऑफ़िस अनुप्रयोगों के लिए MS Office 97/2000 की बजाए Open Office का प्रयोग होगा। इसके अतिरिक्त वेब ब्राउज़र के लिए Firefox, ईमेल के लिए Thunderbird और Image editing के लिए Gimp का प्रयोग होगा। शहर की सरकार ने Microsoft और अन्य सॉफ़्टवेयर निर्माताओं से पीछा छुड़ाने का मन बना लिया है। इसके आगे भी वह भविष्य में केवल वेब आधारित अनुप्रयोगों पर ही काम करना चाहती है। इस तरह म्युनिक जर्मनी का पहला ऐसा बड़ा शहर है जहाँ सारा प्रबंधन ओपन सोर्स सॉफ़्टवेयर पर होगा। इस परियोजना की कुल कीमत 3.5 करोड़ यूरो है जिसमें कंप्यूटर, सॉफ़्टवेयर, प्रशिक्षण, पुराने डाटा को नए सिस्टम में लाने का काम आदि है। LiMux में बड़ी M और Linux के लोगो में सन्यासी (Monk) का चित्र म्युनिक शहर का प्रतीक है।
http://www.muenchen.de/limux

मंगलवार, 11 मार्च 2008

कचहरी में सुनवाई के दौरान अपराधी भाग गया

शुक्रवार 7 मार्च को मुकदमे के लिए नज़रबन्द किया गया Fehmi Weiß नामक अपराधी Erding की एक कचहरी में सुनवाई के दौरान कचहरी भवन से भाग गया। पीछा और खोज करने से अभी सफ़लता नहीं मिली है। उसका जन्म का नाम Salja है और जन्म तिथि 11.09.1979 है। वह सुनवाई के दौरान बिल्कुल आराम से खड़ा था और उसे फ़ैसले के बाद अपने वकील से बातचीत भी करनी थी। पुलिसकर्मी उससे करीब दो मीटर के फ़ासले पर खड़े थे, जब अचानक वह पीछे घूमा, कुछ मीटर दौड़ा और एक खिड़की खोलकर वहाँ से भाग गया। पुलिसकर्मियों ने तत्काल उसका पीछा किया। वह कुछ घरों के बीच में से होता हुआ झाड़ियों में घुस गया, उसके बाद वह नज़र नहीं आया। हेलिकाप्टर के साथ भी उसका पीछा किया गया लेकिन उसे ढूँढा नहीं जा सका। उस 28 वर्षीय अपराधी को कई तरह के आघाती हमलों की वजह से जेल की सज़ा सुनाई गई थी। उसे हिंसक और खतरनाक घोषित किया गया था।

अपराधी का वर्णनः
आयु 28 वर्ष, उँचाई करीब 185 सेंटीमीटर, पतला और खेलकूद वाला शरीर, काले और छोटे बाल, बाईं आँख के नीचे और माथे की बाईं ओर कुछ टेढे निशान हैं। उस समय उसने 'चंगेज़ खान' टाइप की दाढ़ी बनाई हुई थी।

Karlsfeld S-Bahnhof में लड़की के साथ ज़्यादती

शनिवार 8 मार्च को शाम सवा सात बजे एक अट्ठारह वर्षीय युवती Karlsfeld Bahnhof पर ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी कि अचानक पीछे से एक अजनबी पास आया और उसने युवती को कन्धे से पकड़ कर पास की झाड़ियों में धकेल दिया। उसने हिंसक तरीके से युवती को ज़मीन पर गिरा दिया और उसके कपड़ों के बीच छाती में हाथ डाल दिया। फिर वह अपनी पेंट खोलने लगा। तभी एक पास से गुज़र रहे व्यक्ति को गड़बड़ का आभास हुआ और उसने चिल्ला कर युवती को छोड़ देने के लिए कहा। इससे उस व्यक्ति ने युवती को छोड़ दिया और वहाँ से भाग गया। पुलिस अपराधी को नहीं पकड़ सकी। पुलिस उस साक्ष्य को भी ढूँढ रही है जिसने चिल्ला कर युवती की मदद की थी क्योंकि वह अपराधी को पकड़ने में मदद कर सकता है।

साक्ष्य का वर्णनः आयु करीब 30 वर्ष, शुद्ध उच्चारण के साथ जर्मन बोल रहा था, वो टैक्सी स्टैंड की ओर से निकल कर आया था।

अपराधी का वर्णनः आयु नरीब 40 वर्ष, करीब 180 सेंटीमीटर बड़ा, थोड़ा बढ़ा हुआ पेट, जीन्स, गहरे रंग की टोपी और स्लेटी रंग की मैली टी शर्ट पहने हुए, जैकेट नहीं पहनी थी, मूँह से शराब और निकोटीन की बू आ रही थी।

रोमानिया के चोर को सज़ा

7 मार्च को दोपहर बारह बजे एक 33 वर्षीय रोमानिया के व्यक्ति ने म्युनिक के शॉपिंग मॉल में चोरी का प्रयत्न किया। वह वहाँ आभूषणों के विभाग में गया और एक हुक की मदद से शीशे की अलमारी से एक सोने की चेन निकालने की कोशिश करने लगा। उसकी एक साथिन आने जाने वालों पर नज़र रख रही थी। उस चेन की कीमत 1700 यूरो थी। जब दोनों को आभास हुआ कि विक्रेता की नज़र उन पर पड़ गई है तो वे अपना काम बीच में छोड़ कर बाहर बाज़ार में भाग गए। चेन अलमारी के नीचे एक सुराख में गिर गई। तत्काल बुलाई गई पुलिस ने उस व्यक्ति को तो बाज़ार में पकड़ लिया लेकिन औरत का अभी तक नहीं पता चला। पुलिस के जज ने उसे सज़ा सुनाई है।

19 किलो चरस पकड़ी गई

शनिवार 8 मार्च को Aschaffenburg के पास Weibersbrunn में एक 34 वर्षीय इतालवी हशीश एजेंट 19 किलो चरस के साथ पकड़ा गया। वह पुलिस से भागकर चुराई हुई नंबर प्लेट के साथ A3 हाईवे पर जा रहा था।

दोपहर ढ़ाई बजे Aschaffenburg ट्रैफ़िक पुलिस Hösbach के पास A3 पर जा रही एक Lancia गाड़ी को चेक करना चाह रही थी। ड्राईवर ने पुलिस के इशारे की ओर ध्यान नहीं दिया और वो Würzburg की ओर गाड़ी भगा ले गया। आपाधापी में उसने हाईवे पर जा रही कई अन्य गाड़ियों को भी खतरे में डाल दिया। पीछा कर रही पुलिस से बचने की उम्मीद में उसने एक पार्किंग में गाड़ी खड़ी की और फ़िल्मी इश्टाईल में साथ वाले जंगल में भाग निकला। लेकिन पुलिस अधिक दमदार निकली और ये भागदौड़ जल्द ही समाप्त हो गई। गाड़ी के तलाशी में 19 किलो चरस पाई गई जो हॉलैंड से इटली जा रही थी। एजेंट ने पुलिस को झूठे पासपोर्ट के साथ धोखा देने की कोशिश की लेकिन उसे जल्द ही पहचान लिया गया। पिछले साल भी उसे चरस की तस्करी की सज़ा में समय से पहले छोड़ दिया गया था। उसे अब कई वर्ष की सज़ा होगी।

शनिवार, 8 मार्च 2008

फ़ैशन शो

म्युनिक 7 और 8 फरवरी को Olympia Einkaufszentrum में फ़ैशन शो हुआ जिसमें आने वाले वसन्त और गर्मियों के मौसम के लिए विशेष परिधान प्रस्तुत किए गए। म्युनिक के प्रसिद्ध शॉपिंग केन्द्र Olympia Einkaufszentrum (OEZ) ने शॉपिंग माल को रंग बिरंगे फूलों से सजा कर वसन्त ऋतु का ऐलान कर दिया है। परिधानों की विभिन्न बड़ी कंपनिओं ने आने वाले वसन्त ऋतु के लिए अपने खास उत्पादन पेश करने के लिए म्युनिक के जाने माने मॉडल्स को लेकर मिलकर एक फ़ैशन शो का आयोजन किया।
http://www.olympia-einkaufszentrum.de/

शुक्रवार, 7 मार्च 2008

जुनियर पुस्तक मेला

म्युनिक। 1 से 9 मार्च तक Rathausgalerie में 4 से 12 वर्ष के बच्चों के लिए पुस्तक मेला चल रहा है जिसमें बायरन प्राँत की प्रकाशन कंपनियों ने 2007 में जारी की गई पुस्तकों और सीडी की प्रदर्शनी लगाई है। प्रदर्शनी के इलावा इसमें और भी कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं, जैसे कुछ लेखक खुद अपनी पुस्तकें पढ़ रहे हैं, बच्चों के लिए कई तरह की कार्यशालाएं आयोजित की गई हैं जिसमें वे रंग करना, छपाई की विभिन्न तकनीकें, जिल्द बाँधना आदि सीख रहे हैं।
http://www.muenchner-buecherschau-junior.de/

यहाँ बच्चे पुस्तकों के रैक के बीच में बिछे गद्दों पर लेट कर आराम से पुस्तकें पढ़ सकते हैं।

सुनने वाली पुस्तकें, यानि कहानियों को सीडी पर सुनने का प्रावधान भी बच्चों को बहुत पसंद है। हालाँकि अधिकतर बच्चे कहानियां अपनी मम्मी के मुँह सुनना पसंद करते हैं लेकिन जब कोई कहानी सुनाने वाला न हो तो ये विकल्प भी बुरा नहीं है। खासकर गाड़ी में लंबा सफ़र करते समय ये बहुत काम आती हैं।

बच्चों के लिए बहुत नए नए तरीकों से, नए नए आइडिया लगा कर और बहुत ही रंग बिरंगी रोचक पुस्तकें बनाई जाती हैं। जैसे यहाँ पर धागों के साथ खेलने वाले खेलों की पुस्तक है, विभिन्न तरह की गाँठें बाँधने की कला पर पुस्तक, ताश, गीटियों के खेलों पर पुस्तकें हैं। इसके इलावा विज्ञान, राजनीति, इतिहास, भूगोल आदि पर इतनी रोचक पुस्तकें हैं कि सभी पुस्तकें खरीद लेने को मन करता है। हालाँकि म्युनिक के पुस्तकालयों में भी बहुत सी पुस्तकें, सीडी, डीवीडी और खेल उपलब्ध होते हैं लेकिन फिर भी बच्चों की पुस्तकों का बाज़ार बहुत बड़ा है। मातापिता छोटे बच्चों के लिए पुस्तकें तो कम खरीदतें हैं क्योंकि वे कुछ ही समय काम आती हैं लेकिन बड़े बच्चों की पुस्तकें और सदाबहार पुस्तकें वे खरीद लेते हैं।

म्युनिक के बच्चों का खास पोर्टल Pomki (http://www.pomki.de/) ने भी अपना सटैंड लगाया हुआ था। वहाँ उन्होंने चार कम्प्यूटर लगाए हुए थे जिनमें बच्चे म्युनिक शहर के बारे में पहेलियां बुझ कर इनाम के रूप में पुस्तकें जीत सकते थे। इसके इलावा बच्चे इंटरनेट पर अपने विचार लिख सकते थे कि मध्ययुग में वहाँ जीवन कैसा था। गौरतलब है इस वर्ष म्युनिक शहर अपना 850वां जन्मदिन मनाने जा रहा है। इस उपलक्षय में Pomki ने खास साईट तैयार किया और उसमें एक ब्लॉग बनाया जिसमें बच्चों ने अपनी कल्पना शक्ति से 850 वर्ष पहले के जीवन का चित्रण किया। उनकी लिखी हुई बातों को आप यहाँ पढ़ सकते हैं- http://www.pomki-850.de/wordpress_01/index.php. आप पढ़कर हैरान होंगे कि दस वर्ष और उससे भी कम उम्र के बच्चों ने राजा महाराजाओं वाले उस समय का कितना अच्छा वर्णन किया है जब आम लोगों का जीवन बहुत कठिन हुआ करता था।

इस कार्यशाला में बच्चे जिल्द बाँधना सीख रहे हैं।
पेटिंग कार्यशाला
पुराने समय की छपाई की विभिन्न तकनीकों पर कार्यशाला भी बच्चों को बहुत पसंद आई जिसमें वे खुद चित्र बनाकर अथवा कुछ लिखकर छोटी सी प्रंटिंग मशीन पर छाप सकते थे।

हरि ओम मंदिर में महाशिवरात्रि

गुरुवार 6 फरवरी को म्युनिक के हरि ओम मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व हर्षोल्लास से मनाया गया। इस उपलक्ष्य में शिव पूजा, आरती, शिव पुराण पाठ, भारतनाट्यम एवं शिव जागरण का आयोजन हुआ।

शाम छह बजे का समय। मंदिर खूब सजा हुआ था और पचासों बच्चे, बड़े, बूढ़े लोग पारंपारिक वेश-भूषाओं में सजधज कर आए हुए थे। धूपबत्ती की भीनी भीनी खुश्बू और मंत्रों की आवाज़ में डूबे हुए मंदिर में पवित्र माहौल बना हुआ था। पंडाल की एक ओर जिन श्रद्धालुओं ने शिवरात्रि का व्रत और उपवास रखा हुआ था, वे पूजा अर्चना कर रहे थे। करीब डेढ़ घंटे की इस पूजा में गणेश, पार्वती, नंदीश्वर और शिव की पूजा की गई। दूसरी ओर शिव पुराण का पाठ चल रहा था। पीछे भक्तगण आपस में मेल मिलाप कर रहे थे, चाय नाश्ता कर रहे थे और बच्चे आपस में खेल रहे थे। करीब साढ़े आठ बजे आरती हुई। फिर श्रीमति चंद्रा देवी ने भारतनाट्यम पेश किया (http://www.chandra-devi.de/)। इसी दौरान भांग परोसी गई और शिव प्रसाद बाँटा गया। फिर उसके बाद रात भर शिव जागरण किया गया और पूजा को तीन बार और दोहराया गया। जिन श्रद्धालुओं ने उपवास रखा हुआ था, उन्होंने छत्तीस घंटे तक कुछ भी नहीं खाया पीया और पूर्ण मौन धारण किया हुआ था। जिन्होंने व्रत रखा था उन्होंने पूजा के बाद दूध वाली चाय पी। पूजा के दौरान शिवलिंग को कई बार पानी, घी, दूध आदि से स्नान करवाया गया, बेलपत्र चढ़ाए गए।

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। (स्रोतः विकिपीडिया)

गौरतलब है कि डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में ही हरि ओम मंदिर म्युनिक में रह रहे हिन्दू समुदाय में काफ़ी लोकप्रिय हो गया है। हर रविवार यहाँ ढेर सारे श्रद्धालू एकत्रित होते हैं और पूजा पाठ, कीर्तन आदि करते हैं, लंगर का आनंद लेते हैं। सारे हिन्दू पर्व यहाँ विधिवत मनाए जाते हैं। इसका मुख्य श्रेय यहाँ रहने वाले अफ़्गानी हिन्दूओं को जाता है जो ज़मीनी स्तर पर सारा काम करते हैं। मंदिर के ट्रस्टी राकेश मेहरा बताते हैं कि पर्दे के पीछे इतना काम होता है जो बाहर से नज़र नहीं आता। अपने व्यवसाय और परिवार से समय निकाल की मंदिर की सफ़ाई, खाना बनाना, खरीदारी आदि का ध्यान रखना पड़ता है।

शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

बर्लिन में गणेष मंदिर

बर्लिन निवासी डा॰ अविनाश कुमार लुगानी काफ़ी समय से जर्मनी में हिन्दू धर्म और संस्कृति के बारे में जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं। वे समय समय पर गिरजाघरों, स्कूलों में हिन्दू संस्कृति पर व्याख्यान देते रहते हैं। अब वे बर्लिन में एक बड़े गणेष मंदिर का निर्माण करवाना चाहते हैं। मंदिर के निर्माण के लिए Neukoelln क्षेत्र में 5000 वर्गमीटर जगह क्षेत्र के मेयर की मदद से सस्ती लीज़ पर मिल गई है और मंदिर के निर्माण की अनुमति भी मिल गई है। निर्माण कार्य मार्च 2008 में आरम्भ होगा। ये करीब दस लाख यूरो की परियोजना है। डा॰ लुगानी, जो मंदिर के अधिपति भी हैं, निर्माण कार्य के लिए लोगों से चंदे के रूप में वित्तीय सहायता लेने का प्रयत्न कर रहे हैं। मंदिर की गतिविधिआं, जैसे पूजापाठ, हवन आदि तो लगातार चल रही हैं। उनकी अच्छी खासी टीम है जो भारत से भी चंदा, मूर्तिआं और अन्य सामान ला रही है। मंदिर के निर्माण के लिए कुछ कामगार आदि भी भारत से आएंगे। पूजा पाठ के इलावा वे वहाँ हिन्दी भाषा की शिक्षा, पुस्तकालय आदि और हिन्दू संस्कृति संबंधी अन्य कार्यक्रमों का प्रावधान भी रखेंगे।
http://www.hindutempelberlin.de/

 

 

बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

सुपरमार्केट लूटने की कोशिश

म्युनिक, 20 फरवरी को , दोपहर करीब बारह बजे Dachauer Straße पर स्थित एक सुपरमार्केट में दो काउंटर पर काम चल रहा था। एक काऊँटर पर एक 33 वर्षीय कर्मचारी एक ग्राहक से पैसे ले रही थी। जब ग्राहक अपना सामान थैले में डाल रही थी तो कैश का डिब्बा अभी खुला था। इससे पीछे खड़े एक 33 -35 वर्षीय अजनबी की नीयत बदल गई। उसने डिब्बे हाथ डालने की कोशिश की और कैशियर को अपने पास एक कैंची से धमकाया। कैशियर ने हिम्मत करके धड़ाम से डिब्बा बंद कर दिया। फिर वह विदेशियों की तरह बोलने वाला अजनबी पैसे माँगने लगा लेकिन कैशियर टस से मस नहीं हुई। फिर वह कैंची से डिब्बा खोलने का प्रयत्न करने लगा, लेकिन सफ़ल नहीं हुआ। फिर वह वहाँ से भाग गया। कर्मचारियों ने एमरजैंसी से पुलिस को फ़ोन किया। किसी को चोट नहीं पहुँची। पुलिस उसे नहीं पकड़ सकी।
उसका हुलियाः 33-35 वर्षीय, लगभग 180 cm उँचा, ताकतवर व्यक्ति, तीन दिन की दाढ़ी, छोटे काले बाल, गहरे रंग की पेंट और काली जैकेट, हथियार के तौर पर कैंची के साथ।

अपनी बेटी को जान से मारने की कोशिश

म्युनिक। 28 वर्षीय विवाहिता ने अपनी साढ़े तीन साल की बच्ची को जान से मारने की कोशिश की।

23 फरवरी सुबह 8:40 बजे एक 31 वर्षीय ईरानी युवक अभी बिस्तर में ही था जब उसकी पत्नी ने बताया कि उसने उनकी बच्ची को जान से मार दिया है और अब वह उसे भी चाकू से मार दे। युवक झपट कर बच्ची के कमरे की ओर भागा और बच्ची को बचाने की कोशिश की। उसका गला नंगे हाथों से घोंट दिया गया था। उसने पुलिस को फ़ोन किया, बच्ची को गोद में उठाया और घर के बाहर चला गया, जहाँ पुलिस उसे मिली। बच्ची को पास के अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया। उसके गले पर गहरी चोटें थीं। युवती की मानसिक हालत ठीक नहीं थी। उसे गिरफ़्तार कर लिया गया और मनोवैज्ञानिक अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया। पूछताछ के दौरान उसने बताया कि पारिवारिक स्थितियां उसके बस के बाहर हो चुकी हैं।

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2008

Stammesfest Bhagoria in Indien- Durchbrennen für die Liebe



In Zentralindien, in den Gebieten der Ureinwohner im Bundesstaat Madhya Pradesh lag Liebe in der Luft. Amor geht ungewöhnliche Wege- Jungen und Mädchen laufen weg, um einen Lebenspartner beim farbenfrohen Fest der Bhils und Bhilalas zu finden. Dieser Brauch wird im Jabhua-Distrikt des Bundesstaates besonders gepflegt. Das ist Brauch bei einem „Volks-Svayamvara“, einem Massen-Heiratsmarkt, der üblicherweise an den Markttagen vor dem Holi-Fest im März stattfindet. Der Name des Festes kommt vom Wort „bhag“-„weglaufen“, die jungen Leute laufen weg, nachdem sie sich einen Partner/-in gesucht haben und werden später von der Gesellschaft, nach einigen vorherbestimmten Ritualen, als Ehemann und Ehefrau akzeptiert.

Nicht immer treffen sich die Jungen und Mädchen, die heiraten wollen, auf dem Fest zum ersten Mal. Sehr oft kennen sie sich schon und haben Hochzeitspläne, das Fest bietet den Rahmen, in dem sie Ihre Beziehung öffentlich bekannt machen.

Die Tradition schreibt vor, dass der Junge ein rotes Pulver, Gulal, im Gesicht des Mädchens, das er frägt, ob sie ihn heiraten will, aufträgt. Falls das Mädchen einwilligt, trägt sie auch Gulal auf sein Gesicht auf. Sie kann sich auch bitten lassen, der Junge kann ihr dann nachstellen und doch noch sein Ziel erreichen. Das Bhagoria –Fest fällt mit dem Abschluß der Ernte zusammen, deshalb ist es auch ein landwirtschaftliches Fest. Falls die Ernte gut ausfiel, wird das Fest besonders fröhlich. Im Leben der Bhils und Bhilalas ist Bhagoria nicht nur ein Fest, sondern eine Serie von Markttagen , die nacheinander in verschieden Dörfern an ihren jeweiligen Markttagen stattfinden, und die acht Tage vor dem Holi-Fest enden.

Früher trugen die Männer Turbane und Juwelenschmuck mit „Kummerbund“ (indisches Kleidungsstück) um um die Mädchen mit ihren farbenfrohen Röcken, Blusen und Halstüchern. Aber die Zeiten ändern sich auch für dieses malerische altertümliche Fest.

Heute tragen die jungen Bhil Männer Hemden und Hosen zum Mela und die Frauen schminken sich mit Lippenstift. Der wichtigste Teil des Mela ist das ungezwungene Zusammensein von Männern und Frauen, sie feiern es mit Tanz zum Rhythmus der Dhols und Thalis und zur süßen Melodie des Shehnai und Bansuri ( eine Art Flöte ).Der Gott des Tanzes, Bhagordev wird damit geehrt. Währed der Klang der Trommeln und Flöten erklingt, suchen sie nach potentiellen Partnern.Sie tanzen, singen und feiern die Gemeinschaft auf den klapperigen Karussells des Marktes. Während dieser Zeit ist Sex nicht verboten.

Dieses Jahr wollte die Regierung die Dinge an diesen sieben Tagen der Valentinstag-Glückseligkeit ( kann man Valentinstag in Indien sagen ? ) vereinfachen. Zum erstem Mal wurden Hochzeiten vor Ort amtlich registriert und Hochzeitsurkunden sofort ausgestellt. Viele Leute mochten das nicht, da es nach ihrem Empfinden gegen die Tradition des Stammes ist, aber einigen war es egal, da sie ihre Gedanken woanders hatten…

http://hindibaat.blogspot.com/2007/02/bhagoria-valentine-festival-of-tribals.html
http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/00_bhagoria/
http://www.mptourism.com/ff/bhago.html
http://www.indiaprofile.com/fairs-festivals/bhagoriafestival.htm

अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन

10 फरवरी को म्युनिक के Bayerischer Hof होटल में 44वीं अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन का आयोजन हुआ। अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन हर साल म्युनिक में होता है जहाँ दुनिया भर के नेता जुटते हैं और तत्कालीन अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचारों का आदान प्रदान करते हैं। इसकी शुरुआत शीत युद्ध काल में 1962 में हुई थी जहाँ NATO के सेनाध्यक्ष और नेता मिलते थे। आज रूस, भारत, इज़राइल, जापान, ईरान आदि देशों के सेनाध्यक्षों और नेताओं को आमंत्रित किया जाता है। इस सम्मेलन का खर्च जर्मनी का रक्षा मन्त्रालय और उद्योग उठाता है। इसे Helmut Kohl के पूर्वी सलाहकार CSU के 68 वर्षीय नेता Horst Teltschik आयोजित करवाते हैं। इस बार ईरान के अलावा अफ़गानिस्तान में संघर्षरत दक्षिणी इलाके में जर्मन सेना की तैनाती का मुद्दा गर्म रहा। अधिकतर जर्मन वोटर इसके विरोधी हैं। अमरीकी रक्षा मंत्री Robert Gates ने जर्मनी और NATO के अन्य देशों के रक्षा मंत्रियों को पत्र लिख कर दक्षिणी अफ़गानिस्तान में और 3200 सैनिक तैनात करने की मांग की थी। जर्मन चांसलर Angela Merkel ने वहाँ सैनिकों को भेजने की अमेरिका की मांग ठुकरा दी है। अमरीकी रक्षा मंत्री Robert Gates ने सैनिक न भेज पाने की स्थिति में हैलिकाप्टरों माँग की है। जर्मनी के 3200 सैनिक उत्तरी हिस्से में तैनात हैं और युद्धक कार्रवाई के बदले पुनर्निर्माण में मदद दे रहे हैं। दक्षिणी अफ़गानिस्तान में तालिबान और अल क़ायदा विद्रोही बहुत मजबूत हैं और वहाँ अमेरिकी सेना के नेतृत्व में NATO विद्रोहियों से लड़ रही है। इस मुद्दे पर सरकार में शामिल दोनों पार्टियों में सहमति लगती है. SPD के जर्मन विदेशमंत्री Frank-Walter Steinmeier का कहना है कि इसमें कोई तुक नहीं कि जिस क्षेत्र में जर्मन सेना ने स्थिरता और पुनर्निर्माण में सफल काम किया है, वहाँ उनकी उपस्थिति को घटाया जाए। उनका कहना है कि भविष्य में भी उत्तरी अफ़गानिस्तान जर्मन सेना का तैनाती क्षेत्र रहेगा. एक दूसरे से स्वतंत्र दो अध्ययन में कहा गया है कि अफ़गानिस्तान फिर से आतंकवादियों का गढ़ बनने की राह पर है. यदि युद्ध को जीतने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास तेज़ नहीं किए जाते हैं तो देश विफल हो सकता है।
Horst Teltschik का ये अंतिम आयोजन था। अगली बार से इस सम्मेलन की कमान Wolfgang Ischinger संभालेंगे।
http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2008/02/080201_us_troops_demand.shtml
http://www.bbc.co.uk/hindi/news/story/2007/02/070211_iran_nuclear.shtml
http://www.iaea.org/
http://www.securityconference.de/
by Hartmut Kaiser

सोमवार, 28 जनवरी 2008

कम से कम समलैंगिकों पर सभी एकमत

हाल खचाखच भरा था। Thalkirchnerstraße पर स्थित Gaststätte Zunfthaus में 350 से भी अधिक लोग म्युनिक के आगामी चुनावों के OB के पद के सभी छह उम्मीदवारों को एक साथ देखने और एक ही विषय में उनके विचार जानने के लिए उत्सुक थी। वो क्या विषय था? समलैगिकों के लिए समान अधिकार।

म्युनिक शहर में कोई सवा लाख समलैंगिक लोग रहते हैं। हर वर्ष Christopher Street Day मनाने के लिए लाखों समलैंगिक महिलाएं और पुरुष म्युनिक की सड़कों पर निकल पड़ते हैं। लेकिन समलैंगिकों को लेकर कुछ सामाजिक मुद्दे अभी भी नाज़ुक हैं। उन्हें कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होने के बावजूद समाज में पूरी नहीं आत्मसात नहीं किया जा सका है। उन्हें अभी भी समाज में कई बार भेद-भाव का सामना करना पड़ता है। आने वाले महानगरपालिका चुनावों में भी समलैंगिकों की इतनी बड़ी आबादी खास महत्व रखती है। समलैंगिकों की संस्था SUB (Schwules Kommunikations- und Kulturzentrum e.V., http://www.subonline.org/) ने शुक्रवार, 25 जनवरी को म्युनिक के Oberbürgermeister के पद के सभी छह उम्मीदवारों को इकट्ठा कर, समलैंगिकों के बारे में उनके विचार जानने की कोशिश की। संस्था का कहना है कि जहाँ SPD, Grünen और FDP पार्टियों ने समलैंगिकों के लिए बहुत कुछ किया है वहीं CSU, ÖDP और Freie Wähler का समलैंगिकों के प्रति रुख थोड़ा रूढ़िवादी है।

पेश हैं सभी उम्मीदवारों के ब्यानः

ÖDP के उम्मीदवार Markus Hollemann-
समलैंगिक भी म्युनिक का एक हिस्सा हैं। ÖDP पार्टी में कई समलैंगिक लोग काम करते हैं और पूर्ण स्वीकार्य हैं। ये हमें पूरी तरह साफ़ है कि किसी के साथ लिंग को लेकर कोई भेद भाव नहीं किया जाएगा। मैं अपनी पत्नी के साथ शादी शुदा हूँ लेकिन मेरे कई दोस्त समलैंगिक हैं और बहुत आकर्षक व्यक्तित्व वाले हैं। इसलिए मेरा मानना है कि किसी का व्यक्तित्व केवल इस एक मुद्दे के आधार पर नहीं जाँचा जाना चाहिए। शहर में नागरिकों से संबंधित इससे भी अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे और समस्याएं हैं। एक OB उम्मीदवार के तौर पर मैं चाहता हूँ कि लोग भविष्य और पर्यावरण के बारे में सोचें। ऊर्जा बचत, शाश्वत ऊर्जा (renewable energy) और ऊर्जा के दक्ष उपयोग के मुद्दे अभी सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं।

FDP के उम्मीदवार Michael Matter-
उदारवादी नीति में किसी भी चीज़ में असमान व्यवहार अस्वीकार्य है। समलैंगिकों के आपसी रिश्तों के मामले में भी वही नीति अपनाई जानी चाहिए। खासकर शादी के द्वारा टैक्स में छूट और गोद लेने के मामलों में उन्हें समान अधिकार मिलने चाहिए। म्युनिक में इस संबंधी बहुत सी परामर्शी सेवाएँ उपलब्ध हैं। किसी अतिरिक्त सेवा की ज़रूरत फिलहाल मुझे नहीं लगती। बड़ी समस्या तब खड़ी होती है जब मौजूदा संयुक्त सरकार बहुत सांस्कृतिक समाज के नारे लगाती है (Multikulti) लेकिन समलैंगिकों के विरुद्ध हिंसा बरतती है। जब right extremists समलेंगिकों' पर हिंसा करते हैं, तब सरकार समता की बात करती है लेकिन जब मुस्लमान हिंसा करते हैं, तब चुप रहती है। संवैधानिक तौ पर सभी के विरुद्ध कारवाई होनी चाहिए।

Grünnen के Hep Monatzeder-
मौजूदा सरकार के अंतर्गत म्युनिक का माहौल पहले से ही सहलैंगिकों के काफ़ी अनुकूल है। फिर भी अभी काफ़ी कुछ करना बाकी है। किराए के अपार्टमेंट से लेकर अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने के अधिकार तक। इसलिए मैं उनके अधिकारों के लिए लड़ता रहूँगा।

Freien Wählern München के उम्मीदवार Michael Piazolo-
हम मानना है कि मनुष्य अपने यौन जीवन का फैसला खुद करे लेकिन इसके साथ ही समाज और दूसरों के प्रति उत्तरदायित्व भी बनता है। Christopher Street Day (CSD) जैसे बड़े आयोजन जहाँ एक तरफ़ समलैंगिक जीवन को नज़दीक से देखने का अवसर प्रदान करते हैं, वहीं उसे तोड़ मरोड़ कर, फैला कर दिखाए जाने का भी डर रहता है। हमरी कोशिश समलैंगिक जीवन को सामान्य जीवनशैली में आत्मसात करने की रहेगी।

CSU के उम्मीदवार Josef Schmid-
समय आ गया है जब समलैंगिक प्रवृत्ति के लोग हमारे समाज का अंग माने जाएं, न कि कुछ और। इसे सामान्यत स्वीकार्य बनाने के लिए किसी प्रकार का प्रदर्शन करने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि बहुत शाँत रहने की आवश्यक्ता है। मेरी बीवी और बच्चे हैं, इसलिए मैं पांरपरिक शादी में विश्वास करता हूँ। हमारे संविधान एवं मेरी मान्यता अनुसार शादी को पारिवारिक जीवन के संभाव्य अँकुर के रूप में बचाकर रखा जाना चाहिए। लेकिन मैं दूसरी जीवन शेलियां भी स्वीकार करता हूँ। समलैंगिकों के साथ समाज में या काम में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। जियो और जीने दो का सहिष्णुता वाला फ़ार्मुला मुझे प्रिय है। हाँ घनिष्ठ जीवन घनिष्ठ ही रहना चाहिए।

SPD के Christian Ude-
पिछले वर्षों के मेरे OB होने के कार्यकाल में म्युनिक समुदाय में काफ़ी कुछ बदल गया है। 2002 में समलैंगिकों के लिए शहर का समन्वय केन्द्र, 2004 की EuroGames में एड्स के लिए मुफ़्त परामर्श केन्द्र, और हर वर्ष होना वाला Christopher Street Day आदि। SPD युवा और वृद्ध समलैंगिकों के लिए सूचना और शिक्षा द्वारा आगे भी कार्यरत रहेगी।

संस्था SUB 14 फरवरी Oberangertheater में इस विवाद का दूसरा चरण आयोजित करेगी जिसमें महानगरपालिका चुनाव की छह समलैंगिक महिला उम्मीदवार और चार समलैंगिक पुरुष उम्मीदवार मौजूद होंगे।

गुरुवार, 24 जनवरी 2008

भतीजे की चाल चली नहीं

बुधवार, 23 जनवरी को सुबह एक अजनबी ने फ़ोन पर कई लोगों अपना रिश्तेदार बता कर ठगने की कोशिश की। कोई दस बजे उसने Schwabing में रह रहे एक 65 वर्षीय सेवा-निवृत्त व्यक्ति को फ़ोन किया कहा कि वह उसका रिश्तेदार है। बा करते करते उसने कहा कि उसने एक अपार्टमेंट खरीद लिया है और उसे बहुत सारे पैसे की ज़रूरत है, लगभग 30000 - 50000 यूरो की। सेवा-निवृत्त व्यक्ति इससे थोड़ा चौकन्ना हो गया और कहा कि वह उसे थोड़ी जाँच पड़ताल करने दे और बाद में फ़ोन करे। अजनबी ने धीरज जताते हुए फ़ोन रख दिया।

कोई आधे घंटे बाद, अनुमानित वही व्यक्ति ने Hasenbergl में रह रही एक 51 वर्षीय घरेलू औरत को फ़ोन किया और कहा कि वह उसका भतीजा है। फिर वह 20000 यूरो की मदद माँगने लगा। इस पर वह औरत उसकी चाल ताड़ गई और ये कहकर फ़ोन रख दिया कि वह उसे नहीं जानती।

अजनबी ने डाला हाथ 27 वर्षीय औरत पर- Laim

एक 27 वर्षीय graphic designer औरत मंगलवार, 22 जनवरी को रात पौने आठ बजे S-Bahn द्वारा Hauptbahnhof से Laim अपने घर जा रही थी। Laim से वह पैदल अपने घर गई। घर पहुँचकर घंटी बजाने पर उसके boyfriend ने दरवाज़ा खोला, और वो अंदर घुसी। दरवाज़ा बंद होने से पहले ही अचानक पीछे से दरवाज़े पर एक अजनबी प्रगट हुआ और उसने औरत की frock के नीचे से अंदर हाथ डालकर कूल्हों को पकड़ लिया। उस औरत की चीख निकल गई, तभी उस अजनबी ने उसे छोड़ दिया और सीढ़ियों से नीचे भाग गया। औरत के boyfriend ने जब ये देखा तो वह अजनबी के पीछे सीढ़ियों में भागा। अजनबी इमारत से बाहर निकल कर Fürstenrieder Straße की ओर भाग गया और उसका कोई नामो निशान नहीं मिला।

अपराधी का ब्यौरा
आयु कोई 20 - 35 वर्ष, लंबाई 175 - 185 सेंटीमीटर, सेहत- पतला या सामान्य, काली उन की टोपी, काली जैकेट, गहरी भूरी टोपी वाली t-shirt और गहरे रंग की पेंट पहने हुए।

Hotel में लूट

Hotel में लूट- 72 वर्षीय clerk बुरी तरह घायल, 5000 Euro का इनाम घोषित

Munich. सोमवार, 21 जनवरी, सुबह सवा छह बजे, जब एक अखबार बाँटने वाली युवती Stollbergstraße पर स्थित एक hotel की reception अखबार देने पहुँची तो देखा कि होटल के clerk का शरीर खून से लथपथ, counter पर लुढ़का हुआ है। उसके सर में बहुत गहरा घाव था और उसमें से ढेर सारा खून बह रहा था। उसने तत्काल पुलिस और ambulance को phone किया। घायल व्यक्ति को तत्काल अस्पताल पहुँचाया गया और आपातकालीन operation किया गया। घटनास्थल पर ज़मीन पर पड़ा हुआ एक खाली cashbox पाया गया। अनुमानुसार कई सैंकड़े यूरो का धन लूटा गया था। clerk के सर पर किसी तीखे tool से ज़ोर से हमला किया गया था, और अपराधी बिना किसी के ध्यान में आए hotel से बाहर भागने में सफ़ल हो गए। होटल का मुख्य द्वार रात को बंद रहता है, इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि अपराधी होटल के पीछे बनी खिड़की से अंदर आए होंगे। Munich की हत्याकाँड squad (Mordkommission) ने सारी सूचना record कर ली है। squad का अनुमान है कि अपराधी चोरी की मँशा से अंदर आए होंगे। 22 जनवरी को दोपहर पौने बारह बजे एक 17 वर्षीय Ukraine के बेरोजगार व्यक्ति को पुलिस ने शक के घेरे में गिरफ्तार किया गया। अभी सूचनाएं प्राप्त करने की प्रक्रिया समाप्त नहीं हुई है। घायल की हालत अभी खतरे से बाहर बताई जा रही है लेकिन वो अभी पूछताछ की हालत में नहीं है।

Neuhausen में Apartment में चोरी- छर्रों से भरा safe गायब

मंगलवार, 22 जनवरी सुबह सवा नौ और दोपहर तीन बजे के बीच Dachauer Straße की एक apartment building में एक चोर घुस आया। उसने पहली मंज़िल के दो apartments का दरवाज़ा खोल लिया और सभी कमरों में कीमती सामान ढूँढने के लिए उथल पुथल मचा दी। एक apartment एक 39 वर्षीय जर्मन manager का है जिसमें से वो एक कीमती fountain pen और सोने की चेन ले गया। साथ ही उसने एक छोटी सी safe उठा ली जिसमें मालिक ने पिस्तौल की कोई 300 गोलियाँ संभाल कर रखी हुई थी। अगर कोई चोर तक पहुँचने में मदद कर सकता है, कृपया 089-2910-0 पर फ़ोन करे।

ऑफिस चोर हुआ अमीर

सोमवार 21 जनवरी रात साढ़े आठ बजे से मंगलवार 22 जनवरी सुबह पौने सात बजे तक एक या अधिक चोर Paul-Heyse-Straße की एक दफ़्तरी इमारत में घुस गए। उन्होने एक चिप द्वारा इमारत में प्रवेश किया। इमारत की चौथी, पाँचवीं और छठी मंज़िल से 14 लैपटॉप और दो बीमर चुरा लिए गए हैं, जिनकी मिली जुली कीमत 25000 यूरो बताई जा रही है। इतना सारा सामान चुराए जाने से अनुमान लगाया जा रहा है कि चोर / चोरों ने एक गाड़ी का इस्तेमाल किया होगा। केस म्युनिक अपराध पुलिस (Münchner Kriminalpolizei) के हाथ में चला गया है लेकिन अभी यह साफ़ नहीं हुआ कि चोर के पास चिप कहाँ से आई। पुलिस को ऐसे व्यक्तियों की मदद की ज़रूरत है जो उस समय वहाँ आस पास रहे हों और चोरों तक पहुँचने में मदद कर सकते हों या ये बता सकते हों कि लूट का माल कहाँ कहाँ बेचा जा सकता है। फ़ोन 089/2910-0

Neuhausen में चुराई गई गाड़ी के साथ दुर्घटना

22 जनवरी शाम साढे छह बजे Neuhausen के एक पेट्रोल पंप पर एक पंद्रह वर्षीय तुर्की छात्र ने एक मर्सिडीज़ गाड़ी चुरा ली। करीब साढ़े सात बजे सिविल गाड़ी में पहरा दे रही पुलिस ने Leonrodstraße पर आ रही बिना हेडलाईट चलाए एक गाड़ी को आते देखा। पुलिस ने गाड़ी का पीछा किया। उसी समय क और पुलिसकर्मी अपनी सिविल गाड़ी में Albrechtstraße से Leonrodstraße की ओर आ रहा था। जैसे ही वो Leonrodstraße में मुड़ने लगा उसने बायीं तरफ़ से आ रही पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज़ सुनी और वहीं रुक गया। तभी भाग रहे गाड़ी चोर ने आपाधापी में दायीं ओर Albrechtstraße में मुड़ने की कोशिश। लेकिन वो गाड़ी की गति को नियंत्रण में नहीं रख सका और मर्सिडीज़ गाड़ी पुलिस की गाड़ी को छूती हुई पीछे खड़ी Ford Ka को टकरा गई जिसे Neuhausen से एक 20 वर्षीय फ़ौजी चला रहा था। इससे गाड़ी चोर बहुत घबरा गया और बाहर कूद कर भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन तभी पुलिस ने उसे पकड़ लिया। पुलिसकर्मी को हल्की चोटें आई और उसे एंबुलेंस द्वारा अस्पताल पहुँचाया गया। तीनों गाड़ियों का भारी नुक्सान हुआ है लेकिन इसका अनुमान अभी नहीं बताया गया है।

Neubiberg में आमने सामने दुर्घटना

मंगलवार 22 जनवरी को शाम छह बजे एक 22 वर्षीय फ़ौजी अपनी Opel Astra से Neubiberg से छोटी सड़क के हाईवे A8 की ओर आ रहा था। जैसे ही वो हाईवे पर चढ़ने के लिए बायीं ओर मुड़ा, उसने सामने से आ रही Audi A8 को अनदेखा कर दिया और दोनों गाड़ियां बुरे तरीके से आमने सामने से टकरा गईं। Audi को क्रोशिया का एक 35 वर्षीय इंजीनियर चला रहा था जो Unterhaching की ओर से आ रहा था। उसने दुर्घटना से बचने के लिए दायीं गाड़ी मोड़नी चाही लेकिन सफ़ल नही हो सका। दोनों गाड़ियां बुरे तरीके से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। लगभग 24000 यूरो का नुक्सान बताया जा रहा है। फ़ौजी को गंभीर चोटें आई हैं और मस्तिष्काघात हुआ है और इंजीनियर को गले की हड्डियों में गंभीर मोचें आई हैं (whiplash)। दोनों को म्युनिक के अस्पतालों में दाखिल करवाया गया है। हाईवे A8 दोनों तरफ़ करीब एक घंटे के लिए बंद रहा।
स्त्रोतः पुलिस सूत्र

U-Bahn शौचालय में लड़की के साथ ज़बरदस्ती

21 जनवरी 2008 का वह दिन अन्य दिनों की ही तरह था लेकिन कहीं कुछ ऐसा होने वाला था जिसकी अपेक्षा कोई सामान्य नागरिक नहीं कर सकता था। शाम हो चुकी थी और चारों ओर धुंधलका छा गया था। शहर की लाइटें जगमगाने लगी थी। शाम के लगभग सात बजे रहे होंगे और इसी के बीच Innsbrucker Ring U-Bahn स्टेशन में भी यात्री अपने गंतव्य की ओर जाने के लिये तैयार थे। स्टेशन में चहल-पहल के बीच सभी यात्री अपने आप में मस्त थे। इसी भीड़ में शामिल थी एक 27 वर्षीय सेल्सगर्ल। जो अपना दिन भर का काम निबटा कर अपने घर वापस लौटने के लिये ट्रेन के इंतजार में खड़ी थी। तभी उसके जिस्म में हरकत हुई और जो उसे थोड़ा परेशान कर गई। इस परेशानी से निबटने वह शौचालय की ओर चल पड़ी। अपने में खोई उसने बेपरवाही से शौचालय का दरवाजा खोला और अंदर प्रवेश कर गई। अभी वह शौचालय के द्वार की सिटकनी लगाने को हुई ही थी कि अचानक उसकी छठी इन्द्रिय ने किसी खतरे का संकेत दिया। इसकी वजह थी कि उसे अचानक किसी के अंदर आने की आवाज सुनाई पड़ी थी। किसी अंदेशे का आभास होते ही उसने शौचालय से बाहर निकलने का मन बनाया ही था कि ... अचानक एक अनजाना सा चेहरा उसके सामने आ चुका था। इससे पहले कि वह सेल्सगर्ल कुछ समझ पाती उस अनजाने चेहरे ने अपने कठोर हाथों में उसे दबोच लिया था। वह उस युवती को लगभग धकेलते हुए वापस शौचालय के अंदर ले गया। इस वक्त वह युवक दरिंदा बन गया था और उसके चेहरे पर वासना के हिलोरें मार रही थीं। लगभग हैवान बन चुके उस युवक ने युवती के साथ छेड़खानी शुरू कर दी थी। वह उसके जिस्म से खेल रहा था और हैवानियत का नंगा नाच करने के लिये उसके कपड़े उतारना शुरू कर दिया था। पर तभी... खुदा ने अपनी रहमत दिखाई और उस हैवान की पकड़ युवती पर कमजोर हुई। पल भर का मौका मिलते ही युवती ने अपने बचाव में जोर जोर से चिल्लाने लगी। उसकी इन चीखों से स्टेशन गूंज उठा। उसकी चीख सुनकर न जाने कैसे अपराधी के हौसले पस्त होने लगे और उसकी पकड़ युवती से ढीली हो गई। मौका मिलते युवती भागने में कामयाब हो गई। इधर स्टेशन में जबतक कोई कुछ समझ पाता इसी बीच मौका पाकर वह अपराधी भी वहां से नदारद हो चुका था। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस भी हरकत में आ गई है और तेजी से उसकी तलाश प्रारंभ कर दी है। पुलिस ने अपराधी का ब्यौरा जारी करते हुए लोगों से भी सहयोग की अपील की है।

अपराधी का ब्यौरा
आयु कोई 25 से 28 वर्ष, लंबाई लगभग 177 सेंटीमीटर, बहुत पतला, भूरे और छोटे बाल, बिना दाढ़ी और चश्मे के, उसमें से शराब की बू आ रही थी लेकिन शराब पिए हुए नहीं लग रहा था, वो जर्मन बोल रहा था लेकिन उच्चारण पूर्वी युरोपीय देशों के जैसा था। उसने हल्की नीली जीन पहनी हुई थी। जो कोई इस व्यक्ति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है, उससे पुलिस ने अनुरोध किया है कि वो म्युनिक पुलिस मुख्यालय या फिर किसी पुलिस स्टेशन पर संपर्क करे (फ़ोन 089-2910-0)
स्त्रोतः पुलिस सूत्र

बुधवार, 23 जनवरी 2008

म्युनिक के महानगरपालिका चुनाव 2008

अब म्युनिक के महानगरपालिका चुनाव 2008 (Kommunalwahl, Stadtratwahl) में ग्यारह पार्टियां हिस्सा लेंगी। निम्नलिखित सूची में अंतिम चार पार्टियाँ नई हैं जिन्हें चुनाव में हिस्सा लेने के लिए 21 जनवरी तक नागरिकों द्वारा 1000 हस्ताक्षर एकत्रित करने थे। अंतिम दो पार्टियां Rightextremist पार्टियां हैं जो अपनी संस्कृति और भाषा बचाने पर ज़ोर देती हैं।

  • SPD, http://www.spd-muenchen.de/

  • CSU, http://www.csu-portal.de/verband/muenchen

  • FDP, http://www.fdp-muenchen.de/

  • Grünen (ग्रीन पार्टी), http://www.gruene-muenchen-stadtrat.de/

  • Rosa liste, http://www.rosaliste.de/

  • ÖDP, http://oedp.de/

  • Freien Wählern München, http://freie-waehler-muenchen.de/

  • Bayernpartei, http://landesverband.bayernpartei.de/

  • Pro München, http://promuenchen.de/

  • Bürgerinitiative Ausländerstopp München, http://auslaenderstopp-muenchen.de/, 27 Listenkandidaten + 6 Ersatzkandidaten


Oberbürgermeister बनने के लिए छह उम्मीदवार हैं-

  1. SPD- Christian Ude

  2. CSU- Josef Schmid

  3. FDP- Michael Matter

  4. Grünnen- Hep Monatzeder

  5. ÖDP- Markus Hollemann

  6. Freien Wählern München- Michael Piazolo


Bayernpartei का बयान-
हम चाहते हैं कि म्युनिक बायरिश बना रहे। हालाँकि ये बायरन की राजधानी है, लेकिन यहाँ असली बायरन बोलने वाले लगभग नदारद हो गये हैं। या तो यहाँ दूसरे राजयों के लोग हैं या फिर विदेशी हैं। एक बार तो हमारे एक दोस्त के बेटे ने जब स्कूल में बायरिश लहज़े में बात की तो उसे डाक्टर के पास भेज दिया गया।

Pro München का बयान
Stefan Werner from http://promuenchen.de/
विदेशियों द्वारा अपराध बढ़ते जा रहे हैं। हम इसके खिलाफ़ कारवाई करना चाहते हैं। ऐसा नहीं कि जर्मन लोग अपराध नहीं करते लेकिन विदेशियों का अनुपात कहीं अधिक है। हम विदेशियों से ये भी उम्मीद करते हैं कि वे इस देश में अपने खर्च पर रहें, न कि सरकार के खर्च पर।

म्युनिक शहर बहुत सारे नागरिकों के साथ बात कर रहा है कि अगर वे Oberbürgermeister जाएं तो वे क्या करेंगे। ढेर सारे बढ़िया वीडियो आप यहाँ देख सकते हैं।
http://www.muenchen.de/Rathaus/kommunalwahl/209733/videos.html

बुधवार, 9 जनवरी 2008

भारतीय मूल के निवासी चुनाव में

Ani-ruth Lugani
भारतीय मूल के 39 वर्षीय म्युनिक निवासी अनिरुद्ध लुगानी (Ani-Ruth K. Lugani, http://lugani.de/) इन चुनावों में SPD पार्टी (http://www.spd-muenchen.de/) की तरफ़ से Stadtrat और BA (Schwabing-West), दोनों चुनावों में खड़े हो रहे हैं। Stadtrat में SPD पार्टी की 35 सीटें हैं और उनका स्थान SPD पार्टी के 80 उम्मीदवारों में 51वें नंबर पर है। यानि आप उन्हें वोट देकर ऊपर के 35 सदस्यों तक पहुँचा सकते हैं, ताकि वे Stadtrat में चुने जा सकें। BA (Schwabing-West)में SPD पार्टी की 14 सीटें हैं जिनमें वे पाँचवें स्थान पर हैं।

वे दो वर्ष के थे जब वे अपने पिता के साथ भारत से जर्मनी आ गए। वे पच्चीस वर्ष से म्युनिक में Schwabing में रह रहे हैं। उनका सारा परिवार, बहन भाई, माँ बाप और दोस्त सब पास में ही रहते हैं। उन्होंने LMU म्युनिक से MBA (BWL, Betriebswirtschaftslehre) किया और FH म्युनिक से अर्थशास्त्र (Wirtschaftswissenschaften, Economics) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कई बड़ी कंपनियों के साथ काम किया जैसे Dornier, Phonehouse, e-Sixt, Kultfabrik। फिलहाल वे एक परामर्शी सेवाएँ देने वाली कंपनी (Consultancy Company, Unternehmensberatungsfirma) में कार्यरत हैं।

उन्हें स्कूल के दिनों से ही राजनीति में रुची थी और कई सेमीनारों में जाते रहते थे। वे स्कूल की प्रेस और बायरन की युवा प्रेस में काम करने लगे। सन 1999 में पढ़ाई के अंतिम दिनों में उनका वास्ता SPD पार्टी से पड़ा जहाँ से उनका राजनैतिक सफ़र शुरू हुआ। सन 2002 के Schwabing-West के BA चुनावों में वे SPD की तरफ़ से चुन लिए गए। 2005 से वे Schwabing-West में SPD पार्टी के vice-speaker चुन लिए गए।

भारतीय मूल के होने के कारण वे विदेशियों की तकलीफ़ों को खूब समझते हैं। सामाजिक परिवेष का अंतर, भाषा की दिक्कतों को वे आसान करना चाहते हैं। जैसे स्कूल आधे दिन की बजाय पूरा दिन खुले रहने चाहिए ताकि वे बच्चे जिनके माँ बाप जर्मन नहीं बोलते, उन्हें जर्मन भाषा सीखने का अधिक मौका मिले। जर्मन सीखना यहाँ जीवन में सफ़लता प्रप्त करने और यहाँ के समाज में घुलने मिलने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जर्मन भाषा सीखने का मतलब अपनी पहचान खोना नहीं है। इसके इलावा विदेशों से आकर बसे कुछ लोग अपने बच्चों को Kindergarten नहीं भेजते हैं। हम इसे भी अनिवार्य बनाना चाहते हैं क्योंकि बच्चा Kindergarten में ही स्कूल जाने लायक जर्मन सीखता है। अगर बच्चा बिना Kindergarten गए छह साल की उम्र में सीधा स्कूल जाता है तो वह जर्मन बच्चों की तुलना में वहाँ बहुत कम सीख पाएगा और दूसरे बच्चों के साथ दोस्ती नहीं कर पाएगा।

हमारा दूसरा मुद्दा है रहने की जगह। म्युनिक में ज़मीन, घरों और अपार्टमेंटों की कीमत बहुत अधिक हैं। किराए भी बहुत अधिक हैं। हम कोशिश कर रहे हैं कि जो लोग अच्छी कमाई के बावजूद म्युनिक में अपना घर नहीं खरीद पाते और जिनके छोटे बच्चे हैं, उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए ताकि लोग म्युनिक में ही रहें, बाहर न जाएं। ये सहायता €300 प्रति वर्गमीटर तक हो सकती है। इसे Munich Model का नाम दिया गया है। SPD म्युनिक शहर की ज़मीन, घर, अपार्टमेंट, बिजली, यातायात आदि शहर के नियंत्रण में ही रहने देना चाहती है, बाहर की कंपनिओं को नहीं बेचना चाहती। वो चाहती है कि शहर का पैसा शहर में ही रहे, दूसरी जगहों पर न जाए। इससे कीमतें कम रहती हैं और गुणवत्ता बरकरार रहती है। जैसे बायरन सरकार ने बिजली पैदा करने वाली कंपनी e-on को बेच दिया। अब अगर e-on बिजली की कीमतें बढ़ाती है तो इसमें बायरन सरकार कुछ नहीं कर सकती। इसलिए हम चाहते हैं कि SWM (Stadtwerke München, बिजली और पानी की कंपनी) म्युनिक शहर के पास रहे। अगर वो मुनाफ़ा कमाती है तो ये धन शहर के अन्य कार्यों के लिए उपयोग होता है जैसे बच्चों के लिए Kindergarten बनवाना। लेकिन अगर इसे बेच दिया जाए तो मुनाफ़ा नहीं और चला जाएगा। पिछले साल SWM ने शहर को 40 करोड़ यूरो कमाकर दिए।

SPD चाहती है कि सभी लोग कम से कम सम्मानजनक जीवन जीने योग्य वेतन पाएं।

हम जर्मन लोगों से थोड़ी और सहनशीलता चाहते हैं। कोई तकलीफ़ होने पर केवल नियमों के अनुसार चलकर सीधे एक्शन ले लेने की बजाय बातचीत और विचार विमर्श करके समस्या को सुलझाना बहुत अच्छा साबित हो सकता है। थोड़ी 'चलता है' टाईप प्रवृत्ति जर्मन लोगों को भी अपनानी चाहिए। हम धार्मिक सहिष्णुता भी चाहते हैं। अगर यहाँ हज़ारों लाखों मुस्लिम, हिन्दू आदि रहते हैं और अपने लिए बिना शहर से आर्थिक मदद लिए मस्जिद, मंदिर बनाना चाहते हैं तो इसमें क्या बुराई है? भारत में मंदिर हैं, मस्जिदें हैं, चर्चें हैं, फिर भी अधिकतर वहाँ शाँति रहती है। इस संदर्भ में भारत से कुछ सीखा जा सकता है।

इसके इलावा जर्मनी को थोड़ा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करना चाहिए। सरकारी दफ़्तरों में अभी भी केवल जर्मन बोली जाती है जिससे नए लोगों को काफ़ी तकलीफ़ होती है। दूसरे देशों से पढ़ने आए छात्रों के लिए Kreisverwaltungreferat में युनिवर्सिटी के स्टैंड लगाए जा सकते हैं जिससे छात्रों का सारा काम एक ही जगह पर हो जाए।

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राजनैतिक मुख्य मुद्देः
प्रवासन और अनुकरण (Migration und Integration), बच्चे, आवास, शहरी समाज और संस्कृति
शहर सामाजिक जीवन के सुधार के लिए भारतीय सहिष्नुता और सहनशीलता।

Stadtrat के लए वोट इस प्रकार दें (चित्र देखें)
सूची नंबर दो देखें
कोई वोट बेकार न जाए, इसलिए पहले SPD पर क्रास कीजिए।
फिर तीन वोट Christian Ude को और तीन वोट Christine Strobl को दें (जो पहले और दूसरे नंबर पर हैं)
फिर तीन वोट 51वें नंबर पर खड़े अनिरुद्ध लुगानी को दें
www.lugani.de
SPD Wahlvorschlag

Politische Schwerpunkte:
Migration und Integration, Soziales und Kinder, Wohnen, Stadtteilkultur.
„Indische Toleranz und Geduld für die Weiterentwicklung der sozialen Stadtgesellschaft.
Ich möchte mich für ein Miteinander der Kulturen in München einsetzen.“

रविवार, 6 जनवरी 2008

भारतीयों का परिवार बना म्युनिक मेला

म्युनिक मेला वेबसाईट (http://www.munichmela.de/) म्युनिक और आसपास के शहरों में रहने वाले भारतीयों के लिए सूचना, समस्यायें और अनुभव बाँटने का एक प्रमुख मँच है जो यहाँ तकरीबन आठ साल से परिवार सहित रह रहे श्री कपिल गुप्ता के दिमाग की उपज है। पेश हैं उन के साथ हुई बातचीत के कुछ अँश।

बसेराः म्युनिक मेला आखिर क्या है और इसकी प्रसिद्धि का क्या कारण है?
कपिल गुप्ताः म्युनिक मेला एक पोर्टल है जहाँ भारत एवं अन्य देशों से स्थायी या अस्थायी तौर पर आये लोगों के लिये जर्मनी के बारे में मूलभूत और ज़रूरी जानकारी है जैसे संस्कृति, यातायात, बैंक, बिजली, घर, बीमा, चिकित्सा, टेलिफ़ोन, रेडियो, टीवी, पोस्ट, रेलवे आदि। इसके इलावा लम्बे समय तक वाले लोगों के लिए यहाँ मुख्य भारतीय किराने की दुकानों, रेस्तराँ, सिनेमा, टीवी डीलरों, पुस्तकालयों, स्पोर्टस क्लबों, मंदिर, स्कूलों, दूतावास आदि के पते हैं। इसके साथ ही इसमें एक फ़ोरम है जो यहाँ रहने वाले भारतीयों के लिये एक परिवार जैसा है जहाँ सब लोग इस अलग भाषा, मौसम और संस्कृति वाले देश में अपनी सूचनायें, समस्यायें, और अनुभव बाँटते हैं, एक दूसरे से जुड़ते हैं। ये फ़ोरम भी इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण है।

भले ही अंग्रेज़ी में अन्य देशों के नागरिकों द्वारा चलाये जा रहे फ़ोरम भी हैं लेकिन हम भारतीयों की समस्यायें अलग हैं और एक भारतीय हर बात पर एक भारतीय की राय लेना ही पसंद करता है। चूंकि ये खास भारतीयों के लिए इस तरह का पहला मंच था जिसका उद्देश्य केवल सेवा था न कि व्यवसाय, इसलिए ये अब भी उतना ही पसंद किया जाता है। इसके इलावा साईट का नाम भी आसानी से मूँह पर चढ़ जाता है और नाम में ही इस साईट का उद्देश्य भी नीहित है (म्युनिक + मेला)।

बसेराः इसकी शुरूआत कब और कैसे हुई? कुछ इसकी यात्रा के बारे में बताएं।
कपिल गुप्ताः मैं जर्मनी में अपनी कंपनी के द्वारा यहाँ 1999 के अंत में आया। उस समय यहाँ बहुत कम उच्च शिक्षित भारतीय थे। उस समय जर्मनी में काम करना या उच्च शिक्षा प्राप्त करना इतना प्रसिद्ध नहीं था। मुझे शुरूआत में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा। किसी भी चीज़ के बारे में जानकारी का बहुत अभाव था। छोटी छोटी बातों की जानकारी के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा। उस समय कोई भी सरकारी वेबसाईट अंग्रेज़ी में नहीं था जैसा कि आज है। सभी वेबसाईट केवल जर्मन भाषा में होते थे। मैंने जैसे तैसे अपना काम चलाया लेकिन उससे मुझे केवल वही सूचना मिलती थी जो मैं ढूँढता था। उसके इलावा भी ऐसी बहुत सी बाते होती थीं जो महत्वपूर्ण होती थीं लेकिन इतनी ज़रूरी नहीं थीं और जिनके बारे में मुझे पता नहीं चलता था। जब कुछ महीनों या साल बाद मुझे पता चलता तो मैं सोचता कि ये मुझे पहले क्यों नहीं पता चला। ये सब इस लिये क्योंकि विदेशियों के लिए कोई विशेष आयोजित मंच नहीं था जिसमें उन्हें हर तरह की महत्वपूर्ण सूचनाएं दी जाएं।

अगस्त 2000 में जर्मन सरकार ने ग्रीन कार्ड की योजना चालू की जिसके तहत जर्मनी में कम्प्यूटर इंजीनियरों की कमी को पूरा करने के लिए अन्य देशों से कम्प्यूटर इंजीनियरों से माँग की जा रही थी, उन्हें आकर्षक वेतन और अन्य सुविधाएं दी जा रहीं थीं। इसके योजना के तहत भारत से भी काफ़ी युवा और उच्च शिक्षित लोग आने लगे। मेरी भी कई लोगों से जान पहचान हुई। रोचक बात ये थी कि वे भी वही प्रश्न पूछते थे जो कभी मैं पूछा करता था जैसे रहने के लिए अपार्टमेंट कैसे ढूँढा जाए, किराए के अनुबंध (contract) में क्या क्या होता है, बैंक में खाता कैसे खोला जाए, टैक्स का क्या सिस्टम है, यहाँ कोई मंदिर है क्या, क्या कहीं से भारतीय राशन खरीदा जा सकता है आदि आदि। तो मैंने सोचा कि मेरे पास काफ़ी सारी जानकारी है तो क्यों न मैं उसे किसी वेबसाईट पर डाल दूँ जहाँ सब लोग बिना किसी से पूछे सूचना प्राप्त कर सकें। मैं वेबसाईट बनाना नहीं जानता था लेकिन थोड़ा बहुत सीखने के बहाने, कुछ मेहनत करके मैंने जैसे तैसे 2001 के शुरू में एक छोटा मोटा वेबसाईट बनाया जिसमें यहाँ के बारे में मूलभुत जानकारी थी। मैंने इसके बारे में अपने खास दोस्तों को बताया और गूगल में रजिस्टर किया। इससे मुझे बहुत सारी अच्छी प्रतिक्रियाएं और प्रशंसा मिली। मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी लेकिन इससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली और मैं इसे अच्छा बनाने के लिए और जी जान से जुट गया।

कई लोगों के जुड़ जाने के बाद हमने एक रेस्तराँ में एक बैठक आयोजित की जिसमें केवल 17 लोग थे। मुझे याद है कि वे 17 लोग जब आपस में मिले तो वे भाव विभोर हो उठे। कुछ की आँखों में तो आँसू तक आ गए। उस समय यहाँ विरला ही कोई भारतीय नज़र आता था। उनका यहाँ कोई दोस्त या जानकार नहीं होता था। हमने वहाँ Dumb Charades खेला, खाना खाया, फ़ोटो वोटो खींचे। हर कोई इतना खुश था कि इस बैठक को और भी बड़े स्तर पर आयोजित करने की माँग होने लगी। फिर हमने दो महीने में एक बार ये बैठक आयोजित करनी आरंभ की जिसे हमने को Desi Club Meet का नाम दिया। इसका आयोजन हम करीब दस लोगों की एक टीम बनाकर एक पूरे रेस्तरां को बुक करके बढ़िया ढंग से करते थे। वहाँ सैंकड़ों की संख्या में भारतीय आते थे, एक दूसरे को जानने लगते थे, इकट्ठे कोई खेल खेलते थे, खाना खाते थे। उनमें कई तो बहुत अच्छे दोस्त बन जाते थे। छह महीनों के अंदर म्युनिक मेला यहाँ रहने वाले युवा प्रोफ़ेश्नल लोगों के लिए एक बड़ा और प्रमुख मंच बन गया। एक बार उस समय के भारतीय दूतावास के महावाणिज्यदूत श्री रवि भी हमारी Meet में आए जिससे उन्हें यहाँ रह रहे भारतीय लोगों से सीधे जुड़ने का मौका मिला।

बसेराः अब तक की सबसे यादगार घटना कौन सी है?
कपिल गुप्ताः एक बड़ा आयोजन हमने किया स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) को जो हमारी सबसे हसीन यादगार है। 15 अगस्त को बायरन में भी एक धार्मिक छुट्टी (Mariä Himmelfahrt) होती है। हमने फ़ोरम पर 15 अगस्त को भ्रमण के लिये म्युनिक के पड़ोस में स्थित Tegernsee नामक एक बड़ी झील (http://www.tegernsee.de/) पर जाने की घोषणा की। इसपर हम करीब पचास साठ लोग म्युनिक रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा हुए और बायरन टिकेट लेकर (बाक्स देखें) ट्रेन से वहाँ गए। लोग अपने साथ खाना बनाकर लाए, भारत के राष्ट्रीय झंडे तैयार करके लाए। वो अविश्वसनीय पल जब हम सब झील के पास खड़े होकर राष्ट्रीय गान गा रहे थे अब भी हमारी आँखों में उतना ही ताज़ा है। छोटे छोटे बच्चों के हाथों में राष्ट्रीय झंडे थे। फिर हम सबने इकट्ठे खाना खाया। उसके बाद सबसे मज़ेदार घटना वापस आते हुए हुई। वापसी की ट्रेन में हमने लगभग पूरी बोगी घेर ली और अंताक्षरी खेलते हुए म्युनिक वापस आए। जर्मनी में इतने सारे भारतीय इकट्ठे होकर ट्रेन में गाने गा रहे हों, ये अब भी अविश्वसनीय है। सब लोगों को लग रहा था जैसे वो भारत में ही हों। लोग इतने भावुक हो रहे थे कि उनकी आँखें भीग रहीं थीं। गा गा कर उनके गले बैठ गए थे। उस समय ये फ़ोरम देशप्रेम, बच्चों को शिक्षा और मौज मस्ती का एक अनोखा संगम बन गया। लोग आगामी आयोजनों की बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगे।

एक खुशीनुमा सिलसिला ये भी रहा कि भारतीयों में बहुत शादीशुदा लोग भी थे। जब पति लोग काम पर चले जाते थे तो उनकी घरेलू पत्नियाँ घर में बैठी बोर हो जाती थीं। तो उन्होंने भी म्युनिक मेला द्वारा 'Munichmela Ladies Club' बना लिया, जबकि मेरा इससे कोई लेना देना नहीं था। लेकिन इससे लोगों के असीम जुड़ाव की अनुभुति होती थी, लगता था कि इससे सही लोग जुड़े हुए हैं।

बसेराः क्योंकि ये फ़ोरम / पोर्टल मुख्य तौर जर्मनी के ग्रीन कार्ड अभियान के अंतर्गत आये कंप्यूटर इंजीनियरों द्वारा या उच्च शिक्षा के लिए आये छात्रों द्वारा उपयोग किया जा रहा था, क्या आपको इन लोगों को एकजुट करने, एक मंच पर लाने के लिए जर्मन सरकार या समाज से भी कुछ पहचान मिली?
कपिल गुप्ताः उस समय बायरन सरकार भी भारत से निवेष के लिये कंपनिओं को आकर्षित करने के लिए अभियान चला रही थी और बायरन में आए प्रोफ़ेश्नल लोगों के लिए उचित सुविधाएं प्रदान करने और उन्हें जर्मन संस्कृति में आत्मसात करने (Integration) के रास्ते खोज रही थी ताकि बाहर के लोग जर्मन समाज में अच्छी तरह घुलमिल जाएं। जर्मनी अमरीका की तरह बहुसंस्कृतिक देश नहीं है। यहाँ Integration राजनीति का एक प्रमुख मुद्दा है। म्युनिक मेला केवल भारतीयों द्वारा ही नहीं बल्कि पाकिस्तानियों, बंगलादेशियों, अफ़्रीकियों, यहाँ तक कि पूर्वी युरोपीय देशों के लोगों द्वारा उपयोग किया जा रहा था (और है), क्योंकि ये अंग्रेज़ी में है। तो बायरन सरकार के लिए भी म्युनिक मेला केवल भारत ही नहीं बल्कि तमाम अन्य संस्कृतियों में झाँकने का एक द्वार बन गया। एक तरह से देखा जाए तो म्युनिक मेला सरकार का ही काम कर रहा था। उन्हें भी फ़ोरम म्युनिक मेला फ़ोरम पढ़कर लोगों की आम समस्याओं का अंदाज़ा होता था। खुशकिस्मती से म्युनिक मेला को भी उनके कुछ कार्यक्रमों और बैठकों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। मेरी राय माँगी जाने लगी, मुझे अन्य भारतीयों को वहाँ बुलाने की अनुमति भी मिली। खासतौर पर भारतीय खाना परोसा जाता था। बहुत सारे म्युनिक मेला के सदस्यों को वहाँ मंत्रियों, रोजगार कार्यालय (Arbeitsamt) के निर्देशक आदि से मिलने का मौका मिला।


बाक्स-बायरन टिकेट (Bayern Ticket)
बायरन टिकेट यहाँ की रेलवे कंपनी 'डायचे बान' (Deutsche Bahn) द्वारा जारी एक सस्ती यात्रा टिकेट है (€27) जिससे पाँच लोग एक साथ बायरन प्रदेश के अंदर अंदर क्षेत्रीय ट्रेनों (IRE, RE, RB और S-Bahn) और बसों द्वारा द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर सकते हैं। ये टिकेट सोमवार से शुक्रवार तक सुबह नौ बजे से अगले दिन सुबह तीन बजे तक मान्य है, शनिवार, रविवार और बायरन प्रदेश की छुट्टियों के दिन सुबह बारह बजे से अगले दिन सुबह तीन बजे तक मान्य है। इस अवधि के दौरान आप जितनी चाहें यात्राएं कर सकते हैं। इस टिकेट से एक्सप्रेस ट्रेन (EC, ICE) के द्वारा यात्रा करने की अनुमति नहीं।


बसेराः इस फ़ोरम / साईट के विस्तार की भविष्य में क्या योजनएं हैं? क्या इसका कोई व्यवसायिक दृष्टिकोण भी है?
कपिल गुप्ताः मैंने ये फ़ोरम सेवा के लिए शुरू किया, उस समय जब यहाँ कुछ भी नहीं था। अपने इस मूल उद्देश्य में म्युनिक मेला बहुत सफ़ल रहा है और आज भी सफ़ल है। आज भी ये लोगों के दिलों में है। उनका प्यार ही मेरी कमाई है। मैंने इसे कभी व्यवसायिक स्तर पर चलाने की नहीं सोची। कुछ लोग समझते हैं कि म्युनिक मेला किसी बड़ी कंपनी द्वारा चलाया जा रहा है, ऐसा नहीं है। मैं अकेला ही इसे चला रहा हूँ। इसमें मेहनत बहुत है और प्रतिफल केवल प्यार है जो लोगों से मिलता है। करियर और परिवार फिलहाल मेरी प्राथमिकतायें हैं। लेकिन हाँ अगर कोई इसमें किसी तरह का योगदान देना चाहता है तो उसका तहेदिल से स्वागत है।

बसेराः आजकल तो इस तरह और भी कई फ़ोरम और प्लेटफ़ार्म आ गए हैं। इस स्थिति आप म्युनिक मेला को कहाँ पाते हैं।
कपिल गुप्ताः जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि म्युनिक मेला अव्यवसायिक साईट है और अभी भी अपने मूल उद्देश्य पर टिका हुआ है। इसे किसी से प्रतिस्पर्द्धा नहीं है, फिर भी सफ़लतापूर्वक चल रहा है। अगर अन्य फ़ोरम भारतीय समुदाय की तरह से सेवा करते हैं तो मैं उन्हें प्रोत्साहन ही दूँगा और चाहुँगा कि वे खूब सफ़ल हों।

शनिवार, 5 जनवरी 2008

यूँ रही म्युनिक में 31 दिसंबर की शाम

(status: updated uptill now available information, more information might come)
नये साल के उदय की प्रतीक्षा हर किसी को रहती है। खासकर बच्चों को जो पटाखे बजाने को उतावले होते हैं, क्योंकि केवल नए साल के अवसर पर ही पटाखे बिकते हैं, वो भी केवल कुछ दिनों के लिये। या फिर ये मौका होता है पुराने दोस्तों या परिवार के बिछड़े सदस्यों से काफ़ी समय बाद दोबारा मिलने का। म्युनिक भी नए साल की प्रतीक्षा में खूब सजा हुआ था। लोग भी इस विशेष अवसर पर शहर में चल रहे अनेक कार्यक्रमों का आनंद उठा रहे थे। Marienplatz, Leopoldstraße, Viktualienmarkt पूरी तरह रंगबिरंगी रौशनी और मधुर संगीत में डूबे हुए थे। Olympiapark पर हर साल की तरह तो पटाखों, आतिशबाजियों का भव्य शो हुआ जहाँ हज़ारों की संख्या में लोग इकट्ठा हुये। सभी होटलों, क्लबों, रेस्तरां ने इस अवसर के लिये खास कार्यक्रम तैयार किये। कई भारतीय रेस्तरां में भी मेहमानों ने लाईव संगीत का लुत्फ़ उठाया। ठीक बारह बजे सब लोग पटाखे बजाने या दूसरे लोगों को पटाखे बजाते हुये देखने के लिये बाहर आ गये। सारा आकाश पटाखों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

म्युनिक निवासी श्याम आर्य लगभग सभी भारतीय उत्सवों और अन्य अवसरों पर भारतीयों के इकट्ठा होने का मंच प्रदान करने की अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं। इस अवसर पर भी उन्होंने विशेष पार्टी का आयोजन किया जिसमें ढेर सारे भारतीय, अफ़्गानी और जर्मन लोग हिन्दी, अफ़्गानी गानों पर सुबह चार बजे तक थिरकते रहे। हज़ारों वाट के स्पीकरों पर जब 'बिंदिया चमकेगी' जैसे पुराने गानों के रीमेक चलते हैं तो कदम खुद ब खुद झूमने लगते हैं। (fotos: http://arya-events.de/photoDetails.php?id=59)

आइये सुनें लोग अपने बारे में क्या कहते हैं।

Marion Klein, 32
हम 13 दोस्तों ने इकट्ठे होकर पहले रेस्तराँ में खाना खाया और ब्लाईगीज़न खेला (Bleigießen)। ब्लाईगीज़न भविष्यवाणी का खेल है जिसमें सीसे (Lead) या कली (Tin) के छोटे से टुकड़े को चम्मच में रख कर मोमबत्ती के ऊपर रखकर पिघलाया जाता है और फिर पानी में फ़ेंका जाता है जिससे वो विभिन्न आकृतियों में जम जाता है। फिर उन आकृतियों का कोई मतलब निकाला जाता है जैसे लम्बे कपड़े पहने महिला, अजीबो गरीब दाँत, और भविष्यवाणी की जाती है। बहुत लोग इसे खेलकर मज़ा लेते हैं। उसके बाद रात बारह बजे हम टॉलवुड मेले के तंबू में चले गये जहाँ एक बैंड बहुत बढ़िया संगीत बजा रहा था। उन्होंने बहुत सारे प्रसिद्ध गायकों के गाने गाये जैसे मेडोन्ना, आब्बा, क्वीन। हम सुबह चार बजे तक नाचते रहे।


Sigrid Moser, 40.
31 दिसंबर 2007 की शाम मेरी सबसे यादगार शाम थी। करीब दस साल के बाद हमारा लगभग पूरा परिवार दोबारा इकट्ठा हुए। मेरी दो बहनें परिवार सहित अलग अलग शहरों में रहती हैं। उनमें से एक के घर हम सब इकट्ठा हुये। मेरी बूढ़ी माँ भी साथ थीं। मेरे भानजे अब बड़े हो गये हैं लेकिन एक अभी नौ साल का है। हमने इकट्ठे खाना खाया, विभिन्न तरह के गलासों से संगीत वाद्य बनाया जिसके ऊपर गीली उंगली फेरने से विभिन्न स्वर निकलते हैं। हमें बहुत आनंद आया।

Matthias Köhler, 35

31 दिसंबर 2007 को मैं आस्ट्रिया में स्नोबोर्डिंग (snowboarding) करने गया। इस बार बर्फ़ बहुत अच्छी पड़ी है और मैंने पिछले तीन साल से स्नोबोर्डिंग नहीं की थी। वहाँ मैं एक दोस्त के यहाँ रुका। बहुत आनंद आया।

Sylvie Bantle
मैं और मेरे पति Neuhausen में रहते हैं। रात को हम पास में स्थित Nymphenburger Kanal पर गए थे जहाँ हर वर्ष 31 दिसंबर को रात बारह बजे बहुत सारे लोग Sekt और पटाखे लेकर पुल के पास इकट्ठे हो जाते हैं। इस बार भी वहाँ खूब पटाखे छूटे। हम रात दो बजे तक वहाँ रहे।