शुक्रवार, 7 मार्च 2008

हरि ओम मंदिर में महाशिवरात्रि

गुरुवार 6 फरवरी को म्युनिक के हरि ओम मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व हर्षोल्लास से मनाया गया। इस उपलक्ष्य में शिव पूजा, आरती, शिव पुराण पाठ, भारतनाट्यम एवं शिव जागरण का आयोजन हुआ।

शाम छह बजे का समय। मंदिर खूब सजा हुआ था और पचासों बच्चे, बड़े, बूढ़े लोग पारंपारिक वेश-भूषाओं में सजधज कर आए हुए थे। धूपबत्ती की भीनी भीनी खुश्बू और मंत्रों की आवाज़ में डूबे हुए मंदिर में पवित्र माहौल बना हुआ था। पंडाल की एक ओर जिन श्रद्धालुओं ने शिवरात्रि का व्रत और उपवास रखा हुआ था, वे पूजा अर्चना कर रहे थे। करीब डेढ़ घंटे की इस पूजा में गणेश, पार्वती, नंदीश्वर और शिव की पूजा की गई। दूसरी ओर शिव पुराण का पाठ चल रहा था। पीछे भक्तगण आपस में मेल मिलाप कर रहे थे, चाय नाश्ता कर रहे थे और बच्चे आपस में खेल रहे थे। करीब साढ़े आठ बजे आरती हुई। फिर श्रीमति चंद्रा देवी ने भारतनाट्यम पेश किया (http://www.chandra-devi.de/)। इसी दौरान भांग परोसी गई और शिव प्रसाद बाँटा गया। फिर उसके बाद रात भर शिव जागरण किया गया और पूजा को तीन बार और दोहराया गया। जिन श्रद्धालुओं ने उपवास रखा हुआ था, उन्होंने छत्तीस घंटे तक कुछ भी नहीं खाया पीया और पूर्ण मौन धारण किया हुआ था। जिन्होंने व्रत रखा था उन्होंने पूजा के बाद दूध वाली चाय पी। पूजा के दौरान शिवलिंग को कई बार पानी, घी, दूध आदि से स्नान करवाया गया, बेलपत्र चढ़ाए गए।

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। (स्रोतः विकिपीडिया)

गौरतलब है कि डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में ही हरि ओम मंदिर म्युनिक में रह रहे हिन्दू समुदाय में काफ़ी लोकप्रिय हो गया है। हर रविवार यहाँ ढेर सारे श्रद्धालू एकत्रित होते हैं और पूजा पाठ, कीर्तन आदि करते हैं, लंगर का आनंद लेते हैं। सारे हिन्दू पर्व यहाँ विधिवत मनाए जाते हैं। इसका मुख्य श्रेय यहाँ रहने वाले अफ़्गानी हिन्दूओं को जाता है जो ज़मीनी स्तर पर सारा काम करते हैं। मंदिर के ट्रस्टी राकेश मेहरा बताते हैं कि पर्दे के पीछे इतना काम होता है जो बाहर से नज़र नहीं आता। अपने व्यवसाय और परिवार से समय निकाल की मंदिर की सफ़ाई, खाना बनाना, खरीदारी आदि का ध्यान रखना पड़ता है।