रविवार, 6 जनवरी 2008

भारतीयों का परिवार बना म्युनिक मेला

म्युनिक मेला वेबसाईट (http://www.munichmela.de/) म्युनिक और आसपास के शहरों में रहने वाले भारतीयों के लिए सूचना, समस्यायें और अनुभव बाँटने का एक प्रमुख मँच है जो यहाँ तकरीबन आठ साल से परिवार सहित रह रहे श्री कपिल गुप्ता के दिमाग की उपज है। पेश हैं उन के साथ हुई बातचीत के कुछ अँश।

बसेराः म्युनिक मेला आखिर क्या है और इसकी प्रसिद्धि का क्या कारण है?
कपिल गुप्ताः म्युनिक मेला एक पोर्टल है जहाँ भारत एवं अन्य देशों से स्थायी या अस्थायी तौर पर आये लोगों के लिये जर्मनी के बारे में मूलभूत और ज़रूरी जानकारी है जैसे संस्कृति, यातायात, बैंक, बिजली, घर, बीमा, चिकित्सा, टेलिफ़ोन, रेडियो, टीवी, पोस्ट, रेलवे आदि। इसके इलावा लम्बे समय तक वाले लोगों के लिए यहाँ मुख्य भारतीय किराने की दुकानों, रेस्तराँ, सिनेमा, टीवी डीलरों, पुस्तकालयों, स्पोर्टस क्लबों, मंदिर, स्कूलों, दूतावास आदि के पते हैं। इसके साथ ही इसमें एक फ़ोरम है जो यहाँ रहने वाले भारतीयों के लिये एक परिवार जैसा है जहाँ सब लोग इस अलग भाषा, मौसम और संस्कृति वाले देश में अपनी सूचनायें, समस्यायें, और अनुभव बाँटते हैं, एक दूसरे से जुड़ते हैं। ये फ़ोरम भी इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण है।

भले ही अंग्रेज़ी में अन्य देशों के नागरिकों द्वारा चलाये जा रहे फ़ोरम भी हैं लेकिन हम भारतीयों की समस्यायें अलग हैं और एक भारतीय हर बात पर एक भारतीय की राय लेना ही पसंद करता है। चूंकि ये खास भारतीयों के लिए इस तरह का पहला मंच था जिसका उद्देश्य केवल सेवा था न कि व्यवसाय, इसलिए ये अब भी उतना ही पसंद किया जाता है। इसके इलावा साईट का नाम भी आसानी से मूँह पर चढ़ जाता है और नाम में ही इस साईट का उद्देश्य भी नीहित है (म्युनिक + मेला)।

बसेराः इसकी शुरूआत कब और कैसे हुई? कुछ इसकी यात्रा के बारे में बताएं।
कपिल गुप्ताः मैं जर्मनी में अपनी कंपनी के द्वारा यहाँ 1999 के अंत में आया। उस समय यहाँ बहुत कम उच्च शिक्षित भारतीय थे। उस समय जर्मनी में काम करना या उच्च शिक्षा प्राप्त करना इतना प्रसिद्ध नहीं था। मुझे शुरूआत में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा। किसी भी चीज़ के बारे में जानकारी का बहुत अभाव था। छोटी छोटी बातों की जानकारी के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा। उस समय कोई भी सरकारी वेबसाईट अंग्रेज़ी में नहीं था जैसा कि आज है। सभी वेबसाईट केवल जर्मन भाषा में होते थे। मैंने जैसे तैसे अपना काम चलाया लेकिन उससे मुझे केवल वही सूचना मिलती थी जो मैं ढूँढता था। उसके इलावा भी ऐसी बहुत सी बाते होती थीं जो महत्वपूर्ण होती थीं लेकिन इतनी ज़रूरी नहीं थीं और जिनके बारे में मुझे पता नहीं चलता था। जब कुछ महीनों या साल बाद मुझे पता चलता तो मैं सोचता कि ये मुझे पहले क्यों नहीं पता चला। ये सब इस लिये क्योंकि विदेशियों के लिए कोई विशेष आयोजित मंच नहीं था जिसमें उन्हें हर तरह की महत्वपूर्ण सूचनाएं दी जाएं।

अगस्त 2000 में जर्मन सरकार ने ग्रीन कार्ड की योजना चालू की जिसके तहत जर्मनी में कम्प्यूटर इंजीनियरों की कमी को पूरा करने के लिए अन्य देशों से कम्प्यूटर इंजीनियरों से माँग की जा रही थी, उन्हें आकर्षक वेतन और अन्य सुविधाएं दी जा रहीं थीं। इसके योजना के तहत भारत से भी काफ़ी युवा और उच्च शिक्षित लोग आने लगे। मेरी भी कई लोगों से जान पहचान हुई। रोचक बात ये थी कि वे भी वही प्रश्न पूछते थे जो कभी मैं पूछा करता था जैसे रहने के लिए अपार्टमेंट कैसे ढूँढा जाए, किराए के अनुबंध (contract) में क्या क्या होता है, बैंक में खाता कैसे खोला जाए, टैक्स का क्या सिस्टम है, यहाँ कोई मंदिर है क्या, क्या कहीं से भारतीय राशन खरीदा जा सकता है आदि आदि। तो मैंने सोचा कि मेरे पास काफ़ी सारी जानकारी है तो क्यों न मैं उसे किसी वेबसाईट पर डाल दूँ जहाँ सब लोग बिना किसी से पूछे सूचना प्राप्त कर सकें। मैं वेबसाईट बनाना नहीं जानता था लेकिन थोड़ा बहुत सीखने के बहाने, कुछ मेहनत करके मैंने जैसे तैसे 2001 के शुरू में एक छोटा मोटा वेबसाईट बनाया जिसमें यहाँ के बारे में मूलभुत जानकारी थी। मैंने इसके बारे में अपने खास दोस्तों को बताया और गूगल में रजिस्टर किया। इससे मुझे बहुत सारी अच्छी प्रतिक्रियाएं और प्रशंसा मिली। मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी लेकिन इससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली और मैं इसे अच्छा बनाने के लिए और जी जान से जुट गया।

कई लोगों के जुड़ जाने के बाद हमने एक रेस्तराँ में एक बैठक आयोजित की जिसमें केवल 17 लोग थे। मुझे याद है कि वे 17 लोग जब आपस में मिले तो वे भाव विभोर हो उठे। कुछ की आँखों में तो आँसू तक आ गए। उस समय यहाँ विरला ही कोई भारतीय नज़र आता था। उनका यहाँ कोई दोस्त या जानकार नहीं होता था। हमने वहाँ Dumb Charades खेला, खाना खाया, फ़ोटो वोटो खींचे। हर कोई इतना खुश था कि इस बैठक को और भी बड़े स्तर पर आयोजित करने की माँग होने लगी। फिर हमने दो महीने में एक बार ये बैठक आयोजित करनी आरंभ की जिसे हमने को Desi Club Meet का नाम दिया। इसका आयोजन हम करीब दस लोगों की एक टीम बनाकर एक पूरे रेस्तरां को बुक करके बढ़िया ढंग से करते थे। वहाँ सैंकड़ों की संख्या में भारतीय आते थे, एक दूसरे को जानने लगते थे, इकट्ठे कोई खेल खेलते थे, खाना खाते थे। उनमें कई तो बहुत अच्छे दोस्त बन जाते थे। छह महीनों के अंदर म्युनिक मेला यहाँ रहने वाले युवा प्रोफ़ेश्नल लोगों के लिए एक बड़ा और प्रमुख मंच बन गया। एक बार उस समय के भारतीय दूतावास के महावाणिज्यदूत श्री रवि भी हमारी Meet में आए जिससे उन्हें यहाँ रह रहे भारतीय लोगों से सीधे जुड़ने का मौका मिला।

बसेराः अब तक की सबसे यादगार घटना कौन सी है?
कपिल गुप्ताः एक बड़ा आयोजन हमने किया स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) को जो हमारी सबसे हसीन यादगार है। 15 अगस्त को बायरन में भी एक धार्मिक छुट्टी (Mariä Himmelfahrt) होती है। हमने फ़ोरम पर 15 अगस्त को भ्रमण के लिये म्युनिक के पड़ोस में स्थित Tegernsee नामक एक बड़ी झील (http://www.tegernsee.de/) पर जाने की घोषणा की। इसपर हम करीब पचास साठ लोग म्युनिक रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा हुए और बायरन टिकेट लेकर (बाक्स देखें) ट्रेन से वहाँ गए। लोग अपने साथ खाना बनाकर लाए, भारत के राष्ट्रीय झंडे तैयार करके लाए। वो अविश्वसनीय पल जब हम सब झील के पास खड़े होकर राष्ट्रीय गान गा रहे थे अब भी हमारी आँखों में उतना ही ताज़ा है। छोटे छोटे बच्चों के हाथों में राष्ट्रीय झंडे थे। फिर हम सबने इकट्ठे खाना खाया। उसके बाद सबसे मज़ेदार घटना वापस आते हुए हुई। वापसी की ट्रेन में हमने लगभग पूरी बोगी घेर ली और अंताक्षरी खेलते हुए म्युनिक वापस आए। जर्मनी में इतने सारे भारतीय इकट्ठे होकर ट्रेन में गाने गा रहे हों, ये अब भी अविश्वसनीय है। सब लोगों को लग रहा था जैसे वो भारत में ही हों। लोग इतने भावुक हो रहे थे कि उनकी आँखें भीग रहीं थीं। गा गा कर उनके गले बैठ गए थे। उस समय ये फ़ोरम देशप्रेम, बच्चों को शिक्षा और मौज मस्ती का एक अनोखा संगम बन गया। लोग आगामी आयोजनों की बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगे।

एक खुशीनुमा सिलसिला ये भी रहा कि भारतीयों में बहुत शादीशुदा लोग भी थे। जब पति लोग काम पर चले जाते थे तो उनकी घरेलू पत्नियाँ घर में बैठी बोर हो जाती थीं। तो उन्होंने भी म्युनिक मेला द्वारा 'Munichmela Ladies Club' बना लिया, जबकि मेरा इससे कोई लेना देना नहीं था। लेकिन इससे लोगों के असीम जुड़ाव की अनुभुति होती थी, लगता था कि इससे सही लोग जुड़े हुए हैं।

बसेराः क्योंकि ये फ़ोरम / पोर्टल मुख्य तौर जर्मनी के ग्रीन कार्ड अभियान के अंतर्गत आये कंप्यूटर इंजीनियरों द्वारा या उच्च शिक्षा के लिए आये छात्रों द्वारा उपयोग किया जा रहा था, क्या आपको इन लोगों को एकजुट करने, एक मंच पर लाने के लिए जर्मन सरकार या समाज से भी कुछ पहचान मिली?
कपिल गुप्ताः उस समय बायरन सरकार भी भारत से निवेष के लिये कंपनिओं को आकर्षित करने के लिए अभियान चला रही थी और बायरन में आए प्रोफ़ेश्नल लोगों के लिए उचित सुविधाएं प्रदान करने और उन्हें जर्मन संस्कृति में आत्मसात करने (Integration) के रास्ते खोज रही थी ताकि बाहर के लोग जर्मन समाज में अच्छी तरह घुलमिल जाएं। जर्मनी अमरीका की तरह बहुसंस्कृतिक देश नहीं है। यहाँ Integration राजनीति का एक प्रमुख मुद्दा है। म्युनिक मेला केवल भारतीयों द्वारा ही नहीं बल्कि पाकिस्तानियों, बंगलादेशियों, अफ़्रीकियों, यहाँ तक कि पूर्वी युरोपीय देशों के लोगों द्वारा उपयोग किया जा रहा था (और है), क्योंकि ये अंग्रेज़ी में है। तो बायरन सरकार के लिए भी म्युनिक मेला केवल भारत ही नहीं बल्कि तमाम अन्य संस्कृतियों में झाँकने का एक द्वार बन गया। एक तरह से देखा जाए तो म्युनिक मेला सरकार का ही काम कर रहा था। उन्हें भी फ़ोरम म्युनिक मेला फ़ोरम पढ़कर लोगों की आम समस्याओं का अंदाज़ा होता था। खुशकिस्मती से म्युनिक मेला को भी उनके कुछ कार्यक्रमों और बैठकों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। मेरी राय माँगी जाने लगी, मुझे अन्य भारतीयों को वहाँ बुलाने की अनुमति भी मिली। खासतौर पर भारतीय खाना परोसा जाता था। बहुत सारे म्युनिक मेला के सदस्यों को वहाँ मंत्रियों, रोजगार कार्यालय (Arbeitsamt) के निर्देशक आदि से मिलने का मौका मिला।


बाक्स-बायरन टिकेट (Bayern Ticket)
बायरन टिकेट यहाँ की रेलवे कंपनी 'डायचे बान' (Deutsche Bahn) द्वारा जारी एक सस्ती यात्रा टिकेट है (€27) जिससे पाँच लोग एक साथ बायरन प्रदेश के अंदर अंदर क्षेत्रीय ट्रेनों (IRE, RE, RB और S-Bahn) और बसों द्वारा द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर सकते हैं। ये टिकेट सोमवार से शुक्रवार तक सुबह नौ बजे से अगले दिन सुबह तीन बजे तक मान्य है, शनिवार, रविवार और बायरन प्रदेश की छुट्टियों के दिन सुबह बारह बजे से अगले दिन सुबह तीन बजे तक मान्य है। इस अवधि के दौरान आप जितनी चाहें यात्राएं कर सकते हैं। इस टिकेट से एक्सप्रेस ट्रेन (EC, ICE) के द्वारा यात्रा करने की अनुमति नहीं।


बसेराः इस फ़ोरम / साईट के विस्तार की भविष्य में क्या योजनएं हैं? क्या इसका कोई व्यवसायिक दृष्टिकोण भी है?
कपिल गुप्ताः मैंने ये फ़ोरम सेवा के लिए शुरू किया, उस समय जब यहाँ कुछ भी नहीं था। अपने इस मूल उद्देश्य में म्युनिक मेला बहुत सफ़ल रहा है और आज भी सफ़ल है। आज भी ये लोगों के दिलों में है। उनका प्यार ही मेरी कमाई है। मैंने इसे कभी व्यवसायिक स्तर पर चलाने की नहीं सोची। कुछ लोग समझते हैं कि म्युनिक मेला किसी बड़ी कंपनी द्वारा चलाया जा रहा है, ऐसा नहीं है। मैं अकेला ही इसे चला रहा हूँ। इसमें मेहनत बहुत है और प्रतिफल केवल प्यार है जो लोगों से मिलता है। करियर और परिवार फिलहाल मेरी प्राथमिकतायें हैं। लेकिन हाँ अगर कोई इसमें किसी तरह का योगदान देना चाहता है तो उसका तहेदिल से स्वागत है।

बसेराः आजकल तो इस तरह और भी कई फ़ोरम और प्लेटफ़ार्म आ गए हैं। इस स्थिति आप म्युनिक मेला को कहाँ पाते हैं।
कपिल गुप्ताः जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि म्युनिक मेला अव्यवसायिक साईट है और अभी भी अपने मूल उद्देश्य पर टिका हुआ है। इसे किसी से प्रतिस्पर्द्धा नहीं है, फिर भी सफ़लतापूर्वक चल रहा है। अगर अन्य फ़ोरम भारतीय समुदाय की तरह से सेवा करते हैं तो मैं उन्हें प्रोत्साहन ही दूँगा और चाहुँगा कि वे खूब सफ़ल हों।