मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

न्यूर्नबर्ग क्रिस्ट किंड मार्केट

 Nürnberg Christmas Market is world known. Shalini Sinha visits and writes about it.

मुझे इस बार 6 दिसंबर को न्यूर्नबर्ग की प्रसिद्ध क्रिस्ट किंड मार्केट देखने का मौका मिला। जब हम सुबह नौ बजे म्युनिक से न्यूर्नबर्ग के लिये रवाना हुये तो ट्रेन में भीड़ देखकर बड़ी हैरानी हुयी। बड़ी मुश्किल से बैठने को सीट मिल पायी। लगभग दो घंटे बाद जब हम स्टेशन पर उतरे तो लगा कि इस शहर की आज की भीड़ तो म्युनिक से भी ज़्यादा है। हमने पता किया कि स्टेशन से लगभग आधा किलोमीटर दूर सिटी सक्वायर में क्रिस्ट किंड मार्केट लगा हुआ है। जब हम वहां पहुँचे तो देखा कि हज़ारों संख्या में लोग घूम रहे थे। Lorenz Kirche से Rathaus तक सड़कें दुल्हन की तरह सजी हुयीं थीं। इनके बीच में सिटी सक्वायर था जहां लगभग 200 छोटी छोटी दुकानें लगीं थीं। इन दुकानों के बीच के रास्तों में चलने की जगह भी नहीं मिल रही थी। सारी दुकानें बड़े सुंदर ढंग से सजी हुई थीं। कहीं क्रिस्मस ट्री को सजाने का सामान मिल रहा था तो कहीं लकड़ी के गुड्डे गुड़ियां, सूखे मेवे, कहीं ऊनी कपड़े और दस्ताने थे तो कहीं बच्चों के प्रिय सांतांक्लॉस और खिलौने। खास बात यह थी कि जो भी सामान बिक रहा था, अधिकतर गांव के लोगों द्वारा हाथ से बनाया हुआ था। सबसे अधिक भीड़ तो खाने पीने वाली स्टालों पर थी। पीने के लिये मिल रही गर्म गर्म ग्लू वाईन (Glühwein, गर्म वाईन)। कंपकपाती ठंड में ग्लू वाईन पीने का मज़ा ही कुछ और है। खाने वाली चीज़ों में न्यूर्नबर्ग की सॉसेज (Nürnberger Rostbratwurst) और जिंजरब्रेड (Lebkuchen) को कौन नहीं जानता? ये सॉसेज काफ़ी छोटे पर बहुत स्वादिष्ट होते हैं। सभी लोग मस्ती से खाते पीते दुकानें घूम रहे थे। कहते हैं कि न्यूर्नबर्ग का क्रिस्ट किंड मार्केट विश्व के सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन मार्किटों में से एक है। लगभग दस लाख लोग अलग अलग जगहों से प्रतिवर्ष इसे देखने आते हैं।

इसके पास ही Rathausplatz में सबसे अलग बात देखने को मिली। यहां भी कोई 20-25 दुकानें थीं, और वे भी अलग अलग देशों से, जैसे कनाडा, ग्रीस, तुर्की, मैसेडोनिया, चाइना, चेक रिपब्लिक, इटली आदि। इन दुकानों में इन देशों की प्रसिद्ध चीज़ें बिक रहीं थीं जैसे वेनेज़िया का मुखौटा, फ्रांस की वाइन, चीन के रेशमी कपड़े, मैसेडोनिया के गर्म वस्त्र इत्यादि। वास्तव में लोगों जोड़ने का यह अच्छा ज़रिया है और ठंड के मौसम में आनंद उठाने का अच्छा मौका भी।

शालिनी सिन्हा, म्युनिक

बुधवार, 23 दिसंबर 2009

Company Profile- Green Rent

The Green Rent Company is a private organization whose main target is to realize and to strengthen a really payable quality standard on environmentally friendly cars and components at a high quality level on the German market.

Also in Germany, there are many people who depend on fair and affordable technologies in order to stay mobile and to ensure their standard of living as well as in each other country. Our intention is to give the most possible support to grant payable mobility and environmentally friendly technologies as well. Today this fact is getting more and more important and necessary, in many different points of view such as our environment, our children and the business-world as well.

Already today, there is a great number of garages and car dealers in Germany who took over our policy. Those people trust in our engagement and in our products. Every day the number of interested business partners is growing – this is showing us that the way we have chosen is the right one.
Besides our range consisting of alternative and environmentally friendly technologies such as LPG multipoint injection systems we are offering the passenger car range of TATA to our customers here in Germany.

In our philosophy and policy, we see many equal points to TATA philosophy, which already began to turn their business focus on environmental solutions in the field of mobility. The current and future vehicle range of TATA in comparison to "old" or "outdated" automobile manufacturers is not an ecological placebo thought. Quite the contrary, due to the use of gas or biogas as well as electrical- and air-pressure drives, TATA shows and also gives the message into the right direction promising a better future to our environment. -TATA-stands in our opinion for “mobility and equality for everybody”, for example: many thousands of India’s most popular cars TATA “Nano” have been sold due to a draw and not to the people who can pay the highest prices.

These are just a few reasons why we favored and finally decided for TATA automobiles. Our partners joined our policy as they believe in fairness and as they are convinced that everybody himself has to act in order to get changes in the fields of social and ecological awareness. The time for change is now; we experience the end of a predator-capitalism and are now in transition to Karma-Capitalism and Social-Business. This means that tomorrow depends on our choices and decisions of today. As an integral component of our philosophy, social engagement is important to us.

In practice this means:

  • We give financial support to partners who employ and educate trainees

  • We sponsor playschools in the name of our business partners and our organization

  • We give mobility also to socially weak families with children and make it possible for them to finance their car together with the support of sponsors

  • We give smaller retailers and repair shops the possibility of an existence as well.


…because it is our belief that we can only solve those big economic, ecological and social problems together in order to improve our standard of living!

We should remember tomorrow, we should remember that all of us are a little part of this world we are living in. The earth is not ours… and we really should pay our maximum effort to keep it worth to live on… not only today but also tomorrow. Exactly this is the policy and the meaning of Green Rent, we have just rent our world and we also should handle it that way… Or what would you expect when you borrow your car to a well known friend…?

Common environmental targets - common environmental paths. Let us common ground, for an ecological future. Our children will thank us.

http://greenrent.de/

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

पाक विधि - आलू धनिया

सामग्री
1 गुच्छी हरा धनिया (petersilie)
4 मध्याम आकार के आलू
1 टमाटर
1 नींबु
1 मध्यम आकार का प्याज
1 बड़ा चम्मच तेल
स्वादानुसार नमक, अदरक, लहसुन, हल्दी
स्वाद के लिये मक्खन

विधिः
1. हरे धनिये के पत्ते उतार कर धो लें। इसे टमाटर के साथ ग्राईंड कर लें। अगर ज़रूरत हो तो थोड़ा पानी डाल लें। ग्राईंड करने के बाद अलग रख लें।
2. आलूओं को छील लें, उन्हें छोटे और पतले टुकड़ों में काट लें जो आसानी से गल जायें।
3. अदरक और लहसुन को पीस कर पेस्ट बना लें।
4. एक कड़ाही में तेल डाल लें, इसमें कटे हुये प्याज डाल लें और थोड़ा भूरा होने तक भून लें। फिर इसमें अदरक और लहसुन का पेस्ट डाल दें। इसे लगातार हिलाते हुये पकायें ताकि यह कड़ाही में न चिपके।
5. फिर इसमें हल्दी, नमक, कटे हुये आलू डालें और अच्छी मिलायें। फिर थोड़ा पानी डाल कर ढक दें और पाँच सात मिनट पकायें जब तक आलू आधे पक जायें।
6. फिर ग्राईंड किया हुआ धनिया डालें, लगातार हिलायें और पाँच मिनट अधिक पकायें ताकि आलु पूरी तरह पक जायें और उन पर धनिये की परत चढ़ जाये। आलू धनिया तैयार है।
7. रोटी, नान या पूरी के साथ गर्म परोसें। परोसने से पहले आप इसपर मक्खन लगा सकती हैं या थोड़ा नींबु छिड़क सकती हैं।

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

कार्ल्सरूहे में दीपावली

Brief description of Diwali event organised by DIG Karlsruhe.

कार्ल्सरूहे में डीआईजी द्वारा सेंट पीटर और पॉल चर्च के हॉल में 24 अक्तूबर की शाम को दीपावली मनाई गई। कार्यक्रम में लगभग पौने दो सौ लोगों ने भाग लिया। कार्यक्रम के आरंभ में उर्मिला देवी ने art of living पर व्याख्यान दिया, कुछ भजन, संस्कृत में कुछ श्लोक और स्तुतियां और कुछ शास्त्रीय संगीत आधारित गीत गाये। उनका साथ देने के लिये तबला और हरमोनियम वादक समेत तीन संगीतकार थे। वे जर्मनी में art of living की संस्थापकों में से एक हैं। इसके बाद दीपिका शर्मा नामक छात्रा ने दीपावली पर एक छोटा सा व्याख्यान दिया। इसके बाद 'लास्य प्रिय' नामक कार्ल्सरूहे के एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य स्कूल के छात्र बच्चों ने भरतनाट्यम के कई प्रदर्शन किये। इसके बाद शाकाहारी भोजन परोसा गया।

 

 

कार्ल्सरूहे से कृष्णामूर्ति सुब्रामणि कहते हैं कि इस कार्यक्रम में भारतीयों से अधिक जर्मन लोग थे क्योंकि उन्हें भारतीय संगीत, सांस्कृतिक गतिविधियाँ और भोजन अच्छा लगता है। वे हर वर्ष दीपावली की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। वे कहते हैं कि यहां दीपावली कई वर्षों से मनायी जा रही है, पर होली की अपेक्षा यह काफ़ी औपचारिकता के साथ मनायी जाती है। हालांकि पिछले वर्षों में दीपावली कार्यक्रम के लिए किसी बॉलीवुड गायक को बुलाने का प्रचलन रहा है। इस बार वे उर्मिला देवी को आमंत्रित करते समय डर रहे कि यह अतिथियों को पसंद आयेगा या नहीं। पर लोगों ने उनके प्रदर्शन को बहुत पसंद किया।

शनिवार, 14 नवंबर 2009

Ulm में Indian Cultural Night

Indian Cultural Night organised by indian community in Ulm, another south German city.दीपावली पर्व के विकल्प के रूप में अनेक समुदायों को एकत्रित करने और विदेश में भारतीय संस्कृति की झलक प्रस्तुत करने के उद्देश्य से 14 नवम्बर 2009 को बवेरिया के उल्म शहर में भारतीयों ने 'Indian Cultural Nite 2009' का आयोजन किया। फेन्सी ड्रेस, मेडली डांस, फैशन शो, गाने बजाने और नृत्य, डिस्को, तम्बोला आदि आईटमों के साथ साथ मेहन्दी, भेलपूरी की स्टालों से भरपूर इस कार्यक्रम की सबसे खास बात थी कि रंगमंच कार्यक्रम, भोजन और अन्य स्टालें आदि आयोजकों द्वारा खुद ही तैयार किए गए थे।

 

Bürgeragentur ZEBRA के हॉल की दीवारें भारत के छोटे छोटे राष्ट्रीय ध्वजों और अतुल्य भारत के पोस्टरों से सजी हुई थीं। प्रवेश द्वार पर दीयों के साथ रंगोली सजाई गई थी। टिकट लेकर अन्दर आ रहे लोगों का स्वागत टिक्के और मिठाई के साथ हो रहा था। बैठने के लिए पीछे से रंगमंच की ओर जाती हुई चार पंक्तियों में कुर्सियां और मेज़ें लगी हुईं थीं। मेज़ों को पीले और सन्तरी रंग के कपड़ों के साथ सजाया गया था। उन पर प्यास बुझाने के लिए मुफ़्त शीत पेय, सुविधा के लिए कार्यक्रम का विवरण और रात्रि भोज (dinner) की भोजनसूची (Menu) रखी हुई थी। बर्लिन में भारतीय दूतावास द्वारा विशेष तौर पर मुहैया करवाए गए छोटे छोटे राष्ट्रीय ध्वज और भारत उपमहाद्वीप पर आधारित जर्मन भाषा में पुस्तकें भी मेज़ों की शोभा बढ़ा रही थीं।

शाम तक लगभग डेढ सौ आंगतुकों के साथ हॉल भर चुका था जिनमें लगभग तीन चौथाई लोग स्थानीय थे। कुछ महिलाओं ने पूजा के साथ कार्यक्रम का उदघाटन किया। फिर भारतीय दूतावास द्वारा प्रदान की गई एक वीडियो सीडी द्वारा भारत देश पर एक लघु व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। फिर सिद्धार्थ और Cary नामक दो बच्चों ने गिटार के साथ एक अंग्रेज़ी गाना पेश किया। उसके बाद बच्चों की फेन्सी ड्रेस हुई जिसमें बच्चों को दो श्रेणियों में बाण्टा गया। एक श्रेणी में दो वर्ष से लेकर छह वर्ष तक की आयु के बच्चे थे और दूसरी श्रेणी में छह से दस वर्ष की आयु के बच्चे। दो जजों द्वारा हर श्रेणी में से एक विजेता घोषित किया गया। छोटे बच्चों की श्रेणी में 'लेडी बग' बनी 'Sienna Larsen' को और बड़े बच्चों की श्रेणी में समुद्री डाकू (Pirate) बने 'आकाश देसवाण्डेकर' को विजेता घोषित किया गया। फिर तीन बच्चों, सान्या, सीरथ और आकाश ने एक हिन्दी फिल्म गीत पर डांस किया। इसके बाद आदित्य नामक एक जर्मनी निवासी भारतीय युवा कलाकार ने बांसुरी वादन पेश किया। फिर आदित्य ने दो जर्मन कलाकारों, पिआनो पर Daniel और ड्रम्स पर Leon के साथ जुगलबन्दी पेश की। फिर रश्मी ने अर्ध शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत किया। इसके बाद दो दम्पत्तियों, विनीत और बरखा अहूजा, और गगन और करुणा ने हिन्दी गीतों की मेडली पर डांस पेश किया। इसके बाद नीति कासलीवाल ने हिन्दी फिल्म 'उमराव जान' के गीत 'सलाम' पर नृत्य प्रस्तुत किया। फिर न्यूर्नबर्ग से शास्त्रीय नर्तकी Auxilia Albert ने भरतनाट्यम प्रस्तुत किया। उल्म निवासी रश्मी ने भी बहुत खूबसूरत नृत्य प्रदर्शन किया। सभी अतिथिगण तालियां बजा कर आनन्द का प्रदर्शन कर रहे थे।

फिर स्नैक्स और मेहन्दी के लिए ब्रेक हुआ। विनीत अहूजा के द्वारा बनाई गई भेलपूरी हाथों हाथ बिक गई। अर्चना देसवाण्डेकर और श्रीमती राम्या की मेंहदी स्टाल पर बहुत सारी बच्चियां और युवतियां अपने हाथों पर मेंहदी लगवाने को उत्सुक थीं। भारतीय पारम्परिक परिधान, जैसे कुर्ता पजामा आदि के लिए भी एक स्टाल लगाई गई थी।

 

नाश्ते के बाद Auxilia Albert कथक को लेकर एक बार फिर दर्शकों के सामने आईं। इसके बाद मुनमुन और राज ने बॉलिवुड गीतों पर एकल डांस प्रस्तुत किए। फिर कुछ भारतीय दम्पत्तियों ने पारम्परिक पोषाकों में एक फ़ैशन शो प्रस्तुत किया। लोग भी तालियां बजाते हुए आयोजन का खूब आनन्द ले रहे थे।

लगभग सवा आठ बजे रात्रि भोज के लिए विराम हुआ। खाने में जीरा चावल और नान के साथ शाकाहारी भोजन में दाल मखनी, मटर पनीर, रायता, मांसाहारी भोजन में कश्मीरी लैम्ब, और चिकन करी और मधुर पकवान यानि sweet dish के रूप में स्वादिष्ट खीर का इन्तज़ाम किया गया था।

 

रात्रि भोज के बाद सभी अतिथियों के लिए बरखा अहूजा ने 'Tambola/Bingo' खेल और 'निति कासलीवाल' ने 'Jigsaw Puzzle' आयोजित किया। तम्बोला में अतिथियों को ढेर सारे ईनाम दिए गए। खेलों के बाद सभी का धन्यवाद किया गया और डिस्को के लिए हॉल की जगह खाली कर दी गई। लगभग आधी रात तक महफिल जमी रही।

श्रीमती सुखबंस वीर बोपाराय की छह वर्षीय बड़ी बेटी 'सीरत' ने 'जय हो' और 'Pappu Can't Dance' गानों पर डांस किया। वे कहती हैं 'हम कुछ देर अमरीका में रहे। वहां हमने स्टेज पर कुछ बच्चों को डांस करते देखा। तबसे हमारी बेटी भी भारतीय ड्रेस पहन कर स्टेज पर हिन्दी गाने पर डांस करना चाहती थी। उसे आज यह करने का मौका मिला। हम लोगों के लिए तो यह मेल मिलाप का एक अच्छा मौका था ही, बच्चों को भी कुछ करने और नए दोस्त बनाने का मौका मिला। बड़ों की तरह उन्हें भी सामाजिक गतिविधियों की आवश्यक्ता होती है। वर्ना बच्चे क्रिस्मस, फाशिंग आदि पश्चिमी त्यौहार ही देखते हैं। भारतीय पर्वों को तो वे केवल घर से ही जानते हैं। पर ऐसे सार्वजनिक आयोजनों से उन्हें हमारी संस्कृति के बारे में भी जानने को मिलता है।' उनके पति प्रभजिन्दर सिंह का मानना है 'हमारे समुदाय को भी कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम करने का मंच मिला है। जर्मन लोगों को हमारे समुदाय के बारे में जानने को मिला। बच्चों को भी कुछ करने का मौका मिला। हालांकि सभी आइटमें किन्हीं अनुभवी और व्यवसायिक कलाकारों की बजाय यहीं पर आम लोगों ने मिलकर पेश कीं थीं, पर फिर भी वे बहुत अच्छी थीं।'

फ़्रैंकफ़र्ट से 'भास्कर कोहले' कहते हैं 'यह कार्यक्रम मेरी आशा से कहीं अधिक अच्छा था। दूतावासवास द्वारा भेजे गए भारतीय झण्डों से वाकई एक भारतीय कार्यक्रम के होने का आभास हुआ। दो जर्मन कलाकारों के साथ बांसुरी वादन और फैशन शो में पारम्परिक परिधानों के राउण्ड ने तो सभी को बहुत उत्साहित कर दिया। किसी बड़े विज्ञापन अभियान के बिना भी यह कार्यक्रम अत्यन्त सफ़ल रहा। मेरी पत्नी 'मुनमुन' ने 'आजा नच ले' गाने पर डांस किया। हमने फ़्रैंकफ़र्ट में हुए दीपावली जश्न में भी भाग लिया था, पर वह कार्यक्रम इसकी तुल्ना में बहुत कम प्रभावशाली था।'

 

निति कासलीवाल (चित्र में बाईं ओर) कहती हैं 'हमें खुशी है कि दर्शक कार्यक्रम में पूरी तरह डूबकर आनन्द ले रहे थे, तालियां बजा रहे थे। जर्मन युवतियों और बच्चियों मेहन्दी लगवाकर बहुत खुश हो रहीं थीं।'

 

निति कासलीवाल की पड़ोसन 'Susanne Kluge' कहती हैं 'मैं पिछले सात साल से लगातार इस कार्यक्रम में आ रही हूं। भारतीय लोग सचमुच बहुत ही दोस्ताना स्वभाव के होते हैं और उनमें मेरे जैसे बाहर वाले लोग भी बहुत अपनापन महसूस करते हैं। इस बार का कार्यक्रम भी हमेशा की तरह बहुत मज़ेदार था। हम अन्त तक डांस करते रहे। खाना बहुत स्वादिष्ट था। भारतीय महिलाएं साड़ियों में बहुत खूबसूरत लग रहीं थीं। भारतीय मर्द लोग भी पारम्परिक परिधानों में बहुत शिष्ट लग रहे थे। मैं अगली बार की प्रतीक्षा कर रही हूं।'

विनीत अहूजा कहते हैं 'बहुत सारे छात्रों और कामकाजी लोगों ने मिलकर इस कार्यक्रम को सफ़ल बनाया। इससे हममें एकता की भावना मुखर हुई है। उल्म में रहने वाले लगभग सभी भारतीय इस कार्यक्रम में शामिल थे।'
आयोजक टीम के सदस्य

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

Namaste Ladies Club in Erlangen

कोई अधिक पुरानी बात नहीं जब कामकाजी भारतीयों की पत्नियों के लिए दिन भर बैठे रहने के अलावा कोई चारा नहीं होता था। एरलांगन शहर में सीमेन्स कंपनी में कार्यरत बहुत से भारतीयों के साथ भी ऐसा ही था जब 1999 में घरेलू भारतीयों महिलाओं ने घर में बोर होने की बजाय 'नमस्ते लेडीज़' नामक क्लब का गठन करने का निर्णय लिया। उनका केंद्र बिंदु छोटे छोटे आयोजनों द्वारा थोड़ा बहुत धन एकत्रित कर, भारत में समाज सेवी संस्थाओं की मदद करने पर रहा। क्लब के गठनकर्ताओं में श्रीमती राखी मुखर्जी, श्रीमती कुसुम चौधरी और श्रीमती आशा रमेश प्रमुख थीं। पिछले वर्षों में क्लब ने होली, दीपावली आदि लोकप्रिय पर्व मना कर, खाना पकाने के प्रशिक्षण द्वारा और कई अन्य स्थानीय मेलों में भाग लेकर कुछ धन जमा किया और भारत में आदि वासियों और भीख मांग रहे बच्चों की मदद की। अब यह क्लब भारत में किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई का दायित्व उठाने की सोच रहा है। 'नमस्ते लेडीज़ क्लब' की हर महीने के अंतिम शुक्रवार को बैठक होती है और श्रीमती कुसुम चौधरी माह में एक बार खाना पकाने का प्रशिक्षण देती हैं। कुछ स्थाई आय के लिए श्रीमती आशा रमेश ने क्लब के लिए सदस्य जुटाने आरंभ किए। सदस्यों के लिए उन्होने दो तरह की श्रेणियां प्रस्तावित कीं, सक्रिय और निष्क्रिय सदस्य। सक्रिय सदस्यों के लिए वार्षिक शुल्क 15 यूरो तय किया गया जिन्हें आयोजनों में निशुल्क प्रवेश मिलता है। निष्क्रिय सदस्यों के लिए वार्षिक शुल्क 5 यूरो तय किया गया जिन्हें आयोजनों के प्रवेश शुल्क में छूट मिलती है। इस समय क्लब लगभग दस सदस्य हैं। 'नमस्ते लेडीज़ क्लब' ने 25 अक्तूबर को एरलांगन शहर की नगर पालिका द्वारा आयोजित मेले 'Miteinander leben' यानि 'एक दूसरे के साथ जीना' में ने चाय, भोजन और साड़ी बांधना सिखाने का स्टाल लगाया था जिसमें शहर में रहने वाले 40 देशों के नागरिकों ने विभिन्न तरह की गतिविधियों का प्रदर्शन किया। यही नहीं, साड़ी बांधना सीखने की शौकीन जर्मन महिलाओं की साड़ी में फोटो खींच कर ईमेल द्वारा भेजने का प्रबंध भी किया गया। स्थानीय एकता को बढ़ावा देने में उनके क्लब के योगदान को एरलांगन शहर के मेयर ने बहुत सराहा।

रविवार, 1 नवंबर 2009

बसेरा की बैठक हुई सक्रिय

1 नवंबर को म्युनिक में हुई बसेरा की नियमित बैठक में कई लोगों ने भाग लिया और बसेरा के अगले अंक के बारे में कई सुझाव दिए। इसके अलावा कई अन्य विषयों पर चर्चा होती रही।

इस बार बैठक में कुल छह लोगों ने भाग लिया। हालांकि उपस्थित लोगों में से कोई भी ठीक से हिंदी नहीं पढ़ सकता था पर सभी का भारत या भारतीयों के साथ किसी न किसी तरह से लेना देना है। बसेरा का अगला अंक मध्य दिसंबर में प्रकाशित होगा। इसके लिए विभिन्न स्तंभों के अंतर्गत विषयों का चयन किया गया। पर्यटन संबंधी स्तंभ में Christine Liedl ने सुझाव दिया कि उस समय सर्दियों के खेल का विषय ठीक होगा। इसके लिए बायरन की पहाड़ियों में किसी स्कींईंग स्थल के बारे में लिखना प्रासंगिक रहेगा जहां लोग अकेले या बच्चों के साथ केवल एक दिन में जाकर वापस आ सकें और थोड़ी बहुत स्कींईंग सीख सकें। इसके अलावा सर्दियों में बच्चों और बड़ों के मनपसंद खेल आईस स्केटिंग पर भी कुछ लिखने का सुझाव आया। रसोई / पाक विधि के अंतर्गत भी उन्होंने क्रिस्मस पर लोगों द्वारा घरों में बनाए जाने वाले केक बनाने की विधियों पर ज़ोर डाला। Christina Barsocchi, जो लुफ़्थांसा में बतौर एयर हॉस्टेस काम कर रही हैं और उनका भारत जाना लगा रहता है, ने सुझाव दिया कि अगर बसेरा में आलेख के शुरू में अंग्रेज़ी या जर्मन भाषा में छोटी भूमिका लिखी जा सके तो अन्य लोगों को भी विषय के बारे में मूलभूत जानकारी मिल सकती है। वे अगले सप्ताह एक दोस्त की शादी के लिए गोआ जा रही हैं, तो उनके लिए यह जानना रोचक था कि भारतीय शादी में किस तरह के कपड़े पहने जाते हैं और किस तरह के उपहार दिए जाते हैं। इसी से विचार किया गया कि क्यों न बसेरा में जर्मन लोगों के लिए जर्मन भाषा में इस विषय के बारे में एक लेख प्रकाशित किया जाए। अगर आपके पास इस संबंधी सुझाव हैं तो हमें अवगत कराएं।

इसके अलावा एक पृष्ठ कैलेंडर को समर्पित करने का विचार किया गया, जिसमें जर्मनी में होने वाले भारतीय संबंधी विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में जानकारी दी जाए। इसके लिए कार्यक्रमों के बारे में जानकारी एकत्रित करनी आरंभ कर दी गई है और बसेरा के वेबसाईट के मुख्य पृष्ठ पर भी कैलेंडर लगा दिया गया है। अगले अंक में दिसंबर'09 से फरवरी'10 तक के कार्यक्रमों की सूचि दी जाएगी। अगर आप किसी आयोजन को दर्ज करवाना चाहते हैं तो कृपया सूचना ईमेल द्वारा भेजें।

अगला स्तंभ था कानूनी सहायता और सलाह। इस विषय में Christine ने म्युनिक की संस्था का नाम सुझाया जो जर्मन और अन्य देशों के नागरिकों की परस्पर शादी संबंधी कानूनी सलाह देती है। यह विषय अन्य लोगों के लिए भी रोचक था।

इसके बाद बच्चों के बारे में कुछ सामग्री पर विचार किया गया। छोटी छोटी फ़ोटो के साथ जर्मन - हिंदी शब्दावली का फिलहाल ठीक लगा, जैसे जानवरों, फल, सब्ज़ियों, पौधों आदि के नाम। चित्र जुटाने के लिए किसी किंडरगार्टन से संपर्क करने का विचार हुआ।

इसके बाद बसेरा के कई छोटे छोटे विज्ञापनों पर विचार हुआ, जैसे सदस्यता के लिए, विज्ञापन दरों के लिए, विज्ञापन और सदस्य जुटाने के लिए कमीशन आधारित सहकर्मी ढूँढने के लिए आदि।

आप भी अगली बैटक में भाग लें। सूचना यहां पर हैः
http://yeh-hai-germany.blogspot.com/2009/08/blog-post_24.html

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

म्युनिक में इंडियन बिजनेस टेबल मीटिंग

22 अक्तूबर को म्युनिक में 'मोहम्मद रेहान' द्वारा आयोजित किए जाने वाली मासिक 'इंडियन बिज़नेस टेबल' मीटिंग में दो कंपनियों ने व्याख्यान दिया। पहला व्याख्यान 'जर्मन मशीनरी और प्लांट संघ' (वीडीएमए) के भारतीय कार्यालय से आए राजेश नाथ ने दिया। उन्होंने जर्मनी और भारत के बीच इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार, उसकी संभावनाओं पर कई रोचक आंकड़े पेश किए। दूसरा व्याख्यान नासिक की एक महंगी वाइन बनाने वाली नई कंपनी Reveilo की ओर से पी.एच.डी. कर रहे छात्र 'शैलेष मोरे' ने दिया। उन्होंने ने भी भारतीय समाज में अल्कोहल उपभोग के बदलते परिदृश्य को बड़े रोचक ढंग के पेश किया।

मीटिंग में कोई तीस से ऊपर कंपनियों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। मीटिंग के आरंभ में श्री रेहान ने मीटिंग की भाषा का चयन करते हुए कहा कि जर्मनी के एक नेता Joschka Fischer ही एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने व्याख्यानों में अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने मीटिंग में व्याख्यान देने वाली दो कंपनियों के प्रतिनिधियों का परिचय दिया। एक थे कलकत्ता से खास तौर पर आए 'जर्मन मशीनरी और प्लांट संघ' के भारतीय कार्यालय के अध्यक्ष श्री राजेश नाथ और दूसरे थे भारत की एक नई वाइन कंपनी रेवीलो का जर्मनी और यूरोप में मार्कीटिंग का काम देखने वाले श्री शैलेष मोरे। श्री रेहान ने आगे कहा कि यह मीटिंग के बाद इस वर्ष में केवल एक और मीटिंग होगी, वह भी दिसंबर में क्योंकि इस बीच उन्होंने कई सप्ताह के लिए भारत जाना है।

इसके बाद मीटिंग में उपस्थित लोगों ने अपना संक्षेप परिचय दिया। म्युनिक विश्वविद्यालय के इंडोलोजी विभाग से 'डा. डेगमार हेल्लमान राजनयगम' नामक एक इतिहासकार महिला ने कुछ तमिल शब्द बोल-कर भारतीय भाषाओं से अपना लगाव व्यक्त किया और कहा कि वे बहुत लंबे समय से इस मीटिंग में आती रहीं हैं। साथ ही उनके पति श्री एन राजनयगम ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वे नोकिया सीमेन्स नेटवर्क में प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम करते हैं। इस कंपनी के भारत में चेन्नई और गुड़गाँव में मुख्य कार्यालय हैं। अब चीन और भारत मोबाइल फ़ोन क्षेत्र में सबसे बड़े बाज़ार हैं। इसपर श्री रेहान ने टिप्पणी करते हुए बताया कि इस कंपनी ने एक भारतीय को अपना नया सीईओ चुना है। 1 अक्तूबर से 'श्री राजीव सूरी' फ़िनलैंड स्थित मुख्य कार्यालय में कार्यभार संभालेंगे।

फिर 'बायरन प्रांतीय बैंक' से सिल्विया हाउसबेक जो इस कंपनी का गुड़गाँव में स्थित 'जर्मन सेंटर' का काम भी देखती हैं ने अपना परिचय दिया। गुड़गाँव के 'जर्मन सेंटर' में जर्मन कंपनियों को भारत में पैर पसारने के लिए आरंभिक मदद और कार्यालय खोलने के लिए जगह प्रदान की जाती है। उनका परिचय पूरा करते हुए श्री रेहान ने टिप्पणी की कि जर्मन सेंटर में अब एक नदीने उल्रिके नामक नई अध्यक्ष आईं हैं, एक जर्मन कंपनी में एक महिला का स्वर्ण पद पर होना एक अस्वभाविक बात है। इसके बाद बायरन के 'पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय' की ओर से आए 'क्लाउस श्युट्टल' ने अपना परिचय दिया। उन्होंने बसेरा को बताया कि बैंगलोर से अपशिष्ट प्रबंधन की ट्रेनिंग के लिए एक प्रतिनिधि-मंडल आया हुआ है पर अभी भारत में व्यवहारिक स्तर पर इस काम को कई वर्ष लगेंगे। इसके बाद इटली से अपने बेटे के साथ आईं हुई एक महिला ने परिचय दिया। वे शौक और व्यवसाय से दार्शनिक, कलाकार और शोधकर्ता हैं और उनके युवा बेटे एंडर्सन फ़ाब्बियोच्ची इटली के बोलोग्ना शहर में राजनीति की पढ़ाई कर रहे हैं। पर उन्होंने पढ़ाई के बीच कलकत्ता में वीडीएमए कार्यलय में चार माह ट्रेनिंग की और अब म्युनिक कार्यालय में ट्रेनिंग कर रहे हैं। इसके बाद डा. हाफ़्फा एंड पार्टनर कंपनी से डा. एन्नेग्रेट हाफ़्फा और उनकी सहायिका ने परिचय दिया। उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी अन्य कंपनियों को मीडिया में प्रचार प्रसार के लिए मदद करती हैं। फिर कई यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद करने वाली कंपनी की मालकिन इस्साबेल्ले फ़ॉन दे मेर्कट ने परिचय दिया। जब श्री रेहान ने पूछा कि क्या वे हिंदी में भी अनुवाद कर सकती हैं तो उन्होंने कहा कि उनके पास अभी हिंदी में अनुवाद करने वाला कर्मचारी नहीं है। इसपर वहां उपस्थित रुचि श्रीवास्तव ने कहा कि वे इस काम में मदद कर सकती हैं। फिर सीओसी से मुन्ना श्रीवास्तव और उनकी पत्नी रुचि श्रीवास्तव ने परिचय दिया। रुचि श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने इलाहाबाद से पर्यावरण और बायो-टेक क्षेत्र में पढ़ाई की है। वे बहुत समय से इस मीटिंग में नियमित आ रही हैं। उन्हें यहां अच्छा लगता है इसे अधिक से अधिक मदद देंगी।

इसके बाद लिंडे से मेरी आइचागुई ने परिचय देते हुए कहा कि हालांकि वे स्टील प्लांट के क्षेत्र में कार्यरत हें पर वे भारतीय व्यवसाय और आर्थिक स्थिति की एक झलक पाने के लिए यहां आई हैं। ग्रीन रेंट कंपनी से गुंतर बेंटहाउस ने परिचय देते हुए बताया कि उनकी कंपनी ने जर्मनी में टाटा की कारें गैस के साथ सप्लाई करनी आरंभ की है। फिलहाल इंडिका कार सप्लाई की जा रही है। उनके एक इतालवी सहकर्मी ने कहा कि उन्हें इस मीटिंग में आकर बहुत खुशी हुई। पर्यावरण और सामाजिक उत्तरदायित्व को देखते हुए सस्ती और कम खपत वाली कारें आज के समय में बहुत प्रासंगिक हैं। और इसी उत्तरदायित्व को उनकी कंपनी निभा रही है। खासकर भारतीयों के लिए जर्मनी में भारतीय कार खरीदना एक अनोखा अनुभव होगा। प्रदर्शन के लिए एक कार अपने साथ लाए थे जिसपर लोग टेस्ट ड्राइव भी ले सकते थे। वे सभी आयोजनों में इस कार को लेकर जाते हैं। वे 5Ps में विश्वास करते हैं, pride, profit, peace, pleasure, people.

 

इसके बाद सैप कंपनी में कार्यरत 'सिद्धार्थ मुदगल' ने परिचय देते हुए कहा कि वे अपने संपर्क बढ़ाने के लिए इस मीटिंग में आए हैं। अभी अभी उन्होंने दीपावली नामक एक भारतीय पर्व आयोजित किया जो बहुत सफ़ल रहा और जिसमें सौ से भी अधिक लोग शामिल हुए। इस पर श्री रेहान ने कहा कि बीमार होने के कारण वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके।

फिर भारतीय कंपनी टीसीएस से मनीष पांडे ने बताया कि हालांकि वे भी टाटा कंपनी से ही हैं पर उनकी शाखा 'आई टी' क्षेत्र में कार्यरत है, कारों में नहीं। इस कंपनी का जर्मनी में मुख्य कार्यालय फ़्रैंकफ़र्ट में है जहां तीस चालीस लोग कार्यरत हैं। म्युनिक कार्यालय में बीस तीस लोग हैं। ड्युस्सलडॉर्फ़ में इस कंपनी ने एक कंपनी को ख़रीदा है जिसमें लगभग 90 जर्मन लोग कार्यरत हैं। अगर आर्थिक मंदी न होती तो हम तीस चालीस प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर सकते थे।

इसके बाद म्युनिक से एक वीज़ा सलाहकार बारबरा रीट्श, श्री रेहान के सहायक श्री नाथ और म्युनिक कोंसलावास से मार्किटिंग ऑफिसर 'जीजो पारूक्करण' ने परिचय दिया। अंत में काफ़ी देर से पहुँचे म्युनिक विश्वविद्यालय के इंडोलोजी विभाग से प्रो. डा. रॉबर्ट ज़ायडनबोस और इवा ग्लासब्रेन्नर ने बताया कि उनका विभाग लगभग एक सौ चालीस वर्ष पुराना है। उन दोनों ने अब मिलकर एक छोटा सी संस्था खोली है 'मान्य-भारतीय भाषाओं की संस्था' जिसमें हिंदी, कन्नड़, संस्कृत आदि कई भारतीय भाषाएं सिखाई जाएंगी। यह शिक्षा एकल अथवा सामूहिक स्तर पर उपलब्ध होगी। डा. ज़ायडनबोस ने कहा कि वे तो एक कर्नाटक वासी से भी अच्छी कन्नड़ बोल लेते हैं। इसके अलावा वे भारतीय संस्कृति के बारे में जर्मन भाषा में कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित करेंगे।

इसके बाद श्री रेहान ने अपना व्याख्यान आगे बढ़ाते हुए बताया कि कुछ भारतीयों ने अपनी प्रतिभा और जागरुकता से विदेशों में भी नाम कमाया है। इसका ताज़ा उदाहरण हैं लखनऊ निवासी डा कमर रेहमान जिन्हें रॉस्टॉक विश्वविद्यालय ने 11 सितंबर को पिछले ग्यारह वर्षों की सहभागिता के दौरान बायोटेक्नॉलॉजी क्षेत्र में उत्कृष्ट काम के लिए मानद डॉक्टरेट के साथ सम्मानित किया। हालांकि वे मुस्लिम पृष्ठभूमि से हैं पर जर्मन वाइन की बहुत अच्छी जानकार हें। पिछली अक्तूबर में उनसे मुलाकात में उन्होंने बताया कि जर्मनी की वाइन सितंबर अक्तूबर के महीने में पीनी चाहिए। वाइन का विषय आज वैसे भी प्रासंगिक है क्योंकि आज जर्मन बाज़ार में भारतीय वाईन के आगमन पर व्याख्यान होने वाला है। फिर उनहोंने याद दिलाया कि इस वर्ष 17 मार्च को पूर्व भारतीय राजदूत मीरा शंकर ने 'अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी' की संविधि पर हस्ताक्षर किए। हैदराबाद में नवंबर में सोलर प्रदर्शनी का आयोजन होगा। जर्मन कंपनी टाटा के साथ मिलकर डीज़ल इंजन बनाने की सोच रही है। रवींद्र गुज्जुला नामक एक भारतीय ने पहली बार जर्मनी के एक शहर का मेयर बनकर भारत का नाम रौशन किया है उनका कहना है अगर आप विदेश में सफ़लता पाना चाहते हैं तो आपको स्थानीय लोगों से बेहतर काम करना होगा और वहां कि प्रस्थितियों के अनुकूल अपने आप को ढालना होगा। भेदभाव तो हर जगह किसी न किसी रूप में होता है। फिर उन्होंने यूरोप में सर्दियों में पहनने के लिए औपचारिक परिधानों पर थोड़ा सुझाव दिए। अंत में उन्होंने कहा कि इस वर्ष उन्होंने ग्यारह बार बिजनेस मीटिंग आयोजित की है जिसमें टाटा, लिंडे जैसी बड़ी बड़ी कंपनियों ने भाग लिया। अगले वर्ष म्युनिक में भारी मशीनरी पर आधारित BAUMA नामक एक बड़ा व्यापार मेला होने जा रहा है जिसमें भारत से लगभग 38 कंपनियों और चार हज़ार लोगों के आने का अनुमान है।

इसके बाद वीडीएमए से राजेश नाथ ने व्याख्यान आरंभ करते हुए श्री रेहान का उन्हें आमंत्रित करने के लिए धन्यावद किया और कहा कि उन्हें यहां आकर गर्व हो रहा है। लिंडे कंपनी भी वीडीएमए की सदस्य है। 2008 में जर्मनी से इंजनियरिंग मशीनरी आयात करने वाला भारत 32वां देश था, अब 14वां देश हो गया है। यह आपसी व्यापार का बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसका उपयोग यांत्रिक विद्युत पारेषण क्षेत्र में सबसे अधिक है। 2000 में इस क्षेत्र में जर्मनी से भारत को अस्सी अरब यूरो का निर्यात हुआ था जो 2008 में बढ़कर 4.2 खरब यूरो हो गया। इसके बाद इंजनियरिंग मशीनरी का सबसे अधिक उपयोग समुद्र लंबी दूरी के नौवहन में होता है। रोबोट और स्वचालन तकनीक इंजनियरिंग मशीनरी में महत्वपूर्ण हैं। लगभग 200 सदस्य कंपनियों के साथ यह संस्था लगभग 9.3 खरब यूरो का व्यापार करती है जिसमें से 45% निर्यात है। भारतीय उद्योग में हालांकि अभी भी बहुत काम शारीरिक श्रम द्वारा होता है पर फिर भी स्वचालन और रोबोट का भविष्य बहुत उज्जवल है। इसका योगदान दिनो दिन बढ़ेगा, खास कर बिजली के क्षेत्र में। भारतीय सरकार ने गैर पारंपरिक ऊर्जा की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। यह हमारे लिये अच्छा अवसर है। अब कम लागत वाले देशों से प्रतियोगिता बढ़ रही है, विनिर्माण परियोजनायें इन देशों में स्थानंत्रित हो रही हैं। जर्मन कंपनियां भी भारत में उत्पादन सयंत्र लगा रही हैं। पर भारत में पर चुनौतियां भी अलग प्रकार की हैं। भारत क्षेत्रफल में जर्मनी से नौ गुना बड़ा है। पूरा यूरोप का क्षेत्रफल भी भारत का केवल 73% है। यह बहुत बड़ा अंतर है। पर जर्मन मशीनरी को भारत में बहुत महत्व दिया जाता है। 2008 में भारत को 3.2 खरब यूरो की जर्मन मशीनरी निर्यात हुयी थी। पर इससे आगे बढ़ पाना अभी बहुत मुश्किल है। भारत ने 2007 में 12.5 खरब यूरो की इंजनियरिंग मशीनरी आयात की थी, जिसमें जर्मनी का 19% हिस्सा था और चीन का 14%. यानि जर्मनी 5% से आगे था। इसकी अपेक्षा भारत से जर्मनी को निर्यात कुल निर्यात का 33% था। भारत से तीस करोड़ यूरो की मशीनरी निर्यात हुयी, जो कम है पर उम्मीद बांधती है। इंडो जर्मन भागीदारी में संयंत्र इंजीनियरिंग और रसायण उद्योग सबसे ऊपर हैं। भारत में इनसे संबंधी सबसे अधिक संयंत्र 36%के साथ महाराष्ट्र में हैं। पुणे जर्मन कंपनियों की पसंदीदा जगह है। इसके बाद तमिलनाडु, दिल्ली और अंत में 6% के साथ पश्चिम बंगाल है। जर्मनी की भारत में उपस्थिति बॉश और सीमेंस जैसी कंपनियों के साथ लंबे समय से है। भारत का बढ़ता मध्य वर्ग, मानव और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, विशाल घरेलू बाजार, लोकतंत्र और युवा जनसांख्यिकीय प्रोफाइल भारत के सबसे बड़े आकर्षण हैं।

चुनौतियां:
गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी भारत मी सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। वर्तमान सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने हर रोज़ बीस किलोमीटर सड़क बनवाने का निर्णय लिया है। इसके अलावा कुछ नये हवाई अड्डे बन रहे हैं, विदेश नीतियों और विदेशी कंपनियों के लिये शुल्क संरचनाओं में सुधार हो रहा है। सुरक्षा और समयनिष्ठा भी भारत में मुद्दे हैं। यूरोपीय कर्मचारियों को भारत में काम करने के लिये समय के मामले थोड़े लचीलेपन का आदि होना होगा। लेकिन अब भारत में समय की कीमत के बारे में जागरुकता आ रही है। पर भारत की पदानुक्रमक संरचनाअभी अभी भी बहुत मजबूत है। बॉस को हमेशा ठीक माना जाता है। बहुत से बिजनेस तो परिवार तक ही सीमित रहते हैं। किसी समस्या को स्वीकार करने में वे लोग झिझकते हैं जो जर्मन लोगों के लिये समझना मुश्किल होता है। भारत में टकराव की बजाय कोई बीच का रास्ता निकालने पर ज़ोर दिया जाता है। आपसी संबंध वहाम बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। पर जर्मन लोगों के लिये मुद्दा अधिक महत्वपूर्ण होता है।

वीडीएमए एक सदस्य आधारित संस्था है जिसमें लगभग 3000 कंपनिया सदस्य हैं। यह केवल अपने सदस्यों के लिये काम करती है। इसके पूरे विश्व में 8 पंजीकृत कार्यलय हैं। मुख्य कार्यलय फ़्रैंकफ़र्ट में है। अंतरराषट्रीय स्तर पर भारत सबसे पहले देशों में से एक था। बल्कि चीन में भी बाद में कार्यलय स्थापित किया गया। भारत में नोएडा, कोलकाता और बैंगलोर में कार्यलय हैं। यह जर्मन कंपनियों को भारत में बिजनेस स्थापित करने में सहयोग देती है। हालांकि अब भारतीय उत्पादक भी ऊपर आ रहे हैं। उनके उत्पाद हालांकि चीन के उत्पादों से महंगे होते हैं पर और भी कई कारक हैं जो उन्हें स्थापित होने में मदद करते हैं। भारत फ़ोर्ज, कल्याणी समूह आदि ऐसे उदाहरण हैं जो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।

(pending)

रविवार, 27 सितंबर 2009

DJ Babla के टॉप टेन गाने

म्युनिक निवासी मनोज मल्होत्रा उर्फ़ डीजे बाबला करीब नौ सालों से विभन्न ओरिएंटल/बॉलीवुड पार्टी आयोजकों के साथ बतौर डीजे काम कर रहे हैं। उन्होंने बॉलीवुड पार्टियों केवल मौज मस्ती से निकल कर एक व्यवसाय में बदलते हुए देखा है। भारतीय लोगों के बाद अब जर्मन लोग भी बॉलीवुड पार्टियो के मुख्य ग्राहक हो गए हैं, खास कर शाहरुख के गानों के। इस लिए पार्टी के पूरी तरह गर्म हो जाने के बाद शाहरुख के कुछ तेज़ गाने बजाना जैसे 'शावा शावा', 'दर्द-ए-डिस्को' और 'दीवानगी' (ओम शांति ओम) उन्होंने अपना नियम बना लिया है। पार्टी में और जान लाने के लिए वे ये गाने वीडियो के साथ लगाते हैं, जिससे लोग अपने चहेते हीरो को देख कर और भी जोश में आ जाते हैं। जर्मन लोगों के बाद पंजाबी लोगों का समुदाय सबसे बड़ा है जो पंजाबी या भांगड़ा आधारित गानों पर ही सबसे अधिक नाचते हैं। पिछले एक वर्ष में उनकी पार्टियों में 'Top 10 List' गानों की सूची इस प्रकार है।

  1. दर्द-ए-डिस्को (ओम शांति ओम) / शावा शावा (कभी खुशी कभी गम)

  2. दीवानगी (ओम शांति ओम)

  3. मौजां ही मौजां (Jab we met)

  4. मर जानी (बिल्लू बार्बर)

  5. हरे राम (भूल भुलइया)

  6. किया किया (पार्टनर)

  7. झूम बराबर झूम (झूम बराबर)

  8. क्रेज़ी किया रे (धूम-2)

  9. सिंग इज़ किंग (सिंग इज़ किंग)

  10. आलू चाट (आलू चाट)


आज कल लोकप्रिय हो रहे उनके 'Top 10' नए गानों की सूची निम्न प्रकार है।

  1. Twist (Love Aaj Kal)

  2. जी ले (Luck)

  3. ले ले मज़ा (Wanted)

  4. ढन टा ना (कमीने)

  5. जय हो (Slumdog Millionaire)

  6. आहूँ आहूँ (Love aaj Kal)

  7. दाँव लगा (आगे से राइट)

  8. Chigi Vigi (Blue)

  9. Wake up Sid (Sid)

  10. दिल इबादत (तुम मिले)


डीजे बाबला कहते हैं कि गाना 'जय हो' तो अब हर जर्मन डिस्को में बज रहा है। जर्मन लोग इस गाने के पीछे पागल हैं।
अक्टूबरफ़ेस्ट के मौके पर अपनी पसंदीदा पारंपरिक बायरिश पोशाक पहने मनोज मल्होत्रा उर्फ़ डीजे बाबला

शनिवार, 26 सितंबर 2009

म्युनिक में दो दुर्गा पूजा

म्युनिक शहर में इस बार पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ, वह भी अलग अलग दो जगहों पर। एक हरि ओम मंदिर में और एक सुरबहार रेस्त्रां में। जहां हरि ओम मंदिर वाले आयोजन में भारी मात्रा में भारतीय लोग एकत्रित हुए, स्थानीय टीवी चैनल द्वारा मीडिया कवरेज मिली, वहीं सुरबहार रेस्त्रां में समुदाय छोटा था पर पूजा को विशुद्ध पारंपरिक तरीके से मनाया गया। दोनों जगह षष्टी से लेकर दश्मी तक पाँच दिन पूजा की गई। साथ ही कई संस्कृतिक कार्यक्रमों को भी जगह दी गई। जैसे हरि ओम मंदिर में स्थानीय कलाकारों द्वारा हारमोनियम और तबले पर संगीत, बच्चों और बड़ों द्वारा गरबा/ डांडिया रास, बच्चों द्वारा श्लोक गायन, भारत से यूरोप टूर पर आए कुछ भारतनाटयम कलाकारों द्वारा कला प्रदर्शन आदि।

हरि ओम मंदिर में तो पाँच दिन ऐसी रौनक लगी कि पूजा समाप्त होने के बाद लोगों को खालीपन सा महसूस होने लगा है। शायद इतना मज़ा लोगों को कभी नहीं आया होगा जब पूरे परिवार का भरपूर मनोरंजन हो और बहुत सारे भारतीय पवित्र और खुशनुमा माहौल में एक जगह उपस्थित हों। इस आयोजन का सेहरा 'अमिताव दास' को जाता है जिन्होंने कई सारे लोगों को प्रोत्साहित कर अनहोनी को होनी कर दिया। वे बताते हैं कि उनके पास फंड और मानव संसाधन की कमी थी। लेकिन उन्होंने म्युनिक में कम से कम एक बार बंगाल के सबसे बड़े उत्सव 'दुर्गा पूजा' को आयोजित करने की ठान रखी थी और उन्हें देवी पर पूरा भरोसा था। आखिर एक स्थानीय संग्रहालय ने कलकत्ता से माता दुर्गा की विशाल फ़ाईबर ग्लास की प्रतिमा और को अपने लिए खरिदने और वहां से लाने का ज़िम्मा ले लिया। बल्कि वे दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमा को उधार देने के लिए भी राज़ी हो गए। ऊपर से हरि ओम मंदिर एक आयोजन स्थल के रूप में एक अच्छा विकल्प बन कर उभरा, जहां पवित्र माहौल के साथ साथ खुली जगह और ढेर सारी अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। बस फिर क्या था, उनकी मुख्य समस्यायें समाप्त हो गई, फिर तो बस आयोजन पर ज़ोर लगाना बाकी था। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई और ढेर सारे लोगों ने दुर्गा पूजा में सम्मिलित होकर उनकी मेहनत और सपने साकार किए। दुर्गा पूजा के लिए एक पुजारी जी को भी कलकत्ता से खास आमंत्रित किया गया। शालिनी सिन्हा, जिन्होंने पूजा और संस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन किया, कहती हैं- 'हमने कई बार लोगों को हमारी बैठकों में आने के लिए आह्वान किया, लेकिन बहुत कम लोग देख कर हम हताश हो जाते। पर अमिताव जी को माता पर भरोसा था। अब देखिए कितने लोग पूजा में सम्मिलित होने आए हैं।'

चित्र में मध्य में 'अमिताव दास' और उनके सहायक। बाईं ओर इंद्रजीत और दाईं ओर 'शालिनी सिन्हा'।

इसके बाद तो लोगों की राय बन रही है कि अगर हरि ओम मंदिर में हर अवसर पर ऐसे कार्यक्रम होते रहें तो उन्हें सोचने और ध्यान रखने की ज़रूरत ही नहीं कि कहां क्या हो रहा है। म्युनिक में गरबा / डांडिया का एकमात्र सार्वजनिक कार्यक्रम यही था जो दुर्गा पूजा के मध्य मनाया गया। इसके बाद कई लोगों ने नियमित मंदिर जाने की इच्छा व्यक्त की है।

बिहार के बोकारो शहर में पले बड़े इंजीनियर 'मिथिलेश सिन्हा' कहते हैं कि वहां तो दुर्गा पूजा को लेकर विभिन्न समूहों में प्रतिस्पर्धा होती है, खूब गाना बजाना होता है, सबसे सुंदर प्रतिमा बनाने में भी प्रतिस्पर्धा होती है। उन्ही यादों को लेकर वे यहां इस आयोजन में हाथ बंटा रहे हैं।

कई साल अमरीका में मिशीगन में रहने के बाद करीब एक साल पहले जर्मनी रहने आए 'दीप चक्रवर्ती' कहते हैं- 'अमरीका में तो दुर्गा पूजा बहुत बड़े स्तर पर होती है। अकेले San Francisco' में तेरह दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ था और हर पूजा में कम से कम चार सौ लोग थे। उसकी तुलना में तो यहां भारतीय समुदाय बहुत छोटा है। पर फिर भी अच्छा है कि कुछ तो हो रहा है।'

उधर सुरबहार रेस्त्रां में पूजा की शुद्धता मुख्य आकर्षण थी। पूजा के दौरान कई महिलाओं द्वारा विचित्र आवाज़ें निकालना, जिसे 'उलू देना' कहते हैं, माहौल को पवित्र बना रहा था। केवल पूजा में ही नहीं, शादियों में भी 'उलू' दिया जाता है। साथ ही एक दो बच्चे और महिलाएं काशया बजा रहे थे। धनुची में से उठते हुए धुएं से वातावरण में पवित्रता फैल रही थी। स्पीकर में टेप पर चल रही ढाक की आवाज़ आ रही थी और स्वीडन से आए पूजारी जी पूजा संचालन कर रहे थे।

लगभग डेढ वर्ष पहले शोध के सिलसिले में जर्मनी आए 'पिंटू बदोपाध्याय' और उनकी पत्नी 'ऋतु बदोपाध्याय' कहते हैं- 'दुर्गा पूजा हमारा सबसे बड़ा उत्सव है। यहां आने के बाद एकदम से इसकी कमी बहुत खल रही थी। पर भगवान ने यह कमी बहुत जल्द पूरी कर दी। हम दोनों जगहों पर पूजा में भाग लेने के लिए गए। हमें यहां अपने घर जैसा माहौल पाकर बहुत हर्ष हो रहा है।'

चित्र में हरि ओम मंदिर में दुर्गा पूजा की एक झल्की। पश्चिम बंगाल से खास तौर पर आमंत्रित पुजारी जी आरती करते हुए।

सुरबहार रेस्त्रां में दुर्गा पूजा का एक दृश्य। चित्र में गणेष जी, लक्षमी जी, दुर्गा माता, माता सरस्वती और कार्तिक की मूर्तियां और स्वीडन से आए पूजारी जी।

सुरबहार रेस्त्रां में एकत्रित हुए श्रधालु।

बुधवार, 23 सितंबर 2009

A word from DJ Stephen Lobo

Dear Music Friends,

Please keep me in your mind whenever you need an Experienced, Entertaining DJ anywhere in Europe, or rest of the World. Presently settled in Frankfurt and working with various Event Organisations. Also worked in India and Dubai with Leading DJ´s and Clubs and Various International Performance to my name. Now entertaining since last 10 Years our fellow Indians in Europe under the motto “Let’s Party”

Three things I can assure you,

  • Best DJ performance, thus making your Gala Nights “A Night to Remember”

  • Best competitive price

  • Dance Music from all Across India and around the Globe


Some Important References

  • BBC Asia, London

  • Zee Tv, London

  • Thomas Cook Limited, India

  • Orbitz, India

  • In Orbit tours and travels, India

  • Havells India Limited, India

  • Ashok Leyland, India

  • Nerolac Paints Limited, India

  • Trivedi Consulting, Germany

  • Royal Jordanian Airlines, Germany

  • Intercontinental Hotel, Frankfurt Germany

  • Sahni GMBH Damstadt, Germany

  • Mahindra Satyam, Germany

  • Bharat Verein Frankfurt, Germany

  • Cocoon Club Frankfurt, Germany

  • Shekhar Rahate, Miss India Worldwide, USA And Many More…

सोमवार, 21 सितंबर 2009

मशरूम की ग्रेवी वाली बाटी

इस बार हम एक स्वादिष्ट बायरिश शाकाहारी पाक विधि पेश कर रहे हैं जिसका नाम है 'Semmelknödel mit Rahmschwammerl', यानि 'मशरूम की ग्रेवी वाली बाटी'

सामग्रीः
300 ग्राम कतरी हुई पुरानी सफ़ेद ब्रैड (Semmelbrot के नाम से सुपरमार्केट में मिलती है)
200ml दूध
दो बड़े चम्मच मक्खन
दो अंडे
एक बड़ा प्याज़, बारीक कटा हुआ
एक गुच्छी हरा धनिया, बारीक कटी हुई
200ml व्हिप्ड क्रीम (Schlagsahne के नाम से सुपरमार्केट में मिलता है)
600 ग्राम मशरूम
नमक और काली मिर्च
एक बड़ा चम्मच मैदा
एक चम्मच सब्ज़ी के सूप का पाउडर (Gemüsebrühe के नाम से सभी सुपरमार्केट में मिलता है)

बाटी बनाने की विधिः
एक बर्तन में दूध उबालने के बाद उसमें ब्रैड डाल दें और उसे ढक कर 15-20 मिनट तक ठंडा होने के लिए रख दें ताकि ब्रैड नर्म हो जाए। फिर उसमें अंडे, बारीक कटा हुआ धनिया, बारीक कटा प्याज़, थोड़ा नमक और काली मिर्च डाल गूंथ लें और 10-12 छोटे छोटे गोले बना लें। फिर एक अलग बर्तन में एक लीटर पानी उबाल कर उसमें थोड़ा नमक डालें। उबलते हुए पानी में ऊपर तैयार किए हुए गोले डाल कर 15-20 मिनट तक पकाएं। बस बाटी (Knödel) तैयार है। इन्हें पानी से निकाल कर एक ओर रख लें।

मशरूम की सब्ज़ी बनाने की विधिः
मशरूम को अच्छी तरह धोकर दो से चार टुकड़ों में काट लें। एक बर्तन में मशरूम डाल कर एक चम्मच मक्खन, बारीक कटा हुआ प्याज़, नमक और काली मिर्च डाल दें। इन्हें ढक कर 10-12 मिनट तक (मशरूम का पानी सूखने तक) पकाएं। मशरूम की सब्ज़ी तैयार है।

मशरूम की ग्रेवी बनाने की विधिः
आधा लीटर पानी में एक चम्मच Gemüsebrühe डालकर उबालें। यह सब्ज़ी का सूप तैयार हो गया। इसके लिए बाज़ार से ख़रीदा हुआ पाउडर ही उपयोग करें, खुद सूप न बनाएं। फिर एक अलग बर्तन में एक चम्मच मक्खन को गर्म करें। इसमें एक चम्मच मैदा डालकर धीमी आंच पर हल्का भूरा होने तक भूनें। इस मिश्रण को अच्छी तरह लगातार हिलाते रहें ताकि गांठें न बने। उसमें व्हिप्ड क्रीम डाल कर अच्छी तरह हिलाएं। यह white sauce बन गई। फिर इसमें ऊपर बनाया हुआ सूप डाल कर अच्छी तरह हिलाएं और एक बार उबालें। यह क्रीमी सूप तैयार हो गया। इसमें ऊपर बनाई हुई मशरूम की सब्ज़ी डाल दें। एक मिनट पका कर बंद कर दें। यह मशरूम की ग्रेवी बन गई।

फिर एक प्लेट में बाटी के ऊपर ग्रेवी डाल कर, कटा धनिया छिड़क कर, स्वादानुसार नमक और काली मिर्च डाल कर परोसें।

शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

कुछ नई हिंदी फ़िल्में म्युनिक सिनेमा में

म्युनिक में लगभग तीन सप्ताह तक सफ़लतापूर्वक प्रदर्शित होने के बाद हिंदी फ़िल्म 'Luck by Chance' सोमवार 14 सितंबर को शाम सवा पाँच बजे 'Museum Lichtspiele' में एक बार फिर दिखाई जाएगी, और वो बहुत कम दाम पर, यानि साढे छह यूरो में। सोमवार का दिन इस सिनेमा में सबसे सस्ता होता है। सामान्य शुल्क केवल साढे पाँच यूरो है पर 125 मिनट से अधिक लंबी फ़िल्मों के लिए एक या आधा यूरो अधिक लिया जाता है।
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17 सितंबर से इसी सिनेमा में शाहिद कपूर और रानी मुखर्जी अभीनीत नई फ़िल्म 'दिल बोले हड़िप्पा' शुरु होने जा रही है। Rapid Eye Movies द्वारा वितरित यह फ़िल्म और कई शहरों में इसी तिथि के आस पास शुरू होगी।

http://muenchen.movietown.eu/
http://www.rapideyemovies.de/
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जर्मनी में बॉलीवुड फ़िल्मों के अन्य वितरक 'अशरफ़ खान' भी अपनी अगली फ़िल्म, सलमान खान और आयशा टाकिया‎ अभीनीत 'Wanted' लेकर शहर शहर घूमने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे पहला शो म्युनिक में 17 सितंबर को रात आठ बजे होगा।

http://wanted-thefilm.com/
http://bollywood-corner.de/

इसके बाद अशरफ़ 2 अक्तूबर से गोविंदा, लारा दत्ता, सुषमिता सेन और रितेश देशमुख अभीनीत हिंदी फ़िल्म 'Do Knot Disturb' और 16 अक्तूबर से अक्षय कुमार, संजय दत्त और लारा दत्ता अभीनीत 'ब्लू' भी लेकर आ रहे हैं।

कैलेंडर देखें.

RTL टीवी पर 'अशरफ़ खान' पर एक छोटा सा समाचार भी दिखाया गया है।

 

शनिवार, 22 अगस्त 2009

लुटेरों की पार्टी सबसे ऊपर-एक इंटरनेट सर्वेक्षण

मीडिया पोर्टल Meedia के अनुसार 27 सितंबर को होने वाले केंद्रीय चुनावों के लिए अधिकृत 27 पार्टियों में से बड़ी बड़ी पुरानी पार्टियों की अपेक्षा एक नई पार्टी इंटरनेट में बहुत लोकप्रिय है। ये नई पार्टी है Pirates Party यानि 'लुटेरों की पार्टी' जो अनुचित पेटेंटों और जटिल कॉपीराइट और डाटा संरक्षण क़ानूनों के विरुद्ध लड़ना चाहती है। Meedia पोर्टल के द्वारा जुलाई में गूगल के Ad Planner नामक टूल द्वारा किए सर्वेक्षण के अनुसार इस पार्टी के वेबसाइट पर एक लाख साठ हज़ार लोग आए जबकि SPD नामक बड़ी पार्टी केवल 58 हज़ार आंगतुकों के साथ दूसरे नंबर पर रही। एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार जर्मनी में चालीस प्रतिशत से अधिक लोगों को पता ही नहीं कि 27 सितंबर को केंद्रीय चुनाव होने जा रहे हैं।

http://meedia.de/details/article/piratenpartei-besiegt-etablierte-parteien_100022710.html
http://www.piratenpartei.de/

सोमवार, 6 जुलाई 2009

यहां भी हैं रंग होली के

सख्त नियमों और ठण्डे मौसम के कारण विदेश में, खासकर जर्मनी में बहुत से भारतीय पर्व उसी हर्षोल्लास और धूम धड़ाके के साथ मनाना मुश्किल होता है, जैसे दीपावली पर खूब पटाखे छोड़ना, होली पर खूब रंग फेंकना। इसीलिए पर्वों के नाम पर प्रवासी भारतीय कुछ औपचारिक कार्यक्रम आयोजित कर गुज़ारा कर लेते हैं जिसमें खाना पीना और थोड़ा गाना बजाना होता है। पर इस बार म्युनिक निवासी भारतीयों ने खूब रंगों के साथ होली खेल कर इस क्रम को थोड़ा बदला है। ठण्ड के कारण बाहर खुले में होली न मनाने के कारण उन्होंने एक चर्च हॉल में होली मनाई और सूखे रंगों का खास इन्तज़ाम रखा। इस तरह बच्चों और बड़ों, सभी ने एक दूसरे को हरा, पीला और लाल गुलाब लगाकर होली मनाई। स्टेज पर थोड़े गाने बजाने नाचने का कार्यक्रम भी रखा गया था पर लोगों को रंगों के खेलने में ही इतना मज़ा आया कि उनका ध्यान इसी पर केन्द्रित रहा। बाद में तो सब लोग मंच पर चढ़कर ही नाचने लगे। बहुत कम दिनों की प्लानिंग के बावजूद आम लोगों के लिये यह एक याद बनकर रह गया। बच्चे तो जैसे वापस घर जाना ही न चाहते हों। सब लोग गर्व से कह रहे थे कि हमने सचमुच रंगों के साथ होली खेली। खाने का इन्तज़ाम भी लोगों ने खुद ही किया। कुछ लोग घर से खाना बनाकर लेकर आए और सस्ते में बेचा। इस तरह यह अनौपचारिक कार्यक्रम अमरजीत सिंह शौकीन और शालिनी सिन्हा के प्रयत्नों से सम्भव और सफ़ल हो सका। बायरिश टीवी वाले अपने कार्यक्रम 'पज़्ज़ल' के लिये कवरेज के लिये भी आये जिसमें पांच मिनट के लिये अलग संस्कृति के कार्यक्रमों की झलक दिखायी जाती है। टीवी की ओर से रिपोर्टर थे 'पीटर अरुण फाफ' जो संयोग से स्वर्गीय नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के दोहते हैं। कार्यक्रम में शॉर्ट नोटिस के बावजूद पचास साठ लोग शामिल हुए।

Mallorca की सैर

क्या आप शहरों की इमारतों को देखकर बेज़ार हो गए हैं? क्या आपको यूरोप के सारे शहर एक जैसे लगते हैं? हम तो इन शहरों को देखकर थोड़ा ऊब गए हैं। इसलिए इस बार हमने किसी ऐसी जगह का भ्रमण करने की सोची जहां जर्मन लोग अधिक जाते हों, महंगी भी न हो और जहां सितम्बर के महीने में भी अच्छा मौसम हो। ऐसी शर्तों को पूरा करने वाला गन्तव्य हमें स्पेन का टापू Mallorca लगा। इस बार हमने यात्रा का प्रबंध खुद करने की बजाय पैकेज टूर लिया जिसमें विमान और अपार्टमेंट का किराया भी शामिल था। Mallorca हवाई अड्डे पहुंचने पर विश्वास ही नहीं हुआ कि इतने छोटे से टापू में भी इतने विमान और लोग प्रतिदिन आते हैं। फिर पता चला कि यहां का हवाई अड्डा यूरोप के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक है। फिर हम Santa Ponça नामक जगह पर अपने अपार्टमेंट में पहुंचे। यह शहर सच में यूरोप के दूसरे शहरों से अलग और साफ सुथरा था। यहां की इमारतें अलग तरह की थीं, मौसम बहुत बढ़िया था, पेड़ पौधे अलग किस्म के थे। प्रकृतिक नज़ारा तो इतना सुन्दर था कि देखते रहने को मन करता था।  Mallorca में हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं। यहां के लोगों की आय का मुख्य स्रोत भी पर्यटन ही है। इस टापू का क्षेत्र-फल 3600 वर्ग किलोमीटर है और यह Balearic Islands का सबसे बड़ा टापू है। यहां लगभग 300 से ज़्यादा beaches हैं। इन beaches के पास ही घर, रेस्त्रां, होटल, बार और बाज़ार बने होते हैं। बहुत सारे लोग तो एक ही जगह अपना पूरा trip बिता देते हैं।पहले दिन तो हम काफी थके हुए थे। इसलिए हमने apartment के सामने की beach, बाज़ार और शहर देखा। यह जगह भी काफी सुन्दर और चहल पहल वाली थी। फिर हमने खाना बनाने के लिए supermarket से थोड़ा सामान ख़रीदा। यहां Eroski और Casa Pepa नामक दो supermarkets अच्छी और सस्ती हैं। फल और सब्ज़ियां तो supermarkets की बजाय छोटी दुकानों से ही अच्छी मिलती हैं। इनमें फल सब्ज़ियां ताज़ा, स्वादिष्ट और सस्ती मिलती हैं। यहां Mallorca में उगने वाले फल और सब्ज़ियां भी खरीदें जैसे तरबूज, खरबूजा, अनार, नींबू, अंजीर आदि। फिर रात्रिभोज के बाद हम यहां की प्रसिद्ध nightlife देखने के लिए फिर बाहर निकल पड़े। रात में भी इतनी चहल पहल थी कि पूछो मत। दुकानें भी देर रात तक खुली थीं। सड़क के दोनों ओर बने रेस्त्रां, बार और डिस्को आदि लोगों से भरे हुए थे। लोग रात के दो तीन बजे तक संगीत के साथ झूमते और आनन्द लेते हुए दिखाई दे रहे थे। और फिर अगली सुबह दस बजे तक शहर में बिल्कुल शान्ति थी।

यहां सार्वजनिक परिवहन महंगा है। बसों की frequency भी कम है और वे समय पर भी नहीं आती हैं। न ही यहां कोई day pass या tourist pass होता है। हर बार यात्रा करने पर किराया देना पड़ता है। क्योंकि बसचालक खुद ही टिकट बेचता है इसलिए ज़्यादा भीड़ होने पर बस भी देर से आती है। अगर आपको कार चलानी आती है कार भाड़े पर लेकर घूमें। इससे आपका खूब सारा समय भी बचेगा और आप अधिक जगहें देख सकते हैं। या फिर आप package tour लें। ये सस्ते भी पड़ते हैं, इनसे समय भी बचता है और थकान भी कम होती है।

हमने भी दूसरे दिन एक travel agency से गुफाओं की यात्रा की। सुबह साढे आठ बजे ही हमारी बस हमें लेने होटल के पास आ गई। सभी यात्रियों को उनके hotel से लेते हुए बस सबसे पहले artificial pearl factory और shop पहुंची। यहां हमने कृत्रिम मोती बनने का तरीका दिखाया गया। उसके बाद हम गुफाएं देखने गए। Mallorca में लगभग 200 से ज़्यादा गुफाएं हैं जिनमें केवल पांच ही सार्वजनिक तौर पर खुली हैं। हम Coves del Drac नामक एक विश्व प्रसिद्ध गुफा देखने गए। गुफा के अन्दर कैमरे या वीडियो कैमरे का उपयोग करना मना है। पर लोग गार्डों से छुप कर फोटो लेते रहते हैं। इस गुफा में घुसी तो लगा जैसे मैं सपनों की दुनिया में पहुंच गई हूं। भूगोल की किताबों में जो पढ़ा था, टीवी में जो देखा था, वह आंखों के सामने था। यह गुफा चालीस करोड़ साल पहले बनी थी। यहां पत्थर की प्राकृतिक रूप से बनी हुई अद्भुत और सुन्दर आकृतियां हैं। लगभग 280 सीढ़ियों के द्वारा नीचे उतरने के बाद आप एक ऐसी जगह पहुंच जाएंगे जहां समुद्र का पानी गुफा में दिखने लगेगा। वहीं पर एक amphitheater में लोगों के बैठने के लिए मेज़ें लगी हैं। वहां एक 12 मिनट का live musical शो दिखाया जाता है जिसमें घुप्प अंधेरे से तीन नावें निकलती हैं। इन नावों पर कुछ लोग live music बजा रहे होते हैं। इन नावों के चारों ओर लगी बत्तियां अंधेरे में बहुत सुन्दर दिखती हैं। इसके बाद हम अपनी बस में बैठकर Mallorca की राजधानी Palma पहुंचे। यह बहुत घनी आबादी वाला शहर है। यहां बहुत बड़ी बन्दरगाह भी है। Mallorca की लगभग 90% जनसंख्या इस शहर में या टापू के समुद्र तट के पास रहती है। वहां हमने चर्च, shopping street, beach और बन्दरगाह देखी। फिर हम बहुत सारी सीढ़ियां चढ़ने के बाद काफी ऊंची पहाड़ी पर बने एक किले पर पहुंचे जहां से सारे शहर का नज़ारा बहुत सुन्दर दिखता है।

तीसरे दिन फिर हमने अपने शहर के पास की beaches और बन्दरगाहें देखीं। सबसे पहले हम Port d’Andratx गए जहां बन्दरगाह की ओर छोटे पहाड़ हैं जिनमें अमीर लोगों के बंगले  बने हुए हैं। उसके बाद हम Camp del Mar नामक beach पर गए। यहां पर एक अत्यन्त छोटा सा टापू है जिस पर लगभग उसी आकार का एक बड़ा सा रेस्त्रां बना हुआ है। हमने पढ़ा कि यह विश्व के सबसे छोटा टापू में बना रेस्त्रां है। फिर हम Paguera नामक जगह पर गए। यह जगह जर्मन पर्यटकों में लोकप्रिय है। वैसे भी Mallorca में आप जहां भी जाएं, जर्मन पर्यटक ही अधिक दिखाई देते हैं। मुझे तो कभी कभी लगता था कि मैं स्पेन में न होकर जर्मनी में हूं।

फिर शाम को हम सज कर एक रेस्त्रां में गए। मेरे पति ने स्पेन का Sangría नामक प्रसिद्ध पेय पीया जो वाईन, lemonade और फल डालकर बनाया जाता है। खाने में यहां Paella प्रसिद्ध है। चौथे दिन हमने Marineland जाने की सोची। इसकी टिकट online बुक करने या किसी travel agent से लेने पर दो ढाई यूरो सस्ती पड़ती है। travel agent से टिकट लेने पर जाने के लिए बस की टिकट भी मुफ्त मिल जाती है। Marineland में तीन शो होते हैं- Dolphin Show, Sea lion show, और parrot show. यह दिन में केवल तीन बार होते हैं। आप बीस यूरो देकर dolphin को छू भी सकते हैं और इनके साथ फोटो खिंचवा सकते हैं। मुझे बहुत मज़ा आया। Dolphin और sea lion के करतब देखकर तो ताली बजा बजा कर हाथ लाल हो गए। बच्चों के लिए भी यह जगह बड़ी रोचक है। इसके अलावा यहां कई तरह के समुद्री जीव जन्तु भी थे, जैसे penguin, सील मछली, stingray fish, कछुए, पानी वाला अजगर, बहुत बड़े गिरगिट, Flamingos आदि। इसके बाद हमने Palma Nova और Magaluf beach देखी। फिरोज़ी रंग और उजले रंग के बाली वाली Magaluf beach बहुत सुन्दर थी। उसके बीच में एक छोटा सा टापू भी था।

अगले दिन हमने Palma से Sóller नामक जगह तक चलने वाली सौ साल पुरानी ऐतिहासिक रेल की यात्रा की। इसके डिब्बे लकड़ी के बने हुए हैं। यह सुन्दर गांवों, पहाड़ों, और सुरंगों में से गुज़रती हुई एक घंटे में Sóller पहुंचती है। दस मिनट के लिए यह रेल एक Photo Point पर रुकती है जहां यात्रीगण उतर कर photo shooting कर सकते हैं। यह रास्ता इतना खूबसूरत था कि हम तो सारे रास्ते बैठे ही नहीं, खड़े होकर बाहर का प्राकृतिक नज़ारा देखते रहे। फिर Sóller में उतर कर हम लकड़ी की एक ऐतिहासिक ट्रैम में बैठे जो Sóller शहर से सन्तरों और नींबू के बगीचों में से गुज़रती हुई 20-25 मिनट में Port de Sóller नामक बन्दरगाह तक जाती है। एक ऊंची जगह से यह बन्दरगाह देखने में बहुत रोचक लगती है। इसके बाद हम ट्रैम लेकर Sóller शहर वापस आ गए और वहां थोड़ी सैर की। यहां के घर पत्थर के बने हुए हैं और देखने में बहुत ऐतिहासिक लगते हैं। फिर हम बस द्वारा पहाड़ों के बीच बसे हुए Deia नामक एक छोटे से गांव में गए। फिर हम बस से वापस Palma आ गए। Deia में से होता हुआ Sóller से Palma का रास्ता बहुत ही रमणीक है। मेरे ख्याल से Palma से Sóller रेल द्वारा जाना चाहिए और वापस बस से आना चाहिए।

अगले दिन हम कोई दो घंटे की दूरी पर Mallorca के दक्षिण में स्थित Estrenc नामक एक बहुत ही सुन्दर और मन-मोहक प्राकृतिक beach देखने गए। तीन किलोमीटर लंबी यह beach एक प्रकृति संरक्षित क्षेत्र है। इसलिए यहां अन्य beaches की तरह किनारे पर इमारतें नहीं बनी हुईं। इसके पानी का रंग भी फिरोज़ी था और बालू बिल्कुल सफेद। इसकी तुलना Maldives की beaches के साथ की जाती है। हमने खूब मौज़ मस्ती की, पानी में खूब नहाए और बालू के घर बनाए।

अन्तिम दिन हमने आसपास के beaches देखे। Illes Margret नामक बहुत सुन्दर viewing point और Illetas beach भी देखे। यहां तीन छोटी छोटी beaches हैं। उनका पानी और बालू बहुत सुन्दर हैं। हमने पानी में मौज मस्ती किया और शाम को थोड़ी shopping कर के होटल वापस आ गए, क्योंकि सुबह airport के लिए भी निकलना था। Mallorca की हर beach बहुत सुन्दर है। यहां देखने लायक और भी बहुत सी जगहें हैं जो हमने अगली बार घूमने के लिए बचा ली हैं, जैसे Formentor, Alcudia, La Calobra आदि। यह एक ऐसी जगह है जहां सभी आयु के लोगों के लिए कुछ न कुछ है। बच्चों से लेकर बूढों के लिए, दंपत्ति हों या परिवार। हमें तो यहां बहुत मज़ा आया और आने के बाद मैंने अपने सारे मित्रों को यहां जाने का परामर्श दिया।

शालिनी सिन्हा, म्युनिक

खतरनाक शारीरिक हमले के कारण सार्वजनिक खोज

संघीय पुलिस ने मांगी हैम्बर्ग मीडिया की मदद। अपराध स्थलः S-Bahnstation Hamburg Harburg Rathaus

संघीय पुलिस हैम्बर्ग ने दिसंबर 2008 में हुए एक अतरनाक अपराध के कारण एक संदिग्ध अपराधी फ़ोटो द्वारा ढूँढना आरंभ किया है। ये दो फ़ोटो उस समय निगरानी कैमरे द्वारा ली गई थीं। एक अन्य फ़ोटो के साथ पुलिस दो चश्मदीद गवाह लड़कियों की खोज भी कर रही है जिन्होंने अपराध होते हुए अपनी आंखों से देखा था।

जांच की वर्तमान स्थिति के अनुसार 31.12.2008 को एक अज्ञात व्यक्ति ने एक 27 वर्षीय युवती के ऊपरी शारीरिक हिस्से को शराब की कांच की बोतल के साथ बुरी तरह घायल कर दिया था। इससे लड़की के रिब की हड्डी टूट गई और फ़ेफ़ड़ों को भी चोट पहुँची। उसे लंबे समय तक अस्पताल में गहन चिकित्सिक देखभाल के अंतर्गत रहना पड़ा। स्टेशन में लड़की के दोस्त और अपराधी जो कुछ अन्य लड़कियों के साथ घूम रहा था, में कुछ नोकझोंक हो गई। उसके बाद लड़का और लड़की Harburg की ओर जाने वाली S-Bahn में खड़े थी कि अचानक प्लैटफ़ार्म पर खड़े अपराधी ने ट्रेन के खुले हुए दरवाज़े में से लड़की पर बोतल के साथ हमला कर दिया। अभी तक अपराधी का पता नहीं चल पाया है।
http://www.presseportal.de/polizeipresse/pm/70254/1396359/

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

हिजड़ों पर व्याख्यान

भारत की प्राचीन सभ्यता का एक जीता जागता उदाहरण है हिजड़ा समुदाय, जिसने समाज द्वारा तमाम उपेक्षाओं के बावजूद समाज और कानून के अन्दर ही रहते हुए ही अपना एक स्वायत्त समुदाय कायम किया। कोई नौकरी न मिलने पर उन्होंने निर्वाह के लिए धन कमाने के अपने तरीके खोजे, रहने सहने, पहनने, बोलने और व्यवहार की विशिष्ट शैलियां अपनाई। पश्चिम भी उन्हें transsexual, transvestite, homosexual या intersexual आदि किसी भी श्रेणी में परिभाषित नहीं कर सका। अंग्रेज़ों ने तरह तरह के कानून बनाकर उनकी मान्यता और तीन हज़ार पुरानी संस्कृति को समाप्त करने की कोशिश की। यही नहीं, स्वतन्त्रता के पश्चात भारत और पाकिस्तान ने भी ब्रिटिश संविधान ज्यों का त्यों अपना लिया जिसमें केवल दो लिंगों का ही प्रावधान है, पुरुष या स्त्री। हालांकि संस्कृत भाषा में तमाम क्रियाओं में एक तीसरा लिंग भी होता है। पर हिन्दी और उर्दू में इस तीसरे लिंग का प्रावधान नहीं है। पर हिजड़े गुपचुप, किसी न किसी तरह अपनी मान्यता और अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे जिसकी परिणती 2 जुलाई 2009 को भारतीय उच्च न्यायालय द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 के तहत सुनाए गए एक निर्णय के रूप में हुई। भारतीय पासपोर्ट आवेदन पत्र इसका प्रमाण है जिसमें पुरुष और स्त्री लिंग के साथ साथ अन्य भी लिखा हुआ है।

हिजड़े अधिकतर ऐसे लोग होते हैं चार पांच साल की उम्र से अपनी प्रवृत्ति को अपने लिंग से अलग महसूस करने लगते हैं। इनमें से अधिकतर या तो खुद मां बाप का घर छोड़ देते हैं या घर वाले खुद उन्हें त्याग देते हैं। हर एक हज़ार में दो तीन ऐसे जन्म हो सकते हैं। हालांकि ऐसा लड़कों और लड़कियों दोनो के साथ होता है, पर हमारे समाज में लड़कियों को अक्सर अलग होने की छूट नहीं मिलती। लड़कों में उदाहरण के लिए लिंग का आकार बहुत छोटा सा, बादाम जैसा हो सकता है। इस स्थिति में माता पिता को उसके भविष्य की चिन्ता होने लगती है, उनकी शादी न हो पाने का डर रहता है। हालांकि ज़रूरी नहीं कि वे नपुंसक हों। ऐसे बच्चे हिजड़ों के समूह में शामिल हो जाते हैं। अक्सर हिजड़ा हाउस के नाम से मशहूर इन घरों में एक गुरू के साथ सात आठ हिजड़े रहते हैं। गुरू उन्हें पैसे कमाने के तौर तरीके और खास तरह से व्यवहार करना सिखाता है। जैसे औरतों की तरह बोलना, हिलना, उंगलियां तान कर खास तरह से ज़ोर ज़ोर से ताली मारना जो हिजड़ों को खास पहचान देती है। हिजड़ों की श्रेणी में वे सब लोग आते हैं जो biologically न तो मर्द हैं और न ही औरत। हालांकि अधिकतर हिजड़ों का शरीर मर्द का होता है और पहरावा, व्यवहार आदि औरत के होते हैं, नाम भी औरतों वाले होते हैं जैसे शबनम, नर्गिस आदि, पर वे फिर भी औरत कहलाना पसन्द नहीं करते। उन्हें 'बदन मर्द और रूह औरत' की सञ्ज्ञा दी गई है।

क्योंकि भारत एक welfare state नहीं है, और काम या पढ़ाई के लिए भी उन्हें prefer नहीं किया जाता, इसलिए पैसा कमाने के वे अपने तरीके ढूंढते हैं। जैसे सात आठ सदस्यों की टोली बनाकर अपना जननांग क्षेत्र दिखाने के डर से धमकाकर व्यापारियों, ग्राहकों या अन्य लोगों से बीस तीस रुपए वसूलना। शादियों या लड़कों के जन्म पर आशीर्वाद देने पहुंचना और बदले में पैसे लेना। पैसा न मिलने पर वे अभिशाप भी दे सकते हैं, जिससे लोग बहुत ही ज़्यादा डरते हैं। हिजड़ा हाउस में अगर कोई सुन्दर दिखने वाला हिजड़ा हो तो चार पांच साल के लिए उससे वेश्यावृत्ति भी करवाई जाती है। भारत में बहुत से पारिवारिक मर्द मौखिक और गुदा मैथुन के लिए इन लोगों के पास जाते हैं क्योंकि पारम्परिक तौर पर भारतीय पत्नियां यह सब नहीं करतीं। फिर जब उनके पास धन कमाने का साधन नहीं रहता तो वे वरिष्ठ श्रेणी में आ जाते हैं और हिजड़ा हाउस के युवा सदस्य उनके लिए धन कमाते हैं। इस तरह भारत के एक welfare state न होने के बावजूद हिजड़ों ने पेंशन की एक स्वायत्त प्रणाली विकसित कर ली है।

अनुमानित भारत में बारह से बीस लाख, और पाकिस्तान में तीन चार लाख हिजड़े हैं। कोई अस्सी प्रतिशत हिजड़े हिन्दू हैं और बाकी मुसलमान। हिन्दू हिजड़े इसे माता का प्रकोप मानते हैं और गुजरात की बहुचरा माता को पूजते हैं। मुस्लिम हिजड़े इसे अल्लाह का प्रकोप मानते हैं।

केवल दस पन्द्रह प्रतिशत हिजड़े castrated होते हैं। एक दाई उनकी शल्य क्रिया करती है। शल्य क्रिया के दौरान व्यक्ति को चालीस दिन तक एक गुप्त कमरे में रखा जाता है और उसे किसी से मिलने की अनुमति नहीं होती। अब तो सर्जनों ने बाक़ायदा हिजड़ों के लिए operation के offer देने शुरू कर दिए हैं। पर सर्जनों को कई बार prefer नहीं किया जाता क्योंकि अक्सर बिना बेहोश किए, गाञ्जा या अफ़ीम खिलाकर और सम्भवत ज़्यादा से ज़्यादा खून बहाकर उनके अंग काटे जाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो कि उन्होंने मर्द लिंग से सचमुच निजात पा ली है। यह एक नए जन्म और एक धार्मिक कार्य की तरह माना जाता है और इस तरह हिजड़े बहुत पवित्र और बली माने जाते हैं। आशीर्वाद देने का हक इन्हीं को होता है। शल्य क्रिया के बाद पेशाब के निकास के लिए दाई penis की जगह एक नाली लगा देती है।

हिजड़ों की छवि से उलट वे बहुत हंसमुख और सहिष्णु होते हैं। उनकी अपनी विशिष्ट कामुकता होती है। वे भी एक वांछित शरीर के प्रति सजग होते हैं, सज कर और साफ सुथरे रहते हैं। वे समलैंगिक नहीं होते क्योंकि वे आपस में सम्भोग नहीं करते। हां औरतों की बजाय उनका पाला मर्दों के साथ अधिक पड़ता है। उन्हें बहुचरा माता की तरह प्रबल प्रवृत्ति का माना जाता है जिसने एक डाकू के आने पर अपना स्त्रीत्व मिटाने के लिए अपने स्तन काट दिए थे।

म्युनिक से Dr. Renate Syed द्वारा दिए गए एक व्याख्यान पर आधारित


notes:
http://passport.gov.in/cpv/ppapp1h.pdf
http://en.wikipedia.org/wiki/Bahuchara_Mata
http://diaryofanindian.blogspot.com/2008/04/blog-post_16.html
berlins dritte geschlecht
All India Hijda Sammelan

शुक्रवार, 26 जून 2009

भारतीय मूल की युवतियां टीवी के फाइनल शो में

25 जून 2009 को Pro7 टीवी चैनल में 'Germany's next Showstars' के फ़ाईनल शो में प्रसारित दस सर्वोत्तम आईटमों में से एक फ़्रैंकफ़र्ट निवासी दो नवयुवतिओं द्वारा प्रदर्शित बॉलीवुड डांस भी शामिल था। मॉडल Verona Pooth और डीजे बोबो (DJ BoBo) जैसे जाने माने जूरी सदस्यों के सामने 18 वर्षीय देबीरथी मण्डल और उनकी 14 वर्षीय बहन नीता मण्डल ने बॉलीवुड और अर्ध शास्त्रीय नृत्य का मिश्रण पेश किया। शो में बॉलीवुड डांस को एक अन्तरराष्ट्रीय रूप देने के लिए शामिल किया गया।दोनों युवा कलाकारों के पिता श्री मिहिर कुमार मण्डल जो बहुत पहले कोलकाता से जर्मनी आ गए थे, बताते हैं कि देबी और नीता को नृत्य की प्रेरणा अपनी माता 'संजू मण्डल' से मिली जिन्होंने कोलकाता से नृत्य प्रशिक्षण लिया पर जर्मनी आने के कारण छोड़ना पड़ा। देबी और नीता मण्डल, जो जर्मनी में पैदा और बड़ी हुईं, और क्रमश बारहवीं और नवीं कक्षा में पढ़ती हैं, हर वर्ष दो तीन बार कुछ सप्ताह के लिए कोलकाता जाकर एक प्रतिष्ठित नृत्य स्कूल से प्रशिक्षण भी लेती हैं, नियमित तौर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कला प्रदर्शन करती रहती हैं। वे इटली, यूनान, बेल्जियम आदि में भी शो कर चुकी हैं।

देबी और नीता 13 मार्च को फ़्रैंकफ़र्ट में हुए एक कार्यक्रम में

सोमवार, 1 जून 2009

नकली नोट चलाने वाला अपराधी अभी लापता

2007 में क्रिस्मस से पहले एक अपराधी ने Wuppertal शहर में कई दुकानों पर दो दो सौ यूरो के नकली नोट चलाए (13 बार)। उसका अभी तक पता नहीं चल पाया है। उसी की तरह दिखने वाले एक व्यक्ति ने Duisburg, Hagen और बर्लिन में भी दो सौ यूरो के नकली नोट चलाए हैं। एक गवाह की मदद से उसकी एक प्रेत छवि तैयार की गई है। उसकी आयु पच्चीस और पैंतीस वर्ष के बीच है, जीभ में पीर्सींग की हुई है, अच्छा खासा दिखता है और अंग्रेज़ी बोलता है। ZDF चैनल पर चलने वाले अपराध आधारित धारावाहिक 'Aktenzeichen XY... ungelöst' में 3 जून को प्रसारित होने वाली कड़ी में उसके तौर तरीकों पर गौर किया जाएगा।

अवैध शरणार्थी घुसे घर में

6 जनवरी को शाम करीब चार बजे Wuppertal में Uellendahler Straße में दो अपराधी एक घर के पिछवाड़े से घुस कर ढाई मीटर ऊँचे छज्जे पर चढ़ गए। जब वे बलकनी का दरवाज़ा तोड़कर अंदर घुसने लगे तो कुछ लोगों ने उन्हें देख लिया। इससे वे वहां से भाग गए। उनमें से एक की प्रेत छवि (Phantombild, Facial composite) तैयार करके सार्वजनिक की गई थी जिसकी मदद से 23 फरवरी को उसी क्षेत्र में एक 48 वर्षीय पूर्व यूगोस्लाविया का एक व्यक्ति गिरफ़्तार किया गया जिसकी शक्ल इस छवि से मिलती जुलती थी। एक गवाह ने उसे पहचान भी लिया। उसका कोई स्थाई पता नहीं है और वह इस अपराध के बारे में कुछ भी नहीं बता रहा है। आपराधिक पुलिस का मानना है कि जर्मनी में अपने साथी के साथ अवैध रूप से रहता रहा है। पुलिस को उसके अस्थाई ठिकाने और उसके साथी की तलाश है।

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बचत बैंक में डकैती

22 मई को दोपहर पौने बारह बजे Wuppertal-Barmen में एक बैंक में दो अजनबियों ने कैश काउंटर पर पिस्तौल दिखा कर कई हज़ार यूरो लूट लिए और साथ में लाए एक प्लास्टिक के लिफ़ाफे में भर कर पैदल वहां से भाग गए। तत्काल आरंभ की गई छानबीन से अभी सफ़लता नहीं मिली है। लेकिन बैंक में लगे कैमरे से उन दोनों की कुछ तस्वीरें ली गई हैं।

पैट्रोल पंप से लूटा कैश

30 अप्रैल रात साढे नौ बजे Wuppertal-Ronsdorf में Lindestraße पर स्थित एक पैट्रोल पंप में एक लंबे बालों वाला 20-25 वर्षीय युवक आकर काउंटर पर विक्रेता की प्रतीक्षा करने लगा। दुकान के पीछे काम रही औरत जब काउंटर पर वापस आई तो युवक ने उसे पिस्तौल दिखा कर सारा कैश हथिया लिया और वहां से भाग गया। Wuppertal की आपराधिक पुलिस ने औरत द्वारा दिए युवक के विवरण के अनुसार अपराधी का फ़ैंटम चित्र तैयार किया है और उसे ढूँढ रही है।

हैम्बर्ग में जर्मनी का सबसे खतरनाक अपराधी गिरफ़्तार

28 मई को शाम साढे छह बजे हैम्बर्ग शहर के Reeperbahn रेड लाइट इलाके में से Thomas WOLF नामक 56 वर्षीय खुंखार अपराधी को पकड़ लिया गया जो पिछले 9 सालों से फरार था। यह अपराधी मूलतः डुसलडोर्फ का निवासी माना जाता है। यह कई युरोपीय भाषाओं का जानकार है और समय समय पर दूसरा रुप धारन करके भागता रहा है। गत 8 सालों से यह आदमी डच बन कर फ़्रैंकफ़र्ट में अपनी प्रेमिका के साथ रह रहा था। जर्मन पुलिस इसे कई बैंक डाकों, फिरौती और धमकाने की घटनाओं मे शामिल मानती है। इसके सर पर 100,000€ का ईनाम रखा गया था।

सन् 2000 में इसने नकली बम दिखा के एक बैंक से 250,000€ लूटे। मार्च 2008 में इसने Wiesbaden शहर में एक बडे बैंक अधिकारी की बीवी को अगुआ कर के 18 लाख यूरो बटोरे। बार-बार नाम और भाषा बदल कर भागने वाला यह अपराधी अपराध जगत में "गिरगिट" के नाम से जाना जाता है। बटोरे गए पैसों में से करीब डेढ लाख यूरो एक होटल के कमरे और भागने के लिए उपयोग की एक गाड़ी में से मिल गए हैं। बाकी पैसों का अभी पता लगाया जा रहा है।

अभिषेक कुमार

मंगलवार, 12 मई 2009

छात्रा ने किया साथिन को चाकू से घायल

कोलोन के पास Sankt Augustin में एक स्कूल में एक लड़की को चाकू से ज़ख्मी करने के अपराध में करीब चौदह वर्षीय Tanja Otto नामक एक छात्रा पर शक किया जा रहा है। वह अपनी साथिन को घायल करके स्कूल से भाग गई थी लेकिन उसे अगले दिन पकड़ लिया गया। पूछताछ जारी है।

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

बर्लिन में पर्यटन व्यापार मेला

11 से 15 मार्च तक बर्लिन में हुए विश्व के सबसे बड़े पर्यटन आधारित व्यापार मेले ITB में 'अतुल्य भारत' के बैनर तले अनेक भारतीय टूर ऑप्रेटरों और प्रांतीय सरकारों ने एक बड़े से पवेलियन में स्टॉल लगाए। पवेलियन के अलावा भी सीता ट्रैवल्स, IAE जैसी कई बड़ी भारतीय कंपनियों ने अपने स्टॉल लगाए। गोआ के पर्यटन विभाग ने हालांकि पवेलियन में अपना स्टॉल लगाया लेकिन अपनी विशिष्ट पहचान के कारण उन्होंने एक अन्य हॉल में अलग स्टॉल भी लगाया।

12 मार्च को भारतीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा आयोजित की गई एक प्रेस वार्ता में भारतीय महाराज दूत श्रीमती मीरा शंकर ने मेहमानों और पत्रकारों का स्वागत किया। पर्यटन सेक्रेटरी सुजीत बैनर्जी ने मंदी के इस दौर में भारतीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा जारी की गईं कुछ विशेष योजनाओं पर रौशनी डाली। उनके जोश भरे व्याख्यान को सुन कर भरे हुए हॉल में दर्शक और पत्रकार उत्साहित हो उठे। उन्होंने भारत में हेल्थ टूरिज़्म का परिचय देते हुए कहा कि लोग उनसे पूछते हें कि पैसा कहां लगाएँ। तो उनका उत्तर होता है कि अपने आप में। यानि भारत आकर हेल्थ टूरिज़्म का मज़ा लें। उन्होंने कहा कि पर्यटन के लिए भारत ने जर्मनी समेत पाँच देशों के नागरिकों को मल्टी वीज़ा देना शुरू कर दिया है। यही नहीं, 1 अप्रैल से 31 दिसंबर तक कुछ खास होटलों और एयर इंडिया की ओर से खास छूट भी दी जा रही है। उन्होंने नेशनल जयोग्राफिक द्वारा तैयार किया गया भारतीय पर्यटन आधारित ऑनलाइन मानचित्र भी दिखाया जिसमें विभिन्न तरह के पर्यटन स्थल खोजे जा सकते हैं, जैसे सांस्कृतिक स्थल, रेलमार्ग और सड़कें, ऐतिहासिक स्थल, culinary, culture, rail road sites, historical, वन्य पार्क, धार्मिक स्थल आदि। उन्होंने मुंबई धमाकों के बाद पर्यटन की स्थिति दोबारा सामान्य होने का प्रमाण मुंबई के ताज होटल से दिया। उन्होंने कहा कि मुंबई का ताज होटल पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। उसकी मरम्मत के लिए विश्व की तमाम ताज कंपनियों के लोगों को बुलाया गया था। बल्कि मरम्मत के दौरान खुद रतन टाटा भी वहां मौजूद रहे। जिससे पता चलता है कि उन्हें इस भव्य भवन से कितना लगाव है। एक पत्रकार पूछने पर कि पूरबी राज्यों में पर्यटन के बारे में क्यों नहीं बताया जा रहा, उन्होंने कहा कि आठ पूरबी 'सिस्टर स्टेटस' के लिए विदेशी पर्यटकों को खास अनुमति लेनी पड़ती है। आगे जानकारी दी कि पर्यटन मंत्रालय ने भारतीयों को विदेशी पर्यटकों के प्रति आतिथ्य का नज़रिया अपनाने के लिए विशेष अभियान चलाया है 'अतिथि देवो भव' जिसके ब्रांड एंबेस्सेडर जाने माने अभिनेता आमिर खान हैं।

एयर इंडिया से जितेंद्र भारगव ने कि एयर इंडिया ने साठ वर्ष के इतिहास में बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं। अब इसके पास साढ़े चार सौ विमान हैं जिनमें अति आधुनिक बोईंग 777-300 जैसे विमान भी शामिल हैं। हर सप्ताह एयर इंडिया की 180 अंतरराष्ट्रीय नॉन स्टॉप उड़ानें उपलब्ध हैं। दिल्ली और मुंबई से न्यू यॉर्क जाने वाली उड़ानों का नारा है good aircraft, good time, good reach

अतुल्य भारत के फ़्रैंकफर्ट कार्यालय से सहायक निर्देशक अनिल ओराव और उनके स्टॉफ ने इस व्यापार मेले में पवेलियन और प्रेस वार्ता आदि के प्रबंधन के लिए मेला आरंभ होने से कई दिन पहले की काम शुरू कर दिया था।

अधिकतर भारतीय प्रदर्शकों का मानना था कि पहले अपेक्षा इस बार मेले में मंदी साफ़ दिख रही है। पहले मेले में पाँव रखने की जगह नहीं होती थी लेकिन इस बार खाली खाली लग रहा है। राजस्थान में उदयपुर में पिचोला झील के किनारे बने 'उडाई कोठी' नामक एक बोटीक होटल की निर्देशक 'भुवनेश्वरी कुमारी' का मानना था कि मुंबई कांड भारत के पर्यटन उद्योग पर जान बोझ के बनाया गया निशाना था। क्योंकि एक यही एक उद्योग मंदी से इतना प्रभावित नहीं हुआ था।

ITB में एक जर्मन महिला ने पूछा कि भारत सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इतना कुछ कर रही है, तो वीज़ा की फ़ीस माफ़ क्यों नहीं कर देती? तो महाराजदूत मीरा शंकर ने कहा कि ये पारस्परिक होता है। जर्मन सरकार भी भारतीय नागरिकों से भारी वीज़ा फ़ीस लेती है। यहां तक कि व्यापार मेलों में भाग लेने वाले आंगतुकों को वीज़ा केवल उतनी अवधि के लिए मिलता है जितने दिन मेला चलना हो। एक दिन भी ऊपर नहीं।

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

युवक ने लगाई घर में आग

27 फरवरी को Burgdorf नामक गाँव में एक 59 वर्षीय के घर के बाहर बने लकड़ी के शेड में किसी ने आग लगा दी। शेड में बहुत सी कटी हुई लकड़ी और लकड़ी का फ़र्नीचर था, जो लगभग जलकर राख हो गया है। बल्कि साथ वाले घर के शेड में भी कुछ नुक्सान हुआ है। कुल नुक्सान करीब पाँच हज़ार यूरो बताया जा रहा है। पुलिस को एक 17 से 25 वर्षीय, लगभग 1.82 मीटर कद वाले युवक पर शक है जिसका फ़ैंटम फ़ोटो तैयार किया गया है।

चुराए हुए ज़ेवर छोड़ कर भागा चोर

Lintfort शहर में 21 अप्रैल को दोपहर एक लगभग 30 वर्षीय व्यक्ति एक ज़ेवरों की दुकान से सोने और पैलेडियम के कुछ ज़ेवर ले भागा। दुकान की मालकिन उसके पीछे भागी। पर संयोग से दुकान का एक कर्मी अपने एक दोस्त के साथ सामने से आ रहा था। दोस्त ने फुर्ती से भगौड़े को पकड़ लिया। भगौड़े के साथ से चुराया हुआ सामान गिर गया पर वह भागने में सफ़ल हो गया। पुलिस को तलाश है।

बस ड्राइवर के पास बच्चों के अश्लील चित्र

Friesland क्षेत्र के एक 55 वर्षीय बस ड्राइवर के कंप्यूटर में बच्चों के लगभग 12000 अश्लील चित्र पाए गए हैं। मार्च अंत में वहां की पुलिस को बायरन पुलिस द्वारा इस व्यक्ति का पता चला जो इंटरनेट में चिल्ड्रन पोर्नोग्राफ़ी अपराधियों का पता लगा रही थी। पूछताछ के दौरान अभी ये बात साफ़ नहीं हुई है कि इन चित्रों से उसका कोई सीधा वास्ता है कि नहीं। उसने कुछ बच्चों को टैक्सी द्वारा घर ज़रूर छोड़ा था पर हैनोवर अदालत के अभियोक्ता अनुसार बच्चों पर यौन उत्पीड़न के संकेत नहीं मिले हैं।

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

सिगरेट मना करने पर पिटाई

Aachen शहर में 17 अप्रैल रात साढे ग्यारह बजे Roermonder Straße पर जा रहे तीन लोगों ने एक व्यक्ति से सिगरेट के लिए पूछा। उसके मना करने उन्होने उसके मुँह में घूँसा जड़ दिया और फिर उसकी पिटाई करने लगे। उसके ज़मीन पर गिरने के बाद भी उसकी लातों और घूँसों से पिटाई करते रहे। वे उसका बटुआ छीनना चाहते थे पर पास से गुज़र रहे कुछ लोग मदद के लिए आ गए और अपराधियों का पीछा करने लगे। उन्होंने एक को पुलिस के आने तक पकड़ लिया। पर अन्य दो भाग गए। 24 वर्षीय घायल व्यक्ति ने मरहम पट्टी के लिए मना कर दिया। पुलिस को जांच से पता चला कि 29 वर्षीय पकड़ा गया व्यक्ति पहले से पुलिस रिकार्ड में है। पूछताछ चल रही है।

लड़के ने की अपने माता-पिता और बहनों की हत्या

Ulm के पास Eislingen नामक शहर में 9 अप्रैल की रात को एक 18 वर्षीय लड़के ने अपने एक 19 वर्षीय दोस्त के साथ मिलकर अपने ही घर में अपनी दो बड़ी बहनों और अपने माता पिता की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या के कारण अभी साफ़ नहीं हो पाए हैं। किसने किसपर कितनी गोलियां चलाईं, यह भी अभी साफ़ नहीं है।

उस रात को दोनों दोस्त बड़े लड़के के घर से निकल कर छोटे वाले के घर की चल पड़े। लड़के के माता पिता दोस्तों को मिलने किसी रेस्त्रां में गए हुए थे और घर में केवल उसकी चौबीस और बाईस वर्षीय बहनें थीं। उन्होंने उन पर क्रमशः नौ और दस गोलियां चला कर हत्या कर दी। फिर वे माता पिता से मिलने रेस्त्रां चले गए। वहां उनके साथ आधा घंटा बैठ कर फिर घर वापस आ गए और माता पिता के वापस आने की प्रतीक्षा करने लगे। 57 वर्षीय पिता और 55 वर्षीय माता के वापस आते ही उन्हें भी क्रमशः आठ और तीन गोलियों से भून दिया।

केस की जांच के लिए पुलिस द्वारा 30 लोगों का 'विशेष जांच दल' गठित किया गया। शिकारी कुत्तों की मदद से घर के पास के जंगल में एक कूड़े वाले प्लास्टिक बैग में लिपटी एक पिस्तौल और अपराध के समय पहने गए कपड़े पाए गए। 18 वर्षीय लड़का शहर के एक शूटिंग क्लब का सदस्य भी था। पिछली अक्तूबर इस क्लब से कुछ हथियार चुराए गए थे। अब साफ़ हो गया कि यह हथियार इन्हीं लोगों ने चुराए थे।

हत्या के बाद लड़के ने रेड क्रास और पुलिस को घर में हत्या की खबर दी। आरंभिक जांच में पुलिस को शक हुआ कि न तो घर के मृत सदस्य किसी अजनबी के आगमन से चौंके होंगे, न किसी के घर में ज़बरदस्ती घुसने के निशान थे। शक के आधार पर इन दोनों को गिरफ्तार किया गया था पर उस समय ये दोनों अपराध स्वीकार नहीं कर रहे थे। 16 अप्रैल को बड़े लड़के ने आखिर अपराध स्वीकार कर लिया, जबकि छोटे वाला अभी खामोश था।

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

संतोषजनक काम न करने से चाकू से हमला

14 अप्रैल को Köln-Nippes में एक 69 वर्षीय बूढ़े ने जान पहचान वाले एक 40 वर्षीय व्यक्ति पर चाकू चला दिया। उसे गिरफ़्तार कर लिया गया है।

दोनों व्यक्तियों में कुछ दिन से आनाकानी चल रही थी। बूढ़े व्यक्ति के अनुसार छोटी आयु वाले व्यक्ति ने उसका कोई काम ढंग से नहीं किया था, इसलिए उसने उसके पैसे नहीं दिए। इस दौरान किसी ने बूढ़े व्यक्ति की फ़ोल्क्सवागन गाड़ी के टायर चाकू से काट दिए, जिससे बूढा समझा कि छोटे व्यक्ति ने यह किया है। 14 अप्रैल को छोटे व्यक्ति ने रात को अपने घर की खिड़की में देखा कि बूढ़ा व्यक्ति उसकी कार के टायर काट रहा है। जैसे ही उसने उसे रोकना चाहा तो अचानक बूढ़े ने उसपर चाकू चला दिया और वहां से भाग गया। घायल 40 वर्षीय को अस्पताल में दाखिल करवाया गया। डॉक्टर के अनुसार वह खतरे से बाहर है। बूढ़े को बाद में उसके अपार्टमेंट में से गिरफ़्तार कर लिया गया। अभी पूछताछ चल रही है।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

आग में जलकर बना सच्चा सोना- परमदीप सिंह संधु

भारत में घर-बार, ज़मीन जायदाद, ऐशो-आराम और मां के दुलार के साथ सामान्य जीवन व्यतीय करने वाले एक नवयुवक को जब अचानक दूर देश में अवैध रूप से जाकर जानलेवा संघर्ष करना पड़े और जीवन के अनजान पहलुओं से रूबरू होना पड़े है तो उसके दिल पर क्या बीतती होगी? यह परम दीप सिंह संधु से बेहतर कोई नहीं जानता जिन्होंने खुद जीवन की ऐसी सच्चाइयों का सामना किया है।

भारत में किसान पृष्ठभूमि के एक निम्न मध्यवर्गीय पंजाबी परिवार से परम दीप सिंह संधु ने सन 2000 में केवल अट्ठारह वर्ष की आयु में जर्मनी में संघर्ष कर रहे अपने पिता का साथ देने का निर्णय लिया और एक एजेंट द्वारा किसी तरह केवल पाँच दिन के वीज़ा पर फ़्रांस आए। वहां से भागकर वे जर्मनी के म्युनिक शहर में अपने पिता के पास आकर रहने लगे और पहचान छुपाने के लिए अपना पासपोर्ट किसी को दे दिया। उस समय उन्हें नहीं पता था कि आने वाला समय बहुत कठिन और खतरनाक संघर्ष वाला रहेगा जिसमें उन्हें खूब ज़िल्लत उठानी पड़ेगी, जानलेवा लड़ाइयों का सामना करना पड़ेगा और कड़कड़ाती सर्दी में बाहर चौदह घंटे निम्न स्तर का काम करना पड़ेगा।

पकड़े जाने के डर से वे हमेशा सावधान रहते और गुप्त रूप से छिटपुट काम करके दो पैसे कमाते। लेकिन अंत में एक साथी की ग़लती से वे पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए। उनपर राजनैतिक शरण का केस बनाकर उन्हें पूरब जर्मनी के एक शरणार्थी शिविर (Flüchtlingslager) में भेज दिया गया जहां से उनका पासपोर्ट मिलते ही वापस भारत निर्वासित किया जाना था। पूरब जर्मनी का वह क्षेत्र अभी भी नाज़ियों का गढ़ है जो विदेशियों से नफ़रत और लगातार लड़ाई झगड़ा करते हैं, पैसे छीन लेते हैं। इस शिविर के दौरान उन्हें निर्धारित क्षेत्र के बाहर जाने की और पैसे कमाने के लिए दिन में दो घंटे से अधिक काम करने की अनुमति नहीं थी।

किसी तरह वे कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर सड़कों पर छोटा मोटा सामान बेचने लगे। दिन भर बाहर कड़कड़ाती ठंड में काम करके जब रात को वे सुनसान रास्ते से पहाड़ी के ऊपर बने शिविर की ओर लौटने लगते तो अक्सर झाड़ियों में छुपे नाज़ी उन्हें घेर लेते और पैसे व अन्य वस्तुएँ छीन लेते। ज़रा सा भी विरोध करने पर, यहां तक कि आँखों में घूरने पर भी वे हमला बोल देते। इसीलिए वे अक्सर हाथ में काँच बोतलें लिए लड़ाई के तैयार रहते हुए अपना रास्ता तय करते। लेकिन फिर भी उनकी कई बार खतरनाक लड़ाईयां हुईं। एक बार तो उनकी टाँग में लंबे चाकू का घाव लगा जिस पर पच्चीस टांके लगे। अक्सर वहां की पुलिस भी नाज़ियों का ही साथ देती। एक बार तो उन्हें लड़ाई के चक्कर में छह महीने के लिए जेल की अंधेरी कालकोठरी की हवा भी खानी पड़ी जहां दिन और रात में अंतर नहीं पता चलता था। जेल से बाहर आने पर भी काम को लेकर उन्हें खूब शोषण का शिकार होना पड़ा। दिन में चौदह घंटों तक घरों में विज्ञापन बाँटने पर भी रात को उन्हें केवल दस डी-मार्क मिलते (सन 2000-2001 में यूरो करंसी शुरू होने के समय एक डी-मार्क की कीमत केवल आधा यूरो थी)।

फिर धीरे धीरे समय ने करवट ली और उनका एक चालीस वर्षीय जर्मन औरत से संपर्क हुआ। उस औरत से उन्हें स्नेह मिला और उस कठिन समय में सबसे आवश्यक मदद, शादी का प्रस्ताव। जर्मनी में वैध रूप से रह पाने का यही एकमात्र उपाय था। उन्होंने डेनमार्क जाकर उस औरत के साथ जाकर शादी रच ली। डेनमार्क में अधिक पूछताछ किए बिना शादी संपन्न करवा दी जाती है। फिर भी उनका रास्ता इतना आसान न था। जर्मन अधिकारियों ने उन्हें बिना वैध वीज़ा दिए भारत निर्वासित करने का पुरजोर प्रयत्न किया पर वे वीज़ा लेने में सफ़ल हो गए और वापस पश्चिमी जर्मनी के म्युनिक शहर में आकर रहने लगे। काम के अनुभव के अभाव में उन्हें बहुत कम वेतन में निम्न दर्जे के काम करने पड़े जैसे रेस्त्रां में जूठे बर्तन और कूड़ा कर्कट साफ़ करना। आज नौ साल के कड़े संघर्ष के बाद वे सामान्य स्थिति में हैं। इस संघर्ष को वे व्यर्थ नहीं मानते। उनका मानना है कि घरवालों के सुरक्षित साए में रहते हुए मनुष्य जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से अनजान रह जाता है जिनसे जीवन के सही मायने सीखने को मिलते हैं। अपनी पत्नी और सामान्य तौर पर जर्मन औरतों का वे विशेष धन्यवाद करते हैं जो कठिन समय में विदेशी युवकों की मदद करती हैं जब अपने भी साथ छोड़ चुके होते हैं। उनका मानना है कि जर्मन औरतें मर्दों की भौतिक उपलब्धियों पर नज़र नहीं रखतीं, वे उनसे केवल स्नेह चाहती हैं। लेकिन विदेशी लोग केवल वैध वीज़ा पाने के लिए उनका उपयोग करते हैं और काम होने के बाद जल्द से जल्द तलाक ले लेते हैं। बहुत बार तो वे बच्चा पैदा होने के बाद भी औरतों को छोड़ देते हैं। ऐसी अनगिनत घटनाओं ने भारतीय मर्दों की छवि को चोट पहुँचाई है।

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

स्लमडॉग में भारत को नीचा

ऑस्कर पुरस्कृत फ़िल्म स्लमडॉग मिलिनेयर ने बेशक भारतीय दर्शकों को विचलित कर दिया है। बहुत से विदेशी भी इस मुद्दे पर भारतीयों के साथ सहानुभूति रखते हैं। ऐसी ही एक महिला हैं Monika Ratering, जो पेशे से पेंटर हैं (http://ratering-art.com/) और वर्षों से नियमित तौर पर भारत का दौरा कर ही हैं। हाल ही में भारतीय दूतावास बर्लिन में भारत पर आधारित उनके चित्रों की एक प्रदर्शनी समाप्त हुई है '16000 Princesses Marry God'. वे 'स्लमडॉग मिलिनेयर' में दिखाई गई भारत की छवि से असहमति जताती हुई पूछती हैं कि क्या भारत में स्लम में रहने वाले लोगों को स्लमडॉग कहा जाता है? नहीं। क्या वहां बारह तेरह वर्ष के बच्चे पिस्तौल लेकर घूमते हैं, अपराधी हैं? नहीं। पश्चिम भारत को नीची नज़र से देखना चाहता है, और वही उस फ़िल्म में दिखाया गया है। ये फिल्म मूल पुस्तक से बहुत अलग है। मैं भारतीयों के गुस्से को समझ सकती हूँ। पश्चिमी फ़िल्मों की अपेक्षा भारतीय फिल्में कितनी अच्छी होती हैं। यहां हम भारतीय फिल्मों पर लोग हंसते हैं कि वे बेवजह नाचने गाने लगते हैं। लेकिन शायद यही भारतीय लोगों के शांतिप्रिय होने का कारण है। जबकि बहुत सी पश्चिमी फिल्मों का आधार डर होता है। उनमें पहले डर पैदा किया जाता है। फिर अंत में बुरे व्यक्ति को मार कर चैन की सांस ली जाती है। लेकिन हम भूल जाते हैं कि बुरे व्यक्ति को जान से मारना भी हिंसा है जिसे फिल्मों में महिमामंडित किया जाता है। जब हिंसा को इस तरह महिमामंडन मिलता है तो यही हमारे बच्चे और युवक ग्रहण करते हैं। फिर हम हैरान होते हैं कि फलां किशोर ने स्कूल में पंद्रह व्यक्तियों की गोली मारकर हत्या क्यों कर दी। (हाल ही में जर्मनी में हुई एक घटना का संदर्भ देकर जिसमें एक 17 वर्षीय छात्र ने स्कूल में नौ छात्रों, तीन अध्यापकों, और तीन अन्य व्यक्तियों की हत्या कर दी और फिर अंत में पुलिस मुठभेड़ में आत्महत्या कर ली)। 

Monika Ratering पिछले नौ वर्ष से हर वर्ष दो तीन महीने के लिए भारत जाती रही हैं। उनका कहना है 'भारतीयों का जर्मनी के ठंडे मौसम में लंबे समय तक न रह पाने की समस्या मैं समझ सकती हूँ। सर्दियों का मौसम यहां बहुत ठंडा, लंबा और अंधकार-पूर्ण होता है, जबकि भारत में ठंड में भी चमकते सूर्य की रौशनी मन में जोश पैदा करती है। इसी जलवायु का असर लोगों के स्वभाव पर भी पड़ता है। भारत के लोग खुले दिल के और हंसमुख हैं, खिलखिलाकर हंसते हैं जबकि यहां के लोगों का स्वभाव तुलना में ठंडा है। एक बार जब मैं भारत से वापस जर्मनी आई तो दो तीन सप्ताह तक रोती रही।

वहीं बर्लिन निवासी सुशीला शर्मा का कहना है 'फ़िल्म में सच दिखाया गया है। बच्चों को चोरी, अपराध करते हुए, पुलिस वालों को बच्चों को खदेड़ते हुए मैंने अपनी आँखों से देखा है। बच्चों को भीख मांगने के लिए अपंग बनाया जाता है। रेल में सामान बेचने वाले बच्चे और औरतों को कमाई में से कुछ भी नहीं मिलता है। उनके पीछे व्यापारी होते हैं। ये चीज़ें हम आम भारतीयों को चौंका सकती हैं पर हमें भूलना नहीं चाहिए कि हम हिंदुस्तानी हैं, हिंदुस्तान नहीं।' सुशीला शर्मा Tata Institute of Social Sciences से post graduate diploma प्राप्त हैं और मुंबई में बहुत सारा चिकित्सीय और मनोचिकित्सीय सामाजिक कार्य करती रही हैं।

गुरुवार, 19 मार्च 2009

Republic Day Celebrations at the Embassy

The 60th Republic Day celebrations were held at the Embassy of India premises in Berlin. Ambassador Smt. Meera Shankar hoisted the National Flag and after singing of the National Anthem, read out the Presidents's message to a large gathering of Indian nationals, PIOs and German friends of India. This was followed by a cultural program, which included singing of patriotic songs by the Embassz officials and their family members, kathak performance bz the German dancer, Ms Ioanna Srinivasan and a reception for the invitees. The Hindi Film "A Wedndesday" was also screened at the Embassy Auditorium. About 150 persons including the Executive Committee members of leading Indian Associations, academicisans, Indian students and professionls in Berlin and surrounding areas attended the function.