शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

हिजड़ों पर व्याख्यान

भारत की प्राचीन सभ्यता का एक जीता जागता उदाहरण है हिजड़ा समुदाय, जिसने समाज द्वारा तमाम उपेक्षाओं के बावजूद समाज और कानून के अन्दर ही रहते हुए ही अपना एक स्वायत्त समुदाय कायम किया। कोई नौकरी न मिलने पर उन्होंने निर्वाह के लिए धन कमाने के अपने तरीके खोजे, रहने सहने, पहनने, बोलने और व्यवहार की विशिष्ट शैलियां अपनाई। पश्चिम भी उन्हें transsexual, transvestite, homosexual या intersexual आदि किसी भी श्रेणी में परिभाषित नहीं कर सका। अंग्रेज़ों ने तरह तरह के कानून बनाकर उनकी मान्यता और तीन हज़ार पुरानी संस्कृति को समाप्त करने की कोशिश की। यही नहीं, स्वतन्त्रता के पश्चात भारत और पाकिस्तान ने भी ब्रिटिश संविधान ज्यों का त्यों अपना लिया जिसमें केवल दो लिंगों का ही प्रावधान है, पुरुष या स्त्री। हालांकि संस्कृत भाषा में तमाम क्रियाओं में एक तीसरा लिंग भी होता है। पर हिन्दी और उर्दू में इस तीसरे लिंग का प्रावधान नहीं है। पर हिजड़े गुपचुप, किसी न किसी तरह अपनी मान्यता और अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे जिसकी परिणती 2 जुलाई 2009 को भारतीय उच्च न्यायालय द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 के तहत सुनाए गए एक निर्णय के रूप में हुई। भारतीय पासपोर्ट आवेदन पत्र इसका प्रमाण है जिसमें पुरुष और स्त्री लिंग के साथ साथ अन्य भी लिखा हुआ है।

हिजड़े अधिकतर ऐसे लोग होते हैं चार पांच साल की उम्र से अपनी प्रवृत्ति को अपने लिंग से अलग महसूस करने लगते हैं। इनमें से अधिकतर या तो खुद मां बाप का घर छोड़ देते हैं या घर वाले खुद उन्हें त्याग देते हैं। हर एक हज़ार में दो तीन ऐसे जन्म हो सकते हैं। हालांकि ऐसा लड़कों और लड़कियों दोनो के साथ होता है, पर हमारे समाज में लड़कियों को अक्सर अलग होने की छूट नहीं मिलती। लड़कों में उदाहरण के लिए लिंग का आकार बहुत छोटा सा, बादाम जैसा हो सकता है। इस स्थिति में माता पिता को उसके भविष्य की चिन्ता होने लगती है, उनकी शादी न हो पाने का डर रहता है। हालांकि ज़रूरी नहीं कि वे नपुंसक हों। ऐसे बच्चे हिजड़ों के समूह में शामिल हो जाते हैं। अक्सर हिजड़ा हाउस के नाम से मशहूर इन घरों में एक गुरू के साथ सात आठ हिजड़े रहते हैं। गुरू उन्हें पैसे कमाने के तौर तरीके और खास तरह से व्यवहार करना सिखाता है। जैसे औरतों की तरह बोलना, हिलना, उंगलियां तान कर खास तरह से ज़ोर ज़ोर से ताली मारना जो हिजड़ों को खास पहचान देती है। हिजड़ों की श्रेणी में वे सब लोग आते हैं जो biologically न तो मर्द हैं और न ही औरत। हालांकि अधिकतर हिजड़ों का शरीर मर्द का होता है और पहरावा, व्यवहार आदि औरत के होते हैं, नाम भी औरतों वाले होते हैं जैसे शबनम, नर्गिस आदि, पर वे फिर भी औरत कहलाना पसन्द नहीं करते। उन्हें 'बदन मर्द और रूह औरत' की सञ्ज्ञा दी गई है।

क्योंकि भारत एक welfare state नहीं है, और काम या पढ़ाई के लिए भी उन्हें prefer नहीं किया जाता, इसलिए पैसा कमाने के वे अपने तरीके ढूंढते हैं। जैसे सात आठ सदस्यों की टोली बनाकर अपना जननांग क्षेत्र दिखाने के डर से धमकाकर व्यापारियों, ग्राहकों या अन्य लोगों से बीस तीस रुपए वसूलना। शादियों या लड़कों के जन्म पर आशीर्वाद देने पहुंचना और बदले में पैसे लेना। पैसा न मिलने पर वे अभिशाप भी दे सकते हैं, जिससे लोग बहुत ही ज़्यादा डरते हैं। हिजड़ा हाउस में अगर कोई सुन्दर दिखने वाला हिजड़ा हो तो चार पांच साल के लिए उससे वेश्यावृत्ति भी करवाई जाती है। भारत में बहुत से पारिवारिक मर्द मौखिक और गुदा मैथुन के लिए इन लोगों के पास जाते हैं क्योंकि पारम्परिक तौर पर भारतीय पत्नियां यह सब नहीं करतीं। फिर जब उनके पास धन कमाने का साधन नहीं रहता तो वे वरिष्ठ श्रेणी में आ जाते हैं और हिजड़ा हाउस के युवा सदस्य उनके लिए धन कमाते हैं। इस तरह भारत के एक welfare state न होने के बावजूद हिजड़ों ने पेंशन की एक स्वायत्त प्रणाली विकसित कर ली है।

अनुमानित भारत में बारह से बीस लाख, और पाकिस्तान में तीन चार लाख हिजड़े हैं। कोई अस्सी प्रतिशत हिजड़े हिन्दू हैं और बाकी मुसलमान। हिन्दू हिजड़े इसे माता का प्रकोप मानते हैं और गुजरात की बहुचरा माता को पूजते हैं। मुस्लिम हिजड़े इसे अल्लाह का प्रकोप मानते हैं।

केवल दस पन्द्रह प्रतिशत हिजड़े castrated होते हैं। एक दाई उनकी शल्य क्रिया करती है। शल्य क्रिया के दौरान व्यक्ति को चालीस दिन तक एक गुप्त कमरे में रखा जाता है और उसे किसी से मिलने की अनुमति नहीं होती। अब तो सर्जनों ने बाक़ायदा हिजड़ों के लिए operation के offer देने शुरू कर दिए हैं। पर सर्जनों को कई बार prefer नहीं किया जाता क्योंकि अक्सर बिना बेहोश किए, गाञ्जा या अफ़ीम खिलाकर और सम्भवत ज़्यादा से ज़्यादा खून बहाकर उनके अंग काटे जाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो कि उन्होंने मर्द लिंग से सचमुच निजात पा ली है। यह एक नए जन्म और एक धार्मिक कार्य की तरह माना जाता है और इस तरह हिजड़े बहुत पवित्र और बली माने जाते हैं। आशीर्वाद देने का हक इन्हीं को होता है। शल्य क्रिया के बाद पेशाब के निकास के लिए दाई penis की जगह एक नाली लगा देती है।

हिजड़ों की छवि से उलट वे बहुत हंसमुख और सहिष्णु होते हैं। उनकी अपनी विशिष्ट कामुकता होती है। वे भी एक वांछित शरीर के प्रति सजग होते हैं, सज कर और साफ सुथरे रहते हैं। वे समलैंगिक नहीं होते क्योंकि वे आपस में सम्भोग नहीं करते। हां औरतों की बजाय उनका पाला मर्दों के साथ अधिक पड़ता है। उन्हें बहुचरा माता की तरह प्रबल प्रवृत्ति का माना जाता है जिसने एक डाकू के आने पर अपना स्त्रीत्व मिटाने के लिए अपने स्तन काट दिए थे।

म्युनिक से Dr. Renate Syed द्वारा दिए गए एक व्याख्यान पर आधारित


notes:
http://passport.gov.in/cpv/ppapp1h.pdf
http://en.wikipedia.org/wiki/Bahuchara_Mata
http://diaryofanindian.blogspot.com/2008/04/blog-post_16.html
berlins dritte geschlecht
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