शनिवार, 26 सितंबर 2009

म्युनिक में दो दुर्गा पूजा

म्युनिक शहर में इस बार पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ, वह भी अलग अलग दो जगहों पर। एक हरि ओम मंदिर में और एक सुरबहार रेस्त्रां में। जहां हरि ओम मंदिर वाले आयोजन में भारी मात्रा में भारतीय लोग एकत्रित हुए, स्थानीय टीवी चैनल द्वारा मीडिया कवरेज मिली, वहीं सुरबहार रेस्त्रां में समुदाय छोटा था पर पूजा को विशुद्ध पारंपरिक तरीके से मनाया गया। दोनों जगह षष्टी से लेकर दश्मी तक पाँच दिन पूजा की गई। साथ ही कई संस्कृतिक कार्यक्रमों को भी जगह दी गई। जैसे हरि ओम मंदिर में स्थानीय कलाकारों द्वारा हारमोनियम और तबले पर संगीत, बच्चों और बड़ों द्वारा गरबा/ डांडिया रास, बच्चों द्वारा श्लोक गायन, भारत से यूरोप टूर पर आए कुछ भारतनाटयम कलाकारों द्वारा कला प्रदर्शन आदि।

हरि ओम मंदिर में तो पाँच दिन ऐसी रौनक लगी कि पूजा समाप्त होने के बाद लोगों को खालीपन सा महसूस होने लगा है। शायद इतना मज़ा लोगों को कभी नहीं आया होगा जब पूरे परिवार का भरपूर मनोरंजन हो और बहुत सारे भारतीय पवित्र और खुशनुमा माहौल में एक जगह उपस्थित हों। इस आयोजन का सेहरा 'अमिताव दास' को जाता है जिन्होंने कई सारे लोगों को प्रोत्साहित कर अनहोनी को होनी कर दिया। वे बताते हैं कि उनके पास फंड और मानव संसाधन की कमी थी। लेकिन उन्होंने म्युनिक में कम से कम एक बार बंगाल के सबसे बड़े उत्सव 'दुर्गा पूजा' को आयोजित करने की ठान रखी थी और उन्हें देवी पर पूरा भरोसा था। आखिर एक स्थानीय संग्रहालय ने कलकत्ता से माता दुर्गा की विशाल फ़ाईबर ग्लास की प्रतिमा और को अपने लिए खरिदने और वहां से लाने का ज़िम्मा ले लिया। बल्कि वे दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमा को उधार देने के लिए भी राज़ी हो गए। ऊपर से हरि ओम मंदिर एक आयोजन स्थल के रूप में एक अच्छा विकल्प बन कर उभरा, जहां पवित्र माहौल के साथ साथ खुली जगह और ढेर सारी अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। बस फिर क्या था, उनकी मुख्य समस्यायें समाप्त हो गई, फिर तो बस आयोजन पर ज़ोर लगाना बाकी था। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई और ढेर सारे लोगों ने दुर्गा पूजा में सम्मिलित होकर उनकी मेहनत और सपने साकार किए। दुर्गा पूजा के लिए एक पुजारी जी को भी कलकत्ता से खास आमंत्रित किया गया। शालिनी सिन्हा, जिन्होंने पूजा और संस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन किया, कहती हैं- 'हमने कई बार लोगों को हमारी बैठकों में आने के लिए आह्वान किया, लेकिन बहुत कम लोग देख कर हम हताश हो जाते। पर अमिताव जी को माता पर भरोसा था। अब देखिए कितने लोग पूजा में सम्मिलित होने आए हैं।'

चित्र में मध्य में 'अमिताव दास' और उनके सहायक। बाईं ओर इंद्रजीत और दाईं ओर 'शालिनी सिन्हा'।

इसके बाद तो लोगों की राय बन रही है कि अगर हरि ओम मंदिर में हर अवसर पर ऐसे कार्यक्रम होते रहें तो उन्हें सोचने और ध्यान रखने की ज़रूरत ही नहीं कि कहां क्या हो रहा है। म्युनिक में गरबा / डांडिया का एकमात्र सार्वजनिक कार्यक्रम यही था जो दुर्गा पूजा के मध्य मनाया गया। इसके बाद कई लोगों ने नियमित मंदिर जाने की इच्छा व्यक्त की है।

बिहार के बोकारो शहर में पले बड़े इंजीनियर 'मिथिलेश सिन्हा' कहते हैं कि वहां तो दुर्गा पूजा को लेकर विभिन्न समूहों में प्रतिस्पर्धा होती है, खूब गाना बजाना होता है, सबसे सुंदर प्रतिमा बनाने में भी प्रतिस्पर्धा होती है। उन्ही यादों को लेकर वे यहां इस आयोजन में हाथ बंटा रहे हैं।

कई साल अमरीका में मिशीगन में रहने के बाद करीब एक साल पहले जर्मनी रहने आए 'दीप चक्रवर्ती' कहते हैं- 'अमरीका में तो दुर्गा पूजा बहुत बड़े स्तर पर होती है। अकेले San Francisco' में तेरह दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ था और हर पूजा में कम से कम चार सौ लोग थे। उसकी तुलना में तो यहां भारतीय समुदाय बहुत छोटा है। पर फिर भी अच्छा है कि कुछ तो हो रहा है।'

उधर सुरबहार रेस्त्रां में पूजा की शुद्धता मुख्य आकर्षण थी। पूजा के दौरान कई महिलाओं द्वारा विचित्र आवाज़ें निकालना, जिसे 'उलू देना' कहते हैं, माहौल को पवित्र बना रहा था। केवल पूजा में ही नहीं, शादियों में भी 'उलू' दिया जाता है। साथ ही एक दो बच्चे और महिलाएं काशया बजा रहे थे। धनुची में से उठते हुए धुएं से वातावरण में पवित्रता फैल रही थी। स्पीकर में टेप पर चल रही ढाक की आवाज़ आ रही थी और स्वीडन से आए पूजारी जी पूजा संचालन कर रहे थे।

लगभग डेढ वर्ष पहले शोध के सिलसिले में जर्मनी आए 'पिंटू बदोपाध्याय' और उनकी पत्नी 'ऋतु बदोपाध्याय' कहते हैं- 'दुर्गा पूजा हमारा सबसे बड़ा उत्सव है। यहां आने के बाद एकदम से इसकी कमी बहुत खल रही थी। पर भगवान ने यह कमी बहुत जल्द पूरी कर दी। हम दोनों जगहों पर पूजा में भाग लेने के लिए गए। हमें यहां अपने घर जैसा माहौल पाकर बहुत हर्ष हो रहा है।'

चित्र में हरि ओम मंदिर में दुर्गा पूजा की एक झल्की। पश्चिम बंगाल से खास तौर पर आमंत्रित पुजारी जी आरती करते हुए।

सुरबहार रेस्त्रां में दुर्गा पूजा का एक दृश्य। चित्र में गणेष जी, लक्षमी जी, दुर्गा माता, माता सरस्वती और कार्तिक की मूर्तियां और स्वीडन से आए पूजारी जी।

सुरबहार रेस्त्रां में एकत्रित हुए श्रधालु।