जब जर्मनी के अधिकांश नेता बिकाऊ थे

Flick-Affäre को विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का सबसे बड़ा राजनीतिक घोटाला माना जाता है। 1981 में Flick नामक एक बहुत बड़ी कंपनी की 'कर चोरी' की जांच करते समय 'कर अन्वेषकों' के हाथ संयोगवश एक ऐसी सूची लगी जिससे पता चला कि उस समय की सभी राजनीतिक पार्टियों (CDU, CSU, SPD, FDP) के नेता कंपनी के हाथों बिके हुए थे। सामान्य 'कर चोरी' का मामला एक बड़ा राजनीतिक घोटाला बन गया।

पिता की मृत्यु के बाद Flick कंपनी के मालिक ने Daimler-Benz के करीब 2 अरब DM के शेयरों को Deutsche Bank को बेच दिया। सामान्यतः इस कमाई में से लगभग आधा आय-कर के रूप में सरकार को देना पड़ना था। इसे बचाने की तरकीबें निकालने के लिए उस समय के अर्थ-शास्त्र मंत्री और वित्त मंत्री ने मदद की। Flick कंपनी की राजनीतिक पार्टियों को दान करने की प्रथा नाज़ियों से भी पहले से चलती आ रही थी। लेकिन इस दान से राजनीतिक फैसलों को प्रभावित करने के ये पहले संकेत थे। उस समय लगने लगा था कि पूरी की पूरी सरकार बिकाऊ है। इसके बाद पार्टी-दान संबंधित कानूनों में सुधार किया गया। लेकिन इस घटना को lobbying के अग्रदूत के रूप में देखा जा सकता है। आज lobbying इतना बड़ा रूप धारण कर चुकी है कि उसे विधायक, कार्यकारी और न्यायिक शक्तियों और मीडिया के बाद पांचवीं शक्ति के रूप में देखा जाता है।

कर चोरी का मामला कुछ इस प्रकार था। Flick कंपनी हर वर्ष चर्च को लगभग दस लाख DM दान देती थी। इस दान से उसे कर में छूट मिलती थी। लेकिन इसमें से एक लाख DM चर्च अपने पास रखती थी, एक लाख उस समय के एक मंत्री को दिए जाते थे। बाकी आठ लाख एक Swiss bank को भेज दिए जाते जो cash के रूप में वापस Flick कंपनी को पहुंचा दिए जाते थे। इस तरह कंपनी वर्षों से एक तहखाने में काले धन का बड़ा भंडार पाल रही थी।