मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

भारत के प्रति पुरानी चाहत को नया आकार

भू-मण्डलीकरण

चीन से अधिक स्वतन्त्र होने के लिए German companies अब दुनिया के सब से अधिक आबादी वाले देश पर जोर दे रही हैं जो एक जोखिम वाली रणनीति साबित हो सकती है.

आज तक, चीन mechanical engineering उद्योग के लिए सब से महत्वपूर्ण बाज़ारों में से एक रहा है. लेकिन अब Germany की मध्यम और बड़े आकार वाली companies भारत में विकास और स्थिरता देखती हैं. Corona महामारी, संयुक्त राज्य America और चीन के बीच तनाव के साथ-साथ Germany की चीन के प्रति आलोचनात्मक विदेश नीति ने German companies को चिन्तित कर दिया है. वे चीन में अपने जोखिम को कम करने के लिए विकल्पों की तलाश कर रही हैं. और इन विकल्पों को तलाशने में German सरकार मदद कर रही है. Chancellor Olaf Scholz और आधा दर्जन मन्त्रियों ने व्यापार के लिए दरवाज़े खोलने के लिए इस साल भारत की यात्रा की. इस प्रतिनिधि-मण्डल में अर्थ-व्यवस्था मन्त्री Robert Habeck, श्रम-मन्त्री Hubertus Heil के साथ-साथ रक्षा-मन्त्री Boris Pistorius भी उपस्थित थे.

अब तक भारत ने German companies के लिए एक मामूली भूमिका निभाई है. Germany के व्यापारिक सांझेदारों में भारत 24वें स्थान पर है और भारत के सब से बड़े निर्यातकों की ranking में Germany शीर्ष दस में नहीं है. ऐसा इस लिए भी है क्योंकि भारत कई उत्पादों पर उच्च tariff लगाता है और मुख्य रूप से तेल और कोयला जैसे कच्चे माल का आयात करता है. इस लिए चीन, America, सऊदी अरब और रूस जैसे राष्ट्र सब से महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता हैं. हालांकि हाल ही में भारत के साथ German व्यापार में काफ़ी वृद्धि हुई है. और प्रबन्धन परामर्श company KPMG द्वारा German companies के एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग आधी companies भारत में अपना निवेश बढ़ाना चाहती हैं. भारतीय की सात प्रतिशत से अधिक की विकास दर लम्बे समय तक चीन जैसी प्रमुख अर्थ-व्यवस्थाओं में ही जानी जाती थी. यह विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रही है. मुम्बई की stock exchange ऊपर जा रही है, बहुत सारा सट्टे का पैसा बह रहा है, और नई companies पूंजी बाज़ार में प्रवेश कर रही हैं. वहां इस साल जितने IPO कभी नहीं आए.

हालांकि अतीत में भारत ने अक्सर निवेशकों और companies के बीच उच्च उम्मीदें जगाई हैं लेकिन अक्सर उन्हें निराश भी किया है. संरक्षणवाद, भ्रष्टाचार और नौकरशाही, अपर्याप्त शिक्षा और जर्जर बुनियादी ढांचे ने देश को बार-बार पीछे धकेला है. समस्याओं का समाधान आज तक नहीं हुआ है. प्रधान-मन्त्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रति नए प्रेम को बढ़ावा दे रहे हैं. वे भारत के लिए चीन से दूरी बनाने, खुद को पश्चिम के भागीदार के रूप में स्थापित करने और आर्थिक रूप से एक अलग लीग में उभरने का अवसर देखते हैं. हालांकि भारत ने अब तक मुख्य रूप से भारी उद्योग और IT सेवाओं में अन्तर-राष्ट्रीय भूमिका निभाई है जब कि भारत का लगभग आधा कार्य-बल अभी भी कृषि में काम करता है और लाखों लोग अत्यधिक ग़रीबी में रहते हैं. लेकिन मोदी भारत को अधिक व्यापक रूप से औद्योगीकृत करना चाहते हैं. मोदी ने लगभग एक दर्जन औद्योगिक श्रेणियों के लिए 24 billion Euro का कार्यक्रम शुरू किया है. वे भारत में विदेशी companies को आकर्षित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन का उपयोग करना चाहते हैं. शर्त यह है कि companies स्थानीय स्तर पर उत्पादन करें. चीन के विपरीत German companies को अभी तक यह डर नहीं है कि भारत उनकी प्रौद्योगिकी को या patents को हड़प सकता है. मोदी सड़कों, railway, बन्दरगाहों और हवाई अड्डों का विस्तार कर रहे हैं और German mechanical engineering companies और बुनियादी ढांचा प्रदाताओं को इस से लाभ होने की उम्मीद है.

November 2023 में बैंगलोर प्रदर्शनी केन्द्र में »India Manufacturing Show« में 400 से अधिक प्रदर्शक और 20,000 आगन्तुक एकत्रित हुए. स्वचालन प्रौद्योगिकी, robots, drones और machines से halls भर गए. इन में कई German companies भी शामिल थीं. उदाहरण के लिए मध्यम आकार की company Hawe, जिस की 20% बिक्री अभी भी चीन में होती है, valves, pumps और सम्पूर्ण hydraulic systems बनाती है. इन का उपयोग बाद में अन्य निर्माताओं द्वारा पवन turbines, machine tools या चिकित्सा प्रौद्योगिकी में किया जाता है. 20 साल पहले, Hawe ने भारत में सस्ते और सरल पुर्जों का उत्पादन शुरू किया, जिन्हें वह आगे की प्रक्रिया के लिए Germany को निर्यात करती थी. भविष्य में Hawe भारत में पवन ऊर्जा के विस्तार और निर्माण machinery की बढ़ती मांग से लाभ उठाने के लिए भारतीय बाज़ार के लिए तैयार hydraulic उत्पादों तैयार करना चाहती है. कुछ समय पहले Hawe ने भारत में एक नई factory बनाने के लिए ज़मीन ख़रीदी, जो 2025 से चालू हो सकती है. 

हालांकि, केवल बड़ी mechanical engineering companies ही Hawe जैसे कदम उठा सकती हैं. छोटी और मध्यम आकार की companies भारत में निर्यात पर ध्यान केन्द्रित कर रही हैं. उनके लिए, स्थानीय स्तर पर उत्पादन स्थापित करने का प्रयास बहुत मंहगा है. वे चीन के कड़वे अनुभवों से भी सबक ले चुकी हैं. छोटी मध्यम आकार की companies को चीनी प्रतिस्पर्धा के आगे घुटने टेकने पड़े थे. तो क्या भारत वास्तव में German उद्योग के लिए अपने बड़े पड़ोसी की जगह ले सकता है? नहीं, भारत निकट भविष्य में चीन की जगह नहीं ले सकता, वह अधिकतम उस का पूरक बन सकता है. उदाहरण के लिए, Germany का automotive उद्योग एक प्रमुख उद्योग है और वह किसी भी अन्य उद्योग की तुलना में चीन पर बहुत निर्भर है. अधिकांश भारतीयों के पास Mercedes, BMW या Audi के premium models के लिए पर्याप्त क्रय शक्ति नहीं है. उनकी प्रति व्यक्ति आय चीन की तुलना में केवल पांचवां हिस्सा है. बड़े पैमाने पर बाज़ार में घरेलू आपूर्तिकर्ता Tata का वर्चस्व है. यहां तक कि VW को भी प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई हो रही है, खास कर जब से भारत ने मध्य-श्रेणी की कारों पर 100 प्रतिशत आयात शुल्क लगाना शुरू किया है. भारत में उत्पादन सार्थक नहीं है क्योंकि वहां आर्थिक रूप से कारखानों को संचालित करने के लिए बिक्री पर्याप्त नहीं है.

हालांकि Siemens जैसे कुछ उद्योगों के लिए यह आसान है. 1892 में Siemens के संस्थापक Werner von Siemens ने प्रशिया, रूस और फ़ारस से होते हुए England और भारत के बीच एक विशेष telegraphic line बनाने की साहसिक योजना बनाई थी. यह योजना सफ़ल रही, लेकिन लम्बे समय तक भारत एक ऐसा बाज़ार बना रहा जिसे जीतना मुश्किल था. भले ही पिछले दशकों में companies को कई बार बड़े order मिले, लेकिन लम्बे समय तक व्यवसाय का विकास धीमा रहा. भारत की लम्बे समय से यह प्रतिष्ठा रही है कि बहुत सारी योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन लागू नहीं की जातीं. लेकिन अब मोदी सरकार अपने साथ कुछ भी कर सकने की नई मानसिकता ले कर आई है. पिछली January में Siemens Mobility को भारतीय railway division से इतिहास में सब से बड़े आदेशों में से एक मिला. Munich स्थित company को 35 वर्षों तक के रख-रखाव सहित 1,200 locomotive वितरित करना है. यदि चीज़ें योजना के अनुसार चलीं तो पहला locomotive दो वर्षों में परीक्षण संचालन में चला जाएगा. 2018 के बाद से भारत ने 40,000 km railway line का विद्युतीकरण किया है. इस का अर्थ है कि पूरे network का 95 प्रतिशत अब overhead lines से सुसज्जित है. यह बड़ा order Siemens Mobility के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है. लम्बे समय तक, Siemens मुख्य रूप से signalling तकनीक की आपूर्ति करती थी या subway के स्वचालन में मदद करती थी. लेकिन अब ये locomotive भारतीय railway कारखाने में बनाए जाएंगे; सरकार ने Siemens के साथ अनुबन्ध में देश में उत्पादन की भी शर्त रखी है. इस में Siemens का भी फ़ायदा है, क्योंकि वह एक महंगी factory बनाने भी बच गई और वह भारत के मौजूदा आपूर्तिकर्ता उद्योग तक भी पहुंच सकती है. पश्चिमी भारत के औरंगाबाद में स्थित कारखाने में Siemens सभी प्रकार की trains के लिए bogies का उत्पादन कर रही है. 12 लाख वाली आबादी वाले औरंगाबाद शहर का चयन कोई संयोग नहीं है. वह विश्व-विद्यालयों के साथ दीर्घ-कालिक सम्बन्ध स्थापित करना चाहती है क्योंकि अच्छे कर्मचारी ढूंढना और उन्हें बनाए रखना वहां बहुत मुश्किल काम है. भारत एक युवा देश है. लगभग 45 प्रतिशत जनसंख्या 25 वर्ष से कम उम्र की है. लेकिन केवल तुलनात्मक रूप से छोटा सा अभिजात वर्ग ही बड़े महा-नगरीय क्षेत्रों के शीर्ष विश्व-विद्यालयों में जाता है और वह आर्थिक रूप से मजबूत, अन्तर-राष्ट्रीय IT companies द्वारा चयनित कर लिया जाता है. इस से औद्योगिक companies के लिए प्रतिभा की लड़ाई कठिन हो जाती है. सब से महत्वपूर्ण उत्पादन के लिए योग्य विशेषज्ञों को ढूंढना German उद्योग के लिए एक चुनौती है. फिर भी Siemens भारत के कारोबार को और अधिक विस्तारित करना चाहती है क्योंकि यहां से रेल division का वैश्विक विकास सम्भव है. भारत एक वैश्विक केन्द्र साबित हो सकता है और औरंगाबाद का कार-खाना मौजूदा bogie उत्पादन के अलावा, मध्य पूर्व, Asia या Australia में सम्पूर्ण railway परियोजनाओं को भी सम्भाल सकता है. आज के पर्यावरण संकट के कारण इन की मांग बढ़ रही है.

योजनाएं काम करेंगी या नहीं यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि क्या भारत राजनीतिक रूप से स्थिर बना रहेगा. इस के बारे में सन्देह हैं. कार्य-कर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या, जिन के पास Canadian passport था और जो भारतीय क्षेत्र में एक स्वतन्त्र सिख राज्य के लिए लड़े थे, ने भारत के नए दोस्तों को चिन्तित कर दिया है: Canadian सरकार को इस अपराध के पीछे भारत सरकार पर सन्देह है, जब कि भारत इस में भागीदारी से इनकार करता है. यह घटना भारत को राजनीतिक रूप से अधिक संलग्न करने के पश्चिमी प्रयासों के लिए एक झटका थी. और यह घटना पहली नहीं थी. आज तक मोदी Ukraine के खिलाफ़ आक्रामक युद्ध के लिए रूस की निन्दा करने से बच रहे हैं. और July में संयुक्त राज्य America की राजकीय यात्रा के तुरन्त बाद वे रूसी राष्ट्रपति Vladimir Putin, चीनी राष्ट्रपति Xi Jinping और ईरानी राष्ट्रपति Ibrahim Raisi सहित चीनी-प्रभुत्व वाले Shanghai सहयोग संगठन (SCO) के सदस्यों से जुड़े. भारत एक-तरफ़ा तौर पर पश्चिम का पक्ष नहीं लेता है. भारतीय सरकार व्यावहारिक रूप से भारतीय हितों की ओर उन्मुख है, जिस का मतलब आज संयुक्त राज्य America के साथ विलय और कल रूस की ओर रुख करना हो सकता है. यह अकारण नहीं है कि भारत कई बहुपक्षीय संस्थानों का सदस्य है, जिन में से कुछ एक-दूसरे के खिलाफ़ काम करते हैं. फिर भी अर्थ-व्यवस्था में सुधार जारी है. German companies भारत को आर्थिक और राजनीतिक रूप से अपने साथ बांधना चाहती हैं क्योंकि भारत एक लोक-तन्त्र है, निरंकुश राज्य नहीं.

Augsburg की gearbox निर्माता company Renk ऐसी प्रौद्योगिकियों का उत्पादन करती है जिन का उपयोग पवन turbine और cement संयन्त्रों के साथ-साथ tank transmission में भी किया जाता है. इस वर्ष Germany द्वारा भारत की लगभग हर सरकारी यात्रा में Renk के प्रबन्धक उपस्थित रहे. उद्योग जगत में माना जा रहा है कि Renk भारतीय मुख्य युद्धक tank अर्जुन के लिए drive system की आपूर्ति के बारे में संघीय सरकार द्वारा समर्थित बात-चीत में है. अब तक Renk ने केवल भारत में वहां के ग्राहकों के लिए उत्पादन किया है. लेकिन अब वह वहां आपूर्ति शृंखला स्थापित करना चाहती है जिस में  वैश्विक बाज़ार के लिए भारत से विनिर्माण हो सकता है. Renk की योजना जल्द ही बेंगलुरु क्षेत्र में एक बड़े स्थान पर जाने की है. मोदी भारत में निवेश करने, अपनी जानकारी अपने साथ लाने और देश में ऐसे सामान का उत्पादन करने के लिए Renk जैसी विदेशी companies पर भरोसा कर रहे हैं जो वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धी हैं. हालांकि German companies और राजनेता यह चाहते हैं कि भारत अपने सीमा शुल्क ढांचे को तोड़ दे और Europe के साथ व्यापार के लिए और अधिक दरवाज़े खोले. लेकिन मुक्त व्यापार समझौते पर बात-चीत रुकी हुई है. European संघ पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखला के लिए अपने नियम लागू करना चाहता है, लेकिन भारत केवल व्यापार के बारे में बात करना चाहता है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि European चुनाव और अगले साल भारतीय संसदीय चुनाव से पहले समझौता असम्भव है.

आखिरकार भारत उन समस्याओं से लड़ना शुरू कर रहा है जो परम्परागत रूप से देश में व्यापार करने से जुड़ी हुई हैं: नौकरशाही और भ्रष्टाचार. केन्द्र सरकार के साथ साथ राज्य और क्षेत्रीय सरकारों ने भी समझ लिया है कि अगर वे अन्तर-राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धा करना चाहतेÍ हैं तो कुछ बदलाव करने होंगे. आवेदन, ख़रीद और भुगतान प्रक्रियाएं भविष्य में पूरी तरह से digital रूप से की जाएंगी. इस से समय और रिश्वतखोरी की बचत होगी. भारत में बड़ी से बड़ी समस्याओं को हल करने के लिए आवश्यक आत्म-विश्वास की कमी नहीं है, खास कर तब से, जब वह चन्द्रमा पर उतरने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. पिछली गर्मियों में नई दिल्ली में G20 की बैठक से कुछ दिन पहले जब अन्तरिक्ष जांच चन्द्र-यान-3 पृथ्वी के उप-ग्रह के दक्षिण की ओर उतरा, तो प्रधान मन्त्री मोदी ने "नए भारत के लिए विजय घोष" का नारा दिया.