रविवार, 26 अप्रैल 2020

एक वीडियो पर मेरी प्रतिक्रिया


इस वीडियो पर मेरी प्रतिक्रिया


क्या पत्रकार लोग social media से डर कर Reuters को शिकायत करने जाते हैं? वो अगर social media से डरते हैं तो पत्रकार किस काम के हैं? और Reuters क्या है? उसकी उदाहरण भारत में क्यों दी जानी चाहिए? सारी दुनिया और सारी दुनिया का मीडिया भारत से जल रहा है। ऐसे में Reuters, Washington Post, New York Times को भाव देना कहां तक ठीक है? और महाशय बार बार उदाहरण दे रहे हैं कि किस तरह Trump ने पत्रकार को snub किया। यानि वहां भी पत्रकार President से कुछ पूछ नहीं सकते। तो फिर भआरत में क्या नया है?जब आम जनमानस ले दे कर सरकार और उसकी नीतियाों से ख़ुश है तो क्यों कुछ लोगों को आग लगी रहती है? और अगर मीडिया सरकार के कहने पर काम कर भी रहा है तो क्यों ना करे? उन्होंने क्या ठेका ले रखा है केवल सच दिखाने का?मुझे तो ये महाशय भी fake लग रहे हैं।

और YouTube में सैंकड़ों interviews उपलब्ध हैं जहां मोदी जी को बार बार बेरहमी से grill किया गया है। फिर ये महाशय कैसे कह सकते हैं कि मोदी जी से कोई कुछ पूछ नहीं सकता? मोदी जी Trump से तो कई गुना अच्छे हैं जो किसी पत्रकार को मुंह पर तो नहीं कहते कि तुम fake news हो. शायद इन महाशय को Trump जैसा नेता चाहिए।

इन महाशय ने शुरू में चार सवाल ऐसे खड़े किए हैं जैसे हर किसी के मन वे प्रश्न घूम रहे हों. पर फिर सारा वीडियो केवल अपनी सोच, अपनी राय, अपने पूर्वाग्रहों के अनुसार बनाया है। मुझे नहीं लगता कि बहुत से लोग इनकी तरह सोचते होंगे.

अमरीकी सरकार की पारदर्शिता साबित करने के चक्कर में भाई साहब ने वीडियो में दो बार अपना मज़ाक उड़वाया. दोनों घटनाओं का हवाला देते हुए भाई साहब पहले बताते हैं कि कैसे वहां CNN आदि के पत्रकार ने राष्ट्रपति से असुविधाजनक प्रश्न पूछने की हिम्मत की. कायदे से इतना कहना काफ़ी था। पर अपनी मिट्टी पलीद करते हुए भाई साहब आगे पहले अंग्रेज़ी में बताते हैं कि कैसे Trump ने पत्रकार की बेइज्जती की. फिर उसका हिन्दी अनुवाद बताते हैं, फिर कहते हैं कि ये मायने नहीं रखता कि Trump ने क्या कहा. मायने यह रखता है कि पत्रकार ने हिम्मत की. मतलब height है time wastage की. दर्शक को बिल्कुल चूतिया समझ रखा है। script पर कोई तैयारी नहीं की.