सोमवार, 27 जनवरी 2014

दो मित्र

प्रेमचन्द ‘महेश’
राजू और सुन्दर दो बहुत पक्के दोस्त थे। दोनों हमेशा साथ-साथ घूमा करते थे। एक बार दोनों दोस्त एक गाँव को जा रहे थे। उस गाँव के रास्ते में एक बड़ा भारी जंगल पड़ता था। उस जंगल में अनेक प्रकार के भयानक जानवर रहते थे।

जब दोनों मित्र जंगल से गुजर रहे थे, तब उन्होंने झाड़ियों में खड़खड़ाने की आवाज सुनी। दोनों मित्र चौकन्ने होकर इधर-उधर देखने लगे। इतने में दोनों ने सामने की झाड़ी से एक भालू को निकलकर अपनी ओर आते देखा। भालू को देखते ही दोनों के प्राण सूख गए। दोनों अपनी-अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। इन दोनों के पीछे की ओर बरगद का एक बहुत बड़ा पेड़ था। राजू भागकर पेड़ पर चढ़ गया। और उसने अपने आपको पेड़ की डालियों में छिपा लिया। सुन्दर को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था। उसे अपने प्राण बचाने का अब कोई रास्ता नज़र नहीं पड़ा। उसने पेड़ पर बैठे राजू को पुकारा पर राजू भला कब सुनने वाला था! उसे अपने प्राण बचाने की पड़ी थी और भालू से डरकर पेड़ की डालियों में छिपा बैठा था।

इधर भालू सुन्दर के बहुत निकट आ पहँुचा परन्तु सुन्दर ने अपना साहस नहीं छोड़ा। वह भूमि पर अपनी आँखें बन्द कर और साँस रोककर लेट गया क्योंकि उसे मालूम था कि भालू मरे हुए को नहीं खाता।

कुछ क्षण बाद भालू सुन्दर के नज़दीक पहँुचा। उसने सुन्दर के पड़े शरीर को देखा। उसकी नाक के पास अपना मँुह ले जाकर सूँूघा और फिर उसके कानों के पास जाकर कुछ फुसफुसाहट की-सी आवाज़ की। एक बार फिर भालू ने बड़े ध्यान से सुन्दर के शरीर को देखा और उसे मरा समझकर उसका चक्कर लगा फिर चलता बना। पेड़ पर चढ़ा राजू यह सब साँस रोके बड़े ध्यान से देखता रहा।

भालू के काफी दूर चले जाने के बाद राजू पेड़ से उतरकर सुन्दर के पास आया। उसने सुन्दर को जगाया। सुन्दर जाग गया। दोनों मित्र आगे चलने को तैयार हुए। रास्ते में चलते-चलते राजू ने सुन्दर से पूछा - ‘‘कहो मित्र, भालू ने तुम्हारे कान में क्या-क्या बातें कहीं?’’

सुन्दर राजू की मित्रता की परीक्षा पहले ही कर चुका था। इस कारण वह राजू के फिर मित्र कहकर पुकारने पर चिढ़ गया और बोला - ‘‘भाई, मुझसे भालू ने कहा कि जो मित्र खतरे के समय तुम्हें अकेला छोड़ जाए उसके साथ जंगल में कभी भी सप़$र मत करना।’’

सुन्दर की बात को राजू ने सत्य माना और वह मन-ही-मन पछताने लगा। सच है, सच्चे मित्र की परीक्षा मुसीबत में ही होती है।