गुरुवार, 23 जनवरी 2014

शेर की बीमारी

प्रेमचन्द ‘महेश’
एक शेर बहुत बूढ़ा हो चुका था। जंगल में घूमकर शिकार करना अब उसके बस की बात नहीं थी। इस कारण वह भूख से बेचैन रहने लगा। जंगल के जानवरों ने शेर की इस बुरी दशा को देख चैन की साँस ली और निडर होकर जंगल में घूमने लगे। जंगल में मंगल छा गया। सब पशु बड़े सुख से दिन काटने लगे। शेर ने यह सब देखा। वह मन-ही-मन जल-भुन गया। उसे जानवरों पर बड़ा क्रोध आया। पर बेचारा करता क्या! जानवरों को पकड़ना तो दूर अब उन्हें डराना-धमकाना भी उसके बस की बात न थी। आखिरकार चुप होकर बैठ रहा और घर बैठे ही जानवरों के शिकार से पेट भरने की बात सोचने लगा।
कुछ दिनों बाद जंगल में शेर के बहुत बीमार होने की खबर फैली। सभी जानवरों ने इसे सत्य माना। सबने शेर के अन्तिम दर्शन करने का निश्चय किया। सब बारी-बारी से शेर की गुफ़ा में उसे ढाढ़स बँधाने के लिए जाने लगे।
शेर ने अपने बीमार होने का खूब स्वाँग रचा था। वह गरदन लटकाए, मँुह को पंजों में दबाए और पेट को अपने पैरों में फँसाए पड़ा रहता था। उसे देखने आने वाले जानवर उसे देखकर यही समझते कि अब यह इस दुनिया में दो-चार दिन का ही मेहमान है।
जंगल के सभी जानवरों का शेर के निकट तक जाने पर रहा-सहा डर भी जाता रहा। अब वे शेर के पास खूब देर तक बैठे रहने लगे। शेर ने अब अपने पेट भरने का अच्छा अवसर देखा। उसके पास आने वाले जानवरों की भीड़ जब कम रह जाती तब वह चुपके से एक-दो जानवरों को अपने पंजों में दबा लेता था। उसकी इस चालाकी को पास खड़े जानवर तनिक भी समझ नहीं पाते थे। इस प्रकार से अब शेर भूखों मरने से बच गया और प्रतिदिन घर बैठे बढ़िया-से-बढ़िया शिकार पाने लगा।
जंगल के जानवरों की संख्या रोज़ाना घटती रही। बहुत से जानवरों के मित्र, बच्चे व अन्य कुटुम्बी गायब होने लगे। सबको यह सन्देह होने लगा कि जंगल में अब कोई दूसरा शेर आ गया है। सबने मिलकर सारा जंगल छान मारा पर दूसरा शेर कहीं न मिला। रोज़-रोज़ जानवरों की घटती संख्या को देख सब जानवर बहुत ही परेशान हो गए। वे सब मिलकर लोमड़ी के पास गए। लोमड़ी ने सबका खूब स्वागत किया फिर पूछा - ‘‘कहो भाई, तुम सब कैसे आए?’’
उन सब जानवरों का अगुआ बनकर जंगली सूअर बोला - ‘‘बहिन, तुम जानती ही हो कि जंगल का राजा शेर तो बीमार पड़ा है, पर फिर भी रोजाना न जाने कौन हम पशुओं में से एक-दो को चट कर जाता है। हमें इसका बड़ा भय लग रहा है।’’
लोमड़ी शेर की बीमारी की बात सुन पहले खूब हँसी। कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोली - ‘‘अब तुम सबको घबराने की कोई जरूरत नहीं। मैं तुम सबकी मदद करूँगी।’’
लोमड़ी की बात सुन जंगली सूअर बोला - ‘‘बहिन, हम सब तुमसे सहायता माँगने ही तो आए थे। तुमने हमको सहायता देने का वचन दे ही दिया है। इस कारण हम अब बेफिक्र हैं।’’
इसके बाद लोमड़ी ने कहा - ‘‘तुम सब अब घर जाओ। मैं जल्दी ही तुम्हारे शिकारी को खोज निकालँूगी।’’
लोमड़ी की बात सब जानवरों के मन भा गई। सब खुशी-खुशी अपने घर लौट चले।
दूसरे दिन शाम को लोमड़ी शेर की गुफ़ा पर पहँुची। उस समय शेर गुफ़ा में जागा बैठा था। वह लोमड़ी को देखकर बोला - ‘‘आओ, मेरी गुफ़ा के अन्दर आओ। बाहर खड़ी-खड़ी थक जाओगी।’’
शेर की मीठी-मीठी बातों में भला लोमड़ी कब आने वाली थी। अतः वह बोली - ‘‘धन्यवाद, मैं बाहर ही ठीक हँू।’’
इस पर शेर को कुछ क्रोध-सा आया। पर क्रोध को दबाकर बड़े प्रेम से बोला - ‘‘मैं तो बीमार हँू। हिलने-डुलने से लाचार हँू। तुमको मैं खा थोड़े ही जाउँ$गा। तुम मेरे पास प्रेम से आकर बैठो।’’ शेर की बातें सुन लोमड़ी खिलखिलाकर हँसती हुई बोली - ‘‘अरे, जंगल के राजा! तुम बुढ़ापे में तो यह छल-कपट छोड़ दो। तुम्हारी गुफा में अनेक जानवरों के जाने के पैरों के निशान तो मिल रहे हैं, पर उनके वापस लौटने का एक भी निशान नहीं है। मैं तुम्हारी गुफ़ा में आकर अपनी मौत अन्य जानवरों की भाँति नहीं बुलाना चाहती। तुम्हारी बीमारी तो बुढ़ापे में घर बैठे शिकार मिल जाने का एक बहाना है। मैंने जंगल के जानवरों के रोज़ाना कम होते जाने का कारण जान लिया। अब तुम्हारा बीमारी का बहाना नहीं चलेगा।’’ और यह कहकर वह भाग चली।
इसीलिए यह सत्य कहा गया है कि झूठी बात अधिक देर तक नहीं चलती।