मंगलवार, 21 जनवरी 2014

साझे का हिस्सा

एक दिन शेर, लोमड़ी और जंगली सूअर ने मिलकर जंगल में ख़ूब शिकार किया। शाम के समय शेर ने जंगली सूअर से शिकार के लगे ढेर को तीन हिस्सों में बाँटने को कहा। जंगली सूअर बड़ी प्रसन्नता से उस शिकार को बाँटने में लग गया। उसने शिकार को तीन बराबर-बराबर हिस्सों में बाँटा और शेर तथा लोमड़ी से अपना-अपना हिस्सा उठाने को कहा। शेर इस बँटवारे को देखकर क्रोधित हो उठा और उसने जंगली सूअर को मार डाला। लोमड़ी बैठी-बैठी यह सब देख रही थी। वह भागने को तैयार ही थी कि शेर ने उससे कहा - ‘‘शिकार का हिस्सा अब तुमको बाँटना होगा। वह नालायक जंगली सूअर गलत ढंग से हिस्सा बाँटने पर मारा गया।’’
लोमड़ी ने शेर की बात मानी। उसने सारे शिकार की एक बड़ी ढेरी बनाई। ख़ूब देर तक सोचने के बाद उसने उस ढेरी में से सिर्फ एक जानवर अपने लिए रखकर शेष सब शेर को दे दिए। लोमड़ी के इस बँटवारे से शेर ख़ुश हुआ।
इसी बीच वहाँ गुर्रामल भालू आ गया। वह शेर से बोला - ‘‘मुझे भी हिस्सा चाहिए।’’
‘‘बेटा गुर्रामल, तू तो जिद ही पकड़ गया है। भला तेरा-मेरा क्या साझा? पर तू बच्चा है तेरा हठ मुझे मानना ही पड़ेगा। चल, तेरा-मेरा साझा पक्का रहा।’’ शेर ने यह कहकर गुर्रामल की ओर देखा।
गुर्रामल शेर की बातें सुनकर नाचने लगा। दोनों इस साझे से ख़ुश जो थे।
अब गुर्रामल उत्साह के साथ शिकार को जाने लगा। जंगल के भयानक जानवरों का उसे अब डर तो था ही नहीं। वे सभी जानवर उससे डरते थे। शेर चचा के साझे का यह अद्भुत प्रभाव देख गुर्रामल मन-ही-मन फूला न समाता था। उसने दिन भर साहस से कई जानवरों का शिकार किया और शाम के समय उन सबको लेकर शेर चचा के पास पहुँचा।
शेर गुर्रामल के लाए शिकार को देखकर खूब प्रसन्न हुआ। उसने गुर्रामल की पीठ थपथपाई। तत्पश्चात गुर्रामल ने कहा - ‘‘चचा, आपका आशीर्वाद आज सफल हुआ है। अब आप शिकार के दो बराबर-बराबर हिस्से करके एक मुझे दे दें और एक आप रख लें।’’
शेर ने लाए शिकार पुनः ध्यान से देखा। हिरन और खरगोश को देखकर उसके मँुह में पानी भर आया। वह सोचने लगा कि क्यों न पूरे शिकार को ही हड़प कर लिया जाए। यह सोच वह बोला - ‘‘गुर्रामल, इस शिकार के तीन हिस्से करो।’’
गुर्रामल जो भोला बच्चा था, नासमझ था, बोला - ‘‘चचा, हम दो ही तो साझी हैं, फिर इस शिकार के तीन हिस्से क्यों करें?’’
शेर ने गुर्रामल की बात सुनी। उसने तीन हिस्से वाली बात पर फिर ज़ोर देते हुए कहा - ‘‘तुम्हें तीन हिस्से ही करने होंगे, गुर्रामल।’’
‘‘पर चचा कैसे? यह तो समझाओ।’’
अब गुर्रामल की हठीली बातों पर शेर को क्रोध आने लगा और वह बोला - ‘‘तुम्हें तीन हिस्से ही करने होंगे। पहला हिस्सा मेरा होगा क्योंकि मैं जंगल का राजा हूँ। दूसरा हिस्सा भी मेरा ही होगा क्योंकि मैं तुम्हारा साझेदार हूँ। तीसरा हिस्सा भी तुम्हें मुझे ही देना होगा क्योंकि मैं तुमसे बलवान हूँ। अगर तुम ये तीनों हिस्से मुझे नहीं दोगे तो मैं तुम्हें जान से मार डालूंगा।’’
शेर की इस धमकी और अन्याय भरी बातों को सुनकर गुर्रामल सकपका कर बोला - ‘‘चचा, तुम ऐसा अन्याय क्यों कर रहे हो? इस शिकार में से आधा हिस्सा ले लो और आधा हिस्सा तुम मुझे दे दो मैं भूखा हूँ।’’
शेर ने सोचा कि गुर्रामल आसानी से भागने वाला नहीं। अतः वह अपनी आँखें लाल-पीली करके बोला - ‘‘चाचा का बच्चा! जाता है कि नहीं? कहता है भूखा हँू। चल जा, भाग जा। मैं भी भूखा हूँ कहीं तुझे ही ना खा बैठूँ।’’
गुर्रामल ने शेर की बातें सुनीं। उसकी शक्ल की ओर कुछ देर तक देखा। वह शेर से कुछ कहने ही जा रहा था कि शेर उसकी ओर जैसे ही मुँह फाड़कर झपटने को था वैसे ही वह नौ दो ग्यारह हो गया।
सच है, बलवान की हमेशा जीत होती है