बुधवार, 22 जनवरी 2014

राजा और बन्दर

एक राजा को नाच देखने का बड़ा शौक था। वह अपने देश के सारे नाचने वालों का नाच देख चुका था। सभी नाचने वालों के नाच से उसका मन भर चुका था। अब उसके दरबार में कोई भी नया नाचने वाला नहीं आता था। इस कारण वह दुखी रहने लगा।
एक दिन वह राजा एक सरकस देखने गया। वहाँ उसने बन्दरों को नाचते देखा। वह उनके नाच को देखकर बहुत खुश हुआ। उसने अपने राज में पहँुचकर बन्दरों का नाच देखने का निश्चय किया। अनेक बन्दर नचाने के लिए बुलाए गए। इन बन्दरों को बहुमूल्य पोशाकों और गहनों से सजाया गया। सजाने के बाद सब बन्दरों को राजदरबार में पहँुचाया गया। राजदरबार में सभी बन्दरों का नाच शुरू हुआ। बन्दरों ने बहुत सुन्दर नाच दिखलाया। राजदरबार में बैठे सभी राजदरबारी बन्दरों के नाच को देखकर झूम उठे। राजा की खुशी का तो कहना ही क्या था! वह तो उस नाच को देखकर अपनी सुध-बुध खो चुका था। बन्दरों की नकल करने की कला उसे बहुत भाई।
अब राजा बन्दरों के नाच को देखने में इतना तल्लीन रहने लगा कि वह राजकाज करना भूल गया। राजदरबार में वह अब नहीं जाता था। अपने महल में ही वह बन्दरों को नचाया करता। उनके नाचने में आनन्द लिया करता। राज के जो अधिकारी उससे मिलने पहँुचते उनसे बस बन्दरों के नाच का ही जिक्र किया करता। बन्दरों के नाच को अब वह मनुष्यों के नाच से अधिक अच्छा बताने लगा था।
राजा की इस हालत को देख राजदरबारी दुखी रहने लगे। बिना राजा के उनका काम चल ही नहीं पाता था। एक दिन सब राजदरबारी मिलकर राजा के महल में गए। सबने राजा सेे बन्दरों का नाच देखने की प्रार्थना की। राजा उनकी प्रार्थना को सुन बहुत खुश हुआ। उसने तुरन्त ही अपने नौकरों को बुलाया। नौकर आए। उसने नौकरों को बन्दरों को लाने का हुक्म दिया। नौकरों ने तुरन्त ही बन्दरों को सजा-सँवारकर राजा के सामने लाकर खड़ा कर दिया।
बन्दरों की पोशाकों को देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। अपने सभी राजदरबारियों को उन पोशाकों को दिखाता हुआ बोला - ‘‘आह, इन सुन्दर नाचने वालों के लिए ये सुन्दर पोशाकें ठीक लगती हैं। ऐसे सुन्दर नाचने वाले मैंने आज तक नहीं देखे।’’ और इतना कहकर उसने बन्दरों को नचाना शुरू कर दिया।
बन्दर नाचने लगे। बन्दरों का नाच जोर-शोर से चल रहा था। राजा उनके नाच की बड़ाई कर रहा था। बन्दरों को वह आदमी से भी बड़ी अक्ल वाला बता रहा था। इसी बीच एक राजदरबारी ने कुछ चने के दाने बन्दरों की ओर फेंके। उन चने के दानों को देखकर बन्दर अपना नाच भूलकर अपनी स्वाभाविक हरकत पर उतर आए। वे सब नाचना भूलकर चने के दानों पर झपटे। कुछ बन्दर आपस में लड़ने-झगड़ने लगे। कुछ अपने बहुमूल्य गहने और पोशाकें नष्ट करने लगे। इस प्रकार से नाच के स्थान पर अब बन्दरों की लड़ाई होने लगी। सभी दरबारी बन्दरों की इन करतूतों पर अब ठहाका मारकर हँसने लगे।
राजा सब कुछ देखकर बोला - ‘‘मैं बन्दरों को बहुत अच्छा नाचने वाला और तेज बुद्धि वाला समझता था। अब मालूम हुआ ये बन्दर हैं और कुछ नहीं। इन पर मैंने बहुत-सा धन समय बेकार ही खर्च किया।’’ इतना कहकर उसने सब बन्दरों को अपने महल से भगा दिया।
किसी ने ठीक कहा है कि मूर्ख को विद्वान मानने वाला मनुष्य बाद में पछताता है।