रविवार, 5 जनवरी 2025

नस्ल-भेद की सात ऐतहासिक घटनाएं

यह वृत्त-चित्र नस्ल-भेद की सात ऐतहासिक घटनाओं का वर्णन करता है और बताता है कि कैसे नस्लवाद ने पिछले एक हज़ार साल में गम्भीर रूप धारण कर लिया है और अभी तक मनुष्यता के मन में है. इन में से एक घटना भारत में घटी थी.

1. आठवीं शताब्दी की शुरुआत में उत्तरी Africa के Muslim शासकों ने Iberian प्रायद्वीप पर विजय प्राप्त की. इस्लाम के शासन में यहूदी वैज्ञानिक, doctors और दार्शनिक फले-फूले. फिर 'Reconquista' शुरू हुआ और ईसाई शासकों ने Spain और Portugal पर पुन: कब्ज़ा कर लिया. यह लड़ाई सदियों तक चली और 1492 में Granada पर दोबारा कब्ज़ा होने पर समापत हुई. Reconquista के दौरान यहूदियों और मुसलमानों को मृत्यु या ईसाई धर्म को स्वीकार करने का विकल्प दिया जाता था. धर्मांत्रण करने वालों को conversos कहा जाता था और उन्हें ले कर तमाम तरह के पूर्वाग्रह चलन में थे. उन्हें धोखेबाज़ और लालची समझा जाता था और उन पर Muslim कब्ज़ाधारियों का साथ देने का शक किया जाता था. धीरे धीरे यह निष्कर्ष निकाला गया कि वे प्रशासन में उच्च पदों के लिए अनुपयुक्त हैं. पहली बार चरित्र को एक जैविक आधार दिया गया और यह माना गया कि बुरे चरित्र के लक्षण वंशानुगत होते हैं. धीरे धीरे conversos और उनके वंशजों को सार्वजनिक और चर्च सम्बन्धी कार्यालयों से बर्खास्त कर दिया गया. ईसाईयों ने खाली पदों को आपस में बांट लिया. यहां से रक्त की शुद्धता की अवधारणा "Limpieza de sangre" के नाम से पहली बार कानून के तहत आ गई. इस प्रकार वंशावली एक महत्वपूर्ण पहचान बन गई जिस ने ईसाई धर्म में सच्चे धर्मांत्रण को रोका. यह नस्लवाद का जन्म था. 1492 में ही रानी Isabella ने Christopher Columbus को भारत की खोज की यात्रा पर भेजा. रक्त की शुद्धता का विषैला विचार वह अपने साथ ले कर गया था. इस विचार ने नई दुनिया के निवासियों को दूसरे दर्जे के नागरिक मानने में योगदान दिया. उपनिवेशों में रक्त की शुद्धता की अवधारणा ने नए लोगों की धार्मिक पहचान छीनने और सम्पत्ति की विरास्त का आधार तय करने में मदद की. वंश, त्वचा का रंग, नस्लवाद और गुलामी एक साथ जुड़ गए. दक्षिण और उत्तरी America में उपनिवेशको की आत्म-छवि सदियों से इस विचार से बनी है कि श्वेत European जाति अन्य सभी से श्रेष्ठ है.

2. 1619 में उत्तरी America में Virginia के अंग्रेज़ी उपनिवेश में Jamestown नामक बन्दरगाह पर White Lion नामक जहाज़ पहुंचा जिस में पहली बार Africa से गुलाम लाए गए थे. हालांकि दास व्यापार शायद मानवता का सब से पुराना व्यवसाय है. प्रारम्भिक मध्य युग में यूनानी और Romans भी दास व्यापार करते थे. श्वेत दासों को विशेष रूप से मूल्यवान माना जाता था, उन्हें नपुंसक या रखैल के रूप में रखा जाता था. गुलाम होने का त्वचा के रंग से कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन समय के साथ दास व्यापारियों के लिए America नया बाज़ार बन गया और अधिकतर गुलाम Africa से भेजे जाने लगे. European लोग Africa में हथियार, शराब और कपड़े के बदले गुलामों को ख़रीदते, उन्हें America जा कर बेचते. America में गुलामों को कपास, गन्ने और तम्बाकू के बगानों और सोना की खानों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता. इन वस्तुओं को वापिस Europe में ऊंचे दामों पर बेचा जाता. इस तरह यह एक त्रिकोणीय व्यापार बन गया. लगभग बारह करोड़ African लोगों को इसी तरह Africa से America निर्वासित किया गया. लगभग बीस लाख गुलामों की यात्रा के दौरान ही मृत्यु हो गई. बगानों में लगभग तीस लाख दास मारे गए. London, Hamburg, Paris, New York जैसे शहरों का आर्थिक विकास गुलामों के शोषण से सम्भव हुआ. हालांकि 15वीं शताब्दी में श्वेत नस्ल की श्रेष्ठता का विचार हास्यास्पद था, लेकिन गुलामी और उपनिवेशवाद की क्रूरता के कारण अगले 300 वर्षों में यह श्रेष्ठता धीरे-धीरे एक वास्तविकता बन गई. 17वीं शताब्दी में Europe से काम करने के लिए पर्याप्त अप्रवासी नहीं आए इस लिए America में African गुलामों की मांग बढ़ गई. केवल Caribbean में गुलामी से होने वाले मुनाफ़े की मात्रा अनुमानित $3.5 से $7.5 trillion है. संयुक्त राज्य America के संस्थापक सभी के लिए समान अधिकारों की मांग करते थे, जब कि पहले छह अमेरिकी राष्ट्रपतियों में से चार गुलाम मालिक थे (Washington सहित). बेशक 19वीं सदी में गुलामी को खत्म करने की दीर्घ-कालिक प्रक्रियाएं चलीं. गृह-युद्ध के बाद America में श्वेतों के साथ अश्वेतों का औपचारिक समीकरण बना. लेकिन नस्लीय पदानुक्रम अभी भी अधिकांश लोगों के दिमाग में मौजूद है. आधुनिक समय में European लोग अपनी श्रेष्ठता का भ्रम Africans के अलावा मूल अमेरिकियों और Asian लोगों में स्थानांतरित कर रहे हैं. नस्लवाद एक वैश्विक अपराध बनता जा रहा है.

3. प्रथम विश्व युद्ध के तुरन्त बाद भारतीय प्रांत पञ्जाब में उपनिवेशवाद विरोधी भावना प्रबल हो गई. प्रथम विश्व युद्ध के लिए अंग्रेज़ों ने जबरन 13 लाख भारतीयों को सैनिकों के रूप में भर्ती किया, जिन में से अधिकांश पञ्जाब में थे. औपनिवेशिक सत्ता ने अशांति को रोकने के लिए पञ्जाब में Martial Law लगाया. Brigadier General 'Rex Dyer' पर Martial Law लागू करने की ज़िम्मेदारी थी. वह साम्राज्य के नस्लीय अहंकार के साथ बड़ा हुआ था. Britain की सब से अधिक आबादी वाली colony भारत में नस्लीय अलगाव का राज था. European और भारतीयों के बीच यौन सम्बन्ध वर्जित थे. भारत में 200 वर्षों के श्वेत शासन का मतलब डकैती, भूख और हिंसा थी. British औपनिवेशिक शासन के दौरान 1891 और 1901 के बीच लगभग दो करोड़ भारतीय भूख से मर गए जब कि सारे अन्न को Europe में निर्यात किया जा रहा था. विजय और आर्थिक हित किस हद तक जुड़े हुए हैं, यह 1773 में स्पष्ट हो गया जब British East India Company को ताज के नियन्त्रण में रख दिया गया. 1919 में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेताओं में से एक महात्मा गान्धी ने Martial Law के बावजूद शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आह्वान किया और अंग्रेज़ों ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया. जैसे ही गिरफ़्तारी की बात फैली, प्रदर्शनकारियों और सैनिकों के बीच पहली घातक झड़प हुई. भारतीय लोगों ने पांच European लोगों को मार डाला. एक missionary स्कूल की प्रमुख 'Marcella Sherwood' के साथ दुर्व्यवहार किया गया. कुछ भारतीय व्यापारियों ने उस की जान बचाई. 13 April 1919 को Dyer पचास भारतीय सैनिकों को अमृतसर शहर की सड़कों से होते हुए एक चारदीवारी वाले park में ले गए. Curfew के बावजूद करीब बीस हज़ार लोग वहां जमा हो गए थे. Dyer ने अपने आदमियों को गोली चलाने का आदेश दिया. British अनुमान के अनुसार 379 मृतकों और 1200 घायलों की गणना गई. भारतीय अनुमान और भी अधिक थे. अमृतसर नर-संहार को Great Britain में लम्बे समय तक दबा दिया गया. 1997 में महारानी Elizabeth द्वितीय और उनके पति Prince Philip ने अमृतसर में पुष्पाञ्जलि अर्पित की, लेकिन उन्होंने माफ़ी नहीं मांगी. इस से कई भारतीयों को परेशानी हुई. नस्लवाद के बिना British शाही परिवार का अस्तित्व वैसा नहीं होता जैसा हम जानते हैं. मुकुट, गहने, शान-ओ-शौक़त आदि सब साम्राज्य से आया. इस लिए शाही परिवार को साम्राज्य और नस्लवाद से अलग नहीं कर किया जा सकता. Prince Philip विशेष रूप से सार्वजनिक नस्लवादी टिप्पणियों के लिए मशहूर है. 1986 में उन्होंने चीन में British exchange छात्रों से कहा: 'यदि आप अधिक समय तक यहां रहेंगे, तो आप सभी की आंखें तिरछी हो जाएंगी.' 1998 में उन्होंने अभी-अभी Papua New Guinea से आए एक छात्र से पूछा: 'तुम्हें अभी तक यहां लोगों ने कच्चे नहीं चबाया?' 2002 में उन्होंने एक Australian मूल निवासी से पूछा: 'क्या आप अभी भी एक-दूसरे पर भाले फेंकते हैं? शाही परिवार के लिए 1960 के दशक तक भेद-भाव-विरोधी कानूनों का पालन करना ज़रूरी नहीं था. नस्लवादी या लिंगवादी तरीके से भेद-भाव सहने वाले महल के कर्मचारियों के पास कानूनी रूप से अपना बचाव करने का कोई अवसर नहीं था. 1960 के दशक तक अश्वेत प्रवासियों को कार्यालय का काम करने की अनुमति नहीं थी. उन्हें केवल नौकरों और घरेलू नौकरानियों के रूप में काम करने की अनुमति थी. 2018 में जब Prince Harry ने African-अमेरिकी 'Meghan Markl' से शादी की तो महल से नस्लवादी माहौल की ख़बरें आने लगीं. 2021 में भारतीय मूल का एक 19 वर्षीय British युवक crossbow के साथ रस्सी के द्वारा Windsor castle की दीवारों पर चढ़ गया. वह रानी Elizabeth को मार कर भेद-भाव के कारण पीड़ित हुए सभी लोगों का और सौ साल पहले हुआ अमृतसर नर-संहार का बदला लेना चाहता था. जब 2022 में रानी Elizabeth की मृत्यु हुई तो दुख के साथ बहुत सी आलोचनात्मक आवाज़ें भी उठीं. विशेष कर भारत में बहुत से लोग British ताज के अधीन सहे गए कष्ट को अभी तक नहीं भूले हैं. नस्लवादी हिंसा European उपनिवेशवाद का मुख्य स्तम्भ था. European लोग दुनिया के पिछड़े क्षेत्रों में सभ्यता और विश्वास लाने का दावा करते थे, लेकिन साथ ही क्रूरता के साथ लाखों लोगों को मारने के लिए जिममेदार थे.

4. नस्लवाद से भी पुराना ज़हर है यहूदियों से नफ़रत. Berlin में 9 November 1938 की रात Europe में रहने वाले यहूदियों के नर-संहार की शुरुआत का प्रतीक है. यह Germany की धरती पर जैविक नस्लवाद पर आधारित और यहूदियों के लिए दूरगामी परिणामों वाला पहला राज्य समर्थित नर-संहार था. प्रलय की इस रात को नर-संहार की प्रस्तावना देते हुए Hitler और उस के साथियों ने इसे यहूदी समस्या का अन्तिम समाधान कहा था. Europe में यहूदियों के प्रति नफ़रत का एक लम्बा इतिहास रहा है. 11वीं शताब्दी में धर्म-युद्ध के बाद से यहूदी धर्म के लोगों पर बार-बार हमले होने लगे. crusaders यहूदियों को मृत्यु या ईसाई धर्म स्वीकार का विकल्प देते थे. जो हज़ारों लोग धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहते, उन्हें मार दिया जाता, छुरा घोंप दिया जाता, जला दिया जाता और उनकी सम्पत्ति लूट ली जाती. परिणाम-स्वरूप बहुत से यहूदी निष्कासित हो कर प्रवासियों की तरह रहने लगे. नफ़रत को आर्थिक उद्देश्यों से भी बढ़ावा मिलता था. मध्य युग में केवल ईसाइयों को ही कई व्यवसायों में प्रवेश की अनुमति थी. यहूदियों को अक्सर व्यापार और banking के लिए मजबूर किया जाता क्योंकि इन्हें ग़ैर-ईसाई माना जाता था. लेकिन ये व्यवसाय अक्सर लाभदायक होता थे, इस लिए यहूदी परिवार अमीर हो गए, जिस से ईर्ष्या पैदा हुई और पूर्वाग्रहों को बढ़ावा मिला. 19वीं सदी में पूर्वी Europe में बहुत से यहूदी रहते थे. यहीं से यहूदियों के खिलाफ़ जानलेवा हमलों के लिए "pogrom" (रूसी भाषा में विनाश, तबाही) शब्द स्थापित हो गया. हालंकि यहूदियों के प्रति नफ़रत अधिकतर धार्मिक आधार पर थी. लेकिन 19वीं सदी के अन्त में यह विचार उभर कर सामने आया कि यहूदी एक अलग नस्ल हैं, यानि जैविक स्तर पर एक अलग प्रजाति. यहूदियों के खिलाफ़ नाज़ी आतंक की पहली लहर 1933 के वसन्त में शुरू हुई. बड़े पैमाने पर प्रचार शोर के साथ यहूदी दुकानों, departmental stores, वकीलों, doctors के खिलाफ़ बहिष्कार अभियान चलाया गया. नाज़ियों ने पहले से मौजूद यहूदी विरोधी भावना को और बढ़ा दिया. German आबादी के एक हिस्से ने ना केवल स्वेच्छा से भाग लिया बल्कि यहूदियों की बदहाली को कन्धे उचकाते हुए मज़े लेते हुए देखा, खुद भी लूटपाट की, अपने दोस्तों, परिचितों और पड़ोसियों की रक्षा नहीं की, और यहूदी वस्तुओं से स्वयं को समृद्ध किया. द्वितीय विश्व युद्ध के अन्त के बाद भी ऐसे अनेक लोगों को सजा नहीं मिली. कुछ वैज्ञानिक यहूदी विरोध को नस्लवाद के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वतन्त्र घटना के रूप में देखते हैं, नफ़रत का एक विशेष रूप जिस ने 1000 से अधिक वर्षों से मानवता में ज़हर घोला है.

5. Hollywood में नस्लवाद. अश्वेत 'Hattie McDaniel' 1940 में 'Gone with the Wind' में अपनी सहायक भूमिका के लिए Oscar जीतने वाली पहली African-अमेरिकी अभिनेत्री बन गईं. हालांकि Los Angeles में Oscar समारोह के दौरान उस ने खूब तालियां बटोरीं. लेकिन उसे पीछे की मेज़ पर बैठना पड़ा था और उसे अपनी श्वेत साथी अभिनेत्रियों के बगल में बैठने की अनुमति नहीं थी. बाद में एक रूढ़िवादी अश्वेत नौकरानी के चित्रण के लिए McDaniel की आलोचना हुई. इस पर McDaniel ने कहा कि मैं नौकरानी बन कर 7 Dollar पाने के बजाय screen पर नौकरानी बन कर 700 Dollar कमाना पसन्द करूंगी. 'Gone with the Wind' व्यावसायिक रूप से अब तक की सब से सफ़ल फिल्म है. Guiness Book of Records का अनुमान है कि इस फिल्म का दुनिया भर में राजस्व, मुद्रा-स्फीति के लिए समायोजित, लगभग 8.2 billion Dollar होगा. अब HBO Max ने फिल्म के साथ एक चेतावनी label लगा दिया है कि 'Gone with the Wind' अपने समय का उत्पाद है और उस समय के नस्लीय और जातीय पूर्वाग्रहों को दर्शाता है जो दुर्भाग्य से उस समय के अमेरिकी समाज में आम थे. ये नस्लवादी चित्रण तब भी गलत थे और आज भी गलत हैं. द्वितीय विश्व युद्ध में Europe के तानाशाहों को चुनौती देने के लिए अमेरिकी सरकार ने अपने सैनिकों में अश्वेतों को भी संगठित किया. लेकिन अश्वेत सैनिक इस बात से हैरान थे कि नस्लवादी Germany के खिलाफ़ युद्ध में एक अश्वेत सैनिक को क्यों मरना चाहिए, जब कि वही सैनिक हर जगह नस्लवादी भेद-भाव का सामना करता है. उस समय के German सिनेमा में भी नस्लवादी बातें नज़र आती थीं. 1944 की एक नाज़ी प्रचार फिल्म 'Quax in Africa'  में Africans को असभ्य जंगली लोगों के रूप में चित्रित किया गया. 2016 में Disney ने घोषणा की कि वह एक श्वेत अभिनेत्री के साथ चीनी योद्धा Mulan के बारे में एक फिल्म बनाना चाहता है. इसकी खूब आलोचना हुई. इसे Whitewashing कहा गया. Whitewashing का अर्थ है फिल्म में अश्वेत चरित्र को एक श्वेत अभिनेता द्वारा चित्रित करना. Johnny Depp ने 'Lone Ranger' में एक अमरीकी मूल-निवासी का किरदार निभाया. Aloha में Emma stone ने मूल Hawai निवासी का किरदार निभाया. मंचों और फिल्मों में श्वेत अभिनेताओं का लम्बे समय तक वर्चस्व रहा है. 1950 के दशक में Vernon & Ryan अपने चेहरों को काला कर के भोले-भाले लेकिन ख़ुशी से गाने वाले दासों या घरेलू नौकरों की भूमिका निभाते थे. ऐसी रूढ़ियां 1980 के दशक तक चलती रहीं. इन में श्वेत अभिनेता 'Blackfacing' के द्वारा लाभान्वित होते रहे. Whitewashing और Blackfacing की प्रथाओं ने दशकों तक अश्वेत अभिनेताओं को बाहर रखा. 2010 के दशक में जागरुकता आई. Disney ने Mulan के चरित्र के लिए चीनी मूल की अभिनेत्री Liu Yifei को लिया. University of Southern California ने एक अध्ययन द्वारा बताया कि 90 प्रतिशत फिल्में श्वेत निर्देशकों द्वारा बनाई जाती हैं और 20 प्रतिशत में फिल्मों में किसी भी अश्वेत अभिनेता को नहीं लिया जाता है. जब 2019 में Disney ने जल-परी Arielle के remake में एक अश्वेत अभिनेत्री Halle Bailey को मुख्य भूमिका देने की घोषणा की तो एक ओर internet पर नस्लवादी टिप्पणियां सामने आईं, दूसरी ओर 2022 में release हुए trailor को उत्साही प्रति-क्रियाएं मिलीं. यहां तक कि अश्वेत परिवारों के छोटे बच्चे भी trailor देख कर हैरान और ख़ुश हो रहे थे कि वह जल-परी मेरे जैसी भूरी है. ऐसे उत्पीड़ित समुदायों की छवियां धीरे-धीरे ही लोक-प्रिय हो रही हैं.

6. 22 August 1992 को दक्षिण-पन्थी चरम-पन्थियों ने पूर्वी Germany (GDR / DDR) के शहर Rostock में एक शरणार्थी सलाह केन्द्र पर हमला कर दिया और दो दिन बाद पास ही एक आवासीय इमारत में आग लगा दी जिस में Vietnam से आए हुए एक सौ से अधिक अनुबन्ध श्रमिक रह रहे थे. कुछ श्रमिक अपने बीवी बच्चों के साथ भी रह रहे थे. हज़ारों वयस्क नागरिकों ने दंगइयों का समर्थन किया. उन्होंने police और दमकल-कर्मियों को अपना काम करने से रोका, उन पर हमला किया, उनकी गाड़ियां जला दीं. तत्कालीन संघीय आन्तरिक मन्त्री Rudolf Seiters (CDU ) ने इस घटना की निन्दा करने की आड़ में शरणार्थियों की आमद की निन्दा की. यह घटना Germany के एकीकरण के केवल तीन साल बाद हुई, जो एक शांतिपूर्ण क्रांति का फल था. 1990 में Germany football का विश्व विजेता भी बना. फिर विदेशियों के प्रति ऐसा नफ़रत भरा माहौल क्यों बना? पश्चिमी Germany (BDR) में राजनीतिक शरण के मौलिक अधिकार को बदलने के बारे में एक राजनीतिक विवाद 1980 के दशक से चल रहा था. Helmut Kohl 1982 में chancellor बने. Union और FDP ने अपने गठ-बन्धन समझौते में यह फ़ैसला किया गया कि उदार शरण कानून German समाज के लिए खतरा है. BDR आप्रवासन का देश नहीं है. इस लिए विदेशियों की आमद को रोकने के लिए सभी मानवीय उपाय किए जाने चाहिए. 1980 के दशक में BDR में नस्लवादी हिंसा हुई. 1984 में Duisburg में और 1987 में Schwandorf, Bavaria में कुछ तुर्की मूल के परिवारों वाले घरों में आग लगा दी गई. 1986 में Union parties CDU और CSU ने शरण के अधिकार के दुरुपयोग के खिलाफ़ एक अभियान शुरू किया, जिसे Bild अखबार और 'Welt am Sonntag' ने बड़े पैमाने पर समर्थन दिया. Soviet संघ की समाप्ति और Yugoslav युद्धों के बाद शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि हुई. 1992 में लगभग साढे चार लाख लोगों ने शरण के लिए आवेदन किया, जो पहले से कहीं अधिक था. इतनी बड़ी गिनती उस के बाद 2015 में Syrian युद्ध के दौरान देखने को मिली. 2016 में यह संख्या सात लाख तक पहुंच गई. 12 मई 1994 को Magdeburg में 40-60 skinheads और दक्षिण-पन्थी चरम-पन्थी युवाओं ने शहर में गहरी त्वचा वाले लोगों का शिकार करते हुए कुछ Africans पर चाकुओं से हमला कर दिया. police पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया गया. 1993 में Union और SPD तथा-कथित शरण समझौते पर सहमत हुए, जिस ने शरण के मौलिक अधिकार को प्रतिबन्धित कर दिया. ठीक तीन दिन बाद 29 मई 1993 को Solingen में दक्षिण-पन्थी आगजनी के हमले में तुर्की मूल के पांच लोगों की मौत हो गई. कुछ दिनों बाद मृत लोगों की अन्त्येष्टि सेवा में तत्कालीन संघीय chancellor Helmut Kohl उपस्थित नहीं हुए. आज तक Germany इस बात पर बहस कर रहा है कि क्या वह आप्रवासन का देश बनना चाहता है या नहीं.

7. 25 मई 2020 को अमेरिकी राज्य Minnesota के Minneapolis शहर में श्वेत police अधिकारी Derek Chauvin ने 46 वर्षीय African-अमेरिकी George Perry Flyod की गाड़ी को रोक कर उसे बाहर निकाला, उसे नीचे लिटा कर, उस के गले पर टांग रख कर, अपना पूरा वजन उस पर डाल कर उस का गला दबा दिया. Floyd कहता रहा कि वह सांस नहीं ले पा रहा है. आस-पास खड़े लोगों ने भी Chauvin से Floyd को छोड़ देने की विनती की. लेकिन Chauvin ने साढे नौ minute तक उस का गला दबाए रखा जिस से Floyd की मृत्यु हो गई. तीन अन्य police अधिकारियों ने हस्तक्षेप नहीं किया या प्राथमिक उपचार नहीं दिया. Flyod को केवल इस लिए रोका गया था कि एक दुकान वाले ने शिकायत की थी कि Flyod ने बीस Dollar का नक़ली नोट इस्तेमाल किया है. एक राहगीर ने इस घटना को अपने mobile में record कर लिया और इस video ने दुनिया भर में हल-चल मचा दी. घटना के बाद घटना में शामिल चारों police अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया गया और हत्या के सन्देह में उन्हें हिरास्त में ले लिया गया. George Floyd की मौत के बाद संयुक्त राज्य America और दुनिया भर में 'Black Lives Matter' के नारे के साथ 'police हिंसा' और नस्लवाद के खिलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. दंगों में कई अन्य लोगों की मौत हो गई. मई 2020 के अन्त से 40 अमेरिकी शहरों में curfew लगा दिया गया और national guard को तैनात कर दिया गया. प्रदर्शनकारियों का मानना ​​था कि नस्लवाद की समस्या police विभाग और हमारे समाज की बुनियाद में है, ना कि एकल police अधिकारियों में. मुख्य आरोपी Derek Chauvin को कुल 43 साल jail की सजा सुनाई गई.

हाल के दशकों में तमाम प्रगति के बावजूद मूल या त्वचा के रंग के आधार पर भेद-भाव दुनिया में लगभग हर जगह एक समस्या बनी हुई है. लेकिन इतिहास को दोहराया नहीं जाना चाहिए. नस्लवाद के खिलाफ़ लड़ाई हमारे दिमाग में शुरू होती है.