शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

चतुरंग: प्राचीन भारतीय युद्ध और शतरञ्ज की उत्पत्ति

पूरे विश्व में खेले जाने वाले युद्ध कौशल पर आधारित खेल 'शतरञ्ज' की उत्पत्ति इत्र और इतिहास की नगरी कन्नौज (उत्तर प्रदेश) में हुई. दुनिया को यह बताने में Munich की FSG नामक संस्था और Munich की विख्यात भारतविद Dr. Renate Syed का बहुत बड़ा हाथ है. Dr. Syed ने सितंबर 2020 में प्राचीन भारतीय युद्ध कला पर आधारित चतुरंग नामक एक खेल पर व्याख्यान दिया. उनके अनुसार इस में कोई सन्देह नहीं है कि शतरञ्ज की उत्पत्ति उत्तर भारत में ईसा मसीह के बाद पहली कुछ शताब्दियों में हुई. दूसरी या तीसरी शताब्दी में युद्ध नीति और सैन्य रणनीति सहित अन्य कई विषयों पर लिखे गए संस्कृत ग्रन्थ 'अर्थ-शास्त्र' और 12वीं शताब्दी के एक लेख मानसोल्लास में भी चतुरंग नामक एक खेल का विस्तृत विवरण शामिल है जिस का संस्कृत में अर्थ है "चार (चतुर), भाग (अंग)", अर्थात रथ और घोड़े, हाथी और पैदल चलने वाले. शुरुआत में, चतुरंग स्पष्ट रूप से एक त्रि-आयामी "didactic model" या सैन्य simulation game था जिस का उपयोग युद्ध के सिद्धांतकारों द्वारा राजाओं, राजकुमारों और अधिकारियों को सिखाने के लिए किया जाता था कि युद्ध की योजना कैसे बनाई जाए. युद्ध में सैनिकों को नियन्त्रित करने के लिए सेना के चार भागों को विस्तृत सारणियों के रूप में, जिन्हें व्यूह कहा जाता था, कैसे स्थापित किया जाए. इन शिक्षाप्रद और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए, हाथियों, घोड़ों आदि के terracotta के बने छोटे खिलौनों को रेत की मेज़ों में स्थापित किया जाता था. इनका इस्तेमाल युद्धों से पूर्व सैनिकों के अनुकरण का अन्दाज़ा लगाने के लिए किया जाता ताकि इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके कि युद्ध कैसे और क्यों जीता या हारा जाएगा. या फिर युद्ध के बाद, यह जानने के लिए कि युद्ध क्यों जीता या हारा गया. कभी-कभी दूसरी या तीसरी शताब्दी ई. के दौरान शाही दरबार का एक बुद्धिजीवी, अष्टपद नामक 8x8 खानों के एक board पर सोलह टुकड़ों की दो छोटी खिलौना सेनाएं स्थापित करता था. अष्टपद प्राचीन काल से अनुष्ठान, अटकल, गणित और खेल के लिए इस्तेमाल किया जाता था. यहां से दो-खिलाड़ी रणनीति board game चतुरंग का जन्म हुआ. एक चुनौती पूर्ण खेल जो मनोरञ्जन के लिए खेला जाता था जिस में प्रगति, विफलता, जीत और हार, मौके की बजाए केवल खिलाड़ियों के मानसिक और मनोवैज्ञानिक कौशल पर निर्भर करती थी. चतुरंग खेल प्राचीन भारतीय युद्ध कला पर आधारित था, जिस में खिलाड़ियों के नाम, स्थान, चाल और लड़ने की तकनीक का वर्णन किया गया था. यह वास्तविक सेना की ही प्रतिलिपि थी. चतुरंग खेल शुरू से ही इतना परिपूर्ण था, कि उस के तत्व और नियम अभी भी आधुनिक शतरञ्ज में लागू होते हैं.

इसी तरह शतरञ्ज की उत्पत्ति और इस के प्रारम्भिक इतिहास पर वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए 1996 में FSG (Förderkreis Schach-Geschichts-forschung) (Charity Trust Chess-Historic Research) की स्थापना हुई। 1996 में ही पाण्डिचेरी विश्व-विद्यालय में शतरञ्ज के इतिहास पर पहली वैज्ञानिक संगोष्ठी हुई. 2007 में FSG ने दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, कन्नौज और वाराणसी के छह पुरातात्विक संग्रहालयों का दौरा किया, यह जांचने के लिए कि वहां प्रस्तुत कुछ पुरातात्विक वस्तुएं चतुरंग खेल टुकड़े हो सकती हैं या नहीं. उसी वर्ष भारत के बारह पुरातत्वविदों की उपस्थिति में इटली के Ravenna शहर में दक्षिण-Asian पुरातत्व के 19वें सम्मेलन में परिणामों की सूचना दी गई. वहां कन्नौज और उस के आस-पास के क्षेत्र में छोटे पैमाने की खुदाई के दौरान पाई गईं terracotta कला-कृतियों पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया था जिनका वर्णन अर्थ-शास्त्र में चतुरंग नामक खेल में हुआ था।  2011 में FSG के सह-संस्थापक 85 वर्षीय Munich निवासी Dr. Leander Feiler ने पटना और उस के आस पास के क्षेत्र के कुछ संग्रहालयों में इसी तरह की जांच की कि वहां की terracotta कला-कृतियों को शतरञ्ज के टुकड़े माना जा सकता है या नहीं. वे आवश्यक समय सीमा में फिट नहीं होते थे क्योंकि वे बहुत पहले की तारीख के थे. 2019 में कन्नौज के New Government Archaeological Museum में शतरञ्ज की ऐतिहासिक संगोष्ठी का आयोजन करते समय Dr. Feiler को परियोजना प्रबन्धकों में से एक होने के नाते Munich के वाणिज्य दूतावास द्वारा समर्थन मिला. यह संगोष्ठी 27 और 28 February 2020 को आयोजित हुई और बहुत सफ़ल रही. Germany, Sweden और भारत के कई वैज्ञानिकों ने इस में व्याख्यान दिए. इन वैज्ञानिक परिणामों के आधार पर FSG ने 'Mission Kannauj 2020' के शीर्षक से एक पुस्तक के रूप में कार्य-पत्र प्रकाशित किए. यह पुस्तक बारह पत्रों और निबन्धों में शोध के परिणामों को सारांशित करती है. इन परिणामों के आधार पर यह दावा किया गया कि शतरञ्ज का अविष्कार भारत में 550-650 ई. के आस-पास मौखरी क्षेत्र में सम्भवत: कन्नौज में हुआ था. FSG ने कन्नौज के इतिहास और terracotta कला-कृतियों, हाथी और घोड़ों के सवारों के खेल के टुकड़ों के इतिहास को देखते हुए भारत को शतरञ्ज के खेल के लिए UNESCO द्वारा 'सारहीन विश्व विरास्त पुरस्कार' (Immaterial World Heritage Award) के लिए आवेदन करने का और पुरातत्व सर्वेक्षण की देख-रेख में कन्नौज क्षेत्र की व्यवस्थित वैज्ञानिक उत्खनन अभियान शुरू करने का प्रस्ताव रखा. FSG के अनुसार यह उच्च स्तर की खुदाई अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशाल पर्यटन आकर्षण हो सकती है. 1st April 2022 को FSG संस्था आधिकारिक रूप से समाप्त कर दी गई. उस के बाद Dr. Feiler ने वे कार्य-पत्र डाक द्वारा भारत के प्रभावशाली व्यक्तियों को भिजवाने का निर्णय लिया. हालांकि ज़्यादातर किताबें Corona महामारी के कारण नहीं पहुंचीं. 2021 के अन्त में उन्होंने "Mission Kannauj 22" नामक एक अनुवर्ती को प्रायोजित करने का निर्णय लिया. जोधपुर के श्री रणवीर सिंह शेखावत व्यक्तिगत रूप से इस पुस्तक को एक covering letter के साथ सरकार के सदस्यों को पहुंचाने के लिए सहमत हुए. श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, जल और ऊर्जा मन्त्री और MP के समर्थन के कारण Dr. Feiler कुछ आशावान हैं. Dr. Feiler ने studiosus (studiosus.com) नामक अध्ययन यात्राएं आयोजित करने वाली company के साथ भारत के लिए पचास वर्ष तक काम किया. वे भारत को बहुत प्यार करते हैं, भारत के लिए कुछ करना चाहते हैं. वे अच्छी हिन्दी बोलते हैं पर अधिकतर भारतीय उनसे अंग्रेज़ी में बात लगते हैं. इस लिए उनकी हिन्दी खास सुधर नहीं पाई.