रविवार, 17 जुलाई 2022

बरसों बाद पूरा हुआ फिल्में बनाने का सपना

पञ्जाब के लखविन्दर शाबला का बचपन से झुकाव संगीत और अभिनय की ओर था. पर माता-पिता से उन्हें कभी समर्थन नहीं मिला. वे अक्सर यह कह कर दुत्कार दिए जाते थे कि यह मरासियों वाला काम है. ज़िन्दगी के थपेडों ने 1978 में सत्रह साल की उम्र में उन्हें Germany ला दिया जहां वे वर्षों तक gastronomy में काम कर के अपने परिवार की मदद करते रहे और साथ ही साथ मनोरञ्जन क्षेत्र में पांव डालने की कोशिश करते रहे. गाने की प्रकृतिक प्रतिभा तो उन्हें भगवान ने दी है. यदा कदा भारत और England जा कर वे नए नए गाने लिखवाते और record करवाते रहे. पर इन चीज़ों से उन्हें कभी कोई वित्तीय फ़ायदा नहीं हुआ. फिर उन्होंने films बनाने की सोची. Germany के Munich शहर में अपनी 'Dubliner Irish Pub' की देख रेख करने के साथ साथ उन्होंने कुछ लघु films बनाईं. कुछ minutes की film बनाने में तीस पैंतीस हज़ार Euro खर्च हो जाता था, पर वे संघर्ष करते रहे. फिर उन्होंने full length feature film बनाने की सोची. Indo-german cooperation के साथ 2007 में 'वापसी' शीर्षक से film बनाई. पर जब उन्होंने उसे भारत में release करने की कोशिश की तो उन्हें Bollywood की चमक-दमक के पीछे की सच्चाई का अहसास हुआ. अनेक distributors और नामी-गिरामी film निर्माताओं ने उन्हें बाहर का आदमी और नौसीखिया समझ कर लूटने की कोशिश की. भारत में shooting करते समय भी कई लोगों ने उन्हें धोखा दिया. यह film तो नहीं चल पाई पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. फिर 2017 में उन्होंने अगली film 'Raja Abroadiya' बनाई जिस के लिए और उन्होंने hero heroine, camera man, light man, make-up artist सहित छत्तीस लोगों की crew को भारत से बुला कर  तीन महीने के लिए Germany में hotel में रखा और film की shooting समाप्त की. अब तक भारत के घाघों से निपटने का तरीका वह सीख चुके थे. अन्तत: यह film भारत के लगभग चार सौ cinema घरों में release हुई और चली भी. अब यह film YouTube पर उपलब्ध है जिस पर आप साथ में दिए barcode द्वारा पहुंच सकते हैं. 2019 में उन्होंने एक German film '25 Years Later' भी बनाई जो corona महामारी के कारण release नहीं हो सकी.