बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

हिन्दी पुस्तक का जर्मन में अनुवाद


Book reading of German translation published by Draupadi Publications of a Hindi book by indian author Uday Prakash, in Munich.

दस नवंबर को म्युनिक के 'Eine Welt Haus' में हिन्दी लेखक 'उदय प्रकाश' की हिन्दी पुस्तक '.... और अन्त में प्रार्थना' के जर्मन रूपान्तर 'Doktor Wakankar. Aus dem Leben eines aufrechten Hindus' का एक विशेष सभा में परिचय दिया गया। इस सभा में दो मॉडरेटरों द्वारा जर्मन अनूदित पुस्तक में से कुछ अंश पढ़कर श्रोताओं को सुनाए गए और साथ ही मूल लेखक 'उदय प्रकाश' ने पुस्तक और विषय सम्बंधी जानकारी दी। मॉडरेटरों, लेखक और श्रोताओं के आपसी संवाद की सुविधा के लिए एक जर्मन-अंग्रेज़ी अनुवादक भी उपस्थित थीं। मूल हिन्दी पुस्तक भारत में 'वाणी प्रकाशन, दिल्ली' द्वारा प्रकाशित की गई थी। और जर्मनी में इसे 'द्रौपदी प्रकाशन' (Draupadi Verlag) ने प्रकाशित किया है। वहां जर्मन अनूदित पुस्तकें बिक्री के लिए भी उपलब्ध थीं।

मॉडरेटर Renate Börger ने श्रोताओं का स्वागत किया और लेखक 'श्री उदय प्रकाश' पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि 1952 में जन्मे उदय प्रकाश की पुस्तक में हिन्दू राष्ट्रवाद और एक डॉक्टर के पेशे के बीच झूलते हुए 'डा. दिनेश मनोहर वाकणकर' की कहानी है। उन्होंने कहा कि वे कुल बीस पच्चीस मिनट के समय में पुस्तक में चुने गए पांच अध्यायों में से कुछ अंश पढ़ेंगी। हर पठन के बाद पोडियम पर उनके साथ बैठे उदय प्रकाश जी से प्रश्नोत्तर भी किया जाएगा। फिर उन्होंने उदय प्रकाश जी को मूल हिन्दी पुस्तक में से कुछ पंक्तियां पढ़कर सुनाने का अनुरोध किया ताकि श्रोताओं को मूल भाषा का थोड़ा आभास हो सके। उदय प्रकाश जी ने उपन्यास की कुछ आरम्भिक पंक्तियां पढ़ीं।

पुस्तक के बारे में बताते हुए 'उदय प्रकाश जी' ने कहा कि 48 वर्ष की आयु के 'डा. वाकणकर' चमड़ी के रोगों के डाक्टर होने के साथ साथ 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ' के सक्रिय सदस्य भी हैं। 1990 में लिखी यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि सच्ची कहानी है (हालांकि हिन्दी पुस्तक पर लिखा हुआ है कि सभी पात्र काल्पनिक हैं)। एक दंगे में पुलिस की गोली द्वारा एक मुस्लिम युवक मारा जाता है। वहां के न्याय मन्त्री, जो सीमेंट के व्यापारी भी हैं, उन्हें झूठी शव परीक्षा रिपोर्ट बनाने को कहते हैं, जिसमें मृत्यु का कारण गोली नहीं बल्कि पत्थर-बाज़ी बताया जाए। उस समय मैं दिल्ली में एक हिन्दी समाचार पत्र में बतौर पत्रकार काम करता था। समाचार पत्र ने कई बार मेरी सच्ची रिपोर्टें छापने से मना किया जिसके कारण मैं नौकरी छोड़ कर मध्यप्रदेश लौट आया। वहां मेरी मुलाकात डा. वाकणकर से हुई। उस घटना के बाद उनकी दिमागी हालत ठीक नहीं थी। मैं उन्हें दिल्ली लाया। वे 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ' को एक सांस्कृतिक संगठन समझते थे पर यह एक राजनैतिक संगठन सिद्ध हुआ। हमने कई प्रेस कॉन्फ़्रेंस आयोजित करके इस मुद्दे को उजागर करने का प्रयत्न किया।'

इस पर Renate Börger ने पूछाः भारत में 'राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ' की बीस हज़ार से अधिक शाखाएं हैं। आप हिन्दू राष्ट्रीय आन्दोलन की व्याख्या कैसे करेंगे? उदय प्रकाश जी ने उत्तर दिया कि भारतीय जनसांख्यिकी में दलित भी हैं। भारतीय संविधान के निर्माता डा. अंबेडकर ने कहा था कि दलित हिन्दू नहीं हैं। वे अलग हैं। उन्होंने दलितों से आह्वान किया था कि हिन्दू धर्म में उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी इसलिए वे बौद्ध धर्म अपनाएं। 1996 में भारत में एक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में केवल अधिक जाने वाले केवल चार पांच समूह नहीं (जैसे हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई आदि) बल्कि दो हज़ार पच्चीस समूह हैं। यहां चौबीस नहीं बल्कि दो सौ भाषाएं हैं। इतनी सारी जातियों में किसी तरह का राजनैतिक एकीकरण सम्भव नहीं। लेकिन मीडिया लोगों को एक कृत्रिम पहचान देने का प्रयत्न करता है। यह पुस्तक बाबरी मस्जिद विध्वंस से भी पहले लिखी गई थी। इसमें गुजरात दंगों, ईसाई मिशनरियों पर हिंसक आक्रमण आदि के द्वारा तनाव पैदा करने का उल्लेख किया गया है। पर पिछड़ी जातियां अब अपनी पहचान दर्ज करवा रही हैं। पिछले दो चुनावों में यह देखने को मिला है। इस पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है। अगर भविष्य में भी वे हारते हैं तो भविष्य बेहतर होगा।'

साथ ही उदय प्रकाश ने नब्बे के दशक में आरम्भ हुई वैश्वीकरण की लहर का अपने गांव पर पड़ते असर का उल्लेख करते हुए कहां 'एक कागज़ बनाने वाली फ़ैक्टरी ने मेरे गांव की कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण कर लिया। वहां महुआ के पेड़ों, जड़ी बूटियों की बजाय तेज़ी से बढ़ने वाले नील-गिरी के पेड़ (eucalyptus) की बड़ी मात्रा में खेती होने लगी। इन पेड़ों की शाखाएं नहीं होतीं और ये बहुत पानी चूसते हैं जिससे पानी का स्तर गिरता जाता है। इस वजह से और पानी के लिए और गहरी खुदाई करनी पड़ती है। अब तो बरसात का मौसम भी अता पता नहीं। मेरा घर दरिया के किनारे था। वह दरिया अब सूख चुका है। एक सर्वेक्षण के अनुसार स्वतन्त्रता के समय 1947 में भारत में 48% भूमि पर जंगल थे। अब केवल 12% भूमि पर जंगल हैं। ये आंकड़े भी भ्रामक हैं। पूर्वी और पश्चिमी भारत तो पर्याप्त बरसात के कारण बच गया। पर कुछ अन्य क्षेत्रों में से तो जंगल पूरी तरह ग़ायब हो चुके हैं। आदिवासी इसकी सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं। वे सदियों से जंगलों में रहते आए हैं। बॉक्साइट, लौह, कोयले आदि प्राकृतिक संसाधनों के लिए उन्हें बेघर कर दिया जाता है। ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की तरह उनमें मृत्यु दर, जन्म दर से भी अधिक है। अब तक अस्सी लाख आदि-वासियों का सफ़ाया हो चुका है। भारत की अभी भी 11% जनसंख्या आदि-वासियों की है। यह गिनती इटली, इंगलैण्ड और फ़्रांस की कुल आबादी से भी अधिक है।'

श्रोताओं में से किसी ने पूछा 'दलितों और पिछड़ी जातियों ने कट्टरपन्थ के विरुद्ध लड़ाई में क्या भूमिका निभाई है?' उदय प्रकाश जी ने उत्तर दिया 'उत्तर प्रदेश सबसे अधिक आबादी वाला प्रान्त है। वहां अब मायावती द्वारा दलितों की सरकार चल रही है। वे जातिवाद के विरुद्ध लड़ रहे हैं। अरुंधति राय आदि-वासियों के लिए लड़ रही है। लेकिन जातिवाद को सही मायनों में समाप्त करने के लिए बहुत गहन चिन्तन की ज़रूरत है। लेकिन मैं कोई नेता नहीं बल्कि लेखक हूं। मेरे अगले उपन्यास में एक लड़की और एक छोटी जाति के लड़के की प्रेम कहानी है। मुझे डर लगता है कि जिस तरह से भारत में तरह तरह भेदभावों के द्वारा अपने हित साधे जाते हैं, उससे स्थित बहुत विस्फोटक बन सकती है। महात्मा गांधी जी सत्ता के विकेन्द्रीकरण की बात करते थे। पर ऐसा नहीं हुआ। पर वहीं पर भारत की अनेकता और विविधता के कारण लोकतन्त्र अभी भी शक्तिशाली है। केवल दस वर्ष पहले ही सोनिया गांधी का उसके विदेशी मूल को लेकर कितना विरोध हुआ। लेकिन अब वे प्रधान मन्त्री तक बन सकती हैं।'

एक श्रोता ने पूछा 'भारतीय राजनैतिक पटल पर भारतीय युवा लोगों की क्या भूमिका है?' उदय प्रकाश जी ने कहा 'भारत में 77% जनसंख्या देहात में रहती है। बर्लिन में भी इसी विषय को दर्शाती एक प्रदर्शनी चल रही है जिसका शीर्षक है 'what makes india urban'. लगभग 28.5 करोड़ युवा लोग शहरों में रहते हैं। यह विश्व का चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। भारत में दो तरह की युवा पीढ़ियां हैं। 15-20% साधन संपन्न लोग हैं। बाकी लोग ऐसे हैं जो हर सुविधा और शिक्षा से वंचित हैं। वे विकल्प के रूप में हथियार उठाते हें। नक्सली आन्दोलन इसी का परिणाम है। भारतीय मध्य वर्ग, खास तौर पर तकनीकी प्रगति के बाद उपजे मध्य वर्ग के मन में 77% जनसंख्या वाले वंचित और गरीब लोगों के लिए कोई सहानुभूति नहीं है। यह गरीब लोग एक डॉलर से भी कम दैनिक आय में गुज़र बसर करती है। दुनिया का मलेरिया से मरने वाला हर तीसरा व्यक्ति भारतीय है। विश्व के 1.6 करोड़ कुष्ठरोगियों में से 1.2 करोड़ भारतीय हैं। पवन कुमार वर्मा की पुस्तक 'Great Indian Middle Class' (हिन्दी में 'भारत के मध्य वर्ग की अजीब दास्तान') इसी सच्चाई को दर्शाती है। 'अन्तरराष्ट्रीय पारदर्शिता संस्था' (Transparency International) ने पारदर्शिता के पैमाने पर भारत को विश्व में 163वां स्थान दिया है। इसी से भारत में भ्रष्टाचार का अन्दाज़ा लग जाता है।'

एक अन्य श्रोता ने पूछा 'भारतीय युवा वर्ग का राजनीति के प्रति क्या रवैया है? राजनीति में उनका झुकाव और भागीदारी कितनी है?' उदय प्रकाश जी ने कहा 'अभी भी स्वर्ण वर्ग के हिन्दू सत्ता में हैं। यहां पर 1968 में यूरोप के छात्रों द्वारा किए गए आन्दोलन जैसा कोई आन्दोलन नहीं है। थोड़ा बहुत जो युवा आन्दोलन हुआ, वह 1977 में आपात-काल के दौरान जयप्रकाश नारायण के प्रतिनिधित्व में हुआ। भारत में दो तरह का युवा वर्ग है। एक ओर वैश्वीकरण का फायदा उठाता हुआ, अच्छे वेतन पाता हुआ युवा वर्ग है। राजनीति में उसकी रुचि नहीं है। दूसरा गरीब युवा वर्ग जिसमें बेरोज़गारी व्यापक है। इस युवा वर्ग के पास हथियार उठाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता। ये दो समानान्तर पीढ़ियां आपस में किसी दिन टकरा सकती हैं, जिसके बारे में सोच कर ही मैं डर जाता हूं। भारत में 60-70 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं। इसलिए मैं अपने प्रकाशक का बहुत धन्यवादी हूं जिन्होंने मेरी आवाज़ को जन जन तक पहुंचाया। मैं अपने जर्मन प्रकाशकों का भी बहुत आभारी हूं, जिन्होंने वैश्वीकरण की चमक दमक में भी भारत के एक अंधियारे कोने निकलती हुई इस आवाज़ को सुनने की हिम्मत की है। यह आवाज़ बड़ी बड़ी बातें करती किसी अन्तरराष्ट्रीय कंपनी की नहीं बल्कि एक आम आदमी की है।

अधिकतर श्रोताओं का मानना था कि कार्यक्रम बहुत ही रोचक था। लेखक ने बड़ी हिम्मत, सच्चाई और ईमानदारी के साथ अनके बातें बताईं। श्रोताओं में से Christine कहती हैं कि लगता है कि अनुवादक ने भारतीय सन्दर्भ में पहले से तैयारी नहीं की थी। बहुत से भारतीय शब्द जैसे ब्राह्मण, क्षत्रीय, किसान, आदिवासी, दलित आदि उसने वैसे के वैसे ही उपयोग किए। इन महत्वपूर्ण शब्दों का भी जर्मन भाषा में अनुवाद किया जाना चाहिए था, क्योंकि इन्हें ठीक तरह समझे बिना श्रोताओं की समझ आधी अधूरी रह गई होगी। श्रोताओं में से Ingrid ने पुस्तक खरीदी और उदय प्रकाश जी से ऑटोग्राफ लिया।