शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

पौने पांच सौ साल बाद मिला डूबा हुआ जहाज़

The spices exhibition in Rosenheim opens window to vast and long story of world trade of spices. This story is about a small part of this exhibition, a story about the Portuguese ship 'Bom Jesus' which was found in April 2008 on Namibian coast, 476 years after it was lost in storm while heading for India.

Munich के पास Rosenheim नामक शहर में चल रही मसालों के वैश्विक व्यापार पर आधारित एक बड़ी प्रदर्शनी का एक अध्याय इस लेख में पेश किया जा रहा है. यह प्रदर्शनी अक्तूबर 2010 तक चलेगी, देखना ना भूलें. लेख के अन्त में प्रदर्शनी का web पता देखें.

आज से केवल दो साल पहले एक खोज ने मसालों के सदियों पुराने विश्व व्यापार के इतिहास में एक नया अध्याय खोल दिया. April 2008 में Namibia के समुद्री तट के पास एक हीरों की खान के पास 476 साल पुराना डूबा हुआ एक पुर्तागाली जलपोत मिला जो टनों के हिसाब से तांबा, सोना आदि लाद कर भारत जा रहा था. इससे पहली बार ज्ञात हुआ कि उस समय में Germany के व्यापारी कितनी भारी मात्रा में इस व्यापार में संलग्न थे. इस खोए हुए पोत में से लगभग सौ टन की कुल 7484 चीज़ें मिलीं जिन में 21 किलो चांदी के सिक्के, ग्यारह किलो सोने के सिक्के, सात टन लकड़ी, पांच anchor, कांसे और लोहे की तोपें, तलवारें, तोपों के गोले, बन्दूकें, तांबे और टीन के बरतन, 78 हाथी के दांत, साढे छह टन सीसा, सौ किलो टीन, बीस टन तांबा और पोतों की स्थिति मापने के लिए अनेक यन्त्र शामिल थे.

4 march 1533 को Bom Jesus नामक यह पोत तीन अन्य पोतों के साथ Potugal की Lisbon बन्दरगाह से भारत की ओर चला. यह 29 meter लम्बा और साढे आठ meter लम्बा बिल्कुल नया और आधुनिक पोत था. इसकी लकड़ी पानी में 9cm और ऊपर 7cm मोटी थी. इस में चौरस आकार के पाल थे जिन पर पुर्तगाली cross बना हुआ था. इस में लदा सामान Europe की कई प्रमुख बन्दरगाहों से आया था जैसे Gdańsk, Antwerp, Seville, Venice और Cadiz. इस में लदे तांबे के गोले Augsburg के Fugger नामक व्यापारिक परिवार से थे जिन की Slovakia में तांबे की खानें थीं. इस तांबे के बदले में Potugal भारत में काली मिर्च और अन्य मसालों का व्यापार करता था. 1510 में गोवा पर कब्जा करने के बाद तांबे के सिक्के भी वहीं बनाए जाने लगे थे जिन से व्यापार में बेहतर कमाई होती थी. इस के अलावा यह तांबे के गोले खम्भात की खाडी में, कोचीन में और मालाबार क्षेत्र में भी बेचे जाते थे. इनके अलावा पोत में लदा साढे छह टन सीसा भी Fugger परिवार से ही आने का अनुमान है. वे सीसे को Poland से ख़रीद कर Venice भेजते थे और वहां से यह Lisbon आता था. यह भी भारत में इमारतें बनाने के काम आता था. सीसे का गोला-बारूद बनाने में भी बहुत प्रयोग था. हर सिपाही करीब छह किलो सीसा लिए घूमता था. पोत में एक दो टन पारा भी था जो इद्रिया और अलमदन की खानों से आया था. अनुमान के अनुसार यह भी Fugger परिवार की ही सम्पत्ति थी. इसे भी भारत में बरतन बनाने और शीशे पर परत चढ़ाने के लिए बेचा जाता था. पारे के व्यापार से सब से अधिक नफा होता था. इस पोत में समुद्री युद्धों के लिए आधुनिक तोपें लगीं हुईं थीं. इन तोपों से 113mm व्यास के साढे पांच किलो भारी लोहे के गोले छोड़े जाते थे. हर गोले को दागने के लिए साढे पांच किलो बारूद की आवश्यकता होती थी. गोला 368 meter प्रति second की गति से जाता था. यह गोला 765 meter दूर बलूत की लकड़ी की 125 mm मोटी दीवार को आसानी से तोड़ सकता था. 220 meter की दूरी पर तो 480 mm मोटी लकड़ी भी इस के आगे नाकाम थी. हर तरह की तोप के लिए पत्थर और लोहे के गोले भी इस पोत में थे और हर तोप को दागने के लिए दो तोपची भी थे. इन में से बहुत से तोपची German थे. इस पोत पर इतना असला इस लिए था क्योंकि पोतों को Somalia के पास भारत में व्यापार करने वाले Muslim जलपोतों पर हमला बोलने की आज्ञा थी. पोतों के कप्तान अपने नाविकों को लूट का एक हिस्सा देने का प्रलोभन देते थे. पोत के हर नाविक को मसालों एक बोरी अपने साथ घर लाने अनुमति थी. यह उस समय बहुत बड़ी बात होती थी. इस के सपनों में लोग समुद्र के खतरों को भूल कर साथ जाने को तैयार हो जाते थे.

Lisbon से चलते समय इस पोत में 70 नाविक, 24 अधिकारी, 36 यात्री और 120 सैनिक थे. September 1533 में गोवा में तीन German व्यापारी बेसब्री से इस पोत के पहुंचने की प्रतीक्षा कर रहे थे. पर यह पोत दक्षिण अन्ध महासागर में African तट के पास एक तूफ़ान में फंस गया और हवा और तूफ़ान के द्वारा तट के पास धकेल दिया गया. फिर यह पोत सारे लोगों और सामान के साथ 476 सालों तक लापता रहा. हालांकि इस पर सवार लोगों की कुछ व्यक्तिगत चीज़ें मिली हैं पर खुद लोगों का कोई सुराग आज तक नहीं मिला है.

उपरोक्त चित्र National Geographic द्वारा पाई गई चीज़ों का अध्ययन कर के दोबारा तैयार किया गया है कि यह मूल रूप से कैसा दिखता होगा. February 2010 में National Geographic ने पहली बार इस के बारे में report प्रकाशित की

http://www.gewuerze-ausstellung.de/