शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2021

गाय के गोबर से वैदिक ईंटें और प्लास्टर

मवेशियों का गोबर मनुष्य के लिए हज़ारों सालों से उपयोगी रहा है. इसी के कारण मनुष्य ने झोंपड़ियां बनानी शुरू कीं और गुफ़ाओं में रहना छोड़ा. लोग आज भी गोबर की पाथियां बना कर और सुखा कर भोजन पकाने और गरमाहट के लिए इस्तेमाल करते हैं. लेकिन फ़िर मनुष्य प्रकृति से दूर होने लगा और cement और concrete के भवन बनाने लगा जो गरमियों में अधिक गरम और सर्दियों में ठण्डे हो जाते हैं. 2009 में हरियाणा के रोहतक शहर के डॉ॰ शिव दर्शन मलिक को गाय के गोबर से plaster बनाने का ख्याल आया, क्योंकि यह एक अच्छा उष्मारोधक है. 2018 में उन्होंने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के तहत "वैदिक plaster" नामक संस्था का पञ्जीकरण किया. आज राजस्थान के बीकानेर के पास उनका एक संयन्त्र है जहां रोज़ करीब बीस टन plaster बन कर सम्पूर्ण भारत में वितरित होता है.

यही नहीं, वे लोगों को मवेशी पाल कर भवन या घर बनाने के लिए आवश्यक सामग्री ख़ुद ही तैयार करने का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं. प्रशिक्षण के लिए तीन तीन दिनों के technological transfer session आयोजित किए जाते हैं जिनकी फीस 21 हज़ार रुपए होती है. उस के बाद प्रतिभागियों को छह महीने के अन्दर अन्दर एक 10x10 feet का कमरा बना कर दिखाना होता है जिस के बाद उन्हें certificate दिया जाता है.

वे कहते हैं कि पारम्परिक प्रणाली से 10x10 feet का कमरा बनाने के लिए करीब छह हज़ार clay की ईंटें चाहिएं, जिन्हें बनाने के लिए 18 हज़ार किलो मिट्टी, clay और plaster of paris चाहिए. फ़िर उन्हें पकाने (firing) के लिए छह हज़ार युनिट बिजली चाहिए. plaster के लिए 1250 किलो cement चाहिए. cement बनाने में कितनी चीज़ों का खनन और transportation involved है. फ़िर उसे पकाने के लिए भी 1250 युनिट बिजली चाहिए. फ़िर लैंटर डालने के लिए दो सौ किलो लोहे के सरिए चाहिए जिन्हें बनाने के लिए लोहे को 1500°C पर पिघलाना पड़ता है. इस के लिए दस हज़ार युनिट बिजली चाहिए. रोज़ फ़िर लैंटर में रोड़ी (concrete) डलती है. जब कि एक मवेशी के जीवन काल में आप उसके गोबर से एक लाख वैदिक ईंटें बना सकते हैं.

वैदिक ईंटें बनाने के लिए गोबर को plaster of Paris, clay, गोबर की राख और पानी के साथ मिला कर अच्छी तरह मिलाया जाता है और एक सांचों में डाल कर धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है. ये ईंटें सामान्य ईंटों की तुलना में थोड़ी हल्की होती हैं पर ये ज्वलनशील नहीं होतीं और पानी भी सोख लेती है. plaster और वैदिक ईंटें बनाने के लिए वे भारत में स्थित अनेक गौ-शालाओं से गोबर इकट्ठा करते हैं.

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