रविवार, 10 अक्तूबर 2021

एयर होस्टेस से जर्मन शिक्षिका बनने की कहानी

फ़रीदाबाद की रहने वाली हिना नागपाल को बचपन से जर्मन भाषा से लगाव है। वह बचपन में कबाड़ी से German भाषा के शब्दकोष उठा लाती थी. उन्हें ख़ुद भी समझ नहीं आता था कि वह यह क्यों कर रही है. उन्हें नहीं पता था कि वे कभी बहुत से लोगों को जर्मन भाषा सिखाने का पेशा अपनाएंगी। लेकिन एक जर्मन शीक्षक बनने से पहले उन्होंने ज़िंदगी को जी भर के जीना था, जिसमें उनके खेल कूद के शौक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2006 में life sciences में स्नातक की पढ़ाई (BSc) करने के बाद वे शोध कार्य में आगे बढ़ना चाहती थीं. पर कई लोगों ने उन्हें MSc, M.Phil, PhD आदि में कई वर्ष ख़राब करने और फ़िर भी कोई ढंग की नौकरी ना मिलने का डर दिखा कर हतोत्साहित किया. उन दिनों भारत की घरेलू विमानन उद्योग में बहुत सी विमान सेवाएं पांव पसार रही थीं और इस वजह से बहुत सी नौकरियां खुल रहीं थीं. इसलिए उन्होंने air hostess का एक course किया। 2007 में उन्होंने Qatar Airlines, Saudi Arabian Airlines आदि को मिला कर करीब दस विमान सेवाओं में interview दिए और फ़िर Kingfisher Airlines बेंगलौर में उनका चयन हो गया. उस के बाद 2009 में उन्होंने Indigo Airlines join की. इस दौरान उन्हें सम्पूर्ण भारत को देखने समझने का मौका मिला. Indigo Airlines एक सस्ती विमान सेवा होने के कारण तो ऐसे ऐसे छोटे शहरों तक जाती थी जिनका नाम आज भी बहुत से लोगों को नहीं पता होगा. उन्होंने त्रिवेन्द्रम, जम्मू, अगत्ती द्वीप, बैलगांव जैसी विभिन्न आकर्षक जगहों पर सागरतट, स्थानीय भोजन का आनन्द लिया. लक्षद्वीप के अगत्ती और बंगाराम द्वीप पर सामान्य पर्यटकों को जाने की अनुमति ही नहीं है. पर वे क्योंकि खेल कूद की शौकीन थीं, उन्हें sports quota में वहां जाने की अनुमति मिल गई. वहां उन्होंने तीन चार दिन तक scuba diving की, वहां का समुद्री जीवन बहुत नज़दीकी से देखा और मछली पकड़ने की तमाम तकनीकों का आनन्द लिया, जैसे net fishing, angling. वे कहती हैं कि वहां तक वही पहुंच सकता है जिसकी इच्छा शक्ति बहुत दृढ़ हो. हालांकि भारतीय सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के कारण वहां आने जाने से रोक लगा रखी है, पर इस के कारण वहां का पर्यटन उद्योग प्रभावित हो रहा है और वहां के स्थानीय लोगों को भारत आ कर रोज़ी रोटी कमानी पड़ती है. लेकिन वह जगह बहुत सुन्दर और अनछुई है. इसकी अपेक्षा अण्डेमान नीकोबार द्वीपसमूहों पूरी तरह व्यावसायिक हो चुके हैं और इतने आकर्षक नहीं हैं.

2011 में Swiss Airlines में आने के बाद उनकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई. वे कहती हैं कि Swiss Airlines बहुत कर्मचारी हितैषी company है. वहां काम करने का ढंग बहुत लचीला है, वे कर्मचारियों का हर दिशा में उत्साहवर्धन करते हैं और कर्मचारियों के कौशल विकास में विश्वास रखते हैं. वहीं काम करते हुए उन्होंने German भाषा सीखी. पांच साल तक उन्होंने बहुत यात्रा की. वे हफ़्ते में चार पांच बार Switzerland जाती थीं. उन्होंने अपने पति और ससुराल वालों को भी विदेश में बहुत घुमाया. खेल कूद की शौकीन होने के कारण उन्होंने 2015 में श्री लंका में paragliding, parasailing की। Switzerland के शहर Bern में, दक्षिण अफ़्रीका में और दिल्ली में कई Marathon दौड़ों में भाग लिया। 2016 में जर्मनी में Bodensee नामक बड़ी झील के ऊपर से एक किलोमीटर लंबी Zipline का मज़ा लिया जहां एक ओर जर्मनी और दूसरी ओर Switzerland नज़र आता है। 2017 में उन्होंने लेह-लद्दाख की ज़ंस्कार घाटी में चादर ट्रेक की यात्रा की जहां उन्होंने छह रातें बर्फीली सर्दी में tent में गुज़ारीं। 2018 में Lichtenstein और Austria के पहाड़ Drei Schwestern पर उन्होंने आठ दिन का 100km का hike-bike tour किया। Swiss Airlines में कार्यरत होने के कारण उन्हें तीन साल का वीज़ा मिल गया था जिसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाया। उनके passport में 11 देशों के वीज़े लग चुके हैं। Swiss Airlines में काम करते हुए उनका German भाषा के साथ सम्पर्क बढ़ गया. उन्होंने German भाषा ठीक से सीखने का लक्षय बनाया। Air hostess की नौकरी के बाद थके हारे होने के बावजूद वे पढ़ाई को ज़रूरी समय देती थीं। इसलिए वे C1 certificate प्राप्त कर पाईं।

2017 में उन्होंने एक विमानन संस्थान खोलने की सोची जहां वे नवयुवकों और नवयुवतियों को पायलट और air hostess की नौकरियों के लिए साक्षात्कार के लिए तैयार करें, उनके शारीरिक हाव-भाव और उनके संचार कौशल विकसित करने में मदद करें. पहले तो उन्होंने कुछ देर दक्षिण भारत के एक संस्थान के तहत काम चलाया. फ़िर 2019 में उन्होंने 'FREON Institute of Skill Development' के नाम से ख़ुद का संस्थान शुरू किया.

लेकिन 2020 में Corona महामारी शुरू हो गई और फ़िर वे गर्भवति भी हो गईं. इस लिए उन्होंने सब-कुछ छोड़ कर केवल German भाषा पढ़ाने की सोची, वह भी online. अब वे रोज़ सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक online German पढ़ाती हैं. इस काम में उनका सम्पर्क तरह तरह के लोगों से हो रहा है और उन्हें लोगों की मदद करना बहुत अच्छा लगता है. उनके पास भारत और अन्य कई देशों के छात्र छात्राएं हैं जिन में कुछ बच्चे भी हैं. कुछ लोग Germany में नौकरी करने के लिए आना चाहते हैं, कुछ लोग Corona के कारण घर बैठे कुछ नया सीखना चाहते हैं. वे कहती हैं यह विज्ञान द्वारा सिद्ध हो चुका है कि नई भाषा सीखना मनुष्य के मानसिक विकास के लिए बहुत अच्छा है. वे कहती हैं कि बच्चों को पढ़ाने और बड़ों को पढ़ाने में बहुत अन्तर है. बच्चों के पीछे काम पूरा करने के लिए बहुत भागना पड़ता है क्योंकि उन्हें इस का महत्व नहीं पता होता. लेकिन बच्चों में ग्रहण करने की शक्ति बहुत होती है. उनका एक साल का बेटा भी है पर फ़िर भी वे अपने काम को नहीं छोड़ती हैं. यहां तक कि बेटे के जन्म के बाद भी उन्होंने केवल 15 दिनों का अवकाश लिया और फ़िर काम में जुट गईं.