सोमवार, 28 जनवरी 2008
कम से कम समलैंगिकों पर सभी एकमत
म्युनिक शहर में कोई सवा लाख समलैंगिक लोग रहते हैं। हर वर्ष Christopher Street Day मनाने के लिए लाखों समलैंगिक महिलाएं और पुरुष म्युनिक की सड़कों पर निकल पड़ते हैं। लेकिन समलैंगिकों को लेकर कुछ सामाजिक मुद्दे अभी भी नाज़ुक हैं। उन्हें कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होने के बावजूद समाज में पूरी नहीं आत्मसात नहीं किया जा सका है। उन्हें अभी भी समाज में कई बार भेद-भाव का सामना करना पड़ता है। आने वाले महानगरपालिका चुनावों में भी समलैंगिकों की इतनी बड़ी आबादी खास महत्व रखती है। समलैंगिकों की संस्था SUB (Schwules Kommunikations- und Kulturzentrum e.V., http://www.subonline.org/) ने शुक्रवार, 25 जनवरी को म्युनिक के Oberbürgermeister के पद के सभी छह उम्मीदवारों को इकट्ठा कर, समलैंगिकों के बारे में उनके विचार जानने की कोशिश की। संस्था का कहना है कि जहाँ SPD, Grünen और FDP पार्टियों ने समलैंगिकों के लिए बहुत कुछ किया है वहीं CSU, ÖDP और Freie Wähler का समलैंगिकों के प्रति रुख थोड़ा रूढ़िवादी है।
पेश हैं सभी उम्मीदवारों के ब्यानः
ÖDP के उम्मीदवार Markus Hollemann-
समलैंगिक भी म्युनिक का एक हिस्सा हैं। ÖDP पार्टी में कई समलैंगिक लोग काम करते हैं और पूर्ण स्वीकार्य हैं। ये हमें पूरी तरह साफ़ है कि किसी के साथ लिंग को लेकर कोई भेद भाव नहीं किया जाएगा। मैं अपनी पत्नी के साथ शादी शुदा हूँ लेकिन मेरे कई दोस्त समलैंगिक हैं और बहुत आकर्षक व्यक्तित्व वाले हैं। इसलिए मेरा मानना है कि किसी का व्यक्तित्व केवल इस एक मुद्दे के आधार पर नहीं जाँचा जाना चाहिए। शहर में नागरिकों से संबंधित इससे भी अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे और समस्याएं हैं। एक OB उम्मीदवार के तौर पर मैं चाहता हूँ कि लोग भविष्य और पर्यावरण के बारे में सोचें। ऊर्जा बचत, शाश्वत ऊर्जा (renewable energy) और ऊर्जा के दक्ष उपयोग के मुद्दे अभी सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं।
FDP के उम्मीदवार Michael Matter-
उदारवादी नीति में किसी भी चीज़ में असमान व्यवहार अस्वीकार्य है। समलैंगिकों के आपसी रिश्तों के मामले में भी वही नीति अपनाई जानी चाहिए। खासकर शादी के द्वारा टैक्स में छूट और गोद लेने के मामलों में उन्हें समान अधिकार मिलने चाहिए। म्युनिक में इस संबंधी बहुत सी परामर्शी सेवाएँ उपलब्ध हैं। किसी अतिरिक्त सेवा की ज़रूरत फिलहाल मुझे नहीं लगती। बड़ी समस्या तब खड़ी होती है जब मौजूदा संयुक्त सरकार बहुत सांस्कृतिक समाज के नारे लगाती है (Multikulti) लेकिन समलैंगिकों के विरुद्ध हिंसा बरतती है। जब right extremists समलेंगिकों' पर हिंसा करते हैं, तब सरकार समता की बात करती है लेकिन जब मुस्लमान हिंसा करते हैं, तब चुप रहती है। संवैधानिक तौ पर सभी के विरुद्ध कारवाई होनी चाहिए।
Grünnen के Hep Monatzeder-
मौजूदा सरकार के अंतर्गत म्युनिक का माहौल पहले से ही सहलैंगिकों के काफ़ी अनुकूल है। फिर भी अभी काफ़ी कुछ करना बाकी है। किराए के अपार्टमेंट से लेकर अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनने के अधिकार तक। इसलिए मैं उनके अधिकारों के लिए लड़ता रहूँगा।
Freien Wählern München के उम्मीदवार Michael Piazolo-
हम मानना है कि मनुष्य अपने यौन जीवन का फैसला खुद करे लेकिन इसके साथ ही समाज और दूसरों के प्रति उत्तरदायित्व भी बनता है। Christopher Street Day (CSD) जैसे बड़े आयोजन जहाँ एक तरफ़ समलैंगिक जीवन को नज़दीक से देखने का अवसर प्रदान करते हैं, वहीं उसे तोड़ मरोड़ कर, फैला कर दिखाए जाने का भी डर रहता है। हमरी कोशिश समलैंगिक जीवन को सामान्य जीवनशैली में आत्मसात करने की रहेगी।
CSU के उम्मीदवार Josef Schmid-
समय आ गया है जब समलैंगिक प्रवृत्ति के लोग हमारे समाज का अंग माने जाएं, न कि कुछ और। इसे सामान्यत स्वीकार्य बनाने के लिए किसी प्रकार का प्रदर्शन करने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि बहुत शाँत रहने की आवश्यक्ता है। मेरी बीवी और बच्चे हैं, इसलिए मैं पांरपरिक शादी में विश्वास करता हूँ। हमारे संविधान एवं मेरी मान्यता अनुसार शादी को पारिवारिक जीवन के संभाव्य अँकुर के रूप में बचाकर रखा जाना चाहिए। लेकिन मैं दूसरी जीवन शेलियां भी स्वीकार करता हूँ। समलैंगिकों के साथ समाज में या काम में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। जियो और जीने दो का सहिष्णुता वाला फ़ार्मुला मुझे प्रिय है। हाँ घनिष्ठ जीवन घनिष्ठ ही रहना चाहिए।
SPD के Christian Ude-
पिछले वर्षों के मेरे OB होने के कार्यकाल में म्युनिक समुदाय में काफ़ी कुछ बदल गया है। 2002 में समलैंगिकों के लिए शहर का समन्वय केन्द्र, 2004 की EuroGames में एड्स के लिए मुफ़्त परामर्श केन्द्र, और हर वर्ष होना वाला Christopher Street Day आदि। SPD युवा और वृद्ध समलैंगिकों के लिए सूचना और शिक्षा द्वारा आगे भी कार्यरत रहेगी।
संस्था SUB 14 फरवरी Oberangertheater में इस विवाद का दूसरा चरण आयोजित करेगी जिसमें महानगरपालिका चुनाव की छह समलैंगिक महिला उम्मीदवार और चार समलैंगिक पुरुष उम्मीदवार मौजूद होंगे।
गुरुवार, 24 जनवरी 2008
भतीजे की चाल चली नहीं
कोई आधे घंटे बाद, अनुमानित वही व्यक्ति ने Hasenbergl में रह रही एक 51 वर्षीय घरेलू औरत को फ़ोन किया और कहा कि वह उसका भतीजा है। फिर वह 20000 यूरो की मदद माँगने लगा। इस पर वह औरत उसकी चाल ताड़ गई और ये कहकर फ़ोन रख दिया कि वह उसे नहीं जानती।
अजनबी ने डाला हाथ 27 वर्षीय औरत पर- Laim
अपराधी का ब्यौरा
आयु कोई 20 - 35 वर्ष, लंबाई 175 - 185 सेंटीमीटर, सेहत- पतला या सामान्य, काली उन की टोपी, काली जैकेट, गहरी भूरी टोपी वाली t-shirt और गहरे रंग की पेंट पहने हुए।
Hotel में लूट
Munich. सोमवार, 21 जनवरी, सुबह सवा छह बजे, जब एक अखबार बाँटने वाली युवती Stollbergstraße पर स्थित एक hotel की reception अखबार देने पहुँची तो देखा कि होटल के clerk का शरीर खून से लथपथ, counter पर लुढ़का हुआ है। उसके सर में बहुत गहरा घाव था और उसमें से ढेर सारा खून बह रहा था। उसने तत्काल पुलिस और ambulance को phone किया। घायल व्यक्ति को तत्काल अस्पताल पहुँचाया गया और आपातकालीन operation किया गया। घटनास्थल पर ज़मीन पर पड़ा हुआ एक खाली cashbox पाया गया। अनुमानुसार कई सैंकड़े यूरो का धन लूटा गया था। clerk के सर पर किसी तीखे tool से ज़ोर से हमला किया गया था, और अपराधी बिना किसी के ध्यान में आए hotel से बाहर भागने में सफ़ल हो गए। होटल का मुख्य द्वार रात को बंद रहता है, इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि अपराधी होटल के पीछे बनी खिड़की से अंदर आए होंगे। Munich की हत्याकाँड squad (Mordkommission) ने सारी सूचना record कर ली है। squad का अनुमान है कि अपराधी चोरी की मँशा से अंदर आए होंगे। 22 जनवरी को दोपहर पौने बारह बजे एक 17 वर्षीय Ukraine के बेरोजगार व्यक्ति को पुलिस ने शक के घेरे में गिरफ्तार किया गया। अभी सूचनाएं प्राप्त करने की प्रक्रिया समाप्त नहीं हुई है। घायल की हालत अभी खतरे से बाहर बताई जा रही है लेकिन वो अभी पूछताछ की हालत में नहीं है।
Neuhausen में Apartment में चोरी- छर्रों से भरा safe गायब
ऑफिस चोर हुआ अमीर
Neuhausen में चुराई गई गाड़ी के साथ दुर्घटना
Neubiberg में आमने सामने दुर्घटना
स्त्रोतः पुलिस सूत्र
U-Bahn शौचालय में लड़की के साथ ज़बरदस्ती
अपराधी का ब्यौरा
आयु कोई 25 से 28 वर्ष, लंबाई लगभग 177 सेंटीमीटर, बहुत पतला, भूरे और छोटे बाल, बिना दाढ़ी और चश्मे के, उसमें से शराब की बू आ रही थी लेकिन शराब पिए हुए नहीं लग रहा था, वो जर्मन बोल रहा था लेकिन उच्चारण पूर्वी युरोपीय देशों के जैसा था। उसने हल्की नीली जीन पहनी हुई थी। जो कोई इस व्यक्ति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है, उससे पुलिस ने अनुरोध किया है कि वो म्युनिक पुलिस मुख्यालय या फिर किसी पुलिस स्टेशन पर संपर्क करे (फ़ोन 089-2910-0)
स्त्रोतः पुलिस सूत्र
बुधवार, 23 जनवरी 2008
म्युनिक के महानगरपालिका चुनाव 2008
- SPD, http://www.spd-muenchen.de/
- CSU, http://www.csu-portal.de/verband/muenchen
- FDP, http://www.fdp-muenchen.de/
- Grünen (ग्रीन पार्टी), http://www.gruene-muenchen-stadtrat.de/
- Rosa liste, http://www.rosaliste.de/
- ÖDP, http://oedp.de/
- Freien Wählern München, http://freie-waehler-muenchen.de/
- Bayernpartei, http://landesverband.bayernpartei.de/
- Pro München, http://promuenchen.de/
- Bürgerinitiative Ausländerstopp München, http://auslaenderstopp-muenchen.de/, 27 Listenkandidaten + 6 Ersatzkandidaten
Oberbürgermeister बनने के लिए छह उम्मीदवार हैं-
- SPD- Christian Ude
- CSU- Josef Schmid
- FDP- Michael Matter
- Grünnen- Hep Monatzeder
- ÖDP- Markus Hollemann
- Freien Wählern München- Michael Piazolo
Bayernpartei का बयान-
हम चाहते हैं कि म्युनिक बायरिश बना रहे। हालाँकि ये बायरन की राजधानी है, लेकिन यहाँ असली बायरन बोलने वाले लगभग नदारद हो गये हैं। या तो यहाँ दूसरे राजयों के लोग हैं या फिर विदेशी हैं। एक बार तो हमारे एक दोस्त के बेटे ने जब स्कूल में बायरिश लहज़े में बात की तो उसे डाक्टर के पास भेज दिया गया।
Pro München का बयान
Stefan Werner from http://promuenchen.de/
विदेशियों द्वारा अपराध बढ़ते जा रहे हैं। हम इसके खिलाफ़ कारवाई करना चाहते हैं। ऐसा नहीं कि जर्मन लोग अपराध नहीं करते लेकिन विदेशियों का अनुपात कहीं अधिक है। हम विदेशियों से ये भी उम्मीद करते हैं कि वे इस देश में अपने खर्च पर रहें, न कि सरकार के खर्च पर।
म्युनिक शहर बहुत सारे नागरिकों के साथ बात कर रहा है कि अगर वे Oberbürgermeister जाएं तो वे क्या करेंगे। ढेर सारे बढ़िया वीडियो आप यहाँ देख सकते हैं।
http://www.muenchen.de/Rathaus/kommunalwahl/209733/videos.html
बुधवार, 9 जनवरी 2008
भारतीय मूल के निवासी चुनाव में
भारतीय मूल के 39 वर्षीय म्युनिक निवासी अनिरुद्ध लुगानी (Ani-Ruth K. Lugani, http://lugani.de/) इन चुनावों में SPD पार्टी (http://www.spd-muenchen.de/) की तरफ़ से Stadtrat और BA (Schwabing-West), दोनों चुनावों में खड़े हो रहे हैं। Stadtrat में SPD पार्टी की 35 सीटें हैं और उनका स्थान SPD पार्टी के 80 उम्मीदवारों में 51वें नंबर पर है। यानि आप उन्हें वोट देकर ऊपर के 35 सदस्यों तक पहुँचा सकते हैं, ताकि वे Stadtrat में चुने जा सकें। BA (Schwabing-West)में SPD पार्टी की 14 सीटें हैं जिनमें वे पाँचवें स्थान पर हैं।
वे दो वर्ष के थे जब वे अपने पिता के साथ भारत से जर्मनी आ गए। वे पच्चीस वर्ष से म्युनिक में Schwabing में रह रहे हैं। उनका सारा परिवार, बहन भाई, माँ बाप और दोस्त सब पास में ही रहते हैं। उन्होंने LMU म्युनिक से MBA (BWL, Betriebswirtschaftslehre) किया और FH म्युनिक से अर्थशास्त्र (Wirtschaftswissenschaften, Economics) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कई बड़ी कंपनियों के साथ काम किया जैसे Dornier, Phonehouse, e-Sixt, Kultfabrik। फिलहाल वे एक परामर्शी सेवाएँ देने वाली कंपनी (Consultancy Company, Unternehmensberatungsfirma) में कार्यरत हैं।
उन्हें स्कूल के दिनों से ही राजनीति में रुची थी और कई सेमीनारों में जाते रहते थे। वे स्कूल की प्रेस और बायरन की युवा प्रेस में काम करने लगे। सन 1999 में पढ़ाई के अंतिम दिनों में उनका वास्ता SPD पार्टी से पड़ा जहाँ से उनका राजनैतिक सफ़र शुरू हुआ। सन 2002 के Schwabing-West के BA चुनावों में वे SPD की तरफ़ से चुन लिए गए। 2005 से वे Schwabing-West में SPD पार्टी के vice-speaker चुन लिए गए।
भारतीय मूल के होने के कारण वे विदेशियों की तकलीफ़ों को खूब समझते हैं। सामाजिक परिवेष का अंतर, भाषा की दिक्कतों को वे आसान करना चाहते हैं। जैसे स्कूल आधे दिन की बजाय पूरा दिन खुले रहने चाहिए ताकि वे बच्चे जिनके माँ बाप जर्मन नहीं बोलते, उन्हें जर्मन भाषा सीखने का अधिक मौका मिले। जर्मन सीखना यहाँ जीवन में सफ़लता प्रप्त करने और यहाँ के समाज में घुलने मिलने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जर्मन भाषा सीखने का मतलब अपनी पहचान खोना नहीं है। इसके इलावा विदेशों से आकर बसे कुछ लोग अपने बच्चों को Kindergarten नहीं भेजते हैं। हम इसे भी अनिवार्य बनाना चाहते हैं क्योंकि बच्चा Kindergarten में ही स्कूल जाने लायक जर्मन सीखता है। अगर बच्चा बिना Kindergarten गए छह साल की उम्र में सीधा स्कूल जाता है तो वह जर्मन बच्चों की तुलना में वहाँ बहुत कम सीख पाएगा और दूसरे बच्चों के साथ दोस्ती नहीं कर पाएगा।
हमारा दूसरा मुद्दा है रहने की जगह। म्युनिक में ज़मीन, घरों और अपार्टमेंटों की कीमत बहुत अधिक हैं। किराए भी बहुत अधिक हैं। हम कोशिश कर रहे हैं कि जो लोग अच्छी कमाई के बावजूद म्युनिक में अपना घर नहीं खरीद पाते और जिनके छोटे बच्चे हैं, उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए ताकि लोग म्युनिक में ही रहें, बाहर न जाएं। ये सहायता €300 प्रति वर्गमीटर तक हो सकती है। इसे Munich Model का नाम दिया गया है। SPD म्युनिक शहर की ज़मीन, घर, अपार्टमेंट, बिजली, यातायात आदि शहर के नियंत्रण में ही रहने देना चाहती है, बाहर की कंपनिओं को नहीं बेचना चाहती। वो चाहती है कि शहर का पैसा शहर में ही रहे, दूसरी जगहों पर न जाए। इससे कीमतें कम रहती हैं और गुणवत्ता बरकरार रहती है। जैसे बायरन सरकार ने बिजली पैदा करने वाली कंपनी e-on को बेच दिया। अब अगर e-on बिजली की कीमतें बढ़ाती है तो इसमें बायरन सरकार कुछ नहीं कर सकती। इसलिए हम चाहते हैं कि SWM (Stadtwerke München, बिजली और पानी की कंपनी) म्युनिक शहर के पास रहे। अगर वो मुनाफ़ा कमाती है तो ये धन शहर के अन्य कार्यों के लिए उपयोग होता है जैसे बच्चों के लिए Kindergarten बनवाना। लेकिन अगर इसे बेच दिया जाए तो मुनाफ़ा नहीं और चला जाएगा। पिछले साल SWM ने शहर को 40 करोड़ यूरो कमाकर दिए।
SPD चाहती है कि सभी लोग कम से कम सम्मानजनक जीवन जीने योग्य वेतन पाएं।
हम जर्मन लोगों से थोड़ी और सहनशीलता चाहते हैं। कोई तकलीफ़ होने पर केवल नियमों के अनुसार चलकर सीधे एक्शन ले लेने की बजाय बातचीत और विचार विमर्श करके समस्या को सुलझाना बहुत अच्छा साबित हो सकता है। थोड़ी 'चलता है' टाईप प्रवृत्ति जर्मन लोगों को भी अपनानी चाहिए। हम धार्मिक सहिष्णुता भी चाहते हैं। अगर यहाँ हज़ारों लाखों मुस्लिम, हिन्दू आदि रहते हैं और अपने लिए बिना शहर से आर्थिक मदद लिए मस्जिद, मंदिर बनाना चाहते हैं तो इसमें क्या बुराई है? भारत में मंदिर हैं, मस्जिदें हैं, चर्चें हैं, फिर भी अधिकतर वहाँ शाँति रहती है। इस संदर्भ में भारत से कुछ सीखा जा सकता है।
इसके इलावा जर्मनी को थोड़ा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करना चाहिए। सरकारी दफ़्तरों में अभी भी केवल जर्मन बोली जाती है जिससे नए लोगों को काफ़ी तकलीफ़ होती है। दूसरे देशों से पढ़ने आए छात्रों के लिए Kreisverwaltungreferat में युनिवर्सिटी के स्टैंड लगाए जा सकते हैं जिससे छात्रों का सारा काम एक ही जगह पर हो जाए।
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राजनैतिक मुख्य मुद्देः
प्रवासन और अनुकरण (Migration und Integration), बच्चे, आवास, शहरी समाज और संस्कृति
शहर सामाजिक जीवन के सुधार के लिए भारतीय सहिष्नुता और सहनशीलता।
Stadtrat के लए वोट इस प्रकार दें (चित्र देखें)
सूची नंबर दो देखें
कोई वोट बेकार न जाए, इसलिए पहले SPD पर क्रास कीजिए।
फिर तीन वोट Christian Ude को और तीन वोट Christine Strobl को दें (जो पहले और दूसरे नंबर पर हैं)
फिर तीन वोट 51वें नंबर पर खड़े अनिरुद्ध लुगानी को दें
www.lugani.de
Politische Schwerpunkte:
Migration und Integration, Soziales und Kinder, Wohnen, Stadtteilkultur.
„Indische Toleranz und Geduld für die Weiterentwicklung der sozialen Stadtgesellschaft.
Ich möchte mich für ein Miteinander der Kulturen in München einsetzen.“
रविवार, 6 जनवरी 2008
भारतीयों का परिवार बना म्युनिक मेला
म्युनिक मेला वेबसाईट (http://www.munichmela.de/) म्युनिक और आसपास के शहरों में रहने वाले भारतीयों के लिए सूचना, समस्यायें और अनुभव बाँटने का एक प्रमुख मँच है जो यहाँ तकरीबन आठ साल से परिवार सहित रह रहे श्री कपिल गुप्ता के दिमाग की उपज है। पेश हैं उन के साथ हुई बातचीत के कुछ अँश।
बसेराः म्युनिक मेला आखिर क्या है और इसकी प्रसिद्धि का क्या कारण है?
कपिल गुप्ताः म्युनिक मेला एक पोर्टल है जहाँ भारत एवं अन्य देशों से स्थायी या अस्थायी तौर पर आये लोगों के लिये जर्मनी के बारे में मूलभूत और ज़रूरी जानकारी है जैसे संस्कृति, यातायात, बैंक, बिजली, घर, बीमा, चिकित्सा, टेलिफ़ोन, रेडियो, टीवी, पोस्ट, रेलवे आदि। इसके इलावा लम्बे समय तक वाले लोगों के लिए यहाँ मुख्य भारतीय किराने की दुकानों, रेस्तराँ, सिनेमा, टीवी डीलरों, पुस्तकालयों, स्पोर्टस क्लबों, मंदिर, स्कूलों, दूतावास आदि के पते हैं। इसके साथ ही इसमें एक फ़ोरम है जो यहाँ रहने वाले भारतीयों के लिये एक परिवार जैसा है जहाँ सब लोग इस अलग भाषा, मौसम और संस्कृति वाले देश में अपनी सूचनायें, समस्यायें, और अनुभव बाँटते हैं, एक दूसरे से जुड़ते हैं। ये फ़ोरम भी इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण है।
भले ही अंग्रेज़ी में अन्य देशों के नागरिकों द्वारा चलाये जा रहे फ़ोरम भी हैं लेकिन हम भारतीयों की समस्यायें अलग हैं और एक भारतीय हर बात पर एक भारतीय की राय लेना ही पसंद करता है। चूंकि ये खास भारतीयों के लिए इस तरह का पहला मंच था जिसका उद्देश्य केवल सेवा था न कि व्यवसाय, इसलिए ये अब भी उतना ही पसंद किया जाता है। इसके इलावा साईट का नाम भी आसानी से मूँह पर चढ़ जाता है और नाम में ही इस साईट का उद्देश्य भी नीहित है (म्युनिक + मेला)।
बसेराः इसकी शुरूआत कब और कैसे हुई? कुछ इसकी यात्रा के बारे में बताएं।
कपिल गुप्ताः मैं जर्मनी में अपनी कंपनी के द्वारा यहाँ 1999 के अंत में आया। उस समय यहाँ बहुत कम उच्च शिक्षित भारतीय थे। उस समय जर्मनी में काम करना या उच्च शिक्षा प्राप्त करना इतना प्रसिद्ध नहीं था। मुझे शुरूआत में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा। किसी भी चीज़ के बारे में जानकारी का बहुत अभाव था। छोटी छोटी बातों की जानकारी के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा। उस समय कोई भी सरकारी वेबसाईट अंग्रेज़ी में नहीं था जैसा कि आज है। सभी वेबसाईट केवल जर्मन भाषा में होते थे। मैंने जैसे तैसे अपना काम चलाया लेकिन उससे मुझे केवल वही सूचना मिलती थी जो मैं ढूँढता था। उसके इलावा भी ऐसी बहुत सी बाते होती थीं जो महत्वपूर्ण होती थीं लेकिन इतनी ज़रूरी नहीं थीं और जिनके बारे में मुझे पता नहीं चलता था। जब कुछ महीनों या साल बाद मुझे पता चलता तो मैं सोचता कि ये मुझे पहले क्यों नहीं पता चला। ये सब इस लिये क्योंकि विदेशियों के लिए कोई विशेष आयोजित मंच नहीं था जिसमें उन्हें हर तरह की महत्वपूर्ण सूचनाएं दी जाएं।
अगस्त 2000 में जर्मन सरकार ने ग्रीन कार्ड की योजना चालू की जिसके तहत जर्मनी में कम्प्यूटर इंजीनियरों की कमी को पूरा करने के लिए अन्य देशों से कम्प्यूटर इंजीनियरों से माँग की जा रही थी, उन्हें आकर्षक वेतन और अन्य सुविधाएं दी जा रहीं थीं। इसके योजना के तहत भारत से भी काफ़ी युवा और उच्च शिक्षित लोग आने लगे। मेरी भी कई लोगों से जान पहचान हुई। रोचक बात ये थी कि वे भी वही प्रश्न पूछते थे जो कभी मैं पूछा करता था जैसे रहने के लिए अपार्टमेंट कैसे ढूँढा जाए, किराए के अनुबंध (contract) में क्या क्या होता है, बैंक में खाता कैसे खोला जाए, टैक्स का क्या सिस्टम है, यहाँ कोई मंदिर है क्या, क्या कहीं से भारतीय राशन खरीदा जा सकता है आदि आदि। तो मैंने सोचा कि मेरे पास काफ़ी सारी जानकारी है तो क्यों न मैं उसे किसी वेबसाईट पर डाल दूँ जहाँ सब लोग बिना किसी से पूछे सूचना प्राप्त कर सकें। मैं वेबसाईट बनाना नहीं जानता था लेकिन थोड़ा बहुत सीखने के बहाने, कुछ मेहनत करके मैंने जैसे तैसे 2001 के शुरू में एक छोटा मोटा वेबसाईट बनाया जिसमें यहाँ के बारे में मूलभुत जानकारी थी। मैंने इसके बारे में अपने खास दोस्तों को बताया और गूगल में रजिस्टर किया। इससे मुझे बहुत सारी अच्छी प्रतिक्रियाएं और प्रशंसा मिली। मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी लेकिन इससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली और मैं इसे अच्छा बनाने के लिए और जी जान से जुट गया।
कई लोगों के जुड़ जाने के बाद हमने एक रेस्तराँ में एक बैठक आयोजित की जिसमें केवल 17 लोग थे। मुझे याद है कि वे 17 लोग जब आपस में मिले तो वे भाव विभोर हो उठे। कुछ की आँखों में तो आँसू तक आ गए। उस समय यहाँ विरला ही कोई भारतीय नज़र आता था। उनका यहाँ कोई दोस्त या जानकार नहीं होता था। हमने वहाँ Dumb Charades खेला, खाना खाया, फ़ोटो वोटो खींचे। हर कोई इतना खुश था कि इस बैठक को और भी बड़े स्तर पर आयोजित करने की माँग होने लगी। फिर हमने दो महीने में एक बार ये बैठक आयोजित करनी आरंभ की जिसे हमने को Desi Club Meet का नाम दिया। इसका आयोजन हम करीब दस लोगों की एक टीम बनाकर एक पूरे रेस्तरां को बुक करके बढ़िया ढंग से करते थे। वहाँ सैंकड़ों की संख्या में भारतीय आते थे, एक दूसरे को जानने लगते थे, इकट्ठे कोई खेल खेलते थे, खाना खाते थे। उनमें कई तो बहुत अच्छे दोस्त बन जाते थे। छह महीनों के अंदर म्युनिक मेला यहाँ रहने वाले युवा प्रोफ़ेश्नल लोगों के लिए एक बड़ा और प्रमुख मंच बन गया। एक बार उस समय के भारतीय दूतावास के महावाणिज्यदूत श्री रवि भी हमारी Meet में आए जिससे उन्हें यहाँ रह रहे भारतीय लोगों से सीधे जुड़ने का मौका मिला।
बसेराः अब तक की सबसे यादगार घटना कौन सी है?
कपिल गुप्ताः एक बड़ा आयोजन हमने किया स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) को जो हमारी सबसे हसीन यादगार है। 15 अगस्त को बायरन में भी एक धार्मिक छुट्टी (Mariä Himmelfahrt) होती है। हमने फ़ोरम पर 15 अगस्त को भ्रमण के लिये म्युनिक के पड़ोस में स्थित Tegernsee नामक एक बड़ी झील (http://www.tegernsee.de/) पर जाने की घोषणा की। इसपर हम करीब पचास साठ लोग म्युनिक रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा हुए और बायरन टिकेट लेकर (बाक्स देखें) ट्रेन से वहाँ गए। लोग अपने साथ खाना बनाकर लाए, भारत के राष्ट्रीय झंडे तैयार करके लाए। वो अविश्वसनीय पल जब हम सब झील के पास खड़े होकर राष्ट्रीय गान गा रहे थे अब भी हमारी आँखों में उतना ही ताज़ा है। छोटे छोटे बच्चों के हाथों में राष्ट्रीय झंडे थे। फिर हम सबने इकट्ठे खाना खाया। उसके बाद सबसे मज़ेदार घटना वापस आते हुए हुई। वापसी की ट्रेन में हमने लगभग पूरी बोगी घेर ली और अंताक्षरी खेलते हुए म्युनिक वापस आए। जर्मनी में इतने सारे भारतीय इकट्ठे होकर ट्रेन में गाने गा रहे हों, ये अब भी अविश्वसनीय है। सब लोगों को लग रहा था जैसे वो भारत में ही हों। लोग इतने भावुक हो रहे थे कि उनकी आँखें भीग रहीं थीं। गा गा कर उनके गले बैठ गए थे। उस समय ये फ़ोरम देशप्रेम, बच्चों को शिक्षा और मौज मस्ती का एक अनोखा संगम बन गया। लोग आगामी आयोजनों की बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगे।
एक खुशीनुमा सिलसिला ये भी रहा कि भारतीयों में बहुत शादीशुदा लोग भी थे। जब पति लोग काम पर चले जाते थे तो उनकी घरेलू पत्नियाँ घर में बैठी बोर हो जाती थीं। तो उन्होंने भी म्युनिक मेला द्वारा 'Munichmela Ladies Club' बना लिया, जबकि मेरा इससे कोई लेना देना नहीं था। लेकिन इससे लोगों के असीम जुड़ाव की अनुभुति होती थी, लगता था कि इससे सही लोग जुड़े हुए हैं।
बसेराः क्योंकि ये फ़ोरम / पोर्टल मुख्य तौर जर्मनी के ग्रीन कार्ड अभियान के अंतर्गत आये कंप्यूटर इंजीनियरों द्वारा या उच्च शिक्षा के लिए आये छात्रों द्वारा उपयोग किया जा रहा था, क्या आपको इन लोगों को एकजुट करने, एक मंच पर लाने के लिए जर्मन सरकार या समाज से भी कुछ पहचान मिली?
कपिल गुप्ताः उस समय बायरन सरकार भी भारत से निवेष के लिये कंपनिओं को आकर्षित करने के लिए अभियान चला रही थी और बायरन में आए प्रोफ़ेश्नल लोगों के लिए उचित सुविधाएं प्रदान करने और उन्हें जर्मन संस्कृति में आत्मसात करने (Integration) के रास्ते खोज रही थी ताकि बाहर के लोग जर्मन समाज में अच्छी तरह घुलमिल जाएं। जर्मनी अमरीका की तरह बहुसंस्कृतिक देश नहीं है। यहाँ Integration राजनीति का एक प्रमुख मुद्दा है। म्युनिक मेला केवल भारतीयों द्वारा ही नहीं बल्कि पाकिस्तानियों, बंगलादेशियों, अफ़्रीकियों, यहाँ तक कि पूर्वी युरोपीय देशों के लोगों द्वारा उपयोग किया जा रहा था (और है), क्योंकि ये अंग्रेज़ी में है। तो बायरन सरकार के लिए भी म्युनिक मेला केवल भारत ही नहीं बल्कि तमाम अन्य संस्कृतियों में झाँकने का एक द्वार बन गया। एक तरह से देखा जाए तो म्युनिक मेला सरकार का ही काम कर रहा था। उन्हें भी फ़ोरम म्युनिक मेला फ़ोरम पढ़कर लोगों की आम समस्याओं का अंदाज़ा होता था। खुशकिस्मती से म्युनिक मेला को भी उनके कुछ कार्यक्रमों और बैठकों में भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। मेरी राय माँगी जाने लगी, मुझे अन्य भारतीयों को वहाँ बुलाने की अनुमति भी मिली। खासतौर पर भारतीय खाना परोसा जाता था। बहुत सारे म्युनिक मेला के सदस्यों को वहाँ मंत्रियों, रोजगार कार्यालय (Arbeitsamt) के निर्देशक आदि से मिलने का मौका मिला।
बाक्स-बायरन टिकेट (Bayern Ticket)
बायरन टिकेट यहाँ की रेलवे कंपनी 'डायचे बान' (Deutsche Bahn) द्वारा जारी एक सस्ती यात्रा टिकेट है (€27) जिससे पाँच लोग एक साथ बायरन प्रदेश के अंदर अंदर क्षेत्रीय ट्रेनों (IRE, RE, RB और S-Bahn) और बसों द्वारा द्वितीय श्रेणी में यात्रा कर सकते हैं। ये टिकेट सोमवार से शुक्रवार तक सुबह नौ बजे से अगले दिन सुबह तीन बजे तक मान्य है, शनिवार, रविवार और बायरन प्रदेश की छुट्टियों के दिन सुबह बारह बजे से अगले दिन सुबह तीन बजे तक मान्य है। इस अवधि के दौरान आप जितनी चाहें यात्राएं कर सकते हैं। इस टिकेट से एक्सप्रेस ट्रेन (EC, ICE) के द्वारा यात्रा करने की अनुमति नहीं।
बसेराः इस फ़ोरम / साईट के विस्तार की भविष्य में क्या योजनएं हैं? क्या इसका कोई व्यवसायिक दृष्टिकोण भी है?
कपिल गुप्ताः मैंने ये फ़ोरम सेवा के लिए शुरू किया, उस समय जब यहाँ कुछ भी नहीं था। अपने इस मूल उद्देश्य में म्युनिक मेला बहुत सफ़ल रहा है और आज भी सफ़ल है। आज भी ये लोगों के दिलों में है। उनका प्यार ही मेरी कमाई है। मैंने इसे कभी व्यवसायिक स्तर पर चलाने की नहीं सोची। कुछ लोग समझते हैं कि म्युनिक मेला किसी बड़ी कंपनी द्वारा चलाया जा रहा है, ऐसा नहीं है। मैं अकेला ही इसे चला रहा हूँ। इसमें मेहनत बहुत है और प्रतिफल केवल प्यार है जो लोगों से मिलता है। करियर और परिवार फिलहाल मेरी प्राथमिकतायें हैं। लेकिन हाँ अगर कोई इसमें किसी तरह का योगदान देना चाहता है तो उसका तहेदिल से स्वागत है।
बसेराः आजकल तो इस तरह और भी कई फ़ोरम और प्लेटफ़ार्म आ गए हैं। इस स्थिति आप म्युनिक मेला को कहाँ पाते हैं।
कपिल गुप्ताः जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ कि म्युनिक मेला अव्यवसायिक साईट है और अभी भी अपने मूल उद्देश्य पर टिका हुआ है। इसे किसी से प्रतिस्पर्द्धा नहीं है, फिर भी सफ़लतापूर्वक चल रहा है। अगर अन्य फ़ोरम भारतीय समुदाय की तरह से सेवा करते हैं तो मैं उन्हें प्रोत्साहन ही दूँगा और चाहुँगा कि वे खूब सफ़ल हों।
शनिवार, 5 जनवरी 2008
यूँ रही म्युनिक में 31 दिसंबर की शाम
नये साल के उदय की प्रतीक्षा हर किसी को रहती है। खासकर बच्चों को जो पटाखे बजाने को उतावले होते हैं, क्योंकि केवल नए साल के अवसर पर ही पटाखे बिकते हैं, वो भी केवल कुछ दिनों के लिये। या फिर ये मौका होता है पुराने दोस्तों या परिवार के बिछड़े सदस्यों से काफ़ी समय बाद दोबारा मिलने का। म्युनिक भी नए साल की प्रतीक्षा में खूब सजा हुआ था। लोग भी इस विशेष अवसर पर शहर में चल रहे अनेक कार्यक्रमों का आनंद उठा रहे थे। Marienplatz, Leopoldstraße, Viktualienmarkt पूरी तरह रंगबिरंगी रौशनी और मधुर संगीत में डूबे हुए थे। Olympiapark पर हर साल की तरह तो पटाखों, आतिशबाजियों का भव्य शो हुआ जहाँ हज़ारों की संख्या में लोग इकट्ठा हुये। सभी होटलों, क्लबों, रेस्तरां ने इस अवसर के लिये खास कार्यक्रम तैयार किये। कई भारतीय रेस्तरां में भी मेहमानों ने लाईव संगीत का लुत्फ़ उठाया। ठीक बारह बजे सब लोग पटाखे बजाने या दूसरे लोगों को पटाखे बजाते हुये देखने के लिये बाहर आ गये। सारा आकाश पटाखों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
म्युनिक निवासी श्याम आर्य लगभग सभी भारतीय उत्सवों और अन्य अवसरों पर भारतीयों के इकट्ठा होने का मंच प्रदान करने की अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं। इस अवसर पर भी उन्होंने विशेष पार्टी का आयोजन किया जिसमें ढेर सारे भारतीय, अफ़्गानी और जर्मन लोग हिन्दी, अफ़्गानी गानों पर सुबह चार बजे तक थिरकते रहे। हज़ारों वाट के स्पीकरों पर जब 'बिंदिया चमकेगी' जैसे पुराने गानों के रीमेक चलते हैं तो कदम खुद ब खुद झूमने लगते हैं। (fotos: http://arya-events.de/photoDetails.php?id=59)
आइये सुनें लोग अपने बारे में क्या कहते हैं।
Marion Klein, 32
हम 13 दोस्तों ने इकट्ठे होकर पहले रेस्तराँ में खाना खाया और ब्लाईगीज़न खेला (Bleigießen)। ब्लाईगीज़न भविष्यवाणी का खेल है जिसमें सीसे (Lead) या कली (Tin) के छोटे से टुकड़े को चम्मच में रख कर मोमबत्ती के ऊपर रखकर पिघलाया जाता है और फिर पानी में फ़ेंका जाता है जिससे वो विभिन्न आकृतियों में जम जाता है। फिर उन आकृतियों का कोई मतलब निकाला जाता है जैसे लम्बे कपड़े पहने महिला, अजीबो गरीब दाँत, और भविष्यवाणी की जाती है। बहुत लोग इसे खेलकर मज़ा लेते हैं। उसके बाद रात बारह बजे हम टॉलवुड मेले के तंबू में चले गये जहाँ एक बैंड बहुत बढ़िया संगीत बजा रहा था। उन्होंने बहुत सारे प्रसिद्ध गायकों के गाने गाये जैसे मेडोन्ना, आब्बा, क्वीन। हम सुबह चार बजे तक नाचते रहे।
Sigrid Moser, 40.
31 दिसंबर 2007 की शाम मेरी सबसे यादगार शाम थी। करीब दस साल के बाद हमारा लगभग पूरा परिवार दोबारा इकट्ठा हुए। मेरी दो बहनें परिवार सहित अलग अलग शहरों में रहती हैं। उनमें से एक के घर हम सब इकट्ठा हुये। मेरी बूढ़ी माँ भी साथ थीं। मेरे भानजे अब बड़े हो गये हैं लेकिन एक अभी नौ साल का है। हमने इकट्ठे खाना खाया, विभिन्न तरह के गलासों से संगीत वाद्य बनाया जिसके ऊपर गीली उंगली फेरने से विभिन्न स्वर निकलते हैं। हमें बहुत आनंद आया।
Matthias Köhler, 35
31 दिसंबर 2007 को मैं आस्ट्रिया में स्नोबोर्डिंग (snowboarding) करने गया। इस बार बर्फ़ बहुत अच्छी पड़ी है और मैंने पिछले तीन साल से स्नोबोर्डिंग नहीं की थी। वहाँ मैं एक दोस्त के यहाँ रुका। बहुत आनंद आया।
Sylvie Bantle
मैं और मेरे पति Neuhausen में रहते हैं। रात को हम पास में स्थित Nymphenburger Kanal पर गए थे जहाँ हर वर्ष 31 दिसंबर को रात बारह बजे बहुत सारे लोग Sekt और पटाखे लेकर पुल के पास इकट्ठे हो जाते हैं। इस बार भी वहाँ खूब पटाखे छूटे। हम रात दो बजे तक वहाँ रहे।