शनिवार, 25 अप्रैल 2009

बर्लिन में पर्यटन व्यापार मेला

11 से 15 मार्च तक बर्लिन में हुए विश्व के सबसे बड़े पर्यटन आधारित व्यापार मेले ITB में 'अतुल्य भारत' के बैनर तले अनेक भारतीय टूर ऑप्रेटरों और प्रांतीय सरकारों ने एक बड़े से पवेलियन में स्टॉल लगाए। पवेलियन के अलावा भी सीता ट्रैवल्स, IAE जैसी कई बड़ी भारतीय कंपनियों ने अपने स्टॉल लगाए। गोआ के पर्यटन विभाग ने हालांकि पवेलियन में अपना स्टॉल लगाया लेकिन अपनी विशिष्ट पहचान के कारण उन्होंने एक अन्य हॉल में अलग स्टॉल भी लगाया।

12 मार्च को भारतीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा आयोजित की गई एक प्रेस वार्ता में भारतीय महाराज दूत श्रीमती मीरा शंकर ने मेहमानों और पत्रकारों का स्वागत किया। पर्यटन सेक्रेटरी सुजीत बैनर्जी ने मंदी के इस दौर में भारतीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा जारी की गईं कुछ विशेष योजनाओं पर रौशनी डाली। उनके जोश भरे व्याख्यान को सुन कर भरे हुए हॉल में दर्शक और पत्रकार उत्साहित हो उठे। उन्होंने भारत में हेल्थ टूरिज़्म का परिचय देते हुए कहा कि लोग उनसे पूछते हें कि पैसा कहां लगाएँ। तो उनका उत्तर होता है कि अपने आप में। यानि भारत आकर हेल्थ टूरिज़्म का मज़ा लें। उन्होंने कहा कि पर्यटन के लिए भारत ने जर्मनी समेत पाँच देशों के नागरिकों को मल्टी वीज़ा देना शुरू कर दिया है। यही नहीं, 1 अप्रैल से 31 दिसंबर तक कुछ खास होटलों और एयर इंडिया की ओर से खास छूट भी दी जा रही है। उन्होंने नेशनल जयोग्राफिक द्वारा तैयार किया गया भारतीय पर्यटन आधारित ऑनलाइन मानचित्र भी दिखाया जिसमें विभिन्न तरह के पर्यटन स्थल खोजे जा सकते हैं, जैसे सांस्कृतिक स्थल, रेलमार्ग और सड़कें, ऐतिहासिक स्थल, culinary, culture, rail road sites, historical, वन्य पार्क, धार्मिक स्थल आदि। उन्होंने मुंबई धमाकों के बाद पर्यटन की स्थिति दोबारा सामान्य होने का प्रमाण मुंबई के ताज होटल से दिया। उन्होंने कहा कि मुंबई का ताज होटल पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। उसकी मरम्मत के लिए विश्व की तमाम ताज कंपनियों के लोगों को बुलाया गया था। बल्कि मरम्मत के दौरान खुद रतन टाटा भी वहां मौजूद रहे। जिससे पता चलता है कि उन्हें इस भव्य भवन से कितना लगाव है। एक पत्रकार पूछने पर कि पूरबी राज्यों में पर्यटन के बारे में क्यों नहीं बताया जा रहा, उन्होंने कहा कि आठ पूरबी 'सिस्टर स्टेटस' के लिए विदेशी पर्यटकों को खास अनुमति लेनी पड़ती है। आगे जानकारी दी कि पर्यटन मंत्रालय ने भारतीयों को विदेशी पर्यटकों के प्रति आतिथ्य का नज़रिया अपनाने के लिए विशेष अभियान चलाया है 'अतिथि देवो भव' जिसके ब्रांड एंबेस्सेडर जाने माने अभिनेता आमिर खान हैं।

एयर इंडिया से जितेंद्र भारगव ने कि एयर इंडिया ने साठ वर्ष के इतिहास में बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं। अब इसके पास साढ़े चार सौ विमान हैं जिनमें अति आधुनिक बोईंग 777-300 जैसे विमान भी शामिल हैं। हर सप्ताह एयर इंडिया की 180 अंतरराष्ट्रीय नॉन स्टॉप उड़ानें उपलब्ध हैं। दिल्ली और मुंबई से न्यू यॉर्क जाने वाली उड़ानों का नारा है good aircraft, good time, good reach

अतुल्य भारत के फ़्रैंकफर्ट कार्यालय से सहायक निर्देशक अनिल ओराव और उनके स्टॉफ ने इस व्यापार मेले में पवेलियन और प्रेस वार्ता आदि के प्रबंधन के लिए मेला आरंभ होने से कई दिन पहले की काम शुरू कर दिया था।

अधिकतर भारतीय प्रदर्शकों का मानना था कि पहले अपेक्षा इस बार मेले में मंदी साफ़ दिख रही है। पहले मेले में पाँव रखने की जगह नहीं होती थी लेकिन इस बार खाली खाली लग रहा है। राजस्थान में उदयपुर में पिचोला झील के किनारे बने 'उडाई कोठी' नामक एक बोटीक होटल की निर्देशक 'भुवनेश्वरी कुमारी' का मानना था कि मुंबई कांड भारत के पर्यटन उद्योग पर जान बोझ के बनाया गया निशाना था। क्योंकि एक यही एक उद्योग मंदी से इतना प्रभावित नहीं हुआ था।

ITB में एक जर्मन महिला ने पूछा कि भारत सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इतना कुछ कर रही है, तो वीज़ा की फ़ीस माफ़ क्यों नहीं कर देती? तो महाराजदूत मीरा शंकर ने कहा कि ये पारस्परिक होता है। जर्मन सरकार भी भारतीय नागरिकों से भारी वीज़ा फ़ीस लेती है। यहां तक कि व्यापार मेलों में भाग लेने वाले आंगतुकों को वीज़ा केवल उतनी अवधि के लिए मिलता है जितने दिन मेला चलना हो। एक दिन भी ऊपर नहीं।

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

युवक ने लगाई घर में आग

27 फरवरी को Burgdorf नामक गाँव में एक 59 वर्षीय के घर के बाहर बने लकड़ी के शेड में किसी ने आग लगा दी। शेड में बहुत सी कटी हुई लकड़ी और लकड़ी का फ़र्नीचर था, जो लगभग जलकर राख हो गया है। बल्कि साथ वाले घर के शेड में भी कुछ नुक्सान हुआ है। कुल नुक्सान करीब पाँच हज़ार यूरो बताया जा रहा है। पुलिस को एक 17 से 25 वर्षीय, लगभग 1.82 मीटर कद वाले युवक पर शक है जिसका फ़ैंटम फ़ोटो तैयार किया गया है।

चुराए हुए ज़ेवर छोड़ कर भागा चोर

Lintfort शहर में 21 अप्रैल को दोपहर एक लगभग 30 वर्षीय व्यक्ति एक ज़ेवरों की दुकान से सोने और पैलेडियम के कुछ ज़ेवर ले भागा। दुकान की मालकिन उसके पीछे भागी। पर संयोग से दुकान का एक कर्मी अपने एक दोस्त के साथ सामने से आ रहा था। दोस्त ने फुर्ती से भगौड़े को पकड़ लिया। भगौड़े के साथ से चुराया हुआ सामान गिर गया पर वह भागने में सफ़ल हो गया। पुलिस को तलाश है।

बस ड्राइवर के पास बच्चों के अश्लील चित्र

Friesland क्षेत्र के एक 55 वर्षीय बस ड्राइवर के कंप्यूटर में बच्चों के लगभग 12000 अश्लील चित्र पाए गए हैं। मार्च अंत में वहां की पुलिस को बायरन पुलिस द्वारा इस व्यक्ति का पता चला जो इंटरनेट में चिल्ड्रन पोर्नोग्राफ़ी अपराधियों का पता लगा रही थी। पूछताछ के दौरान अभी ये बात साफ़ नहीं हुई है कि इन चित्रों से उसका कोई सीधा वास्ता है कि नहीं। उसने कुछ बच्चों को टैक्सी द्वारा घर ज़रूर छोड़ा था पर हैनोवर अदालत के अभियोक्ता अनुसार बच्चों पर यौन उत्पीड़न के संकेत नहीं मिले हैं।

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

सिगरेट मना करने पर पिटाई

Aachen शहर में 17 अप्रैल रात साढे ग्यारह बजे Roermonder Straße पर जा रहे तीन लोगों ने एक व्यक्ति से सिगरेट के लिए पूछा। उसके मना करने उन्होने उसके मुँह में घूँसा जड़ दिया और फिर उसकी पिटाई करने लगे। उसके ज़मीन पर गिरने के बाद भी उसकी लातों और घूँसों से पिटाई करते रहे। वे उसका बटुआ छीनना चाहते थे पर पास से गुज़र रहे कुछ लोग मदद के लिए आ गए और अपराधियों का पीछा करने लगे। उन्होंने एक को पुलिस के आने तक पकड़ लिया। पर अन्य दो भाग गए। 24 वर्षीय घायल व्यक्ति ने मरहम पट्टी के लिए मना कर दिया। पुलिस को जांच से पता चला कि 29 वर्षीय पकड़ा गया व्यक्ति पहले से पुलिस रिकार्ड में है। पूछताछ चल रही है।

लड़के ने की अपने माता-पिता और बहनों की हत्या

Ulm के पास Eislingen नामक शहर में 9 अप्रैल की रात को एक 18 वर्षीय लड़के ने अपने एक 19 वर्षीय दोस्त के साथ मिलकर अपने ही घर में अपनी दो बड़ी बहनों और अपने माता पिता की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या के कारण अभी साफ़ नहीं हो पाए हैं। किसने किसपर कितनी गोलियां चलाईं, यह भी अभी साफ़ नहीं है।

उस रात को दोनों दोस्त बड़े लड़के के घर से निकल कर छोटे वाले के घर की चल पड़े। लड़के के माता पिता दोस्तों को मिलने किसी रेस्त्रां में गए हुए थे और घर में केवल उसकी चौबीस और बाईस वर्षीय बहनें थीं। उन्होंने उन पर क्रमशः नौ और दस गोलियां चला कर हत्या कर दी। फिर वे माता पिता से मिलने रेस्त्रां चले गए। वहां उनके साथ आधा घंटा बैठ कर फिर घर वापस आ गए और माता पिता के वापस आने की प्रतीक्षा करने लगे। 57 वर्षीय पिता और 55 वर्षीय माता के वापस आते ही उन्हें भी क्रमशः आठ और तीन गोलियों से भून दिया।

केस की जांच के लिए पुलिस द्वारा 30 लोगों का 'विशेष जांच दल' गठित किया गया। शिकारी कुत्तों की मदद से घर के पास के जंगल में एक कूड़े वाले प्लास्टिक बैग में लिपटी एक पिस्तौल और अपराध के समय पहने गए कपड़े पाए गए। 18 वर्षीय लड़का शहर के एक शूटिंग क्लब का सदस्य भी था। पिछली अक्तूबर इस क्लब से कुछ हथियार चुराए गए थे। अब साफ़ हो गया कि यह हथियार इन्हीं लोगों ने चुराए थे।

हत्या के बाद लड़के ने रेड क्रास और पुलिस को घर में हत्या की खबर दी। आरंभिक जांच में पुलिस को शक हुआ कि न तो घर के मृत सदस्य किसी अजनबी के आगमन से चौंके होंगे, न किसी के घर में ज़बरदस्ती घुसने के निशान थे। शक के आधार पर इन दोनों को गिरफ्तार किया गया था पर उस समय ये दोनों अपराध स्वीकार नहीं कर रहे थे। 16 अप्रैल को बड़े लड़के ने आखिर अपराध स्वीकार कर लिया, जबकि छोटे वाला अभी खामोश था।

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

संतोषजनक काम न करने से चाकू से हमला

14 अप्रैल को Köln-Nippes में एक 69 वर्षीय बूढ़े ने जान पहचान वाले एक 40 वर्षीय व्यक्ति पर चाकू चला दिया। उसे गिरफ़्तार कर लिया गया है।

दोनों व्यक्तियों में कुछ दिन से आनाकानी चल रही थी। बूढ़े व्यक्ति के अनुसार छोटी आयु वाले व्यक्ति ने उसका कोई काम ढंग से नहीं किया था, इसलिए उसने उसके पैसे नहीं दिए। इस दौरान किसी ने बूढ़े व्यक्ति की फ़ोल्क्सवागन गाड़ी के टायर चाकू से काट दिए, जिससे बूढा समझा कि छोटे व्यक्ति ने यह किया है। 14 अप्रैल को छोटे व्यक्ति ने रात को अपने घर की खिड़की में देखा कि बूढ़ा व्यक्ति उसकी कार के टायर काट रहा है। जैसे ही उसने उसे रोकना चाहा तो अचानक बूढ़े ने उसपर चाकू चला दिया और वहां से भाग गया। घायल 40 वर्षीय को अस्पताल में दाखिल करवाया गया। डॉक्टर के अनुसार वह खतरे से बाहर है। बूढ़े को बाद में उसके अपार्टमेंट में से गिरफ़्तार कर लिया गया। अभी पूछताछ चल रही है।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

आग में जलकर बना सच्चा सोना- परमदीप सिंह संधु

भारत में घर-बार, ज़मीन जायदाद, ऐशो-आराम और मां के दुलार के साथ सामान्य जीवन व्यतीय करने वाले एक नवयुवक को जब अचानक दूर देश में अवैध रूप से जाकर जानलेवा संघर्ष करना पड़े और जीवन के अनजान पहलुओं से रूबरू होना पड़े है तो उसके दिल पर क्या बीतती होगी? यह परम दीप सिंह संधु से बेहतर कोई नहीं जानता जिन्होंने खुद जीवन की ऐसी सच्चाइयों का सामना किया है।

भारत में किसान पृष्ठभूमि के एक निम्न मध्यवर्गीय पंजाबी परिवार से परम दीप सिंह संधु ने सन 2000 में केवल अट्ठारह वर्ष की आयु में जर्मनी में संघर्ष कर रहे अपने पिता का साथ देने का निर्णय लिया और एक एजेंट द्वारा किसी तरह केवल पाँच दिन के वीज़ा पर फ़्रांस आए। वहां से भागकर वे जर्मनी के म्युनिक शहर में अपने पिता के पास आकर रहने लगे और पहचान छुपाने के लिए अपना पासपोर्ट किसी को दे दिया। उस समय उन्हें नहीं पता था कि आने वाला समय बहुत कठिन और खतरनाक संघर्ष वाला रहेगा जिसमें उन्हें खूब ज़िल्लत उठानी पड़ेगी, जानलेवा लड़ाइयों का सामना करना पड़ेगा और कड़कड़ाती सर्दी में बाहर चौदह घंटे निम्न स्तर का काम करना पड़ेगा।

पकड़े जाने के डर से वे हमेशा सावधान रहते और गुप्त रूप से छिटपुट काम करके दो पैसे कमाते। लेकिन अंत में एक साथी की ग़लती से वे पुलिस द्वारा पकड़ लिए गए। उनपर राजनैतिक शरण का केस बनाकर उन्हें पूरब जर्मनी के एक शरणार्थी शिविर (Flüchtlingslager) में भेज दिया गया जहां से उनका पासपोर्ट मिलते ही वापस भारत निर्वासित किया जाना था। पूरब जर्मनी का वह क्षेत्र अभी भी नाज़ियों का गढ़ है जो विदेशियों से नफ़रत और लगातार लड़ाई झगड़ा करते हैं, पैसे छीन लेते हैं। इस शिविर के दौरान उन्हें निर्धारित क्षेत्र के बाहर जाने की और पैसे कमाने के लिए दिन में दो घंटे से अधिक काम करने की अनुमति नहीं थी।

किसी तरह वे कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर सड़कों पर छोटा मोटा सामान बेचने लगे। दिन भर बाहर कड़कड़ाती ठंड में काम करके जब रात को वे सुनसान रास्ते से पहाड़ी के ऊपर बने शिविर की ओर लौटने लगते तो अक्सर झाड़ियों में छुपे नाज़ी उन्हें घेर लेते और पैसे व अन्य वस्तुएँ छीन लेते। ज़रा सा भी विरोध करने पर, यहां तक कि आँखों में घूरने पर भी वे हमला बोल देते। इसीलिए वे अक्सर हाथ में काँच बोतलें लिए लड़ाई के तैयार रहते हुए अपना रास्ता तय करते। लेकिन फिर भी उनकी कई बार खतरनाक लड़ाईयां हुईं। एक बार तो उनकी टाँग में लंबे चाकू का घाव लगा जिस पर पच्चीस टांके लगे। अक्सर वहां की पुलिस भी नाज़ियों का ही साथ देती। एक बार तो उन्हें लड़ाई के चक्कर में छह महीने के लिए जेल की अंधेरी कालकोठरी की हवा भी खानी पड़ी जहां दिन और रात में अंतर नहीं पता चलता था। जेल से बाहर आने पर भी काम को लेकर उन्हें खूब शोषण का शिकार होना पड़ा। दिन में चौदह घंटों तक घरों में विज्ञापन बाँटने पर भी रात को उन्हें केवल दस डी-मार्क मिलते (सन 2000-2001 में यूरो करंसी शुरू होने के समय एक डी-मार्क की कीमत केवल आधा यूरो थी)।

फिर धीरे धीरे समय ने करवट ली और उनका एक चालीस वर्षीय जर्मन औरत से संपर्क हुआ। उस औरत से उन्हें स्नेह मिला और उस कठिन समय में सबसे आवश्यक मदद, शादी का प्रस्ताव। जर्मनी में वैध रूप से रह पाने का यही एकमात्र उपाय था। उन्होंने डेनमार्क जाकर उस औरत के साथ जाकर शादी रच ली। डेनमार्क में अधिक पूछताछ किए बिना शादी संपन्न करवा दी जाती है। फिर भी उनका रास्ता इतना आसान न था। जर्मन अधिकारियों ने उन्हें बिना वैध वीज़ा दिए भारत निर्वासित करने का पुरजोर प्रयत्न किया पर वे वीज़ा लेने में सफ़ल हो गए और वापस पश्चिमी जर्मनी के म्युनिक शहर में आकर रहने लगे। काम के अनुभव के अभाव में उन्हें बहुत कम वेतन में निम्न दर्जे के काम करने पड़े जैसे रेस्त्रां में जूठे बर्तन और कूड़ा कर्कट साफ़ करना। आज नौ साल के कड़े संघर्ष के बाद वे सामान्य स्थिति में हैं। इस संघर्ष को वे व्यर्थ नहीं मानते। उनका मानना है कि घरवालों के सुरक्षित साए में रहते हुए मनुष्य जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से अनजान रह जाता है जिनसे जीवन के सही मायने सीखने को मिलते हैं। अपनी पत्नी और सामान्य तौर पर जर्मन औरतों का वे विशेष धन्यवाद करते हैं जो कठिन समय में विदेशी युवकों की मदद करती हैं जब अपने भी साथ छोड़ चुके होते हैं। उनका मानना है कि जर्मन औरतें मर्दों की भौतिक उपलब्धियों पर नज़र नहीं रखतीं, वे उनसे केवल स्नेह चाहती हैं। लेकिन विदेशी लोग केवल वैध वीज़ा पाने के लिए उनका उपयोग करते हैं और काम होने के बाद जल्द से जल्द तलाक ले लेते हैं। बहुत बार तो वे बच्चा पैदा होने के बाद भी औरतों को छोड़ देते हैं। ऐसी अनगिनत घटनाओं ने भारतीय मर्दों की छवि को चोट पहुँचाई है।

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

स्लमडॉग में भारत को नीचा

ऑस्कर पुरस्कृत फ़िल्म स्लमडॉग मिलिनेयर ने बेशक भारतीय दर्शकों को विचलित कर दिया है। बहुत से विदेशी भी इस मुद्दे पर भारतीयों के साथ सहानुभूति रखते हैं। ऐसी ही एक महिला हैं Monika Ratering, जो पेशे से पेंटर हैं (http://ratering-art.com/) और वर्षों से नियमित तौर पर भारत का दौरा कर ही हैं। हाल ही में भारतीय दूतावास बर्लिन में भारत पर आधारित उनके चित्रों की एक प्रदर्शनी समाप्त हुई है '16000 Princesses Marry God'. वे 'स्लमडॉग मिलिनेयर' में दिखाई गई भारत की छवि से असहमति जताती हुई पूछती हैं कि क्या भारत में स्लम में रहने वाले लोगों को स्लमडॉग कहा जाता है? नहीं। क्या वहां बारह तेरह वर्ष के बच्चे पिस्तौल लेकर घूमते हैं, अपराधी हैं? नहीं। पश्चिम भारत को नीची नज़र से देखना चाहता है, और वही उस फ़िल्म में दिखाया गया है। ये फिल्म मूल पुस्तक से बहुत अलग है। मैं भारतीयों के गुस्से को समझ सकती हूँ। पश्चिमी फ़िल्मों की अपेक्षा भारतीय फिल्में कितनी अच्छी होती हैं। यहां हम भारतीय फिल्मों पर लोग हंसते हैं कि वे बेवजह नाचने गाने लगते हैं। लेकिन शायद यही भारतीय लोगों के शांतिप्रिय होने का कारण है। जबकि बहुत सी पश्चिमी फिल्मों का आधार डर होता है। उनमें पहले डर पैदा किया जाता है। फिर अंत में बुरे व्यक्ति को मार कर चैन की सांस ली जाती है। लेकिन हम भूल जाते हैं कि बुरे व्यक्ति को जान से मारना भी हिंसा है जिसे फिल्मों में महिमामंडित किया जाता है। जब हिंसा को इस तरह महिमामंडन मिलता है तो यही हमारे बच्चे और युवक ग्रहण करते हैं। फिर हम हैरान होते हैं कि फलां किशोर ने स्कूल में पंद्रह व्यक्तियों की गोली मारकर हत्या क्यों कर दी। (हाल ही में जर्मनी में हुई एक घटना का संदर्भ देकर जिसमें एक 17 वर्षीय छात्र ने स्कूल में नौ छात्रों, तीन अध्यापकों, और तीन अन्य व्यक्तियों की हत्या कर दी और फिर अंत में पुलिस मुठभेड़ में आत्महत्या कर ली)। 

Monika Ratering पिछले नौ वर्ष से हर वर्ष दो तीन महीने के लिए भारत जाती रही हैं। उनका कहना है 'भारतीयों का जर्मनी के ठंडे मौसम में लंबे समय तक न रह पाने की समस्या मैं समझ सकती हूँ। सर्दियों का मौसम यहां बहुत ठंडा, लंबा और अंधकार-पूर्ण होता है, जबकि भारत में ठंड में भी चमकते सूर्य की रौशनी मन में जोश पैदा करती है। इसी जलवायु का असर लोगों के स्वभाव पर भी पड़ता है। भारत के लोग खुले दिल के और हंसमुख हैं, खिलखिलाकर हंसते हैं जबकि यहां के लोगों का स्वभाव तुलना में ठंडा है। एक बार जब मैं भारत से वापस जर्मनी आई तो दो तीन सप्ताह तक रोती रही।

वहीं बर्लिन निवासी सुशीला शर्मा का कहना है 'फ़िल्म में सच दिखाया गया है। बच्चों को चोरी, अपराध करते हुए, पुलिस वालों को बच्चों को खदेड़ते हुए मैंने अपनी आँखों से देखा है। बच्चों को भीख मांगने के लिए अपंग बनाया जाता है। रेल में सामान बेचने वाले बच्चे और औरतों को कमाई में से कुछ भी नहीं मिलता है। उनके पीछे व्यापारी होते हैं। ये चीज़ें हम आम भारतीयों को चौंका सकती हैं पर हमें भूलना नहीं चाहिए कि हम हिंदुस्तानी हैं, हिंदुस्तान नहीं।' सुशीला शर्मा Tata Institute of Social Sciences से post graduate diploma प्राप्त हैं और मुंबई में बहुत सारा चिकित्सीय और मनोचिकित्सीय सामाजिक कार्य करती रही हैं।