मंगलवार, 20 मई 2008

Indian Mango Evening

19 मई की शाम को म्युनिक के हिल्टन होटल में भारतीय कृषि प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA, Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority of India, http://www.apeda.com/) और भारतीय दूतावास के द्वारा Indian Mango Evening आयोजित की गई जिसमें भारत की आम की कुछ मुख्य व्यवसायिक नसलें पेश की गईं जैसे अल्फ़ोंसो, बैंगनपल्ली, केसर और तोतापुरी। यहां APEDA से श्री प्रवीन गुप्ता (महाप्रबंधक), श्री यू.के. वत्स (उप महाप्रबंधक), म्युनिक के भारतीय दूतावास से श्री जे. एस. मुकुल (महावाणिज्यदूत), श्री आनंत कृष्ण (वाणिज्यदूत, परिवार सहित), दूतावास के अन्य तमाम कर्मचारी, म्युनिक के कुछ भारतीय व्यपारी और म्युनिक और आसपास के कुछ प्रमुख लोग उपस्थित थे।

कार्यक्रम की शुरूआत में सबसे पहले भारतीय दूतावास के वाणिज्यदूत श्री आनंत कृष्ण ने सब अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया कि महावाणिज्यदूत श्री जे. एस. मुकुल म्युनिक दूतावास में अपना के कार्यकाल समाप्त करके जून में वापस भारत जा रहे हैं। फिर महावाणिज्यदूत श्री जे. एस. मुकुल ने अपने मनपसंद आम बैंगनपल्ली के साथ साथ अन्य भारतीय आम की नस्लों के बारे में कुछ जानकारी दी और अतिथियों को अलविदा कही। उसके बाद APEDA के महाप्रबंधक श्री प्रवीन गुप्ता ने APEDA के बारे में कुछ अतिरिक्त जानकारी दी और आम पर एक छोटी सी फ़िल्म दिखाई।

फिर शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम हुआ जिसमें श्री सुनील बैनर्जी जी ने सितार वादन पेश किया। तबले पर उनका साथ दिया इद्रानिल मल्लिक ने। उसके बाद शीला और सुनीता कानुकडन ने शास्त्रीय नृत्य पेश किया। इसके बाद श्री जे. एस. मुकुल जी की बेटी अदिति मुकुल और म्युनिक दूतावास में कार्यरत श्री अनिल बतरा जी की बेटी अनु बतरा ने बॉलिवुड नृत्य पेश किया। इसी बीच पेयजल और पकौड़े आदि परोसे जा रहे थे। आमों को सजाने, काटकर परोसने और अतिथियों को स्वाद चखाने की ज़िम्मेदारी स्वागत रेस्तरां की थी। फिर बारी आयी लज़ीज़ खाने की। लोगों को खाना बहुत पसंद आया और आम भी। कई लोगों का कहना था कि ऐसे आम उन्होंने कभी नहीं खाये, न ही ऐसे आम सामान्य सुपरमार्किटों में मिलते हैं।

APEDA के यू.के. वत्स का कहना है कि यहां के लोग ब्राज़ील आदि से आये हुये लाल रंग के आम खाने के आदि हैं। उनकि झीली बहुत मोटी होती है और वे भारतीय स्वाद के अनुसार इतने स्वादिष्ट नहीं होते लेकिन उनकी Shelf Life भारतीय आमों से अधिक होती है। यातायात में कई दिनों तक रहने के बावजूद वे खराब नहीं होते जबकि भारतीय आमों में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है। APEDA द्वारा म्युनिक में ऐसा अभियान लगातार चौथी बार आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय आम के बारे में जानकारी फैलाने की कोशिश की गई। उनका उद्देश्य था कि अधिक से अधिक जर्मन लोग आयें ताकि उनके बारे में जानकारी बढ़े। इस कार्यक्रम में अधिकतर लोग जर्मन थे और वे इससे संतुष्ट हैं। आयातकों की उपस्थिति कम थी क्योंकि आयातक सुबह चार बजे मंडी में जाते हैं, और शाम तक अपना माल बेचकर अपना दिन समाप्त कर देते हैं। इसलिये उन्होंने अलग से अगले दो दिन 20 और 21 मई को म्युनिक की बड़ी सब्ज़ी मंडी Großmarkthalle में भी आयातकों के लिये स्टाल लगाया जहां सबको आमों की विभिन्न प्रजातियों का स्वाद चखने की सुविधा थी।

श्री प्रवीन गुप्ता ने बसेरा को बताया कि 2006-2007 के वित्तीय वर्ष में APEDA का 24000 करोड़ रुपये का निर्यात रहा (लगभग 4700 मिलियन अमरीकी डॉलर)। उन्होंने कहा कि अमरीका की मार्केट भारतीय आमों के लिये 18 वर्ष से बंद थी। उनके लगातार यत्नों के बाद ये मार्केट खुली और उन्होंने भारत के बढ़िया आम अमरीका में बेचे। अब वे चीन और जापान के बाज़ार में भी घुस गये हैं। लेकिन उनका मुख्य निर्यात मध्य और सुदूर पूर्वी देशों में होता है। तोतापुरी आम खासकर आंध्रप्रदेश से, अल्फ़ोंसो आम महाराष्ट्र से और केसर आम गुजरात से आता है। केवल आम ही नहीं, आमों के उत्पाद भी निर्यात किये जाते हैं जैसे आचार, चटनी, पापड़, सूखे आम, रस, गूदा (pulp), लस्सी आदि। सरकार की नीतियां काफ़ी सहायक हैं, लेकिन उनमें आत्म निर्भरता का सिद्धांत चलता है। यानि निर्यात किये जाने वाली चीज़ों की पहले अपने देश मी कमी पूरी होनी चाहिये। लेकिन युरोप के आयातक अभी इतनी तादाद में माल नहीं मंगवाते कि माल को समुद्री रास्ते से भेजा जा सके। उन्हें अधिकतर माल हवाई रास्ते से भेजना पड़ता है जो बहुत महंगा पड़ता है।

गुरुवार, 15 मई 2008

कॉमेडी अंग्रेज़ी नाटक

English comedy play 'Goodnight Desdemona (Good Morning Juliet)' was performed in Amerika Haus for few days in May. With excellent script, actors, stage and sound design, this play held the audience for three hours together.

10 मई को Amerika Haus में एक अंग्रेज़ी नाटक Goodnight Desdemona (Good Morning Juliet) का पर्दर्शन हुआ। इसे देखने बहुत सारे अमरीकी, इंगलैंड वासी और यहां तक कि जर्मन लोग भी आये। यह बहुत कॉमेडी, मज़ेदार और रोचक नाटक था। इसके पाँचों कलाकार अमरीकी अथवा कैनेडा वासी ही थे, इसलिये जर्मन लोगों के लिये अमरीकी अंग्रेज़ी समझनी थोड़ी मुश्किल हो रही थी। ऊपर से बीच बीच में शेक्सपीयर के नाटकों के संवाद भी थे। नाटक बहुत लंबा था लेकिन लोग अंत तक इससे बंधे रहे क्योंकि इसका अंत बहुत रोमांचक था। इस नाटक की मुख्य भूमिका निभायी कनेडा की जानी मानी कलाकार Elisa Moolecherry ने, जो संयोग से BeMe Theatre की संस्थापक भी हैं। वे बहुत प्रतिभाशाली कलाकार हैं। कुछ ही महीने पहले उन्होंने एक अन्य नाटक I, Claudia में चार बिल्कुल अलग अलग पात्रों की भूमिका निभायी थी, भेस बदल बदल कर।

ये नाटक BeMe Theatre द्वारा निर्मित किया गया था और इसे लिखा है कैनेडा वासी लेखिका Ann-Marie MacDonald ने।

इस नाटक में साहित्य की एक डरपोक किस्म की प्रोफ़ेसर को अपने शोध कार्य के दौरान लगता है कि शेक्सपीयर के दो नाटक 'Romeo and Juliet' और Othello दुखांत नहीं बल्कि हास्य नाटक थे। और वे दोनों उसने खुद नहीं लिखे थे, बल्कि चुराये थे। उसे लगता है कि इस तरह के किरदारों का अंत मौत नहीं होना चाहिये था। लेकिन वह इतनी डरपोक है कि वह ये सब अपने काईयां प्रोफ़ेसर के सामने बोलने की हिम्मत नहीं रखती। तभी वह कम चेतना की अवस्था में भूत काल में चली जाती है और दोनों नाटकों की नायिकाओं Desdemona और Juliet को मिलती है। फिर शुरु होती है दोनों कहानियों में उथल पुथल। रोमियो और जुलियट दोनों उसी से प्यार करने लगते हैं (क्योंकि वह लड़के और लड़की का भेस बदलती रहती है)। उधर Othello की नायिका डेस्डेमोना उसकी जान के पीछे पड़ जाती है। इस समय के दौरान वह साहस करना सीखती है, प्यार करना सीखती है, अपना बचाव करना सीखती है।

Othello पर हाल ही में हिन्दी फ़िल्म ओंकारा भी बनी थी जिसका अंत भी दुखदायक था।
http://www.bemetheatre.com/current_prod.html

रविवार, 4 मई 2008

सगी बेटी का 24 साल तक यौन शोषण

ऑस्ट्रिया में एक 73 वर्षीय बूढ़े ने अपनी सगी बेटी को अपने घर के तलघर (Keller) में 24 वर्षों तक बंद रखा, उससे यौन सम्पर्क बनाये और उसके साथ 7 बच्चों को जन्म दिया। उसकी पत्नी और पड़ोसियों को भी पता नहीं चला।

19 अप्रैल को ऑस्ट्रिया के Amstetten गाँव में एक मिरगी की बीमार 19 वर्षीय लड़की Kerstin को उसके 73 वर्षीय नाना Josef Fritzl द्वारा अस्पताल पहुँचाया गया। लड़की की हालत गंभीर थी, उसे तुरन्त ICU में दाखिल करवाया गया। अस्पताल के स्टाफ़ ने लड़की का इतिहास जानने के लिये अपना रजिस्टर खोला तो पता चला कि उनके मुताबिक तो ये लड़की कभी पैदा ही नहीं हुयी। पूछने पर नाना ने बताया ये लड़की अचानक उनके घर के दरवाज़े पर खड़ी पायी गयी थी। उसके हाथ में उनकी 24 वर्ष से लापता बेटी Elisabeth के हाथ की लिखी चिट्ठी थी। उन्होंने 24 वर्ष से जब अपनी बेटी को ही नहीं देखा तो दोहती का पता कैसे चलता? अस्पताल वाले हैरान परेशान हो रहे थे। बात पुलिस तक पहुँची। पुलिस छानबीन कर ही रही थी कि अचानक Josef Fritzl अपनी खोयी हुयी 42 वर्षीय बेटी Elisabeth को लेकर अस्पताल आ गया। Elisabeth की शारीरिक और मानसिक हालत बहुत खराब थी, बाल बिल्कुल सफ़ेद थे और वह बहुत डरी हुयी थी। उसके साथ उसके और दो बच्चे 18 वर्षीय बेटा Stefan और 5 वर्षीय बेटा Felix भी थे। उनकी हालत भी कुछ ठीक नज़र नहीं आ रही थी। पुलिस रिकार्ड के अनुसार तो वे दोनों भी कभी पैदा नहीं हुये थे। पुलिस ने Elisabeth से पूछताछ करने की कोशिश की लेकिन वह डर के मारे कुछ बोलने को तैयार नहीं हो रही थी। पुलिस को दाल में कुछ काला नज़र आया। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि अगर वह अपने पिता से डर रही है तो डरने की कोई बात नहीं, उसे दोबारा अपने पिता का सामना नहीं करना पड़ेगा, उसके बच्चों का भी उचित ध्यान रखा जायेगा। तब वो जाकर कुछ बोलने को तैयार हुयी। फिर खुलने लगी एक अंधकारमय कहानी।

Elisabeth ने पुलिस और मनोविज्ञानिकों को बताया कि वह अपने मातापिता के साथ उस गाँव के Ybbstraße 40 में स्थित घर में रहती थी। उसके पिता तबसे ही उसे तंग करने लगे थे जब वह मात्र 11 वर्ष की थी। उसने दो बार घर से भागने की कोशिश भी की थी। फिर एक दिन अगस्त 1984 में उसके पिता ने उसे बाँध कर घर के नीचे तलघर में बंद कर दिया। तब वह 18 वर्ष की थी। तलघर का दरवाज़ा भारी लोहे का बना हुआ था जिसपर एक इलेक्ट्रॉनिक ताला लगा हुआ था। उसके पिता इलेक्ट्रॉनिक तक्नीशियन का काम करते थे। वह उस तलघर से बाहर नहीं निकल सकती थी। उसके पिता ने उससे कई बार ज़बरदस्ती चिट्टठियां लिखावायी कि वह किसी सम्प्रदाय की अनुयायी हो गयी है और वह घर वापस नहीं आयेगी और उसे ढूँढने की कोशिश न की जाये। उसके पिता ने यह चिट्ठियां खुद किसी दूसरे शहर में जाकर अपने ही पते पर डाक द्वारा भेजीं। इस तलघर में ही उसने 24 वर्ष गुज़ार दिये। यहां उसके अपने पिता ने उसके साथ यौन संबंध स्थापित किये और सात बच्चों को जन्म दिया। तीन बच्चों को (15 वर्षीय Monika, 14 वर्षीय Lisa और 12 वर्षीय Alexander) उसके पिता ने पुलिस के साथ ये कहकर रजिस्टर करवाया कि मैंने उन्हें पालन पोषण के लिये अपने मातापिता के पास भेजा है। ये तीन बच्चे अपनी नानी Rosemarie के पास रहे, आम बच्चों की तरह स्कूल गये। लेकिन दूसरे तीन बच्चों ने कभी दिन की रौशनी नहीं देखी (19 वर्षीय बेटी Kerstin, 18 वर्षीय बेटा Stefan और 5 वर्षीय बेटा Felix). वे हमेशा इस तलघर में बंद रहे। एक बच्चे की जन्म के कुछ दिन बाद ही मौत हो गयी। उसकी लाश उसके पिता Josef Fritzl ने जला दी। अब अपने साथ रह रही उनकी सबसे बड़ी बेटी Kerstin की तबीयत बहुत अधिक खराब हो गयी थी और अपने पिता के मना करने के बावजूद वह उसे अस्पताल में दाखिल करवाने के लिये ज़िद पर अटकी रही। अंत में उसके पिता उसे अस्पताल ले जाने के लिये राज़ी हो गये।


राज़ खुलने के बाद पुलिस द्वारा ली गयी Josef Fritzl की फ़ोटो


निचले ऑस्ट्रिया के प्रांतीय अपराध विभाग के अध्यक्ष Franz Polzer, प्रेस वार्ता में

निचले ऑस्ट्रिया के प्रांतीय अपराध विभाग के अध्यक्ष Franz Polzer कहते हैं कि Josef Fritzl हमेशा सुपरमार्केट से बड़ी मात्रा में किराने का सामान खरीदता था। और ये भी सुनने में आया है कि वह कभी कभी कोठरी में सोता था। पुलिस ने उस घर में पहले रह चुके कई लोगों से भी पूछताछ की। उस बहु-परिवार वाले घर में इतने वर्षों में सैंकड़ों किरायेदार रह चुके थे। पड़ोसियों का कहना है कि वे उन्हें बहुत अच्छे लोग समझते थे।

अस्पताल, जहां Elisabeth और उसके तीन बच्चों को दाखिल करवाया गया है, ने अपनी सुरक्षा बढ़ा दी है। पहले टीवी चैनलों की टीमें और फ़ोटोग्राफ़र ने परिवार तक पहुँचने की कोशिश की है। उनकी पहली फ़ोटो के लिये बड़ी उँची रकम पायी जा सकती है। अस्पताल ने उष्ण कैमरों द्वारा रात को झाड़ियों, वृक्षों में छुपे हुये सनसनीखेज खबरों के भूखे फ़ोटोग्राफ़रों, रिपोर्टरों का पता लगाने की कोशिश की है। उष्ण कैमरे वे कैमरे होते हैं जो प्रकाश की बजाय बदन की गर्मी समेटते हैं, जिनसे अंधेरे में भी दूर छुपे मनुष्यों का पता चल जाता है।


केवल पौने दो मीटर उँची इस कोठरी में सब कुछ था, रसोई, गुसलखाना, टीवी, रेडियो आदि।


कोठरी की मोटी दीवारों से बाहर कोई आवाज़ नहीं जा सकती थी।


कोठरी का दरवाज़ा एक इलेक्ट्रॉनिक ताले के साथ बंद होता था जो किसी खास नंबर के साथ खुलता था। ये नंबर केवल Josef Fritzl को पता था।


29 अप्रैल को Amstetten में हुयी पत्रकार वार्ता में बताया गया कि DNA टेस्ट ने पुष्टि की है कि सभी छह बच्चे Josef Fritzl के ही हैं।


घर के सामने का दृश्य


Josef Fritzl के घर के चारों ओर कई दिनों तक दुनिया भर के पत्रकारों का तांता लगा रहा

ऐसा ही एक केस जर्मनी में Natascha Kampusch के साथ हुआ था जिसे 1998 में एक आदमी ने अगवा करके अपने घर के कारागार में बंद कर दिया था। उस समय उसकी आयु दस वर्ष थी। उसे साढ़ आठ वर्षों बाद 2006 की गर्मियों में छुड़ाया गया था।
Natascha Kampusch

शुक्रवार, 2 मई 2008

भेड़ों से टकराने से रेल पटरी से उतरी

26 अप्रैल रात नौ बज कर पाँच मिनट पर हैम्बर्ग से म्युनिक जा रही ICE 885 ट्रेन पटरी पर खड़े एक भेड़ों के झुंड से टकराने के कारण पटरी से उतर गयी। ये दुर्घटना Mittelkalbach के पास जर्मनी की सबसे लंबी (10779 मीटर) एक सुरंग में हुयी। ट्रेन में 170 यात्री थे जिनमें से 20 को हल्की चोट लगी है और तीन को थोड़ी गहरी चोट लगी है। उन्हें पास के अस्पताल में दाखिल करवाया गया। कोई मौत नहीं हुयी। ट्रेन में 12 डिब्बे और दो इंजन थे (आगे और पीछे)। दो डिब्बों को छोड़कर सारे डिब्बे पटरी से उतर गये थे। टकराने के करीब एक किलोमीटर बाद सुरंग में ही ट्रेन रुक गयी। टकराने के समय ट्रेन की गति करीब 220 किलोमीटर प्रति घंटा थी। टकराने से 20 भेड़े मर गयी हैं। भेड़ों के चरवाहे पर भेड़ों का ध्यान न रखने के लिये दोषी ठहराया गया है। पटरी के रुकने की वजह से बाकी रेल यातायात पर भी भारी असर पड़ा।


चरवाहा Norbert Werner मीडिया वालों को उत्तर देते हुये।

आमतौर पर किसी जानवर के टकराने से रेल को फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन कयास लगाये जा रहे हैं कि इस बार बहुत अधिक भेड़ें एक-साथ रास्ते में आ गयी थी, और शायद कोई बड़ी हड्डी पहिये और पटरी के बीच फ़ंसी रह गयी होगी जिससे अंत में पहिया नीचे उतर गया। इस बात का शुक्र मनाया गया कि पटरी से उतरने के बाद रेल दूसरी पटरी पर नहीं चढ़ी, वर्ना दूसरी ओर से आती हुयी रेल के साथ इससे भी भयानक हादसा हो सकता था।

इस हादसे ने बहुत तेज़ चलने वाली रेलगाड़ियों की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिये हैं। 3 जून 1998 को भी Eschede के स्टेशन के पास एक ICE 884 दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी जिसमें 101 लोगों की मृत्यु हो गयी थी और 88 लोगों को गंभीर चोटें आयी थीं। ICE रेलों की गति 300 किलोमीटर प्रति घंटा तक भी पहुँच जाती है। कहा जाता है कि 140 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक गति से चलने वाली रेलगाड़ियाँ अचानक ब्रेक लगने की स्थिति में मानव के लिये घातक हो सकती हैं।

म्युनिक में बसंत मेला

11 अप्रैल से 27 अप्रैल तक म्युनिक के Theresienwiese में 44वें बसंत मेले यानि Frühlingsfest का आयोजन हुआ। इसमें 100 से ऊपर झूले, एक Augustiner का लाईव संगीत के साथ बीयर टेंट, एक बीयर गार्डन और खाने पीने की बहुत सी दुकानें थी। इन तीन हफ़्तों में दो दिन परिवारों के लिये खास थे जब सभी झूलों की सवारी कम कीमतों में उपलब्ध थी। दो दिन ऐसे भी थे जिनमें आप बचे खुचे D-Mark (जर्मनी की यूरो के आने से पहले वाली करंसी) के सिक्कों में भी भुगतान कर सकते थे। दो दिन रात को दस बजे खूब आतिशबाजियां भी छोड़ी गयीं। रविवार 27 अप्रैल को धूप भरे दिन में साईकल टूर भी आयोजित किया गया और साथ ही म्युनिक शहर के 850वें जन्मदिवस पर दोपहर बारह बजे 850 छोटी छोटी तोपें दागी गयीं (Böllerschützen). इस मेले को अक्तूबरफ़ेस्ट की छोटी बहन भी कहा जाता है। ये मेला Münchner Schausteller-Verein e.V. (http://www.muenchner-schausteller-verein.de/) द्वारा आयोजित करवाया गया था।
http://www.muenchner-volksfeste.de/FF.htm

गुरुवार, 1 मई 2008

36 लाख यूरो का चोर पकड़ा गया

36 लाख यूरो की चोरी के साथ सवा साल से गायब चोर को एक ट्रेन में पकड़ लिया गया।

बुधवार, 23 अप्रैल को सुबह करीब सवा ग्यारह बजे न्यूनबर्ग से ड्रेस्डन जाने वाली एक ट्रेन में दो पुलिसकर्मी आम चेकिंग कर रहे थे (Interregio 3087 Nürnberg – Dresden). Pegnitz के पास उन्होंने एक व्यक्ति को आईडेंटिटी कार्ड दिखाने के लिये कहा। उसपर लिखा हुआ था 'Kittelmann, Sven'. पुलिसकर्मियों ने कंप्यूटर में देखा तो पता चला कि वह व्यक्ति लाखों यूरो की चोरी के बाद 15 महीनों से गायब है। उन्होंने उसे उसी वक्त हथकड़ियां लगा दीं। लाल टी-शर्ट और बास्केटबॉल टोपी पहने, लम्बे भूरे बालों वाले उस व्यक्ति ने कोई विरोध नहीं किया। उसके पास कोई हथियार भी नहीं था। पूछताछ करने पर उसने बताया कि वह चेक-स्लोवाकिया के एक शहर में जा रहा था जहां वह एक वर्ष से छुपा हुआ था। वह Baden-Württemberg में किसी डॉक्टरी जाँच के लिये आया था। पकड़ के दौरान उससे टेप में लिपटे 20000 यूरो पाये गये। बाकी पैसों का ठिकाना उसने नहीं बताया।
पकड़े जाने के बाद पुलिस द्वारा खींची गयी फ़ोटो
उसके पास से पैकेजिंग टेप में लिपटा 20000 यूरो पाया गया।

32 वर्षीय Sven Kittelmann 20 जनवरी 2007 को A8 हाईवे पर एक साथी के साथ एक बैंक की ट्रांसपोर्टर गाड़ी चलाकर म्युनिक की ओर आ रहा था। गाड़ी के अंदर करीब 36 यूरो का कैश धन था। Sulzemoos के पास एक पार्किंग में उसने कुछ देर विराम करने के लिये गाड़ी रोकी। फिर उसने मोबाईल फ़ोन पर निर्विघ्न बात करने के बहाने अपने साथी को गाड़ी से उतार दिया। साथी के उतरते ही वह गाड़ी लेकर भाग गया।

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यहां से वह अपने साथी को उतार कर गाड़ी लेकर भागा।

इस गाड़ी में धन ले जाया जा रहा था।

फिर कुछ ही किलोमीटर दूर Dachau-Fürstenfeldbruck की क्रासिंग के पास उसने धन एक किराये पर ली हुयी Ford Focus Combi कार में लाद दिया और फ़्रांस की ओर फ़रार हो गया। ये गाड़ी बाद में फ़्रांस में Marseilles के समुद्री पोर्ट पर खाली पायी गयी। वहां से वह एक समुद्री जहाज़ से यात्रा करके अलजीरिया गया। लेकिन उसके पास वीज़ा न होने की वजह से उसे वहां ठहरने नहीं दिया गया और उसे उसी जहाज़ से वापस आना पड़ा। उसके बाद उसका कुछ पता नहीं चला था। कयास लगाये जा रहे थे कि जर्मनी वापस ज़रूर आयेगा। अब तलाश खत्म हुयी।
पुलिस उसे इस फ़ोटो के साथ ढूँढ रही थी।

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यहां उसने धन दूसरी गाड़ी में लादा।