सोमवार, 1 नवंबर 2010

बढ़ी परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों की अवधि

अक्तूबर 2010 में जर्मन सरकार ने परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों को चलाए रखने की अवधि बारह वर्ष तक बढ़ाने पर मोहर लगा दी। जर्मनी के सभी 17 परमाणु ऊर्जा संयन्त्र ज़्यादा से ज़्यादा 2018 तक बन्द किए जाने थे। पर अब इन्हें 2030 तक चलाए जाने पर मोहर लग चुकी है। आम जनता में इसके प्रति बहुत रोष है क्योंकि यह आने वाली पीढ़ियों के साथ खिलवाड़ है। क्योंकि न तो परमाणु कचरे को दबाए जाने का पूर्ण सुरक्षित उपाय अभी जर्मनी के पास हैं। इसके अलावा ये संयन्त्र 9/11 जैसे हवाई हमलों के सबसे सम्भावित लक्ष्य हैं। ऐसा होने से वह क्षेत्र हज़ारों सालों के लिए बञ्जर हो जाएगा। लोगों में यह धारणा है कि नेताओं और जर्मनी की चार बड़ी ऊर्जा कम्पनियों EnBW, RWE, Vattenfall और E.ON के बीच सांठगांठ के कारण यह हुआ है। ये संयन्त्र बनाने का खर्च कम्पनियों को वापस मिल चुका है। अब तो इन्हें चलाए रखने में खरबों यूरो का केवल फायदा ही फायदा है। जर्मनी में अक्तूबर में फ्रांस से जर्मन परमाणु कचरे को वापस लाने के दौरान बहुत विरोध हुआ। पर विरोध प्रदर्शन अधिकतर पूञ्जीवाद के सामने हार जाते हैं। वैसे भी कचरे को वापस लाने का विरोध एक राजनैतिक मुद्दा था, क्योंकि कोई भी सरकार हो, यह तो होना ही था। मुद्दा तो परमाणु बिजली की नैतिकता का है। कहा जाता है कि 1986 में चेरनोबिल के परमाणु हादसे के बाद वहां के तानाशाह ने हज़ारों सैनिकों की जान खतरे में डालकर रेडियोधर्मी कणों के रिसाव को रोकने के लिए भेज दिया था। उनमें से तो कोई नहीं बचा पर यह हादसा अत्यन्त विकराल रूप लेने से बच गया। पर आज के लोकतान्त्रिक युग में किसी हादसे की स्थिति में ऐसा करना सम्भव नहीं।

http://www.mitwelt.org/laufzeitverlaengerung-akw-kkw-atomkraft.html