गुरुवार, 28 अगस्त 2008

अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा - एक दुविधा

म्युनिक में Linde AG में कार्यरत मागेश गम्तावर प्रताप और विजय सिंह कहते हैं कि उन्हें बसेरा के अप्रैल अँक में छपा लेख 'आ अब लौट चलें' बहुत पसंद आया जिसमें एक युवा परिवार की कहानी थी जो कई वर्ष जर्मनी में रहने के बाद बच्ची की शिक्षा के कारण भारत वापस चला गया। वे कहते हैं कि उनकी भी यही दुविधा है कि यहां रहकर बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा कैसे दिलाएं। जर्मन भाषा से उन्हें कोई समस्या नहीं लेकिन अगर वे कुछ वर्ष बाद वापस भारत चले गए तो उनके बच्चों को वहां बहुत तकलीफ़ होगी। वे इस बात से बहुत हैरान और परेशान हैं कि यहां पर्याप्त अंग्रेज़ी स्कूल नहीं हैं। जो इक्का दुक्का स्कूल हैं, वे मनचाही फ़ीस वसूल रहे हैं। उनकी फ़ीसें सामान्य जर्मन स्कूल से तीस चालीस गुणा है। इतनी फ़ीस देना उनके बस की बात नहीं। वे पूछना चाहते हैं कि क्या यहां की सरकार को अंग्रेज़ी से खास दुश्मनी है? क्या वह अंग्रेज़ी स्कूल बनने नहीं देना चाहती? वे हताश होकर कहते हैं कि ताज्जुब है कि भारतीय सरकार या यहां का भारतीय दूतावास भी इस दिशा में कोई मदद नहीं कर रहा। मागेश गम्तावर पहले मलेशिया रह चुके हैं और वहां स्थित भारतीय दूतावास के बारे में बताते हैं कि उन्होंने स्थानीय माता पिताओं की मदद से एक छोटा सा अंग्रेज़ी स्कूल खोल दिया था जिससे यह समस्या काफ़ी हद तक हल हो गई थी। उनका सुझाव है कि निजि कंपनियों को यहां अंग्रेज़ी स्कूल खोलने के प्रयास करने चाहिए। अगर भारत का DPS समूह यहां स्कूल खोल ले तो कोई भी अपने बच्चों को यहां के महंगे अंग्रेज़ी स्कूल में नहीं भेजेगा। उनका सुझाव ये भी है कि Siemens, Infineon, Linde जैसी बड़ी कंपनियां भी मिलकर एक अंग्रेज़ी स्कूल खोल सकती हैं। इससे उनका ही पैसा बचेगा जो वे विदेशी कर्मचारियों को अपने बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाने के लिए देती हैं।

पति से मिलने के लिए रिश्ता बदला

 म्युनिक निवासी कंवलजीत कौर ने पंजाब के अपने गाँव जमशेद गाँव में रहने वाली अपनी 26 वर्षीय सगी बहन गुरमीत कौर को उनके पाँच वर्षीय बेटे गुरबख्श सिंह के साथ म्युनिक घूमने के लिए आने का न्यौता भेजा। सामान्यतः इस न्यौते पर तीन महीने का वीज़ा मिलता है लेकिन गुरमीत कौर को केवल सात दिन का वीज़ा मिला, और उनके बेटे को वीज़ा नहीं मिला। यानि उन्हें अपना बच्चा भारत छोड़ कर ही जर्मनी घूमने आना पड़ा।

इसका कारण था उनके पति का उपलब्ध न होना। दरअसल बच्चे का वीज़ा लगने के लिए उसके पिता का उपस्थित होना आवश्यक था। लेकिन किसी कारणवश वे वहां नहीं आ सके और बच्चे को वीज़ा नहीं मिला।

लेकिन गुरमीत कौर म्युनिक पहुँचते ही इटली घूमने जाने की तैयारी करने लगीं। दरअसल वे जर्मनी अपनी बहन को मिलने नहीं बल्कि इटली में पिछले साढ़े चार वर्ष से अवैध रूप से रह रहे अपने पति को मिलने आईं थी। उनके पति जसपाल सिंह कई वर्ष पहले भारत से भाग कर इटली आ गये थे। हालांकि इटली में नागरिकता पाना जर्मनी जितना मुश्किल नहीं, न ही वहां जर्मनी की तरह स्थानीय औरत से शादी करना ही नागरिकता पाने का एकमात्र उपाय है, फिर भी उन्हें अभी तक वहां की नागरिकता प्राप्त नहीं हुई। पिछले साढ़े चार वर्षों बाद पहली बार गुरमीत कौर ने अपने पति को देखना था। वे बहुत उत्साहित थीं। वे ट्रेन द्वारा सफ़र करके इटली गईं और अपने पति से मिलीं। भारत को वापसी की उड़ान से केवल एक दिन पहले वे ट्रेन द्वारा वापस म्युनिक आईं। इन सात दिनों में उनका अधिकतर समय ट्रेनों में गुज़रा। लेकिन उनकी समस्या का कोई हल अभी नज़र नहीं आ रहा है। वे बताती हैं कि उनके गाँव में हर चौथे घर की यही कहानी है। अच्छे जीवन की तलाश में सब कुछ छोड़कर, कई खतरे मोल लेकर अवैध रूप से विदेश जाना पंजाब के नौजवानों में अभी भी प्रचलित है। (सब नाम बदले हुए हैं)

रूस से जर्मनी तक का पैदल सफर

हरियाणा में शाहबाद के निवासी सतविंदर सिंह 1996 में जर्मनी जाने का सपना लेकर एक एजेंट के द्वारा मास्को पहुँचे। वहाँ एक वर्ष प्रतीक्षा करने के बाद जर्मनी जाने का मौका मिला लेकिन वे रूस की सीमा पर पकड़े गए और उनकी बहुत पिटाई हुई। एजेंटों ने उन्हें किसी तरह छुड़ाया। और फिर रूस से छुपते छुपाते वे पैदल रास्ते से जर्मनी पहुँचे। जर्मनी पहुँच कर उन्होंने खर्च वहन करने के लिए किसी तरह काम ढूँढा और बहुत मेहनत की। नागरिकता पाने के लिए एक जर्मन महिला से शादी की। भारत से अपनी बहन और जीजा जी को भी स्पेन बुला कर सेट किया। फिर तीन वर्ष पहले म्युनिक में काफ़ी मेहनत और पैसा लगाकर खुद का 'आयुर्वेद' नामक रेस्तरां खोला और फिर भारत जाकर शादी की। वे अपनी भारतीय पत्नी को नवंबर 2007 में जर्मनी लेकर आये और दोनों मिलकर रेस्तरां चलाने लगे। वे कहते हैं कि अब रेस्तरां ठीक ठाक चलने लगा है। उनके मनपसंद अभिनेता सन्नी देओल और धर्मेन्द्र हैं और मनपसंद फ़िल्म गदर है, जिसमें सिक्ख सन्नी देओल पाकिस्तान से अपनी मुस्लिम पत्नी को वापिस लेकर आने के लिये अपना धर्म बदलने तक को तैयार हो जाता है। लेकिन जब उसे भारत मुर्दाबाद का नारा लगाने के लिये कहा जाता है तो वह गदर मचा देता है।
http://www.restaurantayurveda.de/

रविवार, 17 अगस्त 2008

तीज की उमंग म्युनिक में भी

3 अगस्त म्युनिक। श्रावण मास में जब नीरस ग्रीष्म ऋतु के बाद सावन की फुहारों से धरती की तपन दूर हो चुकी होती है और नए अंकुरण से धरती हरियाली की चादर ओढ़ लेती है, तब शुरू होती है त्यौहारों की एक कड़ी। इस कड़ी का पहला त्यौहार होता है श्रृंगार और झूलों की भावनाएं लिए तीज का त्यौहार, जो श्रावण मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को पड़ता है। इसलिए कहावत बनी है-
आई होली भर लेगी झोली, आई तीज बिखेरेगी बीज

लेकिन विदेश में भी जब तीज का त्यौहार वैसी ही उमंगों के साथ मनाया जाये जो बात ही कुछ और है। Garching में रह रहे तरुण गुप्ता, उनकी पत्नी अर्चना बजाज और कुछ समय के लिए मुंबई से घूमने आये माता पिता ने मिलकर तीज के त्यौहार का आयोजन किया जिसमें अनेक महिलाओं ने एकत्रित होकर मेहंदी लगाई, तीज के चुलबुले गीत गाये, कुछ खेल खेले। साथ ही स्वादिष्ट खाना भी परोसा गया। खासकर तरुण गुप्ता की माता श्रीमति हेमलता गुप्ता तयौहारों, गीतों और परंपराओं की खास जानकारी रखती हैं और भारत में सांस्कृतिक आयोजनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं।

शुक्रवार, 8 अगस्त 2008

तालाब से निकाली गयी लाश

6 अगस्त, Rheda-Wiedenbrück. शाम साढ़े चार बजे Gütersloher Straße के पास स्थित एक कृत्रिम तालाब से दो नौजवानों ने पुलिस को फ़ोन करके तालाब के किनारे पर पड़े कुछ कपड़ों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि वहां किसी की पेंट, स्वेटर, जूते और जुराबें आदि पड़े हैं लेकिन आसपास किसी का नामोनिशान नहीं है। तुरंत एक पुलिस की गाड़ी, एमरजेंसी गाड़ी और एक डॉक्टर को वहां भेजा गया। करीब पाँच बजे पास की एक संस्था से कुछ स्कूबा डाईवरों को बुलाया गया। उन्होंने पानी में पाँच मीटर नीचे पड़ी एक व्यक्ति की लाश को बाहर निकाला। प्रारंभिक पड़ताल में इस घटना में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ नज़र नहीं आया। पड़ताल चल रही है।

ड्रग्स के नशेड़ी ने कार चुराई

6 अगस्त, Hannover. दोपहर करीब पौने बारह बजे B217 सड़क पर Tresckowstraße के मोड़ के पास एक कार चोर पकड़ा गया। सड़क के पास गुज़र रही गाड़ियों की जाँच कर रही पुलिस की नज़र एक नीली गोल्फ़ कार पर पड़ी। छानबीन से पता चला कि ये गाड़ी 25 जुलाई को Lehrte में चुराई गयी थी। पुलिस ने पीछा करके इस मोड़ की लाल बत्ती पर कार के आगे अपनी गाड़ी रोक दी और 34 वर्षीय ड्राईवर को गिरफ़्तार कर लिया। वह व्यक्ति ड्रग्स के नशे में था, और नशे का स्तर 0.27 Promille (प्रति एक हज़ार) था। उसके पास उस समय ड्राईविंग लाईसेंस भी नहीं था। गोल्फ़ गाड़ी पुलिस ने जब्त कर ली। वह व्यक्ति कई वर्ष तक ड्रग्स का नशेड़ी रहा है। अभी ड्रग्स के साथ कार चुराने का भी अपराध उसके साथ जुड़ गया है। अभी उसे उचित कारवाई के बाद छोड़ दिया गया है।

बुधवार, 6 अगस्त 2008

नशीली दवाओं के व्यापारी ने किया आत्मसमर्पण

5 अगस्त, Darmstadt. पुलिस द्वारा लगातार जाँच पड़ताल किये जाने से घबरा कर एक 24 वर्षीय आरोपित नशीली दवाओं के व्यापारी ने अपने वकील के साथ Darmstadt की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया। वहां उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उसपर नशीली दवाओं के व्यापार और कई डकैतियों के आरोप थे। Frankfurt में रहने वाले इस व्यापारी को अभी सुनवाई होने तक अभिरक्षा में रखने का फ़ैसला किया गया है।

Darmstadt की ड्रग पुलिस इस साल के शुरू से ही कई नशीली दवाओं के व्यापारियों की पीछा कर रही है। ये व्यापारी आपस में भी नशीली दवायें खरीदते बेचते थे। कई बार तो उन्होंने आपस में ही दवाओं के लिये डकैती की। ये सब व्यापारी Darmstadt और Frankfurt में रहने वाले हैं। वे व्यापार करने के साथ साथ दवाओं का उपभोग भी करते हैं। इस अभियान में कुल मिलकार करीब चालीस किलो हशीश, एक हज़ार Exstacy की गोलियां और करीब इतनी ही कोकेन सबंधित है।

18 जुलाई को पुलिस ने एक 22 वर्षीय नौजवान को नशीली दवाओं बेचने के शक पर गिरफ़्तार किया था। अधिक जाँच करने से पता चला कि एक 25 वर्षीय नौजवान के एक 27 वर्षीय नौजवान के अपार्टमेंट पर हमला किया और दो तीन किलो चरस और कुछ हज़ार यूरो लूटकर ले गया। उसके उसका यह 24 वर्षीय साथी भी था जिसने मंगलवार को बहुत पीछा किया जाने के बाद आत्मसमर्पण कर दिया।