म्युनिक में Linde AG में कार्यरत मागेश गम्तावर प्रताप और विजय सिंह कहते हैं कि उन्हें बसेरा के अप्रैल अँक में छपा लेख 'आ अब लौट चलें' बहुत पसंद आया जिसमें एक युवा परिवार की कहानी थी जो कई वर्ष जर्मनी में रहने के बाद बच्ची की शिक्षा के कारण भारत वापस चला गया। वे कहते हैं कि उनकी भी यही दुविधा है कि यहां रहकर बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा कैसे दिलाएं। जर्मन भाषा से उन्हें कोई समस्या नहीं लेकिन अगर वे कुछ वर्ष बाद वापस भारत चले गए तो उनके बच्चों को वहां बहुत तकलीफ़ होगी। वे इस बात से बहुत हैरान और परेशान हैं कि यहां पर्याप्त अंग्रेज़ी स्कूल नहीं हैं। जो इक्का दुक्का स्कूल हैं, वे मनचाही फ़ीस वसूल रहे हैं। उनकी फ़ीसें सामान्य जर्मन स्कूल से तीस चालीस गुणा है। इतनी फ़ीस देना उनके बस की बात नहीं। वे पूछना चाहते हैं कि क्या यहां की सरकार को अंग्रेज़ी से खास दुश्मनी है? क्या वह अंग्रेज़ी स्कूल बनने नहीं देना चाहती? वे हताश होकर कहते हैं कि ताज्जुब है कि भारतीय सरकार या यहां का भारतीय दूतावास भी इस दिशा में कोई मदद नहीं कर रहा। मागेश गम्तावर पहले मलेशिया रह चुके हैं और वहां स्थित भारतीय दूतावास के बारे में बताते हैं कि उन्होंने स्थानीय माता पिताओं की मदद से एक छोटा सा अंग्रेज़ी स्कूल खोल दिया था जिससे यह समस्या काफ़ी हद तक हल हो गई थी। उनका सुझाव है कि निजि कंपनियों को यहां अंग्रेज़ी स्कूल खोलने के प्रयास करने चाहिए। अगर भारत का DPS समूह यहां स्कूल खोल ले तो कोई भी अपने बच्चों को यहां के महंगे अंग्रेज़ी स्कूल में नहीं भेजेगा। उनका सुझाव ये भी है कि Siemens, Infineon, Linde जैसी बड़ी कंपनियां भी मिलकर एक अंग्रेज़ी स्कूल खोल सकती हैं। इससे उनका ही पैसा बचेगा जो वे विदेशी कर्मचारियों को अपने बच्चों को अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाने के लिए देती हैं।
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
पति से मिलने के लिए रिश्ता बदला
म्युनिक निवासी कंवलजीत कौर ने पंजाब के अपने गाँव जमशेद गाँव में रहने वाली अपनी 26 वर्षीय सगी बहन गुरमीत कौर को उनके पाँच वर्षीय बेटे गुरबख्श सिंह के साथ म्युनिक घूमने के लिए आने का न्यौता भेजा। सामान्यतः इस न्यौते पर तीन महीने का वीज़ा मिलता है लेकिन गुरमीत कौर को केवल सात दिन का वीज़ा मिला, और उनके बेटे को वीज़ा नहीं मिला। यानि उन्हें अपना बच्चा भारत छोड़ कर ही जर्मनी घूमने आना पड़ा।
इसका कारण था उनके पति का उपलब्ध न होना। दरअसल बच्चे का वीज़ा लगने के लिए उसके पिता का उपस्थित होना आवश्यक था। लेकिन किसी कारणवश वे वहां नहीं आ सके और बच्चे को वीज़ा नहीं मिला।
लेकिन गुरमीत कौर म्युनिक पहुँचते ही इटली घूमने जाने की तैयारी करने लगीं। दरअसल वे जर्मनी अपनी बहन को मिलने नहीं बल्कि इटली में पिछले साढ़े चार वर्ष से अवैध रूप से रह रहे अपने पति को मिलने आईं थी। उनके पति जसपाल सिंह कई वर्ष पहले भारत से भाग कर इटली आ गये थे। हालांकि इटली में नागरिकता पाना जर्मनी जितना मुश्किल नहीं, न ही वहां जर्मनी की तरह स्थानीय औरत से शादी करना ही नागरिकता पाने का एकमात्र उपाय है, फिर भी उन्हें अभी तक वहां की नागरिकता प्राप्त नहीं हुई। पिछले साढ़े चार वर्षों बाद पहली बार गुरमीत कौर ने अपने पति को देखना था। वे बहुत उत्साहित थीं। वे ट्रेन द्वारा सफ़र करके इटली गईं और अपने पति से मिलीं। भारत को वापसी की उड़ान से केवल एक दिन पहले वे ट्रेन द्वारा वापस म्युनिक आईं। इन सात दिनों में उनका अधिकतर समय ट्रेनों में गुज़रा। लेकिन उनकी समस्या का कोई हल अभी नज़र नहीं आ रहा है। वे बताती हैं कि उनके गाँव में हर चौथे घर की यही कहानी है। अच्छे जीवन की तलाश में सब कुछ छोड़कर, कई खतरे मोल लेकर अवैध रूप से विदेश जाना पंजाब के नौजवानों में अभी भी प्रचलित है। (सब नाम बदले हुए हैं)
रूस से जर्मनी तक का पैदल सफर
रविवार, 17 अगस्त 2008
तीज की उमंग म्युनिक में भी
आई होली भर लेगी झोली, आई तीज बिखेरेगी बीज
लेकिन विदेश में भी जब तीज का त्यौहार वैसी ही उमंगों के साथ मनाया जाये जो बात ही कुछ और है। Garching में रह रहे तरुण गुप्ता, उनकी पत्नी अर्चना बजाज और कुछ समय के लिए मुंबई से घूमने आये माता पिता ने मिलकर तीज के त्यौहार का आयोजन किया जिसमें अनेक महिलाओं ने एकत्रित होकर मेहंदी लगाई, तीज के चुलबुले गीत गाये, कुछ खेल खेले। साथ ही स्वादिष्ट खाना भी परोसा गया। खासकर तरुण गुप्ता की माता श्रीमति हेमलता गुप्ता तयौहारों, गीतों और परंपराओं की खास जानकारी रखती हैं और भारत में सांस्कृतिक आयोजनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं।
शुक्रवार, 8 अगस्त 2008
तालाब से निकाली गयी लाश
ड्रग्स के नशेड़ी ने कार चुराई
बुधवार, 6 अगस्त 2008
नशीली दवाओं के व्यापारी ने किया आत्मसमर्पण
Darmstadt की ड्रग पुलिस इस साल के शुरू से ही कई नशीली दवाओं के व्यापारियों की पीछा कर रही है। ये व्यापारी आपस में भी नशीली दवायें खरीदते बेचते थे। कई बार तो उन्होंने आपस में ही दवाओं के लिये डकैती की। ये सब व्यापारी Darmstadt और Frankfurt में रहने वाले हैं। वे व्यापार करने के साथ साथ दवाओं का उपभोग भी करते हैं। इस अभियान में कुल मिलकार करीब चालीस किलो हशीश, एक हज़ार Exstacy की गोलियां और करीब इतनी ही कोकेन सबंधित है।
18 जुलाई को पुलिस ने एक 22 वर्षीय नौजवान को नशीली दवाओं बेचने के शक पर गिरफ़्तार किया था। अधिक जाँच करने से पता चला कि एक 25 वर्षीय नौजवान के एक 27 वर्षीय नौजवान के अपार्टमेंट पर हमला किया और दो तीन किलो चरस और कुछ हज़ार यूरो लूटकर ले गया। उसके उसका यह 24 वर्षीय साथी भी था जिसने मंगलवार को बहुत पीछा किया जाने के बाद आत्मसमर्पण कर दिया।