मंगलवार, 22 जुलाई 2008

एक व्यक्ति ने किये तीन यौन हमले

26 जनवरी 2008 को Stockstadt के पास Hübnerwald नामक जंगल में करीब शाम चार बजे एक युवती जॉगिंग कर रही थी कि पीछे से एक सफ़ेद रंग के साइकल पर सवार एक व्यक्ति आया और युवती पर टूट पड़ा। उसने युवती को नीचे गिरा कर झाड़ियों में धकेल दिया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार करने लगा। कुछ देर बाद वह अपने साइकल पर सवार होकर भाग गया। उसने अपने बाल बीच में से संतरी रंग से रंगे हुये थे। युवती के बताये हुये विवरण के अनुसार पुलिस ने उसका यह चित्र तैयार किया है (Phantombild, Facial composite)-

केवल दस दिन बाद 5 फरवरी 2008 को Bamberg के पास Zapfendorf और Unterleiterbach के बीच Main दरिया के किनारे सड़क पर एक लड़की सुबह साढ़े नौ बजे सैर कर रही थी। अचानक एक अजनबी ने झाड़ियों से निकलकर उस युवती को दबोच कर गिरा दिया और उसके साथ छेड़छाड़ करने लगा। लेकिन उसके बाल रंगे नहीं हुये थे। उसके बाल छोटे छोटे थे और थोड़ी सी दाढ़ी भी थी। उसने गहरे रंग की पेंट पहनी थी। युवती के ब्यान अनुसार वह लगभग 175 सेंटीमीटर ऊँचे कद वाला, पतला व्यक्ति था। उसकी आयु 40 और 45 वर्ष के बीच होगी और बाल काले थे। वह टूटी फ़ूटी जर्मन बोलता था, बोलने का लहज़ा पूर्वी या दक्षिणी युरोपीय था। उसने कोई चश्मा अथवा अन्य गहना आदि नहीं पहना था। यहां उसने Jack Wolfskin कंपनी की काली टोपी पहनी थी और उसके पास गहरे नीले रंग का साईकल था। पुलिस ने विवरण के अनुसार उसके टोपी के साथ और टोपी के बिना दो चित्र तैयार किये हैं।

10 फरवरी को दोपहर डेढ और सवा दो के बीच Kiedrich में Erbacher Wald के पास एक सैर कर रही 41 वर्षीय महिला पर भी एक व्यक्ति ने हमला बोल दिया। महिला के मुकाबला करने से वह उसे छोड़ कर भाग गया। महिला के बताये अनुसार यह चित्र तैयार किया गया है।

पुलिस ने इन तीनों घटनाओं से मिले सुरागों से DNA विश्लेषण से निष्कर्ष निकाला है कि तीनों घटनाओं के पीछे एक ही व्यक्ति का हाथ है। उस तक पहुँचवाने पर 2000 यूरो का ईनाम घोषित किया गया है। बहुत छानबीन करने और सुराग मिलने के बावजूद उसका अभी तक पता नहीं चला है।

शनिवार, 5 जुलाई 2008

म्युनिक में हुयी अर्जुन फ़िल्म की शूटिंग

 2 जून को Marienplatz पर Rathaus के आगे कुछ ही महीनों में कर्नाटक मेम रिलीज़ होने वाली कन्नड़ फ़िल्म 'अर्जुन' के एक गाने की शूटिंग चल रही थी। सुबह साढ़े छह बजे ही 18 सदस्यीय टीम के लोगों ने आकर वहां कैमरे, रिफ़्लेक्टर आदि लगाना आरम्भ कर दिया था। टीम में निर्माता 'नरेन्द्र नाथ', निर्देशक 'शाहूराह शिंडे', हीरो 'दर्शन श्रीनिवास', हीरोइन 'मीरा चोपड़ा' और अन्य सदस्य उपस्थित थे।

निर्माता नरेन्द्र नाथ ने बसेरा से कहा कि यहां की भव्य इमारतें भारतीय दर्शकों के लिये नयी हैं, इसलिये उन्होंने यहां शूटिंग करने का निर्णय लिया। हो सकता है कि किसी हिन्दी फ़िल्म की यहां शूटिंग हुयी हो लेकिन किसी कन्नड़ फ़िल्म की शूटिंग अभी यहां नहीं हुयी। इससे पहले वे ऑस्ट्रिया में एक गाने की शूटिंग कर चुके हैं और अब तीन दिन से म्युनिक में शूटिंग कर रहे हैं। उनके ऑस्ट्रिया निवासी प्रबंधक 'Eckerl Kurt' ने बाकी का इंतज़ाम किया है जैसे शूटिंग करने की अनुमति लेना, पुलिस के साथ तालमेल, होटल, यातायात आदि। यहां परदेस में शूटिंग करने में लगभग 30 लाख रुपये खर्च हो गये हैं और फ़िल्म का कुल खर्च करीब पाँच करोड़ रुपये है। उनकी फ़िल्म का हीरो 'दर्शन श्रीनिवास' कर्नाटक में बहुत लोकप्रिय है, इसलिये वे ये दाँव खेल रहे हैं। उन्होंने 'मीरा चोपड़ा' को हीरोइन के तौर पर इस फ़िल्म में लिया क्योंकि वह तमिल और तेलगू भाषा में पहले कई फ़िल्में कर चुकी है। उन्हें भारत से इतने लोगों के लिये वीज़ा लेने में कोई दिक्कत नहीं आती क्योंकि 'फ़िल्म चेम्बर' के द्वारा सरकार उनका साथ देती है।

हीरो 'दर्शन' ने कहा कि भारत में शूटिंग करना अधिक महंगा पड़ता है क्योंकि वहां प्रसिद्ध इमारतों के आगे शूटिंग करने के लिये अनुमति लेने में बहुत झंझट रहता है और शूटिंग में सैंकड़ों लोग साथ में आते हैं, जबकि परदेस में हम केवल गिने चुने लोग ही आते हैं, जैसे निर्माता, निर्देशक, कैमरामैन, कोरियोग्राफ़्रर आदि। क्योंकि यहां हम सीमित समय के लिये आते हैं इस लिये जल्द ही सारा काम निबटाने का दबाव रहता है। इसी दबाव में दिन चौदह चौदह घंटे काम करते हैं, जबकि भारत में केवल आठ घंटे काम करते हैं। क्योंकि यहां हम गिने चुने लोग होते हैं, इसलिये काफ़ी काम खुद करना पड़ता है जबकि भारत में बीसियों लोग पीछे काम करने के लिये होते हैं।

नाटे कद की दिल्ली निवासी हीरोइन 'मीरा चोपड़ा' ने कहा कि ये उनकी पहली कन्नड़ फ़िल्म है और वे इस फ़िल्म से खुश नहीं हैं। जहां हिन्दी फ़िल्मों वाले काफ़ी आगे निकल चुके हैं वहां ये लोग अभी भी लटकों झटकों में अटके हुये हैं। उन्हें कन्नड़ नहीं आती लेकिन वे मिलती जुलती lip movement कर लेती हैं।

फ़िल्म के निर्देशक 'शाहूराह शिंडे' ने कहा कि ये एक कॉप स्टोरी है (cop story).

उनके प्रबंधक 'Eckerl Kurt' ने कहा कि म्युनिक में शूटिंग का प्रबंध उन्होंने पहली बार किया है। उन्हें खुशी है कि सब कुछ बिना विलम्ब और अटकन के हो गया। उन्हें फ़िल्म टीम के साथ साथ घूमना अच्छा लगता है क्योंकि भारतीय फ़िल्म वालों का कोई पक्का स्क्रिप्ट तो होता नहीं। जहां कोई अच्छा दृश्य मिला, वहीं शूटिंग करने लगते हैं। एक दिन पहले भी उन्हें पता नहीं होता कि वे अगले दिन क्या करेंगे। इस लिये प्रबंधन करते हुये उन्हें उनकी आँखों में झाँक कर बहुत पहले से अंदाज़ा लगाना पड़ता है कि वो क्या चाहते हैं ताकि सारा इंतज़ाम समय पर हो सके। ये फ़िल्म युनिट वाले सामान भी बहुत अधिक नहीं लाये, केवल दो कैमरे और तीन रिफ़्लेक्टर। इसलिये उन्हें कोई खास समस्या नहीं हुयी।

मंगलवार, 1 जुलाई 2008

लघु फ़िल्म मेला

12-18 जून 2008, Munich. Stachus के पास Gloria Palast में आयोजित हुए छह दिन के अन्तरराष्ट्रीय लघु फिल्म मेले में (Munich International short film festival, http://www.muc-intl.de) 17 देशों की 40 लघु फिल्मों को दर्शाया गया. यह फिल्में अधिकांश उन लोगों द्वारा बनाई गईं जो अभी फिल्म निर्माण में अध्धय्यन कर रहे हैं. फिल्मों की अवधि दो minute से ले कर लगभग आधे घंटे तक थी. यह सभी फिल्में Bayern में पहली बार दिखाई गईं थीं और लगभग 1200 फिल्मों में से इन्हें चुना गया था. इन में काल्पनिक (fiction), अनुप्राणित (animated), प्रायोगिक (experimental), दस्तावेज़ी (documentary) एवं अन्य प्रकार की फिल्में शामिल थीं. इन में से अधिकांश फिल्में पहले से ही कई राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी थीं.फिल्मों को पांच स्वादों के आधार पर बांटा गया था, Sweet यानि 'मीठी', 'Sour' यानि 'खट्टी', Bitter यानि 'कड़वी', Salty यानि 'नमकीन' और Umami. Umami जापान में अविष्कारित एक स्वाद है जो अन्य सभी स्वादों से थोड़ा अलग है.

Sweet श्रेणी में ऐसी फिल्मों को रखा गया था जिन में प्रेम अथवा अन्य भावनाएं केन्द्र में थीं. 'The sad story of Knave', 'The Dinner', और 'Tanghi Argentini' फिल्में इन में प्रमुख थीं. 'The Dinner' में एक निहायत खूबसूरत लड़की एक लड़के के साथ डेट के लिए एक restaurant में dinner पर जाती है. लेकिन वहां वह पाती है वह लड़का अपनी एक अन्य प्रेमिका के साथ mobile पर बात करने के लिए बार बार बात-चीत और खाना बीच में अचानक छोड़ कर बाहर जा रहा है. वह बहुत नाराज़ हो जाती है और अन्त उसे बहुत बुरा भला कह कर और थप्पड़ मार कर थके मन से घर वापस आ जाती है. घर आ कर जब वह phone पर अपने message सुनती है तो पता चलता है कि वह लड़का उसे ही phone कर रहा था और वह बातें कह रहा था जो वह प्रत्यक्ष रूप से नहीं कह पा रहा था. 'Tanghi Argentini' में एक अधेड office कर्मचारी दिन-भर internet पर डेट के लिए लड़कियां ढूंढता रहता है, लेकिन अपने लिए नहीं, अपने सह-कर्मियों को उनकी उबाऊ दिन-चर्या से उबारने के लिए. Belgium में बनी इस 13-minute की फिल्म इस विषय को Tango नामक नृत्य की उदाहरण के द्वारा बहुत ही comedy अन्दाज़ में दर्शाया गया. वह Tango नृत्य में माहिर एक सह-कर्मी से Tango सिखाने के लिए अनुरोध करता है ताकि वह internet में मिली एक Tango की शौकीन महिला को पटा सके. पहले तो उस का सख्त सह-कर्मी उसे यह कह कर बुरी तरह झाड देता है कि ये दफ़्तर है, प्रेम का मैदान नहीं. लेकिन वह पीछे पड़ा रहता है और अन्त में मना लेता है. कई दिन साथ साथ अभ्यास करने बाद अन्त में वह एक Tango club में जाते हैं जहां उस महिला से मिलना होता है. वह उस महिला के साथ dance करना शुरू करता है, थोड़ी देर तो वह ठीक dance करता है लेकिन फिर उस का सन्तुलन खो जाता है वह उस महिला को बुरी तरह से नीचे गिरा देता है. महिला बहुत बुरी तरह से मायूस और उदास हो जाती है और बेइज़्ज़ती महसूस करती है. अन्त में वह व्यक्ति अपने सह-कर्मी से उस महिला के साथ dance करने के लिए कहता है. वे दोनों बहुत अच्छा dance करते हैं और प्रेमी बन जाते हैं. अगले दिन office में सह-कर्मी उस का बहुत सारा धन्यवाद करता है. फिर वह व्यक्ति एक अन्य सह-कर्मी के लिए लड़की ढूंढना शुरू करता है जो कविताएं बहुत अच्छी लिखता है. इस मेले में इसी फिल्म की जीत हुई और इस के निर्देशक Guido Thys को Kodak company द्वारा महंगी फिल्म रीलें दी गई जो वे अपनी अगली फिल्म के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. 'Ruin' में इटली के एक hotel में लगे camera से पता चलता है कि hotel के एक कर्मचारी का एक जापानी मेहमान लड़की के साथ सम्बन्ध है. उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है. लड़की उस का पीछा करती है. वह उसे एक सुनसान इमारत में ले जाता है और उस का कौमार्य भंग कर देता है. इस तरह उनके सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं और वह वापस अपने पिता के पास चली जाती है. 'Son' में एक theatre निर्देशक का अपने सह-कर्मियों, खास कर एक महिला कर्मचारी के ऊपर तानाशाही स्वभाव दिखाया गया है. theatre में अभ्यास और शो के वक्त महिला का छोटा बेटा यह सब होते हुए देखता है जहां कल्पना और असलियत के बीच दूरी मिटती दिखती है.

Salty श्रेणी में थोड़े गम्भीर मुद्दों वाली फिल्मों को रखा गया था जैसे America में प्रवास और जातिवाद की समस्याएं, Spain में आतंकवाद, कोंगो में तस्करी आदि. 'One day Trip' और 'Look sharp' इन में प्रमुख थीं.

Bitter श्रेणी थोड़ी भारी किस्म की फिल्में थीं. 'Looking Glass' एक अनुप्राणित फिल्म थी जिस में एक छोटी लड़की एक अकेले घर में रात को TV देख रही है. लेकिन दरअसल वह अकेली नहीं है. TV में अचानक सीन बदल जाता है और उसमें उस की छवि दिखने लगती है, लेकिन वह छवि अलग तरह से हिलडुल रही होती है. फिल्म में इस तरह के अनेक ट्रिक दिखा कर डरावना बनाया गया था. 'A Good Day For A Swim' में एक सुबह एक सड़क पर एक वेश्या ग्राहक का इंतज़ार कर रही है. एक truck आ कर रुकता है. वह अन्दर झांकती है तो डर जाती है और भागने का प्रयत्न करती है. लेकिन truck पीछा करता है और उसे अन्दर खींच लिया जाता है. उस के बाद वह truck एक सुनसान समुद्री तट पर पहुंचता है जिस में से jail से भागे हुए किशोर आयु के तीन लड़के निकलते हैं. truck के driver को भी उन्होंने बन्दी बनाया होता है. वह उस महिला को समुद्र में ले जाते हैं और छेड़छाड़ करते हैं.

Sour श्रेणी में भी थोड़ी भारी फिल्में थी लेकिन फिर भी उन में एक आस थी. 'No. 6' में एक अधेड व्यक्ति एक वेश्यागृह के छह number कमरे में एक खूबसूरत Ukranian वैश्या से मिलता है और उसे वहां से छुड़ाने का प्रयत्न करता है जिस में उस की जान चली जाती है. उस लड़की को बाद में पता चलता है कि वह उस का बाप था जो बचपन में उस की मां को छोड़ कर चला गया था. उसने प्रायश्चित करने के लिए उसे ढूंढा और छुड़ाया. 'Lightborne' में एक doctor की बूढी मां बहुत बीमार है और बहुत तकलीफ में है. वह बहुत प्रयत्न कर के, दवाएं दे कर उसे शांत करने की कोशिश करता है लेकिन तकलीफ बढ़ती जाती है. फिर अचानक उस की पत्नी अपनी सास का हाथ पकड़ कर कहती है कि वो मर रही है. उसे अब तमाम चिंताएं छोड़ अपने सुहावने पलों को याद करना चाहिए कि कैसे नन्हे मुन्ने बच्चे उस की गोद में खेलते खेलते बड़े हुए और अपने परिवार बसाए. बूढी मां शांत होने लगती है, उस के चेहरे पर हल्की मुस्कान छाने लगती है और वह बातें सुनती सुनती चिरनिद्रा में चली जाती है. 'Sky' में एक महिला अपने घर लौटती है तो पाती है कि उस के घर में एक गुण्डा घुस आया है. लेकिन वह महिला भी पिस्तोल धारी है. गुण्डे से लड़ते लड़ते उस की पिस्तोल छूट जाती है. कीमती सामान ढूंढते हुए गुण्डे को पता चलता है वह औरत police-कर्मी है. लेकिन तब तक वह अपनी पिस्तोल वापस उठा चुकी होती है और उसे मार देती है. 'Retreating' में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इटली के सुनसान गांव में एक लड़की एक युवा German सैनिक को एक सुनसान घर में छिपा कर रखती है और उससे प्रेम करने लगती है. लेकिन गांव का एक काईयां व्यक्ति उसपर जासूसी कर रहा होता है और फौजियों को बता देता है. वह युवा फौजी मारा जाता है. 18 minute की फिल्म में ये सारा विषय बहुत अच्छी तरह दिखाया गया. 'Personal Spectator' में दोपहर को एक canteen में एक आम दिखने वाली लड़की अकेली बैठी कुछ पढ़ रही है कि एक लड़का आता है और खड़ा होकर उसे घूरने लगता है. वह इसका कारण पूछती है तो वह कहता है कि वह बहुत खूबसूरत है. वह विश्वास नहीं करती लेकिन वह उसे लगातार पांच minute के लिए घूरने के लिए अनुमति मांगता है. वह हिचकिचाती है लेकिन अधिक जोर देने पर मान जाती है. वह अपने बाल, कपड़े आदि ठीक करने लगती है तो वह कहता है कि वह कुछ न करे. वह जैसी है, बहुत सुन्दर है. वह पढ़ने की कोशिश करती है लेकिन पढ़ नहीं पाती. वह थोड़ी परेशान होने लगती है. वह पूछती है कि इन पांच minutes में वह क्या करे, लड़का कहता है कि वह जो मर्ज़ी कर सकती, जैसे आम जनजीवन में रहती हो. वह परेशान होकर उठ कर खाना लेने जाती है तो वह लड़का भी पीछे पीछे चलने लगता है और लगातार उसे देखता रहता है. लड़की अधिक देर तक इसे नहीं सहार पाती गुस्से में बुरा भला कह कर वहां से चली जाती है. लेकिन घर आने के बाद शीशे के सामने खड़े होती है तो उसे उस लड़के की बातें याद आती हैं. उसे वाकई लगने लगता है कि आम बोरियत वाले जीवन में भी उस का कोई खास अस्तित्व है. वह अन्दर से बुरी तरह हिल चुकी होती है.

यह मेला Münchner Filmwerkstatt (http://www.muenchner-filmwerkstatt.de/) और local cinema Mathaeser (http://www.mathaeser.de/filmpalast/) द्वारा मिल कर आयोजित किया गया था. Münchner Filmwerkstatt का मतलब है Munich की फिल्म बनाने की कार्य-शाला. इस में उभरते हुए युवा नर्देशक, निर्माता और अन्य लोग इस उद्योग में पैर जमाने के लिए एक दूसरे की मदद करते हैं. मेले के अध्यक्ष Martin Blankemeyer इस बार के मेले से काफ़ी सन्तुष्ट हैं क्योंकि इसबार उन्हें भरपूर प्रायोजक मिले, Abendzeitung समाचार पत्र ने खूब लोकप्रियता दी और दर्शकों की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी रही. Munich की Interkep ने 35mm फिल्मों को मुफ्त भेजने, मंगवाने का ज़िम्मा लिया.