मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

Republic Day Celebration

प्यारे भारतीय मूल के जर्मन वासी मित्रो,
अपने पचास साल के जर्मनी आवास के दौरान पहली बार बर्लिन के राजदूतावास में आयोजित २६ जनवरी के संविधान -दिवस समारोह में मैं सम्मिलित नहीं होउँगी क्योंकि जिस राजदूतावास में अब तक भारतीय मूल के नागरिकों को सम्मानपूर्वक आमन्त्रित किया जाता था वहीं हमें अब तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है।पहली बार भारतीय मूल की महिलाओं को दूतावास की Womens Association से बिना किसी कारण के बाहर कर दिया गया।इतना ही नहीं, इस संदर्भ में किये गये मेरे पत्रव्यवहार का उत्तर देना तो दूर की बात पत्र पहुँचने की स्वीकृति तक नहीं दी गई। पिछले दो वर्षों से 10 जनवरी को NRI दिवस नहीं मनाया जा रहा।ना ही राजभाषा दिवस मनाया जाता है और न ही रवीन्द्र जयंती।ऐसे ही और भी कई एक उदाहरण हैं,जिनमें भारतीय मूल के लोगों को सम्मिलित नहीं किया जाता।फिर चाहे गाँधी जयंती हो चाहे होली-दिवाली।हम लोगों ने अब तक भारतीय राजदूतावास द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को सफल बनाने में अपना पूरा सहयोग प्रदान किया है।भारत के सही राजदूत हम हैं।तिरस्कार के अपमान को सह कर जो लोग केवल खाने-पीने के लिये या व्यापारिक संपर्क बनाने के लिये 26 जनवरी के सम्मिलित होना चाहते हैं तो अवश्य हों,लेकिन इस बात का ढोंग ने करें कि वे अपने देश के लिये या भारत माता के लिये कुछ कर रहे हैं। अंत तुलसीदास जी की एक चौपाई से करना चाहूँगी
"आवत मन हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह,तुलसी वहाँ ना जाइये कंचन बरसे मेह।"

Sushila Haque
26 January 2015
Embassy of india, Berlin

शब्द

आज शब्द अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं
वे अभिव्यक्ति न रह कर मात्र अक्षरों का ढांचा रह गए हैं
या ये शब्द अब अपने मायने ही नहीं रखते
सारी दुनिया के लिए या सिर्फ मेरे लिए?
कल तक तो ये शब्द प्रसन्नता के प्रतीक थे
और आज महज एक सवाल बन कर रह गए हैं
ये कोई नए शब्द नहीं, वही चिर परिचित से शब्द हैं
पर अर्थ? वे तो शायद किसी दूर क्षितिज पर जा बैठे हैं
जैसे धरती और आकाश का मिलन नहीं होता
वह महज एक दिखावा है उसी प्रकार शब्द और उनके पुराने अर्थों का दूूराव हो गया है
लेकिन वे महज क्षितिज की भांति छलावा दे रहे हैं अपने उन्ही पुराने अर्थों को संजोये रखने का.
लेकिन आज ये शब्द अपनी सार्थकता खो चुके हैं और तलाश में हैं एक नए अर्थ की
लेकिन क्या ये नए अर्थ पुराने अर्थों की गरिमा को रख पाएंगे ?
या ये शब्द यूँ ही बिना अर्थों के अर्थहीन हो जायेंगे?
सुषमा प्रियादर्शिनी, Stuttgart, Germany