प्यारे भारतीय मूल के जर्मन वासी मित्रो,
अपने पचास साल के जर्मनी आवास के दौरान पहली बार बर्लिन के राजदूतावास में आयोजित २६ जनवरी के संविधान -दिवस समारोह में मैं सम्मिलित नहीं होउँगी क्योंकि जिस राजदूतावास में अब तक भारतीय मूल के नागरिकों को सम्मानपूर्वक आमन्त्रित किया जाता था वहीं हमें अब तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है।पहली बार भारतीय मूल की महिलाओं को दूतावास की Womens Association से बिना किसी कारण के बाहर कर दिया गया।इतना ही नहीं, इस संदर्भ में किये गये मेरे पत्रव्यवहार का उत्तर देना तो दूर की बात पत्र पहुँचने की स्वीकृति तक नहीं दी गई। पिछले दो वर्षों से 10 जनवरी को NRI दिवस नहीं मनाया जा रहा।ना ही राजभाषा दिवस मनाया जाता है और न ही रवीन्द्र जयंती।ऐसे ही और भी कई एक उदाहरण हैं,जिनमें भारतीय मूल के लोगों को सम्मिलित नहीं किया जाता।फिर चाहे गाँधी जयंती हो चाहे होली-दिवाली।हम लोगों ने अब तक भारतीय राजदूतावास द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को सफल बनाने में अपना पूरा सहयोग प्रदान किया है।भारत के सही राजदूत हम हैं।तिरस्कार के अपमान को सह कर जो लोग केवल खाने-पीने के लिये या व्यापारिक संपर्क बनाने के लिये 26 जनवरी के सम्मिलित होना चाहते हैं तो अवश्य हों,लेकिन इस बात का ढोंग ने करें कि वे अपने देश के लिये या भारत माता के लिये कुछ कर रहे हैं। अंत तुलसीदास जी की एक चौपाई से करना चाहूँगी
"आवत मन हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह,तुलसी वहाँ ना जाइये कंचन बरसे मेह।"
Sushila Haque
26 January 2015
Embassy of india, Berlin
अपने पचास साल के जर्मनी आवास के दौरान पहली बार बर्लिन के राजदूतावास में आयोजित २६ जनवरी के संविधान -दिवस समारोह में मैं सम्मिलित नहीं होउँगी क्योंकि जिस राजदूतावास में अब तक भारतीय मूल के नागरिकों को सम्मानपूर्वक आमन्त्रित किया जाता था वहीं हमें अब तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है।पहली बार भारतीय मूल की महिलाओं को दूतावास की Womens Association से बिना किसी कारण के बाहर कर दिया गया।इतना ही नहीं, इस संदर्भ में किये गये मेरे पत्रव्यवहार का उत्तर देना तो दूर की बात पत्र पहुँचने की स्वीकृति तक नहीं दी गई। पिछले दो वर्षों से 10 जनवरी को NRI दिवस नहीं मनाया जा रहा।ना ही राजभाषा दिवस मनाया जाता है और न ही रवीन्द्र जयंती।ऐसे ही और भी कई एक उदाहरण हैं,जिनमें भारतीय मूल के लोगों को सम्मिलित नहीं किया जाता।फिर चाहे गाँधी जयंती हो चाहे होली-दिवाली।हम लोगों ने अब तक भारतीय राजदूतावास द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को सफल बनाने में अपना पूरा सहयोग प्रदान किया है।भारत के सही राजदूत हम हैं।तिरस्कार के अपमान को सह कर जो लोग केवल खाने-पीने के लिये या व्यापारिक संपर्क बनाने के लिये 26 जनवरी के सम्मिलित होना चाहते हैं तो अवश्य हों,लेकिन इस बात का ढोंग ने करें कि वे अपने देश के लिये या भारत माता के लिये कुछ कर रहे हैं। अंत तुलसीदास जी की एक चौपाई से करना चाहूँगी
"आवत मन हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह,तुलसी वहाँ ना जाइये कंचन बरसे मेह।"
Sushila Haque
26 January 2015
Embassy of india, Berlin