मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

शब्द

आज शब्द अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं
वे अभिव्यक्ति न रह कर मात्र अक्षरों का ढांचा रह गए हैं
या ये शब्द अब अपने मायने ही नहीं रखते
सारी दुनिया के लिए या सिर्फ मेरे लिए?
कल तक तो ये शब्द प्रसन्नता के प्रतीक थे
और आज महज एक सवाल बन कर रह गए हैं
ये कोई नए शब्द नहीं, वही चिर परिचित से शब्द हैं
पर अर्थ? वे तो शायद किसी दूर क्षितिज पर जा बैठे हैं
जैसे धरती और आकाश का मिलन नहीं होता
वह महज एक दिखावा है उसी प्रकार शब्द और उनके पुराने अर्थों का दूूराव हो गया है
लेकिन वे महज क्षितिज की भांति छलावा दे रहे हैं अपने उन्ही पुराने अर्थों को संजोये रखने का.
लेकिन आज ये शब्द अपनी सार्थकता खो चुके हैं और तलाश में हैं एक नए अर्थ की
लेकिन क्या ये नए अर्थ पुराने अर्थों की गरिमा को रख पाएंगे ?
या ये शब्द यूँ ही बिना अर्थों के अर्थहीन हो जायेंगे?
सुषमा प्रियादर्शिनी, Stuttgart, Germany